📍चंडीगढ़ | 26 Sep, 2025, 11:41 PM
MiG-21 retirement: भारतीय वायुसेना का सबसे पुराना और भरोसेमंद लड़ाकू विमान मिग-21 अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। 62 साल तक आसमान में भारतीय तिरंगे की शान बढ़ाने वाले इस विमान को शुक्रवार को औपचारिक रूप से विदाई दी गई। इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे “बर्ड ऑफ ऑल सीजन्स” कहते हुए श्रद्धांजलि दी और कहा कि इसने हर भूमिका में भारतीय वायुसेना का सिर ऊंचा किया और पीढ़ियों के पायलटों को तैयार किया।
MiG-21 की आखिरी पीढ़ी बाइसन को चंडीगढ़ एयरबेस पर 28 स्कवॉड्रन पर आखिरी विदाई दी गई। मिग-21 के विदाई समारोह में राजनाथ सिंह ने भावुक शब्दों में कहा कि मिग-21 पर सवार होकर पीढ़ियों के पायलटों ने उड़ान सीखी, कठिन परिस्थितियों में जीत हासिल की। उन्होंने कहा कि यही वह प्लेटफॉर्म था जिसने भारतीय वायुसेना की रणनीति को दशकों तक दिशा दी। उन्होंने कहा, “मिग-21 केवल एक विमान नहीं था, बल्कि साहस, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक था। इसी विमान ने हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया और आज हम एलसीए तेजस और एएमसीए जैसे स्वदेशी विमानों की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
रक्षा मंत्री ने कहा, कोई भी ऐतिहासिक मिशन हो, हर बार मिग-21 ने तिरंगे का सम्मान किया। इसलिए यह विदाई, हमारी सामूहिक स्मृतियों का भी है, हमारे राष्ट्रीय गौरव का भी है, और उस यात्रा का भी है, जिसमें साहस, बलिदान और उत्कृष्टता की कहानी लिखी गई है
MiG-21 की कहानी 1963 में भारतीय वायुसेना में इसके शामिल होने से शुरू होती है। सोवियत मूल के इस विमान को भारत ने समय-समय पर अपग्रेड किया और आखिरी वैरिएंट को मिग-21 बाइसन के नाम से जाना गया। यह दुनिया में सबसे ज्यादा बनाए गए लड़ाकू विमानों में शामिल है। करीब 11,500 मिग-21 तैयार किए गए थे, जिनमें से लगभग 850 ने भारत की वायुसेना की सेवा की।
रक्षा मंत्री राजनाथ ने कहा, 62 साल की लंबी यात्रा में मिग-21 ने भारत के लगभग हर बड़े युद्ध और अभियान में अपनी ताकत दिखाई। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने ढाका के गवर्नर हाउस पर हमला किया और भारत की जीत सुनिश्चित की। कारगिल युद्ध 1999 में यह दुर्गम पहाड़ी इलाकों में दुश्मन की चौकियों पर सटीक हमलों के लिए इस्तेमाल हुआ। बालाकोट एयरस्ट्राइक 2019 में भी इसकी मौजूदगी रही, जब विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान ने इसी विमान से पाकिस्तान के एफ-16 को मार गिराया और इतिहास रचा। हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर 2025 में भी इस विमान को अग्रिम मोर्चे पर तैनात किया गया था, जहां इसने भारतीय पायलटों को हवाई बढ़त दिलाई।
इस दौरान MiG-21 को लगातार अपग्रेड भी किया गया। रक्षा मंत्री ने समारोह में साफ किया कि सेवा में बने रहे विमान अधिकतम 40 साल पुराने थे, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक सामान्य उम्र है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इसे हमेशा तकनीकी रूप से प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आधुनिक राडार, एवियोनिक्स और बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल जैसी क्षमताओं से लैस किया। इन्हीं अपग्रेड्स की वजह से इसे “बाइसन” कहा जाने लगा। वहीं, मिग-21 को भारतीय वायुसेना में कई नामों से पुकारा गया, त्रिशूल, विक्रम, बादल और बाइसन। हर नाम इसकी क्षमताओं और बदलाव की एक नई कहानी कहता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, भारतीय वायुसेना के लिए यह विमान केवल एक फाइटर जेट नहीं बल्कि “ट्रेनिंग स्कूल” था, जिसने हजारों पायलटों को तैयार किया। और इस जहाज ट्रेनिंग लेकर बाद में सुखोई-30I और राफेल जैसे आधुनिक विमानों को उड़ाने में भी सक्षम बने। राजनाथ सिंह ने कहा कि आज हमारे जो भी कुशल पायलट हैं, उनकी नींव मिग-21 पर रखी गई थी। यही वजह है कि यह विमान भारतीय वायुसेना के इतिहास में अमर रहेगा।
शुक्रवार को जब MiG-21 ने अपनी आखिरी ऑपरेशनल उड़ान भरी, तो भारतीय वायुसेना का एक सुनहरा अध्याय समाप्त हो गया। विदाई समारोह में वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी, पूर्व पायलट और एचएएल के इंजीनियर मौजूद थे, जिन्होंने इस एतिहासिक पल को अपनी आंखों से देखा।
एचएएल की भूमिका को भी विशेष रूप से सराहा गया। लगातार मरम्मत और अपग्रेड की वजह से यह विमान छह दशक तक हवा में मजबूती से खड़ा रहा। राजनाथ सिंह ने एचएएल के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की मेहनत को सलाम करते हुए कहा कि उनकी कोशिशों ने ही इस विमान को इतना लंबा जीवन दिया।
विदाई के इस मौके पर राजनाथ सिंह ने कहा कि इस विमान को अलविदा कहना केवल एक सैन्य परंपरा नहीं है, बल्कि यह भारत की सभ्यता और विरासत का हिस्सा है। मिग-21 अब भले ही सक्रिय सेवा से बाहर हो गया हो, लेकिन इसके साहस और योगदान की गूंज आने वाली पीढ़ियों तक सुनाई देती रहेगी।