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Commutation of Pension: 15 साल की रिकवरी पॉलिसी के खिलाफ एकजुट हुए पूर्व सैनिक, पेंशन कम्यूटेशन के नियमों पर फिर से हो विचार

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Commutation of Pension: देशभर के पूर्व सैनिकों के बीच अब एक नई बहस छिड़ी हुई है। यह बहस किसी ऑपरेशन या युद्ध की नहीं, बल्कि पेंशन के कम्यूटेशन जैसे पेचीदा लेकिन जीवन से जुड़े मुद्दे पर है। दशकों से चली आ रही 15 साल की रिकवरी पॉलिसी पर अब पूर्व सैनिक खुलकर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह नियम अब न तो व्यावहारिक रहा है और न ही न्यायसंगत।

Disability Pension: रक्षा मंत्रालय के नए डिसेबिलिटी पेंशन नियमों पर छिड़ा विवाद, पूर्व सैनिक बोले- क्या पेंशन में भारी कटौती की तैयारी कर रही सरकार?

इस अभियान की पहल कर्नल एमएस राजू (सेवानिवृत्त) ने की है, जिन्होंने इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषणात्मक दस्तावेज, “इनसाइट ऑन कम्यूटेशन ओएफ पेंशन” तैयार कर 8 एपीसीसी एजी ब्रांच को भेजा है। यह वही विभाग है जो पेंशन और सेवा लाभों से जुड़े मामलों की समीक्षा करता है और जिसे आगामी 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के लिए सुझाव तैयार करने का दायित्व मिला है।

Commutation of Pension: आयोग करेगा विचार-विमर्श

कर्नल राजू की इस पहल को 8 एपीसीसी के कर्नल संजय भाटिया ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने न केवल इसकी की, बल्कि यह भी सूचित किया कि इसे आयोग के औपचारिक विचार-विमर्श के लिए रखा जाएगा।

कर्नल भाटिया ने कहा है कि यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें पूर्व सैनिकों और सेवानिवृत्त अधिकारियों की राय शामिल की जानी चाहिए। उन्होंने देशभर के सभी अनुभवी अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे इस पर अपने सुझाव और टिप्पणियां भेजें ताकि आयोग के सामने एक ठोस, तार्किक और व्यावहारिक प्रस्ताव रखा जा सके।

उन्होंने सभी पूर्व सैनिकों से अनुरोध किया है कि अपने विचार सीधे उनकी ईमेल आईडी m1.8apcc@gov.in पर भेजें, और साथ ही colmsraju@gmail.com को सीसी में रखें, ताकि सुझावों का एक दस्तावेज तैयार किया जा सके।

उनके इस विश्लेषण का पीडीएफ यहां उपलब्ध है…

Commutation of Pension: नियम चार दशक पुराना, बदले हालात

कम्यूटेशन ऑफ पेंशन की व्यवस्था 1925 में बनी सिविल पेंशंस (कम्यूटेशन) रूल्स से शुरू हुई थी। इस नियम के तहत, किसी भी सरकारी कर्मचारी को रिटायरमेंट के समय अपनी पेंशन का एक हिस्सा एकमुश्त रकम के रूप में लेने की अनुमति होती है। इस रकम को सरकार अगले 15 वर्षों तक मासिक पेंशन से काटकर वसूल करती है।

1986 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तय किया कि यह वसूली जीवनभर नहीं, केवल 15 वर्षों तक की जाएगी। उस समय यह फैसला एक राहत के तौर पर आया था लेकिन अब यह नीति समय से पीछे छूटी व्यवस्था बन चुकी है।

अब ब्याज दरें दोगुनी हो चुकी हैं, जीवन प्रत्याशा बढ़कर 80 वर्ष तक पहुंच गई है, और डिजिटल मॉनिटरिंग से वसूली बहुत अधिक बढ़ गई है। ऐसे में, पूर्व सैनिकों का कहना है कि सरकार को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि 15 साल की अवधि व्यावहारिक नहीं रही।

“यह कोई लाभ कमाने की पॉलिसी नहीं”

पूर्व सैनिकों का मानना है कि पेंशन नीति का उद्देश्य सरकारी लाभ नहीं बल्कि राहत होना चाहिए। कर्नल राजू कहते हैं, “सरकार को अपनी दी हुई राशि ब्याज सहित वसूलने का अधिकार है, लेकिन उसके बाद भी कटौती जारी रखना अनुचित है। यह नीति ‘नो प्रॉफिट–नो लॉस’ के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए, न कि लाभ कमाने के आधार पर।”

पूर्व सैनिकों का तर्क है कि मौजूदा ब्याज दरों के अनुसार सरकार 11 से 12 वर्षों में पूरी वसूली कर लेती है, इसके बाद की कटौती केवल अतिरिक्त भार है।

डिफेंस कर्मियों पर सबसे ज्यादा असर

डिफेंस सर्विसेज में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। सेना, नौसेना और वायुसेना के अधिकारी और जवान सामान्यतः 37 से 45 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। इस स्थिति में जब 15 साल तक कम्यूटेड हिस्सा काटा जाता है, तो उनकी पूरी पेंशन 55 से 60 वर्ष की उम्र के बाद ही रीस्टोर होती है, यानी सेवा के बाद का पूरा मध्य जीवन आर्थिक रूप से प्रभावित रहता है।

एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “हमने अपने सबसे ऊर्जावान साल देश को दिए। अब जब हमें राहत मिलनी चाहिए, तब हमारी पेंशन से कटौती जारी रहती है। यह नीति अब पुनर्विचार योग्य है।”

नीतिगत समीक्षा का है वक्त

हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर्स’ वेलफेयर ने 23 जुलाई 2025 को एक आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि पेंशन कम्यूटेशन से संबंधित मामला अब न्यायालयों में नहीं जाएगा, बल्कि 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को नीतिगत समीक्षा के लिए भेजा जाएगा। इसका अर्थ यह है कि सरकार पहली बार औपचारिक रूप से इस नीति की पुनः जांच को तैयार है। यही वह अवसर है जब पूर्व सैनिकों की राय और अनुभव नीति-निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

5वें और 6वें वेतन आयोग की पुरानी सिफारिशें अब प्रासंगिक

पांचवें वेतन आयोग ने पहले ही 1997 में सिफारिश की थी कि सरकार 12 वर्षों में कम्यूटेड राशि और ब्याज की पूरी वसूली कर लेती है, इसलिए पेंशन की बहाली अवधि को 15 से घटाकर 12 वर्ष किया जाना चाहिए। लेकिन यह सिफारिश लागू नहीं हुई।

छठे वेतन आयोग ने भी माना कि ब्याज दरें बढ़ने और जीवन प्रत्याशा में सुधार के बावजूद सरकार को नीति में बदलाव करना चाहिए। मगर वह भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब, जब 8वां वेतन आयोग इस विषय को फिर से खंगालने जा रहा है, पूर्व सैनिकों की यह पहल इसे दोबारा बहस के केंद्र में ला सकती है।

कर्नल राजू ने अपने संदेश में लिखा है, “यह विषय उन लोगों के लिए है जिन्होंने राष्ट्र को अपनी जवानी दी। यह कोई आर्थिक सौदा नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है कि सरकार उन्हें समय पर पूरा सम्मान और राहत दे।”

उन्होंने पूर्व सैनिकों से कहा है कि भले ही जिन्होंने 15 साल की अवधि पूरी कर ली है, वे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न हों, लेकिन उनके सुझाव भविष्य के सेवानिवृत्त साथियों के लिए नीति में सुधार का आधार बन सकते हैं।

Pakistan drone smugglers: भारत-पाक सीमा पर चल रहा है टॉम एंड जेरी! भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम से कैसे आंख मिचौली खेल रहे हैं पाकिस्तानी ड्रोन

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Pakistan drone smugglers: पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमा में ड्रोन की घुसपैठ लगातार जारी है। सुरक्षा एजेंसियों ने खुलासा किया है कि पाकिस्तान की तरफ से उड़ने वाले ड्रोन अब भारतीय क्षेत्र में दाखिल होते ही नई तकनीक का इस्तेमाल कर “लुकाछिपी” खेल रहे हैं। जैसे ही भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम इन्हें जाम करने की कोशिश करता है, ये ड्रोन अपने आप ‘रिटर्न-टू-बेस’ मोड में पाकिस्तान लौट जाते हैं।

यह ट्रेंड पंजाब सीमा पर तैनात सुरक्षाबलों ने नोट किया है। सूत्रों ने बताया, “अब ड्रोन पहले जैसे नहीं रहे। पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन ज्यादातर फेल-सेफ प्रोग्रामिंग के साथ उड़ाए जा रहे हैं। जब भी इन्हें किसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक दखल या सिग्नल जामिंग का पता चलता है, तो वे तुरंत उसी जगह लौट जाते हैं जहां से उड़े थे।”

Pakistan drone smugglers: आईएसआई के नेटवर्क की नई चाल

सूत्रों के मुताबिक, इस नए पैटर्न के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का नेटवर्क है, जो सीमा पार से ड्रग्स, हथियार और गोला-बारूद भारत में भेजने की कोशिश करता है। 532 किलोमीटर लंबी पंजाब बॉर्डर से हर रोज़ रात में 8 से 10 बार ड्रोन की आवाजाही देखी जा रही है। कई बार यह संख्या 15 तक पहुंच जाती है।

ये ड्रोन ज्यादातर एके-47, हैंड ग्रेनेड, पिस्तौल और हेरोइन लेकर उड़ाए जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद कुछ समय के लिए यह गतिविधि धीमी हुई थी, लेकिन हाल के हफ्तों में इसमें फिर से तेजी आई है।

कैसे खेला जा रहा है “लुकाछिपी” का खेल

इन ड्रोन में अब ऐसे सेंसर लगे हैं जो जैमिंग या ट्रैकिंग की कोशिशों को पहचान लेते हैं। जैसे ही कोई भारतीय रडार या एंटी-ड्रोन सिस्टम इन्हें निशाना बनाता है, ये सिग्नल लॉस का पता लगाकर ऑटोमैटिक रिटर्न मोड में चले जाते हैं।

इस तरह वे सीमा पार करने से पहले ही वापस पाकिस्तान लौट जाते हैं, जिससे भारतीय एजेंसियों के लिए उन्हें गिराना मुश्किल हो जाता है। सूत्रों के अनुसार, “पहले ये ड्रोन सीधे उड़कर हमारे इलाके में उतरते थे, लेकिन अब यह पूरी तरह ऑटोमैटिक हो चुका है। ड्रोन हमारे इलाके को स्कैन करते हैं, और खतरा महसूस होते ही लौट जाते हैं। ये एक ‘कैट-एंड-माउस गेम’ बन चुका है।”

भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम की सक्रियता

पंजाब पुलिस और बीएसएफ ने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए सीमा पर तीन वाहन-आधारित एंटी-ड्रोन सिस्टम तैनात किए हैं। इनकी लागत लगभग 51 करोड़ रुपये है और नौ और सिस्टम लगाने की योजना है।

एंटी-ड्रोन सिस्टम की मदद से ड्रोन की सटीक लोकेशन, ऊंचाई और गति का पता लगाया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि पहले हमें सिर्फ आवाज़ से ड्रोन का पता चलता था, लेकिन अब हमें उसकी सटीक दिशा, स्पीड और ऊंचाई का डेटा मिल जाता है।

Pakistan drone smugglers: डिटेक्शन रेट अब पहले से ज्यादा

इन सिस्टमों की तैनाती के बाद केवल भिखीविंड सबडिवीजन में ही 12 एफआईआर दर्ज की गई हैं। पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है जो ड्रोन के जरिए आई खेप को रिसीव करते थे। जब्त किए गए सामान में चार पिस्तौल, 75 कारतूस, 5 मैगजीन, 3 किलो से ज्यादा हेरोइन और अन्य ड्रग्स शामिल हैं।

सुरक्षा बलों का कहना है कि भले ही ड्रोन कभी-कभी लौट जाते हैं, लेकिन उनका डिटेक्शन रेट अब पहले से कहीं ज्यादा है। अधिकारी के अनुसार, “हम रोजाना औसतन 10 ड्रोन डिटेक्ट कर रहे हैं। अब हमें बस कवरेज बढ़ाने की जरूरत है। कम से कम सौ एंटी-ड्रोन सिस्टम सिस्टम पूरे पंजाब बॉर्डर पर चाहिए।”

कश्मीर में भी बढ़ा खतरा

सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में भी ड्रोन अलर्ट जारी किया गया है। आर्मी की इन्फेंट्री डिवीजन ने 24 सितंबर को एक इनपुट जारी कर बताया था कि पाकिस्तान की तरफ से अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स घाटी में भेजे जा सकते हैं, जिनका इस्तेमाल त्योहारों के मौसम में सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमले के लिए किया जा सकता है।

सूत्रों का कहना है कि अब ड्रोन युद्ध केवल “गोलियों” से नहीं, बल्कि सिग्नल और सॉफ्टवेयर से लड़ा जा रहा है। पाकिस्तान की तरफ से भेजे जा रहे ड्रोन अब इतने एडवांस हैं कि वे सिग्नल जैमिंग, जीपीएस इंटरफेरेंस, और रेडियो ट्रैकिंग से बचने के लिए खुद-ब-खुद रास्ता बदल लेते हैं। भारतीय एजेंसियां अब इन नई तकनीकों का मुकाबला करने के लिए आर्टिफिशियल बेस्ड ट्रैकिंग, रडार नेटवर्क इंटीग्रेशन, और रीयल-टाइम डेटा मॉनिटरिंग पर काम कर रही हैं।

India German submarines: सरकार ने फ्रांस का सबमरीन प्रोजेक्ट क्यों दिया जर्मनी को, क्या है प्रोजेक्ट-76 से कनेक्शन, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

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India German submarines: भारत सरकार ने भारतीय नौसेना के मॉर्डनाइजेशन को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए तीन नई फ्रेंच स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण की योजना को रोक दिया है। अब सरकार का ध्यान पूरी तरह जर्मन मूल की छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक स्टील्थ पनडुब्बियों के निर्माण पर है, जिन्हें मुंबई के मझगांव डॉक लिमिटेड में तैयार किया जाएगा।

यह परियोजना लगभग 70,000 करोड़ रुपये की लागत से पूरी की जाएगी और इसे प्रोजेक्ट-75 इंडिया (Project-75I) के तहत बनाया जाना है।

Indian Navy Submarines: भारतीय नौसेना को मिलेंगी 9 नई पनडुब्बियां, खास AIP तकनीक से होंगी लैस, चीन और पाकिस्तान के पास पहले से है ये टेक्नोलॉजी

India German submarines: फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट पर रोक

सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत फिलहाल फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट के तहत तीन नई पनडुब्बियों के प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ा रहा है। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत करीब 36,000 करोड़ रुपये थी और इसके लिए फ्रांस की कंपनी नेवल ग्रुप से बातचीत भी लगभग पूरी हो चुकी थी।

सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से इस प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी नहीं मिली है। वजह यह बताई जा रही है कि जर्मन पनडुब्बियां तकनीकी दृष्टि से “एक पीढ़ी आगे” हैं और उन्हें अधिक एडवांस माना जा रहा है।

इसके अलावा, मझगांव डॉक में दो अलग-अलग जटिल पनडुब्बी परियोजनाओं को एक साथ चलाना संभव नहीं है। इसलिए फ्रेंच प्रोजेक्ट को अस्थायी तौर पर रोकने का फैसला लिया गया है।

लगाया जाएगा खास एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम

भारत और जर्मनी के बीच इस परियोजना को लेकर समझौता थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) के साथ हुआ है। इसके तहत मझगांव डॉक में छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक स्टील्थ सबमरीन बनाई जाएंगी।

इन पनडुब्बियों में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम, लैंड अटैक क्रूज मिसाइल्स और अत्याधुनिक सेंसर टेक्नोलॉजी शामिल होगी। यह तकनीक पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की क्षमता देती है। एआईपी सिस्टम वाली पनडुब्बियां बिना सतह पर आए लगभग दो सप्ताह तक पानी के अंदर ऑपरेशन कर सकती हैं, जबकि पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को हर कुछ दिनों में सतह पर आना पड़ता है।

इस परियोजना में 60 फीसदी से अधिक स्वदेशीकरण होगा और जर्मनी से ट्रांफसर ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत डिजाइन ट्रांसफर भी किया जाएगा। जबकि स्कॉर्पीन एक्सटेंशन में यह केवल 35–40 फीसदी था। इसका मतलब है कि भारत में लगभग 42,000 करोड़ रुपये का घरेलू उत्पादन और डोमेस्टिक इंजस्ट्रियल इम्पैक्ट होगा।

साथ ही सरकार का फोकस एआईपी को एक्सपोर्ट-क्लास टेक्नोलॉजी बनाने पर है। इसलिए जर्मन टीकेएमएस को चुना गया ताकि भारत की तकनीक को फॉरेन सिस्टम में इंटीग्रेट करके उसका रियल ऑपरेशनल वेलिडेशन किया जा सके।

India German submarines: जर्मनी से भारत को क्या मिलेगा?

फ्रेंच स्कॉर्पीन में “ब्लैक बॉक्स टेक्नोलॉजी” यानी कोर सिस्टम्स ट्रांसफर नहीं होता। जबकि टीकेएमएस के साथ भारत को फुल डिजाइन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर मिलेगा, यानी मझगांव डॉक को हुल स्ट्रक्चर, प्रोपल्शन लेआउट और डेटा-इंटीग्रेशन पर कंट्रोल मिलेगा। जिससे भारत के पास भी “सबमरीन डिजाइनिंग कैपेबिलिटी” होगी। यही तकनीक आगे चलकर प्रोजेक्ट-76 (इंडीजीनस सबमरीन प्रोग्राम) की रीढ़ बनेगी।

भारत की मौजूदा पनडुब्बी क्षमता

वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास कुल 16 पनडुब्बियां हैं, जिनमें छह फ्रेंच मूल की कलवरी-क्लास स्कॉर्पिन क्लास, चार जर्मन एचडीडब्ल्यू क्लास, और छह पुरानी रूसी किलो-क्लास शामिल हैं। इसके अलावा भारत के पास दो न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन भी हैं।

कलवरी-क्लास की सभी छह पनडुब्बियां मझगांव डॉक में बनाई गई थीं, जिनमें पहली आईएनएस कलवरी दिसंबर 2017 में और आखिरी आईएनएस वागशीर जनवरी 2025 में नौसेना को सौंपी गई।

अब सभी स्कॉर्पीन पनडुब्बियों में डीआरडीओ का बनाया एआईपी सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे उनकी पानी के नीचे ऑपरेशन की क्षमता बढ़ेगी।

India German submarines: Project-75I और Project-76 के बीच ब्रिज

यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक “प्रोक्योरमेंट” नहीं, बल्कि भारत के स्वदेशी पनडुब्बी प्रोग्राम प्रोजेक्ट-76 के लिए ब्रिज टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेटर है। यानी, टीकेएमएस से मिलने वाले डिजाइन और सिस्टम नॉलेज को डीआरडीओ और नौसेना डिजाइन ब्यूरो आगे जाकर भारत की पूरी स्वदेशी सबमरीन लाइन में उपयोग करेगा।

मझगांव डॉक को अब एक इंटीग्रेटेड सबमरीन डेवलपमेंट सेंटर में बदला जा रहा है। टीकेएमएस प्रोजेक्ट के तहत, मझगांव डॉक को डिजाइन इंटीग्रेशन और सिस्टम ट्यूनिंग की स्वतंत्रता दी जाएगी। इसका मतलब है कि भारत अब सिर्फ “असेंबली यार्ड” नहीं रहेगा, बल्कि सबमरीन डिजाइनर नेशन बन सकता है।

वहीं, पहली बार डीआरडीओ और नौसेना डिजाइन ब्यूरो को प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण से ही शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य भविष्य के पी-76 प्रोजेक्ट की “टेक्नोलॉजी रिटेंशन” सुनिश्चित करना है, यानी टीकेएमएस से जो सीख मिलेगी, वह विदेशी नहीं रहेगा, बल्कि “भारतीय बौद्धिक संपदा” बन जाएगा।

India German submarines: फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी बरकरार

भले ही फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट को रोक दिया गया है, लेकिन भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक रक्षा सहयोग पर कोई असर नहीं पड़ा है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण रक्षा परियोजनाएं चल रही हैं।

भारत और फ्रांस मिलकर एएमसीए (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के लिए नया जेट इंजन बना रहे हैं। यह परियोजना लगभग 61,000 करोड़ रुपये की है और इसमें फ्रांस की कंपनी साफरान साझेदार है।

इसके अलावा, भारतीय वायुसेना के लिए 114 मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) प्रोजेक्ट पर भी दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है। इसके तहत अतिरिक्त राफेल पाइटर जेट भारत में बनाए जाएंगे।

चीनी और पाकिस्तान पर नजर

भारत का यह कदम उस समय आया है जब चीन लगातार अपनी नौसेना क्षमता बढ़ा रहा है। वर्तमान में चीन के पास 50 से अधिक डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 न्यूक्लियर पनडुब्बियां हैं।

इतना ही नहीं, चीन पाकिस्तान को भी आठ नई युआन-क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां दे रहा है, जिनमें एआईपी सिस्टम लगा हुआ है। इससे पाकिस्तान की अंडरवाटर वारफेयर क्षमता में बड़ा इजाफा होगा।

इन्हीं क्षेत्रीय सुरक्षा परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने अपनी पनडुब्बी बेड़े को तकनीकी रूप से अपग्रेड करने की दिशा में यह फैसला लिया है।

सूत्रों के अनुसार, जर्मन पनडुब्बियों का प्रोजेक्ट भारतीय नौसेना के लिए भविष्य की परियोजना प्रोजेक्ट-76 (Project-76) की आधारशिला साबित होगा, जिसमें भारत पूरी तरह स्वदेशी डिजाइन पर आधारित पनडुब्बियां बनाएगा।

मझगांव डॉक में बनने वाली इन छह जर्मन पनडुब्बियों के बाद भारत को तीन और सबमरीन के निर्माण का विकल्प भी मिलेगा। इससे नौसेना की कन्वेंशनल पनडुब्बी क्षमता को दीर्घकालिक स्थिरता मिलेगी।

भारतीय नौसेना ने कहा है कि वह इस परियोजना को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए उन्नत तकनीक को अपनाने के लिए तैयार है। नौसेना का मानना है कि जर्मन टीकेएमएस की तकनीक से बनी नई पनडुब्बियां भारतीय समुद्री सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित होंगी। रक्षा मंत्रालय, नौसेना और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के बीच विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस परियोजना को हरी झंडी दी गई। अब मझगांव डॉक और टीकेएमएस के बीच अंतिम अनुबंध वार्ताएं चल रही हैं। वहीं, इन नई पीढ़ी की पनडुब्बियों का निर्माण आने वाले वर्षों में भारत को उन देशों की कतार में शामिल करेगा, जिनके पास आधुनिक स्टील्थ और लॉन्ग-एंड्यूरेंस सबमरीन तकनीक है।

Lloyds Engineering MoU: लॉयड्स इंजीनियरिंग ने पोलैंड की फ्लायफोकस के साथ किया करार, भारत में मिलकर बनाएंगे एडवांस FPV ड्रोन

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Lloyds Engineering MoU: इंजीनियरिंग सेक्टर की प्रमुख कंपनी लॉयड्स इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड ने भारत में ड्रोन बनाने को लेकर पोलैंड की कंपनी फ्लायफोकस के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किए हैं। इस साझेदारी के तहत दोनों कंपनियां मिलकर भारत में फर्स्ट पर्सन व्यू (एफपीवी) ड्रोन बनाएंगी, जो विशेष रूप से स्पेशल ऑपरेशंस और अर्बन सिक्योरिटी मिशनों के लिए डिजाइन किए जाएंगे।

लॉयड्स इंजीनियरिंग ने अपने आधिकारिक बयान में बताया कि यह समझौता भारत की डिफेंस टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को और मजबूत करेगा। एफपीवी ड्रोन अत्याधुनिक अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) सिस्टम्स हैं, जो रियल-टाइम निगरानी और तेज जवाबी कार्रवाई में यूज किए जाते हैं।

कंपनी ने कहा कि इस एमओयू से भारत में शॉर्ट-रेंज टैक्टिकल ऑपरेशंस और रियल-टाइम रिकॉन्नेसेंस (जैसे मिशनों की क्षमताओं को और बढ़ावा मिलेगा।

लॉयड्स इंजीनियरिंग और फ्लायफोकस पहले से ही डिफेंडर ड्रोन प्रोग्राम में साथ काम कर रही हैं, जिसके तहत लॉन्ग-रेंज इंटेलिजेंस और सर्विलांस ड्रोन सिस्टम्स विकसित किए जा रहे हैं। अब दोनों कंपनियां एफपीवी ड्रोन सेगमेंट में कदम रख रही हैं, जो तेज़, हल्के और गतिशील मिशनों के लिए बनाए जाएंगे।

कंपनी ने कहा कि “डिफेंडर प्रोग्राम लंबी दूरी की निगरानी के लिए है, जबकि एफपीवी ड्रोन नजदीकी युद्ध, प्रशिक्षण, अर्बन सिक्योरिटी और विशेष अभियानों में उपयोग के लिए तैयार किए जाएंगे।”

इस एमओयू को भारत और पोलैंड के बीच रणनीतिक रक्षा सहयोग के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है। लॉयड्स इंजीनियरिंग ने कहा कि यह समझौता “भारत में रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता” को और मजबूत करेगा और ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देगा।

दोनों कंपनियां भारत में एफपीवी ड्रोन के अडॉप्शन, डिजाइन और निर्माण पर साथ मिल कर काम करेंगी। यह पहल भारत को उच्च तकनीकी ड्रोन युद्ध क्षमता विकसित करने में मदद करेगी।

लॉयड्स इंजीनियरिंग भारत की एक प्रमुख इंजीनियरिंग और तकनीकी कंपनी है, जो रक्षा क्षेत्र में तेजी से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। कंपनी की विशेषज्ञता भारी औद्योगिक उपकरणों, रक्षा प्लेटफॉर्म्स और स्मार्ट मशीनरी के निर्माण में है।

Rajnath Singh UN Conclave: संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन सम्मेलन में बोले रक्षा मंत्री- भारत के लिए शांति स्थापना ‘आस्था का विषय’

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Rajnath Singh UN Conclave: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन देशों के प्रमुखों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत हमेशा अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के पक्ष में खड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए शांति स्थापना कोई विकल्प नहीं बल्कि एक आस्था है।

UNTCC Chiefs Conclave में जनरल उपेंद्र द्विवेदी बोले- ‘ब्लू हैलमेट’ पहने सैनिक शांति का प्रतीक, समझदारी से हासिल किया जा सकता है अमन

रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “कुछ देश आज खुले तौर पर अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और कुछ अपनी सुविधा के अनुसार नए नियम बनाकर आने वाली सदी पर प्रभुत्व जमाना चाहते हैं। भारत इन सबके बीच हमेशा नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था का समर्थन करता रहा है। हमारे लिए यह केवल बातों का मुद्दा नहीं है, बल्कि हम इसे कर्म से सिद्ध करते हैं।”

Rajnath Singh UN Conclave: भारत वादों को कर्म के साथ जोड़ने वाला देश

राजनाथ सिंह ने कहा कि हजारों भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले शांति मिशनों में काम कर रहे हैं। उन्होंने इसे भारत की नीति का प्रतीक बताते हुए कहा, “भारत वादों को कर्म के साथ जोड़ने वाला देश है।”

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की विचारधारा भारत की शांति नीति की नींव है। “गांधीजी के लिए शांति का अर्थ केवल युद्ध से दूर रहना नहीं था, बल्कि न्याय, करुणा और नैतिक शक्ति का प्रतीक था। भारत ने स्वतंत्रता के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र के मिशनों में अपना योगदान जारी रखा है।”

रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि भारत ने अब तक संयुक्त राष्ट्र के 71 मिशनों में से 51 मिशनों में भाग लिया है और वर्तमान में 9 में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारत ने अब तक 3 लाख से अधिक सैनिकों और अधिकारियों को विभिन्न शांति अभियानों में भेजा है।

Rajnath Singh UN Conclave: शांति मिशनों की चुनौतियों पर चिंता

राजनाथ सिंह ने कहा कि शांति मिशनों के सामने आज अभूतपूर्व चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा, “कई मिशन देर से तैनाती, अपर्याप्त संसाधन और सीमित जनादेश के कारण प्रभावित हो रहे हैं। जब तक हम संघर्षों के आर्थिक और सामाजिक कारणों को नहीं समझेंगे, तब तक समाधान अस्थायी ही रहेगा।”

उन्होंने कहा कि आधुनिक शांति मिशन केवल युद्धविराम की निगरानी तक सीमित नहीं हैं। अब इनका स्वरूप मल्टी-डायमेंशनल हो गया है, जिनमें संघर्षग्रस्त समाजों को स्थायी शांति की ओर ले जाना भी शामिल है।

टेक्नोलॉजी और सहयोग की भूमिका

रक्षा मंत्री ने कहा कि भविष्य के शांति अभियानों में नई तकनीक, इनोवेशन और सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने कहा, “भारत ने कम लागत वाली स्वदेशी तकनीक विकसित की है जो शांति अभियानों की प्रभावशीलता को बढ़ाती है। इनमें लैंड मोबिलिटी प्लेटफॉर्म, सिक्योर कम्युनिकेशन सिस्टम, सर्विलांस उपकरण, यूएवी और मेडिकल सपोर्ट सिस्टम शामिल हैं।”

उन्होंने कहा कि भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना प्रशिक्षण केंद्र अब तक 90 से अधिक देशों के प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दे चुका है। यह केंद्र संघर्ष की स्थितियों में बातचीत, मानवीय संचालन और नागरिक सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण देता है।

महिलाओं की भागीदारी को बताया प्रेरणादायक

राजनाथ सिंह ने कहा कि शांति अभियानों में महिलाओं की भागीदारी ने मिशनों की प्रभावशीलता और मानवीय जुड़ाव को और मजबूत किया है। उन्होंने याद किया कि 2007 में भारत ने लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत पहली पूर्ण महिला पुलिस यूनिट तैनात की थी, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा बनी।

उन्होंने कहा, “भारतीय महिला अधिकारी आज दक्षिण सूडान, गोलन हाइट्स और लेबनान जैसे मिशनों में गश्त कर रही हैं, स्थानीय महिलाओं के साथ काम कर रही हैं और उन्हें सशक्त बना रही हैं। उनकी सहानुभूति और समर्पण आधुनिक शांति अभियानों का असली चेहरा हैं।”

रक्षा मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि 2024 में एक भारतीय महिला शांति सैनिक को संयुक्त राष्ट्र मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

दिया फोर सी का मंत्र

अपने संबोधन में राजनाथ सिंह ने कहा कि भविष्य के शांति अभियानों के लिए चार सी बेहद जरूरी हैं- कंसल्टेशन (परामर्श), कॉपरेशन (सहयोग), कॉर्डिनेशन (समन्वय) और कैपेसिटी बिल्डिंग (क्षमता निर्माण)। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन देशों को अपने अनुभव साझा करने और शांति मिशनों की कार्यक्षमता बढ़ाने का मंच प्रदान करता है।

उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि जिनके पास उन्नत तकनीक और वित्तीय संसाधन हैं, वे शांति अभियानों में सहयोग बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि भारत चाहता है कि ट्रूप कंट्रीब्यूटिंग नेशंस को मिशन की नीतियों के निर्धारण में ज्यादा भागीदारी मिले।

भारत का वैश्विक शांति के प्रति स्थायी संकल्प

राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत का संकल्प हमेशा से वैश्विक शांति के प्रति दृढ़ रहा है। उन्होंने कहा, “भारत विश्व गुरु बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन यह प्रभुत्व का नहीं बल्कि सहयोग और समरसता का संदेश है।”

उन्होंने कहा कि भारत अपनी अहिंसा और अंतरात्मा की शांति की परंपरा को साझा करते हुए शांति अभियानों को और मानवीय बनाना चाहता है।

Rajnath Singh UN Conclave: अंत में दिया विश्व शांति का संदेश

अपने संबोधन के अंत में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्राचीन भारतीय ऋषियों की प्रार्थना ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का उल्लेख करते हुए कहा, “यह प्रार्थना केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए है। सभी सुखी रहें, स्वस्थ रहें, दुख से मुक्त रहें और सबका कल्याण हो।” उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन देशों के बीच गहरा सहयोग और वैश्विक शांति के नए युग की दिशा में एक और कदम साबित होगा।

Paras Defence MoU: इजराइल की इस कंपनी के साथ स्वदेशी इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम्स सिस्टम बनाएगी पारस डिफेंस

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Paras Defence MoU: भारत की प्रमुख रक्षा कंपनी पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने इजराइल की कंपनी सिएलो इनर्शियल सोल्यूशन्स के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर दस्तखत किए हैं। इस समझौते का उद्देश्य भारत में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम्स के स्वदेशीकरण, निर्माण और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना है।

Defence Shares Weekly Report: डिफेंस शेयर्स में हल्की गिरावट, ये शेयर रहे टॉप गेनर्स, देख लें टॉप लूजर्स की लिस्ट

कंपनी ने 13 अक्टूबर को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में बताया कि यह समझौता भारत में एडवांस डिफेंस टेक्नोलॉजी के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके तहत पारस डिफेंस और सिएलो भारत में इनर्शियल सेंसर्स और क्लोज्ड लूप फाइबर ऑप्टिक जाइरोस्कोप पर मिलकर काम करेंगे।

भारत में विकसित होंगे इनर्शियल सिस्टम्स

यह साझेदारी भारत में एडवांस नेविगेशन और गाइडेंस सिस्टम्स को स्थानीय स्तर पर विकसित करने की दिशा में एक अहम प्रयास है। इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम्स का इस्तेमाल मिसाइल, ड्रोन, हवाई जहाज, युद्धपोत और सैटेलाइट जैसी सैन्य तकनीकों में किया जाता है।

समझौते के तहत दोनों कंपनियां भारत में इन उपकरणों के अडॉप्शन, मैन्युफैक्चरिंग, मार्केटिंग और सेल्स में सहयोग करेंगी। यह कदम न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन को भी नई गति देगा।

सिएलो इनर्शियल सोल्यूशन्स एक इजराइली कंपनी है, जो इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट्स, गायरो कंपास, नॉर्थ फाइंडिंग सिस्टम्स और इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम्स जैसी अत्याधुनिक तकनीक में विशेषज्ञ है। कंपनी के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिसाइल, ड्रोन, सैटेलाइट और एयरोस्पेस सिस्टम्स में उपयोग किए जाते हैं।

वहीं, पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड भारत की अग्रणी डिफेंस इंजीनियरिंग कंपनियों में से एक है, जो डिफेंस ऑप्टिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्यरत है। कंपनी डीआरडओ, इसको, एचएएल और बीईएल जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर डिफेंस इक्विपमेंट्स बनाती रही है।

UNTCC Chiefs Conclave में जनरल उपेंद्र द्विवेदी बोले- ‘ब्लू हैलमेट’ पहने सैनिक शांति का प्रतीक, समझदारी से हासिल किया जा सकता है अमन

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UNTCC Chiefs Conclave: भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि दुनिया भर में युद्ध का तरीका बदल गया है और अब शांति बनाए रखने के लिए सभी देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों का एक अहम हिस्सा रहा है और आज भी 11 में से 9 मिशनों में भारत सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।

UNTCC Chiefs Conclave: भारतीय सेना करेगी इस बड़ी शांति बैठक की मेजबानी, 32 देशों के आर्मी चीफ और वाइस चीफ होंगे शामिल

जनरल द्विवेदी नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र में सैनिक योगदान देने वाले देशों के प्रमुखों के सम्मेलन (UN Troop Contributing Countries Chiefs’ Conclave 2025) को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में दुनिया के 32 देशों के सेनाध्यक्ष और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी शामिल हुए हैं।

UNTCC Chiefs Conclave: “युद्ध अब बदल चुका है, शांति के लिए एकजुटता ही असली ताकत”

सेना प्रमुख ने कहा कि अब संघर्षों का स्वरूप पारंपरिक युद्ध से आगे बढ़ चुका है। आधुनिक युद्धों में हाइब्रिड वारफेयर , डिसइन्फॉर्मेशन कैंपेन, साइबर अटैक, और गैर-राज्य तत्वों की भूमिका बढ़ गई है। ऐसे समय में देशों के बीच सहयोग और तालमेल की भूमिका पहले से कहीं अधिक अहम हो गई है।

उन्होंने कहा कि “शांति बनाए रखना केवल सैनिकों का काम नहीं है, लेकिन इसे केवल एक सैनिक ही कर सकता है।” उन्होंने कहा कि जब दुनिया के विभिन्न देश एक झंडे के नीचे एकजुट होकर काम करते हैं, तो यह “मानवता की असली ताकत” को दिखाता है।

UNTCC Chiefs Conclave: भारत ने 71 में से 51 मिशनों में भेजे सैनिक

जनरल द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र के 71 शांति अभियानों में से 51 मिशनों में योगदान दे चुका है। इन अभियानों में अब तक लगभग 3 लाख भारतीय सैनिक (300,000 troops) हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने बताया कि भारत का यह योगदान शांति, स्थिरता और मानवता की सेवा की भावना का परिचायक है।

उन्होंने कहा कि भारत ने सबसे पहले 1950 में कोरिया और 1960 में कांगो में शांति सैनिक भेजे थे। आज भी भारत 9 शांति मिशनों में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है, जिनमें अफ्रीका और मध्य एशिया के कई संवेदनशील क्षेत्र शामिल हैं।

UNTCC Chiefs Conclave: ‘ब्लू हैलमेट’ सैनिकों को बताया शांति का प्रतीक

सेना प्रमुख ने संयुक्त राष्ट्र के ‘ब्लू हैलमेट’ पहने शांति सैनिकों को दुनिया में शांति बनाए रखने का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि ये सैनिक केवल सुरक्षा प्रदाता नहीं हैं, बल्कि “डिप्लोमैट, टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ और दूरस्थ क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण के सहभागी” भी हैं।

उन्होंने कहा कि “ब्लू हेलमेट” दरअसल “ब्लू ग्लू” की तरह हैं जो संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों और गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज को एक साथ जोड़ते हैं।

“कम संसाधनों के साथ काम करने की नई चुनौती”

जनरल द्विवेदी ने कहा कि भविष्य में शांति अभियानों के लिए संसाधनों की कमी और घटती अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एक बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा कि अब ऐसे अभियानों की योजना बनानी होगी जो कम संसाधनों के साथ अधिक कुशलता से काम कर सकें और टेक्नोलॉजी तथा इनोवेशन पर आधारित हों।

उन्होंने कहा कि आने वाले समय में शांति मिशनों का फोकस केवल सशस्त्र उपस्थिति पर नहीं रहेगा, बल्कि प्रिवेंटिव डिप्लोमेसी और सस्टेनेबल पीस बिल्डिंग पर भी ध्यान देना होगा।

“वैश्विक शांति प्रयासों के साथ रहेगा भारत”

सेना प्रमुख ने कहा कि भारत हमेशा से “विश्व बंधुत्व” और वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत पर काम करता रहा है। उन्होंने कहा कि भारत न केवल अपने शांति सैनिकों के अनुभव साझा करने को तैयार है, बल्कि दूसरे देशों की बेस्ट प्रैक्टिसेस को भी अपनाने के लिए तत्पर है।

उन्होंने कहा कि “भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में योगदान न केवल हमारे सैनिकों की वीरता का उदाहरण है, बल्कि यह हमारी वैश्विक जिम्मेदारी की भावना को भी दिखाता है।”

“भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा”

जनरल द्विवेदी ने कहा कि शांति अभियानों को अब भविष्य की चुनौतियों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के सैनिकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी, और रैपिड डिप्लॉयमेंट सिस्टम्स जैसी आधुनिक तकनीकों से लैस करना समय की मांग है।

उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शांति प्रशिक्षण केंद्र को राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में अपग्रेड किया है, जहां दुनिया के कई देशों के अधिकारी प्रशिक्षण ले चुके हैं।

“एकजुट होकर शांति कायम रखने का संकल्प”

सेना प्रमुख ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि यह सम्मेलन सभी देशों को एक मंच पर लाता है जहां वे अपने अनुभव साझा कर सकते हैं और एक-दूसरे से सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि संघर्ष पर शांति और विभाजन पर करुणा की जीत हो।”

उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन के शब्दों का हवाला देते हुए कहा, शांति को बलपूर्वक बनाए नहीं रखा जा सकता, यह केवल समझदारी से हासिल की जा सकती है।

AUSTRAHIND-2025: भारत और ऑस्ट्रेलिया की सेनाओं का संयुक्त अभ्यास शुरू, आतंकवाद-रोधी ऑपरेशन पर फोकस

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AUSTRAHIND-2025 भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं के बीच चौथा संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘ऑस्ट्राहिंद 2025’ (AUSTRAHIND-2025) आज से पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में शुरू हो गया है। यह अभ्यास 13 अक्टूबर से 26 अक्टूबर 2025 तक चलेगा।

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अभ्यास का आयोजन इरविन बैरक्समें किया जा रहा है, जहां भारत और ऑस्ट्रेलिया की सेनाएं एक साथ कई कॉम्प्लेक्स आपरेशनल सिनारियो पर काम करेंगी। इस साल का फोकस खासतौर पर शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में आतंकवाद-रोधी अभियानों पर है।

इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी यानी एक-दूसरे के साथ तालमेल और संयुक्त अभियानों को बेहतर बनाना है। सैनिक मिलकर जॉइंट प्लानिंग, टैक्टिकल मूवमेंट्स और फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज करेंगे। इससे न केवल उनकी सामरिक क्षमताएं परखी जाएंगी बल्कि ऑपरेशनल सिनर्जी भी मजबूत होगी।

AUSTRAHIND-2025 भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा सहयोग

अभ्यास के दौरान सैनिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों से जुड़े सिनोरियो पर भी काम करेंगे। इसमें ऐसे सिनारियो तैयार किए जाएंगे जो वास्तविक बहुराष्ट्रीय अभियानों की तरह हों, जहां विभिन्न देशों की सेनाएं एक साथ मिलकर काम करती हैं। इसका उद्देश्य सैनिकों को रैपिड रिस्पॉन्स और एडैप्टेबिलिटी की स्थिति में ट्रेनिंग करना है।

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ऑस्ट्राहिंद 2025 का आयोजन दोनों देशों की सेनाओं की क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता के प्रति साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं और यह अभ्यास उनके बीच रक्षा सहयोग और आपसी विश्वास को और गहरा बनाएगा।

अभ्यास के दौरान भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों को एक-दूसरे की रणनीतियों, हथियार प्रणालियों और ऑपरेशनल तकनीकों को समझने का अवसर मिलेगा। इससे दोनों सेनाओं के बीच दीर्घकालिक सैन्य संबंधों को मजबूती मिलेगी।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सैन्य सहयोग पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। दोनों देश क्वाड साझेदारी का हिस्सा हैं और कई सामरिक मंचों पर एक साथ काम कर रहे हैं।

ऑस्ट्राहिंद अभ्यास इसी सहयोग का एक अहम हिस्सा है, जो हर साल भारत और ऑस्ट्रेलिया में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। पिछले संस्करण का आयोजन भारत में हुआ था, जबकि इस बार ऑस्ट्रेलिया इसकी मेजबानी कर रहा है।

अभ्यास के दौरान दोनों सेनाएं जॉइंट आपरेशंस प्लानिंग और बैटल ड्रिल्स करेंगी। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी संभावित सुरक्षा चुनौती की स्थिति में दोनों सेनाएं एक साथ मिलकर प्रभावी तरीके से प्रतिक्रिया दे सकें।

इस प्रशिक्षण के जरिए भारत और ऑस्ट्रेलिया की सेनाओं के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर मिलिट्री डिप्लोमेसी को और बढ़ावा मिलेगा, जिससे दोनों देशों के रक्षा संबंध और अधिक मजबूत होंगे AUSTRAHIND-2025 भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा सहयोग दोनों ही देशों के लिए महत्वपूर्ण है।

MoD capital outlay India: रक्षा मंत्रालय ने सितंबर तक 50 फीसदी से ज्यादा पूंजीगत बजट किया खर्च, मिलिट्री मॉडर्नाइजेशन पर फोकस

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MoD capital outlay India: रक्षा मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में अपने कुल पूंजीगत बजट का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खर्च कर लिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2025 के अंत तक मंत्रालय ने 92,211.44 करोड़ रुपये, यानी कुल आवंटित 1,80,000 करोड़ रुपये का 51.23% इस्तेमाल किया है।

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पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में रक्षा मंत्रालय ने अपने पूरे पूंजीगत बजट का 100% उपयोग किया था, जो 1,59,768.40 करोड़ रुपये रहा था। इस बार भी मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष के मध्य में ही आधे से अधिक बजट उपयोग कर यह संकेत दिया है कि चालू वर्ष में भी पूरा आवंटन खर्च किया जाएगा।

रक्षा मंत्रालय यह फंड MoD capital outlay India उन परियोजनाओं पर खर्च कर रहा है जो भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए अत्यंत जरूरी हैं। इसमें एयरक्राफ्ट, शिप्स, सबमरीन, वेपन सिस्टम्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर इक्विपमेंट, और आर्मामेंट्स शामिल हैं।

इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा एयरक्राफ्ट और एयरो इंजन पर खर्च किया गया है, जबकि बाकी फंड लैंड सिस्टम्स, मिसाइल, रडार और हथियार निर्माण जैसे सेक्टर्स में किया जा रहा है।

MoD capital outlay India

पूंजीगत खर्च यानी कैपिटल एक्सपेंडीचर रक्षा क्षेत्र के लिए इसलिए अहम है क्योंकि यह नई खरीद, अनुसंधान एवं विकास , और सीमा क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होती है और आर्थिक विकास के साथ नए रोजगार पैदा करने में भी मदद मिलती है।

रक्षा मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 1,11,544.83 करोड़ रुपये घरेलू उद्योगों से खरीद के लिए आरक्षित किए हैं। अभी तक इस राशि का 45% हिस्सा खर्च किया जा चुका है। यह कदम आत्मनिर्भर भारत अभियान को सशक्त बनाने के लिए उठाया जा रहा है। मंत्रालय का उद्देश्य है कि अधिक से अधिक एमएसएमई, स्टार्टअप्स और निजी कंपनियां रक्षा उत्पादन में शामिल हों। इससे न केवल भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमता बढ़ेगी बल्कि विदेशी आयात पर निर्भरता भी घटेगी।

वित्त मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में रक्षा मंत्रालय को 1,80,000 करोड़ रुपये का पूंजीगत बजट आवंटित किया था, जो पिछले वर्ष के वास्तविक खर्च से 12.66% अधिक है। यह लगातार छठा साल है जब पूंजीगत आवंटन में बढ़ोतरी हुई है।

MoD capital outlay India मंत्रालय अब रीवाइज्ड बजट अनुमान की दिशा में काम कर रहा है ताकि वित्त वर्ष के अंत तक सभी स्वीकृत परियोजनाओं के लिए पर्याप्त फंड उपलब्ध हो सके। इसके साथ ही, रक्षा सेवाओं के लिए पूंजीगत आवंटन में पिछले पांच वर्षों में लगभग 60% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

Defence Stocks India: डिफेंस सेक्टर में तेजी का नया दौर! HAL-BEL जैसे शेयरों पर नई रिपोर्ट में बड़ा अपडेट

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Defence Stocks India: नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत का डिफेंस सेक्टर अब एक हाई ग्रोथ फेज में प्रवेश कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षों में रक्षा उद्योग में बूस्ट देखने को मिलेगा, जिसका फायदा प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, भारत डायनामिक्स, डाटा पैटर्न, जेन टेक्नोलॉजीज और सोलार इंडस्ट्रीज को मिलेगा।

Defence Shares in India: इस शेयर में पिछले पांच साल में 1,194 फीसदी का उछाल, एक लाख की वैल्यू हुई 13 लाख रुपये

नुवामा की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का डिफेंस सेक्टर वर्तमान में लगभग 10 लाख करोड़ रुपये के ऑर्डर पाइपलाइन पर काम कर रहा है। इसमें रक्षा मंत्रालय की ओर से ज्यादा बजट आवंटन, एयरफोर्स और नेवी की नई आवश्यकताओं और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत घरेलू उत्पादन पर जोर दिया गया है।

डिफेंस सेक्टर में तेजी का नया दौर

रक्षा मंत्रालय की नई 15-वर्षीय योजना में न्यूक्लियर पावर्ड वॉरशिप्स, हाइपरसोनिक मिसाइल्स, स्टेल्थ यूसीएवी, डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स और स्पेस-वॉरफेयर जैसी एडवांस क्षमताओं पर निवेश की योजना शामिल है। नुवामा के अनुसार, यह सब दर्शाता है कि भारत का रक्षा उद्योग न केवल आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रहा है, बल्कि तकनीकी दृष्टि से भी तेजी से परिपक्व हो रहा है।

रिपोर्ट में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को सबसे मजबूत दांव बताया गया है। कंपनी की 75,000 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक और लगभग 28 प्रतिशत ऑपरेटिंग मार्जिन ने इसे नुवामा का टॉप पिक बना दिया है।

नुवामा का अनुमान है कि बीईएल का अगले वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही में 15% की ग्रोथ हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीईएल की मजबूत एक्सीक्यूशन क्षमता और मार्जिन विजिबिलिटी के कारण यह अन्य पीएसयू से आगे रह सकती है। नुवामा ने यह भी कहा कि क्यूआरएसएएम मिसाइल ऑर्डर मिलने पर बीईएल के शेयर में री-रेटिंग देखने को मिल सकती है।

एचएएल को लेकर नुवामा ने कहा है कि कंपनी के पास भारी ऑर्डर बैकलॉग है, लेकिन एक्सीक्यूशन और कॉस्ट कंट्रोल अभी भी अहम चुनौती है। रिपोर्ट के अनुसार, एचएएल को अगले वित्तवर्ष में 12 तेजस यूनिट्स डिलीवर करनी हैं, लेकिन संभवतः केवल 7 यूनिट्स ही तैयार हो पाएंगी। यह कंपनी की कुल बिक्री में लगभग 13% योगदान देगा। नुवामा का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में एचएएल में 10% की ग्रोथ देखने को मिल सकता है।

नुवामा ने सोलार इंजस्ट्रीज और डाटा पैटर्न को लॉन्ग टर्म क्वालिटी स्टोरीज बताया है। सोलार के पास 16,800 करोड़ रुपये से अधिक की ऑर्डर बुक है। कंपनी का वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में 30% वर्ष-दर-वर्ष ग्रोथ का अनुमान है, जो इंटरनेशनल ऑर्डर्स से संचालित होगा। हालांकि भारत में मानसून के कारण माइनिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर गतिविधियों पर असर पड़ा है, लेकिन विदेशी बाजारों में बेहतर प्रदर्शन इसकी भरपाई करेगा।

वहीं डाटा पैटर्न्स के लिए नुवामा ने 1,800 करोड़ रुपये के नए ऑर्डर्स की उम्मीद जताई है और कंपनी की एक्सीक्यूशन ग्रोथ 28.5% रहने का अनुमान लगाया है।

साथ ही, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड के लिए रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी 22,800 करोड़ रुपये से अधिक के ऑर्डर बुक पर काम कर रही है। जैसे-जैसे सप्लाई चेन की बाधाएं कम होंगी, कंपनी का एक्सीक्यूशन तेज होगा। नुवामा का अनुमान है कि वित्त वर्ष 25–28 के दौरान कंपनी का राजस्व 50% की दर से बढ़ सकता है। हालांकि, बढ़ती प्रतियोगिता के कारण मार्जिन पर दबाव बना रहेगा।

Zen Technology – Defence Stocks India

जेन टेक्नोलॉजी को लेकर नुवामा ने कहा है कि कंपनी के मैनेजमेंट ने तिमाही के लिए 650 करोड़ रुपये के ऑर्डर्स की गाइडेंस दी थी, लेकिन ऑर्डर इंफ्लो कमजोर रहा। हालांकि, कंपनी का ऑपरेटिंग मार्जिन लगभग 34% रहने की उम्मीद है, जो सिमुलेशन ऑर्डर्स से समर्थित होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, डिफेंस सेक्टर का सबसे तेजी से बढ़ने वाला हिस्सा डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स रहेगा। इस सेगमेंट में 14–15% की वार्षिक वृद्धि की उम्मीद है। बड़े प्लेटफॉर्म ऑर्डर्स, मेक-इन-इंडिया इनिशिएटिव और मॉडर्नाइजेशन की योजनाएं इस ग्रोथ को गति देंगी।

रिपोर्ट के मुताबिक, डिफेंस सेक्टर में मौसमी सुस्ती के बावजूद लॉन्ग टर्म विजिबिलिटी मजबूत बनी हुई है। नुवामा ने बीईएल को अपनी टॉप पिक बनाए रखा है, जबकि सोलार और डाटा पैटर्न्स को मल्टी-ईयर कंपाउंडिंग स्टॉक्स बताया है।

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