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Tejas Crash Dubai: भारतीय वायुसेना कैसे करती है विमान हादसे की जांच? तेजस क्रैश के बाद क्या है कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी की पूरी प्रक्रिया समझिए

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Tejas Crash Dubai: भारतीय वायुसेना किसी भी विमान हादसे के बाद एक तय और बेहद सख्त प्रक्रिया के तहत जांच करती है, जिसे कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी या सीओआई कहा जाता है। 21 नवंबरको दुबई एयरशो में तेजस एमके-1 के क्रैश के बाद भी यही प्रक्रिया लागू की गई है। यह जांच पूरी तरह तथ्यों, तकनीकी सबूतों और विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर आधारित होती है। कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का मकसद सिर्फ एक है हादसे की असली वजह का पता लगाना, ताकि भविष्य में ऐसी गलती या तकनीकी समस्या दोबारा न हो।

Tejas Mk1 Crash: तेजस में लगी थी मार्टिन बेकर की जीरो इजेक्शन सीट, फिर भी पायलट क्यों नहीं कर पाया इजेक्ट?

हादसा होते ही सबसे पहला कदम यह होता है कि एयर मुख्यालय या संबंधित कमांड मुख्यालय जांच का आदेश देता है। आमतौर पर 24 से 48 घंटे के भीतर यह आदेश जारी कर दिया जाता है। इसके बाद एक टीम बनाई जाती है, जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी प्रिसाइडिंग ऑफिसर होता है। यह अधिकारी अक्सर एयर कमोडोर या ग्रुप कैप्टेन रैंक का होता है। इसके साथ 2-3 टेक्निकल और फ्लाइंग ब्रांच के अधिकारी भी शामिल किए जाते हैं। वहीं तेजस मामले में हादसे के कुछ घंटों बाद ही वेस्टर्न एयर कमांड ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का आदेश दे दिया। आज सुबह पांच सदस्यीय जांच टीम दुबई पहुंच चुकी है, जिसका नेतृत्व एक एयर कमोडोर कर रहे हैं।

तेजस क्रैश जैसे मामलों में, जहां विमान विदेशी जमीन पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो, टीम को मौके पर पहुंचने में 1-2 दिन का समय लग सकता है। लेकिन उद्देश्य हमेशा यही रहता है कि सबूत सुरक्षित रखे जाएं और क्रैश साइट को बिना किसी बदलाव के जांच टीम तक पहुंचा दिया जाए। दुबई एयर शो हादसे में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई।

कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का सबसे अहम चरण शुरू होता है सबूत जुटाने से। टीम सबसे पहले क्रैश साइट को सील कराती है। जहाज के हर छोटे-बड़े मलबे को इकट्ठा किया जाता है। जमीन पर गिरने की दिशा, आग लगने का पैटर्न, इंजन के टुकड़ों, पहिये, कॉकपिट के हिस्सों और पंखों की स्थिति को तस्वीरों और वीडियो में रिकॉर्ड किया जाता है।

Tejas Mk1 Crash: पिछले साल जैसलमेर में हुआ था पहला तेजस हादसे का शिकार, जानें क्या थी दुर्घटना की वजह

इस जांच में दो सबसे महत्वपूर्ण सबूत होते हैं, फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (सीवीआर)। तेजस जैसे फाइटर जेट में ये दोनों रिकॉर्डर विमान की हर उड़ान से जुड़ी जानकारी, स्पीड, ऊंचाई, इंजन थ्रस्ट, कंट्रोल इनपुट और कॉकपिट की आवाज तक रिकॉर्ड करते हैं। यह डेटा हादसे की सही वजह जानने में सबसे जरूरी माना जाता है। दुबई हादसे में भी दोनों रिकॉर्डर स्थानीय पुलिस ने बरामद कर लिए हैं।

इसके बाद जांच टीम उन कंपनियों से भी मदद लेती है जो विमान के उपकरण बनाती हैं। तेजस के मामले में मार्टिन बेकर की टीम इजेक्शन सीट की जांच करेगी, जबकि इंजन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जीई एविएशन को भी बाक़ायदा तकनीकी टेस्ट के लिए रिपोर्ट भेजी जाएगी। यही नहीं, एचएएल और डीआरडीओ के विशेषज्ञ भी पूरे प्रोसेस का हिस्सा होते हैं।

वहीं, तेजस क्रैश का एफडीआर/सीवीआर दुबई पुलिस से मिल चुका है और उसे 25–26 नवंबर को भारत लाया जाएगा। मार्टिन बेकर की टीम 24 नवंबर को साइट की जांच करेगी, जबकि अमेरिका से जीई एविएशन को भी तकनीकी जांच में शामिल होने के लिए बुलाया गया है।

जांच में गवाहों के बयान भी महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें एयरशो के आयोजनकर्ता, दूसरी उड़ानें उड़ाने वाले पायलट, एअर ट्रैफिक कंट्रोल, रडार ऑपरेटर, और विमान की ग्राउंड सर्विसिंग करने वाली टीम शामिल होती है। हर बयान का रिकॉर्ड बनाया जाता है।

इसके बाद शुरू होता है सबसे मुश्किल चरण, तकनीकी जांच। इसमें विमान की अंतिम उड़ान का कंप्यूटर मॉडल तैयार किया जाता है। कौन सा मैन्यूवर किया गया था, किस ऊंचाई और स्पीड पर क्या हुआ, पायलट ने कौन सा कंट्रोल इनपुट दिया, इन सबकी थ्रीडी रिकंस्ट्रक्शन बनाई जाती है। सीओआई तय करेगी कि हादसा तकनीकी खराबी से हुआ या मानवीय गलती से या बर्ड हिट वजह रही है। अभी तक हादसे की किसी भी वजह पर टिप्पणी सिर्फ अनुमान है।

कई बार कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी एक अंतरिम रिपोर्ट भी तैयार करती है, ताकि यदि किसी सुरक्षा प्रक्रिया में तुरंत बदलाव की जरूरत हो तो उसे लागू किया जा सके। हालांकि अंतिम रिपोर्ट तैयार होने में 6 से 18 महीने तक लग सकते हैं। तेजस क्रैश की फाइनल रिपोर्ट भी इसी अवधि में आने की संभावना है।

अंतिम रिपोर्ट पूरी तरह गोपनीय होती है। इसे एयर मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय और संबंधित तकनीकी एजेंसियों को भेजा जाता है। रिपोर्ट में हादसे की वास्तविक वजह, योगदान देने वाले कारक और सुधारात्मक कदम लिखे जाते हैं। आम जनता और मीडिया को सिर्फ वही हिस्सा बताया जाता है जो संवेदनशील न हो। IAF की COI दुनिया की सबसे सख्त और पारदर्शी जांचों में गिनी जाती है।

तेजस हादसे की जांच भी इसी तय प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ रही है। भारतीय वायुसेना की कोर्ट ऑफ कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी पूरी दुनिया में सबसे मुश्किल और वैज्ञानिक मानी जाती है और हर घटना में इसका सख्ती से पालन किया जाता है।

Tejas Mk1 Crash: तेजस में लगी थी मार्टिन बेकर की जीरो इजेक्शन सीट, फिर भी पायलट क्यों नहीं कर पाया इजेक्ट?

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Tejas Mk1 Crash: दुबई एयरशो 2025 में भारतीय वायुसेना का तेजस एमके-1 फाइटर जेट शुक्रवार दोपहर 3:40 बजे क्रैश हो गया। यह हादसा उस समय हुआ जब विमान एयरशो में लो-लेवल एयर डिस्प्ले कर रहा था। इस दुर्घटना में भारतीय वायुसेना के अनुभवी पायलट विंग कमांडर नमांश स्याल की मौत हो गई। यह घटना न सिर्फ भारतीय वायुसेना के लिए, बल्कि भारत के स्वदेशी तेजस प्रोग्राम के लिए भी एक गहरी क्षति मानी जा रही है। वहीं, अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जब उसमें जीरो इजेक्शन सीट लगी थी, तो पायलट क्यों नहीं इजेक्ट कर पाया।

Tejas Mk1 Crash: मैन्यूवर करने की कोशिश

यह हादसा दोपहर के समय हुआ जब तेजस एमके-1 अपने तय फ्लाइंग प्रोफाइल के तहत लो-लेवल मैन्यूवर दिखा रहा था। एयरशो के दौरान तेजस ने जैसे ही नीचे की ओर मुड़कर एक तेज मैन्यूवर करने की कोशिश की, तो विमान की पावर अचानक कम होती दिखाई दी। सोशल मीडिया (Tejas Mk1 Crash) पर आए वीडियो में देखा गया कि तेजस नोजडाउन पोजिशन में लगभग सीधी लाइन में नीचे गिरने लगा। इसकी ऊंचाई बहुत कम थी और विमान कुछ ही सेकंड में जमीन से टकरा गया और आग का गोला बन गया।

Tejas Mk1 Crash: पिछले साल जैसलमेर में हुआ था पहला तेजस हादसे का शिकार, जानें क्या थी दुर्घटना की वजह

हादसे के तुरंत बाद दुबई एयरशो के अधिकारियों और भारतीय वायुसेना ने पुष्टि की कि विमान में विंग कमांडर नमांश स्याल ही उड़ान भर रहे थे। वे नंबर 45 स्क्वाड्रन फ्लाइंग ड्रैगर के बहादुर और अनुभवी पायलट माने जाते थे। उन्होंने कई बार एरो इंडिया और कई अंतरराष्ट्रीय एयरशो में तेजस उड़ाया था। यह वही स्क्वाड्रन है जिसने तेजस की पहली ऑपरेशनल उड़ानें शुरू की थीं।

वीडियो में कहीं भी विमान से इजेक्शन (Tejas Mk1 Crash) का कोई संकेत नहीं दिखा। न कैनोपी उड़ती दिखी, न पैराशूट। इसका मतलब यह था कि इजेक्शन नहीं हो पाया। सवाल यह उठा कि जब तेजस में दुनिया की सबसे एडवांस्ड जीरो-जीरोo इजेक्शन सीट लगे होने के बावजूद आखिर इजेक्शन क्यों नहीं हुआ?

Tejas Mk1 Crash: क्या है जीरो-जीरो का मतलब

तेजस में लगी इजेक्शन सीट (Tejas Mk1 Crash) मार्टिन बेकर एमके-16एलई दुनिया की सबसे भरोसेमंद जीरो-जीरो सीटों में से गिनी जाती है। जीरो-जीरो का मतलब है कि विमान जमीन पर रुका हो, तब भी सीट पायलट की जान बचा सकती है। यह सीट दो स्टेज में काम करती है, पहले कैनोपी उड़ती है, फिर सीट को रॉकेट मोटर ऊपर और दूर ले जाती है। इसके बाद पायलट से सीट अलग होती है और पैराशूट खुलता है।

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इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 2 से 4 सेकंड का समय लगता है। लेकिन इस प्रक्रिया को सुरक्षित तरीके से पूरा करने के लिए कम से कम 200 से 300 फीट की ऊंचाई की जरूरत होती है। यही कारण है कि लो-लेवल फ्लाइंग में इजेक्शन बेहद मुश्किल हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यही बात इस हादसे में भी लागू हुई।

Tejas Mk1 Crash: शून्य सेकंड की होती है विंडो

रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा का कहना है कि लो-लेवल एरोबैटिक्स (Tejas Mk1 Crash) में अगर सिंक रेट यानी गिरने की स्पीड बहुत ज्यादा हो तो इजेक्शन का “विंडो” बहुत छोटा हो जाता है। कभी-कभी यह विंडो शून्य सेकंड की होती है। इस स्थिति में पायलट के पास हैंडल खींचने का समय ही नहीं बचता। वे कहते हैं कि वीडियो में तेजस जिस स्पीड से नीचे जा रहा था, उसमें इजेक्शन के लिए जरूरी समय पायलट को नहीं मिल सका।

Tejas Mk1 Crash: फिजिक्स की सीमा से बाहर कुछ नहीं

वहीं, रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन संजीव कपूर का कहना है कि तेजस की सीट जीरो-जीरो है, लेकिन लॉजिक यही है कि फिजिक्स की सीमा से बाहर कुछ नहीं। अगर विमान (Tejas Mk1 Crash) बहुत तेजी से नीचे गिर रहा हो और ऊंचाई बहुत कम हो, तो सीट को ऊपर उठाने और पायलट को पैराशूट पर लाने का समय नहीं मिलता। उनकी राय में, यह भी संभव है कि पायलट आखिरी पल तक विमान को रिकवर करने की कोशिश कर रहे हों, क्योंकि एयरशो में पायलट हमेशा दर्शकों और ग्राउंड क्रू को सुरक्षित रखने को प्राथमिकता देते हैं।

Tejas Mk1 Crash: रिकवरी में लगा टाइम

कई अंतरराष्ट्रीय एविएशन विश्लेषकों (Tejas Mk1 Crash) ने भी यही कहा है कि लो-लेवल डिस्प्ले में पायलट जितना समय रिकवरी में लगाते हैं, उतना ही समय इजेक्शन का मौका कम कर देता है। वीडियो देखकर यही लगता है कि विमान का नियंत्रण अचानक खो गया और नीचे आते-आते इजेक्शन की संभावना खत्म हो गई। उनका कहना है कि इसके साथ-साथ फिर से यह सवाल खड़ा हो गया कि लो-लेवल एरोबैटिक्स में सुरक्षा को कैसे और मजबूत किया जा सकता है।

अब सवाल यह है कि तेजस का कुल सुरक्षा रिकॉर्ड कैसा है? तेजस प्रोग्राम 24 साल पुराना है और इस दौरान इसके सभी इजेक्शन पूरी तरह सफल रहे हैं। यह तेजस की क्षमता और उसकी इजेक्शन सीट की विश्वसनीयता दोनों को सिद्ध करता है।

Tejas Mk1 Crash: तेजस में अब तक चार बार इजेक्शन

तेजस के परीक्षण और ऑपरेशनल उड़ानों के दौरान अब तक चार बार इजेक्शन हुआ है। पहला इजेक्शन 2001 में हुआ था, जब इसके टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर की टेस्ट फ्लाइट के दौरान पायलट ने सुरक्षित निकलकर अपनी जान बचाई। दूसरा इजेक्शन 2006 में राजस्थान में हुआ। वह भी पूरी तरह सफल रहा। तीसरा केस 2014 में हुआ जब नेवल प्रोटोटाइप एनपी-2 गोवा के समुद्र में टेस्ट फ्लाइट के दौरान क्रैश हो गया। उस समय भी पायलट सुरक्षित रहे। वहीं, चौथा इजेक्शन मार्च 2024 में हुआ जब एक ट्रेनर वैरिएंट जैसलमेर के पास उड़ान भरते समय तकनीकी दिक्कत के चलते क्रैश हुआ। लेकिन पायलट पूरी तरह सुरक्षित ईजेक्ट जो गया।

इन सभी मामलों में मार्टिन बेकर एमके-16एलई सीट ने 100 फीसदी सफलता के साथ पायलट की जान बचाई। आज तक तेजस के किसी भी उड़ान मामले में इजेक्शन सीट ने फेल नहीं किया था। लेकिन यह पहली बार है जब पायलट को सीट का इस्तेमाल करने का मौका ही नहीं मिल पाया।

दुबई एयरशो हादसे (Tejas Mk1 Crash) के बाद भारतीय वायुसेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी नियुक्त कर दी है। जांच टीम ब्लैक बॉक्स, वीडियो फुटेज, राडार डेटा और विमान के अवशेषों की मदद से दुर्घटना के वास्तविक कारणों पता करेगी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह इंजन फेल्यर था, कंट्रोल लॉस था या फ्लाइट प्रोफाइल का मिसमैनेजमेंट।

तेजस प्रोग्राम से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि हादसे से सीख जरूर मिलेगी, लेकिन यह विमान की तकनीकी योग्यता पर सवाल नहीं उठाता। तेजस ने दुनिया भर में कई एयरशो में अपनी क्षमता दिखाई है और भारतीय वायुसेना के बेड़े में यह एक भरोसेमंद लड़ाकू माना जाता है।

Indian Navy Modernisation: ब्लू वाटर फोर्स बनने के लिए तैयार है भारतीय नौसेना, 2026 में शामिल होंगे 17 नए वॉरशिप

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Indian Navy Modernisation: भारतीय नौसेना की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। नौसेना में अब जितने भी वॉरशिप कमीशन हो रहे हैं वे सभी भारत में ही बने हैं। इसकी वजह है कि अब स्वदेश में ही तेजी से वॉरशिप बन रहे हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय नौसेना अगले वर्ष यानी 2026 में 17 नए जहाज फ्लीट में शामिल करने की तैयारी कर रही है। यह अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि आज से कुछ साल पहले एक युद्धपोत बनाने में पांच से छह साल लग जाते थे, लेकिन अब यह समय घटकर 31 महीने रह गया है।

Indian Navy Modernisation: 2025 में ही 12 नए प्लेटफॉर्म

भारतीय नौसेना ने अकेले 2025 में ही 12 नए प्लेटफॉर्म जिनमें 11 वॉरशिप और एक स्कॉर्पीन सबमरीन शामिल की है। इससे साफ है कि देश का शिपबिल्डिंग सेक्टर पहले से कहीं ज्यादा तेज, आधुनिक और आत्मनिर्भर बन गया है।

Indian Navy Modernisation: 31 महीने में तैयार हुआ आईएनएस सूरत

इस उपलब्धि के पीछे सबसे बड़ी मिसाल आईएनएस सूरत है, जिसे सिर्फ 31 महीने में तैयार कर दिया गया। पहले यह प्रक्रिया 55 से 60 महीनों तक चलती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2025 में इस गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर को कमीशन किया था।

Indian Navy Modernisation: समंदर में गर्दा उड़ाने वाली है भारतीय नौसेना, 69 नए जहाज और 6 घातक पनडुब्बियां कतार में, क्या 2026 तोड़ेगा 2025 का रिकॉर्ड?

रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय नौसेना आने वाले समय में भी इसी रफ्तार को बनाए रखना चाहती है। साल 2026 में 17 नए जहाज शामिल किए जाएंगे। इनमें गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट, नेक्स्ट जेनरेशन ऑफशोर पैट्रोल वेसल, मल्टी-पर्पज शिप और एंटी-सबमरीन प्लेटफॉर्म शामिल हैं।

Indian Navy Modernisation: हर 40 दिनों में एक नया वॉरशिप

भारत अभी हर 40 दिनों में एक नया वॉरशिप तैयार कर रहा है। हालांकि यह गति अभी भी अमेरिका और चीन से कम है। अमेरिका हर 18 दिन में एक जहाज बनाता है, जबकि चीन सिर्फ एक सप्ताह में एक युद्धपोत तैयार कर लेता है। फिर भी भारत का रिकॉर्ड साफ दिखाता है कि देश तेजी से आगे बढ़ रहा है और इंडो-पैसिफिक रीजन में अपनी मौजूदगी मजबूत करना चाहता है।

Indian Navy Modernisation: प्रोजेक्ट 75आई है सबसे महत्वपूर्ण

सरकार और नौसेना दोनों मिलकर समुद्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए कई बड़े प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रोजेक्ट 75आई, जिसके तहत छह नई एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) तकनीक वाली सबमरीन बनाई जाएंगी। इन सबमरीन का निर्माण मुंबई स्थित मझगांव डॉक शिपयार्ड में होगा। जर्मनी की कंपनी थिसेनक्रुप मैरीटाइम सिस्टम्स इसमें तकनीकी सहयोग करेगी।

Indian Navy Modernisation

चीन-पाकिस्तान लगातार बढ़ा रहे अपनी नौसैनिक ताकत

यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान और चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों को देखते हुए और भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पाकिस्तान इस समय पांच पनडुब्बियों के साथ 53 नौसैनिक प्लेटफॉर्म चला रहा है। इसके अलावा चीन पाकिस्तान को हंगोर क्लास की आठ नई सबमरीन दे रहा है, इनमें चार चीन के वुहान में बनााई जाएंगी, तो चार कराची में तैयार होंगी। इनमें से पहली सबमरीन दिसंबर 2025 में पाकिस्तान को मिलेगी।

चीन की मदद से पाकिस्तान अपना नेवी इंफ्रास्ट्रक्चर लगातार मजबूत कर रहा है। इसी कारण भारतीय नौसेना अपने आधुनिक प्लेटफॉर्म को जल्दी तैयार करना चाहती है। चीन ने 5 नवंबर 2025 को अपना 80,000 टन वजन वाला फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर भी कमीशन किया है, जिससे उसकी नौसैनिक ताकत और बढ़ गई है।

भारत के लिए इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय है। चीन की नौसेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी अब दक्षिण चीन सागर से निकलकर हिंद महासागर और यहां तक कि गल्फ ऑफ अदन तक सक्रिय दिखाई दे रही है। ऐसे में भारत अपनी समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए लगातार तेजी से कदम बढ़ा रहा है।

11 से 14 नवंबर के बीच भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने हवाई स्थित इंडो-पैकोम मुख्यालय का दौरा किया। वहां उन्होंने अमेरिकी इंडो-पैसिफिक फ्लीट कमांडर एडमिरल सैमुअल जे पापरो से मुलाकात की। दोनों देशों ने मिलकर फैसला किया है कि आगामी समय में बाइलेटरल नवल एक्सरसाइज को और कॉम्प्लेक्स और रियलिस्टिक बनाया जाएगा। ट्रेनिंग और पोर्ट विजिट्स में भी बढ़ोतरी की जाएगी।

Indian Navy Modernisation: न्यूक्लियर अटैक सबमरीन 2028 में

इस बीच, भारत अपनी समुद्री शक्ति को मजबूत करने के लिए दो और बड़े प्लेटफॉर्म हासिल करने की तैयारी में है। पहला न्यूक्लियर अटैक सबमरीन, जो 2028 में रूस से मिलने वाली है। दूसरा 26 राफेल मरीन फाइटर जेट्स, जिन्हें 2029 तक भारतीय नौसेना को सौंपा जाएगा। ये विमान आईएनएस विक्रांत और आने वाले नए एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर तैनात किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी नौसेना के आधुनिकीकरण (Indian Navy Modernisation) में गहरी दिलचस्पी है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दीपावली के दिन उन्होंने आईएनएस विक्रांत पर 17 घंटे बिताए, जहां उन्होंने रात में होने वाले फाइटर ऑपरेशंस और लाइव फायरिंग एक्सरसाइज को करीब से देखा। नौसेना के अधिकारियों का मानना है कि प्रधानमंत्री के इस संदेश से स्पष्ट है कि भारत आने वाले वर्षों में अपनी समुद्री ताकत को सबसे ऊंचे स्तर पर ले जाना चाहता है।

Tejas Mk1 Crash: पिछले साल जैसलमेर में हुआ था पहला तेजस हादसे का शिकार, जानें क्या थी दुर्घटना की वजह

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Tejas Mk1 Crash: दुबई एयर शो में डिस्प्ले एरोबैटिक्स के दौरान भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस एमके1 हादसे का शिकार हो गया। यह हादसा उस समय हुआ, जब तेजस एरोबैटिक डिस्प्ले के दौरान बेहद लो-लेवल पर एक तेज मैन्यूवर कर रहा था। कुछ ही सेकंड के अंदर विमान का संतुलन बिगड़ गया और वह तेजी से जमीन की ओर गिर गया। टक्कर के साथ ही विमान आग की एक बड़ी लपट में बदल गया। इस दुखद हादसे में भारतीय वायुसेना के अनुभवी पायलट विंग कमांडर नमन स्याल की मौत हो गई।

Tejas Mk1 Crash: बेहद अनुभवी पायलट थे विंग कमांडर नमन स्याल

हिमाचल प्रदेश के रहने वाले विंग कमांडर नमन स्याल तमिलनाडु स्थित सुलुर एयरबेस की नंबर 45 स्कवॉड्रन फ्लाइंग ड्रैगर्स का हिस्सा थे। यह वही स्क्वाड्रन है, जिससे तेजस की पहली ऑपरेशनल उड़ानें शुरू हुई थीं। नमन स्याल कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एयरशो में तेजस उड़ाकर अपने स्किल्स दिखा चुके थे और वे बेहद अनुभवी पायलट थे। लेकिन शुक्रवार को हुए हादसे में विमान की ऊंचाई इतनी कम थी कि ईजेक्शन की संभावना ही नहीं बची।

Tejas Mk1 crash Dubai: तेजस फाइटर जेट का क्रैश होना भारत के स्वदेशी फाइटर जेट प्रोग्राम को बड़ा झटका, एक्सपोर्ट का सपना कैसे होगा पूरा?

भारतीय वायुसेना ने बयान जारी कर बताया कि हादसे की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन किया गया है। वीडियो से यह साफ दिख रहा है कि विमान ने अचानक नियंत्रण खो दिया और पायलट ने आखिरी क्षण तक उसे आबादी वाले क्षेत्र से दूर ले जाने की कोशिश की।

तेजस विमान का यह क्रैश कई कारणों से गंभीर माना जा रहा है। तेजस कार्यक्रम भारत का सबसे महत्वाकांक्षी स्वदेशी फाइटर जेट प्रोजेक्ट है, जिस पर देश को दशकों से गर्व रहा है। एचएएल ने तेजस को डिजाइन और डेवलप किया है। विमान में जनरल इलेक्ट्रिक एफ404-इन20 इंजन लगा है।

Tejas Mk1 Crash- Wg Cdr Namansh Syal
Wg Cdr Namansh Syal

Tejas Mk1 Crash: 12 मार्च 2024 को पहला तेजस हुआ था हादसे का शिकार

लेकिन तेजस के साथ यह पहला हादसा नहीं है। अपनी 24 साल की ऑपरेशनल हिस्ट्री में 2001 में अपनी पहली उड़ान के बाद से यह तेजस के साथ दूसरा हादसा है। दुबई एयर शो से ठीक एक साल पहले, 12 मार्च 2024 में राजस्थान के जैसलमेर-पोखरण में भी एक तेजस एमके1 विमान क्रैश हुआ था। हालांकि उस घटना में पायलट सुरक्षित ईजेक्ट कर गया था। टेल नंबर एलए-5033 तेजस एमके1 को विंग कमांडर विभव पांडे उड़ा रहे थे। वे उस समय सुलुर स्थित नंबर 18 स्क्वाड्रन फ्लाइंग बुलेट्स का हिस्सा थे। एक ट्रेनिंग मिशन के दौरान इंजन फेल्यर हुआ। हालांकि उन्होंने बहुत कम ऊंचाई पर भी सफलतापूर्वक ईजेक्ट किया और पूरी तरह सुरक्षित बच गए ।

इंजन सीजर थी वजह

उस क्रैश की जांच में सामने आया कि दुर्घटना की वजह इंजन सीजर थी, जो ऑयल पंप फेल्यर की वजह से हुआ था। हालांकि उस क्रैश की एयरफोर्स ने इंटरनल इन्क्वॉयरी की थी। लेकिन उसकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं हुई। हादसे से पहले इंजन को लुब्रिकेशन नहीं मिला और वह अचानक बंद हो गया। उस घटना के बाद वायुसेना ने तेजस फ्लीट की पूरी इंजन हेल्थ मॉनिटरिंग कराई। जीई एफ404 इंजन की चेकलिस्ट अपडेट की गई, लेकिन कोई बड़ी तकनीकी कमी नहीं पाई गई।

Tejas Mk1 crash: दुबई एयर शो में तेजस के दुर्घटनाग्रस्त होने की क्या है वजह? क्या तेज जी-फोर्स के चलते पायलट हुआ कन्फ्यूज?

अब दुबई एयर शो में हुए क्रैश ने फिर से तेजस की सुरक्षा और भरोसे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर इसलिए क्योंकि यह हादसा अंतरराष्ट्रीय मंच पर हुआ है। भारत पिछले कुछ वर्षों से तेजस को विदेशी देशों में बेचने की कोशिश कर रहा है। कई देशों जैसे मलेशिया, अर्जेंटीना और ब्राजील ने तेजस में रुचि दिखाई थी। इस क्रैश से भारत के रक्षा निर्यात अभियान को भी झटका लग सकता है।

4 जनवरी 2001 को तेजस की पहली उड़ान

4 जनवरी 2001 को इंडियन एयर फोर्स के विंग कमांडर राजीव कोठियाल ने टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर टीडी-1 की पहली उड़ान सफलतापूर्वक भरी थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बाद में इस एयरक्राफ्ट का नाम लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट “तेजस” रखा, जिसका मतलब संस्कृत में “चमक” होता है।

इसके बाद भारतीय वायुसेना ने 20 एलसीए एमके1 आईओसी और 20 एलसीए एमके1 एफओसी मानक के विमान खरीदने का आदेश दिया। 2025 तक इनमें से 38 विमान वायुसेना को मिल चुके हैं। 2021 में सरकार ने 48,000 करोड़ रुपये में 83 एमके1ए विमानों का बड़ा ऑर्डर दिया। सितंबर 2025 में वायुसेना ने 97 अतिरिक्त एमके1ए का और ऑर्डर एचएएल को दिया।

तेजस एमके1ए की बड़े पैमाने पर डिलीवरी 2026-2030 के बीच होने की योजना है। इसके अलावा तेजस एमके2 जैसे एडवांस वर्जन पर भी काम चल रहा है।

दुबई एयर शो में तेजस की मौजूदगी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। तेजस ने पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय अभ्यासों जैसे यूके में कोबरा वारियर, यूएई में डेजर्ट फ्लैग और 2016 के बहरीन एयरशो में अपनी क्षमता दिखाई थी। तरंग शक्ति 2024 के दौरान तेजस ने यूरोफाइटर टायफून को सिमुलेटेड कॉम्बैट में इंटरसेप्ट किया था, जो बड़ी उपलब्धि थी।

लेकिन दुबई एयर शो 2025 की यह दुर्घटना तेजस प्रोग्राम के लिए वाकई चुनौती लेकर आई है। हादसा ऐसे समय पर हुआ है जब भारत दुनिया को अपने स्वदेशी फाइटर जेट की क्षमता दिखाना चाहता है और रक्षा निर्यात को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

हादसे का शिकार हुए तेजस विमान का टेल नंबर एलए-5025 था। यह 2021-22 के आसपास एचएएल नासिक में बना था। यह वही विमान था जिसने एरो इंडिया 2023 और 2025 में शानदार एरोबैटिक्स दिखाए थे।

दुर्घटना की सटीक वजह कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के बाद ही साफ हो पाएगी, लेकिन वीडियो से शुरुआती संकेत लो-एल्टीट्यूड कंट्रोल लॉस की ओर इशारा करते हैं। पायलट ने आखिरी पलों तक विमान को आबादी वाले क्षेत्र से दूर ले जाने की कोशिश की। हादसे के बाद क्रैश साइट को सुरक्षा बलों ने घेर लिया। दुबई अथॉरिटीज ने संयुक्त जांच का प्रस्ताव दिया है। भारतीय वायुसेना ने अपनी तरफ से तकनीकी डेटा और ब्लैक बॉक्स की जांच का काम शुरू कर दिया है।

Tejas Mk1 crash Dubai: तेजस फाइटर जेट का क्रैश होना भारत के स्वदेशी फाइटर जेट प्रोग्राम को बड़ा झटका, एक्सपोर्ट का सपना कैसे होगा पूरा?

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Tejas Mk1 crash Dubai: दुबई एयर शो 2025 के दौरान भारत का स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस शुक्रवार को एरोबैटिक डिस्प्ले के दौरान हादसे का शिकार हो गया। यह हादसा तब हुआ जब विमान तेज रफ्तार से नीचे की ओर आया और रनवे के पास तेज धमाके के साथ आग की लपटों में बदल गया। यह घटना उस समय हुई जब दुनिया भर के डिफेंस एक्सपर्ट और अंतरराष्ट्रीय खरीदार इस शो में मौजूद थे। हादसे के थोड़ी देर बाद भारतीय वायुसेना ने पुष्टि की कि यह दुर्घटना एक डेमोंस्ट्रेशन सॉर्टी के दौरान हुई और पायलट की मौत हो गई। हालांकि एयरफोर्स ने अभी तक आधिकारिक तौर पर स्क्वॉड्रन का नाम नहीं बताया है। लेकिन यह जहाज एयरशो के लिए स्पेशल डिटैचमेंट पर था।

Tejas Mk1 crash: दुबई एयर शो में तेजस के दुर्घटनाग्रस्त होने की क्या है वजह? क्या तेज जी-फोर्स के चलते पायलट हुआ कन्फ्यूज?

तेजस के इस क्रैश ने भारतीय वायुसेना, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और भारत की डिफेंस इंडस्ट्री के सामने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह दुर्घटना उस समय हुई है जब देश तेजस के प्रोडक्शन, डिलीवरी और एक्सपोर्ट को लेकर बड़ा आशावान है और कई देश इस विमान में रुचि दिखा रहे थे।

Tejas Mk1 crash Dubai: दुनिया के सबसे प्रशिक्षित और अनुभवी पायलट

वहीं, हादसे की सबसे दुखद बात यह है कि तेजस उड़ाने वाले डेमोंस्ट्रेशन पायलट दुनिया के सबसे प्रशिक्षित और अनुभवी पायलटों में गिने जाते हैं। ऐसे पायलट लंबी उड़ान ट्रेनिंग, कॉम्प्लेक्स एक्सरसाइज और एयर शो के एक्सपर्ट्स होते हैं। इसलिए, पायलट का खोना भारतीय वायुसेना के लिए गहरा नुकसान माना जा रहा है।

वहीं, इस घटना के बाद, तेजस (Tejas Mk1 crash Dubai) बनाने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड पर सवाल उठने लगे हैं। तेजस प्रोग्राम की शुरुआत 1970 के दशक में की गई थी ताकि भारतीय वायुसेना के पुराने मिग-21 फाइटर जेट की जगह एक स्वदेशी फाइटर जेट बनाया जा सके। 1983 में इसके डेवलपमेंट के लिए पहली बार 560 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया था, जो बाद में बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। इसके बावजूद तेजस को पहली उड़ान भरने में 2001 तक का समय लग गया।

इस साल फरवरी में एरो इंडिया शो के दौरान भी एचएएल पर सवाल उठे थे, जब भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह की एचएएल चीफ के साथ बातचीत वायरल हो गई थी। इस दौरान वायुसेना प्रमुख ने एचएएल (Tejas Mk1 crash Dubai) को लेकर अपनी चिंता जताते हुए कहा था कि उन्हें एचएएल पर पूरा भरोसा नहीं है और कंपनी “मिशन मोड” में काम नहीं कर रही है। यह घटना उस समय सुर्खियों में आई थी जब तेजस के उत्पादन और उसकी डिलीवरी की गति पर लगातार चर्चा हो रही थी।

सितंबर 2025 में एचएएल को भारतीय वायुसेना के लिए 97 तेजस एमके-1ए फाइटर जेट बनाने का बड़ा कॉन्ट्रैक्ट मिला था, जिसकी कीमत 62,370 करोड़ रुपये है। इसकी डिलीवरी 2027-28 से शुरू होने की उम्मीद थी। लेकिन इस हादसे के बाद इन टाइमलाइन पर भी असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।

यह तेजस (Tejas Mk1 crash Dubai) का दूसरा बड़ा क्रैश है। इससे पहले पिछले वर्ष राजस्थान के पोखरण में वायुसेना के अभ्यास ‘एक्सरसाइज वायुशक्ति’ के दौरान एक तेजस क्रैश हुआ था, इस हादसे में पायलट सेफ ईजेक्ट कर गया था। एक स्क्वाड्रन पूरी तरह बनने से पहले ही दो विमानों का क्रैश होना एचएएल की निर्माण गुणवत्ता और डिजाइन पर भी सवाल खड़े करता है।

तेजस (Tejas Mk1 crash Dubai) को विदेशी बाजार में भी पेश किया जा रहा था। अर्जेंटीना, फिलीपींस, मिस्र और कई अन्य देशों ने तेजस खरीदने में रुचि दिखाई थी। तेजस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी जेएफ-17 ब्लॉक III के संभावित विकल्प के तौर देखा जा रहा था। लेकिन दुबई एयर शो जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस तरह के हादसे से तेजस के एक्सपोर्ट संभावनाओं को बड़ा झटका लग सकता है।

भारतीय वायुसेना के लिए यह क्रैश (Tejas Mk1 crash Dubai) इसलिए भी बड़ा झटका है क्योंकि वायुसेना पहले ही स्क्वाड्रन स्ट्रेंथ की कमी से जूझ रही है। वायुसेना के पास 42 फाइटर स्क्वाड्रन होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में केवल 29 स्क्वाड्रन ही सक्रिय हैं। संख्या के लिहाज से वायुसेना के पास लगभग 200 लड़ाकू विमान कम हैं। वायुसेना ने तेजस एमके-1ए पर उम्मीद जताई थी कि यह कमी तेजी से पूरी होगी।

दुबई एयर शो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण डिफेंस प्लेटफॉर्म है। भारत पहली बार तेजस का इतने बड़े स्तर पर इंटरनेशनल डेब्यू करा रहा था। लेकिन हादसे ने पूरे मिशन को झटका दे दिया। भारतीय तकनीक, स्वदेशी क्षमता और आत्मनिर्भर भारत अभियान की छवि पर भी इसका असर पड़ा है।

तेजस (Tejas Mk1 crash Dubai) को भारत के सबसे महत्वाकांक्षी स्वदेशी मिलिट्री प्रोजेक्ट्स में से एक माना जाता है। यह एक सिंगल-इंजन, मल्टी-रोल, डेल्टा-विंग फाइटर है, जिसे हल्के और अत्याधुनिक लड़ाकू विमान के रूप में डेवलप किया गया है। इसके डिजाइन में एयर-टू-एयर मिसाइल, एयर-टू-ग्राउंड हथियार, टारगेटिंग पॉड और एडवांस एवियोनिक्स सिस्टम लगाए गए हैं।

दुर्घटना के बाद भारतीय वायुसेना (Tejas Mk1 crash Dubai) की टीम भी मौके पर पहुंच गई है। वायुसेना ने कहा है कि दुर्घटना की विस्तृत जांच की जाएगी, और क्रैश का कारण जल्द सामने आएगा। दुनिया की नजरें अब इस जांच पर टिकी हैं कि आखिर तेजस जैसा आधुनिक विमान क्रैश कैसे हुआ। भारतीय वायुसेना और एचएएल दोनों ने कहा है कि वे जल्द ही आधिकारिक जानकारी साझा करेंगे।

Tejas Mk1 crash: दुबई एयर शो में तेजस के दुर्घटनाग्रस्त होने की क्या है वजह? क्या तेज जी-फोर्स के चलते पायलट हुआ कन्फ्यूज?

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Tejas Mk1 crash: दुबई एयर शो 2025 में शुक्रवार दोपहर 3.40 बजे (भारतीय समयानुसार) एक दुखद हादसा हो गया, जब भारतीय वायुसेना का हल्का स्वदेशी फाइटर जेट तेजस एमके-1 फ्लाइंग डिस्प्ले के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस घटना से दुनिया भर के एविएशन एक्सपर्ट्स भी हैरान हैं।

तेजस विमान भारतीय वायुसेना का स्वदेशी रूप से विकसित हल्का लड़ाकू विमान है, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाया है। इस विमान का पिछले कई सालों में बेहतरीन उड़ान रिकॉर्ड रहा है और कई अंतरराष्ट्रीय शो में हिस्सा लिया है। लेकिन दुबई में हुई यह दुर्घटना पूरे तेजस कार्यक्रम के लिए एक बड़ा झटका मानी जा रही है। ये तेजस प्रोग्राम का दूसरा क्रैश है। इससे पहला क्रैश मार्च 2024 में जैसलमेर, राजस्थान में हुआ था, जहां पायलट सेफ ईजेक्ट कर गया था।

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Tejas Mk1 crash: क्या पायलट डिसऑरिएंटेशन है हादसे की वजह?

दुर्घटना के शुरुआती वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई हैं। वीडियो में साफ दिखता है कि तेजस ऊंचाई से बहुत तेज नोज डाउन एंगल (नाक नीचे झुकाकर गोता) में उतरता दिखाई देता है। यह गोता इतना तेज था कि विमान जमीन से टकराते ही तेज धमाके के साथ आग के गोले में बदल गया। पास में मौजूद सुरक्षा कर्मचारियों ने तुरंत आग बुझाने की कोशिश की और जगह को घेर लिया। अभी तक अनुमान लगाए जा रहे हैं कि यह हादसा पायलट डिसऑरिएंटेशन के चलते हुआ है।

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Tejas Mk1 crash: वायुसेना ने जारी किया बयान

भारतीय वायुसेना ने हादसे पर आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा है कि यह घटना बेहद दुखद है। भारतीय वायुसेना ने बताया, “भारतीय वायुसेना इस हादसे पर गहरा दुख व्यक्त करती है। दुर्घटना में जान जाने की खबर दुखद है। घटना के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित की जा रही है।”

वीडियो फुटेज के आधार पर कई शुरुआती संकेत मिले हैं, लेकिन जब तक फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर, कॉकपिट रिकॉर्डर, और सभी तकनीकी पैरामीटरों की जांच नहीं होती, तब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। फिर भी शुरुआती वीडियो देखकर कुछ बातें सामने आई हैं।

Tejas Mk1 crash: क्या है पहली संभावना

वीडियो में यह साफ दिखता है कि विमान तेजी से नीचे आते समय शायद किसी हाई-एनर्जी टर्न (तेज मोड़) या हाई-जी मैनुवर मैन्यूवर (तेज जी-फोर्स वाले करतब) के दौरान कंट्रोल खो बैठा। तेजस जैसे फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम वाले विमान में कंट्रोल कंप्यूटर हैंडल करता है। यदि किसी वजह से सेंसर डेटा गड़बड़ हो जाए या कंट्रोल सरफेस सही काम न करें, तो विमान अचानक तेज गोता लगा सकता है।

तकनीकी गड़बड़ी या इंजन बंद

दूसरी संभावना यह भी मानी जा रही है कि विमान के इंजन या किसी अन्य सिस्टम में अचानक कोई तकनीकी गड़बड़ी आ गई हो। हालांकि हादसे से ठीक पहले के वीडियो में इंजन की आवाज सामान्य सुनाई दे रही है, जिससे इंजन बंद होने यानी फ्लेमआउट की संभावना कम ही मानी जा रही है।

जी-फोर्स के चलते पायलट जी-लॉक?

सूत्रों का कहना है कि तेज जी-फोर्स के चलते पायलट को जी-लॉक (जी-फोर्स इंड्यूस्ड लॉस ऑफ कॉन्शियसनेस) हो सकता है। ऐसे मामलों में पायलट कुछ सेकंड के लिए बेहोश या भ्रमित हो जाता है, और यदि विमान जमीन के बहुत करीब हो तो बचने का समय ही नहीं मिलता।

क्या गर्म मौसम है वजह

दुबई के गर्म और सूखे मौसम में भी उड़ान के दौरान हवा में धूल या गर्म हवा की वजह से विमान के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मौसम वजह था या नहीं।

दुर्घटना के तुरंत बाद एयर शो के आयोजकों ने फ्लाइंग प्रोग्राम को अस्थाई रूप से रोक दिया। सुरक्षा टीमें और फायर यूनिट मौके पर पहुंचीं और आग को पूरी तरह काबू में किया। हादसे की जगह को सील कर तकनीकी जांच शुरू कर दी गई है। दुबई प्रशासन और भारतीय वायुसेना मिलकर संयुक्त जांच करेंगे।

तेजस एमके-1 का अब तक रिकॉर्ड बहुत सुरक्षित रहा है। यह विमान कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उड़ान प्रदर्शन कर चुका है और इसे दुनिया के हल्के लड़ाकू विमानों में यह भरोसेमंद नाम है।

भारतीय वायुसेना ने यह भी स्पष्ट किया कि हादसे के कारणों पर केवल अनुमान नहीं लगाया जा सकता और सभी तथ्य सामने आने के बाद ही आधिकारिक रिपोर्ट जारी की जाएगी।

दुबई एयर शो में तेजस की भागीदारी भारत की डिफेंस डिप्लोमेसी के लिए महत्वपूर्ण थी। तेजस के कई संभावित विदेशी ग्राहक इस शो में मौजूद थे, और इसका लाइव डिस्प्ले भारत के लिए रणनीतिक रूप से अहम माना जा रहा था।

Exercise Trishul: एक्सरसाइज त्रिशूल में दिखाई दी भारत की मल्टी-डोमेन तैयारी, भारत की नई डायनामिक रिस्पोंस स्ट्रेटेजी

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Exercise Trishul: भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना ने हाल ही में अपनी सबसे बड़ी जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज त्रिशूल की थी, जिसे भारत की मल्टी-डोमेन वॉरफेयर तैयारी का प्रतीक माना गया। यह अभ्यास 30 अक्टूबर से 13 नवंबर के बीच राजस्थान, गुजरात और उत्तरी अरब सागर के तटीय इलाकों में किया गया, जिसमें तीनों सेनाओं ने एक-साथ ऑपरेशन करने की अपनी क्षमता दिखाई।

Exercise Trishul 2025: थार से अरब सागर तक गरजा भारत का त्रिशूल, सबसे बड़े संयुक्त अभ्यास में तीनों सेनाओं ने की कई सब-एक्सरसाइज

‘द डिप्लोमैट’ की रिपोर्ट के अनुसार, त्रिशूल को खास बनाता है इसका पैमाना, समय और इसमें शामिल नए ऑपरेशनल कॉन्सेप्ट्स। रिपोर्ट में कहा गया कि अभ्यास का मुख्य उद्देश्य तीनों सेवाओं के बीच इंटीग्रेटेड कोऑर्डिनेशन बढ़ाना था, ताकि भविष्य के किसी भी संघर्ष में भारत तुरंत और प्रभावी तरीके से मल्टी-डोमेन ऑपरेशन चला सके।

अभ्यास में थलसेना के 30,000 से अधिक जवान, नौसेना के 25 वॉरशिप और सबमरीन, वायुसेना के 40 एयरक्राफ्ट और सीएपीएफ के जवान शामिल हुए। इसे पाकिस्तान के लिए चिंता की बात बताया गया है, क्योंकि अभ्यास ने भारत की वाइड स्पेक्ट्रम स्ट्राइक की क्षमता, सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर बड़े संयुक्त अभियानों तक, स्पष्ट रूप से दिखा दी।

रिपोर्ट में कहा गया कि त्रिशूल के दौरान भारतीय सेना ने अपने नई रूद्र ब्रिगेड, भैरव बटालियन और अशिनि प्लाटून जैसे नए स्ट्रक्चर की टेस्टिंग की। सेना इन नई फॉर्मेशन को अपने रीस्ट्रक्चरिंग मॉडल का हिस्सा मानती है।

अभ्यास में कई सब-ड्रिल भी शामिल थीं जैसे ब्रहमशिरा, अखंड प्रहार, मरुज्वाला और एम्फैक्स-25, जिनमें रेगिस्तान, दलदली जमीन और समुद्री इलाकों में कॉम्बैट ऑपरेशन की क्षमता का परीक्षण किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, इस अभ्यास ने दिखाया कि भारत ने बड़े पैमाने पर संयुक्त ऑपरेशनों की अपनी क्षमता बिल्कुल नहीं छोड़ी है। बल्कि, यह अभ्यास नई डायनामिक रिस्पोंस स्ट्रेटेजी (डीआरएस) को दर्शाता है, जिसके तहत राजनीतिक नेतृत्व मिशन के अनुसार कई तरह के विकल्प चुन सकता है।

Biggest Army In The World: किस देश के पास है दुनिया की सबसे बड़ी सेना, भारत की क्या है स्थिति

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Biggest Army In The World: वर्ष 2025 में Global Firepower (GFP) के आंकड़ों के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) की सेना दुनिया की सबसे ताकतवर मानी जा रही है। अमेरिका का Power Index स्कोर 0.0744 है, जो कि अन्य देशों की तुलना में सबसे कम है और इस तरह सबसे उच्च क्षमता का संकेत देता है।

बजट, टेक्नोलॉजी और वैश्विक मौजूदगी

अमेरिका की ये स्थिति उसके विशाल रक्षा बजट, अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और दुनिया भर में फैली तैनाती क्षमताओं की वजह से बनी है। यह भूमि, वायु, जल और साइबर-डोमेन में एक बहुआयामी शक्ति प्रदर्शित करता है। इसके अलावा अमेरिका के पास मजबूत लॉजिस्टिक नेटवर्क और सहयोगी गठबंधनों का बल भी है, जो वैश्विक स्तर पर उसकी प्रभावशीलता को बढ़ाता है।

तुलनात्मक आंकड़े: रूस, चीन और भारत

GFP के अनुसार रूस और चीन क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं, जिनका स्कोर लगभग 0.0788 है।इसके बाद भारत चौथे स्थान पर है, इसके Power Index स्कोर लगभग 0.1184 बताया गया है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि सिर्फ संख्या (जैसे जवानों की संख्या) ही नहीं, बल्कि सैन्य-तैयारी, तकनीक, लॉजिस्टिक्स और रणनीतिक क्षमता सभी मिलकर सैन्य ताकत निर्धारित करते हैं।

मापन की पद्धति और सीमाए

GFP रिपोर्ट बताती है कि यह मापन 60 से अधिक कारकों पर आधारित होता है जैसे कि सक्रिय व आरक्षित सैन्य personnel, उपकरण, संसाधन, रक्षा बजट, भौगोलिक स्थिति आदि, हालांकि इसमें परमाणु क्षमता और युद्ध की इच्छा-शक्ति जैसी विविध कारक पूरी तरह शामिल नहीं होते हैं। यानी यह सूची पूर्ण नहीं है, बल्कि पारंपरिक युद्ध-क्षमता का एक संकेत देती है।

अब कुल मिलाकर, 2025 में अमेरिका की सेना वैश्विक रूप से सबसे ज्यादा शक्तिशाली मानी जा रही है। लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि सैन्य शक्ति सिर्फ उपकरणों या संख्या से नहीं, बल्कि रणनीति, लॉजिस्टिक्स, नवप्रवर्तन और वैश्विक सहयोग से बनती है। अन्य देशों जैसे रूस, चीन और भारत भी तेजी से अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं, इसलिए भविष्य में रैंकिंग में बदलाव संभव है।

PM Modi South Africa Summit: प्रधानमंत्री मोदी तीन दिन के G20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका रवाना

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PM Modi South Africa Summit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार सुबह तीन दिन के दौरे पर दक्षिण अफ्रीका रवाना हो गए। वह जोहान्सबर्ग में होने वाली जी-20 लीडर्स’ समिट में हिस्सा लेंगे। यह जी-20 सम्मेलन इसलिए भी खास है क्योंकि पहली बार यह अफ्रीकी महाद्वीप पर आयोजित हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 21 से 23 नवंबर तक इस सम्मेलन में भाग लेंगे, जिसमें भारत और ग्लोबल साउथ से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होगी।

PM Modi at CCC: कॉम्बाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने जॉइंटनेस, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन पर दिया जोर, की सेना की तैयारियों की समीक्षा

यह सम्मेलन लगातार चौथा ऐसा जी-20 कार्यक्रम है, जिसमें अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के पास रही है। इससे पहले 2022 में इंडोनेशिया, 2023 में भारत और 2024 में ब्राजील ने जी-20 की अध्यक्षता संभाली थी। अब 2025 में दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में यह महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हो रही है।

प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले भी तीन बार दक्षिण अफ्रीका जा चुके हैं। उन्होंने 2016 में द्विपक्षीय यात्रा की थी, जबकि 2018 और 2023 में ब्रिक्स समिट में शामिल हुए थे। इस बार की यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों लोकतांत्रिक देश हैं और उनके संबंध तीन प्रमुख स्तंभों राजनीतिक सहयोग, आर्थिक साझेदारी और बहुपक्षीय समन्वय पर आधारित हैं।

विदेश मंत्रालय ने बताया कि जी20 एक ऐसा मंच है जहां विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक साथ बैठकर ग्लोबल साउथ की चिंताओं पर आम सहमति बनाने की कोशिश करती हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका ने अपनी अध्यक्षता के लिए “सॉलिडारिटी, इक्वेलिटी, सस्टेनेबिलिटी” जैसे विषय चुने हैं, जिन पर पूरे साल चर्चा चलती रही है।

सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी करेंगे। अफ्रीकन यूनियन, जिसे भारत की अध्यक्षता के दौरान स्थायी सदस्यता मिली थी, इस बार के एजेंडा को आकार देने में अहम भूमिका निभाएगा।

Theatre Commands India: जोर-शोर से चल रही है नए थिएटर कमांड बनाने की तैयारी, सरकार को जल्द सौंपा जाएगा ब्लूप्रिंट

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Theatre Commands India: रक्षा मंत्रालय ने देश में नये थिएटर कमांड बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। मंत्रालय का मानना है कि आने वाले समय में युद्ध ऐसे तरीके से लड़े जाएंगे, जिनमें तीनों सेनाओं आर्मी, नेवी और एयरफोर्स का एक साथ और बेहद समन्वित तरीके से काम करना जरूरी होगा। इसी उद्देश्य से थिएटर कमांड का स्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। यह काम डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स यानी डीएमए की देखरेख में चल रहा है और इसका नेतृत्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान कर रहे हैं।

Theatre Commands India: ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीखें भी शामिल

डीएमए ने तीनों सेनाओं के बीच इंटीग्रेशन बढ़ाने की तैयारी पहले ही शुरू कर दी थी। अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद इस प्रक्रिया ने और रफ्तार पकड़ ली है। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेनाओं की संयुक्त कार्रवाई ने यह दिखाया था कि इंटीग्रेटेड कमान स्ट्रक्चर कितना जरूरी है। इसी के चलते कारण इस ऑपरेशन से मिली कई सीखों को सीधे थिएटर कमांड (Theatre Commands India) के स्ट्रक्चर में शामिल किया जा रहा है।

Differences on Theatre Commands: क्या थिएटर कमांड को लेकर सेनाओं में बढ़ रहे हैं मतभेद? CDS जनरल चौहान ने कैसे निकाला बीच का रास्ता?

सूत्रों के अनुसार, डीएमए और तीनों सेनाओं के बीच होने वाली बैठकों की संख्या बढ़ा दी गई है ताकि हर बिंदु पर विस्तार से चर्चा की जा सके। मंत्रालय की कोशिश है कि कमान स्ट्रक्चर पर तैयार प्रस्ताव जल्द ही कैबिनेट स्तर तक पहुंचे और आगे की स्वीकृति पूरी हो सके। इसके लिए काम लगभग 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है। और मॉडल में उन बदलावों को जोड़ा रहा है जो सिंदूर के अनुभवों से सामने आए।

पहले ही इस बात पर सहमति बन चुकी है कि देश में तीन बड़े थिएटर कमांड (Theatre Commands India) बनेंगे। पहली कमांड तिरुवनंतपुरम में होगी, जो समुद्र और महासागरीय इलाकों से आने वाले खतरों से निपटेगी। यह भारत का मैरिटाइम थिएटर कमांड कहलाएगा। दूसरी कमांड जयपुर में बनेगी, जिसे पश्चिमी सीमाओं से जुड़े संभावित खतरों की जिम्मेदारी दी जाएगी। जबकि तीसरी कमांड लखनऊ में बनेगी, जिसका फोकस उत्तरी सीमाओं खासकर चीन के साथ लगती सीमा पर होगा।

Theatre Command: CDS चौहान ने कहा- ऑपरेशन सिंदूर से मिले पाठ थिएटराइजेशन में होंगे शामिल, एयर चीफ बोले- विचार-विमर्श के बाद ही बढ़ें आगे

रक्षा सूत्रों के मुताबिक, तीनों सेनाएं जल्द ही इस विषय पर अपनी अंतिम चर्चा पूरी कर लेंगी। इसके बाद यह प्रस्ताव रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के सामने पेश किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है और अब आखिरी स्टेज पर है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भी इस साल अक्टूबर में कहा था कि थिएटर कमांड्स (Theatre Commands India) का फॉर्मल प्रपोजल “मैच्योर स्टेज” पर है और सरकार को भेजने को तैयार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर में कोलकाता 15 सितंबर को हुई कम्बाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में थिएटर कमांड (Theatre Commands India) पर विस्तार से चर्चा की थी। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तीनों सेनाओं के जॉइंट ऑपरेशन की सराहना भी की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सशस्त्र बलों के टॉप कमांडर्स को संबोधित करते हुए अपना मंत्र JAI दिया था। जिसका मतलब जॉइंटनेस, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन था। पीएम मोदी ने कहा था कि 2025 को रक्षा सुधारों का वर्ष घोषित किया गया है, और JAI ही भारतीय सशस्त्र बलों की सफलता का मंत्र है। उन्होंने कहा था कि जॉइंटनेस, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन से हम हर चुनौती का मुकाबला करेंगे। उन्होंने रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया था कि ग्रेटर जॉइंटनेस, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन के लिए ठोस और तेज कदम उठाए जाएं, ताकि बदलते युद्धक्षेत्र में हम हर स्थिति में विजयी रहें।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एयरफोर्स ने पाकिस्तान एयरफोर्स के कई ठिकानों और इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया था, जिससे पाकिस्तान को युद्धविराम के लिए मजबूर होना पड़ा। माना जा रहा है कि इस ऑपरेशन ने ही जॉइंट कमांड की जरूरत को और मजबूत किया।

सूत्रों का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ऑपरेशंस रूम में मौजूद सभी सर्विस चीफ के साथ मिलकर सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कई अहम फैसले लिए। वही मॉडल भविष्य की थिएटर कमांड (Theatre Commands India) स्ट्रक्चर का बेस माना जा रहा है। बता दें कि 2025 की शुरुआत से ही तीनों सर्विस चीफ्स और सीडीएस के बीच थिएटर कमांड को लेकर पूर्ण सहमति बन चुकी है। जनवरी 2025 से चीफ्स ने एक-दूसरे की सर्विस से एडीसी (एड-दे-कैंप) रखना भी शुरू कर दिया था।

डीएमए तीनों सेनाओं के नेटवर्क को जोड़ने का एक और बड़ा प्रोजेक्ट भी चला रहा है। इसका उद्देश्य यह है कि किसी भी ऑपरेशन के दौरान तीनों सेनाएं एक-दूसरे से बिना किसी तकनीकी रुकावट के जुड़ी रहें। यह नेटवर्क युद्ध के समय ही नहीं, बल्कि शांति काल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे जानकारी का आदान-प्रदान तेज होगा और जॉइंट ऑपरेशन की क्षमता और बढ़ेगी।

रक्षा मंत्रालय का मानना है कि थिएटर कमांड (Theatre Commands India) देश को भविष्य के युद्धों के लिए तैयार करेंगे। आधुनिक युद्ध कई डोमेन जमीन, समुद्र, हवा, साइबर और स्पेस में फैले होते हैं । ऐसे में अलग-अलग सेनाओं के बीच की दूरी कम करना और इंटीग्रेटेड स्ट्रक्चर बनाना अब एक जरूरत बन चुका है। डीएमए की यही कोशिश है कि इस स्ट्रक्चर में हर सर्विस की ताकत शामिल हो और तीनों सेनाएं एक टीम की तरह काम कर सकें।

तीन नए थिएटर कमांड्स (Theatre Commands India) को लेकर देश में लंबे समय से चर्चा चल रही थी, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने इसे रफ्तार दी है। अब मंत्रालय जल्द से जल्द इन स्ट्रक्चर को अंतिम रूप देने के प्रयास में है। सूत्रों का कहना है कि 2025 आखिर या 2026 की शुरुआत में ब्लूप्रिंट सरकार को सौंप दिया जाएगा। वहीं, कैबिनेट कमेटी ऑव सिक्योरिटी के अप्रूवल के बाद रोलआउट कर दिया जाएगा। वहीं ग्राउंड पर पूरी तरह लागू होने में 12-18 महीने का वक्त लगेगा।

ऑपरेशन सिंदूर से मिले ये सबक 

ऑपरेशन सिंदूर का पहला बड़ा सबक यह था कि सर्विस चीफ्स को सिर्फ ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक जिम्मेदारियों तक सीमित रखना काफी नहीं है। सिंदूर के दौरान तीनों सेवाओं के चीफ्स ने सीडीएस के साथ मिलकर वॉर रूम में रियल टाइम ऑपरेशनल फैसले लिए थे। यह बात अब थिएटर कमांड (Theatre Commands India) के डिजाइन में शामिल की जा रही है। नए मॉडल में सर्विस चीफ्स की ऑपरेशनल भूमिका पहले की तुलना में कहीं अधिक होगी और उनकी जिम्मेदारियां थिएटर कमांडर के साथ संतुलित की जाएंगी।

इस ऑपरेशन ने यह भी साफ किया कि एयर पावर ही निर्णायक भूमिका निभाती है। वायुसेना की प्रिसिजन-स्ट्राइक क्षमता और ड्रोन-मिसाइल कॉम्बिनेशन ने पाकिस्तान के कई महत्वपूर्ण एयरबेस और सैन्य पोस्ट एक ही रात में नष्ट कर दिए। इसलिए थिएटर कमांड्स में एयर एसेट्स को अलग-अलग कमांड्स (Theatre Commands India) में बांटने के बजाय उन्हें सेंट्रलाइज्ड कंट्रोल में रखा जाएगा, ताकि महत्वपूर्ण एयर ऑपरेशनों में तेजी बनी रहे।

सिंदूर के समय तीनों सेवाओं के डिजिटल नेटवर्क को जोड़कर एक संयुक्त तस्वीर बनाई गई थी, जिसने ऑपरेशन को सफल बनाया, लेकिन इस दौरान यह भी महसूस हुआ कि इस नेटवर्क को और मजबूत करना जरूरी है। इसी वजह से डीएमए अब तीनों सेवाओं के कम्युनिकेशन सिस्टम को पूरी तरह जोड़ने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, ताकि युद्ध के दौरान ही नहीं, बल्कि पीस टाइम में भी सेनाओं के बीच रियल-टाइम सूचनाओं का आदान-प्रदान हो।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक और अहम जरूरत दिखी, वह थी दुश्मन के अंदर तक जाकर इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रेकॉन्सांस और स्ट्राइक क्षमता का पता लगाना। पाकिस्तान की सीमा के पीछे मौजूद मोबाइल टारगेट्स, ईंधन डिपो, कमांड-सेंटर (Theatre Commands India) और एयरबेस पर सटीक हमलों ने दिखाया कि भविष्य के थिएटर कमांड्स को सिर्फ सीमा सुरक्षा नहीं, बल्कि दुश्मन की पूरी डेप्थ में एक्शन के लिए तैयार रहना होगा।

इस ऑपरेशन का एक और बड़ा सबक था 24×7 ऑपरेशनल रेडीनेस। पूरे ऑपरेशन के दौरान तेजी से लिए गए फैसले, लगातार निगरानी, और सेना-नौसेना-वायुसेना के बीच बिना रुके कॉर्डिनेशन ने दिखाया कि थिएटर कमांड्स (Theatre Commands India) में निरंतर रेडीनेस और तुरंत प्रतिक्रिया क्षमता सबसे जरूरी है। इसी कारण नए स्ट्रक्चर में एयर-डिफेंस, काउंटर-ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक-वारफेयर और साइबर डोमेन पर अधिक फोकस रखा जा रहा है।

सबसे अहम भूमिका जॉइंट डिसीजन-मेकिंग की रही। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सीडीएस और तीनों सेवाओं के चीफ्स एक ही ऑपरेशंस रूम में बैठकर मिनट-दर-मिनट रणनीति बना रहे थे। इससे जो तालमेल बना, वह पहले कभी नहीं देखा गया था। इसलिए थिएटर कमांड (Theatre Commands India) मॉडल में भी यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि तीनों सर्विसेज इंटीग्रेटेड तरीके से ही फैसले लें और कमान-कंट्रोल की प्रक्रिया तेज और स्पष्ट हो।