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Military Combat Parachute System: डीआरडीओ ने रचा इतिहास, 32,000 फीट से किया स्वदेशी मिलिट्री कॉम्बैट पैराशूट का सफल परीक्षण

यह पैराशूट सिस्टम भारतीय सेनाओं में फिलहाल एकमात्र ऐसा सिस्टम है जो 25,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर भी डिप्लॉय किया जा सकता है। इसका ट्रायल 32,000 फीट की ऊंचाई से किया गया...

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📍नई दिल्ली | 15 Oct, 2025, 10:17 PM

Military Combat Parachute System: डीआरडीओ ने स्वदेश में ही बने मिलिट्री कॉम्बैट पैराशूट सिस्टम का 32,000 फीट की ऊंचाई से सफल परीक्षण किया गया है। यह परीक्षण भारतीय वायुसेना के टेस्ट जम्पर्स ने किया गया, जिन्होंने इस पैराशूट के जरिए ऊंचाई से फ्रीफॉल जम्प किया। इस सफलता के साथ भारत ने यह साबित कर दिया है कि अब देश पूरी तरह से स्वदेशी एयरबोर्न कॉम्बैट सिस्टम बनाने में सक्षम है।

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रक्षा मंत्रालय के अनुसार, डीआरडीओ ने यह पैराशूट सिस्टम पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से तैयार किया है। इस परियोजना पर डीआरडीओ की दो प्रमुख प्रयोगशालाओं आगरा की एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट और बेंगलुरु की डिफेंस बायोइंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रोमेडिकल लेबोरेटरी ने मिलकर काम किया है।

यह पैराशूट सिस्टम भारतीय सेनाओं में फिलहाल एकमात्र ऐसा सिस्टम है जो 25,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर भी डिप्लॉय किया जा सकता है। इसका ट्रायल 32,000 फीट की ऊंचाई से किया गया, जो तकनीकी रूप से बेहद जटिल और जोखिम भरा होता है। लेकिन भारतीय वायुसेना के पैराट्रूपर्स ने इसे पूरी सफलता के साथ पूरा किया।

इस पैराशूट सिस्टम में कई एडवांस खूबियां जोड़ी गई हैं। इसमें कम डिसेंट रेट और बेहतर स्टीयरिंग क्षमता दी गई है, जिससे पैराट्रूपर्स विमान से सुरक्षित तरीके से बाहर निकल सकते हैं और निर्धारित दिशा में सुरक्षित लैंडिंग कर सकते हैं। सिस्टम में आधुनिक नेविगेशन भी लगाया गया है। इसमें भारत का खुद का नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) लगाया गया है, जिससे यह सिस्टम किसी भी बाहरी देश की इंटरफेरेंस या सिग्नल जैमिंग से बेअसर रहेगा।

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रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस सिस्टम की सफलता से भारत अब विदेशी पैराशूट सिस्टम पर निर्भर नहीं रहेगा। पहले ऐसे कॉम्बैट पैराशूट्स यूरोप और अमेरिका से खरीदे जाते थे, जिनकी सर्विसिंग और रिपेयरिंग में काफी समय लगता था। अब स्वदेशी प्रणाली से यह समय और खर्च दोनों में बचत होगी।

वहीं, इस उपलब्धि को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ, भारतीय सशस्त्र बलों और रक्षा उद्योग को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने भी इस उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों की टीम की सराहना की और इसे एरियल डिलीवरी सिस्टम्स में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम बताया।

डीआरडीओ की टीम ने बताया कि यह सिस्टम न केवल सटीक और भरोसेमंद है बल्कि यह लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके रखरखाव में भी बहुत कम समय लगता है और यह बाहर से खरीदे गए इक्विपमेंट्स की तुलना में अधिक टिकाऊ है। इसके सफल परीक्षण से भारतीय सेना को अब हाई-एल्टीट्यूड ऑपरेशंस में तैनाती के दौरान बेहतर कॉम्बैट डिलीवरी क्षमता मिलेगी।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस सिस्टम का इस्तेमाल स्पेशल ऑपरेशंस में भी किया जाएगा, जहां सैनिकों को दुश्मन के इलाके में हाई एल्टीट्यूड, लो ओपनिंग या हाई एल्टीट्यूड, हाई ओपनिंग जम्प के जरिए एंट्री होती है। इस प्रकार की तकनीक से न केवल सैनिकों की सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि भारत की सामरिक क्षमता भी मजबूत होगी।

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