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IAF AWACS: भारत बनाएगा अपना एयरबोर्न राडार सिस्टम, हवा में ‘उड़ता राडार’ आसमान से दुश्मनों पर नजर रखेगा

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भारतीय वायुसेना को अपने हवाई क्षेत्र की प्रभावी निगरानी के लिए कम से कम 10-18 अवॉक्स विमानों की जरूरत है। फिलहाल केवल पांच प्लेटफॉर्म (तीन फाल्कन और दो नेत्रा) उपलब्ध हैं, जो भारत के बड़े हवाई क्षेत्र और पाकिस्तान और चीन की तुलना में नाकाफी हैं। वहीं, पाकिस्तान के पास नौ साब 2000 एरियाई और चार ZDK03 कराकोरम ईगल अवॉक्स हैं...
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📍नई दिल्ली | 2 weeks ago

IAF AWACS: भारतीय वायुसेना को और मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाली स्वदेशी AWACS (एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। इस परियोजना के तहत छह अत्याधुनिक ‘एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम’ यानी AWACS विमान तैयार किए जाएंगे। इन विमानों को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और स्वदेशी कंपनियों की मदद से एअरबस के A321 विमानों पर तैयार किया जाएगा।

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IAF AWACS: आसमान में उड़ता हुआ कंट्रोल रूम

AWACS यानी ‘एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम’ ऐसा विमान होता है, जो हवा में रहकर सैकड़ों किलोमीटर दूर से दुश्मन के विमानों, मिसाइलों, ड्रोनों, राडार और गतिविधियों को पहचान सकता है। अवाक्स टेक्नोलॉजी किसी भी देश के एयर डिफेंस सिस्टम का आधार होती है। यह उड़ता हुआ फ्लाइंग ऑपरेशंस कंट्रोल सेंटर की तरह काम करता है। यह न केवल युद्ध के समय हवाई और जमीनी खतरों का पता लगाता है, बल्कि एक उड़ते हुए कमांड सेंटर की तरह काम करता है, जो युद्धक विमानों और सैन्य अभियानों को दिशा-निर्देश देता है। इसकी खूबी यह है कि यह जमीन आधारित राडारों के मुकाबले कहीं अधिक तेजी से और व्यापक दायरे में निगरानी कर सकता है।

कितनी है परियोजना की लागत

सरकार ने इस परियोजना के लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। इस परियोजना के तहत, भारतीय वायुसेना को छह बड़े AWACS विमान मिलेंगे, जो एयरबस A321 विमानों पर आधारित होंगे। यह पहली बार होगा जब किसी यूरोपीय विमान को इस तरह के सिस्टम के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। ये विमान पहले एयर इंडिया के बेड़े का हिस्सा थे और अब इन्हें सैन्य उपयोग के लिए तैयार किया जाएगा। इन विमानों में एक एंटीना सिस्टम और दूसरी एडवांस टेक्नोलॉजी को जोड़ा जाएगा, जिसमें डॉर्सल फिन (विमान के ऊपर लगा एक विशेष रडार फ्रेमवर्क) शामिल है, जो 360 डिग्री रडार कवरेज प्रदान करेगा। इन विमानों में लंबी दूरी तक निगरानी रखने वाली सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग राडार (AESA राडार), मिशन कंट्रोल सिस्टम, डेटा लिंक और कम्युनिकेशन जैमर जैसे अत्याधुनिक सिस्टम लगाए जाएंगे। यह प्रोजेक्ट तीन साल में पूरे होने की उम्मीद है और इसके लिए DRDO भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम करेगा।

परियोजना का नाम नेत्रा MkII

इस परियोजना को नेत्रा MkII के नाम से भी जाना जाता है। जो डीआरडीओ का यह प्रोजेक्ट भारत के मौजूदा नेत्रा और फाल्कन (Phalcon) सिस्टम से कई मायनों में एडवांस होगा। वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास तीन नेत्रा अवॉक्स विमान हैं, जो ब्राजील के Embraer ERJ-145 विमानों पर बने हैं और 240 डिग्री रडार कवरेज प्रदान करते हैं। इसके अलावा, तीन IL-76 फाल्कन अवॉक्स हैं, जो इजराइल और रूस के सहयोग से तैयार किए गए हैं। लेकिन इनमें तकनीकी दिक्कतें हैं। नेत्रा MkII इन कमियों को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें स्वदेशी AESA (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैनड ऐरे) रडार और मिशन कंट्रोल सिस्टम शामिल होंगे। यह रडार न केवल ज्यादा दूरी तक निगरानी करेगा, बल्कि अधिक सटीकता और तेजी से टारगेट को ट्रैक करने में सक्षम होगा।

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योजना के तहत एयरबस A321 विमानों में विमान की छत पर एक विशेष प्रकार की ‘डॉर्सल फिन’ यानी लंबवत पंखी संरचना लगाई जाएगी, जिसके भीतर शक्तिशाली राडार सिस्टम फिट होगा। यह राडार 360 डिग्री यानी चारों दिशाओं में निगरानी कर सकेगा। इन विमानों को अब फ्रांस में मिलिट्री स्टैंडर्ड्स के मुताबिक मॉडिफाई किया जाएगा, जिसमें रडार और सेंसर सुइट्स को जोड़ने के लिए कई बदलाव किए जाएंगे। इनमें गैलियम नाइट्राइड (GaN)-आधारित AESA रडार शामिल होंगे, जो नेत्रा MkII को पहले के नेत्रा सिस्टम की तुलना में ज्यादा ताकतवर और प्रभावशाली होंगे।

डीआरडीओ ने इस परियोजना में स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर विशेष जोर दिया है। AESA रडार, मिशन कंट्रोल सिस्टम, और अन्य जरूरी सामान पूरी तरह से भारत में तैयार किए जाएंगे। इसके लिए डीआरडीओ की सेंटर फॉर एयरबोर्न सिस्टम्स (CABS) और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड रडार डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (LRDE) जैसी प्रयोगशालाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वहीं, विमान पहले से ही एयर इंडिया से लिए गए हैं, इसलिए उनकी लागत अपेक्षाकृत कम (लगभग 1,100 करोड़ रुपये) होगी। बाकी राशि रडार, सेंसर, और दूसरे एडवांस सिस्ट्म के डेवलपमेंट और इंटीग्रेशन पर खर्च की जाएगी।

क्या था प्रोजेक्ट ऐरावत?

1980 के दशक में DRDO ने प्रोजेक्ट ऐरावत के तहत स्वदेशी AWACS बनाने की कोशिश की थी, लेकिन 1999 में एक प्रोटोटाइप विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद यह परियोजना रद्द हो गई थी। इस हादसे में चार वैज्ञानिकों सहित आठ लोग मारे गए थे, जिससे परियोजना को बड़ा झटका लगा। इसके बाद भारत ने इजराइल और रूस के सहयोग से फाल्कन AWACS खरीदे, लेकिन इनमें तकनीकी समस्याएं और रखरखाव की चुनौतियां सामने आईं।

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ऐसे कितने अवॉक्स विमान हैं भारत के पास?

वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास तीन ‘फाल्कन’ अवॉक्स विमान हैं, जो इजरायल और रूस के सहयोग से बनाए गए थे और Ilyushin-76 विमान पर आधारित हैं। इसके अलावा डीआरडीओ के बनाए दो छोटे ‘नेत्रा’ विमान भी हैं, जो ब्राजील के EMB-145 प्लेटफॉर्म पर आधारित हैं। ये विमानों ने 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक और उसके बाद की परिस्थितियों में अहम भूमिका निभाई थी।

10-18 अवॉक्स विमानों की जरूरत

भारतीय वायुसेना को अपने हवाई क्षेत्र की प्रभावी निगरानी के लिए कम से कम 10-18 अवॉक्स विमानों की जरूरत है। फिलहाल केवल पांच प्लेटफॉर्म (तीन फाल्कन और दो नेत्रा) उपलब्ध हैं, जो भारत के बड़े हवाई क्षेत्र और पाकिस्तान और चीन की तुलना में नाकाफी हैं। वहीं, पाकिस्तान के पास नौ साब 2000 एरियाई और चार ZDK03 कराकोरम ईगल अवॉक्स हैं, जो 24 घंटे निगरानी करते हैं। वहीं, चीन के पास 20 से अधिक अवॉक्स हैं। वहीं, नेत्रा MkII के 2029 तक ट्रायल शुरू होने और 2030 तक वायुसेना में शामिल होने की उम्मीद है।

खुलेंगे निर्यात के रास्ते

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट भारत को उस स्तर तक पहुंचा सकता है जहां वह भविष्य में अन्य मित्र देशों को ऐसे राडार सिस्टम निर्यात भी कर सके। विशेष रूप से दक्षिण एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में ऐसे तकनीक की मांग बढ़ रही है। विश्व में बहुत कम देशों के पास स्वदेशी AWACS विकसित करने की क्षमता है, और भारत के लिए इस सेक्टर में भरपूर मौका है।

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