📍नई दिल्ली | 23 Oct, 2025, 6:53 PM
Defence Procurement Manual-2025: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैनुअल-2025 (डीपीएम) जारी किया। यह नया मैनुअल 1 नवंबर 2025 से लागू होगा। इसके जरिए भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना समेत रक्षा मंत्रालय से जुड़े विभाग तकरीबन 1 लाख करोड़ रुपये की सालाना खरीद को नए नियमों के तहत कर सकेंगे। नए मैनुअल को यह आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, और आधुनिक युद्ध की जरूरतों जैसे ड्रोन, एआई और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है।
रक्षा मंत्री ने साउथ ब्लॉक में आयोजित समारोह में कहा कि डीपीएम-2025 न केवल प्रोसिजर को सुव्यवस्थित करेगा, बल्कि यह डिफेंस सर्विसेज की ऑपरेशनल प्रिपेयर्डनेस के लिए जरूरी सामान और सर्विसेज समय पर उपलब्ध कराने में भी मदद करेगा। उन्होंने कहा कि इससे सेना की ऑपरेशनल तैयारी में सुधार होगा और छोटे-मझोले उद्योगों व स्टार्ट-अप्स को भी रक्षा क्षेत्र में नए अवसर मिलेंगे।
Defence Procurement Manual-2025: नए मैनुअल में क्या बदला
डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2025 (Defence Procurement Manual-2025) को रक्षा मंत्रालय और एचक्यू इंटीग्रेटिड डिफेंस स्टाफ ने सेवाओं और सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद तैयार किया है। नए डीपीएम-2025 में कई पुराने नियमों को बदला गया है ताकि जल्दी फैसले हो सकें और “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” को बढ़ावा मिले। अब सामान की डिलीवरी में देरी होने पर लगने वाला जुर्माना घटा दिया गया है। पहले यह हर हफ्ते 0.5 फीसदी था, लेकिन अब खासकर स्वदेशीकरणवाले मामलों में इसे सिर्फ 0.1 फीसदी प्रति सप्ताह रखा गया है।
मैनुअल में यह भी तय किया गया है कि अगर कोई भारतीय कंपनी या निजी उद्योग कोई डिफेंस इक्विपमेंट्स बनाता है, तो उसे पांच साल तक का आश्वस्त ऑर्डर मिल सकते हैं। इससे घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा।
Defence Procurement Manual-2025: अब नहीं लेनी होगा ओएफबी से एनओसी
पहले किसी भी खरीद के लिए आर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से ‘नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ लेना जरूरी होता था, जिससे प्रक्रिया धीमी हो जाती थी। नए डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2025 में इस शर्त को हटा दिया गया है। अब सेनाएं जरूरत के हिसाब से सीधे खरीद कर सकेंगी।
इसके अलावा, जहाजों की मरम्मत और हवाई उपकरणों के रखरखाव में भी नए नियम लागू किए गए हैं। इसमें पहले से 15 फीसदी अतिरिक्त काम का प्रावधान रहेगा, ताकि प्लेटफॉर्म की सर्विसिंग जल्दी हो और ऑपरेशनल तैयारियां बनी रहें।
स्वदेशी निर्माण और तकनीक पर जोर
नए मैनुअल में एक खास अध्याय “इनोवेशन और स्वदेशीकरण के जरिए आत्मनिर्भरता को बढ़ावा” जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य रक्षा निर्माण में भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। इस अध्याय के तहत स्वदेशी डिजाइन, विकास और तकनीकी इनोवेशन को बढ़ावा दिया जाएगा।
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इससे देश के निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों को एक समान अवसर मिलेंगे और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य और मजबूत होगा।
कंसल्टेंसी सेवाओं को भी किया शामिल
डीपीएओ 2025 (Defence Procurement Manual-2025) में पहली बार सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) खरीद और परामर्श सेवाओं को शामिल किया गया है। इससे डिजिटल सिस्टम के जरिए खरीद प्रक्रिया और पारदर्शी होगी। मैनुअल को दो हिस्सों में तैयार किया गया है। पहले वॉल्यूम में मुख्य नियम दिए गए हैं और दूसरे वॉल्यूम में फॉर्म, आदेश और जरूरी परिशिष्ट शामिल हैं।
पुराने और नए आरएफपी नियमों में अंतर
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 1 नवंबर 2025 के बाद जो भी रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी होंगे, वे डीपीएम 2025 के नियमों के तहत होंगे। 31 अक्टूबर तक जारी आरएफपी पुराने डीपीएम 2009 के अनुसार ही पूरे किए जाएंगे।
सूत्रों का कहना है कि पुराने डीपीएम 2009 (Defence Procurement Manual-2025) में हालांकि स्वदेशीकरण पर जोर था, लेकिन नीतियां सीमित थीं। आयात पर निर्भरता अधिक थी। वहीं, डीपीएसयू को प्राथमिकता दी जाती थी, तो निजी क्षेत्र की भागीदारी कम थी। वहीं, नए डीपीएम 2025 को बॉय (इंडियन-आईडीडीएम) को प्राथमिकता दी गई है। जिसमें डिजाइन, डेवलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही हो। साथ ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी शामिल किया जाए।
उन्होंने बताया कि पुराना डीपीएम मल्टी-लेयर था और अप्रूवल्स में देरी होती थी, जिससे खरीद में 6-12 महीने लगते थे। वहीं नए मैनुअल में फैसले लेने के लिए अधिक वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए गए हैं। 50 लाख रुपये तक लिमिटेड टेंडरिंग और प्रोप्राइटरी खरीद के लिए प्रावधान दिए गए हैं। साथ ही ई-प्रोक्योरमेंट और डिजिटल टूल्स से प्रक्रिया 30-50 फीसदी तक तेज हो जाएगी। वहीं, पुराने डीपीएम में मैनुअल प्रक्रियाओं के चलते भ्रष्टाचार की गुंजाइश रहती थी। वहीं, डीपीएसयू से एनओसी जरूरी थी, जो निजी कंपनियों के लिए बड़ी बाधा थी।
