📍नई दिल्ली | 28 Oct, 2025, 3:16 PM
Software Defined Radios: भारतीय सेना ने देश में बने अपने पहले सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो सिस्टम की खरीद के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया है। यह रेडियो पूरी तरह से भारत में ही डिजाइन और मैन्युफैक्चर किया गया है। जिसे डीआरडीओ ने डेवलप किया है और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने तैयार किया है। नए एसडीआर सिस्टम से सेना की सुरक्षित, हाई-स्पीड और रीयल-टाइम कम्युनिकेशन क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।
Software Defined Radios: साझेदारी में तैयार हुआ हाई-टेक एसडीआर सिस्टम
सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो पारंपरिक रेडियो की तुलना में कई गुना एडवांस टेक्नोलॉजी पर आधारित है। पुराने रेडियो उपकरणों में फ्रीक्वेंसी और चैनल बदलने के लिए हार्डवेयर बदलना पड़ता था, जबकि एसडीआर में यह सब सॉफ्टवेयर से ही किया जा सकता है। इस सिस्टम को डीआरडीओ की तीन प्रमुख लैब्स ने मिलकर विकसित किया है। वहीं इसका प्रोडक्शन बीईएल बेंगलुरु करेगा।

सेना ने इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत एसडीआर-टैक्टिकल सिस्टम खरीदा है, जिसे मैदान में, वाहनों में और एयरबोर्न प्लेटफॉर्म पर भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। बीईएल का कहना है कि यह सिस्टम 95 फीसदी से अधिक स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और भारत की संचार सुरक्षा नीति के तहत पूरी तरह सर्टिफाइड है।
कैसे करेगा काम एसडीआर सिस्टम
यह एसडीआर सिस्टम भारतीय सेना को नेटवर्क-सेंट्रिक युद्ध के लिए तैयार करेगा। इसमें हाई डेटा रेट और मोबाइल एड-हॉक नेटवर्क (MANET) जैसी खूबियां हैं। यानी यह सिस्टम अपने आप नेटवर्क बनाता है, और जवानों को किसी फिक्स्ड इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं होती।
Boosting operational readiness!
The Indian Army procures its first indigenously designed Software Defined Radios (#SDR). A proud collaboration between #DRDO and #BEL.
These new SDRs provide secure, real-time communication with MANET capabilities, ensuring our forces stay… pic.twitter.com/NuRNhbMeDX— Raksha Samachar | रक्षा समाचार (@RakshaSamachar) October 28, 2025
इसके जरिए सैनिक, टैंक और ड्रोन बिना किसी टावर के एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं और वीडियो, वॉइस और डेटा को रीयल टाइम में ट्रांसमिट कर सकते हैं। इसका डेटा रेट 100 एमबीपीएस से अधिक है और इसमें एईएस-256 लेवल एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल किया गया है, जिससे यह पूरी तरह सुरक्षित और एंटी-जैमिंग बना रहता है।
सेना के लिए क्या बदलेगा
भारतीय सेना ने पिछले कुछ सालों में अपने पुराने रेडियो सिस्टम्स, जैसे कि टीआरसी-3110 को बदलने का फैसला किया था। क्योंकि इनके सिस्टम जामिंग और इंटरसेप्शन का खतरा रहता था। वहीं, एसडीआर सिस्टम की तैनाती के बाद, एलएसी और एलओसी जैसे इलाकों में सैनिकों को लगातार सुरक्षित कनेक्शन मिलेगा।
एसडीआर की मदद से अब एक सैनिक फील्ड में रहते हुए ही कमांड सेंटर से सीधे बात कर सकेगा, ड्रोन से मिली तस्वीरें भेज सकेगा और मिशन डेटा साझा कर सकेगा। पहले जहां सिग्नल टूट जाते थे, अब मोबाइल एड-हॉक नेटवर्क तकनीक से नेटवर्क अपने आप री-कॉन्फिगर हो जाएगा।
सेना के लिए तीन तरह के सिस्टम
एसडीआर सिस्टम को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह 24 घंटे लगातार काम कर सकता है और इसका पावर मैनेजमेंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है।
सेना के लिए एसडीआर सिस्टम तीन तरह के वर्जन में तैयार किया गया है। पहला, मैनपैक वर्जन, जिसे सैनिक पीठ पर ले जा सकते हैं और जिसकी रेंज लगभग 10 किलोमीटर है। वहीं, दूसरा, हैंडहेल्ड वर्जन है, जो हल्का है और नजदीकी संचार के लिए इस्तेमाल होता है। जबकि तीसरा, व्हीकल-माउंटेड वर्जन है, जिसे टैंकों और बख्तरबंद वाहनों में लगाया जाता है।
इनके अलावा, नौसेना और वायुसेना के लिए भी एयरबोर्न और शिप-बोर्ड वेरिएंट डेवलप किए जा रहे हैं। इससे सभी सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी सुनिश्चित की जाएगी। वहीं भविष्य में इसके अपदग्रेडेड वर्जन भी आएंगे। 2027 में एआई फीचर वाला एसडीआर, 2028 में सैटेलाइट लिंक, और 2030 तक 5जी मिलिट्री नेटवर्क तैयार हो जाएगा।
सिक्योरिटी और एन्क्रिप्शन फीचर
एसडीआर सिस्टम में एन्क्रिप्शन और एंटी-जैमिंग प्रूफ बनाया गया है। अगर दुश्मन किसी फ्रीक्वेंसी को ब्लॉक करने की कोशिश करता है, तो एसडीआर अपने आप फ्रीक्वेंसी बदल लेता है। इसके अलावा, यह सिस्टम “फ्रेंडली यूनिट्स” को अपने आप पहचान लेता है, जिससे किसी प्रकार का गलत सिग्नल इंटरसेप्शन नहीं होता। इसमें डिजिटल रेडियो फ्रीक्वेंसी मेमोरी तकनीक का भी इस्तेमाल हुआ है, जो दुश्मन के रडार सिग्नल को कॉपी कर उसे कन्फ्यूज कर देती है।
पाकिस्तान के पास तुर्की, चीन और फ्रांस के एसडीआर
जहां भारत का एसडीआर पूरी तरह स्वदेशी है, तो पाकिस्तान अब भी विदेशी सिस्टम्स पर निर्भर है। पाकिस्तान के एसडीआर तुर्की, चीन और फ्रांस जैसे देशों से खरीदे गए हैं। पाकिस्तानी सेना के पास एसडीआर सिस्टम तुर्की की असेलसान कंपनी, चीन की हुवावे/जेडटीई कंपनियों और फ्रांस की थेल्स कंपनी से खरीदे गए हैं। पाकिस्तान की असेलसान एसडीआर सीरीज तुर्की पर निर्भर है। 2022 में हुए तुर्की-पाक समझौते के बाद लगभग 500 एसडीआर यूनिट्स डिलीवर की गईं। इसके अलावा पाकिस्तान ने चीन से वी/यूएचएफ बैंड वाले एसडीआर खरीदे हैं, जो सीमावर्ती इलाकों में इस्तेमाल होते हैं। लेकिन इनकी एन्क्रिप्शन सिक्योरिटी पर कई बार सवाल उठ चुके हैं।
पाकिस्तान की स्पेशल फोर्सेज के पास फ्रांस की थेल्स MBITR रेडियो सीरीज है, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। पाकिस्तान की हैली इंडस्ट्रीज तक्षिला एसडीआर प्रोटोटाइप पर काम कर रही है, लेकिन यह भी चीनी तकनीक पर आधारित है और अभी ट्रायल फेज में है।

