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1971 surrender painting row: 1971 सरेंडर पेंटिंग विवाद पर पहली बार बोले सेना प्रमुख, कहा- पेंटिंग लगाने के लिए चुनी गई शुभ तिथि

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📍नई दिल्ली | 14 Jan, 2025, 11:33 AM

1971 surrender painting row: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक पेंटिंग को हटाकर सेना प्रमुख के लाउंज में एक नई पेंटिंग लगाए जाने पर उठे विवाद पर सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस बदलाव को सेना के इतिहास, वर्तमान और भविष्य के प्रतीकात्मक संदेश के साथ जोड़ा। बता दें कि रक्षा समाचार डॉट कॉम ने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया था।

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नई जगह पर पेंटिंग

पिछले महीने यह पेंटिंग साउथ ब्लॉक स्थित आर्मी चीफ लाउंज से हटाकर मानेकशॉ सेंटर में स्थापित की गई थी। इसके स्थान पर “कर्म क्षेत्र” नामक एक नई पेंटिंग लगाई गई, जिसे सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने तैयार किया है।

सेना प्रमुख ने नई पेंटिंग “कर्म क्षेत्र” के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह भारतीय सेना के विकास और आधुनिक रणनीतिक सोच को दर्शाती है। यह पेंटिंग भारतीय संस्कृति, धर्म और सैन्य परंपरा का एक प्रतीक है।

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नई पेंटिंग में पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील के बर्फीले पहाड़, भगवान कृष्ण का रथ और चाणक्य को दिखाया गया है। सेना प्रमुख ने इसे सेना की रणनीतिक बुद्धिमत्ता और तकनीकी उन्नति का प्रतीक बताया।

उन्होंने कहा, “यदि भारतीय चाणक्य को नहीं पहचानते, तो उन्हें अपने सांस्कृतिक दृष्टिकोण की ओर लौटने की जरूरत है। यह पेंटिंग सेना के अतीत, वर्तमान और भविष्य का संगम है।”

सेना प्रमुख ने कहा, “वह पेंटिंग हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाती है। कुछ लोगों ने टिप्पणी की कि पेंटिंग में दिखाया गया रथ माइथोलॉजिकल (पौराणिक) है। अगर आप मूल भारतीय संविधान देखें, तो उसके अध्याय चार में कृष्ण और अर्जुन भी रथ में हैं। तो क्या संविधान भी पौराणिक है? यह सवाल आप खुद से पूछिए।”

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आगे उन्होंने कहा, “जो लोग यह कह रहे हैं कि पेंटिंग में एक ब्राह्मण खड़ा है, उन्हें समझना चाहिए कि वह चाणक्य हैं। अगर भारत में कोई चाणक्य को नहीं पहचानता, तो यह जरूरी है कि हम अपनी सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत को फिर से समझें।”

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1971 surrender painting row: क्या कहा है सेना प्रमुख ने

“जहां तक ​​इस पेंटिंग का सवाल है, मैं आपको बता दूं कि दो चीफ लाउंज हैं। यहां एक चीफ लाउंज है और साउथ ब्लॉक में एक चीफ लाउंज है। जैसा कि आप जानते हैं, शायद साल के अंत तक हमें साउथ ब्लॉक खाली कर देना चाहिए। अगर थल सेना भवन जो निर्माणाधीन है, समय पर बन जाता है तो हम वहां से चले जाएंगे। 16 दिसंबर को मानेकशॉ सेंटर में आत्मसमर्पण की पेंटिंग लगाने की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि वह एक शुभ तिथि है, जब हमें इसे लगाना चाहिए था…अगर आप भारत के स्वर्णिम इतिहास को देखें, तो इसमें तीन अध्याय हैं। इसमें ब्रिटिश काल, मुगल काल और उससे पहले का काल है। इसलिए अगर आप इसे और उस विजन को जोड़ना चाहते हैं, जो मैंने आपको शुरुआत में दिया है, तो प्रतीकात्मकता महत्वपूर्ण हो जाती है…एक आत्मसमर्पण चित्र है जो चीफ लाउंज में है, जो यहां मानेकशॉ सेंटर में है और एक नया चित्र है जो वहां है। यह भी बताया गया है कि ये पौराणिक हैं…”- भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी 

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पूर्व सैनिकों ने जताई थी नाराजगी

1971 की सरेंडर पेंटिंग को हटाने और नई पेंटिंग लगाने के फैसले पर कई पूर्व सैनिकों ने नाराजगी जाहिर की थी। सेना प्रमुख ने इस पर कहा कि ऐतिहासिक पेंटिंग का महत्व कम नहीं हुआ है। उन्होंने स्पष्ट किया, “हमारे पास दो चीफ लाउंज हैं। एक साउथ ब्लॉक में और दूसरा मानेकशॉ सेंटर में। सरेंडर पेंटिंग को मानेकशॉ सेंटर में स्थापित करना एक सोचा-समझा निर्णय था, और 16 दिसंबर को इसे लगाने के लिए शुभ दिन चुना गया।”

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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने शानदार विजय प्राप्त की थी। यह युद्ध बांग्लादेश की मुक्ति के लिए लड़ा गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। यह दिन भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

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सरेंडर पेंटिंग इसी ऐतिहासिक पल का प्रतिनिधित्व करती है और इसे मानेकशॉ सेंटर में प्रमुखता से रखा गया है। सेना प्रमुख ने कहा कि यह पेंटिंग हमारी सेना की ताकत और इतिहास का प्रतीक है और इसे उचित स्थान दिया गया है।

जनरल द्विवेदी ने भारतीय इतिहास के तीन अध्यायों का उल्लेख किया: ब्रिटिश काल, मुगल काल और उससे पहले का युग। उन्होंने कहा कि सेना की प्रतीकात्मकता को इन अध्यायों से जोड़ने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, “यह पेंटिंग हमारी सेना के मूल्यों को केवल ऐतिहासिक घटनाओं तक सीमित नहीं रखती, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित करती है।”

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किसने बनाई नई पेंटिंग?

नई पेंटिंग ‘कर्म क्षेत्र – कर्मों का क्षेत्र’ 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब द्वारा बनाई गई है। यह पेंटिंग सेना को “धर्म के रक्षक” के रूप में प्रस्तुत करती है। इसमें सेना को केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं, बल्कि न्याय और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ने वाले संरक्षक के रूप में दिखाया गया है।

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इस पेंटिंग में भारतीय सेना की तकनीकी उन्नति और आधुनिक क्षमताओं को प्रदर्शित किया गया है। पृष्ठभूमि में बर्फ से ढकी पहाड़ियां दिखाई देती हैं, जबकि दाईं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाईं ओर गरुड़ व भगवान श्रीकृष्ण का रथ नजर आता है। इसके अलावा, पेंटिंग में चाणक्य और आधुनिक सैन्य उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर्स और एएच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स को भी जगह दी गई है।

खाली करना होगा सााउथ ब्लॉक

सेना प्रमुख ने यह भी बताया कि साउथ ब्लॉक में स्थित चीफ लाउंज को इस साल के अंत तक खाली करना होगा, क्योंकि थल सेना भवन का निर्माण कार्य प्रगति पर है। यह भवन भारतीय सेना के आधुनिक दृष्टिकोण का प्रतीक होगा।

सेना प्रमुख ने कहा, “थल सेना भवन में हमारा स्थानांतरण भारतीय सेना के नए अध्याय की शुरुआत करेगा। यह भवन केवल एक ऑफिस नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और भविष्य का केंद्र बनेगा।”

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    हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवाद, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

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हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवाद, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

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