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Su-57E stealth fighter: रूस के 5th जनरेशन फाइटर जेट खरीदने से पहले भारत ने रखी ये बड़ी शर्त, रूसी एजेंसियों में मची खलबली!

Su-57E में फिलहाल N036 "ब्येल्का" AESA रडार लगा है। यह गैलियम आर्सेनाइड (GaAs) टेक्नोलॉजी पर आधारित है। वायुसेना का कहना है कि यह रडार मॉडर्न वॉरफेयर के मुताबिक नहीं है और अगले दौर की एयर बैटल की जरूरतों को पूरी तरह नहीं पूरा कर सकता...

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📍नई दिल्ली | 3 Sep, 2025, 1:39 PM

Su-57E stealth fighter: रूस भारत में अपने पांचवी पीढ़ी के फाइटर एयरक्राफ्ट सुखोई एसयू-57 की मैन्युफैक्चरिंग लेकर निवेश की योजनाओं पर काम कर रहा है। माना जा रहा है कि भारत सरकार इस साल के आखिर में होने वाली पुतिन की भारत यात्रा के दौरान एसयू-57 बनाने की डील पर साइन कर सकती है। इस डील से पहले इस बात की भी जानकारी मिली है कि भारतीय वायुसेना की तरफ से एसयू-57 के कंपोनेंट्स में बदलाव करने की बात कही है। भारत की तरफ से शर्त रखी गई है कि इस फाइटर जेट में रूसी रडार की बजाय भारतीय रडार लगाया जाए।

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Su-57E stealth fighter: लगाए जाएं स्वदेशी रडार

सूत्रों ने बताया कि भारत ने साफ कहा है कि अगर इस विमान को भारतीय वायुसेना में शामिल करना है तो इसमें लगे रूसी रडार और मिशन सिस्टम को हटाकर स्वदेशी भारतीय सिस्टम लगाया जाए। Su-57E में फिलहाल N036 “ब्येल्का” AESA रडार लगा है। यह गैलियम आर्सेनाइड (GaAs) टेक्नोलॉजी पर आधारित है। वायुसेना का कहना है कि यह रडार मॉडर्न वॉरफेयर के मुताबिक नहीं है और अगले दौर की एयर बैटल की जरूरतों को पूरी तरह नहीं पूरा कर सकता।

सूत्रों ने बताया कि इस रडार की डिटेक्शन रेंज, पावर एफिशिएंसी और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर रसिस्टेंस कैपेसिटी उतनी मजबूत नहीं है जितनी अगली पीढ़ी के विमानों में होनी चाहिए। भारत की तरफ से कहा गया है कि यह तकनीक अब पुरानी हो चुकी है और इसे नई गैलियम नाइट्राइड (GaN) तकनीक से बने रडार से बदलना चाहिए।

इलैक्ट्रॉनिक वॉरफेयर के लिए बने हैं उत्तम और विरूपाक्ष

सूत्रों का कहना है कि भारत चाहता है कि इस रडार को बदलकर डीआरडीओ के बनाए गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित AESA रडार लगाए जाएं। जिनका इस्तेमाल तेजस फाइटर जेट में भी किया जा रहा है। इनमें उत्तम AESA रडार और अपग्रेड हो रहे सुखोई-30एमकेआई जेट्स के लिए तैयार किया जा रहा विरूपाक्ष रडार शामिल हैं। ये दोनों रडार गैलियम नाइट्राइड (GaN) तकनीक पर आधारित हैं, जिन्हें आधुनिक एयर कॉम्बैट के लिए अधिक कारगर माना जाता है। गैलियम नाइट्राइड तकनीक वाले इन रडारों की थर्मल हैंडलिंग और पावर एफिशिएंसी भी बेहतर है, साथ ही ये रेंज भी ज्यादा देते हैं और सिग्नल क्वॉलिटी भी बेहतर रखते हैं।

सूत्रों का कहना है कि नई दिल्ली ने रूस से यह शर्त रखी है कि अगर सौदा करना है तो Su-57E में भारतीय रडार शामिल किए जाएंगे। बता दें कि गैलियम नाइट्राइड (GaN) तकनीक पर आधारित उत्तम AESA रडार और विरूपाक्ष रडार में मॉडर्न इलैक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की क्षमता है।

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Su-57E stealth fighter: रूस के दावों पर सवाल हुए खड़े

डीआरडीओ का कहना है कि गैलियम नाइट्राइड तकनीक फ्यूचर वॉरफेयर में निर्णायक भूमिका निभाएगी। यही वजह है कि अमेरिका का F-35, चीन का J-20 और जापान का अगली पीढ़ी का J/F-X प्रोग्राम भी इसी तकनीक पर आधारित रडार का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत का दावा है कि उसके स्वदेशी रडार वैश्विक स्तर की तकनीक से पीछे नहीं हैं और इन्हें SU-57E जैसे विमानों पर लगाना पूरी तरह संभव है।

हालांकि रूस इस फाइटर जेट को पांचवी पीढ़ी के एयरक्राफ्ट के तौर पर प्रचारित करता आया है। वहीं भारत के यह कहने के बाद कि इसमें लगे रडार मॉडर्न वॉरफेयर के मुताबिक नहीं है, इसके बाद रूस के दावों पर सवाल खड़े हों गए हैं। जानकारों का कहना है कि अगर भारत जैसे बड़े ग्राहक ने इसके रडार सिस्टम को नकार दिया तो इसका असर दुनिया भर में रूस की छवि पर पड़ेगा।

Su-57E stealth fighter: भारत ने ली राफेल से सीख

सूत्रों का कहना है कि भारत को अपने स्वदेश में बने रडार सिस्टम पर पूरा भरोसा है। और वह अब विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं है। वहीं अगर एसयू-57 में भारतीय रडार का इस्तेमाल होता है कि इससे पूरी दुनिया में उसकी साख बढ़ेगी और विदेशों में निर्यात के रास्ते भी खुलेंगे। साथ ही भारत यह भी जानता है कि मॉस्को आसानी से अपने सबसे बड़े हथियार खरीदारों में से एक को नहीं खो सकता।

भारत फिलहाल Su-57E की तुलना अमेरिका के F-35A से कर रहा है, लेकिन यहां मामला केवल विमान की रेंज या स्टील्थ क्षमता का नहीं है। भारत के लिए सबसे अहम मुद्दा है – टेक्नोलॉजी पर कंट्रोल। सूत्रों का कहना है कि फ्रांस के राफेल सौदे से भारत ने बड़ी सीख ली है। राफेल का सोर्स कोड फ्रांस ने भारत को नहीं दिया, जिससे भारतीय मिसाइल सिस्टम्स को पूरी तरह इंटीग्रेट करने में दिक्कतें आईं। उनमें स्वदेशी एस्ट्रा और रुद्रम जैसे हथियारों को पूरी तरह राफेल पर इंटीग्रेट नहीं किया जा सका। यही वजह है कि अब भारत ने तय कर लिया है कि भविष्य की सभी डील्स में सोर्स कोड एक्सेस और लोकल टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन जरूरी होगा।

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Su-57E stealth fighter: फिफ्थ जनरेशन की दो से तीन स्क्वाड्रन

भारतीय वायुसेना की योजना है कि अगले कुछ वर्षों में दो से तीन स्क्वाड्रन फिफ्थ जनरेशन विमानों की जरूरत पूरी की जाए। एसयू-57ई और अमेरिकी एफ-35 इस दौड़ में प्रमुख हैं। वहीं भारत का अपना एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) प्रोजेक्ट भी चल रहा है, जिसकी पहली उड़ान 2028 तक तय मानी जा रही है। रूस ने यह भी संकेत दिया है कि अगर भारत एसयू-57ई खरीदता है तो इसमें स्वदेशी एस्ट्रा मिसाइल और भविष्य के प्रिसीजन स्ट्राइक हथियार भी लगाए जा सकते हैं।

एसयू-57ई को भारत में बनाने की तैयारी

वहीं रूस ने भारत को लुभाने के लिए एक बड़ा प्रस्ताव रखा है। जानकारी के मुताबिक, रूसी राजदूत डेनिस अलीपोव ने हाल ही में कहा कि रूस ने भारत को फुल सोर्स कोड एक्सेस देने की पेशकश की है ताकि भारतीय सिस्टम्स को आसानी से Su-57E में इंटीग्रेट किया जा सके। इतना ही नहीं, नासिक की एचएएल की फैक्टरी में जहां पहले से ही 222 से ज्यादा सुखोई-30MKI बन चुके हैं, वहां पर एसयू-57ई का उत्पादन शुरू हो सकता है। रूसी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रूस भारत को पूरी तकनीकी मदद और औद्योगिक ढांचा मुहैया कराने को तैयार है।

आंकलन करने में जुटीं रूसी एजेंसियां

वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी भारत यात्रा के दौरान Su-57 विमान का ऑफर कर सकते हैं। रूसी एजेंसियां यह आंकलन भी कर रही हैं कि भारत में इन विमानों के निर्माण के लिए कितनी पूंजी और संसाधन की जरूरत होगी। इसके अलावा भारत की दूसरी फैक्ट्रियां, जहां पहले से ही रूसी उपकरण बनाए जाते हैं, उन्हें भी इस काम में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे लागत कम करने में मदद मिलेगी। बता दें कि करीब दस साल पहले भारत रूस के फिफ्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट प्रोग्राम (FGFA) का हिस्सा था, लेकिन मतभेदों के चलते उसने इससे हाथ खींच लिया था। अब मौजूदा वैश्विक हालात को देखते हुए यह प्रोजेक्ट फिर से शुरू हो सकता है।

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