Indian Air Force: पूर्व वायुसेना ग्रुप कैप्टन की चेतावनी; अगले 3-4 दशकों तक चीन को युद्ध में नहीं हरा सकता भारत, बताई ये बड़ी वजह

Indian Air Force: Ex-IAF Captain Warns India Can't Defeat China Militarily for Next 3-4 Decades
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📍नई दिल्ली | 6 months ago

Indian Air Force: भारतीय वायुसेना के पूर्व ग्रुप कैप्टन अजय अहलावत ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में चेतावनी दी है कि आने वाले तीन से चार दशकों तक भारत चीन को नहीं हरा सकता है। उन्होंने वायुसेना के कम होते स्क्वाड्रन क्षमता और लड़ाकू विमानों की सप्लाई में देरी पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना की स्क्वाड्रन स्ट्रेंथ का कम होना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। अहलावत जोर दिया कि भारत को एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (National Security Strategy) बनाने की जरूरत है, ताकि भारत की रक्षा नीतियों और आर्म्ड फोर्सेस के बीच सामंजस्य बनाया जा सके।

Indian Air Force: Ex-IAF Captain Warns India Can't Defeat China Militarily for Next 3-4 Decades
Former Indian Air Force (IAF) Group Captain Ajay Ahlawat

Indian Air Force: आजादी के बाद से अब तक का सबसे कम स्क्वाड्रन

ग्रुप कैप्टन अहलावत ने वायुसेना की मौजूदा स्थिति को ‘खतरनाक रूप से कमजोर’ बताया। उन्होंने कहा कि भारत की वायुसेना के पास आजादी के बाद से अब तक का सबसे कम स्क्वाड्रन हैं। “हमारे पास कुल 17 स्क्वाड्रन की योजना है, जिसमें LCA (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के तीन स्क्वाड्रन, LCA Mk 1A के चार स्क्वाड्रन, Mk 2 के चार स्क्वाड्रन और AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के छह स्क्वाड्रन शामिल हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इनमें से सिर्फ तीन स्क्वाड्रन फिलहाल तैयार हैं। Mk-2 अभी कागज पर है, और AMCA की पहली ट्रायल उड़ान 2028 तक होने की उम्मीद है।”

अहलावत की यह टिप्पणी उस समय आई है जब वायुसेना में स्क्वाड्रन की संख्या बेहद कम है। आजादी के बाद से यह अब तक का सबसे निचला स्तर है। वर्तमान में वायुसेना के पास केवल 30 स्क्वाड्रन हैं, जबकि यह संख्या 42 होनी चाहिए।

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चीन से मुकाबले की चुनौती

“हमारा चीन के साथ विवाद सांस्कृतिक नहीं है, यह सीमा विवाद है। दोनों देशों के पास अपनी-अपनी अलग धारणाएं हैं।अगर दोनों पक्ष किसी बीच के मार्ग पर सहमत हो सकें, तो इससे समस्या का समाधान हो सकता है। इसे बातचीत और समझौतों के जरिए ही हल करना होगा। डोकलाम संकट के बाद हमने अपनी ओर से समाधान की इच्छा जताई थी।”

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अहलावत ने कहा कि चीन लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। उन्होंने बताया कि चीन ने 2000 के दशक में एक स्पष्ट सैन्य रणनीति अपनाई और 2035 तक अमेरिका जैसी ताकत बनने का लक्ष्य तय किया। “चीन ने 2035 तक अमेरिका जितना मजबूत बनने का लक्ष्य रखा और फिर उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन शुरू किया। वे तीन अतिरिक्त क्षेत्रों – अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में भी काम कर रहे हैं। वहीं, हम अभी भी पारंपरिक जल-थल-नभ यानी सेना, नौसेना और वायुसेना के ढांचे में ही फंसे हुए हैं।”

उन्होंने बताया कि चीन की रॉकेट फोर्स इतनी मजबूत है कि यह दुश्मन के एयरफील्ड को निष्क्रिय कर सकती है। “चीन की रॉकेट फोर्स सबसे पहले एयरफील्ड्स को निशाना बनाएगी। वे अंतरिक्ष में कुछ ऐसे ऑर्बिटल पोजिशन पर काम कर रहे हैं, जो पहाड़ों में ऊंचाई पर कब्जा करने के बराबर है।”

लड़ाकू विमान और ‘तेजस’ की डिलीवरी में देरी

भारतीय वायुसेना को लड़ाकू विमानों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। ‘तेजस’ प्रोजेक्ट, जिसे पुराने मिग-21 विमानों को बदलने के लिए डिजाइन किया गया था, अपनी मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई में देरी से जूझ रही है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में तेजस के उत्पादन में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि 2009-2010 में 40 तेजस विमानों का ऑर्डर दिया गया था, लेकिन अभी तक ये डिलीवर नहीं किए गए हैं।

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अहलावत ने इस देरी के लिए बाहरी और आंतरिक दोनों कारणों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, “1984 में तेजस प्रोजेक्ट की नींव रखी गई थी। 2001 में इसका पहला ट्रायल हुआ, और इसे वायुसेना में शामिल करने में 15 साल और लग गए। इसके बाद 2016 तक भी वायुसेना को एक भी स्क्वाड्रन नहीं मिला। देरी की बड़ी वजह 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे। वहीं, अब यह देरी GE इंजनों से जुड़ी समस्याओं के कारण हो रही है।”

आयात किया जाए या स्वदेश में बनाया जाए

अहलावत ने सुझाव दिया कि वायुसेना की ताकत बनाए रखने के लिए आयात को लेकर कुछ लोग सवाल खड़े कर सकते हैं, लेकिन यह उपयुक्त समाधान है। उन्होंने कहा, “सरकार जब सेना को युद्ध के लिए भेजती है, तो उम्मीद करती है कि वह युद्ध जीते। अगर घरेलू उद्योग समय पर विमानों की आपूर्ति नहीं कर सकते, तो हमें उन इक्विपमेंट्स की जरूरत है, जो युद्ध के दौरान इस्तेमाल हो सकें। हमें आज एक तैनात करने योग्य वायुसेना चाहिए।”

उन्होंने उदाहरण दिया कि करगिल युद्ध में बोफोर्स गन और मिराज 2000 जैसे आयातित हथियारों ने भारत को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि भारत को वर्तमान में राफेल विमानों की संख्या बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। “राफेल हमारे पास पहले से मौजूद हैं। हमारे पास इनकी मैंटेनेंस की सुविधा, प्रशिक्षित क्रू और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार है। ऐसे में राफेल संख्या बढ़ाना एक तात्कालीक समाधान हो सकता है।”

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राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाने की जरूरत

अहलावत ने जोर दिया कि भारत को अपनी रक्षा रणनीति को व्यापक रूप से पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। “हमें एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता है, जो सभी सशस्त्र बलों को राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्य की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करे। यह रणनीति यह तय करेगी कि चीन हमारे लिए क्या है – एक दोस्त, एक प्रतिस्पर्धी, या एक सैन्य दुश्मन।”

उन्होंने कहा कि भारत को रक्षा क्षेत्र में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ नए विमान और तकनीक के विकास पर भी निवेश करना चाहिए। हालांकि, मौजूदा हालात में भारत को आयात पर निर्भर रहना होगा ताकि वायुसेना की ताकत बनी रहे और राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में न पड़े।

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