Explaind: क्या रद्द होगा Shimla Agreement? अगर पाकिस्तान ने की ये हिमाकत तो पड़ेगा भारी, खत्म हो जाएगा बातचीत का आखिरी सूत्र!

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By हरेंद्र चौधरी

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शिमला समझौता 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद शांति स्थापना के लिए बनाया गया एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसमें दोनों देशों ने यह वादा किया था कि वे सभी विवादों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाएंगे। इस समझौते में खासतौर पर कश्मीर को लेकर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकारा गया था...

📍New Delhi | 7 days ago

इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते (Shimla Agreement) के बाद कहा था: “We have taken the first step towards peace and cooperation. It is now up to both nations to build on this foundation for a lasting relationship.” यानी “हमने शांति और सहयोग की दिशा में पहला कदम उठाया है। अब यह दोनों देशों पर निर्भर है कि वे इस नींव पर एक स्थायी रिश्ता बनाएं।” हालांकि भारत ने हमेशा से ही इस समझौते का मान रखा, लेकिन पाकिस्तान अपने वादे पर अडिग नहीं रहा। चाहे 1999 का कारगिल युद्ध, 2008 का 26/11 मुंबई हमला, और पुलवामा हमला। पाकिस्तान ने हमेशा से ही इस समझौते के सम्मान को तार-तार करते हुए इसके कार्यान्वयन में चुनौतियां खड़ी कीं। लेकिन पहलगाम आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, जिसके बाद भारत को सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला करना पड़ा। जिसके जवाब में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी शिमला समझौते को स्थगित करने की धमकी दी है।

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Shimla Agreement: भारत-पाकिस्तान संबंधों का एक एतिहासिक दस्तावेज

शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुआ एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक समझौता है, जो दोनों देशों के संबंधों को परिभाषित करने और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने में एक आधारशिला रहा है। यह समझौता न केवल जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को द्विपक्षीय बनाए रखता है, बल्कि दोनों देशों के बीच युद्ध और तनाव को कम करने का एक समाधान भी है। जब भी दोनों देशों के बीच तनाव पैदा होता है, तो हमेशा इस समझौते को ही बातचीत का आधार बनाया जाता है।

इतिहासकार और कूटनीतिक विश्लेषक एजी नूरानी ने शिमला समझौते के बारे में लिखा, “The Shimla Agreement was not just a ceasefire pact; it was a bold attempt to redefine India-Pakistan relations through dialogue and mutual respect, anchoring peace in the volatile subcontinent.” यानी “शिमला समझौता केवल एक युद्धविराम संधि नहीं था; यह भारत-पाकिस्तान संबंधों को बातचीत और पारस्परिक सम्मान के माध्यम से पुनर्परिभाषित करने का एक साहसिक प्रयास था, जो अस्थिर उपमहाद्वीप में शांति का आधार बना।”

क्या है Shimla Agreement?

शिमला समझौता 2 जुलाई, 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुआ था। इस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने दस्तखत किए थे। यह समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुआ, जिसमें पाकिस्तान की बुरी हार के बाद बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। युद्ध के अंत में भारत ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना गया था, और यह समझौता युद्ध के बाद की स्थिति को सामान्य करने और दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने का एक प्रयास था। यह समझौता पिछले 50 वर्षों से दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने और बातचीत को बढ़ावा देने का आधार रहा है, भले ही कई बार इसका उल्लंघन हुआ हो।

Shimla Agreement की पृष्ठभूमि

1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दोनों देशों के बीच जम्मू-कश्मीर को लेकर तनाव शुरू हो गया। 1947-48 के पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम रेखा (Line of Ceasefire) बनाई गई। 1965 के युद्ध और उसके बाद कराची समझौता (1966) भी तनाव को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाया। लेकिन 1971 की जंग के बाद शिमला समझौते की नींव रखी गई। जब पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बंगाली आबादी पर अत्याचार किए, और भारत ने हस्तक्षेप किया, जिसके बाद पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े।

युद्ध के बाद भारत के पास 93,000 पाकिस्तानी सैनिक बंदी थे, और 5,000 वर्ग मील पाकिस्तानी क्षेत्र पर उसका नियंत्रण था। दूसरी ओर, पाकिस्तान कमजोर स्थिति में था, क्योंकि उसने अपना पूर्वी हिस्सा खो दिया था। इस स्थिति में दोनों देशों को एक ऐसे समझौते की जरूरत थी, जो युद्ध के बाद की स्थिति को संभाले और भविष्य में टकराव होने से रोके। शिमला समझौता इसी जरूरत का परिणाम था।

Shimla Agreement के प्रमुख प्रावधान

शिमला समझौता में 12 अनुच्छेद हैं। इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

  • दोनों देश शांति और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित संबंध विकसित करेंगे। वे एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता, और स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे।
  • भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवादों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दों, को बातचीत, मध्यस्थता, या अन्य शांतिपूर्ण तरीकों से हल करेंगे। इसमें तीसरे पक्ष (जैसे संयुक्त राष्ट्र) की मध्यस्थता को शामिल नहीं किया जाएगा।
  • जम्मू-कश्मीर में 17 दिसंबर, 1971 को स्थापित युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा (LoC) के रूप में मान्यता दी गई। दोनों देश इसका सम्मान करेंगे और इसे बदलने के लिए बल प्रयोग नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ आतंकवाद, घुसपैठ, या शत्रुतापूर्ण प्रचार को बढ़ावा नहीं देंगे।
  • समझौते ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों, व्यापार, संचार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की बहाली का रास्ता खोला।
  • भारत ने 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने और कब्जाए गए क्षेत्रों को वापस करने का वादा किया, जबकि पाकिस्तान ने भी भारत के कब्जाए गए क्षेत्रों को लौटाया।
  • समझौते में प्रावधान था कि दोनों देशों के नेता नियमित रूप से मिलेंगे ताकि शांति और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
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शिमला समझौते का महत्व

शिमला समझौते का सबसे बड़ा फायदा कश्मीर मुद्दे को मिला। इसने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों से हटाकर भारत और पाकिस्तान के बीच का मामला बनाया। पाकिस्तान ने माना कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय नहीं, बल्कि भारत-पाक के बीच आपसी सहमति से ही सुलझाया जाना चाहिए। समझौते ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) को 17 दिसंबर, 1971 की युद्धविराम रेखा का आधार बनाया, जिसने दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को कम करने में मदद की। समझौते ने भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का एक आधार दिया, जिसके तहत बाद में लाहौर घोषणा पत्र (1999) और आगरा शिखर सम्मेलन (2001) का आयोजन हुआ। साथ ही, इसने आतंकवाद और शत्रुतापूर्ण गतिविधियों को रोकने की प्रतिबद्धता जताई। वहीं, इस समझौते ने कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों को बहाल करने का रास्ता खोला। ये अलग बात है कि पाकिस्तान ने बातचीत का दिखावा करते हुए इस समझौते की हमेशा से ही धज्जियां उड़ाईं।

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