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Surveillance and Electro-Optics 2025: “आधुनिक जंग का नया मंत्र; पहले देखो, दूर तक देखो, सटीक देखो!” ऑपरेशन सिंदूर ने साबित की आत्मनिर्भरता की ताकत

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सेमिनार में चीन के मिलिट्री स्पेस प्रोग्राम पर भी चर्चा हुई। एयर मार्शल दीक्षित ने बताया कि 2010 में चीन के पास सिर्फ 36 सैटलाइट्स थे, लेकिन 2024 तक यह संख्या 1,000 से ज्यादा हो गई, जिनमें 360 ISR मिशंस के लिए हैं। अप्रैल 2024 में चीन ने एक इंडिपेंडेंट एयरोस्पेस फोर्स बनाई, जो सीधे सेंट्रल मिलिट्री कमीशन को रिपोर्ट करती है। उनके सैटलाइट्स अब LEO में “डॉगफाइटिंग” मैन्यूवर्स कर सकते हैं, जो दुश्मन के स्पेस असेट्स को ट्रैक और डिसेबल करने के लिए डिजाइन किए गए हैं...
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📍नई दिल्ली | 11 Jun, 2025, 8:43 PM

Surveillance and Electro-Optics 2025:  ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की डिफेंस कैपेबिलिटीज को वैश्विक स्तर पर साबित किया। इस ऑपरेशन में स्वदेशी टेक्नोलॉजी, खासकर इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) और आकाश तीर सिस्टम ने दिखाया कि भारत अब न सिर्फ अपनी एयरस्पेस की सुरक्षा कर सकता है, बल्कि दुश्मन के डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी सटीक हमलों से खासा नुकसान पहुंचा सकता है। इस सक्सेस स्टोरी की गूंज आज दिल्ली में हुए ‘सर्विलांस एंड इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स इंडिया 2025’ सेमिनार और प्रदर्शनी में सुनाई दी।

सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज (CAPS) और इंस्टीट्यूट ऑफ मिलिट्री रिसर्च (IMR) द्वारा आयोजित इस इवेंट में भारत के टॉप मिलिट्री ऑफिसर्स, डिफेंस एक्सपर्ट्स, इंडस्ट्री लीडर्स, और पॉलिसी मेकर्स ने हिस्सा लिया। इस सेमिनार का मकसद था भारत की सर्विलांस और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स (EO) टेक्नोलॉजी को फ्यूचर वॉरफेयर के लिए तैयार करना।

Surveillance and Electro-Optics 2025:  ऑपरेशन सिंदूर: स्वदेशी टेक्नोलॉजी की ताकत

चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ एयर मार्शल अशुतोष दीक्षित ने ऑपरेशन सिंदूर को भारत के रक्षा इतिहास सुनहरा अध्याय बताया। उन्होंने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि जब स्वदेशी इनोवेशन को सही दिशा में प्रयोग किया जाता है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क्स को न सिर्फ मैच कर सकते हैं, बल्कि उनसे आगे भी निकल सकते हैं।” उन्होंने कहा, इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम IACCS ने सेंसर-टू-शूटर टाइमलाइन को जबरदस्त तरीके से कम किया, जिससे हम दुश्मन के डिसीजन साइकिल से तेजी से रिस्पॉन्ड कर सके। इसका रिजल्ट ये हुआ कि एक भी पाकिस्तानी एयरक्राफ्ट भारतीय एयरस्पेस में घुस नहीं सका, और हमारे प्रिसीजन स्ट्राइक्स ने उनके एयर डिफेंस सिस्टम्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान पहुंचाया।

एयर मार्शल अशुतोष दीक्षित ने जोर देकर कहा “यह सफलता कोई इत्तेफाक नहीं थी। यह सालों की मेहनत, स्वदेशी डेवलपमेंट, रिगरस टेस्टिंग, और कंटीन्यूअस रिफाइनमेंट का नतीजा था। ऑपरेशन सिंदूर ने आत्मनिर्भरता की ताकत को साबित किया।”

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सर्विलांस: मॉडर्न वॉरफेयर का कोर

एयर मार्शल दीक्षित ने कहा कि सर्विलांस और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स अब सिर्फ एक फोर्स मल्टीप्लायर नहीं, बल्कि मॉडर्न वॉरफेयर का सेंट्रल पिलर है। उन्होंने ग्लोबल कॉन्फ्लिक्ट्स जैसे आर्मेनिया-अजरबैजान, रूस-यूक्रेन, और इजरायल-हमास का उदाहरण देते हुए बताया कि इन जंगों ने एक बात साफ की, “जो पहले देखता है, सबसे दूर देखता है, और सबसे सटीक देखता है, वही जीतता है।”

उन्होंने कहा कि मॉडर्न हथियार, जैसे ब्रह्मोस, SCALP, और HAMMER, सैकड़ों किलोमीटर दूर टारगेट्स को पिनपॉइंट एक्यूरेसी के साथ हिट कर सकते हैं। इससे फ्रंट, रियर, और फ्लैंक्स जैसे ट्रेडिशनल कॉन्सेप्ट्स अब रिलेवेंट नहीं रहे। “अब बैटलफील्ड और थिएटर एक हो गए हैं। हमें दुश्मन को उनके स्टेजिंग एरियाज, एयरफील्ड्स, और बेस में ही ट्रैक करना होगा, न कि तब जब वे हमारी बॉर्डर्स के पास पहुंचें।”

दीक्षित ने हाइपरसोनिक मिसाइल्स और ड्रोन स्वार्म्स की रफ्तार का जिक्र करते हुए कहा, “ये हथियार मिनटों में सैकड़ों किलोमीटर पार कर लेते हैं। ऐसे में रियल-टाइम या नियर-रियल-टाइम सर्विलांस अब ऑप्शनल नहीं, बल्कि सर्वाइवल की जरूरत है।” उन्होंने मेगा स्मॉल सैटलाइट कॉन्स्टलेशन्स, EO, SAR, और SIGINT के फ्यूजन को क्रेडिट दिया, जो 24×7 डायनामिक और प्रेडिक्टिव बैटलफील्ड अवेयरनेस दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “अब हम सिर्फ ऑब्जर्व नहीं करते, बल्कि प्रेडिक्ट और प्री-एम्प्ट भी करते हैं।”

दीक्षित ने कहा कि फ्यूचर बैटलफील्ड में मल्टी-डोमेन सेंसर, क्लाउड डेटा, और AI-इंटीग्रेटेड सिस्टम्स की जरूरत होगी। “MALE और HALE प्लेटफॉर्म्स जैसे MQ-9, RUSTOM, और TAPAS को मॉड्यूलर पेलोड्स, एडवांस्ड सेंसर फ्यूजन, और AI-बेस्ड एनालिसिस के साथ अपग्रेड करना होगा।” उन्होंने कहा कि मिनी हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर और ऑनबोर्ड एज कंप्यूटिंग से लैटेंसी कम होगी, जिससे सिस्टम्स इंसानों से तेजी से डिसीजन ले सकें। “फ्यूचर वॉर्स वही जीतेगा, जो OODA लूप (Observe, Orient, Decide, Act) को सबसे तेजी से पूरा करेगा।”

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चीन की चुनौती: स्पेस में नई जंग

सेमिनार में चीन के मिलिट्री स्पेस प्रोग्राम पर भी चर्चा हुई। एयर मार्शल दीक्षित ने बताया कि 2010 में चीन के पास सिर्फ 36 सैटलाइट्स थे, लेकिन 2024 तक यह संख्या 1,000 से ज्यादा हो गई, जिनमें 360 ISR मिशंस के लिए हैं। अप्रैल 2024 में चीन ने एक इंडिपेंडेंट एयरोस्पेस फोर्स बनाई, जो सीधे सेंट्रल मिलिट्री कमीशन को रिपोर्ट करती है। उनके सैटलाइट्स अब LEO में “डॉगफाइटिंग” मैन्यूवर्स कर सकते हैं, जो दुश्मन के स्पेस असेट्स को ट्रैक और डिसेबल करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। दीक्षित ने कहा, “चीन ने ‘किल चेन’ से ‘किल मेश’ की तरफ शिफ्ट किया है। “यह एक इंटीग्रेटेड नेटवर्क है, जो ISR सैटलाइट्स को वेपन सिस्टम्स के साथ सीमलेसली जोड़ता है। AI-ड्रिवन डेटा फ्यूजन से वे रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस हासिल कर रहे हैं।”

इसके जवाब में भारत की तैयारियों पर बात करते हुए दीक्षित ने कहा कि हमें अपनी सर्विलांस कैपेबिलिटीज को और मजबूत करना होगा। “ISRO और DRDO की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पॉलिसी ने प्राइवेट सेक्टर को नई ताकत दी है। हमें AI-इंटीग्रेटेड EO सिस्टम्स, मल्टीस्पेक्ट्रल ऑल-वेदर सिस्टम्स, और इंटरऑपरेबल प्लेटफॉर्म्स चाहिए, जो सियाचिन से लेकर हिंद महासागर तक हर परिस्थिति में काम करें।”

प्राइवेट सेक्टर: आत्मनिर्भरता का नया पार्टनर

सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड एयर वाइस माार्शल अनिल गोलानी ने प्राइवेट सेक्टर की रोल को हाईलाइट करते हुए कहा, “तकनीकी बदलाव की रफ्तार इतनी तेज है कि सरकार अकेले इसे मैनेज नहीं कर सकती। एवीएम गोलानी ने भी यही बात दोहराई: “EO और सर्विलांस सिस्टम्स भारत को डिफेंस इनोवेशन में ग्लोबल लीडर बना सकते हैं। हमें आत्मनिर्भरता और कोलैबोरेशन पर फोकस करना होगा।”

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उन्होंने ISRO और DRDO की तारीफ की, जो प्राइवेट कंपनियों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर रहे हैं। “ISRO का ऑप्टिकल इमेजिंग सिस्टम ट्रांसफर एक गेम-चेंजर है। इससे कॉम्पैक्ट और लॉन्ग-रेंज सर्विलांस प्लेटफॉर्म्स बन रहे हैं, जो हमारी ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी को बढ़ा रहे हैं।” दीक्षित ने भी प्राइवेट सेक्टर से अपील की कि वे नेशनल सिक्योरिटी में पार्टनर बनें, न कि सिर्फ वेंडर्स। उन्होंने कहा, “AI-ड्रिवन इमेजिंग सीकर्स, ऑटोमेटेड थ्रेट रिकॉग्निशन, और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स की जरूरत है। हमें ऐसे सिस्टम्स चाहिए, जो हर मौसम और ज्योग्राफिकल कंडीशन में काम करें।”

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