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Ran Samwad 2025: बदल रही है युद्ध की तस्वीर, अब टेक्नोलॉजी से लड़ी जाएगी जंग, ट्राई सर्विसेज सेमिनार में होगी तैयारियों पर खुल कर चर्चा

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मशहूर रणनीतिकार कार्ल वॉन क्लॉजविट्ज ने कहा था, "हर युग का युद्ध अपने समय के हिसाब से अनोखा होता है।" इतिहास बताता है कि हर युग में तकनीक ने युद्ध की दिशा और स्वरूप को बदला है - चाहे वह तलवार से बंदूक तक का सफर हो या फिर परमाणु हथियार और सैटेलाइट जासूसी की दुनिया। प्राचीन काल में लोहे के हथियारों ने युद्ध की दिशा बदली, तो मध्ययुग में बारूद और बाद में टेलीग्राफ ने युद्ध के तरीकों को नया रूप दिया...
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📍महू, मध्य प्रदेश | 1 day ago

Ran Samwad 2025: भारतीय सेना एक नई पहल के साथ युद्ध की बदलती रणनीति और तकनीक के प्रभाव को समझने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सेना की तीनों शाखाओं थलसेना, वायुसेना और नौसेना के संयुक्त प्रयास से ‘रण संवाद 2025’ नामक एक सेमिनार 26-27 अगस्त को आर्मी वॉर कॉलेज, महू (म.प्र.) में आयोजित की जाएगी। इस आयोजन का विषय है, ‘तकनीक का युद्ध पर प्रभाव’, जिसमें युद्ध की रणनीतियों, मिलिट्री इनोवेशंस और राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

इस सेमिनार में सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ, स्ट्रेटेजिकल रिसर्चर्स, थिंक टैंक, शिक्षाविद और रक्षा क्षेत्र से जुड़े निजी संस्थान शामिल होंगे। इसका उद्देश्य भारत की सेनाओं को भविष्य की तकनीकी चुनौतियों के लिए तैयार करना है।

Ran Samwad 2025: तकनीक और युद्ध का पुराना रिश्ता

इतिहास बताता है कि हर युग में तकनीक ने युद्ध की दिशा और स्वरूप को बदला है – चाहे वह तलवार से बंदूक तक का सफर हो या फिर परमाणु हथियार और सैटेलाइट जासूसी की दुनिया। प्राचीन काल में लोहे के हथियारों ने युद्ध की दिशा बदली, तो मध्ययुग में बारूद और बाद में टेलीग्राफ ने युद्ध के तरीकों को नया रूप दिया। मशहूर रणनीतिकार कार्ल वॉन क्लॉजविट्ज ने कहा था, “हर युग का युद्ध अपने समय के हिसाब से अनोखा होता है।” आज हम एक ऐसे दौर में हैं, जहां एक छोटा सा साइबर कोड या ड्रोन का झुंड पूरी सेना जितना नुकसान पहुंचा सकता है।

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लेकिन 21वीं सदी में युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं लड़े जाते, अब वे कंप्यूटर कोड, स्वार्म ड्रोन, साइबर हमलों और सूचना युद्ध के जरिए लड़े जा रहे हैं। रण संवाद 2025 इसी तेजी से बदलती दुनिया को समझने और उसके अनुसार खुद को तैयार करने का प्रयास है।

गोलियों से नहीं, डेटा से लड़े जा रहे हैं युद्ध

सेमिनार में यह समझने की कोशिश की जाएगी कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोनोमस सिस्टम, साइबर कैपेबिलिटी और अंतरिक्ष आधारित तकनीकें आज के और भविष्य के युद्धों को प्रभावित कर रही हैं। अब युद्ध केवल गोलियों से नहीं, बल्कि डेटा से भी लड़े जा रहे हैं। दुश्मन के इनफॉरमेशन सिस्टम को निशाना बनाना, फेक न्यूज फैलाना, सोशल मीडिया पर प्रभाव बनाना, ये सभी अब मॉडर्न वारफेयर का हिस्सा बन चुके हैं।

उदाहरण के तौर पर चीन की “इंटेलिजेंटाइज्ड वॉरफेयर” की रणनीति में पूरा युद्ध आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के भरोसे लड़ा जाता है। ऐसे में भारत के लिए भी जरूरी हो गया है कि वह न सिर्फ इन तकनीकों को अपनाए बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता के साथ विकसित भी करे।

इस विषय के अंतर्गत जिन बिंदुओं पर चर्चा होगी, उनमें शामिल हैं:

हाल के युद्धों का अध्ययन: रूस-यूक्रेन, आर्मेनिया-अजरबैजान और इजरायल-हमास जैसे युद्धों ने दिखाया कि ड्रोन, साइबर हमले और सूचना युद्ध कितने महत्वपूर्ण हो गए हैं।
उभरती तकनीकों की पहचान: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमैटिक हथियार और साइबर क्षमताएं युद्ध को बदल रही हैं।
सूचना को हथियार बनाना: झूठी खबरें और प्रचार को तकनीक के जरिए नियंत्रित करना युद्ध का हिस्सा बन गया है।
हथियारों का तेजी से निर्माण: सैन्य उपकरणों को जल्दी डिजाइन और बनाने के लिए सिविल और मिलिट्री टेक्नोलॉजी को मिलाना होगा।
स्वचालित ड्रोन रणनीति: समुद्री और जमीनी युद्धों में स्वार्म ड्रोनों का इस्तेमाल बढ़ेगा, जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से और प्रभावी बनाया जा सकता है।
तकनीक का उपयोग: सेना में नई तकनीकों को लागू करने के लिए रणनीति और प्रशिक्षण की जरूरत है।

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सेना के प्रशिक्षण में बदलाव की जरूरत

रण संवाद 2025 सेमिनार में इस पर भी चर्चा होगी कि जब तकनीक इतनी तेजी से बदल रही है, तो क्या हमारी मिलिट्री ट्रेनिंग भी उसी रफ्तार से आगे बढ़ रही है? भविष्य के युद्धों को देखते हुए अब सिर्फ बंदूक चलाना या टैंक चलाना ही पर्याप्त नहीं रह गया है। अब सैनिकों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना होगा। उदाहरण के तौर पर, अनमैन्ड व्हीकल्स का इस्तेमाल आने वाले समय में बहुत बढ़ेगा। यानी ऐसे जमीन पर चलने वाले वाहन, ड्रोन या निगरानी उपकरण जो इंसान के बिना काम करेंगे। ऐसे सिस्टम को इस्तेमाल करना और इनसे ऑपरेशन करना, इसके लिए एक पूरी नई ट्रेनिंग की जरूरत है।

इसी तरह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जो अनुभव मिले, वे अब ट्रेनिंग का हिस्सा बनाए जा रहे हैं। जैसे ऊंचे पहाड़ी इलाकों में एयर डिफेंस सिस्टम कैसे काम करता है, सीमित समय में दुश्मन पर सटीक हमला कैसे किया जाए, और दुश्मन की निगरानी से बचने के लिए किस तरह की तकनीकी रणनीति अपनाई जाए।

अब केवल जमीन पर युद्ध की सोच पर्याप्त नहीं है। आने वाले समय में अंतरिक्ष और साइबर युद्ध की भूमिका भी उतनी ही अहम होगी। इसलिए ट्रेनिंग में अब स्पेस कम्युनिकेशन यानी उपग्रह के जरिए कम्युनिकेशन, और साइबर सुरक्षा जैसे विषय भी जोड़े जा रहे हैं। सैनिकों को सिखाया जाए कि दुश्मन के हैकिंग या जासूसी के प्रयासों से कैसे बचा जाए और अपने सिस्टम को सुरक्षित कैसे रखा जाए।

इतना ही नहीं, डिजिटल सप्लाई चेन वारफेयर भी युद्ध का अहम हिस्सा है। अब दुश्मन की लॉजिस्टिक्स यानी हथियार, ईंधन, राशन आदि की आपूर्ति को कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए रोका जा सकता है। इसके लिए ऐसे विशेषज्ञ सैनिक तैयार किए जा रहे हैं जो तकनीक से दुश्मन की सप्लाई चेन को बाधित कर सकें।

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कुल मिलाकर, भारतीय सेना अब ऐसी युद्ध रणनीति और प्रशिक्षण पद्धति की ओर बढ़ रही है जो सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाले 10–20 साल के लिए भी उपयोगी हो। रण संवाद 2025 का यही उद्देश्य है कि तीनों सेनाएं थल, जल और वायु मिलकर ऐसा ज्वाइंट ऑपरेशनल ट्रेनिंग सिस्टम बनाएं, जिसमें तकनीक और परंपरा दोनों का संतुलन हो।

ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख

भारतीय सेना द्वारा हाल ही में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह स्पष्ट किया कि तकनीक की ताकत के बिना आधुनिक युद्ध में जीत पाना कठिन है। पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के खिलाफ तकनीकी रूप से तैयार रहना भारत के लिए अनिवार्य हो चुका है। ऑपरेशन सिंदूर में ड्रोन, एआई-आधारित निगरानी, और साइबर इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके पाकिस्तान के आधुनिक चीनी और तुर्की हथियारों का सफलतापूर्वक सामना किया गया।

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भारत जैसे देश के लिए, जहां आमने-सामने की जंग के साथ-साथ अदृश्य खतरे (ग्रे जोन थ्रेट्स) का भी सामना करना पड़ता है, इन घटनाओं का अध्ययन जरूरी है। इस सेमिनार से सेना को यह समझने में मदद मिलेगी कि भविष्य में कैसे तैयार रहना है, किस तकनीक पर ध्यान देना है और तीनों सेनाओं के बीच तालमेल कैसे बेहतर किया जाए।

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