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US Election Results 2024: ट्रंप का फिर से राष्ट्रपति बनना भारत के लिए कितना फायदेमंद और कितना घातक! जानिए सब कुछ

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US Election Results 2024: डोनाल्ड ट्रम्प 2024 के चुनाव में उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए तैयार हैं। ट्रम्प की वापसी भारत के लिए कुछ अच्छे और कुछ बुरे संकेत लेकर आ सकती है। आइए उनकी नीतियों का विश्लेषण करें और समझें कि इसका भारत पर क्या असर पड़ सकता है।

आइए शुरुआत अच्छी खबरों से करते हैं…

1. विदेश नीति: भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती

ट्रम्प हमेशा से ही भारत और अमेरिका के संबंधों को मजबूत बनाने के पक्षधर रहे हैं। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने भारत के साथ कई बड़े रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और “क्वाड” जैसे समूहों को फिर से जीवंत किया था। चीन पर सख्त रुख अपनाना ट्रम्प की नीति का हिस्सा था, जो भारत के लिए फायदे का सौदा था, और इसके जारी रहने की संभावना है।

2. रूस के साथ संबंधों में हो सकते हैं सुधार

2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत की तटस्थ नीति और रूस से करीबी संबंधों को लेकर पश्चिम के साथ कुछ तनाव देखने को मिला है। हालांकि, ट्रम्प के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संबंध हैं, जिससे वे रूस के साथ सकारात्मक बातचीत की नीति अपना सकते हैं। ट्रम्प भी यूक्रेन युद्ध का जल्द अंत चाहते हैं, जिससे पश्चिमी देशों की ओर से भारत पर रूस के साथ संबंधों के लिए दबाव कम हो सकता है, जो दिल्ली के लिए सुखद संकेत होगा।

3. राजनीतिक हस्तक्षेप का अभाव

अमेरिकी नेता अक्सर भारत में लोकतंत्र और धार्मिक स्वतंत्रता पर विचार व्यक्त करते हैं, जो भारत को कुछ समय से खटकता रहा है। ट्रम्प के साथ ऐसा नहीं है। अपने पिछले कार्यकाल में, उन्होंने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया था, जैसे कि 2019 में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

4. मोदी-ट्रम्प के निजी संबंध

व्यक्तिगत संबंधों का राजनयिक असर होता है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्रम्प के साथ अच्छा संबंध है। ट्रम्प ने पहले भी मोदी की प्रशंसा की है, जिससे अगले चार वर्षों तक भारत-अमेरिका संबंधों में स्थिरता की उम्मीद की जा सकती है।

लेकिन ट्रम्प की वापसी कुछ चिंताएं भी ला सकती है।

1. व्यापार संबंध: व्यापारिक असहमति

ट्रम्प भारत को व्यापार प्रणाली का “दुरुपयोगकर्ता” मानते हैं और अमेरिकी आयात पर भारतीय शुल्कों से नाखुश हैं। ट्रम्प चाहते हैं कि अमेरिका में आयातित सभी वस्तुओं पर 20% शुल्क लगे। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर ट्रम्प के शुल्क लागू होते हैं, तो 2028 तक भारत की जीडीपी में 0.1% की कमी आ सकती है। इसके अलावा, उन्होंने चीनी वस्तुओं पर 60% का शुल्क लगाने का प्रस्ताव भी रखा है, जो एक अस्थिर वैश्विक व्यापार युद्ध को जन्म दे सकता है, जिससे भारत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

बाइडेन प्रशासन ने भारत की सेमीकंडक्टर्स और उन्नत तकनीक जैसे क्षेत्रों में उत्पादन क्षमताओं को बढ़ावा देने में समर्थन दिया है, लेकिन ट्रम्प इस मामले में कितने सहयोगी होंगे, यह स्पष्ट नहीं है।

2. इमिग्रेशन पर सख्त रुख

अमेरिका में लाखों भारतीय कार्य वीजा पर हैं। ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में H1B वीजा की पहुंच को सीमित कर दिया था और इसे अमेरिका की समृद्धि की “चोरी” तक कहा था। हालांकि उन्होंने इमिग्रेशन में सुधार की संभावना भी जताई है, लेकिन उनके रुख को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है, जिससे भारतीयों को नौकरी और स्थायी निवास में परेशानी हो सकती है।

3. सरप्राइज देते हैं ट्रम्प

ट्रम्प का अस्थिर व्यवहार उनकी सबसे बड़ी पहचान है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर पर मध्यस्थता का प्रस्ताव भी दिया था, जो भारत को पसंद नहीं आया था। उन्होंने तालिबान के साथ समझौता कर अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से बाहर कर दिया था, जो भारतीय हितों के खिलाफ था। इसके अलावा, उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों के साथ टकराव का रुख अपनाया है और चीन की ओर से ताइवान की सुरक्षा पर भी अस्पष्ट रुख रखा है। यह एशिया में अमेरिकी गठबंधनों को कमजोर कर सकता है, जो चीन की स्थिति को मजबूत करेगा और भारत के लिए चुनौती बन सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए अवसर और चुनौतियां दोनों लेकर आएगी। उनकी विदेश नीति में भारत के लिए कई सकारात्मक संभावनाएं हैं, खासकर चीन और रूस के मुद्दों पर। लेकिन व्यापारिक मामलों, इमिग्रेशन और अप्रत्याशितता के कारण भारत को सतर्क रहने की जरूरत होगी।

Exercise Poorvi Prahaar: पूर्वी लद्दाख में डिसइंगेजमेंट के बाद पूर्वोत्तर में होने जा रही है बड़ी एक्सरसाइज, तीनों सेनाएं लेंगी हिस्सा

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Exercise Poorvi Prahaar: पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ डिसइंगेजमेंट के कुछ ही दिनों बाद, भारत एक बड़ी ट्राई-सर्विस एक्सरसाइज “पूर्वी प्रहार” (Poorvi Prahaar) के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह मेगा संयुक्त अभ्यास 8 नवंबर से शुरू होकर अगले 10 दिनों तक चलेगा और इसमें भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना अपने प्रमुख रक्षा संसाधनों को पूर्वी सेक्टर में सक्रिय करेंगे।

क्या है ‘पूर्वी प्रहार’ अभ्यास की विशेषता?

यह अभ्यास 8 नवंबर से ईस्टर्न सेक्टर में शुरू होगा। इसमें भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना अपने-अपने एसेट्स को एकीकृत युद्ध अभ्यास में शामिल करेंगी, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर में चीन के साथ संभावित किसी भी गतिरोध का मजबूती से सामना करना है। यह अभ्यास विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के आसपास के क्षेत्र में सेना की क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, जहां हाल के सालों में भारत-चीन के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है।

थलसेना की भूमिका

इस अभ्यास में भारतीय सेना अपने महत्वपूर्ण एसेट्स को सक्रिय करेगी, जिसमें इन्फैंट्री कॉम्बैट, तोपखाने (आर्टिलरी गंस), LCH (लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर) और UAV (अनमैन्ड एरियल वेहिकल्स) शामिल होंगे। इन संसाधनों के माध्यम से सेना अपनी युद्ध तैयारियों को और मजबूत करेगी और विभिन्न लड़ाई परिस्थितियों में एकीकृत रणनीति का अभ्यास करेगी।

वायुसेना की तैयारी

भारतीय वायुसेना पूर्वी सेक्टर के कई प्रमुख एयरबेस जैसे कोलकाता, हाशिमारा, पानागढ़ और कलाईकुंडा को इस अभ्यास में शामिल करेगी। इसमें वायुसेना के आधुनिक और शक्तिशाली एसयू-30 फाइटर जेट, राफेल फाइटर जेट, सी-130जे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, हॉक और अन्य हेलीकॉप्टर जैसे युद्ध संसाधन भी हिस्सा लेंगे। इनका उद्देश्य सेना के साथ एकीकृत युद्धाभ्यास को कुशलता से अंजाम देना है।

नौसेना की भूमिका

भारतीय नौसेना भी इस अभ्यास में अपनी मारकोस कमांडो (विशेष बलों) के साथ शामिल होगी। नौसेना का यह योगदान महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पूर्वी क्षेत्र में जलमार्गों की सुरक्षा और संचालन में मजबूती आएगी।

पूर्वी सेक्टर में भारत-चीन वार्ता

सूत्रों के अनुसार, डेमचोक और देपसांग के क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट के बाद, भारत पूर्वी सेक्टर में चीन के साथ तनाव को कम करने के लिए बातचीत में लगा हुआ है। यह समझौता यांगत्से और तवांग क्षेत्र में चीनी सेना (PLA) की पेट्रोलिंग अधिकारों को फिर से बहाल करने पर केंद्रित है। बता दें कि दिसंबर 2022 में हुए एक टकराव के बाद भारतीय सेना ने इस क्षेत्र में PLA की पेट्रोलिंग पर रोक लगा दी थी।

पूर्वी प्रहार का सामरिक महत्व

इस अभ्यास का मकसद केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक मजबूत रक्षा ढांचा तैयार करना भी है। भारत इस अभ्यास के माध्यम से अपनी सैन्य क्षमता को न केवल पूर्वी सेक्टर में बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे में ‘पूर्वी प्रहार’ केवल एक संयुक्त सैन्य अभ्यास नहीं है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

यह संयुक्त अभ्यास न केवल भारतीय रक्षा बलों को सामरिक मोर्चे पर प्रशिक्षित करेगा बल्कि देश की रक्षा संरचना को और अधिक सुदृढ़ करेगा।

India-China: क्या डेपसांग में पेट्रोलिंग को लेकर अटक गया है चीन? भारत-चीन के बीच तनाव बरकरार!

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India-China: पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और डेपसांग में भारत और चीन के बीच पेट्रोलिंग को लेकर चल रही बातचीत एक बार फिर से अटक गई है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच पेट्रोलिंग के तरीके और रूट्स पर सहमति बनाने को लेकर अभी तक कोई ठोस हल नहीं निकला है। वहीं, सेना का कहना है कि 21 अक्टूबर 2024 को दोनों देशों के बीच बनी सहमति के आधार पर दोनों पक्षों ने प्रभावी रूप से डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी कर ली है। वहीं भारतीय सेना ने अपने इलाकों में पेट्रोलिंग भी फिर से शुरू कर दी है। दोनों ही पक्ष आपसी सहमति का पालन कर रहे हैं, और किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं है।

क्या हैं चीन की आपत्तियां?

सूत्रों के अनुसार, चीन ने पेट्रोलिंग पॉइंट्स (PP) 10 और 11 पर भारतीय सेना के पेट्रोलिंग करने पर आपत्ति जताई है। इसके अलावा, PPs 11A, 12, और 13 पर भी पेट्रोलिंग की दूरी को लेकर चीन ने आपत्ति दर्ज की है।

भारत और चीन के बीच यह समझौता एक महीने पहले अक्टूबर में विदेश सचिव विक्रम मिस्री की तरफ से डेमचोक और डेपसांग में पेट्रोलिंग रूट्स को फिर से शुरू करने के एलान के बाद हुआ था। समझौते के बाद से दोनों सेनाओं के बीच पेट्रोलिंग के तरीके और दूरी को लेकर बातचीत चल रही है, लेकिन अभी ततक सहमति नहीं बन पाई है।

भारतीय सेना का पक्ष

भारतीय सेना के मुताबिक, 21 अक्टूबर 2024 को दोनों पक्षों के बीच सहमति बन चुकी है और भारत ने अपने पारंपरिक पेट्रोलिंग क्षेत्रों में पेट्रोलिंग फिर से शुरू कर दी है। सेना ने स्पष्ट किया है कि दोनों पक्ष सहमति का पालन कर रहे हैं और कहीं कोई रुकावट नहीं है। उन्होंने पेट्रोलिंग में किसी भी प्रकार की रुकावट को गलत बताया है।

India-China: क्या डेपसांग में पेट्रोलिंग को लेकर अटक गया है चीन? भारत-चीन के बीच तनाव बरकरार!

डेपसांग का सामरिक महत्व

डेपसांग का क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पूर्व में अक्साई चिन क्षेत्र है, जिस पर चीन ने 1950 के दशक से कब्जा कर रखा है। यहां स्थित पेट्रोलिंग पॉइंट्स चीन द्वारा बनाए गए नए हाईवे G695 के समीप हैं, जो इस इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों का संकेत देता है।

पेट्रोलिंग का तरीका

पेट्रोलिंग के दौरान दोनों पक्ष एक-दूसरे को सूचित करते हैं ताकि सीधे टकराव की स्थिति से बचा जा सके। हालांकि, भारतीय सेना की पेट्रोलिंग को लेकर चीन की बार-बार की आपत्तियां और असहमति इस प्रक्रिया को कठिन बना रही हैं। पेट्रोलिंग की सीमा और दूरी को लेकर चीनी पक्ष अपने रुख पर अड़ा हुआ है, जो भारतीय सेना के लिए चुनौती बनता जा रहा है।

CSG का रोल और सलाह

पेट्रोलिंग रूट्स और सीमाओं पर फैसला चीन स्टडी ग्रुप (CSG) के बाद तय किया गया है, जो 1975 में गठित हुआ था और वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं। यह समूह सरकार को चीन से जुड़े नीतिगत मामलों में सलाह देता है।

हालांकि भारतीय सेना ने स्पष्ट किया है कि पेट्रोलिंग में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं है और दोनों पक्षों में सहमति का पालन हो रहा है। सेना का कहना है कि 21 अक्टूबर 2024 को दोनों देशों के बीच बनी सहमति के आधार पर दोनों पक्षों ने प्रभावी रूप से डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी कर ली है। वहीं भारतीय सेना ने अपने इलाकों में पेट्रोलिंग भी फिर से शुरू कर दी है। दोनों ही पक्ष आपसी सहमति का पालन कर रहे हैं, और किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं है।

लेकिन जिस तरह से चीन की आपत्तियां और बातचीत में रुकावट सामने आई है, उससे लगता है कि क्षेत्र परी तरह से तनाव खत्म करने में लंबा वक्त लग सकता है। डेपसांग जैसे सामरिक महत्व वाले इलाके में पेट्रोलिंग की फिर से शुरुआत और सीमाओं पर दोनों देशों का भरोसा बहाल करना दोनों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है।