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Defence: लद्दाख में भारतीय सेना बनाना चाहती है गोला-बारूद के लिए स्टोरेज फैसिलिटी, पर्यावरण मंजूरी का है इंतजार

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Defence: भारतीय रक्षा मंत्रालय ने लद्दाख में अतिरिक्त गोला-बारूद के स्टोरेज के निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की मांग की है। सेना के इस कदम से सीमावर्ती इलाकों में तैनाती के दौरान जरूरी युद्ध सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इस योजना के तहत मुख्य रूप से पूर्वी लद्दाख के फॉर्वर्ड इलाकों में स्टोरेज कैपेसिटी बढ़ाने पर जोर दिया गया है, जो चीन सीमा के नजदीक है। ये वही क्षेत्र हैं, जहां 2020 में गलवां में हुई हिंसा के बाद भारत और चीनी सेना के बीच गतिरोध शुरू हुआ था।

इसके साथ ही सेना ने पैंगोंग त्सो झील के किनारे स्थित एक गांव लुकुंग और डुर्बुक इलाके में उपस्थिति मजबूत करने के प्रस्ताव भी पेश किए हैं। इन प्रस्तावों को इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच रक्षा मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय के पास भेजा था और ये अभी तक इन्हें मंजूरी का इंतजार है। सेना का कहना है कि लद्दाख में प्रारंभिक चरण में युद्ध के लिए आगे के क्षेत्रों में गोला-बारूद उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है।

Defence Forces Await Green Clearance for Strategic Ammo Storage in Ladakh

प्रस्तावों में हानले और फोटी ला के निकट सामरिक गोला-बारूद भंडारण सुविधा (Formation Ammunition Storage Facility) बनाने के साथ ही अन्य स्थानों पर अंडरग्राउंड कैवर्न बनाने का प्रावधान शामिल है। ये सुविधाएं उन महत्वपूर्ण स्थलों में बनाई जानी हैं, जहां सेना पहले से ही तैनात है। इसमें हानले, फोटी ला, पुंगुक और कोयूल जैसे क्षेत्रों में सैन्य बलों की स्थायी उपस्थिति बढ़ाने का भी प्रस्ताव है। फोटी ला, जो दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल पास में से एक है, हानले से केवल 30 किमी की दूरी पर स्थित है और यह डेमचोक तक जाने का मार्ग भी है।

वर्तमान में, गोला-बारूद का अधिकांश भंडारण अस्थायी ढंग से किया जा रहा है और यह हनले से लगभग 250 किमी तथा फोटी ला से 300 किमी दूर है। ऐसे में सैन्य सामग्री की आपूर्ति में रुकावटें आ रही हैं, जो ऑपरेशनल तैयारियों को प्रभावित कर रही हैं। उचित भंडारण सुविधा बनने से इस समस्या का समाधान होगा, जिससे जरूरत पड़ने पर यूनिट्स को तेजी से तैनात किया जा सकेगा।

इसके अलावा, अंडरग्राउंड कैवर्न बनाने का प्रस्ताव भी ऑपरेशनल तैयारियों को मजबूती देने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा के आस-पास के इलाकों में। इन कैवर्न सुविधाओं को क्षेत्र में सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारतीय सेना के पास पहले से ही कई अस्थायी सुविधाएं हैं, लेकिन 2020 में चीनी बलों के साथ हुई झड़पों के बाद से इन सुविधाओं को स्थायी रूप देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के तहत आने वाले इन क्षेत्रों में नई गोला-बारूद भंडारण सुविधाओं के निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है।

इस प्रकार, सेना की इस पहल का उद्देश्य न केवल भंडारण की सुविधा को पुख्ता करना है, बल्कि युद्ध की स्थिति में आवश्यक सामग्री की तेज़ आपूर्ति को भी सुनिश्चित करना है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम है।

Pinaka MBRL: भारत के पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम खरीदने का इच्छुक है फ्रांस! रक्षा निर्यात में होगा जबरदस्त इजाफा

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Pinaka MBRL: भारतीय रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत एक बड़ी सफलता की ओर इशारा करते हुए, फ्रांसीसी सेना के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि वे भारतीय पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम की समीक्षा कर रहे हैं। फ्रांस के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, ब्रिगेडियर जनरल स्टीफन रिचू ने कहा, “हम पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम का मूल्यांकन कर रहे हैं क्योंकि हमें ऐसे सिस्टम की जरूरत है। भारत उन अग्रणी देशों में से एक है जो ऐसे हथियारों का निर्माण कर रहे हैं।”

Pinaka MBRL- Pinaka multi-barrel rocket launcher system

जनरल रिचू इस समय भारत दौरे पर हैं, जहां वे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत और फ्रांस का संबंध केवल एक व्यापार साझेदारी से कहीं अधिक है। “यह केवल एक व्यापारिक साझेदारी नहीं है, बल्कि एक ऐसा सहयोग है जो दोनों देशों के साझा भविष्य का हिस्सा है,” उन्होंने कहा।

पिनाका MBRL सिस्टम, जिसे भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है, का उत्पादन सोलर इंडस्ट्रीज, लार्सन एंड टुब्रो, टाटा और ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड जैसी एजेंसियों द्वारा किया जा रहा है। यह रॉकेट लॉन्चर सिस्टम 75 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक अपने लक्ष्यों पर सटीक हमला कर सकता है और इसके विभिन्न संस्करण भी मौजूद हैं। पिनाका की पहले ही आर्मेनिया जैसे देशों में निर्यात के रूप में सफलता मिल चुकी है, और अब अन्य कई देश भी इस प्रणाली में रुचि दिखा रहे हैं।

इस साल की शुरुआत में, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान की एक उच्च-स्तरीय फ्रांसीसी यात्रा के दौरान, फ्रांसीसी अधिकारियों के साथ पिनाका प्रणाली पर भी चर्चा की गई थी।

भारत ने घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निर्यात बाजारों में जोर दिया है और नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2014 से लेकर अब तक रक्षा निर्यात को तीन गुना बढ़ाने में सफलता प्राप्त की है। फ्रांसीसी अधिकारी ने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय तकनीकी साझेदारी है, जिसमें स्कॉर्पीन जैसी पनडुब्बियों का संयुक्त निर्माण भी शामिल है।

फ्रांसीसी ब्रिगेडियर जनरल ने कहा कि दोनों देशों ने शक्ति नामक सैन्य अभ्यास श्रृंखला को आयोजित किया है और एक-दूसरे के राष्ट्रीय दिवस समारोहों में भी भागीदारी की है। इस साझेदारी के प्रतीक के रूप में, अगले शक्ति युद्धाभ्यास के 25वें संस्करण में फ्रांस भारतीय सेना की एक मजबूत टुकड़ी को अपने देश में आमंत्रित करेगा।

भारत के रक्षा उपकरणों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक फ्रांस है, जो अमेरिका के बाद आता है। कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का निर्यात फ्रांस को किया जा रहा है, जो दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग और विश्वास को दर्शाता है।

भारत और फ्रांस के बीच यह बढ़ता सहयोग न केवल दोनों देशों की सुरक्षा के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर स्थिरता और शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। पिनाका सिस्टम का फ्रांस द्वारा मूल्यांकन, भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल की सफलता की दिशा में एक और कदम साबित हो सकता है।

क्या हैं पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर (Pinaka MBRL) की खूबियां

  1. लंबी मारक क्षमता: पिनाका रॉकेट लॉन्चर 75 किलोमीटर तक की दूरी पर लक्ष्य को सटीकता से भेद सकता है। इसके विभिन्न संस्करणों के साथ, इसकी क्षमता को और भी बढ़ाया जा रहा है।
  2. तेज़ फायरिंग स्पीड: पिनाका प्रणाली में 12 रॉकेट के लांचर होते हैं जो केवल 44 सेकंड में एक साथ दाग सकते हैं। यह इसे युद्ध के मैदान में बेहद कारगर बनाता है, क्योंकि यह कम समय में अधिक लक्ष्य को नष्ट कर सकता है।
  3. सटीक निशाना: पिनाका में आधुनिक गाइडेंस और नेविगेशन प्रणाली लगी है, जिससे यह अपने लक्ष्य को बेहद सटीकता से हिट कर सकता है। यह प्रणाली युद्ध के दौरान किसी भी प्रकार के चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी सही परिणाम देती है।
  4. मोबिलिटी और फ्लेक्सिबिलिटी: पिनाका एक स्वदेशी मोबाइल प्रणाली है जिसे तेज़ी से तैनात किया जा सकता है। इसकी मोबाइल यूनिट्स को आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे इसे किसी भी ऑपरेशन के हिसाब से उपयोग किया जा सकता है।
  5. स्वदेशी निर्माण: पिनाका पूरी तरह से ‘मेक इन इंडिया’ पहल का हिस्सा है, जो भारत के रक्षा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। इसे DRDO ने लार्सन एंड टुब्रो (L&T), टाटा और ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड जैसे भारतीय कंपनियों के सहयोग से विकसित किया है।
  6. किफायती और प्रभावी: पिनाका प्रणाली न केवल प्रभावी है, बल्कि इसके निर्माण और रखरखाव की लागत भी कम है। इसे भारत के पहाड़ी, रेगिस्तानी और अन्य कठिन क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए डिजाइन किया गया है।
  7. ऑपरेशनल वेरिएंट्स: पिनाका के कई ऑपरेशनल वेरिएंट्स उपलब्ध हैं, जिसमें Mk-I, Mk-II और Mk-III जैसे उन्नत संस्करण शामिल हैं। Mk-II और Mk-III में और अधिक मारक दूरी और उन्नत फीचर्स जोड़े गए हैं।
  8. सफल निर्यात: पिनाका का उपयोग न केवल भारतीय सेना कर रही है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हो रहा है। आर्मेनिया ने भी इसे ऑर्डर किया है, और अन्य कई देश इस प्रणाली में रुचि दिखा रहे हैं।

 

Pantsir air defence missile-gun system: भारत आ रहा है यह खास एयर डिफेंस सिस्टम, भारत डायनामिक्स लिमिटेड और रूस की Rosoboronexport के बीच हुआ समझौता

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Pantsir air defence missile-gun system: गोवा। भारत की रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) ने रूस की सरकारी कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (ROE) के साथ पैंट्सिर वेरिएंट्स और एयर डिफेंस मिसाइल-गन सिस्टम के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सामरिक रक्षा सहयोग को और मजबूत करने का लक्ष्य है।

यह MoU गोवा में आयोजित पांचवें IRIGC उपसमूह की बैठक के दौरान BDL के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, कमोडोर ए. माधवराव (सेवानिवृत्त) और रूस के डिप्टी डायरेक्टर जनरल (नेवल डिपार्टमेंट), कोवालेन्को जर्मन के बीच संपन्न हुआ। यह साझेदारी भारतीय रक्षा उद्योग को नई ऊँचाइयों पर ले जाने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

Bharat Dynamics Limited and Rosoboronexport(ROE),Russia entered into MoU for cooperation on Pantsir variants,air defence missile-gun system
Bharat Dynamics Limited and Rosoboronexport(ROE),Russia entered into MoU for cooperation on Pantsir variants,air defence missile-gun system.

 

भारत-रूस रक्षा सहयोग का एक नया अध्याय

इस MoU पर हस्ताक्षर के बाद, कमोडोर माधवराव ने कहा, “यह साझेदारी भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक संबंधों को एक नई दिशा देने का कार्य करेगी। पैंट्सिर एयर डिफेंस सिस्टम का विकास दोनों देशों के साझा रक्षा उद्देश्यों की पूर्ति में महत्वपूर्ण साबित होगा।”

रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के उपमहानिदेशक कोवालेन्को जर्मन ने भी इस समझौते पर खुशी जताते हुए कहा कि “भारत के साथ यह सहयोग हमारी रक्षा साझेदारी को और गहरा बनाएगा और हमें भारतीय रक्षा जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने और पूरा करने में मदद करेगा।”

India to Welcome Advanced Pantsir Air Defence Missile-Gun System: MoU Signed Between Bharat Dynamics Limited and Russia's Rosoboronexport

क्या पैंट्सिर एयर डिफेंस सिस्टम

पैंटसिर एक अत्याधुनिक मिसाइल और गन प्रणाली है जो हवा से होने वाले खतरों को रोकने के लिए बनाई गई है। यह प्रणाली ड्रोन, हेलिकॉप्टर, लड़ाकू विमान और क्रूज मिसाइल जैसे खतरों का मुकाबला करने में सक्षम है। पैंटसिर की विशेषता है कि इसमें मिसाइल और गन दोनों शामिल हैं, जो इसे बेहद प्रभावी बनाती हैं।

भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?

देश की सीमा सुरक्षा को मजबूत करने और भविष्य के खतरों से निपटने के लिए पैंटसिर जैसे एयर डिफेंस सिस्टम का होना जरूरी है। यह करार भारत को न सिर्फ अपने रक्षा तंत्र को मजबूती देने में मदद करेगा बल्कि देश की स्वदेशी उत्पादन क्षमता को भी बढ़ावा देगा।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को मिलेगा बल

यह साझेदारी भारत में मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में सहायक होगी। भारत डायनामिक्स लिमिटेड इस समझौते के जरिए देश में अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों को स्थापित करने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा।

भारत-रूस के दीर्घकालिक संबंधों में एक और कदम

यह करार भारत और रूस के बीच लंबे समय से चले आ रहे रक्षा सहयोग का हिस्सा है। इस MoU के तहत भारत डायनामिक्स लिमिटेड को रूस से तकनीकी सहायता मिलेगी जिससे वह इस उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम के कुछ हिस्सों को भारत में ही विकसित कर सकेगा। यह “मेक इन इंडिया” पहल को भी बढ़ावा देगा और भारत की आत्मनिर्भरता में अहम भूमिका निभाएगा।

आगे की राह

यह समझौता भारत की रक्षा क्षमताओं को और मजबूती देगा और भारतीय सेना को अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम से सुसज्जित करने के दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा। दोनों देशों के बीच इस साझेदारी से न केवल रक्षा में तकनीकी उन्नति होगी, बल्कि भविष्य में नए अवसरों और क्षेत्रों में भी सहयोग के रास्ते खुलेंगे।

Indian Army: सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने पश्चिमी कमान की ऑपरेशनल तैयारियों का लिया जायजा

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Indian Army: भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने चंडीमंदिर स्थित पश्चिमी कमान के मुख्यालय का दौरा किया और कमान की ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा की। इस दौरान पश्चिमी कमान के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कातियार ने उन्हें विभिन्न ऑपरेशनल, प्रशिक्षण, लॉजिस्टिकल और प्रशासनिक पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी, जो कमान की क्षमता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

सेना कमांडर ने ऑपरेशनल थिएटर में चल रहे बल आधुनिकीकरण की पहलों और रणनीतिक सुधारों के बारे में जानकारी साझा की, जो युद्धक तैयारियों को और मजबूत करने की दिशा में उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही प्रशासनिक और लॉजिस्टिकल सुधारों की भी जानकारी दी गई, जो कमान के ऑपरेशनल उद्देश्यों का समर्थन करते हैं।

जनरल द्विवेदी ने पश्चिमी कमान के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्नत तकनीकों के एकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे ऑपरेशनल क्षमता को और तेज व प्रभावी बनाया जा सके। उन्होंने वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व को वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से अवगत रहने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि भारतीय सेना हमेशा बदलते खतरों का सामना करने के लिए तैयार रह सके।

Indian Army Chief General Upendra Dwivedi Reviews Operational Preparedness of Western Command

अपने दौरे के हिस्से के रूप में, जनरल द्विवेदी ने कठुआ-पठानकोट क्षेत्र में अग्रिम ऑपरेशनल इलाकों का भी दौरा किया, जहां उन्हें योल स्थित राइजिंग स्टार कोर के जीओसी ने सुरक्षा स्थिति और तैनात सैनिकों की तैयारियों के बारे में जानकारी दी। सीओएएस ने राइजिंग स्टार कोर के जवानों के पेशेवराना अंदाज और हाल ही में क्षेत्र में किए गए आतंकवाद-रोधी अभियानों में उनकी सफलता की प्रशंसा की, और उनकी सराहनीय सेवाओं को क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने में योगदान देने के लिए सराहा।

इस दौरे ने भारतीय सेना की उच्चतम ऑपरेशनल तैयारी को बनाए रखने, बलों का आधुनिकीकरण करने और एक मजबूत रणनीतिक रक्षा वातावरण को बढ़ावा देने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। जनरल द्विवेदी की इस यात्रा ने यह संदेश दिया कि भारतीय सेना लगातार अपनी तैयारियों को मजबूत कर रही है, ताकि देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा की जा सके।

Swatantrata Sainik Samman Yojana: स्वतंत्रता सेनानी सम्मान योजना में हुए ये बड़े बदलाव, इस तरह उठा सकते हैं फायदा

Swatantrata Sainik Samman Yojana: गृह मंत्रालय ने स्वतंत्रता सेनानी सम्मान योजना (SSSY) के नीति दिशानिर्देशों में महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है। यह योजना स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। नवीनतम संशोधन लाभार्थियों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने और उनकी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में एक कदम हैं। इस योजना में आखिरी बार 2014 में बड़े स्तर पर संशोधन किए गए थे।

मुख्य संशोधन:

जीवन प्रमाण पत्र जमा करने का नियम: अब लाभार्थियों को हर वर्ष नवंबर में केवल एक बार अपना जीवन प्रमाण पत्र जमा करना होगा। पहले, 80 वर्ष से अधिक आयु के लाभार्थियों को यह प्रमाण पत्र वर्ष में दो बार जमा करना होता था, जो अब सरल बना दिया गया है।पेंशन निलंबन और बहाली का नियम: यदि कोई लाभार्थी नवंबर 30 तक अपना जीवन प्रमाण पत्र जमा नहीं करता है, तो बैंक को उसकी पेंशन रोकने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, यदि तीन वर्षों के भीतर प्रमाण पत्र जमा किया जाता है, तो पेंशन बहाल की जा सकती है और लंबित राशि भी दे दी जाएगी। तीन वर्ष के बाद पेंशन को स्थायी रूप से रद्द माना जाएगा और पुनः बहाल करने के लिए मंत्रालय से विशेष अनुमति की आवश्यकता होगी, लेकिन पूर्व की लंबित राशि का भुगतान नहीं किया जाएगा।आश्रितों के लिए पेंशन स्थानांतरण: स्वतंत्रता सेनानी या उनके जीवनसाथी/पुत्री की मृत्यु के बाद पेंशन स्थानांतरण के लिए आवेदन एक वर्ष के भीतर जमा करना आवश्यक होगा। यदि एक वर्ष के बाद आवेदन जमा किया जाता है, तो इसे मंत्रालय द्वारा विचार के लिए भेजा जाएगा।आश्रित पेंशन की शुरुआत की तिथि: अब संशोधित दिशानिर्देशों के तहत आश्रितों की पेंशन स्वतंत्रता सेनानी की मृत्यु की तिथि से दी जाएगी, न कि आवेदन की तिथि से।पुनर्विवाह शर्त का हटाना: अब पेंशन प्राप्त करने वाले पति के पुनर्विवाह की स्थिति में भी पेंशन जारी रखने की शर्त को हटा दिया गया है।

ये हैं नए प्रावधान:

  • स्वतंत्रता सेनानी की मृत्यु के बाद उनके लाभ के लिए आवेदन करने वाले आश्रित (जीवनसाथी और अविवाहित/बेरोजगार पुत्रियाँ) को मृत्यु के तीन वर्ष के भीतर आवेदन करना अनिवार्य होगा।
  • स्वतंत्रता सेनानियों के लिए नए आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
  • यह संशोधन 10 अक्टूबर, 2024 से लागू हो चुके हैं और इनका उद्देश्य SSSY के तहत पेंशन वितरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाना है। सरकार का मानना है कि इन बदलावों से स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को सम्मान मिलेगा और उनके परिवारों को समय पर और उचित सहायता मिल सकेगी।
  • यह नई नीतियां न केवल सम्मानित स्वतंत्रता सेनानियों की गरिमा बनाए रखने में सहायक हैं, बल्कि उनके परिवारों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से भी बनाई गई हैं।

Super Sukhoi SU-30: 2028 में सामने आएगा भारतीय वायुसेना का पहला ‘सुपर सुखोई’, पांचवी पीढ़ी के फाइटर जेट्स को देगा टक्कर!

Super Sukhoi SU-30: भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना (IAF) के 84 सुखोई-30MKI लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने के उद्देश्य से “सुपर सुखोई” प्रोग्राम की योजना को अंतिम रूप देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह परियोजना भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को आधुनिक बनाने में सहायक साबित होगी। हाल ही में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने इस लगभग 63,000 करोड़ रुपये की परियोजना को 30 नवंबर, 2023 को मंजूरी दी, जो अब प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) के पास अंतिम स्वीकृति के लिए भेजी जा रही है।

सीसीएस की मंजूरी मिलने पर प्रोजेक्ट की औपचारिक शुरुआत होगी, और तीन से साढ़े तीन साल में पहला अपग्रेडेड सुखोई विमान तैयार होने की उम्मीद है। पूरी विकास प्रक्रिया और फ्लाइट टेस्टिंग में करीब सात साल का समय लगेगा, जिसमें एडवांस एवियोनिक्स, नए रडार सिस्टम, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट्स और शक्तिशाली इंजन जैसे अपग्रेड शामिल होंगे। सबसे पहले, दो सुखोई विमानों को सुपर सुखोई कॉन्फ़िगरेशन के तहत मॉडिफाई किया जाएगा ताकि नए सिस्टम की टेस्टिंग की जा सके।

84 सुखोई फाइटर जेट्स के इस बड़े अपग्रेड प्रोग्राम को पूरा करने में लगभग 15 साल का समय लगेगा। इस योजना के तहत भारतीय वायुसेना का सुखोई-30MKI विमान पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के करीब पहुँच जाएगा, हालांकि इसमें स्टेल्थ फीचर नहीं होंगे, जो आमतौर पर पांचवी पीढ़ी के फाइटर जेट की मुख्य विशेषता माने जाते हैं।


सुपर सुखोई अपग्रेड प्रोग्राम की मुख्य विशेषताएं

एडवांस कॉकपिट और एवियोनिक्स

नए कॉकपिट में एडवांस एवियोनिक्स और मल्टीफंक्शनल डिस्प्ले होंगे, जिससे पायलट की सिचुएशनल अवेयरनेस में सुधार होगा और कार्यभार भी कम होगा।

एडवांस रडार और एवियोनिक्स

सुपर सुखोई में Virupaksha AESA रडार का इस्तेमाल होगा, जो डिटेक्शन रेंज, सटीकता और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर क्षमताओं को कई गुना बढ़ा देगा। यह रडार मल्टी-टारगेट एंगेजमेंट में सहायक साबित होगा।

शक्तिशाली इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली

इस अपग्रेड के तहत विमान में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सुविधाएं जोड़ी जाएंगी, जिससे यह विमान अत्याधुनिक और चुनौतीपूर्ण वातावरण में कार्य करने में सक्षम होगा। इसमें बेहतर जैमिंग क्षमताएं और डिफेंसिव काउंटरमेजर भी होंगे।

शक्तिशाली इंजन

सुपर सुखोई में मौजूदा AL-31F इंजन का ही एडवांस वर्जन इस्तेमाल किया जाएगा, जो बेहतर थ्रस्ट और ईंधन दक्षता प्रदान करेगा। इससे विमान की प्रदर्शन क्षमता और ऑपरेशनल रेंज बढ़ेगी।

नेटवर्क-केंद्रित क्षमताएं

अपग्रेड के बाद सुपर सुखोई नेटवर्क-केंद्रित युद्ध प्रणाली से लैस होगा, जिससे यह रियल-टाइम डेटा साझा कर सकेगा। यह क्षमता इसे अन्य विमानों, ग्राउंड स्टेशनों और नौसेना के साथ डेटा शेयरिंग में सक्षम बनाएगी।

उन्नत हथियार प्रणाली

अपग्रेडेड सुखोई में विभिन्न प्रकार के उन्नत हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकेगा, जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें भी संभावित रूप से शामिल हो सकती हैं। इससे सुखोई की लड़ाकू क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।


मेक इन इंडिया को बढ़ावा

सुपर सुखोई अपग्रेड भारतीय-रूसी रक्षा साझेदारी को और मजबूत करेगा, जिसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यह प्रोजेक्ट भारत की रक्षा निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने और मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देने का एक अहम कदम है।

2028 में जब यह अपग्रेडेड सुखोई पहली बार सामने आएगा, तब यह भारत की सैन्य शक्ति को एक नई ऊंचाई प्रदान करेगा।

Donald Trump 2.0: ट्रंप की फिर से सत्ता में वापसी से LCA Tejas को जल्द मिल सकता है नया इंजन, रफ्तार पकड़ेंगे रक्षा सौदे

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Donald Trump impact on India-US defense deals: डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के राष्ट्रपति पद संभालने के साथ, भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों (Defence Deals) में तेजी आने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। एतिहासिक रूप से सैन्य संबंधों को मजबूत करने पर केंद्रित ट्रंप प्रशासन, प्रमुख रक्षा सौदों को प्राथमिकता दे सकता है, ताकि वैश्विक रक्षा बाजार में अमेरिकी हथियारों की प्रतिस्पर्धा बरकरार रहे। साथ ही ट्रंप प्रशासन की कोशिश हो सकती है, जिन रक्षा सौदों में देरी हो रही है, उन्हें सुलझाया और तेजी से आगे बढ़ाया जाए। ताकि भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग बढ़ाने में मदद मिल सके।

भारत के डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट्स पर अमेरिका की नजर

वर्तमान में भारत के सबसे बड़े लंबित डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट्स में से एक, भारतीय वायु सेना का 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) खरीदने का प्रस्ताव है। इस दौड़ में रूस के सुखोई-35 और मिग-35, फ्रांस का राफेल, अमेरिका का एफ-21 और एफ/ए-18, स्वीडन का ग्रिपेन और यूरोफाइटर टाइफून शामिल हैं।

हाल ही में, भारतीय वायु सेना की तरफ से आयोजित तरंग शक्ति बहुराष्ट्रीय वायु अभ्यास में अंतरराष्ट्रीय रक्षा निर्माताओं ने अपने विमानों का प्रदर्शन किया। अमेरिका ने अपने एडवांस एफ-21 फाइटिंग फाल्कन, जो एफ-16 का आधुनिक संस्करण है, को इस प्रतिस्पर्धा में एक प्रमुख दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया। ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद अमेरिका इस सौदे के लिए भारत के साथ डील की कोशिशें कर सकता है।

ड्रोन और परमाणु ऊर्जा समझौतों पर प्रगति

भारत ने हाल ही में 3 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारत में अमेरिकी तकनीकी सहायता से 31 एमक्यू-9बी सी गार्जियन और स्काई गार्जियन सशस्त्र ड्रोन का निर्माण होगा। इस समझौते के अंतर्गत, जनरल एटॉमिक्स ने भारत में एक वैश्विक मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल (एमआरओ) सुविधा स्थापित करने का वादा भी किया है। ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में इस डील के कार्यान्वयन में तेजी आने की उम्मीद की जा सकती है।

इसके अलावा, भारत-अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा सहयोग में भी विस्तार के लिए संभावनाएं बढ़ गई हैं। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर तकनीक के संयुक्त विकास पर चर्चा हो रही है। जिस पर ट्रंप प्रशासन भी जोर दे सकता है।

रक्षा उत्पादन साझेदारी को मजबूत करना

जीई एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच जीई एफ-414 जेट इंजनों का भारत में सह-उत्पादन और तकनीकी हस्तांतरण पर वार्ता जारी है। ट्रंप प्रशासन के तहत इस तरह के हाई-प्रोफाइल अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और मजबूत बनाने का प्रयास किया जा सकता है।

भारतीय सेना में बढ़ रहे हैं अमेरिकी हथियार

साल 2000 से लेकर अब तक भारत ने अमेरिका से कई प्रमुख सैन्य उपकरण खरीदे हैं, जिनमें अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, एजीएम-114 हेलफायर एंटी-टैंक मिसाइल, स्टिंगर पोर्टेबल सरफेस-टू-एयर मिसाइल, चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर, सी-130 सुपर हरक्यूलिस, सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे अत्याधुनिक रक्षा उपकरण शामिल हैं।

ट्रंप के कार्यकाल का भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों पर प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप का पिछला कार्यकाल अमेरिकी-भारत सैन्य संबंधों को सुदृढ़ बनाने पर केंद्रित रहा, जिसमें पाकिस्तान पर दबाव डालना भी शामिल था। ट्रम्प के प्रशासन ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर की सहायता राशि रोक दी थी, जो दिखाता था कि भारत अमेरिका की प्राथमिकताओं में शामिल है।

इसके साथ ही, ट्रंप के कार्यकाल में भारत के रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद पर भी अमेरिका ने सीएएटीएसए (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी, हालांकि इसके लिए भारत पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए।

वहीं ट्रंप ने चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए क्वॉड गठबंधन को फिर से जीवित करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। अब जब ट्रंप की सत्ता में वापसी की संभावना है, विशेषज्ञ उनकी नीतियों के विकसित होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण के चलते, यह संभावित है कि अमेरिका भारत के साथ रक्षा सहयोग को और मजबूत करेगा, जिससे भारत को नई डील्स और संयुक्त उत्पादन में सहयोग प्राप्त होगा।

10 Years of OROP: वन रैंक वन पेंशन के पूरे हुए 10 साल; जानें पूर्व सैनिकों को फायदा हुआ या नुकसान!

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10 Years of OROP: वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के लागू होने के 10 साल पूरे हो गए हैं। इस अवसर पर रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़े दशकों से चली आ रही इस योजना पर अब तक किए गए वित्तीय व्यय को दर्शाते हैं। इस योजना का उद्देश्य समान सेवा अवधि वाले रैंक के पूर्व सैनिकों के बीच पेंशन में असमानता को दूर करना है। आइए जानते हैं कि OROP पर अब तक कितना खर्च हुआ है और इसके प्रमुख चरणों के वित्तीय आंकड़े क्या कहते हैं:

1. जानें कितना हुआ खर्च

पिछले 10 वर्षों में OROP के लिए वित्तीय आवंटन में तेजी से वृद्धि हुई है। 2014 में इसके लागू होने के बाद से अब तक इस योजना पर कुल 1,24,974.34 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। OROP के विभिन्न चरणों (OROP-I, OROP-II और मौजूदा OROP-III) में इस व्यय में लगातार वृद्धि देखी गई है:

  • OROP-I (2014): पहले चरण में 20.60 लाख पेंशनर्स को लाभ पहुंचाया गया और कुल 82,203.08 करोड़ रुपये का खर्च हुआ।
  • OROP-II: इस चरण में लाभार्थियों की औसत संख्या बढ़कर 25.14 लाख हो गई, जिससे व्यय में और वृद्धि हुई।
  • OROP-III (2024): वर्तमान में यह चरण 21.56 लाख पेंशनर्स को लाभ पहुंचा रहा है, जिसमें सितंबर 2024 तक 82,203.08 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया।

2. OPRO-3 में कितना हुआ खर्च

2024 में शुरू हुए OROP-III में जुलाई 2024 से फरवरी 2025 तक अनुमानित वित्तीय प्रभाव 4,468.83 करोड़ रुपये का रहा। सितंबर 2024 तक इसमें से 895.53 करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं, जिससे सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवारों को लाभ हुआ है।

3. पेंशन संशोधन और नीति

OROP का एक प्रमुख पहलू पेंशन का हर पांच साल में पुनरीक्षण है, जिससे पेंशन को वर्तमान वेतनमान के अनुसार समायोजित किया जाता है। जुलाई 2024 में नवीनतम संशोधन से सरकार ने इस नीति को बरकरार रखने की अपनी मंशा को दर्शाया है।

पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों पर प्रभाव

OROP योजना वर्तमान में 25.14 लाख से अधिक लाभार्थियों को सहायता प्रदान करती है। इस योजना ने न केवल आर्थिक संबल दिया है, बल्कि हमारे देश की रक्षा में योगदान देने वाले पूर्व सैनिकों का मनोबल भी ऊंचा किया है।

OROP के 10 साल

OROP के 10 साल पूरे होने के साथ, यह योजना पूर्व सैनिकों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के मजबूत संकल्प को दर्शाती है। 2014 से अब तक 1.24 लाख करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया गया है, जिससे इस योजना की व्यापकता और इसकी निरंतरता का संकेत मिलता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर ट्वीट किया: “आज के दिन #OneRankOnePension (OROP) लागू हुई थी। यह हमारे बहादुर पूर्व सैनिकों के साहस और बलिदान को एक श्रद्धांजलि थी। पिछले दशक में लाखों पेंशनर्स और उनके परिवारों ने इस ऐतिहासिक पहल से लाभ उठाया है। OROP सिर्फ आंकड़े नहीं है, बल्कि हमारी सरकार की हमारे सशस्त्र बलों की भलाई के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी X पर पोस्ट कर प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “OROP प्रधानमंत्री @narendramodi जी की नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। उनकी सरकार पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों की देखभाल के लिए प्रतिबद्ध है। OROP के माध्यम से 25 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों को लाभ मिला है।” OROP योजना के ये 10 साल एक मजबूत और स्थायी नीति के माध्यम से हमारे देश के बहादुर पूर्व सैनिकों की सेवा का सम्मान करते हैं।

US Election Results 2024: ट्रंप का फिर से राष्ट्रपति बनना भारत के लिए कितना फायदेमंद और कितना घातक! जानिए सब कुछ

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US Election Results 2024: डोनाल्ड ट्रम्प 2024 के चुनाव में उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए तैयार हैं। ट्रम्प की वापसी भारत के लिए कुछ अच्छे और कुछ बुरे संकेत लेकर आ सकती है। आइए उनकी नीतियों का विश्लेषण करें और समझें कि इसका भारत पर क्या असर पड़ सकता है।

आइए शुरुआत अच्छी खबरों से करते हैं…

1. विदेश नीति: भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती

ट्रम्प हमेशा से ही भारत और अमेरिका के संबंधों को मजबूत बनाने के पक्षधर रहे हैं। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने भारत के साथ कई बड़े रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और “क्वाड” जैसे समूहों को फिर से जीवंत किया था। चीन पर सख्त रुख अपनाना ट्रम्प की नीति का हिस्सा था, जो भारत के लिए फायदे का सौदा था, और इसके जारी रहने की संभावना है।

2. रूस के साथ संबंधों में हो सकते हैं सुधार

2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत की तटस्थ नीति और रूस से करीबी संबंधों को लेकर पश्चिम के साथ कुछ तनाव देखने को मिला है। हालांकि, ट्रम्प के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संबंध हैं, जिससे वे रूस के साथ सकारात्मक बातचीत की नीति अपना सकते हैं। ट्रम्प भी यूक्रेन युद्ध का जल्द अंत चाहते हैं, जिससे पश्चिमी देशों की ओर से भारत पर रूस के साथ संबंधों के लिए दबाव कम हो सकता है, जो दिल्ली के लिए सुखद संकेत होगा।

3. राजनीतिक हस्तक्षेप का अभाव

अमेरिकी नेता अक्सर भारत में लोकतंत्र और धार्मिक स्वतंत्रता पर विचार व्यक्त करते हैं, जो भारत को कुछ समय से खटकता रहा है। ट्रम्प के साथ ऐसा नहीं है। अपने पिछले कार्यकाल में, उन्होंने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप नहीं किया था, जैसे कि 2019 में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

4. मोदी-ट्रम्प के निजी संबंध

व्यक्तिगत संबंधों का राजनयिक असर होता है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्रम्प के साथ अच्छा संबंध है। ट्रम्प ने पहले भी मोदी की प्रशंसा की है, जिससे अगले चार वर्षों तक भारत-अमेरिका संबंधों में स्थिरता की उम्मीद की जा सकती है।

लेकिन ट्रम्प की वापसी कुछ चिंताएं भी ला सकती है।

1. व्यापार संबंध: व्यापारिक असहमति

ट्रम्प भारत को व्यापार प्रणाली का “दुरुपयोगकर्ता” मानते हैं और अमेरिकी आयात पर भारतीय शुल्कों से नाखुश हैं। ट्रम्प चाहते हैं कि अमेरिका में आयातित सभी वस्तुओं पर 20% शुल्क लगे। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर ट्रम्प के शुल्क लागू होते हैं, तो 2028 तक भारत की जीडीपी में 0.1% की कमी आ सकती है। इसके अलावा, उन्होंने चीनी वस्तुओं पर 60% का शुल्क लगाने का प्रस्ताव भी रखा है, जो एक अस्थिर वैश्विक व्यापार युद्ध को जन्म दे सकता है, जिससे भारत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

बाइडेन प्रशासन ने भारत की सेमीकंडक्टर्स और उन्नत तकनीक जैसे क्षेत्रों में उत्पादन क्षमताओं को बढ़ावा देने में समर्थन दिया है, लेकिन ट्रम्प इस मामले में कितने सहयोगी होंगे, यह स्पष्ट नहीं है।

2. इमिग्रेशन पर सख्त रुख

अमेरिका में लाखों भारतीय कार्य वीजा पर हैं। ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में H1B वीजा की पहुंच को सीमित कर दिया था और इसे अमेरिका की समृद्धि की “चोरी” तक कहा था। हालांकि उन्होंने इमिग्रेशन में सुधार की संभावना भी जताई है, लेकिन उनके रुख को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है, जिससे भारतीयों को नौकरी और स्थायी निवास में परेशानी हो सकती है।

3. सरप्राइज देते हैं ट्रम्प

ट्रम्प का अस्थिर व्यवहार उनकी सबसे बड़ी पहचान है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर पर मध्यस्थता का प्रस्ताव भी दिया था, जो भारत को पसंद नहीं आया था। उन्होंने तालिबान के साथ समझौता कर अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से बाहर कर दिया था, जो भारतीय हितों के खिलाफ था। इसके अलावा, उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों के साथ टकराव का रुख अपनाया है और चीन की ओर से ताइवान की सुरक्षा पर भी अस्पष्ट रुख रखा है। यह एशिया में अमेरिकी गठबंधनों को कमजोर कर सकता है, जो चीन की स्थिति को मजबूत करेगा और भारत के लिए चुनौती बन सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए अवसर और चुनौतियां दोनों लेकर आएगी। उनकी विदेश नीति में भारत के लिए कई सकारात्मक संभावनाएं हैं, खासकर चीन और रूस के मुद्दों पर। लेकिन व्यापारिक मामलों, इमिग्रेशन और अप्रत्याशितता के कारण भारत को सतर्क रहने की जरूरत होगी।

Exercise Poorvi Prahaar: पूर्वी लद्दाख में डिसइंगेजमेंट के बाद पूर्वोत्तर में होने जा रही है बड़ी एक्सरसाइज, तीनों सेनाएं लेंगी हिस्सा

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Exercise Poorvi Prahaar: पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ डिसइंगेजमेंट के कुछ ही दिनों बाद, भारत एक बड़ी ट्राई-सर्विस एक्सरसाइज “पूर्वी प्रहार” (Poorvi Prahaar) के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह मेगा संयुक्त अभ्यास 8 नवंबर से शुरू होकर अगले 10 दिनों तक चलेगा और इसमें भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना अपने प्रमुख रक्षा संसाधनों को पूर्वी सेक्टर में सक्रिय करेंगे।

क्या है ‘पूर्वी प्रहार’ अभ्यास की विशेषता?

यह अभ्यास 8 नवंबर से ईस्टर्न सेक्टर में शुरू होगा। इसमें भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना अपने-अपने एसेट्स को एकीकृत युद्ध अभ्यास में शामिल करेंगी, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर में चीन के साथ संभावित किसी भी गतिरोध का मजबूती से सामना करना है। यह अभ्यास विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के आसपास के क्षेत्र में सेना की क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, जहां हाल के सालों में भारत-चीन के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है।

थलसेना की भूमिका

इस अभ्यास में भारतीय सेना अपने महत्वपूर्ण एसेट्स को सक्रिय करेगी, जिसमें इन्फैंट्री कॉम्बैट, तोपखाने (आर्टिलरी गंस), LCH (लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर) और UAV (अनमैन्ड एरियल वेहिकल्स) शामिल होंगे। इन संसाधनों के माध्यम से सेना अपनी युद्ध तैयारियों को और मजबूत करेगी और विभिन्न लड़ाई परिस्थितियों में एकीकृत रणनीति का अभ्यास करेगी।

वायुसेना की तैयारी

भारतीय वायुसेना पूर्वी सेक्टर के कई प्रमुख एयरबेस जैसे कोलकाता, हाशिमारा, पानागढ़ और कलाईकुंडा को इस अभ्यास में शामिल करेगी। इसमें वायुसेना के आधुनिक और शक्तिशाली एसयू-30 फाइटर जेट, राफेल फाइटर जेट, सी-130जे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, हॉक और अन्य हेलीकॉप्टर जैसे युद्ध संसाधन भी हिस्सा लेंगे। इनका उद्देश्य सेना के साथ एकीकृत युद्धाभ्यास को कुशलता से अंजाम देना है।

नौसेना की भूमिका

भारतीय नौसेना भी इस अभ्यास में अपनी मारकोस कमांडो (विशेष बलों) के साथ शामिल होगी। नौसेना का यह योगदान महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पूर्वी क्षेत्र में जलमार्गों की सुरक्षा और संचालन में मजबूती आएगी।

पूर्वी सेक्टर में भारत-चीन वार्ता

सूत्रों के अनुसार, डेमचोक और देपसांग के क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट के बाद, भारत पूर्वी सेक्टर में चीन के साथ तनाव को कम करने के लिए बातचीत में लगा हुआ है। यह समझौता यांगत्से और तवांग क्षेत्र में चीनी सेना (PLA) की पेट्रोलिंग अधिकारों को फिर से बहाल करने पर केंद्रित है। बता दें कि दिसंबर 2022 में हुए एक टकराव के बाद भारतीय सेना ने इस क्षेत्र में PLA की पेट्रोलिंग पर रोक लगा दी थी।

पूर्वी प्रहार का सामरिक महत्व

इस अभ्यास का मकसद केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक मजबूत रक्षा ढांचा तैयार करना भी है। भारत इस अभ्यास के माध्यम से अपनी सैन्य क्षमता को न केवल पूर्वी सेक्टर में बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे में ‘पूर्वी प्रहार’ केवल एक संयुक्त सैन्य अभ्यास नहीं है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

यह संयुक्त अभ्यास न केवल भारतीय रक्षा बलों को सामरिक मोर्चे पर प्रशिक्षित करेगा बल्कि देश की रक्षा संरचना को और अधिक सुदृढ़ करेगा।

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