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Delhi Republic Day Tableau: गणतंत्र दिवस परेड में दिल्ली के झांकी विवाद पर रक्षा मंत्रालय ने दिया जवाब, बताया- ये है सच्चाई

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Delhi Republic Day Tableau: गणतंत्र दिवस परेड में दिल्ली की झांकी शामिल न होने के आरोपों पर रक्षा मंत्रालय ने अपनी सफाई दी है। आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविंद केजरीवाल द्वारा केंद्र सरकार पर लगाए गए पक्षपात के आरोपों को खारिज करते हुए मंत्रालय ने झांकी चयन प्रक्रिया को “पारदर्शी और निष्पक्ष” बताया। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर आरोप लगाया है कि उसने 2025 गणतंत्र दिवस पर दिल्ली की झांकी को जानबूझकर बाहर रखा है। केजरीवाल ने इसे दिल्लीवासियों के खिलाफ “भाजपा की नाराजगी” करार दिया। उन्होंने कहा, “दिल्ली देश की राजधानी है, उसकी झांकी हर साल शामिल होनी चाहिए। ये कैसी राजनीति है? वे दिल्ली और उसके लोगों से इतनी नफरत क्यों करते हैं?”

Delhi Republic Day Tableau: Defence Ministry Clarifies Controversy

झांकी चयन प्रक्रिया: क्या है सच?

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, गणतंत्र दिवस परेड के लिए झांकी चयन का फैसला रोटेशन सिस्टम के तहत किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि हर तीन वर्षों में 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) को परेड में शामिल होने का मौका मिले।

सूत्रों ने बताया, “2025 के चक्र के लिए दिल्ली को प्रारंभिक सूची में रखा गया था। दिल्ली की झांकी पिछले दो दशकों में सात बार परेड का हिस्सा रही है। लेकिन  इस बार, दिल्ली की प्रस्तावित झांकी चयन समिति के मानकों पर खरा नहीं उतर सकी।” यह भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस साल झांकी प्रस्ताव ही पेश नहीं किए।

इस प्रक्रिया को पारदर्शिता का प्रमाण देते हुए मंत्रालय ने खुलासा किया कि मिजोरम और सिक्किम ने इस वर्ष कोई प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप चयन बैठक में शामिल नहीं हुए। इसके चलते पांच अतिरिक्त राज्यों — पंजाब, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश को मौका दिया गया।

AAP के आरोप बेबुनियाद: मंत्रालय

रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “चयन प्रक्रिया में पक्षपात के आरोप निराधार हैं। पंजाब, जहां आम आदमी पार्टी सत्ता में है, इस साल हिस्सा ले रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष है।”

अधिकारी ने यह भी बताया कि दिल्ली की झांकी पिछले दो दशकों में सात बार परेड में शामिल हो चुकी है। यह औसत अन्य राज्यों की भागीदारी के समान है। इसके अलावा, गुजरात और उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य पांच राज्यों ने हाल के वर्षों में दिल्ली से अधिक बार परेड में भाग लिया है।

राजनीतिक विवाद पर मंत्रालय का रुख

मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया है कि वे चयन प्रक्रिया को राजनीति से जोड़ने के बजाय गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाली प्रस्तावित झांकी की क्वॉलिटी और क्रिएटिविटी पर ध्यान दें। एक अधिकारी ने कहा, “हम सभी प्रतिभागियों को इंस्पीरेशनल झांकियां तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो परेड के विषयों के अनुरूप हों।”

केजरीवाल का आरोप: दिल्ली के खिलाफ पक्षपात?

पूर्व दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार दिल्ली और दिल्लीवासियों के प्रति अपनी “नाराजगी” निकाल रही है।

केजरीवाल ने कहा, “दिल्ली की झांकी हर साल गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होनी चाहिए, क्योंकि यह देश की राजधानी है। यह कैसी राजनीति है? केंद्र सरकार दिल्ली और इसके लोगों से इतनी नफरत क्यों करती है? यदि वे दिल्लीवासियों से इतना बैर रखते हैं, तो दिल्ली क्यों उन्हें वोट दे?”

गणतंत्र दिवस की तैयारियों पर विवाद

यह विवाद तब सामने आया है जब 26 जनवरी, 2025 को देश 76वां गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। झांकी चयन प्रक्रिया में विवाद पहली बार नहीं है। हर साल कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपनी झांकियों के चयन न होने पर नाराजगी व्यक्त करते हैं।

झांकी चयन प्रक्रिया: कैसे होता है चुनाव?

गणतंत्र दिवस परेड के लिए झांकी चयन प्रक्रिया में रचनात्मकता, थीम, और प्रस्तुति के कई पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है। चयन समिति में जाने-माने कलाकार, डिजाइन विशेषज्ञ, और संस्कृति एवं इतिहास के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।

झांकियों को निम्नलिखित बिंदुओं पर आंका जाता है:

  1. थीम की प्रासंगिकता: झांकी का विषय राष्ट्रीय महत्व का होना चाहिए।
  2. क्रिएटिविटी और इनोवेशन : झांकी का डिज़ाइन अनूठा और आकर्षक होना चाहिए।
  3. तकनीकी क्षमता: झांकी का निर्माण ऐसा होना चाहिए कि वह परेड के दौरान सुचारू रूप से संचालित हो सके।

दिल्ली की झांकी: पिछले प्रदर्शन

दिल्ली की झांकी ने पिछले वर्षों में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित किया है। इनमें स्वच्छ भारत अभियान, चांदनी चौक, और किला-ए-मुबारक जैसे विषयों को दिखाया गया। हाल के वर्षों में दिल्ली की झांकी ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा भी हासिल की।

क्या है झांकी विवाद का भविष्य?

झांकी चयन प्रक्रिया को लेकर हर साल राजनीति और विवाद सामने आते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि झांकी चयन को और अधिक पारदर्शी और सहभागी बनाने की आवश्यकता है। इससे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह भरोसा मिलेगा कि उनकी झांकी को निष्पक्ष रूप से परखा गया है।

गणतंत्र दिवस परेड, भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है। ऐसे में यह जरूरी है कि झांकियों का चयन केवल उनकी गुणवत्ता और विषयवस्तु के आधार पर हो, न कि राजनीतिक दबाव या विवादों के आधार पर।

Defence Ministry IAF: भारतीय वायुसेना की कमियों को दूर करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने बनाई उच्चस्तरीय समिति

Defence Ministry IAF: भारतीय वायुसेना (IAF) की घटती क्षमता और महत्वपूर्ण संसाधनों की कमी को देखते हुए, सरकार ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है। यह समिति वायुसेना की क्षमता बढ़ाने के लिए नए रोडमैप पर काम करेगी। इस समिति की अध्यक्षता रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह करेंगे। सरकारी सूत्रों के मुताबिक यह समिति तब बनाई गई है, जब पिछले महीने राष्ट्रीय राजधानी में वायुसेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान भारतीय वायुसेना ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को विस्तृत प्रेजेंटेशन दी गई थी।

Defence Ministry IAF: Defence Ministry Forms High-Level Panel to Address IAF Gaps
Defence Secretary Rajesh Kumar Singh

समिति का उद्देश्य वायुसेना की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए स्वदेशी डिजाइन और विकास परियोजनाओं के साथ-साथ अधिग्रहण परियोजनाओं पर काम करना है। एक सूत्र ने बताया, “तीनों सेनाओं में, वायुसेना के पास सबसे महत्वपूर्ण क्षमता का अभाव है। समिति जनवरी के अंत तक अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।”

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Defence Ministry IAF: समिति के प्रमुख सदस्य

समिति में रक्षा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ सदस्य भी शामिल हैं, जैसे कि रक्षा उत्पादन सचिव संजीव कुमार, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख डॉ. समीर वी कामत, और वायुसेना के डिप्टी चीफ एयर मार्शल टी सिंह, जो समिति के सचिव सदस्य हैं। रक्षा वित्त सचिव ने भी पिछले सप्ताह हुई समिति की पहली बैठक में भाग लिया। उम्मीद जताई जा रही है कि समिति अपनी रिपोर्ट अगले दो से तीन महीनों में रक्षा मंत्री को पेश करेगी।

भारतीय वायुसेना के पास केवल 30 फाइटर स्क्वाड्रन

भारतीय वायुसेना अब तक केवल 36 नए राफेल लड़ाकू विमान शामिल कर पाई है, जो 4.5-प्लस जेनरेशन क्षमता वाले हैं। लेकिन वायुसेना को और अधिक संख्या में ऐसे विमानों की जरूरत है ताकि चीन द्वारा पेश खतरों का सामना किया जा सके। चीन, जो पाकिस्तान वायुसेना को भी हथियार और उपकरण उपलब्ध करवा रहा है, अब बांग्लादेश वायुसेना को भी लड़ाकू विमान दे सकता है।

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चीनी वायुसेना द्वारा भारत के सामने वाले सभी हवाई अड्डों, जैसे होटन, काशगर, गारगुंसा, शिगात्से, बांगडा, न्यिंगची और होपिंग में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों, बमवर्षकों और ड्रोन की तैनाती के बाद, भारत को अपनी वायुसेना की ताकत बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है। चीन ने इन हवाई अड्डों को नई रनवे, मजबूत शेल्टर, ईंधन और गोला-बारूद स्टोरेज सुविधाओं से लैस किया है।

वर्तमान में भारतीय वायुसेना केवल 30 लड़ाकू स्क्वाड्रन के साथ काम कर रही है, जबकि चीन और पाकिस्तान से संभावित खतरों से निपटने के लिए 42.5 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है।

Defence Ministry IAF: 114 नए लड़ाकू विमानों की परियोजना पर अनिश्चितता

समिति के सामने एक बड़ा सवाल 114 नए 4.5-जनरेशन लड़ाकू विमानों की निर्माण परियोजना पर आ रही अनिश्चितता को हल करना होगा। यह परियोजना लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये की है, जिसमें विदेशी सहयोग के साथ भारत में उत्पादन किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, “कुछ विमान सीधे खरीदे जाएंगे, जबकि बाकी का उत्पादन भारत में होगा।”

हथियारों और मिसाइलों की कमी

वायुसेना के लड़ाकू विमानों में हवाई-से-हवाई और हवाई-से-भूमि मिसाइलों की कमी उत्तरी सीमा पर चीन के मुकाबले बढ़ रही है। इसके अलावा, चीनी बलों के पास लंबी दूरी के सतह-से-सतह मिसाइल सिस्टम अधिक संख्या में और लंबी रेंज के साथ उपलब्ध हैं, जबकि भारतीय बलों के पास ऐसे सिस्टम सीमित संख्या में हैं।

तेजस मार्क-1ए और मार्क-2 के निर्माण में देरी

स्वदेशी तेजस मार्क-1ए विमानों का निर्माण भी प्रमुख मुद्दा है। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) से इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण यह प्रोजेक्ट बाधित हो गया है।

  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) वित्तीय वर्ष 2024-25 में वायुसेना को केवल 2-3 तेजस मार्क-1ए विमान की ही डिलीवरी कर सकेगा, जबकि 16 विमानों की आपूर्ति का वादा किया गया था।
  • फरवरी 2021 में 46,898 करोड़ रुपये की लागत से 83 विमानों का ऑर्डर दिया गया था।
  • 97 और तेजस मार्क-1ए विमानों के लिए ₹67,000 करोड़ की नई परियोजना भी पाइपलाइन में है।

GE ने अब मार्च 2025 तक 99 GE-F404 टर्बोफैन जेट इंजन की आपूर्ति शुरू करने का वादा किया है, जो करीब दो साल की देरी से होगा।

GE-F414 इंजन का को-प्रोडक्शन

HAL और GE भारत में GE-F414 एयरो-इंजन के सह-उत्पादन के लिए अंतिम तकनीकी-व्यावसायिक बातचीत कर रहे हैं। यह इंजन कम से कम 108 तेजस मार्क-2 विमानों के लिए आवश्यक होगा। इसमें $1 बिलियन की लागत से 80% तकनीकी हस्तांतरण की योजना है।

फोर्स-मल्टीप्लायर्स की कमी

भारतीय वायुसेना को अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए फोर्स-मल्टीप्लायर्स की आवश्यकता है।

  • वायुसेना के पास केवल 6 IL-78 मिड-एयर रिफ्यूलर हैं, जो 2003-04 में शामिल किए गए थे। जबकि 18 ऐसे विमानों की जरूरत है।
  • भारत “एयर सर्विलांस” के मामले में पाकिस्तान और चीन से भी पीछे है।
  • वायुसेना के पास केवल तीन स्वदेशी ‘नेत्र’ एयरबोर्न अर्ली-वॉर्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) विमान और तीन इजरायली फाल्कन AWACS विमान हैं।

नेत्र विमान परियोजना

स्वदेशी नेत्र विमान परियोजना में तेजी लाने की जरूरत है। योजना के अनुसार, छह मार्क-1ए और छह मार्क-2 संस्करण विकसित किए जाने हैं। यह परियोजना वायुसेना की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण होगी।

Army Junior Officers: सरकार ने माना, सेना में कुछ सीनियर अफसर जूनियर अफसरों के साथ कर रहे हैं दुर्व्यवहार

Army Junior Officers: लोकसभा में शीतकालीन सत्र में सरकार ने स्वीकार किया कि सेना में 2023-24 के दौरान जूनियर अधिकारियों के साथ “अपमान और शारीरिक दबाव” से जुड़े कुछ मामलों की शिकायतें प्राप्त हुई हैं। रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ से यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को सेना में वरिष्ठ अधिकारियों, विशेष रूप से कमांडिंग अधिकारियों, द्वारा जूनियर अधिकारियों के साथ इस प्रकार के व्यवहार की जानकारी है, तो उन्होंने इसका सकारात्मक जवाब दिया।

Army Junior Officers: Government Acknowledges Misconduct by Some Senior Officers

उन्होंने बताया कि इस प्रकार की “कुछ शिकायतें” सरकार को मिली हैं और सेना में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए एक “अच्छी तरह से स्थापित तंत्र” मौजूद है।

Army Junior Officers: लोकसभा में क्या पूछा गया?

सांसदों ने सरकार से सवाल किया था कि क्या सेना में 2023-24 के दौरान जूनियर अधिकारियों के साथ अपमान और शारीरिक दबाव के मामले सामने आए हैं? यदि हां, तो क्या यह यूनिट के माहौल को प्रभावित कर सकता है? इसके अलावा, ऐसे मामलों को रोकने और जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह बनाने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

सरकार का जवाब

रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ ने जवाब में कहा, “हां, महोदय। इस अवधि के दौरान कुछ शिकायतें प्राप्त हुई हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि सेना में शिकायतों का समाधान करने और आवश्यक अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत और स्थापित तंत्र मौजूद है।

उन्होंने स्पष्ट किया, “यह तंत्र सुनिश्चित करता है कि सैन्य कर्मियों का मनोबल और एकता प्रभावित न हो।”

सरकार द्वारा स्वीकार किए गए इन मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सेना में शिकायत निवारण प्रणाली और अनुशासनात्मक तंत्र के बावजूद, सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। यह मुद्दा केवल कुछ शिकायतों तक सीमित हो सकता है, लेकिन यह सेना के संगठनात्मक ढांचे और यूनिट की एकता को प्रभावित कर सकता है।

सेना में अनुशासन और आपसी तालमेल का विशेष महत्व है, और इस प्रकार के मामलों से निपटने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।

Army Junior Officers: सेना का दृष्टिकोण

विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना में उच्चतम स्तर पर अनुशासन और सम्मान बनाए रखना अनिवार्य है। वरिष्ठ अधिकारियों का व्यवहार न केवल इकाई के माहौल को प्रभावित करता है, बल्कि इससे जूनियर अधिकारियों का मनोबल भी गिर सकता है।

शिकायत निवारण तंत्र

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, सेना में शिकायत निवारण तंत्र को बेहतर बनाने के लिए समय-समय पर समीक्षा की जाती है। इसमें शिकायतों की पारदर्शी जांच और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई शामिल है।

सेना की पारंपरिक प्रणाली और अनुशासन के साथ-साथ, ऐसी घटनाओं से बचने के लिए आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। वरिष्ठ अधिकारियों को संवेदनशील और जिम्मेदार बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि सेना को न केवल शिकायत निवारण तंत्र को और मजबूत बनाना होगा, बल्कि अंदरूनी संवाद को भी बढ़ावा देना होगा।

  1. सख्त निगरानी: सेना में वरिष्ठ अधिकारियों के व्यवहार की नियमित समीक्षा की जानी चाहिए।
  2. शिक्षा और प्रशिक्षण: वरिष्ठ अधिकारियों को अपने जूनियर सहयोगियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण और पेशेवर व्यवहार के लिए प्रशिक्षित करना होगा।
  3. पारदर्शी कार्रवाई: शिकायतों की जांच और कार्रवाई में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  4. मनोवैज्ञानिक समर्थन: अधिकारियों के मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल के माहौल को बेहतर बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

India-China Disengagement: लद्दाख और अरुणाचल के बाद क्या उत्तराखंड बनेगा भारत-चीन के बीच तनाव की बड़ी वजह? पूर्व जनरल ने क्यों जताई आशंका?

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India-China Disengagement: भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड के जीओसी रहे लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कमलजीत सिंह ने आशंका जताई है कि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के बाद चीन की नजर अब उत्तराखंड पर है। उनका कहना है कि लद्दाख में मौजूदा गतिरोध और अरुणाचल प्रदेश के विवादित क्षेत्रों के बाद अब उत्तराखंड का इलाका चीन का अगला निशाना हो सकता है। जनरल सिंह ने यह बात यूट्यूब चैनल रायसीना हिल्स पर एक डिस्कशन के दौरान कही। उन्होंने हाल ही में उनकी किताब ‘जनरल्स जॉटिंग्स: नेशनल सिक्योरिटी, कॉन्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटेजीज’ इन काफी चर्चा में है। बता दें कि भारत और चीन के बीच पिछले सप्ताह ही बीजिंग में 23वें विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता हुई, जिसमें सीमा तनाव को खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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बनाया पहला रीजनल थिंक टैंक “ज्ञान चक्र” 

पांच दशकों तक भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह, जिन्हें केजे सिंह के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताया कि वे राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से आते हैं। सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सेना में जाने का निश्चय कर लिया था। सैनिक स्कूल से सेना में आए। उन्होंने कहा, “मेरे परिवार का सेना से कोई संबंध नहीं था, लेकिन सेना ने मुझे मौके दिए और मेरी काबिलियत को पहचाना।” उन्होंने 63 कैवेलरी रेजिमेंट का हिस्सा बनने और फिर पश्चिमी कमान का नेतृत्व करने को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। वे सिक्किम में कोर कमांडर भी रहे, जहां उन्होंने चीन की रणनीतिक गतिविधियों को काउंटर करने में अहम भूमिका निभाई। सेना से रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ में पहला रीजनल थिंक टैंक “ज्ञान चक्र” बनाने का श्रेय भी उन्हें जाता है।

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India-China Disengagement: लद्दाख में मौजूदा हालात

जनरल सिंह के अनुसार, भारत-चीन सीमा तीन हिस्सों – पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में बंटी हुई है। पिछले तीन वर्षों में, चीन ने दो प्रमुख क्षेत्रों – डोकलाम (2017) और पूर्वी लद्दाख (2020) में तनाव पैदा किया है। पूर्वी लद्दाख में हालात अभी भी पूरी तरह से सामान्य नहीं है। उन्होंने कहा, “2020 में गलवान झड़प के बाद से चीन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में हमारी पेट्रोलिंग की सीमाएं तय करना भारत के लिए चिंता का विषय है।” उन्होंने कैलाश रेंज पर कब्जे को भारतीय सेना की बड़ी सफलता बताया, लेकिन यह भी जोड़ा कि इसे रणनीतिक रूप से और मजबूत किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि कैलाश रेंज न केवल सामरिक दृष्टि से बल्कि मनोवैज्ञानिक बढ़त के लिए भी महत्वपूर्ण है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन द्वारा बनाए गए नए पुल और बुनियादी ढांचे से उनकी आक्रामक रणनीति स्पष्ट होती है।

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India-China Disengagement: उत्तराखंड: संभावित अगला मोर्चा?

जनरल सिंह ने विशेष रूप से उत्तराखंड सेक्टर चीन की तरफ से तनाव बढ़ने की संभावना जताई। उन्होंने कहा, “चीन, भारत को अलग-अलग मोर्चों पर उलझाए रखना चाहता है। उत्तराखंड के बाराहोती इलाके पर चीन की पहले ही नजर है। सेना को इस क्षेत्र में सतर्क रहना होगा।” उन्होंने आगे कहा कि 1954 में चीन ने उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में घुसपैठ की थी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में चीन की रुचि लंबे समय से बनी हुई है। बाराहोती क्षेत्र पर चीन अपना दावा जताता है और यह भारत के लिए एक संवेदनशील क्षेत्र है। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन की रणनीति है कि वह छोटे और अप्रत्याशित इलाकों पर अपना दावा करता है। यह इलाका अभी तक अपेक्षाकृत शांत रहा है, लेकिन इसके महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक महत्व को देखते हुए, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा, “चीन पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। हमारी तैयारियां सतर्क और दूरदर्शी होनी चाहिए।”

जनरल सिंह के मुताबिक, “चीनी सेना (पीएलए) नए मोर्चों को खोलने में माहिर है, और आने वाले समय में उत्तराखंड के लिपुलेख, बाराहोटी और नीलांग घाटी जैसे क्षेत्रों में तनाव बढ़ सकता है।”

India-China Disengagement: हिमाचल प्रदेश में चीनी खतरा

सिंह ने हिमाचल प्रदेश के रामपुर क्षेत्र में अपनी तैनाती के दिनों को याद करते हुए कहा, “जब मैं पश्चिमी सेना का कमांडर था, तो मुझे बताया गया कि यह एक ‘हॉलिडे सेक्टर’ है। इसे ‘शुगर सेक्टर’ कहा जाता था।” शुगर सेक्टर हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के बीच का सीमा क्षेत्र है, जहां चीन का प्रभाव देखा जाता है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के रामपुर और शिपकी ला जैसे क्षेत्रों में भी तैनाती बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाकर चीन को चुनौती देने की तैयारी की है। हमने इसे 36 ब्रिगेड से 136 स्वतंत्र इंफेंट्री ब्रिगेड बनाया। उस समय, इसमें केवल दो बटालियन थीं। आज, इसमें चार बटालियन हैं। पहले केवल एक लाइट रेजिमेंट थी, जबकि अब एक मीडियम रेजिमेंट और एक लाइट रेजिमेंट भी है।

सिक्किम में चीन की चालें

सिक्किम में कोर कमांडर पद पर रहने के दौरान के अपने अनुभवों को साझा करते हुए, सिंह ने बताया कि कैसे हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे क्षेत्रों में चीन ने अचानक गतिविधियां शुरू कर दीं। “सिक्किम में एक जगह है नाकू-ला। जब मैं कोर कमांडर था, तो मुझे बताया गया कि यहां कोई खतरा नहीं है, कुछ नहीं होता। उन्होंने बताया कि लेकिन मेरी सेवा समाप्ति के एक साल बाद, मुझे बताया गया कि चीनी वहां सक्रिय हो गए।” उन्होंने आगे बताया, “नाकू-ला में पहले आईटीबीपी तैनात थी, लेकिन मैंने वहां हमारी इंफेंट्री कंपनी तैनात करने की योजना बनाई। एक साल बाद, चीनी ने वहां सक्रियता दिखाई। इसका मतलब है कि चीनी किसी भी स्थान पर दावा जता सकता है। सिंह ने यह भी बताया कि उनके कार्यकाल के दौरान चीन ने स्मगलर्स गैप, ब्लैक रॉक और नकु पास जैसे स्थानों पर भी अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं। बता दें कि नकु पास मुगुथांग घाटी के ग्लेशियर इलाके में स्थित है।

भूगोल और रणनीति का महत्व

जनरल सिंह ने कहा कि भूगोल किसी भी सैन्य रणनीति की रीढ़ होता है। सिक्किम के चुम्बी घाटी से लेकर पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी तक, भारत के कई इलाकों में चीनी रणनीति का सामना करने के लिए भूगोल का गहन अध्ययन और औऱ उसका इस्तेमाल जरूरी है। उन्होंने कहा कि चुम्बी घाटी का क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन चीन इसे लगातार अपना विस्तार देने की कोशिश करता है। वहीं, पैंगोंग त्सो के फिंगर 4 से फिंगर 8 तक का इलाका अब बफर जोन है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा चीन को मिलता है। दौलत बेग ओल्डी की बात करें, तो  चीन इस इलाके को अपनी रणनीति में एक कमजोर कड़ी मानता है और यहां तनाव बनाए रखना चाहता है।

सैन्य बलों का पुनर्गठन जरूरी

भारत-चीन सीमा पर तैनात अर्धसैनिक बलों को लेकर जनरल सिंह ने इंटीग्रेटेड कमांड का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “यह आवश्यक है कि सभी अर्धसैनिक बलों जैसे आईटीबीपी, बीएसएफ, और असम राइफल्स को सेना के अधीन लाया जाए। इससे न केवल समन्वय बढ़ेगा बल्कि इन बलों की दक्षता में भी सुधार होगा।” उनका मानना है कि अर्धसैनिक बलों के शीर्ष पदों पर प्रशिक्षित सैन्य अधिकारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए और “एक सीमा-एक बल” का सिद्धांत अपनाना चाहिए।

बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत पर नजर

पूर्वोत्तर भारत के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूत करना रणनीतिक दृष्टि से जरूरी है। शेख हसीना के कार्यकाल को भारत-बांग्लादेश संबंधों का स्वर्ण युग बताते हुए उन्होंने कहा, “हमारे कूटनीतिक प्रयासों में स्थिरता की कमी रही है, जिससे चीन को इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का मौका मिला।” लेफ्टिनेंट जनरल सिंह वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत को लेकर एक नई पुस्तक पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत की “एक्ट ईस्ट” नीति को तभी सफलता मिलेगी जब पूर्वोत्तर राज्यों के बुनियादी ढांचे और सुरक्षा को मजबूत किया जाएगा।

चीन की मंशा और रणनीति

चीन की दीर्घकालिक रणनीति के बारे में जनरल सिंह ने कहा कि वह “धीरे-धीरे और छोटे-छोटे कदमों” के जरिए अपनी स्थिति मजबूत करता है। उन्होंने बताया कि चीन ने लद्दाख में झीलों और ऊंचे इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे इलाकों में चीन ने अपने दावे को बार-बार दोहराया है। उत्तराखंड में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए नई चुनौतियां प्रस्तुत कर सकता है। जनरल सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सेना ने सीमावर्ती इलाकों में हर चुनौती का सामना किया है। उन्होंने कहा कि चीन से निपटने के लिए केवल सैन्य ताकत ही पर्याप्त नहीं है। हमें अपनी आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति का भी उपयोग करना होगा।”

Takshashila Survey 2024: भारत-चीन संबंधों को लेकर क्या सोचती है जनता, लोग बोले- चीन में होता लोकतंत्र तो ऐसे होते हालात

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Takshashila Survey 2024: भारत और चीन के संबंधों को लेकर आम जनता की सोच क्या है? तक्षशिला इंस्टीट्यूट के हालिया सर्वे में इस सवाल का जवाब ढूंढा गया है। यह सर्वे तक्षशिला के इंडो-पैसिफिक स्टडीज प्रोग्राम में स्टाफ रिसर्च एनालिस्ट अनुष्का सक्सेना ने किया है। PULSE OF THE PEOPLE- STATE OF INDIA-CHINA RELATIONS सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अधिकांश भारतीयों का मानना है कि सीमा विवाद (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल – एलएसी) दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का मुख्य कारण है। साथ ही, पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी लोग एक बड़ी चुनौती मानते हैं।

Takshashila Survey 2024: Public on India-China Ties, Democracy in China a Game-Changer?

Takshashila Survey 2024: सीमा विवाद है मुख्य कारण

सर्वे में शामिल 54.4 फीसदी लोगों का मानना है कि भारत-चीन संबंधों में तनाव का सबसे बड़ा कारण एलएसी पर चल रहा सीमा विवाद है। यह मसला भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा भी प्रमुखता से उठाया जाता रहा है।

26.6 फीसदी लोगों ने चीन के भारत के पड़ोसी देशों में बढ़ते प्रभाव को दूसरा सबसे बड़ा कारण बताया। यह एक दिलचस्प तथ्य है क्योंकि चीन-पाकिस्तान की दोस्ती, भारत-अमेरिका साझेदारी, और चीन के पक्ष में भारी व्यापार असमानता जैसे मुद्दों को लोग कम प्राथमिकता दे रहे हैं।

India-China: पैंगोंग झील में चीन की बड़ी कारस्तानी! डिसइंगेजमेंट और वार्ता के बावजूद फिंगर-4 के आगे जारी है निर्माण कार्य

Takshashila Survey 2024: आर्थिक संबंधों पर सकारात्मक रुख

भारत-चीन के आर्थिक संबंधों को लेकर जनता की राय अपेक्षाकृत सकारात्मक रही।

  • व्यापार: 49.6 फीसदी लोगों का मानना है कि चीन के साथ व्यापार बढ़ाना भारत के विकास और सुरक्षा के लिए फायदेमंद है।
  • निवेश: 56.3 फीसदी लोगों ने कहा कि चीन से निवेश भारतीय रोजगार के नए अवसर खोल सकता है।
  • प्रतिभा: 52.4 फीसदी लोगों का मानना है कि अगर किसी विशेष उद्योग में भारतीय प्रतिभा की कमी हो तो चीनी विशेषज्ञों का स्वागत किया जाना चाहिए।

Takshashila Survey 2024: अगर चीन में होता लोकतंत्र…

सर्वे ने यह भी सवाल किया कि क्या चीन में लोकतंत्र होता तो भारत-चीन के रिश्ते बेहतर होते? इस सवाल पर 61.5 फीसदी लोगों का मानना है कि अगर चीन एक बहुदलीय लोकतंत्र होता तो दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हो सकते थे। लेकिन 46.6 फीसदी लोगों ने इस बात पर संदेह जताया कि अगर वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के स्थान पर कोई और होता, तो भी हालात अलग हो सकते थे। यह संकेत देता है कि लोगों का मानना है कि भारत-चीन संबंधों की जटिलता केवल नेतृत्व तक सीमित नहीं है।

भारत का झुकाव किस तरफ: अमेरिका या चीन-रूस?

सर्वे में यह सवाल भी पूछा गया कि अगर भारत को किसी गुट का समर्थन करना पड़े तो वह किसे चुनेगा?  अमेरिकी-नेतृत्व वाले पश्चिम या चीन-रूस।

  • 69.2% लोगों ने कहा कि भारत को अमेरिका-नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि चीन-रूस के गठजोड़ के साथ।
  • हालांकि, क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह) को लेकर लोगों की राय मिली-जुली रही। 50.8% लोगों ने इसे “कुछ हद तक प्रभावी” माना, जबकि 44.4% लोगों ने इसे “अप्रभावी” बताया।

तिब्बत और ताइवान पर भारत की नीति

तिब्बत और ताइवान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भारत की नीति को लेकर लोगों की राय सामने आई। सर्वेक्षण में पूछा गया कि यदि चीन और भारत में निर्वासित तिब्बती प्रशासन अपने-अपने अगले दलाई लामा को चुनते हैं, तो भारत को क्या करना चाहिए।

  • तिब्बत: 64% लोगों ने कहा कि अगर चीन और निर्वासित तिब्बती प्रशासन अपने-अपने दलाई लामा के उत्तराधिकारी घोषित करते हैं, तो भारत को निर्वासित तिब्बती प्रशासन के उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए। 17.9% ने सुझाव दिया कि भारत को किसी भी नाम को मान्यता नहीं देनी चाहिए।
  • ताइवान: ताइवान संघर्ष के मामले में 54.4 फीसदी लोगों ने कहा कि भारत को शांति-दूत की भूमिका निभानी चाहिए। केवल 3.5 फीसदी लोगों ने सैन्य हस्तक्षेप की वकालत की, जबकि 28.7 फीसदी ने अमेरिका को लॉजिस्टिक समर्थन देने की बात कही।

सैन्य और राजनीतिक उपाय

भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए लोगों ने दो प्रमुख सुझाव दिए:

  1. सैन्य क्षमता बढ़ाना: 41.2% लोगों ने कहा कि भारत को अपनी सैन्य ताकत और रोकथाम क्षमता को मजबूत करना चाहिए।
  2. नेताओं के बीच संवाद: 31% लोगों ने उच्च-स्तरीय राजनीतिक वार्ता फिर से शुरू करने की वकालत की।

LCA Tejas Mk1A Engine: ऑनलाइन मिल रहा तेजस का GE-F404 इंजन! यूजर बोले- “HAL को कैश ऑन डिलीवरी ऑप्शन दे दो, अब शायद समय पर इंजन मिल जाए”

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LCA Tejas Mk1A Engine: भारत के स्वदेशी फाइटर जेट LCA तेजस Mk1A को अमेरिकी एरोस्पेस कंपनी GE की तरफ से समय पर इंजन सप्लाई न किए जाने से भारतीय वायु सेना को यह फाइटर जेट मिलने में डिलीवरी का सामना करना पड़ रहा है। यह डिलीवरी इस साल मार्च-अप्रैल से शुरू होनी थी, लेकिन इसकी डेडलाइन लगातार आगे बढती जा रही है। वहीं, इसमें लगने वाले GE F-404 इंजन को लेकर एक मजेदार वाकया सामने आया है। तेजस को बनाने वाली देश की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को भले ही जीई कंपनी की तरफ से इसकी सप्लाई में देरी की जा रही है, लेकिन यह इंजन ऑनलाइन उपलब्ध है। इस इंजन को इंडिया मार्ट (India Mart) वेबसाइट पर लिस्ट किया गया है। यह प्लेटफॉर्म आमतौर पर व्यावसायिक सामानों के लिए जाना जाता है, न कि एडवांस मिलिट्री हाईवेयर के लिए।

LCA Tejas Mk1A Engine: GE-F404 Engine Available on Indian Mart

GE F-404 इंजन दुनिया भर में अपनी विश्वसनीयता और प्रदर्शन के लिए जाना जाता है और इसे मुख्य रूप से हल्के लड़ाकू विमानों के लिए डिजाइन किया गया है।

LCA Tejas Mk1A Engine: सोशल मीडिया की पर लोग ले रहे चुटकियां

जैसे ही यह खबर फैली, सोशल मीडिया पर यूजर्स ने कंपनी को ट्रोल करना शुरू कर किया। इस पर अपनी मजेदार प्रतिक्रियाएं देते हुए किसी यूजर ने लिखा, “अगर HAL को GE से इंजन नहीं मिल रहा है, तो शायद अब उन्हें इंडिया मार्ट से ऑर्डर करना चाहिए।” वहीं, एक अन्य यूजर ने मजाकिया अंदाज में कहा, “इंडिया मार्ट के कस्टमर सर्विस वाले जल्द ही HAL को कॉल करके पूछेंगे, ‘कितने पीस चाहिए?'” एक यूजर ने लिखा, “अगर HAL को डिलीवरी में इतनी दिक्कत हो रही है, तो इंडिया मार्ट पर उपलब्धता का क्या मतलब?” दूसरे ने टिप्पणी की, “यह GE का एक विज्ञापन हो सकता है, ताकि कीमत को लेकर सौदेबाजी की जा सके।”

LCA Tejas: भारत के स्वदेशी फाइटर जेट तेजस के प्रोडक्शन में तेजी लाने पर जोर, संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय को दिए निर्देश

इस पर कई मीम्स भी वायरल हो रहे हैं, जैसे:

  • “अगर GE F-404 मिल सकता है, तो F-35 का भी एक कोटेशन मांग लेते हैं, मज़े के लिए।”
  • “HAL को कैश ऑन डिलीवरी ऑप्शन दे दो, अब शायद समय पर इंजन मिल जाए।”
  • “यह इंजन कितना माइलेज देता होगा?”
  • एक यूजर ने कहा, “HAL को यह जानने में देर हो गई कि सही प्रोडक्ट कहां से खरीदना है।”

कुछ यूजर्स ने चुटकी लेते हुए लिखा:

  • “HAL को यह बात पता होती कि सही इंजन कहां मिलेगा, तो शायद वे इंडिया मार्ट से ही खरीद लेते।”
  • “सर, हम सिर्फ बल्क डिलीवरी करते हैं। एक या दो पीस के लिए आप अमेज़न या नजदीकी स्टोर देख लें।”
  • “ड्राइविंग लाइसेंस के साथ आर्डर करें, वरना डिलीवरी नहीं होगी।”

HAL और GE की चुनौतीपूर्ण साझेदारी

तेजस Mk1A प्रोजेक्ट के लिए यह इंजन बेहद अहम है, क्योंकि यह भारतीय वायुसेना के स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम की रीढ़ है। 2021 में HAL ने GE के साथ 99 F-404 इंजनों की डील साइन की थी, जिसकी डिलीवरी 2029 तक पूरी होनी थी। लेकिन ग्लोबल सप्लाई चेन में आई रुकावटों के कारण इसकी डिलीवरी में देरी हो रही है। हालांकि GE का कहना है कि वह इंजन की सप्लाई को लेकर प्रतिबद्ध है।

HAL को LCA Tejas की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के निर्देश

हाल ही में, भारतीय वायुसेना (IAF) की ताकत बढ़ाने और स्क्वाड्रन की कमी को पूरा करने के लिए, संसद की रक्षा पर स्थायी समिति ने रक्षा मंत्रालय (MoD) को निर्देश दिया है कि वह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को तेजस लड़ाकू विमानों के उत्पादन में तेजी लाने के लिए कहे। यह बात समिति के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद राधा मोहन सिंह की अध्यक्षता में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कही गई।

रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन के साथ संभावित दो-फ्रंट युद्ध की तैयारी के लिए 42 फाइटर स्क्वाड्रन की जरूरत है। हालांकि, वर्तमान में वायुसेना के पास केवल 31 सक्रिय स्क्वाड्रन हैं, जिनमें प्रत्येक में 16-18 लड़ाकू विमान होते हैं।

समिति ने तेजस विमानों की देरी से डिलीवरी को लेकर भी चिंता जताई। HAL को 83 तेजस मार्क-1ए विमानों का ऑर्डर दिया गया था, जिसकी कुल लागत 48,000 करोड़ रुपये है। मार्च 2024 से इनकी डिलीवरी शुरू होनी थी, लेकिन अभी तक एक भी विमान वायुसेना को नहीं सौंपा गया है।

 

Pegasus spyware controversy: WhatsApp की बड़ी कानूनी जीत, अमेरिकी कोर्ट ने जासूसी के लिए NSO ग्रुप को ठहराया जिम्मेदार

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Pegasus spyware controversy: दुनिया की सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग सेवा WhatsApp ने शुक्रवार को पेगासस स्पाइवेयर बनाने वाली इजराइली कंपनी NSO ग्रुप के खिलाफ एक बड़ी कानूनी जीत हासिल की। एक ऐतिहासिक फैसले में, अमेरिकी अदालत ने इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप को पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए व्हाट्सएप हैकिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया। कंपनी ने पेगासस सॉफ़्टवेयर के जरिए 1,400 से अधिक लोगों के फोन को निशाना बनाया था। बता दें कि इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का आरोप भारत की सरकार पर लगा है, जिसकी सुनवाई अभी होनी बाकी है।

Pegasus Spyware Controversy: WhatsApp Wins Legal Battle, US Court Holds NSO Group Accountable

Pegasus spyware controversy: जज ने दिया कठोर फैसला

केस की सुनवाई कर रहीं जज फिलिस हैमिल्टन ने NSO ग्रुप को अमेरिकी कंप्यूटर फ्रॉड एंड एब्यूज एक्ट (CFAA) और कैलिफोर्निया राज्य के एंटी-फ्रॉड कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाया। इसके साथ ही कंपनी ने WhatsApp की सेवा शर्तों का भी उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि एनएसओ ने अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया, जिसमें व्हाट्सएप को उनके स्पाईवेयर का सोर्स कोड सौंपने को कहा गया था।

अब मार्च 2025 में एक अलग जूरी ट्रायल में तय किया जाएगा कि NSO ग्रुप को WhatsApp को कितने नुकसान की भरपाई करनी होगी।

NSO ग्रुप ने इस मुकदमे के दौरान अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे को टालने और देरी करने की रणनीति अपनाई। जज हैमिल्टन ने बताया कि कंपनी ने व्हाट्सएप को अपने स्पाइवेयर का सोर्स कोड उपलब्ध कराने के आदेश का पालन नहीं किया। NSO ने यह कोड केवल इजराइल में और इजरायली नागरिकों के लिए उपलब्ध कराया, जिसे जज ने “अव्यवहारिक” करार दिया। एनएसओ ग्रुप का दावा था कि उनके सरकारी ग्राहक पेगासस का उपयोग करते हैं और उन्हीं की जिम्मेदारी होती है। लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया और पाया कि एनएसओ खुद जानकारी एकत्रित करने और उसे इंस्टॉल करने में शामिल था। इसके अलावा, अदालत ने कंपनी द्वारा मुकदमे की प्रक्रिया में बाधा डालने और देरी करने की कोशिशों की आलोचना की।

Pegasus spyware controversy: 2019 में WhatsApp ने किया था केस

WhatsApp ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “पांच साल की कानूनी लड़ाई के बाद, आज का फैसला हमारे लिए महत्वपूर्ण है। NSO अब अपने अवैध हमलों के लिए जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। यह फैसला स्पाइवेयर कंपनियों को स्पष्ट संदेश देता है कि उनके गैरकानूनी काम बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।”

व्हाट्सएप ने 2019 में एनएसओ ग्रुप के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। आरोप था कि इस कंपनी ने अपने जासूसी पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए 1,400 लोगों के फोन को हैक किया और उनकी जासूसी की।
इस हैकिंग का दायरा पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिक असंतुष्टों और राजनयिकों तक फैला था। व्हाट्सएप ने इसे अमेरिकी कानूनों और अपने सेवा शर्तों का उल्लंघन करार दिया।

NSO ग्रुप के पेगासस सॉफ़्टवेयर का उपयोग कई पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनयिकों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के फोन हैक करने के लिए किया गया था। पेगासस का उपयोग iPhones और WhatsApp को हैक करने के लिए भी किया गया, जिससे यूजर्स के ईमेल, फोटो और संदेशों को एक्सेस किया गया।

अमेरिकी सरकार की सख्ती

पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल व्हाट्सएप और आईफोन जैसे उपकरणों को हैक करने के लिए किया गया था। इसके जरिए तस्वीरें, ईमेल और टेक्स्ट मेसेज चोरी किए गए। जो बाइडन प्रशासन ने 2021 में NSO ग्रुप को एक ब्लैकलिस्ट पर डाल दिया और अमेरिकी सरकारी एजेंसियों को इसके प्रोडक्ट खरीदने से मना कर दिया। NSO को तानाशाही सरकारों द्वारा हैकिंग गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों का सामना करना पड़ा है।

पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग लंबे समय से विभिन्न देशों में विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ किया जाता रहा है। NSO ने हमेशा यह दावा किया है कि उसके ग्राहक, यानी सरकारें, इस सॉफ़्टवेयर के उपयोग के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, कोर्ट में पेश दस्तावेज़ों से यह साबित हुआ कि NSO खुद इस सॉफ़्टवेयर का उपयोग डेटा निकालने के लिए करता था।

मार्च 2025 में होने वाले जूरी ट्रायल में तय किया जाएगा कि NSO ग्रुप को WhatsApp को कितना हर्जाना देना होगा। यह मुकदमा स्पाइवेयर उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा और डिजिटल निजता की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम होगा।

भारत में भी किया गया था इस्तेमाल

इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा प्रमुख हस्तियों के फोन हैक किए गए थे। इनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जैसे दिग्गज शामिल थे। इसके अलावा, कई पत्रकारों के फोन भी हैक किए गए, जिनमें ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘मिंट’, ‘इंडिया टुडे’, ‘द हिंदू’, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’, और ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के संवाददाता शामिल थे।

अक्टूबर 2021- सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के ज़रिए अनधिकृत निगरानी के आरोपों की जांच के आदेश दिए। इस उद्देश्य के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों और एक पर्यवेक्षक वाली एक विशेष समिति बनाई। जिस पर सुनवाई होनी अभी बाकी है।

पेगासस क्यों खतरनाक है?

पेगासस सॉफ्टवेयर को केवल एक मिस कॉल के जरिए किसी फोन में इंस्टॉल किया जा सकता था, बिना यूजर की जानकारी या अनुमति के। एक बार इंस्टॉल होने के बाद, इसे हटाना लगभग असंभव है। यह सॉफ्टवेयर हैकर को स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, ऑडियो, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल और लोकेशन तक पहुंचने की अनुमति देता है। यह इसे बेहद खतरनाक और उपयोगकर्ता की गोपनीयता के लिए गंभीर खतरा बनाता है।

K9 Vajra Artillery Guns: भारतीय सेना को मिलेंगी 100 नई K9 वज्र तोपें, लार्सन एंड टुब्रो के साथ 7,629 करोड़ रुपये कॉन्ट्रैक्ट पर हुए दस्तखत

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K9 Vajra Artillery Guns: भारत सरकार ने देश की रक्षा क्षमता को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। रक्षा मंत्रालय ने लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ 155 मिमी/52 कैलिबर K9 वज्र K9 (VAJRA-T) स्व-चालित ट्रैक्ड तोपों की खरीद के लिए 7,628.70 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट किया है। यह कॉन्ट्रैक्ट 20 दिसंबर, 2024 को रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह की मौजूदगी में साइन किया गया। इससे पहले 14 दिसंबर को ही केंद्रीय कैबिनेट कमेटी ने 100 अतिरिक्त K9 वज्र तोपों और 12 नए Su-30MKI लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी।

K9 Vajra Artillery Guns: MoD signs Rs 7,629 crore contract with Larsen Toubro for Indian Army

K9 वज्र: भारतीय सेना के लिए गेम-चेंजर

K9 वज्र तोप भारतीय सेना की तोपखाने (आर्टिलरी) शक्ति को आधुनिक बनाने और संचालन क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह तोप अपनी तेज रफ्तार और सटीकता के लिए जानी जाती है। इसे विशेष रूप से ऊंचाई वाले क्षेत्रों और माइनस तापमान वाले इलाकों में ऑपरेशन करने के लिए डिजाइन किया गया है।

यह तोप लंबी दूरी तक सटीक और घातक फायरपावर देने में सक्षम है। इसके मॉडर्न फीचर्स भारतीय सेना को हर तरह के इलाके में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करेंगे। इसकी जबरदस्त क्षमताएं सेना को न केवल लद्दाख जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बल्कि अन्य कठिन इलाकों में भी चीन जैसी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएंगी।

K9 Vajra Artillery Guns: MoD signs Rs 7,629 crore contract with Larsen Toubro for Indian Army

चीन के साथ बढ़ती चुनौतियों का जवाब

सैन्य सूत्रों ने बताया कि यह खरीद “बाय इंडियन” श्रेणी के तहत की गई है, जिसमें न्यूनतम 60 फीसदी इंडीजीनियस  (स्वदेशीकरण) इक्विपमेंट्स का होना जरूरी है। लद्दाख और अन्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चीन के साथ बढ़ती सैन्य चुनौतियों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। इन तोपों की तैनाती से भारतीय सेना की रणनीतिक ताकत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने 100 अतिरिक्त K9 वज्र तोपों को मंजूरी दी थी, जो भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा में अहम भूमिका निभाएंगी।

स्वदेश में ही बनेंगी

K9 वज्र तोपों का निर्माण पूरी तरह से भारत में किया जाएगा। लार्सन एंड टुब्रो की गुजरात के हजीरा में स्थित मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में इन तोपों का निर्माण किया जाएगा। यह 155 मिमी, 52-कैलिबर सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर तोपें हैं, जिन्हें दक्षिण कोरिया की कंपनी हनव्हा टेकविन की तकनीकी मदद से विकसित किया गया है। इस प्रोजेक्ट को दक्षिण कोरिया की डिफेंस एजेंसी की मंजूरी है। एलएंडटी ने पहले भी सेना को 100 K-9 वज्र तोपें सप्लाई की थीं। 2017 में, रक्षा मंत्रालय ने 4,366 करोड़ रुपये की लागत से इन तोपों को खरीदने का फैसला किया था। ये तोपें भारतीय सेना की ताकत बढ़ाने में मदद करेंगी।

K9 Vajra Artillery Guns: भारतीय सेना को मिलेंगी 100 अतिरिक्त K9 वज्र तोपें; लद्दाख में चीन की चुनौती से निपटने की तैयारी

आत्मनिर्भर भारत और मेक-इन-इंडिया अभियान को बल

K9 वज्र परियोजना न केवल भारतीय सेना के लिए, बल्कि भारतीय उद्योग के लिए भी एक बड़ा अवसर लेकर आई है। इस परियोजना से अगले चार वर्षों में नौ लाख मानव-दिनों का रोजगार पैदा होगा। इसके अलावा, इस परियोजना में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) सहित भारतीय उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।

K9 वज्र की खासियत

K9 वज्र एक 155 मिमी की ट्रैक्ड आर्टिलरी गन है, जो टैंक जैसी मारक क्षमता, एडवांस मोबिलिटी और सटीकता के लिए मशहूर है। यह तोप पहले राजस्थान के रेगिस्तान में तैनात की गई थी, लेकिन 2020 में चीन के साथ सीमा पर तनाव के बाद इसे लद्दाख जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया गया। बता दें कि सेना में पहले से ही के9 वज्र गनों की पांच रेजिमेंट हैं, और इस फैसले के बाद पांच रेजिमेंट और बनाईं जाएंगी। जिसके बाद इनकी संख्या कुल 10 हो जाएगी।

K-9 वज्र-टी तोपों से लैस सेल्फ-प्रोपेल्ड आर्टिलरी रेजिमेंट्स स्ट्राइक कोर के टैंक और इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (ICVs) के ठीक पीछे चलती हैं। ये तोपें दुश्मन के ठिकानों पर हाई-एक्सप्लोसिव गोले बरसाती हैं। रेगिस्तानी इलाकों में K-9 वज्र जैसी ट्रैक वाली तोपें फायर सपोर्ट के लिए बेहद जरूरी होती हैं।

एलएंडटी द्वारा बनाई गई पहली 100 K-9 वज्र तोपों ने पांच रेजिमेंट्स को लैस किया है, जिनमें से प्रत्येक रेजिमेंट में 20 तोपें हैं। इनमें से एक रेजिमेंट को मई 2020 में चीन सीमा पर घुसपैठ के बाद तैनात किया गया था, जबकि बाकी चार रेजिमेंट्स को स्ट्राइक कोर की चार टैंक ब्रिगेड्स के साथ तैनात किया गया है। वहीं, अब, आज हुए नए समझौते के तहत अगली 100 तोपों से सेना की दूसरी स्ट्राइक कोर की पांच और रेजिमेंट्स को लैस किया जाएगा।

सेना की दीर्घकालिक योजना के तहत इन 200 तोपों के बाद 100 और तोपों का तीसरा ऑर्डर दिया जाएगा। इन पांच नई रेजिमेंट्स में से प्रत्येक को सेना की “इंडिपेंडेट आर्मर्ड ब्रिगेड्स” के साथ तैनात किया जाएगा।

K9 Vajra Guns: भारतीय सेना को जल्द मिल सकती हैं 100 और K-9 वज्र तोपें, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के सामने प्रपोजल पेश करने की तैयारी

इस तोप की सबसे बड़ी खासियत इसकी सेल्फ-प्रोपेल्ड (स्व-चालित) प्रणाली है, जो इसे अन्य तोपों से अलग बनाती है। इसे खींचने के लिए किसी बाहरी वाहन की आवश्यकता नहीं होती, और इसके एडवांस सिस्टम इसे कठिन परिस्थितियों में भी तेजी से फायरिंग और पुनः तैनाती में सक्षम बनाते हैं।

  1. लंबी दूरी की सटीक फायरिंग: K9 वज्र तोपें लंबी दूरी तक सटीक और प्रभावी फायरिंग करने में सक्षम हैं।
  2. तेज फायरिंग रेट: यह तोपें तेज गति से गोले दाग सकती हैं, जो किसी भी युद्ध क्षेत्र में निर्णायक साबित हो सकती हैं।
  3. सभी प्रकार के भूभागों में संचालन: इन तोपों की क्रॉस-कंट्री मोबिलिटी उन्हें किसी भी भूभाग में संचालन के लिए उपयुक्त बनाती है।
  4. उच्च ऊंचाई और माइनस तापमान में कार्यक्षमता: K9 वज्र तोपें उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों और कठिन मौसम स्थितियों में भी पूरी क्षमता के साथ काम कर सकती हैं।

K9 Vajra Artillery Guns में हाई एल्टीट्यूड पर तैनाती के लिए खास अपग्रेड

नई K9 वज्र तोपों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए खास तौर पर तैयार किया जा रहा है। इन्हें -20°C तक के ठंडे मौसम में भी प्रभावी रूप से काम करने लायक बनाया गया है। इसके लिए इनमें कई खास फीचर जोड़े गए हैं, जैसे:

  • एडवांस्ड फायर-कंट्रोल सिस्टम
  • विशेष लुब्रिकेंट्स
  • ठंडे मौसम के लिए तैयार की गई बैटरियां

तोप की रेंज 40 किलोमीटर से अधिक है और यह 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मूव कर सकती है। इसे पांच जवानों की टीम मैनेज करती है और यह 49 राउंड तक गोला-बारूद अपने साथ ले जाने में सक्षम है।

बता दें कि 18 दिसंब को कोरियाई दूतावास ने हनह्वा एयरोस्पेस लैंड सिस्टम्स के साथ एक बैठक की थी और के-9 होवित्जर (वज्र) परियोजना के दूसरे चरण की स्थिति सहित कोरिया-भारत रक्षा सहयोग पर विचारों का आदान-प्रदान किया। दक्षिण कोरिया की कंपनी हनवा एयरोस्पेस यूरोप में अपनी पहली उत्पादन इकाई स्थापित करने जा रही है।  रोमानिया में K-9 थंडर होवित्जर के लिए 2025 तक शुरू होने की उम्मीद है। यह अत्याधुनिक सुविधा रोमानियाई सशस्त्र बलों और रक्षा निर्यात के लिए उत्पादन, उपकरण परीक्षण, अनुसंधान, प्रशिक्षण और रखरखाव सेवाएं प्रदान करेगी। K-9 थंडर को रोमानिया सहित नौ देशों ने चुना है। यह अत्याधुनिक तोप 40 किलोमीटर से अधिक की रेंज और स्वचालित गोला-बारूद प्रणाली से लैस है। हनवा K2 ब्लैक पैंथर टैंक और AS-21 रेडबैक इन्फैंट्री वाहनों की आपूर्ति के लिए भी निविदा प्रक्रिया में भाग ले रही है।

Air Force accidents: भारतीय वायुसेना में 5 सालों में हुए 34 विमान हादसे, इनमें से 19 में मानव गलतियों की वजह से गईं जानें

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Air Force accidents: भारतीय वायुसेना (IAF) में 2017 से 2022 के बीच 34 विमान हादसे हुए हैं, जिनमें से 19 का कारण मानव त्रुटि (एयरक्रू) रहा है। संसदीय रक्षा समिति ने अपनी हाल ही में जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। रिपोर्ट में वायुसेना के पुराने विमानों और तकनीकी खामियों को भी प्रमुख चिंताओं के रूप में बताया गया है। हालांकि, पिछले वर्षों में दुर्घटनाओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। इससे पहले संसद में पेश की गई रक्षा पर स्थायी समिति की रिपोर्ट ने बताया था कि 8 दिसंबर 2021 को तमिलनाडु के कुन्नूर में एक भीषण हेलिकॉप्टर दुर्घटना में भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की मौत भी “मानवीय त्रुटि (एयरक्रू)” की वजह से हुई थी। इस हादसे में उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 12 अन्य सैन्य अधिकारियों की दुखद मृत्यु हो गई।

Air Force accidents: Parliamentary panel report said, 34 Crashes in 5 Years, 19 Due to Human Error

Air Force accidents: दुर्घटनाओं का सालाना ब्योरा

रिपोर्ट में हादसों का सालवार विवरण दिया गया है, जो इस प्रकार है:

  • 2017–18: 8 हादसे
  • 2018–19: 11 हादसे
  • 2019–20: 3 हादसे
  • 2020–21: 3 हादसे
  • 2021–22: 9 हादसे

2018–19 और 2021–22 के दौरान दुर्घटनाओं में तेज वृद्धि ने सुरक्षा उपायों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन वर्षों में हुई प्रमुख घटनाओं में दिसंबर 2021 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत की मौत भी शामिल है। यह हादसा Mi-17V5 हेलीकॉप्टर के क्रैश के कारण हुआ था।

Air Force accidents: Parliamentary panel report said, 34 Crashes in 5 Years, 19 Due to Human Error

Air Force accidents: दुर्घटनाओं की वजह

रिपोर्ट के अनुसार, हादसों के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण रहे:

  • मानव त्रुटि (एयरक्रू): 19 घटनाएं
  • तकनीकी खामियां: 9 घटनाएं
  • अन्य कारण: पक्षियों से टकराव और बाहरी वस्तुओं से क्षति

विशेषज्ञों ने मानव त्रुटियों के कारण होने वाले हादसों को प्रशिक्षण और उपकरणों की बेहतर निगरानी से रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

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प्रमुख विमान और हादसे

रिपोर्ट में मिग-21 को सबसे अधिक दुर्घटनाग्रस्त विमान बताया गया है। इसे अक्सर “उड़ता ताबूत” कहा जाता है। मिग-21 के अलावा, जिन विमानों में हादसे हुए, वे हैं:

  • Mi-17 हेलीकॉप्टर
  • जगुआर लड़ाकू विमान
  • सुखोई-30 एमकेआई
  • सूर्य किरण ट्रेनर जेट

रिपोर्ट में संसदीय समिति ने मिग-21 की उम्र और डिजाइन के कारण इसे चरणबद्ध तरीके से हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

सुरक्षा उपायों में सुधार

रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना में दुर्घटनाओं को कम करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी। इनमें शामिल हैं:

  1. ऑपरेशनल प्रोटोकॉल्स की व्यापक समीक्षा।
  2. पायलट प्रशिक्षण में सुधार।
  3. रखरखाव प्रक्रियाओं को बेहतर बनाना।
  4. जांच रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करना।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि पिछले वर्षों में 10,000 उड़ान घंटों पर दुर्घटनाओं की दर में लगातार गिरावट आई है:

  • 2000–2005: 0.93
  • 2017–2022: 0.27
  • 2020–2024: 0.20

Air Force accidents: पुराने विमान बने चुनौती

वायुसेना के पुराने विमानों, विशेषकर मिग-21, को सेवा से हटाना प्राथमिकता में है। इनके स्थान पर आधुनिक और सुरक्षित विमानों को शामिल करने की आवश्यकता है। मिग-21 की जगह लेने के लिए तेजस जैसे स्वदेशी लड़ाकू विमान को प्राथमिकता दी जा रही है।

2021 का Mi-17 हादसा

दिसंबर 2021 में हुए Mi-17 हेलीकॉप्टर हादसे का प्रमुख कारण “मौसम में अचानक बदलाव” और पायलट की दिशाभ्रम (स्पैशियल डिसओरिएंटेशन) बताया गया। प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई कि मौसम में अचानक आए बदलाव के कारण हेलिकॉप्टर बादलों में प्रवेश कर गया। इससे पायलट दिशाभ्रम का शिकार हो गए और हेलिकॉप्टर “Controlled Flight Into Terrain” (CFIT) का शिकार हो गया।

जांच टीम ने फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर का विश्लेषण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची। इसके साथ ही टीम ने सभी गवाहों से पूछताछ भी की।

रिपोर्ट में हेलिकॉप्टर के संचालन और रखरखाव पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्या पायलट को ऐसे हालातों से निपटने का समुचित प्रशिक्षण दिया गया था? क्या हेलिकॉप्टर में लगे उपकरण खराब थे, जो मौसम के बदलाव को पायलट को सही समय पर चेतावनी नहीं दे सके? क्या वायुसेना के सुरक्षा प्रोटोकॉल इस हद तक प्रभावी हैं कि इस तरह की त्रासदी को रोका जा सके?

क्या कहा था CAG ने अपनी रिपोर्ट में?

इससे एक दिन पहले ही भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने संसद के सामने रखी गई अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना (IAF) के पायलट प्रशिक्षण में गंभीर खामियों को उजागर किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि हेलिकॉप्टर पायलटों को Mi-17 V5 जैसे पुराने हेलिकॉप्टरों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इनमें लेटेस्ट एवियोनिक्स की कमी है।

भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने संसद के सामने रखी गई अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना (IAF) के पायलट प्रशिक्षण में गंभीर खामियों को उजागर किया था। रिपोर्ट में वायुसेना के ‘स्टेज-1’ प्रशिक्षण में इस्तेमाल हो रहे Pilatus PC-7 Mk-II विमान की खामियों को भी बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 64 विमानों में से 16 (25%) में 2013 से 2021 के बीच 38 बार इंजन ऑयल लीक की घटनाएं दर्ज की गईं।

सथ ही, CAG की रिपोर्ट में ‘स्टेज-2’ और ‘स्टेज-3’ पायलट ट्रेनिंग में पुरानी तकनीक और उपकरणों के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए गए। रिपोर्ट में कहा गया कि हेलिकॉप्टर पायलटों को Mi-17 V5 जैसे पुराने हेलिकॉप्टरों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इनमें लेटेस्ट एवियोनिक्स की कमी है, जिसके कारण ऑपरेशनल यूनिट्स को अतिरिक्त प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है। वहीं, ट्रांसपोर्ट पायलटों को डॉर्नियर-228 जैसे पुराने विमानों पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन विमानों में आधुनिक कॉकपिट की सुविधाएं नहीं हैं।

CAG ने वर्चुअल रियलिटी (VR) सिमुलेटर और फ्लाइंग ट्रेनिंग डिवाइस (FTD) की उपयोगिता पर भी सवाल उठाए। कहा, ये सिमुलेटर केवल प्रोसिजरल ट्रेनिंग देते हैं और रियल टाइम फ्लाइट एक्सपीरियंस का अहसास नहीं कराते।

Army Personnel Salary Attachment: सैन्य कर्मियों की सैलरी को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, केंद्र सरकार की अनुमति है जरूरी

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Army Personnel Salary Attachment: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि सेना कर्मियों की सैलरी को धारा 125 सीआरपीसी (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144) के तहत भरण-पोषण के बकाए को वसूलने के लिए अटैच नहीं किया जा सकता, क्योंकि केवल केंद्र सरकार को ही इस प्रकार की कटौती करने का अधिकार है।

Army Personnel Salary Attachment: High Court Rules Only Central Government Authorized for Deductions

न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार ने अपने आदेश में कहा कि सेना अधिनियम के तहत सेना कर्मियों को व्यापक अधिकार और सुरक्षा प्रदान की गई है, ताकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के अपने कर्तव्यों को बिना किसी बाहरी वित्तीय बाधा के प्रभावी ढंग से निभा सकें।

Army Personnel Salary Attachment: क्या है मामला?

यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने सेना कर्मी की सैलरी से 4,10,000 रुपये की कटौती का आदेश दिया था, ताकि भरण-पोषण का बकाया वसूल किया जा सके।

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याचिकाकर्ता के वकील मदन लाल सैनी ने तर्क दिया कि सेना अधिनियम (आर्मी एक्ट 1950) के तहत बिना केंद्र सरकार की स्वीकृति के इस प्रकार की कटौती नहीं की जा सकती।

सेना अधिनियम के तहत अधिकार और सुरक्षा

न्यायालय ने कहा कि सेना अधिनियम (आर्मी एक्ट 1950) की धारा 25 और 91 के तहत सेना कर्मियों की सैलरी और भत्तों से कटौती केवल केंद्र सरकार की अनुमति से ही संभव है। इसके अलावा, धारा 28 यह सुनिश्चित करती है कि सेना कर्मियों की सैलरी अटैच नहीं की जा सकती।

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न्यायालय ने यह भी कहा कि सेना कर्मियों को दिए गए अधिकार और विशेषाधिकार अन्य कानूनों के तहत उनके पास मौजूद किसी भी अधिकार या विशेषाधिकार को कम नहीं करते, बल्कि यह उनके लिए अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।

न्यायालय ने सेना अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं का हवाला दिया:

  • धारा 25 और 91: ये धाराएं जवानों के वेतन और भत्तों से कटौती के नियम तय करती हैं।
  • धारा 28: इस धारा के तहत जवानों के वेतन और भत्तों को जब्ती से सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • धारा 33: यह धारा स्पष्ट करती है कि जवानों को दिए गए अधिकार अन्य कानूनों के तहत दिए गए अधिकारों के पूरक हैं।

Army Personnel Salary Attachment: न्यायालय का निर्णय

न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार ने कहा, “निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार सेना कर्मी की सैलरी को अटैच नहीं किया जा सकता। भरण-पोषण के लिए तय 10,000 रुपये की कटौती के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई सिविल कोर्ट भरण-पोषण का आदेश देती है, तो लाभार्थी केंद्र सरकार से अनुरोध कर सकता है कि सेना अधिनियम की धारा 91(i) के तहत आवश्यक कटौती की जाए।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सेना कर्मियों को उनके कार्यों में बाधा पहुंचाने से बचाने के लिए यह विशेष संरक्षण दिया गया है। सेना कर्मियों को अपनी सैलरी और भत्तों पर निर्भर रहना पड़ता है, और इस प्रकार की कटौती उनके कर्तव्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

वहीं, उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार कर ली। साथ ही, जवाबदेही तय करते हुए यह निर्देश दिया कि भरण-पोषण के आदेश को लागू करने के लिए उत्तरदाता केंद्र सरकार से संपर्क कर सकता है।

क्या है धारा 125 सीआरपीसी?

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144) के तहत पत्नी, बच्चे और माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार दिया गया है। इसमें विशेष रूप से यह प्रावधान है कि यदि परिवार के लिए आवश्यक धनराशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो इसे अदालत द्वारा लागू कराया जा सकता है।

सेना कर्मियों के लिए क्या है खास?

सेना कर्मियों को उनके संवैधानिक अधिकारों और विशेषाधिकारों के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि उनके वेतन और भत्तों की कटौती केवल केंद्र सरकार की स्वीकृति से ही हो सकती है। यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि सेना कर्मी अपनी सेवा और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से समर्पित रह सकें।

न्यायालय के फैसले का महत्व

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि सेना कर्मियों के वेतन और भत्तों को लेकर केंद्र सरकार का विशेष अधिकार है। यह फैसला न केवल सेना कर्मियों के अधिकारों को सुरक्षित रखता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सिविल अदालतें इस संवेदनशील मुद्दे पर सीधे हस्तक्षेप न करें।