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Agniveer Recruitment: भारतीय सेना ने रचा इतिहास, देश के सबसे दक्षिणी छोर कैंपबेल बे में आयोजित हुई पहली अग्निवीर भर्ती रैली

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Agniveer Recruitment: भारतीय सेना ने देश की सीमाओं से परे समर्पण और एकता की मिसाल पेश करते हुए इतिहास रचाहै। भारतीय सेना ने ग्रेट निकोबार के कैंपबेल बे में देश के सबसे दक्षिणी छोर पर पहली बार अग्निवीर भर्ती रैली का आयोजन किया। यह आयोजन आर्मी रिक्रूटिंग ऑफिस चेन्नई के नेतृत्व में और जोनल रिक्रूटिंग ऑफिस चेन्नई के अधीन आयोजित किया गया।

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यह रैली न केवल भौगोलिक दृष्टि से ऐतिहासिक थी, बल्कि यह भारतीय सेना की उस प्रतिबद्धता का भी प्रतीक थी, जिसमें वह देश के हर कोने तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। इस आयोजन ने यह साबित किया कि सेना केवल सीमाओं की रक्षा ही नहीं करती, बल्कि राष्ट्रीय एकता और युवाओं के सशक्तिकरण में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है।

कैंपबेल बे जैसे दूरस्थ द्वीप पर यह रैली आयोजित करना आसान नहीं था। कैंपबेल बे भारत का सबसे दक्षिणी बसाहट वाला इलाका है, रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह इलाका भौगोलिक रूप से अलग-थलग है और यहां की मौसम भी चुनौतीपूर्ण रहता है। इसके बावजूद भारतीय सेना ने इस भर्ती रैली को सफलतापूर्वक संपन्न किया।

रैली के संचालन में थल सेना के साथ-साथ नौसेना, वायुसेना और स्थानीय प्रशासन का भी योगदान रहा। यह आयोजन ट्राई-सर्विसेज सिनर्जी और सिविल-मिलिट्री कॉपरेशन से संभव हो पाया। सेना ने इस रैली के लिए वायु, समुद्र और सड़क मार्ग का इस्तेमाल करते हुए उम्मीदवारों और इक्विपमेंट्स को कैंपबेल बे तक पहुंचाया।

इस ऐतिहासिक रैली में स्थानीय युवाओं ने उत्साह के साथ हिस्सा लिया। कई युवा सुदूर निकोबार द्वीपों से लंबी यात्रा करके भर्ती स्थल तक पहुंचे। रैली से पहले सेना ने व्यापक रजिस्ट्रेशन ड्राइव, प्रेरणा शिविर, और प्रि-रैली ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए थे। इन अभियानों में सेना की एम्फीबियन फॉर्मेशन ने विशेष सहयोग दिया। इन तैयारियों का परिणाम यह रहा कि रैली में बड़ी संख्या में योग्य और प्रशिक्षित उम्मीदवार शामिल हुए।

China Stealth Drone: भारत की सीमा से 145 किमी दूर चीन की बड़ी तैयारी, जे-20 फाइटर जेट के साथ तैनात किया ये खास स्टील्थ ड्रोन

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China Stealth Drone: भारत के लिए एक नई चुनौती खड़ी करते हुए चीन ने एलएसी से सटे तिब्बत के शिगात्से एयरबेस पर अपने अत्याधुनिक स्टील्थ कॉम्बैट ड्रोन जीजे-11 शार्प स्वॉर्ड को तैनात किया है। यह वही एयरबेस है जो भारत के सिक्किम राज्य से लगभग 90 मील यानी 145 किमी की दूरी पर स्थित है। यह इलाका लंबे समय से भारत-चीन के बीच तनाव का केंद्र रहा है।

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जे-20 के साथ मिशन पर रहेगा जीजे-11 स्टील्थ ड्रोन

चीन का यह स्टील्थ ड्रोन जीजे-11 शार्प स्वॉर्ड अब वहां पहले से तैनात जे-20 फिफ्थ जनरेशन स्टील्थ फाइटर जेट्स के साथ काम करेगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन इन दोनों को एक साथ मैन्ड-अनमैन्ड टीमिंग (एमयूएमटी) मॉडल पर ऑपरेट करने की तैयारी में है।

इस मॉडल में ड्रोन और फाइटर जेट एक साथ मिशन पर उड़ते हैं। ड्रोन पहले दुश्मन के इलाके में जाकर इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस यानी जासूसी और निगरानी करते हैं, जबकि फाइटर जेट बाद में हमला करते हैं।

जीजे-11 की खासियत यह है कि यह इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, कम्युनिकेशन जैमिंग, और एयर-टू-सरफेस तथा एयर-टू-एयर स्ट्राइक जैसे मिशन भी कर सकता है।

China deploys GJ-11 Sharp Sword drone near Sikkim
GJ-11 Sharp Sword at the Shigatse Air Base. (Planet Labs)

सैटेलाइट इमेज से हुआ खुलासा

प्लैनेट लैब्स की सैटेलाइट इमेजरी के विश्लेषण में अगस्त और सितंबर 2025 के बीच शिगात्से एयरबेस पर तीन जीजे-11 ड्रोन तैनात देखे गए हैं। यह वही एयरबेस है जहां पहले से चीन के जे-20 फाइटर जेट्स, जे-10सी, डब्ल्यूजेड-7 सोअरिंग ड्रैगन रिकॉनिसेंस ड्रोन, और अन्य एडवांस सिस्टम भी मौजूद हैं।

इन नई तस्वीरों से यह स्पष्ट है कि चीन अपनी हवाई क्षमताओं को भारत के पूर्वी मोर्चे पर लगातार बढ़ा रहा है।

शिगात्से एयरबेस तिब्बत के दक्षिणी हिस्से में स्थित है और यह भारत के सिक्किम राज्य की सीमा से मात्र 145 किलोमीटर (लगभग 90 मील) दूर है। यह वही इलाका है जहां 1967 में नाथू ला और चो ला में भारत और चीन के बीच भीषण झड़पें हुई थीं।

1967 की नाथू ला झड़प में लगभग 65 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 200 से अधिक चीनी सैनिक मारे गए थे।
इसके बाद भी 2017 में इसी क्षेत्र के पास डोकलाम में 70 दिनों तक दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध चला था।

भारत के लिए यह क्षेत्र बेहद रणनीतिक है क्योंकि यहीं से सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिकन नेक क्षेत्र देखा जा सकता है, जो उत्तर-पूर्व भारत को देश के बाकी हिस्से से जोड़ता है।

China deploys GJ-11 Sharp Sword drone near Sikkim
China GJ-11 Sharp Sword drone

जीजे-11 स्टील्थ ड्रोन की खूबियां

जीजे-11 स्टील्थ ड्रोन चीन का सबसे आधुनिक अनमैनड कॉम्बैट एरियल व्हीकल (यूसीएवी) है। यह पूरी तरह से फ्लाइंग-विंग डिजाइन पर आधारित है, यानी इसमें कोई पारंपरिक टेल या अलग फ्यूजलाज नहीं होता, जिससे यह रडार पर लगभग दिखाई नहीं देता। इसका रडार क्रॉस सेक्शन 0.05 वर्ग मीटर से भी कम बताया गया है, यानी यह बहुत कम रडार सिग्नल वापस भेजता है। यह ड्रोन लगभग सबसोनिक स्पीड पर उड़ता है और इसमें इंटरनल वेपन बे है, जिसमें यह बम और मिसाइलें रखता है।

2019 में चीन के नेशनल डे परेड में इसे पहली बार आधिकारिक रूप से दिखाया गया था। बाद में 2021 के एयर शो में इसके ओपन वेपन बे की तस्वीरें सामने आईं, जिनमें चार प्रिसिजन गाइडेड ग्लाइड बम देखे गए थे।

चीनी रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह ड्रोन डीप पेनिट्रेशन स्ट्राइक के लिए डिजाइन किया गया है, यानी यह दुश्मन के इलाके में अंदर तक जाकर हमला कर सकता है।

भारत के सामने नई चुनौती

शिगात्से एयरबेस दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे लंबे रनवे वाले एयरबेस में से एक है। यहां की मुख्य रनवे की लंबाई लगभग 5,000 मीटर (16,400 फीट) है, जिससे बड़े विमान और स्टील्थ जेट आसानी से उड़ान भर सकते हैं। 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान चीन ने यहां एक नई 3,000 मीटर की रनवे और सात बड़े पार्किंग बे बनाए थे। तब से यहां लगातार नए हैंगर और सर्विलांस सिस्टम जोड़े जा रहे हैं।

मई 2024 की सैटेलाइट तस्वीरों में यहां छह जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट्स को भी देखा गया था। अब जीजे-11 की तैनाती से साफ है कि चीन इस एयरबेस को अपनी “फ्रंटलाइन एयर डिफेंस एंड अटैक जोन” में बदल रहा है।

राफेल, सुखोई और एस-400 तैनात

भारत ने भी इस पूरे क्षेत्र में अपनी रक्षा तैयारियां मजबूत की हैं। पश्चिम बंगाल के हासिमारा एयरबेस में भारतीय वायुसेना के राफेल फाइटर जेट्स की दूसरी स्क्वाड्रन तैनात है। ये विमान पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में हवाई निगरानी और रक्षा की जिम्मेदारी संभालते हैं।

इसके अलावा, भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30 एमकेआई को भी एलएसी के पास विभिन्न बेसों पर तैनात किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने सिक्किम सेक्टर में एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की एक स्क्वाड्रन भी तैनात की है। वहीं, चीन के जीजे-11 ड्रोन की तैनाती को कई विशेषज्ञ भारत के एस-400 की तैनाती के जवाब के रूप में देख रहे हैं।

जीजे-11 का नेवल वर्जन भी तैयार

चीन का यह स्टील्थ ड्रोन केवल जमीनी बेस से ही नहीं बल्कि एयरक्राफ्ट कैरियर से भी उड़ान भरने में सक्षम है। 2023 में वुहान में बने चीन के लैंड-बेस्ड कैरियर मॉकअप पर जीजे-11 के नेवल वर्जन को जे-15 और जे-35 फाइटर जेट्स के साथ देखा गया था।

यह तस्वीरें चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो और रक्षा विश्लेषक आंद्रियास रुप्रेक्ट ने साझा की थीं, जो बताती हैं कि चीन इसे अपने भविष्य के कैरियर ऑपरेशंस में भी शामिल करने की योजना बना रहा है।

Astra Mark 2: अब वायुसेना 200 किमी दूर से ही दुश्मन को करेगी ढेर, पढ़ें अस्त्र मार्क-2 कैसे चीनी पीएल-15ई मिसाइलों से है बेहतर

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Astra Mark 2: भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय वायुसेना की ताकत में इजाफा करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। संगठन अब अपनी स्वदेशी अस्त्र मार्क-2 (एस्ट्रा मार्क 2) एयर-टू-एयर मिसाइल की रेंज को बढ़ाकर 200 किलोमीटर से अधिक करने की योजना पर काम कर रहा है। यह मिसाइल बियॉन्ड विजुअल रेंज कैटेगरी की है, यानी इसे दुश्मन को देखे बिना दूर से ही निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।

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रक्षा मंत्रालय को भेजे गए एक प्रपोजल के अनुसार, भारतीय वायुसेना इस मिसाइल की करीब 700 यूनिट्स खरीदने की तैयारी में है। इन मिसाइलों को वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमानों सुखोई-30 और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस पर लगाया जाएगा।

Astra Mark 2: 200 किलोमीटर से ज्यादा की रेंज

रक्षा सूत्रों के मुताबिक, अस्त्र मार्क-2 मिसाइल को पहले लगभग 160 किलोमीटर रेंज के लिए डेवलप किया जा रहा था, लेकिन अब डीआरडीओ ने इसकी क्षमता को और बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस नए संस्करण की रेंज 200 किलोमीटर से अधिक होगी, जिससे यह दुश्मन के विमानों को और ज्यादा दूरी से निशाना बना सकेगी।

यह मिसाइल हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की उस श्रेणी में शामिल होगी जो अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के पास हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, भारत इस कदम से दक्षिण एशिया में अपनी एरियल सुपीरियरिटी को बनाए रखने में सक्षम रहेगा।

Astra Mark 2: बनेगी वायुसेना की रीढ़

भारतीय वायुसेना लंबे समय से ऐसी मिसाइलों की तलाश में थी जो लॉन्ग रेंज एयर कॉम्बैट में भारत को बढ़त दिला सके। अस्त्र मार्क-2 के आने से सुखोई और तेजस विमानों की मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।

इन मिसाइलों की तैनाती से भारतीय वायुसेना को “बियॉन्ड विजुअल रेंज कॉम्बैट” में निर्णायक बढ़त मिलेगी। यानी भारतीय पायलट बिना दुश्मन के विमान को देखे, सिर्फ रडार संकेतों के आधार पर 200 किलोमीटर से ज्यादा दूरी से उसे गिरा सकेंगे।

वर्तमान में भारत के पास अस्त्र मार्क-1 मिसाइल है, जिसकी रेंज 100 किलोमीटर से ज्यादा है। नया मार्क-2 संस्करण उससे दोगुनी क्षमता वाला होगा।

कैसे काम करता है अस्त्र मार्क-2 मिसाइल सिस्टम

अस्त्र मिसाइल सिस्टम एक बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल है जिसे मिड-कोर्स इनर्शियल गाइडेंस और टर्मिनल एक्टिव रडार सीकर सिस्टम से लैस किया गया है। इसका मतलब है कि यह अपने टारगेट को पहले रडार डेटा के जरिए ट्रैक करता है और अंतिम चरण में रडार सीकर की मदद से सटीक निशाना लगाता है।

अस्त्र मार्क-2 में नए ड्यूल पल्स रॉकेट मोटर लगाए जाएंगे जो इसे लंबी दूरी पर भी स्थिर रफ्तार बनाए रखने में मदद करेंगे। इस मिसाइल में हाई ऑफ-बोरसाइट एंगल अटैक क्षमता भी होगी, जिससे यह तेजी से दिशा बदलने वाले दुश्मन विमानों को भी ट्रैक कर सकेगी।

इसमें डुअल-पल्स रॉकेट मोटर, AESA रडार सीकर, लेजर प्रॉक्सिमिटी फ्यूज, और इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेजर्स फीचर्स होंगे। यह मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग और जैमिंग रेसिस्टेंस में बेहतर है। इसकी स्पीड मैक 4+ है, और यह 20 किमी ऊंचाई तक काम करती है।

डीआरडीओ की इस परियोजना में देश के 50 से अधिक सार्वजनिक और निजी उद्योगों ने सहयोग दिया है। इनमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स, और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड जैसे प्रमुख रक्षा उद्योग शामिल हैं।

अस्त्र मार्क-2 की डिजाइन और परीक्षण डीआरडीओ की कई प्रयोगशालाओं जैसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी और रिसर्च सेंटर इमारत में किया जा रहा है। यह पूरी तरह स्वदेशी मिसाइल सिस्टम है और इसे “मेक इन इंडिया” रक्षा कार्यक्रम के तहत डेवलप किया जा रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ी लंबी दूरी की मिसाइलों की जरूरत

भारत ने पिछले वर्ष हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ लंबी दूरी से एयर स्ट्राइक की थी। उस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी ठिकानों और एयरबेस को स्टैंड-ऑफ रेंज से निशाना बनाया था।

उस समय पाकिस्तान ने चीन से मिली पीएल-15 एयर-टू-एयर मिसाइलों से जवाबी कार्रवाई की कोशिश की, लेकिन भारतीय फाइटर जेट्स ने उसके हमलों को विफल कर दिया। इसके बाद भारत ने यह महसूस किया कि उसे अपनी मिसाइल रेंज और टारगेटिंग क्षमता को और बढ़ाने की जरूरत है। रक्षा सूत्रों का कहना है कि अस्त्र मार्क-2 मिसाइल इसी के चलते डेवलप किया जा रहा है।

Astra Mark 2: चीन और पाकिस्तान के मुकाबले भारत की तैयारी

दक्षिण एशिया में चीन के पास जे-20 फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट्स हैं जो पीएल-15 मिसाइलें ले जाते हैं, जिनकी रेंज 200 किलोमीटर से अधिक है। पाकिस्तान को भी चीन ने अपने जेएफ-17 विमानों के लिए पीएल-15ई मिसाइलें दी हैं। रक्षा अधिकारियों के मुताबिक, अस्त्र मार्क-2 आने के बाद भारत को वियोंड विजुअल रेंज एयर कॉम्बैट में किसी विदेशी मिसाइल पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

बता दें कि अस्त्र मिसाइल का पहला संस्करण यानी अस्त्र मार्क-1 पहले ही भारतीय वायुसेना में है। इस मिसाइल को सुखोई-30 पर इंटीग्रेट किया गया है और इसके कई सफल परीक्षण हो चुके हैं। जुलाई 2025 में, ओडिशा तट से सुखोई से स्वदेशी सीकर के साथ सफल ट्रायल किए। दोनों लॉन्च हाई-स्पीड यूएवी टारगेट्स को विभिन्न रेंज पर नष्ट करने में सफल रहे। वहीं, तेजस एमके-1ए पर इंटीग्रेशन शुरू हो चुका है, जिसमें स्ट्रक्चरल फिटमेंट और लाइव-फायर ट्रायल शामिल हैं।

अस्त्र मार्क-1 की सफलता के बाद भारतीय नौसेना ने भी इसे अपने मिग-29के लड़ाकू विमानों पर लगाने की मंजूरी दी है। अब मार्क-2 के आने से भारत के तीनों सेनाओं के पास एक ही मिसाइल प्लेटफॉर्म पर आधारित एयर-टू-एयर विपन सिस्टम होगा।

700 मिसाइलों की खरीद

रक्षा मंत्रालय को भेजे गए प्रस्ताव में वायुसेना ने अस्त्र मार्क-2 की 700 यूनिट्स की खरीद की मांग की है। सूत्रों के अनुसार, इस खरीद की स्वीकृति जल्द मिलने की उम्मीद है। इसकी प्रति यूनिट लागत 7-8 करोड़ रुपये होगी, जो एमबीडीए मीटियोर 25 करोड़ रुपये से काफी कम है। इन मिसाइलों को चरणबद्ध तरीके से सुखोई और तेजस विमानों पर फिट किया जाएगा। इस परियोजना की अनुमानित लागत कई हजार करोड़ रुपये बताई जा रही है, जिसे डिफेंस कैपिटल बजट से स्वीकृत किया जाएगा।

वहीं, अस्त्र मार्क-2 मिसाइल का सीरियल उत्पादन भारत डायनेमिक्स लिमिटेड करेगा। जबकि डीआरडीओ इसके परीक्षण और गुणवत्ता जांच की निगरानी करेगा। मिसाइल का परीक्षण चरण पहले ही काफी आगे बढ़ चुका है और इसकी उड़ान परीक्षण जल्द पूरे किए जाएंगे।

Astra Mark 2 vs PL-15E

डीआरडीओ द्वारा हाल ही में रिकवर की गई पीएल-15ई (एक्सपोर्ट वर्जन) में पाया कि चीन की यह मिसाइल अपनी प्रसिद्धि के मुकाबले उतनी एडवांस नहीं है जितना दावा किया गया था। वहीं, अस्त्र मार्क-2 रेंज और सटीकता दोनों में पीएल-15ई से बेहतर है। जहां अस्त्र की रेंज 160 से 200 किलोमीटर तक है, वहीं एक्सपोर्ट पीएल-15ई की रेंज 145 किलोमीटर तक है।

अस्त्र मार्क-2 में डुअल-पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर, AESA रडार सीकर, और एडवांस जैमिंग रोधी सिस्टम लगे हैं। वहीं पीएल-15ई में एक्टिव रडार होमिंग सिस्टम और मिड-कोर्स अपडेट फीचर हैं, लेकिन डीआरडीओ के मुताबिक इसकी टारगेट लॉकिंग सटीकता और जैमिंग रेजिस्टेंस अपेक्षाकृत कमजोर है।

भारतीय मिसाइल का वजन लगभग 154 किलोग्राम और लंबाई 3.8 मीटर है, जबकि पीएल-15ई का वजन 200 किलोग्राम तक है। अस्त्र को सुखोई, तेजस, राफेल और मिग-29 जैसे विमानों पर लगाया जा सकता है, जबकि पीएल-15ई चीन के जे-20, जे-10सी और पाकिस्तान के जेएफ-17 में लगाई जा सकती है।

Ex-Servicemen Grant: रक्षा मंत्री का बड़ा फैसला; पूर्व सैनिकों के लिए आर्थिक सहायता हुई दोगुनी, मिलेगी 8,000 रुपये पेंशन और 1 लाख रुपये विवाह अनुदान

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Ex-Servicemen Grant: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने केंद्रीय सैनिक बोर्ड के माध्यम से चलाई जाने वाली कल्याण योजनाओं के तहत मिलने वाली वित्तीय मदद को 100 फीसदी तक बढ़ाने की मंजूरी दे दी है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, तीन प्रमुख योजनाओं में 100 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। इनमें पेनरी ग्रांट, एजुकेशन ग्रांट और विवाह अनुदान शामिल है। यह सुधार 1 नवंबर 2025 से लागू होंगे।

Commutation of Pension: 15 साल की रिकवरी पॉलिसी के खिलाफ एकजुट हुए पूर्व सैनिक, पेंशन कम्यूटेशन के नियमों पर फिर से हो विचार

यह फैसला देश के उन लाखों पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जो पेंशन नहीं लेते या सीमित साधनों में जीवनयापन कर रहे हैं। सरकार का यह कदम उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल माना जा रहा है।

पेनरी ग्रांट 4,000 से बढ़ाकर 8,000 रुपये प्रति माह

अब तक आर्थिक रूप से कमजोर और गैर-पेंशनधारी पूर्व सैनिकों को प्रति माह 4,000 रुपये की मदद दी जाती थी। नई व्यवस्था के तहत यह राशि अब 8,000 रुपये प्रति माह प्रति व्यक्ति कर दी गई है।

यह अनुदान 65 वर्ष से अधिक आयु के उन पूर्व सैनिकों और विधवाओं को दिया जाएगा, जिनकी कोई नियमित आय नहीं है। यह योजना उनके लिए आजीवन आर्थिक सहारा के रूप में काम करेगी। इस निर्णय से देशभर में हजारों ऐसे पूर्व सैनिक परिवारों को राहत मिलेगी जो अब तक केवल सरकारी अनुदानों पर निर्भर थे।

एजुकेशन ग्रांट अब 2,000 रुपये प्रति छात्र

सरकार ने पूर्व सैनिकों के बच्चों और विधवाओं के लिए शिक्षा सहायता में भी बड़ा बदलाव किया है। पहले यह राशि 1,000 प्रति माह थी, अब इसे बढ़ाकर 2,000 रुपये प्रति माह प्रति बच्चा कर दिया गया है। यह सहायता कक्षा पहली से लेकर स्नातक स्तर तक के अधिकतम दो बच्चों के लिए दी जाएगी। वहीं, अगर कोई विधवा स्वयं दो वर्ष की स्नातकोत्तर पढ़ाई कर रही है, तो उसे भी यह अनुदान मिलेगा।

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि “इस सहायता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी सैनिक परिवार का बच्चा आर्थिक तंगी के कारण अपनी पढ़ाई बीच में न छोड़े।”

विवाह अनुदान अब 50,000 की जगह 1,00,000 रुपये

विवाह अनुदान में भी अब 100 फीसदी की वृद्धि की गई है। अब यह राशि 50,000 से बढ़ा कर 1,00,000 रुपये कर दी गई है। यह सुविधा पूर्व सैनिकों की अधिकतम दो बेटियों के विवाह के लिए लागू होगी। साथ ही, यदि किसी विधवा का पुनर्विवाह होता है, तो उसे भी 1 लाख रुपये का अनुदान मिलेगा। यह नियम उन विवाहों पर लागू होगा जो इस आदेश के जारी होने के बाद सम्पन्न होंगे।

इन योजनाओं के तहत बढ़ाई गई राशि से सरकार पर वार्षिक लगभग 257 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। यह राशि आर्मड फोर्सेस फ्लैग डे फंड (एएफएफडीएफ) से पूरी की जाएगी, जो रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले रक्षा मंत्री ईएक्स-सर्विसमेन वेलफेयर फंड का हिस्सा है।

एएफएफडीएफ वह फंड है जो हर साल नागरिकों के स्वैच्छिक योगदान से जुटाया जाता है। 7 दिसंबर को मनाए जाने वाले आर्मड फोर्सेस फ्लैग डे के अवसर पर देशभर के लोग शहीदों और सेवानिवृत्त सैनिकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इस फंड में योगदान करते हैं।

यह फंड विशेष रूप से उन पूर्व सैनिकों, विधवाओं और आश्रितों की मदद के लिए उपयोग किया जाता है जिनकी आय सीमित है या जिनके पास पेंशन का कोई स्रोत नहीं है।

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य देश की उन लाखों वर्दीधारी वीरों के परिवारों को सम्मान देना है जिन्होंने अपने जीवन का सबसे बहुमूल्य समय देश की सेवा में समर्पित किया। सरकार का कहना है कि “देश की रक्षा करने वाले हमारे सैनिक केवल वर्दी में ही नहीं, बल्कि उसके बाद भी सम्मान और सहयोग के पात्र हैं।”

यह फैसला विशेष रूप से नॉन-पेंशनर और लो-इनकम ग्रुप के पूर्व सैनिकों को ध्यान में रखकर लिया गया है, ताकि उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

पूर्व सैनिक की पात्रता- कौन हैं लाभार्थी

रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग (डीईएसडब्ल्यू) के अनुसार, भूतपूर्व सैनिक यानी एक्स-सर्विसमैन (ईएसएम) की पात्रता निम्नलिखित मानदंडों पर आधारित होती है।

जो अधिकारी या सैनिक 20 वर्ष या उससे अधिक की सेवा पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त होते हैं, उन्हें स्वचालित रूप से एक्स-सर्विसमैन का दर्जा मिलता है। यदि कोई अधिकारी प्रीमेचर रिटायरमेंट (पीएमआर) लेकर 20 साल से पहले रिटायर होता है, तो उसे एक्स-सर्विसमैन का दर्जा तभी मिलता है, जब वह पेंशन या डिसेबिलिटी पेंशन प्राप्त कर रहा हो।

नई भर्ती योजना अग्निपथ योजना के तहत चार वर्ष की सेवा देने वाले अग्निवीर सामान्य रूप से एक्स-सर्विसमैन नहीं माने जाते। हालांकि, यदि कोई अग्निवीर सेवा के दौरान घायल होता है या विकलांगता के कारण सेवानिवृत्त किया जाता है, तो उसे एक्स-सर्विसमैन का दर्जा और पेंशन सुविधाएं मिल सकती हैं।

देश में कितने हैं पूर्व सैनिक

भारत में वर्तमान में लगभग 35 लाख से अधिक एक्स-सर्विसमैन और उनके परिवार रजिस्टर्ड हैं। इनमें से बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों से है, जहां रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी अधिक है। पूर्व सैनिकों को न केवल सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलता है, बल्कि उन्हें शिक्षा, चिकित्सा और पुनर्वास योजनाओं के तहत भी सहायता प्रदान की जाती है।

केंद्रीय सैनिक बोर्ड, राज्य सैनिक बोर्ड और जिला सैनिक बोर्ड, इन योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
यही संस्थाएं पात्र व्यक्तियों को पहचान कर लाभ पहुंचाने का कार्य करती हैं।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कही ये बात

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “भारत सरकार अपने सैनिकों और उनके परिवारों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है। जो लोग सीमाओं पर देश की रक्षा करते हैं, उनके लिए यह सरकार हमेशा खड़ी है। यह निर्णय हमारे पूर्व सैनिकों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और राष्ट्रीय कर्तव्य का प्रतीक है।”

उन्होंने कहा कि “हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी सैनिक या उसकी विधवा को उम्र के इस दौर में आर्थिक असुरक्षा का सामना न करना पड़े।”

वर्तमान में देशभर में लगभग 25 लाख नॉन-पेंशनर पूर्व सैनिक परिवार हैं जो इन सहायता योजनाओं पर निर्भर हैं।
इन योजनाओं का वित्तीय प्रबंधन रक्षा मंत्री पूर्व सैनिक कल्याण कोष के माध्यम से किया जाता है, जो आर्मड फोर्सेस फ्लैग डे फंड (एएफएफडीएफ) की एक उप-श्रेणी है।

यह फंड मुख्य रूप से कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी योगदान, सार्वजनिक दान और रक्षा मंत्रालय के आवंटन से चलता है। रक्षा मंत्रालय का कहना है कि आने वाले वर्षों में डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए इन योजनाओं को और पारदर्शी बनाया जाएगा ताकि आवेदन और भुगतान प्रक्रिया में तेजी आए।

सरकार का यह निर्णय उस व्यापक नीति का हिस्सा है जिसके तहत सरकार सैन्य कर्मियों के सेवा-पश्चात जीवन की गुणवत्ता सुधारना चाहती है। वर्ष 2024 में भी सरकार ने आर्मड फोर्सेस फ्लैग डे फंड के पुनर्गठन, ईसीएचएस कार्ड वितरण में सुधार और पुनर्वास केंद्रों के विस्तार जैसे कदम उठाए थे।

अब इस नई घोषणा से सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह देश की सशस्त्र सेनाओं के योगदान को सिर्फ युद्ध के मैदान में ही नहीं, बल्कि समाज के हर स्तर पर सम्मान देना चाहती है।

Pakistan-IS-Khorasan: तालिबान का खुलासा, आईएसआई और पाक सेना चला रही है आईएसआईएस-खोरासान नेटवर्क, ईरान-रूस बम धमाकों में भी हाथ

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Pakistan-IS-Khorasan: तालिबान ने पहली बार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सेना की भूमिका को लेकर बड़ा खुलासा किया है। तालिबान के आधिकारिक प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने दावा किया है कि पाकिस्तान की जमीन से आईएसआईएस-खोरासान (आईएस-के) को ऑपरेट किया जा रहा है और ईरान तथा रूस में हुए बड़े आतंकी हमले इन्हीं पाकिस्तानी नेटवर्क से योजनाबद्ध तरीके से किए गए थे।

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मुजाहिद के इस बयान को क्षेत्रीय राजनीति में हलचल पैदा करने वाला माना जा रहा है। भारत की खुफिया एजेंसियों ने भी उन रिपोर्टों की भी पुष्टि की है, जिनमें पहले ही चेतावनी दी गई थी कि पाकिस्तान की आईएसआई और सेना के कुछ अधिकारी आईएसआईएस-खोरासान मॉड्यूल्स को चला रहे हैं और इन्हें अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से ऑपरेट किया जा रहा है।

Pakistan-IS-Khorasan: पाकिस्तान की धरती से रची गई थी साजिश

जबीहुल्ला मुजाहिद ने हाल ही में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ईरान के केरमान शहर में जनवरी 2024 में हुए आत्मघाती हमले और मार्च 2024 में रूस के मॉस्को क्रोकस सिटी हॉल में हुए बम धमाकों की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी।

उन्होंने कहा, “ये दोनों हमले पाकिस्तान की जमीन पर बैठे आईएसआईएस-खोरासान के नेटवर्क ने आईएसआई की मदद से किए थे। आईएसआईएस-खोरासान का नेतृत्व पाकिस्तान में मौजूद है, और इन्हें वहां की सैन्य खुफिया एजेंसी से मदद मिल रही है।”

तालिबान के अनुसार, इन हमलों की प्लानिंग और ऑपरेशन पाकिस्तान के केंद्रों से हुआ था। मुजाहिद ने कहा कि “पाकिस्तान की सेना और आईएसआई के कुछ लोग इलाके में शांति नहीं चाहते और वे अफगानिस्तान को अस्थिर बनाए रखना चाहते हैं।”

ईरान और रूस में हुए हमले के पीछे आईएसआईएस-खोरासान

ईरान के केरमान में हुआ धमाका जनरल कासिम सुलेमानी की बरसी के मौके पर किया गया था। इस हमले में करीब 100 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। ईरानी जांच में पाया गया कि मुख्य आरोपी अब्दुल्ला ताजिकी पाकिस्तान से ईरान में दाखिल हुआ था।

रूस के मॉस्को क्रोकस सिटी हॉल में मार्च 2024 में हुआ हमला भी आईएसआईएस-खोरासान ने किया था, जिसे बाद में उसने स्वीकारा भी था, जिसमें 145 लोगों की मौत हुई थी। अमेरिकी अधिकारियों ने इसे “आईएसआईएस-खोरासान का रूस में पहला सफल हमला” बताया था।

हालांकि, मॉस्को ने उस समय “किसी दुश्मन देश की गुप्त एजेंसियों” पर संदेह जताया था, जिसका इशारा यूक्रेन की ओर था। अब तालिबान के बयान से यह साफ हुआ कि यह हमला पाकिस्तान से चल रहे नेटवर्क के जरिए हुआ था।

Pakistan-IS-Khorasan: भारतीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट सही साबित

भारत की खुफिया एजेंसियां पहले से ही इस संभावना पर काम कर रही थीं कि आईएसआईएस-खोरासान का नेटवर्क पाकिस्तान में आईएसआई के निर्देशों के तहत काम कर रहा है।

दिल्ली, रांची, हैदराबाद और अन्य शहरों में जिन आईएस-प्रेरित मॉड्यूल्स का भंडाफोड़ हुआ था, उनकी जांच में पाया गया था कि ऑनलाइन हैंडलर पाकिस्तान में बैठे आईएसआई ऑपरेटिव्स थे। तकनीकी जांच में इनके आईपी एड्रेस पाकिस्तान के रावलपिंडी, पेशावर और कराची से जुड़े पाए गए थे।

भारतीय एजेंसियों के एक अधिकारी के अनुसार, “तालिबान का बयान हमारे उस विश्लेषण को सही साबित करता है कि पाकिस्तान न केवल आतंकवाद का पनाहगाह है बल्कि वह आईएसआईएस-खोरासान जैसे संगठनों का ऑपरेशनल सेंटर भी बन चुका है।”

Pakistan-IS-Khorasan: तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव

तालिबान प्रवक्ता ने पाकिस्तान पर यह भी आरोप लगाया कि वह अफगानिस्तान में अस्थिरता फैलाने और आतंकी समूहों को समर्थन देने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि आईएसआईएस-खोरासान के कई ठिकाने खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के इलाकों में सक्रिय हैं।

तालिबान के अनुसार, पाकिस्तान ने आतंकियों को सुरक्षित पनाह दी हुई है, जो अफगानिस्तान की सीमा पर हमले करने की योजना बनाते हैं। मुजाहिद ने कहा कि “पाकिस्तान के कुछ सैन्य अधिकारी आईएसआईएस-खोरासान की गतिविधियों को अनदेखा कर रहे हैं। वे क्षेत्र में अराजकता बनाए रखना चाहते हैं ताकि अफगानिस्तान पर राजनीतिक दबाव डाला जा सके।”

तालिबान के इस बयान के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। ईरान और रूस दोनों पहले से आईएसआईएस-खोरासान के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन अब जब तालिबान ने सीधे पाकिस्तान की ओर इशारा किया है, तो इससे दक्षिण एशिया में राजनयिक समीकरण बदलने के संकेत मिल रहे हैं।

मुजाहिद ने कहा, “ईरान और रूस इस साजिश से वाकिफ हैं।” उनका कहना था कि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना की मिलीभगत से आईएसआईएस-खोरासान ने पाकिस्तान से पश्चिमी देशों तक धन और संसाधनों का नेटवर्क तैयार किया था।

आईएसआईएस-खोरासान (इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत) की स्थापना 2015 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में हुई थी। यह संगठन आईएसआईएस का क्षेत्रीय रूप है, जो मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में अपना नेटवर्क फैलाने की कोशिश कर रहा है।

तालिबान और आईएसआईएस-खोरासान के बीच लंबे समय से टकराव रहा है। तालिबान अफगानिस्तान में खुद को “इस्लामी अमीरात” के वैध शासक के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि आईएसआईएस-खोरासान उसे “पश्चिमी समझौते” का हिस्सा बताकर विरोध करता रहा है।

अब जब तालिबान खुद आईएसआई पर आईएसआईएस-खोरासान को सहयोग देने का आरोप लगा रहा है, तो यह अफगान-पाक संबंधों में पैदा होती नई खाई को दर्शाता है।

Pakistan-IS-Khorasan: भारत के लिए क्या हैं मायने

भारत ने हमेशा से कहा है कि पाकिस्तान अपने भूभाग का इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए करता है। तालिबान का यह बयान भारत की सुरक्षा एजेंसियों की विश्वसनीयता को और मजबूत करता है।

भारत के लिए यह एक संकेत है कि आईएसआईएस-खोरासान का नेटवर्क केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं बल्कि पाकिस्तान की सैन्य संरचना से जुड़ा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पहले से ही आईएसआईएस और उससे जु़ड़े संगठनों के खिलाफ व्यापक निगरानी अभियान चला रही हैं।

Top 5 Defence Stocks: इस पांच डिफेंस शेयरों पर रखें नजर, सरकार के रक्षा सुधारों का इन कंपनियों को मिलेगा फायदा, जानें टारगेट प्राइस

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Top 5 Defence Stocks: सरकार ने डिफेंस प्रोक्योरमेंट सिस्टम को अधिक पारदर्शी और तेज बनाने के लिए कई अहम फैसले लिए हैं। इसी दिशा में हाल ही में एंटिक डिफेंस एंड एयरोस्पेस कॉन्फ्रेंस 4.0 – फेज 2 का आयोजन किया गया, जहां रक्षा मंत्रालय के अपर सचिव (एएसडी) ने भारतीय डिफेंस इंडस्ट्रीज के लिए कई नए एलान किए।

उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य भारत को 2047 तक एक वैश्विक रक्षा निर्माण केंद्र बनाना है। इसके लिए डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट्स को तेजी से अंतिम रूप देना, निजी कंपनियों के प्रोडक्ट्स का जल्द से जल्द फील्ड परीक्षण करना और रक्षा निर्यात बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

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सितंबर 2025 में सरकार ने डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैनुअल (डीपीएम) में भी बदलाव किए हैं। वहीं, डिफेंस एक्विजिशन प्रोसीड्योर (डीएपी) में सुधार का काम भी दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाएगा।

इस सम्मेलन के बाद एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग ने पांच प्रमुख भारतीय रक्षा कंपनियों हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), मझगांव डॉक एंड शिपबिल्डर्स, जेन टेक्नोलॉजीज, और पीटीसी इंडस्ट्रीज को अपने पसंदीदा शेयरों में शामिल किया है।

Top 5 Defence Stocks: हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड

एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग ने एचएएल को “बॉय” रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस 6,360 रुपये तय किया है। एचएएल को आने वाले वर्षों में सबसे ज्यादा फायदा भारतीय वायुसेना के एक्सपेंशन प्लान से मिल सकता है। वायुसेना का लक्ष्य अपने फाइटर स्क्वॉड्रन को 31 से बढ़ाकर 42 करना है। इससे एचएएल को अगले 10–15 सालों में 300 से अधिक विमान जैसे तेजस एमके-1ए, तेजस एमके-II और एएमसीए (5वीं पीढ़ी) बनाने का अवसर मिलेगा।

कंपनी अब हर साल 24 तेजस एमके-1ए विमान बनाने की क्षमता बढ़ा रही है। साथ ही, जीई के एफ404 इंजनों की डिलीवरी से सप्लाई चेन में सुधार आया है।

एचएएल ने जीई के साथ भारत में एफ414 इंजन निर्माण के लिए समझौता किया है, जिसके तहत 80% टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगा, जो आने वाले वर्षों में 100% तक पहुंच सकता है। इसके अलावा साफरान के साथ एक जॉइंट वेंचर के जरिए हेलिकॉप्टरों के लिए टर्बोशाफ्ट इंजिन भी तैयार किया जाएगा।

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड

बीईएल को देश में रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी माना जाता है। इसे एंटिक ने “बाय” रेटिंग देते हुए 454 रुपये का टारगेट दिया है। कंपनी को क्यूआरएसएएम मिसाइल सिस्टम के लिए लगभग 30,000 करोड़ रुपये का ऑर्डर वित्त वर्ष 26 की चौथी तिमाही में मिलने की उम्मीद है। कुल ऑर्डर इनफ्लो 57,000 करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है, जिससे बीईएल की आय स्थिर बनी रहेगी।

बीईएल अपने उत्पादन केंद्रों को आधुनिक बना रही है। इसके लिए कंपनी हर साल 700 से 800 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश कर रही है। साथ ही कंपनी नई इलेक्ट्रो-आप्टिकल और इलेक्ट्रोनिक वारफेयर सुविधाओं का भी विस्तार कर रही है।

मझगांव डॉक एंड शिपबिल्डर्स

मझगांव डॉक भारतीय नौसेना के लिए जहाजों और पनडुब्बियों का निर्माण करती है। कंपनी इस समय सबमरीन प्रोजेक्ट पी-75ए के तहत छह नई पनडुब्बियों के निर्माण के लिए कॉन्ट्रैक्ट निगोशिएशंस कर रही है। इसके साथ ही अतिरिक्त स्कॉर्पिन क्लास पनडुब्बियों के लिए भी ऑर्डर मिलने की संभावना है।

कुल संभावित ऑर्डर का आकार 1–1.05 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है, जो कंपनी के वर्तमान ऑर्डर बुक से तीन गुना अधिक है। एंटिक ने माजागॉन डॉक के लिए “बाय” रेटिंग और 3,856 रुपये का टारगेट तय किया है।

पीटीसी इंडस्ट्रीज

पीटीसी इंडस्ट्रीज ने रक्षा क्षेत्र में स्ट्रेटेजिक मैटीरियल मैन्युफैक्चरिंग को नई दिशा दी है। इसकी एरोलॉयज टेक्नोलॉजीज यूनिट लखनऊ में स्ट्रेटेजिक मैटीरियल टेक्नोलॉजी कॉम्प्लेक्स बना रही है। यह विश्व की सबसे बड़ी टाइटेनियम रिसाइक्लिंग एंड रिमेल्टिंग फेसिलिटीज में से एक होगी।

कंपनी का लक्ष्य अगले पांच से छह सालों में अपनी आमदनी को 10 से 20 गुना बढ़ाकर 3,500 से 7,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का है। एंटिक ने इसके लिए “बाय” रेटिंग और 19,016 रुपये का टारगेट प्राइस दिया है।

कंपनी का कास्टिंग सेगमेंट 50% से अधिक का ईबीआईटीडीए मार्जिन दिखा रहा है, जो इसके मुनाफे को और मज़बूती देगा।

जेन टेक्नोलॉजीज

जेन टेक्नॉलॉजीज भारत की अग्रणी एंटी-ड्रोन सिस्टम्स (एडीएस) और सिम्युलेशन-बेस्ड मिलिट्री ट्रेनिंग कंपनी है। भारत में एडीएस बाजार अगले पांच साल में 10,000 रुपये करोड़ तक पहुंच सकता है। कंपनी को इस क्षेत्र में शुरुआती बढ़त मिली है।

हालांकि वित्त वर्ष 26 में कुछ ऑर्डरों में देरी के कारण आय में थोड़ी गिरावट आ सकती है, लेकिन वित्त वर्ष 27 से एंटी-ड्रोन सिस्टम्स और सिमुलेशन सेक्टर में कंपनी की पकड़ और मजबूत होगी। एंटिक ने जेन टेक्नॉलॉजीज के लिए “बाय” रेटिंग और 1,866 रुपये का टारगेट प्राइस तय किया है।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, भारत का लक्ष्य है कि वह 2047 तक दुनिया के प्रमुख रक्षा निर्यातकों और निर्माण केंद्रों में शामिल हो। इसके लिए सरकार ने रक्षा खरीद प्रक्रिया को तेज, सरल और पारदर्शी बनाने के लिए नए दिशा-निर्देश लागू किए हैं।

फास्टर कॉन्ट्रैक्ट एप्रूवल, निजी क्षेत्र के लिए अवसर, और रक्षा उत्पादों के निर्यात में वृद्धि के कदम इस रणनीति का हिस्सा हैं। इन सुधारों से एचएएल, बीईएल, मझगांव डॉक, जेन टेक्नोलॉजीज और पीटीसी इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों को सीधा फायदा होगा।

डिस्क्लेमर: शेयरों में निवेश करने से वित्तीय नुकसान का जोखिम होता है। इसलिए, निवेशकों को शेयरों में निवेश या ट्रेडिंग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। निवेश करने से पहले कृपया अपने निवेश सलाहकार से सलाह लें।

EME Tech Fest 2025: भारतीय सेना ने उद्योग और शिक्षा जगत के साथ मिलाया हाथ, 15 अक्टूबर को है ईएमई कॉर्प्स डे

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EME Tech Fest 2025: भारतीय सेना की इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (EME) कोर ने इस वर्ष का ईएमई कॉर्प्स डे वीक टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन और इंडस्ट्री-अकादमिया कोलाबोरेशन के साथ मनाया। हर साल ईएमई कॉर्प डे 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस अवसर पर डायरेक्टर जनरल ईएमई और कर्नल कमांडेंट, कोर ऑफ ईएमई लेफ्टिनेंट जनरल राजीव के. साहनी एचक्यू बेस वर्कशॉप ग्रुप में आयोजित ईएमई टेक फेस्ट 2025 में शामिल हुए।

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यह आयोजन भारतीय सेना के व्यापक आउटरीच प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में उद्योग और अकादमिक जगत के साथ सीधा संवाद स्थापित करना है। इस तरह के आयोजन सेना भविष्य की तकनीकी जरूरतों को समझने और नए समाधानों के विकास में मिलकर काम करने के लिए किए जा रहे हैं।

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भारतीय सेना के बेस वर्कशॉप्स को सेना की फैक्ट्रियों की तरह माना जाता है। यहां पर सेना के हथियारों, मशीनों और वाहनों की मरम्मत और देखभाल की जाती है ताकि वे हर समय इस्तेमाल के लिए तैयार रहें। अब सेना चाहती है कि ये वर्कशॉप्स नई तकनीकें अपनाएं और इंडस्ट्री 4.0 यानी आधुनिक औद्योगिक तरीकों के अनुसार काम करें। इस दिशा में इंडस्ट्री और एकेडेमिया पार्टनरशिप सेना की कार्यक्षमता को और मजबूत करेगी।

इस दिशा में सेना ने देश के उद्योगों और कॉलेजों के साथ साझेदारी करने का फैसला किया है ताकि डिफेंस सेक्टर में नई टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा सके। इस आयोजन में उद्योग, अकादमिक संस्थानों और रक्षा क्षेत्र से जुड़े विषय विशेषज्ञों के साथ-साथ तीनों सेनाओं के वरिष्ठ पूर्व सैनिकों ने हिस्सा लिया। सभी प्रतिभागी एक ही मंच पर इकट्ठा हुए और सभी ने मिलकर रक्षा क्षेत्र में हो रहे बदलावों और तकनीकी जरूरतों पर चर्चा की।

कार्यक्रम में कई अहम विषयों पर बात हुई, जैसे इंडस्ट्री 4.0 और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन मैन्युफैक्चरिंग, डिफेंस एंड स्टार्टअप्स, रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग और डिफेंस प्रोक्योरमेंट में क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को कैसे बेहतर बनाया जाए। विशेषज्ञों ने भारतीय सेना के बेस वर्कशॉप्स के लिए उपयुक्त नई उत्पादन तकनीकों और इंडिजिनाइज्ड सिस्टम्स के महत्व पर भी चर्चा की।

आयोजन के दौरान सेना और उद्योग जगत के बीच तकनीकी सामंजस्य को मजबूत करने की दिशा में ठोस पहल की गई। सेना का मानना है कि इस प्रकार के तकनीकी कार्यक्रम न केवल रक्षा तैयारी को मजबूत बनाते हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

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लेफ्टिनेंट जनरल राजीव के साहनी ने कहा कि यह टेक फेस्ट भारतीय सेना के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल सेना की तकनीकी क्षमता बढ़ेगी बल्कि देश के उद्योगों और युवाओं को भी रक्षा क्षेत्र में काम करने के नए अवसर मिलेंगे। सेना का कहना है कि यह टेक फेस्ट आने वाले समय में हर साल आयोजित किया जाएगा ताकि रक्षा से जुड़ी तकनीक पर निरंतर काम हो सके और उद्योग व शिक्षा जगत के साथ तालमेल बना रहे।

ईएमई कोर भारतीय सेना का वह विभाग है, जो सेना के सभी इलेक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल और ऑप्टिकल उपकरणों की मरम्मत और मेंटेनेंस के लिए जिम्मेदार है। कोर ऑफ ईएमई यह सुनिश्चित करती है कि हर इक्विपमेंट और हथियार हमेशा तैयार रहें।

Bharat Tank India: जोरावर के बाद आ रहा है एक और हल्का टैंक ‘भारत’, 2026 तक हो जाएगा तैयार, जानें खूबियां

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Bharat Tank India: सरकारी रक्षा निर्माण कंपनी आर्मर्ड वीहिकल्स निगम लिमिटेड (एवीएनएल) ने एलान किया है कि वह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से एक नया हल्का टैंक ‘भारत’ (Bharat Tank) तैयार कर रही है। कंपनी का कहना है कि इसका पहला प्रोटोटाइप साल 2026 के अंत तक तैयार कर लिया जाएगा।

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यह एलान चेन्नई ट्रेड सेंटर में आयोजित एरोडेफकोन 2025 (AeroDefCon 2025) प्रदर्शनी के दौरान किया गया गई, जहां देश की कई प्रमुख रक्षा कंपनियों ने अपने नए प्रोडक्ट्स और प्रोजेक्ट्स पेश किए।

‘भारत टैंक’ को विशेष रूप से भारत की पहाड़ी इलाकों, बर्फीले इलाकों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जा रहा है। यह टैंक उन इलाकों में तैनात किया जाएगा, जहां भारी-भरकम टैंकों को ऑपरेट करना मुश्किल होता है।

एवीएनएल के मुताबिक, “हम 100 फीसदी स्वदेशी तकनीक से भारत टैंक बना रहे हैं। इसका डिजाइन और डेवलपमेंट 2025 के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा और 2026 के आखिर तक इसका पहला प्रोटोटाइप रोल आउट कर दिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि कंपनी इस प्रोजेक्ट को शीर्ष प्राथमिकता दे रही है क्योंकि यह भारतीय सेना के लिए बूस्टर साबित होगा।

‘भारत’ टैंक का वजन करीब 25 टन होगा और इसे ऊंचे व दुर्गम इलाकों में तेजी से चलने लायक बनाया जा रहा है। टैंक में आधुनिक कॉम्पोजिट आर्मर, हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स और मॉड्यूलर विपन सिस्टम लगाया जाएगा। इन फीचर्स की मदद से टैंक में बैठे सैनिकों को युद्ध के दौरान रियल-टाइम बैटल अवेयरनेस मिलेगी।

यह टैंक न केवल हल्का और तेज होगा बल्कि इसकी फायरिंग रेंज, एक्युरेसी और मोबिलिटी भी मौजूदा टैंकों के मुकाबले कहीं ज्यादा होगी। इसका उद्देश्य है, सेना को ऐसा प्लेटफॉर्म देना जो ऊंचाई वाले इलाकों, बर्फीले मोर्चों और सीमावर्ती घाटियों में दुश्मन की हर चाल को नाकाम कर सके।

एवीएनएल भारत के डिफेंस प्रोडक्शन सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। यह रक्षा मंत्रालय के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है, जो देशभर में पांच प्रमुख प्रोडक्शन यूनिट्स को ऑपरेट करती है। तमिलनाडु के अवडी में स्थित इसकी फैक्ट्री को एशिया के सबसे बड़े टैंक निर्माण केंद्रों में गिना जाता है।

कंपनी ने बताया कि उसके पास फिलहाल अर्जुन मेन बैटल टैंक, टी-90 भीष्म, टी-72 अजेय और बीएमपी-II सरथ जैसे कई सफल मॉडल पहले से मौजूद हैं। इन टैंकों ने भारतीय सेना की ताकत को नई ऊंचाई दी है। अब “भारत टैंक” इस परंपरा को आगे बढ़ाएगा।

एवीएनएल ने कहा कि कंपनी का ध्यान न केवल टैंक निर्माण पर है बल्कि वह अब स्पेशलाइज्ड व्हीकल्स बनाने की दिशा में भी काम कर रही है। कंपनी ने हाल ही में टाटा-407 प्लेटफॉर्म को पूरी तरह बुलेटप्रूफ एम्बुलेंस में बदलने की परियोजना पूरी की है। ये एम्बुलेंस अब सीआरपीएफ को सौंपी जा चुकी हैं और नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात की गई हैं।

कंपनी ने बताया कि उसने इस साल 5,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर हासिल किए हैं और अगले वित्त वर्ष में करीब 8,000 करोड़ रुपये के नए ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। इसके लिए उसकी मैन्युफैक्चरिंग और आरएंडडी क्षमताओं को लगातार अपग्रेड किया जा रहा है।

रक्षा सूत्रों के अनुसार, ‘भारत टैंक’ देश के फ्यूचरिस्टिक लाइट टैंक (एफएलटी) पहल का हिस्सा है, जिसमें पहले से ही लाइटवेट “जोरावर टैंक” विकसित किया जा रहा है। उनका कहना है कि भारत’ लाइट टैंक दरअसल रूसी 2एस25 स्प्रट-एसडी का लाइसेंस्ड वर्जन होगा, जिसे भारत में ही बनाया जाएगा। उनका कहना है कि भारतीय सेना को कुल 354 हल्के टैंकों की जरूरत है, जिनमें शुरुआती 59 टैंक जोरावर होंगे और बाकी 295 टैंक प्रतिस्पर्धात्मक “मेक-1” कैटेगरी के तहत तैयार किए जाएंगे।

‘भारत टैंक’में कोई विदेशी पुर्जा इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, जिससे भारत की सप्लाई चेन पूरी तरह सुरक्षित रहेगी। साथ ही अपग्रेड और सर्विसिंग की प्रक्रिया भी तेज और किफायती होगी।

Commutation of Pension: 15 साल की रिकवरी पॉलिसी के खिलाफ एकजुट हुए पूर्व सैनिक, पेंशन कम्यूटेशन के नियमों पर फिर से हो विचार

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Commutation of Pension: देशभर के पूर्व सैनिकों के बीच अब एक नई बहस छिड़ी हुई है। यह बहस किसी ऑपरेशन या युद्ध की नहीं, बल्कि पेंशन के कम्यूटेशन जैसे पेचीदा लेकिन जीवन से जुड़े मुद्दे पर है। दशकों से चली आ रही 15 साल की रिकवरी पॉलिसी पर अब पूर्व सैनिक खुलकर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह नियम अब न तो व्यावहारिक रहा है और न ही न्यायसंगत।

Disability Pension: रक्षा मंत्रालय के नए डिसेबिलिटी पेंशन नियमों पर छिड़ा विवाद, पूर्व सैनिक बोले- क्या पेंशन में भारी कटौती की तैयारी कर रही सरकार?

इस अभियान की पहल कर्नल एमएस राजू (सेवानिवृत्त) ने की है, जिन्होंने इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषणात्मक दस्तावेज, “इनसाइट ऑन कम्यूटेशन ओएफ पेंशन” तैयार कर 8 एपीसीसी एजी ब्रांच को भेजा है। यह वही विभाग है जो पेंशन और सेवा लाभों से जुड़े मामलों की समीक्षा करता है और जिसे आगामी 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के लिए सुझाव तैयार करने का दायित्व मिला है।

Commutation of Pension: आयोग करेगा विचार-विमर्श

कर्नल राजू की इस पहल को 8 एपीसीसी के कर्नल संजय भाटिया ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने न केवल इसकी की, बल्कि यह भी सूचित किया कि इसे आयोग के औपचारिक विचार-विमर्श के लिए रखा जाएगा।

कर्नल भाटिया ने कहा है कि यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें पूर्व सैनिकों और सेवानिवृत्त अधिकारियों की राय शामिल की जानी चाहिए। उन्होंने देशभर के सभी अनुभवी अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे इस पर अपने सुझाव और टिप्पणियां भेजें ताकि आयोग के सामने एक ठोस, तार्किक और व्यावहारिक प्रस्ताव रखा जा सके।

उन्होंने सभी पूर्व सैनिकों से अनुरोध किया है कि अपने विचार सीधे उनकी ईमेल आईडी m1.8apcc@gov.in पर भेजें, और साथ ही colmsraju@gmail.com को सीसी में रखें, ताकि सुझावों का एक दस्तावेज तैयार किया जा सके।

उनके इस विश्लेषण का पीडीएफ यहां उपलब्ध है…

Commutation of Pension: नियम चार दशक पुराना, बदले हालात

कम्यूटेशन ऑफ पेंशन की व्यवस्था 1925 में बनी सिविल पेंशंस (कम्यूटेशन) रूल्स से शुरू हुई थी। इस नियम के तहत, किसी भी सरकारी कर्मचारी को रिटायरमेंट के समय अपनी पेंशन का एक हिस्सा एकमुश्त रकम के रूप में लेने की अनुमति होती है। इस रकम को सरकार अगले 15 वर्षों तक मासिक पेंशन से काटकर वसूल करती है।

1986 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तय किया कि यह वसूली जीवनभर नहीं, केवल 15 वर्षों तक की जाएगी। उस समय यह फैसला एक राहत के तौर पर आया था लेकिन अब यह नीति समय से पीछे छूटी व्यवस्था बन चुकी है।

अब ब्याज दरें दोगुनी हो चुकी हैं, जीवन प्रत्याशा बढ़कर 80 वर्ष तक पहुंच गई है, और डिजिटल मॉनिटरिंग से वसूली बहुत अधिक बढ़ गई है। ऐसे में, पूर्व सैनिकों का कहना है कि सरकार को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि 15 साल की अवधि व्यावहारिक नहीं रही।

“यह कोई लाभ कमाने की पॉलिसी नहीं”

पूर्व सैनिकों का मानना है कि पेंशन नीति का उद्देश्य सरकारी लाभ नहीं बल्कि राहत होना चाहिए। कर्नल राजू कहते हैं, “सरकार को अपनी दी हुई राशि ब्याज सहित वसूलने का अधिकार है, लेकिन उसके बाद भी कटौती जारी रखना अनुचित है। यह नीति ‘नो प्रॉफिट–नो लॉस’ के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए, न कि लाभ कमाने के आधार पर।”

पूर्व सैनिकों का तर्क है कि मौजूदा ब्याज दरों के अनुसार सरकार 11 से 12 वर्षों में पूरी वसूली कर लेती है, इसके बाद की कटौती केवल अतिरिक्त भार है।

डिफेंस कर्मियों पर सबसे ज्यादा असर

डिफेंस सर्विसेज में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। सेना, नौसेना और वायुसेना के अधिकारी और जवान सामान्यतः 37 से 45 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। इस स्थिति में जब 15 साल तक कम्यूटेड हिस्सा काटा जाता है, तो उनकी पूरी पेंशन 55 से 60 वर्ष की उम्र के बाद ही रीस्टोर होती है, यानी सेवा के बाद का पूरा मध्य जीवन आर्थिक रूप से प्रभावित रहता है।

एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “हमने अपने सबसे ऊर्जावान साल देश को दिए। अब जब हमें राहत मिलनी चाहिए, तब हमारी पेंशन से कटौती जारी रहती है। यह नीति अब पुनर्विचार योग्य है।”

नीतिगत समीक्षा का है वक्त

हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर्स’ वेलफेयर ने 23 जुलाई 2025 को एक आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि पेंशन कम्यूटेशन से संबंधित मामला अब न्यायालयों में नहीं जाएगा, बल्कि 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को नीतिगत समीक्षा के लिए भेजा जाएगा। इसका अर्थ यह है कि सरकार पहली बार औपचारिक रूप से इस नीति की पुनः जांच को तैयार है। यही वह अवसर है जब पूर्व सैनिकों की राय और अनुभव नीति-निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

5वें और 6वें वेतन आयोग की पुरानी सिफारिशें अब प्रासंगिक

पांचवें वेतन आयोग ने पहले ही 1997 में सिफारिश की थी कि सरकार 12 वर्षों में कम्यूटेड राशि और ब्याज की पूरी वसूली कर लेती है, इसलिए पेंशन की बहाली अवधि को 15 से घटाकर 12 वर्ष किया जाना चाहिए। लेकिन यह सिफारिश लागू नहीं हुई।

छठे वेतन आयोग ने भी माना कि ब्याज दरें बढ़ने और जीवन प्रत्याशा में सुधार के बावजूद सरकार को नीति में बदलाव करना चाहिए। मगर वह भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब, जब 8वां वेतन आयोग इस विषय को फिर से खंगालने जा रहा है, पूर्व सैनिकों की यह पहल इसे दोबारा बहस के केंद्र में ला सकती है।

कर्नल राजू ने अपने संदेश में लिखा है, “यह विषय उन लोगों के लिए है जिन्होंने राष्ट्र को अपनी जवानी दी। यह कोई आर्थिक सौदा नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है कि सरकार उन्हें समय पर पूरा सम्मान और राहत दे।”

उन्होंने पूर्व सैनिकों से कहा है कि भले ही जिन्होंने 15 साल की अवधि पूरी कर ली है, वे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न हों, लेकिन उनके सुझाव भविष्य के सेवानिवृत्त साथियों के लिए नीति में सुधार का आधार बन सकते हैं।

Pakistan drone smugglers: भारत-पाक सीमा पर चल रहा है टॉम एंड जेरी! भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम से कैसे आंख मिचौली खेल रहे हैं पाकिस्तानी ड्रोन

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Pakistan drone smugglers: पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमा में ड्रोन की घुसपैठ लगातार जारी है। सुरक्षा एजेंसियों ने खुलासा किया है कि पाकिस्तान की तरफ से उड़ने वाले ड्रोन अब भारतीय क्षेत्र में दाखिल होते ही नई तकनीक का इस्तेमाल कर “लुकाछिपी” खेल रहे हैं। जैसे ही भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम इन्हें जाम करने की कोशिश करता है, ये ड्रोन अपने आप ‘रिटर्न-टू-बेस’ मोड में पाकिस्तान लौट जाते हैं।

यह ट्रेंड पंजाब सीमा पर तैनात सुरक्षाबलों ने नोट किया है। सूत्रों ने बताया, “अब ड्रोन पहले जैसे नहीं रहे। पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन ज्यादातर फेल-सेफ प्रोग्रामिंग के साथ उड़ाए जा रहे हैं। जब भी इन्हें किसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक दखल या सिग्नल जामिंग का पता चलता है, तो वे तुरंत उसी जगह लौट जाते हैं जहां से उड़े थे।”

Pakistan drone smugglers: आईएसआई के नेटवर्क की नई चाल

सूत्रों के मुताबिक, इस नए पैटर्न के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का नेटवर्क है, जो सीमा पार से ड्रग्स, हथियार और गोला-बारूद भारत में भेजने की कोशिश करता है। 532 किलोमीटर लंबी पंजाब बॉर्डर से हर रोज़ रात में 8 से 10 बार ड्रोन की आवाजाही देखी जा रही है। कई बार यह संख्या 15 तक पहुंच जाती है।

ये ड्रोन ज्यादातर एके-47, हैंड ग्रेनेड, पिस्तौल और हेरोइन लेकर उड़ाए जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद कुछ समय के लिए यह गतिविधि धीमी हुई थी, लेकिन हाल के हफ्तों में इसमें फिर से तेजी आई है।

कैसे खेला जा रहा है “लुकाछिपी” का खेल

इन ड्रोन में अब ऐसे सेंसर लगे हैं जो जैमिंग या ट्रैकिंग की कोशिशों को पहचान लेते हैं। जैसे ही कोई भारतीय रडार या एंटी-ड्रोन सिस्टम इन्हें निशाना बनाता है, ये सिग्नल लॉस का पता लगाकर ऑटोमैटिक रिटर्न मोड में चले जाते हैं।

इस तरह वे सीमा पार करने से पहले ही वापस पाकिस्तान लौट जाते हैं, जिससे भारतीय एजेंसियों के लिए उन्हें गिराना मुश्किल हो जाता है। सूत्रों के अनुसार, “पहले ये ड्रोन सीधे उड़कर हमारे इलाके में उतरते थे, लेकिन अब यह पूरी तरह ऑटोमैटिक हो चुका है। ड्रोन हमारे इलाके को स्कैन करते हैं, और खतरा महसूस होते ही लौट जाते हैं। ये एक ‘कैट-एंड-माउस गेम’ बन चुका है।”

भारतीय एंटी-ड्रोन सिस्टम की सक्रियता

पंजाब पुलिस और बीएसएफ ने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए सीमा पर तीन वाहन-आधारित एंटी-ड्रोन सिस्टम तैनात किए हैं। इनकी लागत लगभग 51 करोड़ रुपये है और नौ और सिस्टम लगाने की योजना है।

एंटी-ड्रोन सिस्टम की मदद से ड्रोन की सटीक लोकेशन, ऊंचाई और गति का पता लगाया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि पहले हमें सिर्फ आवाज़ से ड्रोन का पता चलता था, लेकिन अब हमें उसकी सटीक दिशा, स्पीड और ऊंचाई का डेटा मिल जाता है।

Pakistan drone smugglers: डिटेक्शन रेट अब पहले से ज्यादा

इन सिस्टमों की तैनाती के बाद केवल भिखीविंड सबडिवीजन में ही 12 एफआईआर दर्ज की गई हैं। पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है जो ड्रोन के जरिए आई खेप को रिसीव करते थे। जब्त किए गए सामान में चार पिस्तौल, 75 कारतूस, 5 मैगजीन, 3 किलो से ज्यादा हेरोइन और अन्य ड्रग्स शामिल हैं।

सुरक्षा बलों का कहना है कि भले ही ड्रोन कभी-कभी लौट जाते हैं, लेकिन उनका डिटेक्शन रेट अब पहले से कहीं ज्यादा है। अधिकारी के अनुसार, “हम रोजाना औसतन 10 ड्रोन डिटेक्ट कर रहे हैं। अब हमें बस कवरेज बढ़ाने की जरूरत है। कम से कम सौ एंटी-ड्रोन सिस्टम सिस्टम पूरे पंजाब बॉर्डर पर चाहिए।”

कश्मीर में भी बढ़ा खतरा

सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में भी ड्रोन अलर्ट जारी किया गया है। आर्मी की इन्फेंट्री डिवीजन ने 24 सितंबर को एक इनपुट जारी कर बताया था कि पाकिस्तान की तरफ से अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स घाटी में भेजे जा सकते हैं, जिनका इस्तेमाल त्योहारों के मौसम में सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमले के लिए किया जा सकता है।

सूत्रों का कहना है कि अब ड्रोन युद्ध केवल “गोलियों” से नहीं, बल्कि सिग्नल और सॉफ्टवेयर से लड़ा जा रहा है। पाकिस्तान की तरफ से भेजे जा रहे ड्रोन अब इतने एडवांस हैं कि वे सिग्नल जैमिंग, जीपीएस इंटरफेरेंस, और रेडियो ट्रैकिंग से बचने के लिए खुद-ब-खुद रास्ता बदल लेते हैं। भारतीय एजेंसियां अब इन नई तकनीकों का मुकाबला करने के लिए आर्टिफिशियल बेस्ड ट्रैकिंग, रडार नेटवर्क इंटीग्रेशन, और रीयल-टाइम डेटा मॉनिटरिंग पर काम कर रही हैं।

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