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Disability Pension: दिल्ली हाईकोर्ट की रक्षा मंत्रालय को फटकार, रिटायर्ड अफसर के मेडिकल रिकॉर्ड में छेड़छाड़ कर पेंशन रोकने पर जताई नाराजगी

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📍नई दिल्ली | 25 Feb, 2025, 1:45 PM

Disability Pension: दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी को विकलांगता पेंशन से वंचित करने के लिए उनके मेडिकल रिकॉर्ड में की गई छेड़छाड़ पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि कुछ अधिकारियों की मनमर्जी के कारण मेडिकल बोर्ड की कार्यवाही में हेरफेर किया जा रहा है और पूर्व अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

Disability Pension: Delhi HC Slams MoD for Tampering Records to Deny Retired Officer’s Benefits
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कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अपने आदेश की एक प्रति रक्षा मंत्रालय के सचिव और थल सेना प्रमुख को भी भेजी है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। यह फैसला दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने सुनाया, जिसमें केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया गया।

Disability Pension: कैसे हुई मेडिकल रिकॉर्ड में हेरफेर?

मामला रिटायर्ड कर्नल मनीष मिधा का है, जिनकी विकलांगता पेंशन को लेकर केंद्र सरकार ने अगस्त 2023 में सशस्त्र बल अधिकरण (AFT) दिल्ली द्वारा दिए गए आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। AFT ने केंद्र को आदेश दिया था कि कर्नल मिधा को उनकी विकलांगता पेंशन 30% से बढ़ाकर 50% तक दी जाए।

हाईकोर्ट के 19 फरवरी को जारी विस्तृत आदेश में कहा गया कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (RMB) की मूल रिपोर्ट की जांच करने पर यह स्पष्ट हुआ कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी। रिपोर्ट के भाग-7 में जहां मेडिकल बोर्ड की राय दर्ज की जाती है, वहां एक नया पेपर चिपकाकर कहा गया कि कर्नल मिधा को विकलांगता पेंशन का अधिकार नहीं है, क्योंकि उनकी बीमारी सेना की सेवा से न तो जुड़ी हुई है और न ही इससे प्रभावित हुई है।

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मेडिकल रिकॉर्ड में यह बदलाव हेडक्वार्टर मेडिकल कॉर्प्स के निर्देशों के तहत किया गया था, जिससे यह साफ हो जाता है कि उच्च स्तर पर इस फैसले को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी।

Disability Pension: क्या था कर्नल मिधा का मामला?

कर्नल मनीष मिधा को प्राथमिक हाइपरटेंशन (High Blood Pressure) की समस्या थी, जो 2012 में तब शुरू हुई, जब उन्होंने असम और जम्मू-कश्मीर में चार साल की लगातार फील्ड पोस्टिंग पूरी की थी। 2012 में मेडिकल बोर्ड ने खुद माना था कि उनकी बीमारी सेना की सेवा से जुड़ी हुई है।

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लेकिन जब उनका रिटायरमेंट मेडिकल बोर्ड (RMB) हुआ, तब भी बोर्ड ने माना कि उनकी स्थिति सेना में सेवा के कारण और गंभीर हुई। लेकिन बाद में उच्च मुख्यालय के चिकित्सा विभाग के निर्देश पर इस फैसले को बदल दिया गया और मूल रिपोर्ट पर एक नई राय चिपका दी गई।

Disability Pension: कोर्ट में कैसे हुआ खुलासा?

कर्नल मिधा की ओर से पेश वकील चैतन्य अग्रवाल ने अदालत में इस हेरफेर को उजागर किया। उन्होंने मूल RMB रिपोर्ट को कोर्ट में पेश किया, जिसमें हेरफेर साफ दिखाई दे रही था। उन्होंने वह पत्र भी अदालत के सामने रखा, जिसमें मेडिकल बोर्ड को अपना फैसला बदलने का निर्देश दिया गया था।

Disability Pension: कोर्ट ने क्या कहा?

दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि कर्नल मिधा को उनका विकलांगता पेंशन लाभ तुरंत दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासनिक अधिकारी मेडिकल बोर्ड की राय को बदलने के अधिकारी नहीं हैं और वे इस पर निर्णय नहीं ले सकते। सशस्त्र बल अधिकरण (AFT) भी पहले ऐसे मामलों में स्पष्ट कर चुका है कि मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों को प्रशासनिक हस्तक्षेप से बदला नहीं जा सकता।

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Disability Pension: रक्षा मंत्रालय पर लगाया जुर्माना

हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और कहा कि सरकार ने अनावश्यक रूप से कर्नल मिधा को अदालत तक खींचा, जबकि वह अपने कानूनी अधिकार के लिए लड़ रहे थे।

सैन्य मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला उन सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए बड़ी राहत है, जिनकी विकलांगता पेंशन को मनमाने ढंग से रोका जाता है।

रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) के. हरीश ने इस फैसले को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा, “यह बेहद चिंताजनक है कि उन सैनिकों, जिन्होंने वर्षों तक देश की सेवा की, उनके मेडिकल रिकॉर्ड में हेरफेर कर उनके हक को छीना जा रहा है। यह फैसला भविष्य में अन्य ऐसे मामलों में भी मिसाल बनेगा।”

एक अन्य रक्षा विश्लेषक ने कहा कि “सेना में सेवा करने वाले अधिकारियों और जवानों को पहले ही कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। अगर रिटायरमेंट के बाद उन्हें उनके अधिकार से वंचित किया जाता है, तो यह एक गंभीर अन्याय है।”

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए रक्षा मंत्रालय और सेना प्रमुख को आवश्यक कदम उठाने चाहिए। अदालत के इस फैसले के बाद सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य हो गया है कि रिटायरमेंट मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को किसी भी प्रकार से बदला या प्रभावित न किया जाए और सेवानिवृत्त सैनिकों को उनका उचित हक दिया जाए।

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