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India German submarines: सरकार ने फ्रांस का सबमरीन प्रोजेक्ट क्यों दिया जर्मनी को, क्या है प्रोजेक्ट-76 से कनेक्शन, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

फ्रेंच स्कॉर्पीन में “ब्लैक बॉक्स टेक्नोलॉजी” यानी कोर सिस्टम्स ट्रांसफर नहीं होता। जबकि टीकेएमएस के साथ भारत को फुल डिजाइन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर मिलेगा, यानी मझगांव डॉक को हुल स्ट्रक्चर, प्रोपल्शन लेआउट और डेटा-इंटीग्रेशन पर कंट्रोल मिलेगा...

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📍नई दिल्ली | 14 Oct, 2025, 1:55 PM

India German submarines: भारत सरकार ने भारतीय नौसेना के मॉर्डनाइजेशन को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए तीन नई फ्रेंच स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण की योजना को रोक दिया है। अब सरकार का ध्यान पूरी तरह जर्मन मूल की छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक स्टील्थ पनडुब्बियों के निर्माण पर है, जिन्हें मुंबई के मझगांव डॉक लिमिटेड में तैयार किया जाएगा।

यह परियोजना लगभग 70,000 करोड़ रुपये की लागत से पूरी की जाएगी और इसे प्रोजेक्ट-75 इंडिया (Project-75I) के तहत बनाया जाना है।

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India German submarines: फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट पर रोक

सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत फिलहाल फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट के तहत तीन नई पनडुब्बियों के प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ा रहा है। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत करीब 36,000 करोड़ रुपये थी और इसके लिए फ्रांस की कंपनी नेवल ग्रुप से बातचीत भी लगभग पूरी हो चुकी थी।

सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से इस प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी नहीं मिली है। वजह यह बताई जा रही है कि जर्मन पनडुब्बियां तकनीकी दृष्टि से “एक पीढ़ी आगे” हैं और उन्हें अधिक एडवांस माना जा रहा है।

इसके अलावा, मझगांव डॉक में दो अलग-अलग जटिल पनडुब्बी परियोजनाओं को एक साथ चलाना संभव नहीं है। इसलिए फ्रेंच प्रोजेक्ट को अस्थायी तौर पर रोकने का फैसला लिया गया है।

लगाया जाएगा खास एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम

भारत और जर्मनी के बीच इस परियोजना को लेकर समझौता थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) के साथ हुआ है। इसके तहत मझगांव डॉक में छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक स्टील्थ सबमरीन बनाई जाएंगी।

इन पनडुब्बियों में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम, लैंड अटैक क्रूज मिसाइल्स और अत्याधुनिक सेंसर टेक्नोलॉजी शामिल होगी। यह तकनीक पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की क्षमता देती है। एआईपी सिस्टम वाली पनडुब्बियां बिना सतह पर आए लगभग दो सप्ताह तक पानी के अंदर ऑपरेशन कर सकती हैं, जबकि पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को हर कुछ दिनों में सतह पर आना पड़ता है।

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इस परियोजना में 60 फीसदी से अधिक स्वदेशीकरण होगा और जर्मनी से ट्रांफसर ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत डिजाइन ट्रांसफर भी किया जाएगा। जबकि स्कॉर्पीन एक्सटेंशन में यह केवल 35–40 फीसदी था। इसका मतलब है कि भारत में लगभग 42,000 करोड़ रुपये का घरेलू उत्पादन और डोमेस्टिक इंजस्ट्रियल इम्पैक्ट होगा।

साथ ही सरकार का फोकस एआईपी को एक्सपोर्ट-क्लास टेक्नोलॉजी बनाने पर है। इसलिए जर्मन टीकेएमएस को चुना गया ताकि भारत की तकनीक को फॉरेन सिस्टम में इंटीग्रेट करके उसका रियल ऑपरेशनल वेलिडेशन किया जा सके।

India German submarines: जर्मनी से भारत को क्या मिलेगा?

फ्रेंच स्कॉर्पीन में “ब्लैक बॉक्स टेक्नोलॉजी” यानी कोर सिस्टम्स ट्रांसफर नहीं होता। जबकि टीकेएमएस के साथ भारत को फुल डिजाइन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर मिलेगा, यानी मझगांव डॉक को हुल स्ट्रक्चर, प्रोपल्शन लेआउट और डेटा-इंटीग्रेशन पर कंट्रोल मिलेगा। जिससे भारत के पास भी “सबमरीन डिजाइनिंग कैपेबिलिटी” होगी। यही तकनीक आगे चलकर प्रोजेक्ट-76 (इंडीजीनस सबमरीन प्रोग्राम) की रीढ़ बनेगी।

भारत की मौजूदा पनडुब्बी क्षमता

वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास कुल 16 पनडुब्बियां हैं, जिनमें छह फ्रेंच मूल की कलवरी-क्लास स्कॉर्पिन क्लास, चार जर्मन एचडीडब्ल्यू क्लास, और छह पुरानी रूसी किलो-क्लास शामिल हैं। इसके अलावा भारत के पास दो न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन भी हैं।

कलवरी-क्लास की सभी छह पनडुब्बियां मझगांव डॉक में बनाई गई थीं, जिनमें पहली आईएनएस कलवरी दिसंबर 2017 में और आखिरी आईएनएस वागशीर जनवरी 2025 में नौसेना को सौंपी गई।

अब सभी स्कॉर्पीन पनडुब्बियों में डीआरडीओ का बनाया एआईपी सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे उनकी पानी के नीचे ऑपरेशन की क्षमता बढ़ेगी।

India German submarines: Project-75I और Project-76 के बीच ब्रिज

यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक “प्रोक्योरमेंट” नहीं, बल्कि भारत के स्वदेशी पनडुब्बी प्रोग्राम प्रोजेक्ट-76 के लिए ब्रिज टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेटर है। यानी, टीकेएमएस से मिलने वाले डिजाइन और सिस्टम नॉलेज को डीआरडीओ और नौसेना डिजाइन ब्यूरो आगे जाकर भारत की पूरी स्वदेशी सबमरीन लाइन में उपयोग करेगा।

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मझगांव डॉक को अब एक इंटीग्रेटेड सबमरीन डेवलपमेंट सेंटर में बदला जा रहा है। टीकेएमएस प्रोजेक्ट के तहत, मझगांव डॉक को डिजाइन इंटीग्रेशन और सिस्टम ट्यूनिंग की स्वतंत्रता दी जाएगी। इसका मतलब है कि भारत अब सिर्फ “असेंबली यार्ड” नहीं रहेगा, बल्कि सबमरीन डिजाइनर नेशन बन सकता है।

वहीं, पहली बार डीआरडीओ और नौसेना डिजाइन ब्यूरो को प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण से ही शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य भविष्य के पी-76 प्रोजेक्ट की “टेक्नोलॉजी रिटेंशन” सुनिश्चित करना है, यानी टीकेएमएस से जो सीख मिलेगी, वह विदेशी नहीं रहेगा, बल्कि “भारतीय बौद्धिक संपदा” बन जाएगा।

India German submarines: फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी बरकरार

भले ही फ्रेंच स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट को रोक दिया गया है, लेकिन भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक रक्षा सहयोग पर कोई असर नहीं पड़ा है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण रक्षा परियोजनाएं चल रही हैं।

भारत और फ्रांस मिलकर एएमसीए (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के लिए नया जेट इंजन बना रहे हैं। यह परियोजना लगभग 61,000 करोड़ रुपये की है और इसमें फ्रांस की कंपनी साफरान साझेदार है।

इसके अलावा, भारतीय वायुसेना के लिए 114 मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) प्रोजेक्ट पर भी दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है। इसके तहत अतिरिक्त राफेल पाइटर जेट भारत में बनाए जाएंगे।

चीनी और पाकिस्तान पर नजर

भारत का यह कदम उस समय आया है जब चीन लगातार अपनी नौसेना क्षमता बढ़ा रहा है। वर्तमान में चीन के पास 50 से अधिक डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 न्यूक्लियर पनडुब्बियां हैं।

इतना ही नहीं, चीन पाकिस्तान को भी आठ नई युआन-क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां दे रहा है, जिनमें एआईपी सिस्टम लगा हुआ है। इससे पाकिस्तान की अंडरवाटर वारफेयर क्षमता में बड़ा इजाफा होगा।

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इन्हीं क्षेत्रीय सुरक्षा परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने अपनी पनडुब्बी बेड़े को तकनीकी रूप से अपग्रेड करने की दिशा में यह फैसला लिया है।

सूत्रों के अनुसार, जर्मन पनडुब्बियों का प्रोजेक्ट भारतीय नौसेना के लिए भविष्य की परियोजना प्रोजेक्ट-76 (Project-76) की आधारशिला साबित होगा, जिसमें भारत पूरी तरह स्वदेशी डिजाइन पर आधारित पनडुब्बियां बनाएगा।

मझगांव डॉक में बनने वाली इन छह जर्मन पनडुब्बियों के बाद भारत को तीन और सबमरीन के निर्माण का विकल्प भी मिलेगा। इससे नौसेना की कन्वेंशनल पनडुब्बी क्षमता को दीर्घकालिक स्थिरता मिलेगी।

भारतीय नौसेना ने कहा है कि वह इस परियोजना को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है और देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए उन्नत तकनीक को अपनाने के लिए तैयार है। नौसेना का मानना है कि जर्मन टीकेएमएस की तकनीक से बनी नई पनडुब्बियां भारतीय समुद्री सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित होंगी। रक्षा मंत्रालय, नौसेना और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के बीच विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस परियोजना को हरी झंडी दी गई। अब मझगांव डॉक और टीकेएमएस के बीच अंतिम अनुबंध वार्ताएं चल रही हैं। वहीं, इन नई पीढ़ी की पनडुब्बियों का निर्माण आने वाले वर्षों में भारत को उन देशों की कतार में शामिल करेगा, जिनके पास आधुनिक स्टील्थ और लॉन्ग-एंड्यूरेंस सबमरीन तकनीक है।

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