📍नई दिल्ली | 22 Nov, 2025, 12:52 PM
Tejas Mk1 Crash: दुबई एयरशो 2025 में भारतीय वायुसेना का तेजस एमके-1 फाइटर जेट शुक्रवार दोपहर 3:40 बजे क्रैश हो गया। यह हादसा उस समय हुआ जब विमान एयरशो में लो-लेवल एयर डिस्प्ले कर रहा था। इस दुर्घटना में भारतीय वायुसेना के अनुभवी पायलट विंग कमांडर नमांश स्याल की मौत हो गई। यह घटना न सिर्फ भारतीय वायुसेना के लिए, बल्कि भारत के स्वदेशी तेजस प्रोग्राम के लिए भी एक गहरी क्षति मानी जा रही है। वहीं, अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जब उसमें जीरो इजेक्शन सीट लगी थी, तो पायलट क्यों नहीं इजेक्ट कर पाया।
Tejas Mk1 Crash: मैन्यूवर करने की कोशिश
यह हादसा दोपहर के समय हुआ जब तेजस एमके-1 अपने तय फ्लाइंग प्रोफाइल के तहत लो-लेवल मैन्यूवर दिखा रहा था। एयरशो के दौरान तेजस ने जैसे ही नीचे की ओर मुड़कर एक तेज मैन्यूवर करने की कोशिश की, तो विमान की पावर अचानक कम होती दिखाई दी। सोशल मीडिया (Tejas Mk1 Crash) पर आए वीडियो में देखा गया कि तेजस नोजडाउन पोजिशन में लगभग सीधी लाइन में नीचे गिरने लगा। इसकी ऊंचाई बहुत कम थी और विमान कुछ ही सेकंड में जमीन से टकरा गया और आग का गोला बन गया।
हादसे के तुरंत बाद दुबई एयरशो के अधिकारियों और भारतीय वायुसेना ने पुष्टि की कि विमान में विंग कमांडर नमांश स्याल ही उड़ान भर रहे थे। वे नंबर 45 स्क्वाड्रन फ्लाइंग ड्रैगर के बहादुर और अनुभवी पायलट माने जाते थे। उन्होंने कई बार एरो इंडिया और कई अंतरराष्ट्रीय एयरशो में तेजस उड़ाया था। यह वही स्क्वाड्रन है जिसने तेजस की पहली ऑपरेशनल उड़ानें शुरू की थीं।
वीडियो में कहीं भी विमान से इजेक्शन (Tejas Mk1 Crash) का कोई संकेत नहीं दिखा। न कैनोपी उड़ती दिखी, न पैराशूट। इसका मतलब यह था कि इजेक्शन नहीं हो पाया। सवाल यह उठा कि जब तेजस में दुनिया की सबसे एडवांस्ड जीरो-जीरोo इजेक्शन सीट लगे होने के बावजूद आखिर इजेक्शन क्यों नहीं हुआ?
Tejas Mk1 Crash: क्या है जीरो-जीरो का मतलब
तेजस में लगी इजेक्शन सीट (Tejas Mk1 Crash) मार्टिन बेकर एमके-16एलई दुनिया की सबसे भरोसेमंद जीरो-जीरो सीटों में से गिनी जाती है। जीरो-जीरो का मतलब है कि विमान जमीन पर रुका हो, तब भी सीट पायलट की जान बचा सकती है। यह सीट दो स्टेज में काम करती है, पहले कैनोपी उड़ती है, फिर सीट को रॉकेट मोटर ऊपर और दूर ले जाती है। इसके बाद पायलट से सीट अलग होती है और पैराशूट खुलता है।
इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 2 से 4 सेकंड का समय लगता है। लेकिन इस प्रक्रिया को सुरक्षित तरीके से पूरा करने के लिए कम से कम 200 से 300 फीट की ऊंचाई की जरूरत होती है। यही कारण है कि लो-लेवल फ्लाइंग में इजेक्शन बेहद मुश्किल हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यही बात इस हादसे में भी लागू हुई।
Tejas Mk1 Crash: शून्य सेकंड की होती है विंडो
रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा का कहना है कि लो-लेवल एरोबैटिक्स (Tejas Mk1 Crash) में अगर सिंक रेट यानी गिरने की स्पीड बहुत ज्यादा हो तो इजेक्शन का “विंडो” बहुत छोटा हो जाता है। कभी-कभी यह विंडो शून्य सेकंड की होती है। इस स्थिति में पायलट के पास हैंडल खींचने का समय ही नहीं बचता। वे कहते हैं कि वीडियो में तेजस जिस स्पीड से नीचे जा रहा था, उसमें इजेक्शन के लिए जरूरी समय पायलट को नहीं मिल सका।
Tejas Mk1 Crash: फिजिक्स की सीमा से बाहर कुछ नहीं
वहीं, रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन संजीव कपूर का कहना है कि तेजस की सीट जीरो-जीरो है, लेकिन लॉजिक यही है कि फिजिक्स की सीमा से बाहर कुछ नहीं। अगर विमान (Tejas Mk1 Crash) बहुत तेजी से नीचे गिर रहा हो और ऊंचाई बहुत कम हो, तो सीट को ऊपर उठाने और पायलट को पैराशूट पर लाने का समय नहीं मिलता। उनकी राय में, यह भी संभव है कि पायलट आखिरी पल तक विमान को रिकवर करने की कोशिश कर रहे हों, क्योंकि एयरशो में पायलट हमेशा दर्शकों और ग्राउंड क्रू को सुरक्षित रखने को प्राथमिकता देते हैं।
Tejas Mk1 Crash: रिकवरी में लगा टाइम
कई अंतरराष्ट्रीय एविएशन विश्लेषकों (Tejas Mk1 Crash) ने भी यही कहा है कि लो-लेवल डिस्प्ले में पायलट जितना समय रिकवरी में लगाते हैं, उतना ही समय इजेक्शन का मौका कम कर देता है। वीडियो देखकर यही लगता है कि विमान का नियंत्रण अचानक खो गया और नीचे आते-आते इजेक्शन की संभावना खत्म हो गई। उनका कहना है कि इसके साथ-साथ फिर से यह सवाल खड़ा हो गया कि लो-लेवल एरोबैटिक्स में सुरक्षा को कैसे और मजबूत किया जा सकता है।
अब सवाल यह है कि तेजस का कुल सुरक्षा रिकॉर्ड कैसा है? तेजस प्रोग्राम 24 साल पुराना है और इस दौरान इसके सभी इजेक्शन पूरी तरह सफल रहे हैं। यह तेजस की क्षमता और उसकी इजेक्शन सीट की विश्वसनीयता दोनों को सिद्ध करता है।
Tejas Mk1 Crash: तेजस में अब तक चार बार इजेक्शन
तेजस के परीक्षण और ऑपरेशनल उड़ानों के दौरान अब तक चार बार इजेक्शन हुआ है। पहला इजेक्शन 2001 में हुआ था, जब इसके टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर की टेस्ट फ्लाइट के दौरान पायलट ने सुरक्षित निकलकर अपनी जान बचाई। दूसरा इजेक्शन 2006 में राजस्थान में हुआ। वह भी पूरी तरह सफल रहा। तीसरा केस 2014 में हुआ जब नेवल प्रोटोटाइप एनपी-2 गोवा के समुद्र में टेस्ट फ्लाइट के दौरान क्रैश हो गया। उस समय भी पायलट सुरक्षित रहे। वहीं, चौथा इजेक्शन मार्च 2024 में हुआ जब एक ट्रेनर वैरिएंट जैसलमेर के पास उड़ान भरते समय तकनीकी दिक्कत के चलते क्रैश हुआ। लेकिन पायलट पूरी तरह सुरक्षित ईजेक्ट जो गया।
इन सभी मामलों में मार्टिन बेकर एमके-16एलई सीट ने 100 फीसदी सफलता के साथ पायलट की जान बचाई। आज तक तेजस के किसी भी उड़ान मामले में इजेक्शन सीट ने फेल नहीं किया था। लेकिन यह पहली बार है जब पायलट को सीट का इस्तेमाल करने का मौका ही नहीं मिल पाया।
दुबई एयरशो हादसे (Tejas Mk1 Crash) के बाद भारतीय वायुसेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी नियुक्त कर दी है। जांच टीम ब्लैक बॉक्स, वीडियो फुटेज, राडार डेटा और विमान के अवशेषों की मदद से दुर्घटना के वास्तविक कारणों पता करेगी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह इंजन फेल्यर था, कंट्रोल लॉस था या फ्लाइट प्रोफाइल का मिसमैनेजमेंट।
तेजस प्रोग्राम से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि हादसे से सीख जरूर मिलेगी, लेकिन यह विमान की तकनीकी योग्यता पर सवाल नहीं उठाता। तेजस ने दुनिया भर में कई एयरशो में अपनी क्षमता दिखाई है और भारतीय वायुसेना के बेड़े में यह एक भरोसेमंद लड़ाकू माना जाता है।

