📍नई दिल्ली | 25 Sep, 2025, 4:05 PM
MiG-21 into UAVs?: भारतीय वायुसेना 26 सितंबर को 62 साल बाद अपने बाकी बचे 27 मिग-21 बाइसन लगभग दो स्क्वाड्रन को रिटायर कर देगी। यह फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि यह विमान अब पुराना हो चुका है और तकनीकी सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरता। 1963 से 2025 तक लगभग 463 मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं और 200 से अधिक पायलट इन हादसों में मारे गए। जिसके चलते वायुसेना की छवि और ऑपरेशनल सेफ्टी दोनों पर सवाल उठने लगे।
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि क्या इन विमानों को कबाड़ में बदलने की बजाय इन्हें यूएवी या ड्रोन में बदला जा सकता है? क्योंकि चीन ने भी अपने पुराने जे-6 विमानों को कबाड़ की बजाय ड्रोन में बदला है। हाल ही में चीन ने इन्हें शोकेस भी किया है। कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन्हें ड्रोन में तब्दील कर दिया जाए तो यह भारत की युद्ध क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी कर सकता है।
MiG-21 into UAVs?: 1963 में भारतीय वायुसेना में हुए थे शामिल
MiG-21 सोवियत युग का सुपरसोनिक फाइटर जेट है, जिसे 1963 में पहली बार भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। इसके बाद से यह भारत की एयर पावर की रीढ़ बना रहा। इस विमान ने 1971 के भारत-पाक युद्ध, कारगिल युद्ध और बालाकोट एयर स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाई। 2000 के दशक की शुरुआत में इसके बाइसन वेरिएंट को आधुनिक एवियोनिक्स और रडार से लैस करके अपग्रेड भी किया गया, ताकि इसकी आयु और युद्ध क्षमता बढ़ाई जा सके। लेकिन 2025 तक आते-आते यह विमान तकनीकी रूप से इतना पुराना हो चुका है कि इसके पार्ट्स मिलना भी मुश्किल है, मेंटेनेंस का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है और लगातार हो रहे हादसों ने इसके भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
क्या UAV में बदला जा सकता है मिग-21?
जानकारों का कहना है कि इन विमानों को सीधे स्क्रैप करने की बजाय इन्हें ड्रोन प्लेटफॉर्म में बदला जा सकता है। इस ट्रांसफॉर्मेशन से कई तरह की विकल्प खुलेंगे। सबसे पहले इन्हें टारगेट ड्रोन में बदला जा सकता है। इसका मतलब है कि वायुसेना के पायलट और मिसाइल सिस्टम इनका इस्तेमाल अभ्यास और परीक्षण में कर सकते हैं। मैक-2 की रफ्तार से उड़ने वाला मिग-21 अगर दुश्मन के इलाके में घुस जाए तो उसे असली विमान जैसा लगेगा। वहीं, नए मिसाइल सिस्टम जैसे आकाश-एनजी, क्यूआरएसएएम और एक्सआरएसएएम के ट्रायल्स के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा।
वहीं, दूसरी संभावना है कि इन्हें डिकॉय ड्रोन बनाया जाए। यानी इन्हें इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर उपकरणों से लैस करके दुश्मन के रडार सिस्टम को कन्फ्यूज करने में लगाया जाए। इससे दूसरे मानव-संचालित विमानों को सुरक्षित रखा जा सकता है।
MiG-21 Retirement India से जुड़ी यह रिपोर्ट भारतीय वायुसेना और वर्थमान परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानी बताती है। एयर मार्शल (रि.) सिम्हकुत्ती वर्थमान से लेकर ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्थमान तक, इस परिवार का MiG-21 से गहरा रिश्ता रहा है।https://t.co/xSguuin2q0#MiG21…
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) September 23, 2025
तीसरा, इन्हें कम्युनिकेशन रिले के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। मॉडर्न कम्यूनिकेशन सिस्टम को लगाकर यह दुर्गम इलाकों में हवाई कम्युनिकेशन नोड की तरह काम कर सकते हैं।
इसके अलावा, इन्हें खुफिया निगरानी कामों में भी लगाया जा सकता है। ये हाई एल्टीट्यूड इलाकों में बेहतर तरीके से उड़ान भर सकते हैं, इनकी ये क्षमता इन्हें लंबी दूरी के जासूसी मिशनों के लिए उपयोगी बनाती है।
वहीं, इन्हें कामिकाजे ड्रोन यानी आत्मघाती ड्रोन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो विस्फोटक से लैस होकर दुश्मन के ठिकानों पर एकतरफा हमला कर सकते हैं।

क्या हैं तकनीकी चुनौतियां
हालांकि, MiG-21 को यूएवी में बदलना उतना आसान नहीं है जितना सुनने में लगता है। इसे लेकर हमने एयरफोर्स के कई अधिकारियों से बात की। उन्हें यह आइडिया तो सुहाता है, लेकिन वह कहते हैं कि इनके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका स्ट्रक्चर और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम बहुत पुराना है। इन्हें लेटेस्ट रिमोट-कंट्रोल और ऑटोनॉमस फ्लइट सिस्टम से जोड़ना बेहद मुश्किल होगा। साथ ही यह बेहद खर्चीला भी होगा। उनका कहना है कि दशकों तक इस्तेमाल होने के कारण इनका एयरफ्रेम कमजोर हो चुका है। ऐसे में इसे लंबे समय तक ड्रोन के तौर पर ऑपरेट करना जोखिम भरा हो सकता है।
वहीं, बड़ी चुनौती बजट को लेकर है। भारत पहले ही राफेल, तेजस एमके 1ए और एमके 2 जैसे नए जहाजों पर अरबों रुपये खर्च कर रहा है। ऐसे में पुराने विमानों को ड्रोन में बदलने का खर्च अलग पड़ेगा, जिसका असर रक्षा बजट पर नकारात्मक पड़ सकता है।
अमेरिका और चीन कर चुके हैं ऐसा
हालांकि यह आइडिया नया नहीं है। अमेरिका ने अपने एफ-16 विमानों को क्यूएफ-16 टारगेट ड्रोन में बदला है, जिन्हें मिसाइल परीक्षणों में इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह, इजराइल ने भी अपने पुराने एफ-4 फैंटम विमानों को ड्रोन बनाया था।
वहीं, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स ने हाल ही में अपने जे-6 फाइटर जेट्स को ड्रोन में बदला है। 1950 और 1960 के दशक में बने ये विमान, जो कभी सोवियत मिग-19 पर आधारित थे, अब पूरी तरह से यूएवी में बदल दिए गए हैं।
हाल ही में चांगचुन एयर शो 2025 में पहली बार जे-6डब्ल्यू ड्रोन को शोकेस किया गया था। यह वही विमान है जिसे कभी चीन ने हजारों की संख्या में बनाया था, लेकिन अब इसे ड्रोन के तौर पर जंग के लिए तैयार किया जा रहा है।
चीन ने बनाया स्वार्म अटैक का बेड़ा
चीन ने भी अपने पुराने जे-6 और जे-7 विमानों को ड्रोन और यूसीएवी में बदलने का काम किया है। इन विमानों को स्वार्म अटैक के लिए तैयार किया गया है। अनुमान है कि चीन ने सैकड़ों पुराने विमानों को इस तरह अपग्रेड किए है, जिन्हें ताइवान के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।
जे-6 चीन का दूसरा पीढ़ी का सुपरसोनिक लड़ाकू विमान था। इसकी अधिकतम रफ्तार मैक 1.3 थी और यह 700 किलोमीटर की रेंज तक उड़ सकता था। 1960 से लेकर 1980 के दशक तक चीन ने इनकी हजारों यूनिट बनाई। लेकिन जब जे-10, जे-11 और जे-20 जैसे आधुनिक विमान आए, तो यह मॉडल पुराना हो गया।
हालांकि, चीन ने इन विमानों को पूरी तरह कबाड़ नहीं किया। बीते दो दशकों में इन्हें सुरक्षित रूप से एयरबेस पर रखा गया और अब बड़ी संख्या में इन्हें ड्रोन में बदला जा रहा है।
कैसे किया ट्रांसफॉर्मेशन?
ड्रोन ट्रांसफॉर्मेशन की प्रक्रिया में सबसे पहले पायलट से जुड़ी सभी चीजें हटा दी गईं। कॉकपिट, कैनन, सहायक ईंधन टैंक और इजेक्शन सीट को निकाल दिया गया। इसके बाद इन विमानों को आधुनिक ऑटोपायलट सिस्टम, टेर्रेन-मैचिंग नेविगेशन, और अटोनॉमस फ्लाइट कंट्रोल से लैस किया गया।
इसके अलावा, नए वेपन स्टेशन जोड़े गए, ताकि ये विमानों की तरह हथियार ले जा सकें। कुछ विमानों को कामिकाजे ड्रोन के तौर पर तैयार किया गया है, जो एकतरफा हमलों में इस्तेमाल होंगे।
चीन का उद्देश्य ताइवान पर दबाव बनाना है। जे-6 ड्रोन बड़े पैमाने पर स्वॉर्म अटैक में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जब सैकड़ों पुराने जे-6 ड्रोन एक साथ उड़ान भरेंगे, तो ताइवान के एयर डिफेंस सिस्टम पर भारी दबाव पड़ेगा।
यह ड्रोन ताइवान के रडार और मिसाइल रक्षा सिस्टम को भ्रमित कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ताइवान इन ड्रोन को रोकने के लिए महंगे पैट्रियॉट मिसाइल इंटरसेप्टर्स का इस्तेमाल करेगा, तो उसका स्टॉक जल्दी खत्म हो जाएगा। इसके बाद चीन के आधुनिक जे-20 और जे-35 लड़ाकू विमान आसानी से हमला कर सकेंगे।
एट्रिशन वारफेयर टेक्निक
रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि चीन के पास लगभग 3,000 पुराने जे-6 विमान अब भी स्टोरेज में हैं। इनमें से सैकड़ों पहले ही ड्रोन में बदले जा चुके हैं। हालांकि जे-6 ड्रोन आधुनिक विमानों की तुलना में धीमे और पुराने हैं, लेकिन इनकी खासियत यह है कि ये सस्ते और बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। यही कारण है कि इन्हें एट्रिशन वारफेयर यानी थकाऊ युद्ध की रणनीति में इस्तेमाल किया जाएगा। इनकी मदद से चीन दुश्मन को अपने एयर डिफेंस सिस्टम को लगातार इस्तेमाल करने पर मजबूर करेगा।
एचएएल और बीईएल मिलकर कर सकते हैं ट्रांसफॉर्मेशन
वहीं, भारत में इस ट्रांसफॉर्मेशन को एचएएल और बीईएल मिलकर कर सकते हैं। एचएएल को MiG-21 के मैंटेनेंस का दशकों का अनुभव है, जबकि बीईएल की विशेषज्ञता राडार और टेलिमेट्री सिस्टम में है। डीआरडीओ इस प्रोजेक्ट का तकनीकी नेतृत्व कर सकता है।
जानकारों के अनुसार, एक मिग-21 को टारगेट ड्रोन में बदलने की लागत लगभग 5 से 10 करोड़ रुपये होगी। वहीं, अगर इन्हें UCAV यानी कॉम्बैट ड्रोन में बदला जाए तो लागत 50 से 100 करोड़ रुपये तक जा सकती है। इसके मुकाबले एक नए एमक्यू-9बी जैसे ड्रोन की कीमत कई सौ करोड़ रुपये है।
कर सकते हैं मिसाइलों की टेस्टिंग
वहीं, भारत अभी नई पीढ़ी की एयर डिफेंस मिसाइलों डेवलप कर रहा है। इनमें आकाश-एनजी, क्यूआरएसएएम और एक्सआरएसएएम शामिल हैं। इन मिसाइलों को टेस्ट करने के लिए ऐसे टारगेट्स की जरूरत होती है जो तेज गति से उड़ने वाले दुश्मन विमानों जैसी चुनौती पेश कर सकें।
मैक-2 की रफ्तार और 17 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ने की क्षमता वाले मिग-21 बाइसन इस काम के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। जब इन्हें ड्रोन में बदला जाएगा तो ये रीयल टाइम वॉर जैसी स्थिति पैदा कर सकते हैं, जिससे मिसाइलों की सही क्षमता का पता लगाया जा सकेगा।
ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने तुर्की के बायरकटार टीबी2 जैसे ड्रोन का इस्तेमाल किया था। वहीं, चीन बड़े पैमाने पर पुराने विमानों को ड्रोन में बदलकर उन्हें स्वॉर्म अटैक्स के लिए तैयार कर रहा है। भारत के सामने चुनौती यह है कि वह ऐसे प्रयोग करे जिससे उसकी ड्रोन और एयर डिफेंस क्षमता दोनों मजबूत हों। मिग-21 को ड्रोन में बदलना इस दिशा में एक ब्रिज कैपेबिलिटी साबित हो सकता है, जब तक कि डीआरडीओ के तापस और घातक जैसे प्रोजेक्ट पूरी तरह से ऑपरेशनल न हो जाएं।

