📍नई दिल्ली | 18 Oct, 2025, 5:35 PM
डीआरडीओ ने नाग एमके II एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) का सफल परीक्षण स्वदेशी जोरावर लाइट टैंक से किया है। राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में हुए इस ट्रायल ने यह साबित कर दिया कि भारत अब पहाड़ी इलाकों में भी अपने हल्के लेकिन घातक टैंकों से दुश्मन के भारी कवच वाले टैंकों को 10 किलोमीटर की दूरी से नष्ट कर सकता है। इस मिसाइल सिस्टम के आने से भारत अब ‘बियॉन्ड-विजुअल-रेंज (बीवीआर)’ टैंक वारफेयर में भी कैपेबल हो गया है। इसका मतलब है कि अब भारतीय टैंक दुश्मन को देखे बिना भी उसके टैंकों पर हमला कर सकते हैं।
जोरावर पर यह ट्रायल 17 अक्टूबर को किया गया था और इसमें मिसाइल ने सभी निर्धारित मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह मिसाइल ‘फायर एंड फॉरगेट’ तकनीक पर आधारित है, यानी एक बार लॉन्च होने के बाद यह खुद लक्ष्य की पहचान कर उसे भेद सकती है। यह मिसाइल अपने ‘टॉप-अटैक’ या टॉप-अटैक मैजिक मोड के जरिए दुश्मन के टैंक को ऊपर से निशाना बनाती है, जहां उनका कवच सबसे कमजोर होता है।
जोरावर टैंक को डीआरडीओ के कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने डिजाइन किया है और इसे लार्सन एंड टुब्रो ने तैयार किया है। यह भारत का पहला स्वदेशी लाइटवेट टैंक है, जिसे खास तौर पर लद्दाख, अरुणाचल और सिक्किम जैसे ऊंचे इलाकों के लिए बनाया गया है।
इस टैंक का वजन मात्र 25 टन है, जो पारंपरिक टैंकों जैसे टी-72 या टी-90 से लगभग आधा है। हल्का होने के बावजूद इसकी मारक क्षमता बेहद घातक है। इसमें 105 मिमी की कोकरिल गन लगी है, जो फायर एंड फॉरगेट शेल्स दाग सकती है। इसके अलावा इस पर 8 नाग एमके II मिसाइलें तैनात की जा सकती हैं।
🚨 Big Milestone for India’s Defence Tech! 🇮🇳
DRDO has successfully demonstrated the Anti-Tank Guided Missile (Nag Mk II) firing capability from the indigenously developed Light Tank ‘Zorawar’, jointly designed by DRDO and manufactured by Larsen & Toubro Ltd.
All performance… pic.twitter.com/jOPWiVlHRR— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) October 17, 2025
जोरावर की रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा तक है और यह पानी में भी चल सकता है। इसके इंजन की शक्ति 1000 हॉर्सपावर है और यह ऊंचाई वाले इलाकों में भी ऑपरेशन कर सकता है। जोरावर में आधुनिक एआई-बेस्ड फायर कंट्रोल सिस्टम, नाइट विजन और एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम भी लगा है जो दुश्मन की मिसाइलों को बीच में ही नष्ट कर देता है।
नाग एमके II को क्यों कहा जा रहा दुश्मन के टैंकों का शिकारी
नाग एमके II मिसाइल डीआरडीओ के इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम का हिस्सा है। यह नाग मिसाइल सीरीज का अपग्रेडेड वर्जन है। पहले वर्जन की तुलना में नाग एमके II की रेंज और सटीकता दोनों ही ज्यादा हैं।
यह मिसाइल 4 से 10 किलोमीटर की दूरी तक टारगेट के निशाना बना सकती है। इसकी रफ्तार 250 मीटर प्रति सेकंड (लगभग 900 किमी/घंटा) है। इसमें लगा इंफ्रारेड इमेजिंग सीकर टारगेट की हीट को पहचान कर निशाना बनाता है, जिससे यह धुंध, रात और खराब मौसम में भी कारगर है।
“टॉप-अटैक मोड” फीचर है सबसे घातक
नाग एमके II की सबसे बड़ी खूबी है इसका “टॉप-अटैक मोड” फीचर, जो इसे और घातक बनाता है। मिसाइल पहले ऊंचाई पर जाती है और फिर गोता लगाते हुए टैंक की छत यानी टॉप पर वार करती है। आमतौर पर टैंकों का ऊपरी हिस्सा सबसे कमजोर होता है, जिससे टैंक का इंजन और क्रू दोनों निशाना बन जाते हैं।
भारतीय सेना के पास इस समय लगभग 3,500 से अधिक टैंक हैं, जिनमें से अधिकांश भारीभरकम हैं और पहाड़ी इलाकों में तैनात करने में मुश्किल होती है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद यह महसूस किया गया कि चीन के हल्के टैंकों के मुकाबले भारत को भी हल्के, मोबाइल और आधुनिक टैंक चाहिए। इसी के चलते “जोरावर प्रोजेक्ट” की शुरुआत हुई।
जोरावर टैंक में नाग एमके II मिसाइल के इंटीग्रेशन के बाद यह चीन के टाइप-15 और पाकिस्तान के वीटी-4 जैसे टैंकों के लिए काल बन गया है।
वहीं, जोरावर टैंक में नाग एमके II का इंटीग्रेशन भारत के ‘मेक-1’ कैटेगरी प्रोजेक्ट्स में आता है, यानी इसमें किसी विदेशी तकनीक या ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी की जरूरत नहीं। इसके अलावा यह सिस्टम भविष्य में भारत के मित्र देशों को निर्यात भी किया जा सकता है। डीआरडीओ ने पहले ही इस मिसाइल की एक्सपोर्ट कैटेगरी क्लियरेंस के लिए रक्षा मंत्रालय से अनुमति मांगी है।
नहीं बच पाएंगे चीन और पाकिस्तान के टैंक
नाग एमके II मिसाइल को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह किसी भी आधुनिक टैंक के टॉप आर्मर (ऊपरी कवच) को आसानी से भेद सके। मिसाइल का वॉरहेड 8 किलोग्राम हाई-एक्सप्लोसिव एंटी-टैंक (हीट) है, जो 800 मिमी तक के आर्मर या कवच को भेदने में सक्षम है। जो चीन के टाइप-99 और पाकिस्तान के अल-खालिद टैंकों को एक ही वार में नष्ट करने के लिए काफी है। आधुनिक टैंकों में सबसे मोटा कवच आगे की तरफ (फ्रंट हल और टरेट) होता है, जो 600–800 मिमी तक होता है, जबकि ऊपर की छत पर यह सबसे कमजोर रहती है आमतौर पर सिर्फ 100–200 मिमी तक होती है।
चीन और पाकिस्तान के टैंकों की स्थिति इस लिहाज से कमजोर है। चीन का टाइप-99 टैंक में 700–750 मिमी का फ्रंट कवच है, लेकिन इसका टॉप आर्मर केवल 120–150 मिमी का है। वहीं, पाकिस्तान के अल-खालिद-1 और वीटी-4 (हैदर) टैंकों का फ्रंट कवच 650–700 मिमी और टॉप सिर्फ 100–130 मिमी मोटा है। पुराने टैंक जैसे अल-जरार या टाइप-85IIएपी में यह केवल 50–80 मिमी ही है।
जैवलिन और स्पाइक से भी पावरफुल है नाग एमके II
भारत की स्वदेशी नाग एमके II एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल अब अमेरिका की जैवलिन, इजराइल की स्पाइक, रूस की कॉर्नेट और चीन की एचजे-12/एचजे-10 जैसी आधुनिक मिसाइलों की कैटेगरी में आ गई है। यह मिसाइल इंफ्रारेड इमेजिंग गाइडेंस से लैस है और इसका वॉरहेड 800 मिलीमीटर तक के आर्मर को भेद सकता है। जबकि अमेरिकी जेवलिन और इजराइल की स्पाइक की रेंज क्रमशः 4 से 8 किलोमीटर तक है। नाग एमके II की रेंज सबसे ज्यादा है और यह मौसम या जामिंग की स्थिति में भी सटीक वार करती है।
अमेरिका की एफजीएम-148 जैवेलिन एक हल्की, पोर्टेबल मिसाइल है जिसका यूक्रेन युद्ध में सक्सेस रेट 95 फीसदी तक है। लेकिन इसकी रेंज मात्र 4 किमी है। वहीं, इजराइल की स्पाइक ईआर मिसाइल मल्टी-प्लेटफॉर्म है और 8 किमी तक काम करती है, लेकिन नाग एमके II इसे भी रेंज और पावर में पीछे छोड़ती है। चीन की एचजे-12 को “जेवलिन कॉपी” कहा जाता है, जिसकी रेंज 4 किमी है और यह इंफ्रारेड गाइडेड है, पर इसकी सटीकता नाग एमके II के मुकाबले कम है। चीन की दूसरी मिसाइल एचजे-10 की रेंज भले ही 10 किमी है, पर यह पुरानी सैकलॉस (वायर-गाइडेड) सिस्टम पर काम करती है, यानी यह फायर-एंड-फॉरगेट नहीं है।
रूस की कॉर्नेट मिसाइल की पेनेट्रेशन क्षमता भले 1,200 मिमी हो, लेकिन यह लेजर बीम-राइडिंग गाइडेंस पर आधारित है, जिससे ऑपरेटर खतरे में रहता है। इसके मुकाबले नाग एमके II लॉन्च के बाद खुद टारगेट को ट्रैक करती है, जिससे टैंक क्रू सुरक्षित रहता है।
नाग एमके II कीमत में भी है किफायती
वहीं, पाकिस्तान की बात करें तो उसके पास अब भी पुरानी बक्तर-शिकन मिसाइल है, जो चीन की एचजे-8 की कॉपी है। इसकी रेंज केवल 4 किलोमीटर है और यह वायर-गाइडेड है। उसका फायर-एंड-फॉरगेट वर्जन अभी सीमित मात्रा में है और भारतीय नाग नाग एमके II से कई साल पीछे है।
नाग एमके II मिसाइल कीमत के मामले में भी काफी किफायती है। इसकी प्रति यूनिट लागत लगभग 8 करोड़ रुपये (करीब 1 मिलियन डॉलर) आंकी गई है। इसके मुकाबले, अमेरिकी जैवलिन मिसाइल की कीमत करीब 15 करोड़ प्रति यूनिट है। इजराइल की स्पाइक मिसाइल की कीमत 10–12 करोड़ रुपये तक जाती है, जबकि रूस की कॉर्नेट मिसाइल लगभग 12 करोड़ रुपये में आती है। वहीं, चीन की एचजे-12 मिसाइल सस्ती है, जिसकी अनुमानित लागत 5–7 करोड़ प्रति यूनिट है, लेकिन उसकी रेंज केवल 4 किलोमीटर है और वह जैम-प्रूफ नहीं है।