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Agni-Prime Missile: अब चलती ट्रेन से भी छोड़ी जा सकेगी अग्नि-प्राइम मिसाइल, टारगेट पर चीन के कई शहर, जानें रेल-बेस्ड लॉन्चर क्यों है खास

इस उपलब्धि के बाद भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जिनके पास कैनिस्टराइज्ड रेल नेटवर्क से मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता है...

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📍नई दिल्ली | 25 Sep, 2025, 11:00 AM

Agni-Prime Missile: डीआरडीओ ने गुरुवार को ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए अग्नि-प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया। ये परीक्षण इसलिए भी खास है क्योंकि पहली बार इस मिसाइल को रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर से लॉन्च किया गया। यह परीक्षण डीआरडीओ और स्ट्रैटेजिक फोर्सेसज कमांड के सथ मिल कर किया गया। वहीं, इस उपलब्धि के बाद भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जिनके पास कैनिस्टराइज्ड रेल नेटवर्क से मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता है।

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफलता को “ऐतिहासिक क्षण” बताते हुए डीआरडीओ, स्ट्रैटेजिक फोर्सेसज कमांड और भारतीय सशस्त्र बलों को बधाई दी। रक्षा मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि यह परीक्षण भारत की सामरिक क्षमताओं को और मजबूती देगा और भविष्य की सैन्य रणनीतियों के लिए निर्णायक साबित होगा।

Agni-Prime Missile: क्या है अग्नि-प्राइम मिसाइल?

अग्नि-प्राइम मिसाइल भारत की अग्नि सीरीज की नई पीढ़ी की मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है। इसे 1,000 से 2,000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने के लिए डिजाइन की गई है। यह मिसाइल परमाणु और पारंपरिक दोनों तरह के हथियार ले जाने में सक्षम है।

यह अग्नि-I और अग्नि-II का अपग्रेड वर्जन है, लेकिन उससे हल्की, अधिक सटीक और तकनीकी रूप से एडवांस है। अग्नि-प्राइम का वजन लगभग 11,500 किलोग्राम है, जो अग्नि-III की तुलना में लगभग आधा है। इसके कैनिस्टराइज्ड डिजाइन के चलते इसे लंबे समय तक स्टोर करने और किसी भी समय तुरंत लॉन्च किया जा सकता है।

रेल-बेस्ड मोबाइल लॉन्चर क्यों है खास?

इस परीक्षण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पहली बार अग्नि-प्राइम को रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर से छोड़ा गया। यह लॉन्चर भारतीय रेल नेटवर्क पर बिना किसी विशेष तैयारी के आसानी से लॉन्च किया जा सकता है।

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रेल-आधारित लॉन्चर पूरी तरह से सेल्फ-कंटेंड सिस्टम है। इसमें आधुनिक संचार उपकरण, सुरक्षा प्रणाली और स्वतंत्र रूप से लॉन्च करने की क्षमता मौजूद है। यह मिसाइल को कम समय में तैयार कर सकता है और लॉन्च कर सकता है, जिससे भारत तुरंत जवाबी कार्रवाई कर सकता है।

भारत का रेलवे सिस्टम दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है, जिसकी कुल लंबाई 69,181 किमी है। वहीं, भारत चीन सीमा के आसपास रेल नेटवर्क को तेजी से बढ़ा रहा है। यहां रेल नेटवर्क मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों (नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे) के जिम्मे है, जहां 2025 में 500 किमी नई लाइनें बनाने की योजना है। यहां एलएसी से 100 से 200 किमी तक सटे इलाकों में पहले से 800-1,000 किमी का रेल नेटवर्क मौजूद है। वहीं, एलएसी से सटे सिक्कम में नाथू ला और अरुणाचल में तवांग तक कई इलाकों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना है। जिसके बाद चीन के 10 से 12 शहर अग्निप्रााइम की रेंज में आ जाएंगे। अग्नि-प्राइम मिसाइल चीन के पश्चिमी क्षेत्रों में तैनात मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

रेल नेटवर्क का उपयोग मिसाइल को देश के किसी भी हिस्से तक ले जाने में मदद करता है, जिससे दुश्मनों के लिए इसे ट्रैक करना और नष्ट करना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसे ले जाने वाली खास ट्रेनें टनलों में छिप सकती हैं। जिससे ये किसी की नजर में नहीं आती। यह तकनीक भारत की रक्षा रणनीति में “गेम चेंजर” साबित हो सकती है।

बताया “टेक्स्ट बुक लॉन्च”

24 सितंबर को किए गए परीक्षण के दौरान मिसाइल की ट्रैजेक्टरी (trajectory) को कई ग्राउंड स्टेशनों से ट्रैक किया गया। डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और स्ट्रैटेजिक फोर्सेसज कमांड के अधिकारियों ने इस लॉन्च को देखा और इसे “टेक्स्ट बुक लॉन्च” बताया, यानी यह पूरी तरह सफल रहा और मिशन के सभी उद्देश्यों को हासिल किया गया।

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2,000 किलोमीटर तक की रेंज के साथ यह मिसाइल पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों तक मार करने में सक्षम है। रेल-आधारित लॉन्चर से तैनाती से भारत की सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी मजबूत होगी। वहीं, परमाणु युद्ध की स्थिति में यह क्षमता बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इससे भारत दुश्मन के पहले हमले के बाद भी प्रभावी जवाब दे सकता है।

इससे पहले अग्नि-प्राइम का पहला सफल परीक्षण 28 जून 2021 को ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया था। इसके बाद दिसंबर 2021, जून 2023 और अप्रैल 2024 में भी सफल उड़ान परीक्षण हुए। सड़क-आधारित मोबाइल लॉन्चर से यह मिसाइल पहले ही सेना में शामिल की जा चुकी है। लेकिन रेल-आधारित लॉन्चर से यह पहला परीक्षण था।

अग्नि-प्राइम की खूबियां

अग्नि-प्राइम मिसाइल को कई एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस किया गया है। हल्के डिजाइन होने की वजह से इसे ले जाना आसान है। इसमें डुअल रिडंडेंट नेविगेशन सिस्टम लगाया गया है, जिसमें आईएनएस, जीपीएस और आईआरएनएसएस शामिल हैं। इसके कारण इसका सर्कुलर एरर प्रोबेबल (सीईपी) 10 मीटर से भी कम है, यानी यह अपने लक्ष्य को बहुत सटीकता से भेद सकती है।

मिसाइल में मैन्यूवरेबल री-एंट्री व्हीकल (MaRV) तकनीक है, जो इसे दुश्मन के मिसाइल डिफेंस सिस्टम से बचने में सक्षम बनाती है। इसमें थ्रस्टर या एयरोडायनामिक कंट्रोल सिस्टम होते हैं, जिससे यह मिसाइल वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान अपनी दिशा बदल सकती है। यह दो चरणों में सॉलिड ईंधन पर चलती है। इस मिसाइल को कैनिस्टर में स्टोर किया जाता है। जिससे यह मौसम और बाहरी खतरों से बची रहती है और साथ ही इसे फटाफट लॉन्च किया जा सकता है।

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किन-किन देशों के पास है यह सुविधा

रेल-बेस्ड लॉन्चर सिस्टम बहुत कम देशों के पास है। रूस ने 1980 में आरटी-23 मिसाइल के लिए इसका इस्तेमाल किया था। चीन के पास डीएफ-41 मिसाइल का रेल वर्जन है। डीएफ-41 आईसीबीएम के रेल वर्जन को 2015-2016 में टेस्ट किया गया था। यह सॉलिड-फ्यूल्ड और मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक से लैस है। MIRV की खासियत है कि एक मिसाइल कई वारहेड्स ले जा सकती है, और प्रत्येक वारहेड को अलग-अलग टारगेट्स पर निशाना बनाने की क्षमता होती है। इसे पीएलए की रॉकेट फोर्स ऑपरेट करती है।

वहीं, उत्तर कोरिया ने 15 सितंबर, 2021 में ह्वासोंग-11A मिसाइल को रेल से छोड़ा था। जिसे रेलवे-बोर्न मिसाइल रेजिमेंट ने ऑपरेट किया था। वहीं, पाकिस्तान के पास अभी ऐसी कोई सुविधा नहीं है और वह अभी भी रोड बेस्ड मिसाइलों पर ही निर्भर है।

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    हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवाद, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

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