📍नई दिल्ली | 15 Sep, 2025, 12:27 PM
Artillery in Kargil War: कारगिल युद्ध की जब भी चर्चा होती है, तो कहानियां अक्सर जवानों की वीरता के इर्द-गिर्द आकर सिमट जाती हैं। लेकिन इस युद्ध में जितनी बहादुरी सैनिकों ने दिखाई तो वहीं मशीनों के योगदान को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की आर्टिलरी की गूंज ने भी दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे। उस दौरान कारगिल युद्ध में 8 माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड की कमान संभालने वाले (उस समय ब्रिगेडियर) रिटायर्ड मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने अपनी नई किताब ‘आर्टिलरीज थंडर: द अनटोल्ड कारगिल स्टोरी’ के मौके पर आर्टिलरी यानी तोपखाने के किस्सों को साझा किया है।
Artillery’s Thunder: The Untold Kargil Story में उन्होंने बताया है कि किस तरह तोपों की गरज ने युद्ध का पासा पलट दिया था। कैसे भारी संख्या में दागे गए गोलों ने दुश्मन के बंकरों को चकनाचूर करते हुए इन्फैंट्री के आगे बढ़ने का रास्ता साफ किया था।
Artillery in Kargil War: ‘एनरेज्ड बुल ऑफ द्रास’
रिटायर्ड मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान 8 माउंटेन आर्टिलरी ब्रिगेड की कमान संभाली थी। कारगिल में अपनी वीरता और नेतृत्व क्षमता और अपनी आक्रामक रणनीति के चलते उन्हें Enraged bull of Drass यानी ‘द्रास का गुस्सैल सांड’ जैसा उपनाम भी मिला था। उन्होंने बोफोर्स एफएच-77बी हॉवित्जर तोपों का इस्तेमाल करके तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसी चोटियों को वापस जीतने में अहम भूमिका निभाई थी। इस योगदान के लिए उन्हें युद्ध सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया था।

उन्होंने युद्ध के दौरान 100 से अधिक बोफोर्स हॉवित्जर गनों को एक साथ इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई। उनका कहना था, “सौ तोपों से एक साथ 3,000 किलो स्टील और विस्फोटक गिराना ऐसा था जैसे दुश्मन पर बिजली गिर गई हो। मात्र आधे घंटे में एक लाख किलो विस्फोटक दागकर हमने दुश्मन की पोजिशनें तबाह कर दीं।”
Artillery in Kargil War: तोपों से बदले युद्ध के हालात
मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने बताया कि युद्ध की शुरुआत में 8 माउंटेन डिवीजन के पास केवल 6-7 फायर यूनिट या छह आर्टिलरी की बैटरियां उपलब्ध थीं। तोलोलिंग पर कब्जे की शुरुआती कोशिशों में इन्फैंट्री को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ा। कई प्रयास असफल रहे क्योंकि दुश्मन ऊंचाई पर बैठा था और भारतीय सैनिक नीचे से चढ़ाई कर रहे थे। लेकिन जब एक साथ 155 एमएम वाली 108 तोपों ने गोलाबारी शुरू की तो हालात बदल गए। मेजर जनरल सिंह ने कहा, “युद्ध का रुख तभी बदला जब हमारी तोपों ने दुश्मन की पोजिशन पर सीधी मार की।” उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह की रणनीति का भी उल्लेख किया, जिसमें आर्टिलरी को कभी-कभी रायफल की तरह सीधे निशानेबाजी के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
पाकिस्तानी बोले- बचाओ, हमारे ऊपर कहर टूट पड़ा है
मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने बताया, “असल में, इन्फैंट्री और आर्टिलरी के सामने पाकिस्तानियों के पास कोई जवाब नहीं था। दोनों ने गजब का काम किया। आर्टिलरी का असर इतना जबरदस्त था कि पहाड़ों पर पाकिस्तानी चिल्लाते थे– हमें बचाओ, हमारे ऊपर कहर टूट पड़ा है। वो इतने डरे हुए थे कि अपनी पोजिशन छोड़ना ही बेहतर समझते थे।” उन्होंने बताया कि सबसे पहले ये तोलोलिंग में ऐसा हुआ था। जब हमने वहां फायरिंग की तो हमें इंटरसेप्ट में यही आवाजें सुनाई दीं। और फिर हर ऊंचाई पर जहां भी हम गए, वही हालात थे, हर जगह पाकिस्तानी यही चिल्ला रहे थे।“
Artillery in Kargil War: सैनिक तोपों को करते थे सलाम
युद्ध के दौरान तकरीबन 2.9 लाख तोपों के गोले दागे गए। इन गोलाबारियों ने न सिर्फ भारतीय सैनिकों के हौसले को बढ़ाया बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों को भी हतोत्साहित कर दिया। कई बार ऐसा हुआ कि जब पैदल सेना मोर्चे से लौटती थी, तो वे तोपों को सलामी देते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इन तोपों ने उनकी जान बचाई।
Artillery in Kargil War: पत्नी ने दी किताब लिखने की प्रेरणा
मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने कहा, कारगिल वॉर पर बहुत किताबें आई हैं, लेकिन कई पहलू अभी तक सामने नहीं आए थे। मैंने सोचा जितना हो सके खुलकर और ईमानदारी से वो सच लिखूं जो जरूरी था। इसी वजह से इसका नाम रखा The Untold Story।” उन्होंने कहा, “असल में मेरी पत्नी ने बार-बार कहा कि मुझे लिखना चाहिए। मैं हिचकिचा रहा था, लेकिन मेरे दिमाग में बहुत सारी बातें थीं, जो लोगों तक पहुंचनी चाहिए थीं। फिर मैंने कलम उठाई और लिखना शुरू किया। मुझे लगता है, यह किताब लोगों के लिए दिलचस्प होगी।”
Artillery in Kargil War: पॉइंट 5140 को मिला था “गन हिल” नाम
मेजर जनरल सिंह ने कहा कि आर्टिलरी को महज सपोर्टिंग आर्म नहीं माना जाना चाहिए। उनके मुताबिक, कारगिल में यह साफ हो गया कि आर्टिलरी युद्ध का निर्णायक हथियार है और इसे स्वतंत्र शक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। शायद इसीलिए आर्टिलरी को “गॉड ऑफ वॉर” भी कहा जाता है। वहीं इन्फैंट्री को “क्वीन” और आर्मर्ड कोर “किंग ऑफ वॉर” कहा जाता है।
द्रास-मश्कोह में 6 नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री उस समय प्वाइंट 5140 (16,864 फीट) पर थी। यह वही जगह थी जहां से गनों के इस्तेमाल से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा गया था। जिसके बाद 30 जुलाई को द्रास सेक्टर के पॉइंट 5140 को औपचारिक रूप से “गन हिल” नाम दिया गया था, ताकि आर्टिलरी के योगदान को हमेशा याद रखा जा सके।
कारगिल युद्ध के बाद प्वाइंट 5140 का नाम गन हिल रखने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। हालांकि आर्टिलरी ने न केवल पॉइंट 5140 बल्कि तोलोलिंग, पॉइंट 4700, थ्री पिंपल्स, टाइगर हिल और पॉइंट 4875 (जिसे बत्रा टॉप भी कहा जाता है) जैसी चोटियों पर मौजूद पाकिस्तानी बंकरों को बरबाद करने में अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध के बाद तत्कालीन 8 माउंटेन डिवीजन के आर्टिलरी कमांडर लखविंदर सिंह किसी एक जगह को “गन हिल” नाम रखने का प्रस्ताव गंभीरता से दिया था। उन्होंने यह बात तत्कालीन डायरेक्टोरेट ऑफ आर्टिलरी से यह बात कही थी। जिसके बाद तत्कालीन 15वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल कृष्ण पाल युद्ध के बाद प्वाइंट 4875 का नाम गन हिल रखने पर सहमत हुए थे। लेकिन उसे पहले से ही बत्रा टॉप के नाम से जाना जाने लगा था। जिसके बाद प्वाइंट 5140 का नाम गन हिल रखा गया था। लेफ्टिनेंट जनरल पाल ने ही तत्कालीन ब्रिगेडियर लखविंदर सिंह को द्रास में नियुक्त किया था। बता दें कि युद्ध की शुरुआत में मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने ही युद्ध को भारतीय सेना के पक्ष में बदलने के लिए चार बोफोर्स रेजिमेंटों को द्रास में भेजने का प्रस्ताव रखा था।