OROP: वन रैंक वन पेंशन को लेकर अब जवानों के ‘मन’ की बात सुनेगी सरकार; भेजा बुलावा, लेकिन ये है शर्त

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By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 6 months ago

OROP: देश के जवानों की कुर्बानी और सेवा का मान रखते हुए, सरकार अब सीधा संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रही है। हाल ही में, रक्षा मंत्रालय द्वारा एक पत्र जारी किया गया है जिसमें केवल गैर-अधिकारी (एनसीओ) और जवानों से बातचीत करने की मंशा जाहिर की गई है। इस पत्र में स्पष्ट निर्देश हैं कि इस संवाद प्रक्रिया में कोई अधिकारी या जेसीओ (जूनियर कमीशंड ऑफिसर) शामिल नहीं होंगे। इस पहल के पीछे सरकार का उद्देश्य जवानों की ज़मीनी समस्याओं और अनुभवों को सीधे सुनना है, जो वन रैंक वन पेंशन (OROP) से लाभान्वित हुए हैं।

OROP: Government to Hear Soldiers' Concerns Directly, but with Conditions

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वन रैंक वन पेंशन: लाभान्वित जवानों से संवाद का प्रयास

पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि उन जवानों को शामिल किया जाए जिन्हें वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना का सबसे अधिक लाभ मिला है। रक्षा मंत्रालय को चाहिए कि एक हवलदार, एक नायक और तीन सिपाहियों के नाम भेजे जाएं, जिनकी पहचान ऐसे लाभार्थियों के रूप में की गई हो जिन्हें OROP से आर्थिक राहत मिली हो। यह एक दुर्लभ अवसर है जब जवानों के अनुभवों को सरकारी नीति निर्माण के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।

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ओआरओपी (OROP) योजना के लाभ और समस्याएँ

OROP योजना ने जवानों के लिए निश्चित रूप से फायदेमंद कदम उठाए हैं, लेकिन यह भी सच है कि कुछ जवानों और अधिकारियों को इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया। कई रैंक और ट्रेड के जवान, जिनमें सीनियर सिपाही, ऑनरेरी लेफ्टिनेंट और कैप्टन शामिल हैं, आज भी आर्थिक असमानताओं का सामना कर रहे हैं। इन मुद्दों पर पहले भी रक्षा मंत्री से कई बार संवाद हुए हैं, लेकिन अधिकतर समय जवानों को निराशा ही हाथ लगी है। सरकार द्वारा एक तरफ OROP के सबसे लाभान्वित लोगों को सामने लाने की कोशिश की जा रही है, वहीं दूसरी ओर उन जवानों के सवाल अब भी अनसुलझे हैं, जिन्हें OROP के तहत कम लाभ मिला या नुकसान हुआ।

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जवानों की मांग: सभी के लिए बराबरी का लाभ

जवानों के दिल में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार जवानों के फायदे और नुकसान को बराबरी से देख रही है। क्या यह संवाद सिर्फ कुछ लाभान्वित जवानों की आवाज़ सुनने तक सीमित रहेगा, या उन सभी की पीड़ा को भी समझा जाएगा जिनकी आर्थिक स्थिति अब भी बेहतर नहीं हुई है? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जो जवानों की आकांक्षाओं और उनकी मेहनत को सीधे छूता है।

सरकार के कदम और जवानों की उम्मीदें

सरकार ने वन मैन ज्यूडिशल कमेटी का गठन तो किया, लेकिन उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। ऐसे में जवानों में यह उम्मीद है कि सरकार इस रिपोर्ट को सामने लाएगी और सिफारिशों को लागू करेगी ताकि सभी को बराबरी का हक मिले। ये जवान हर समय देश की सेवा में तत्पर रहते हैं और अब वे भी सरकार से समानता और न्याय की उम्मीद कर रहे हैं।

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यह पहल एक अच्छा कदम है, लेकिन यह तब ही सफल होगी जब सभी जवानों की आवाज़ को बराबर सम्मान मिलेगा। क्योंकि OROP (वन रैंक वन पेंशन) के हालिया संशोधन के तहत बहुत से पूर्व सैनिकों ने निराशा जताई है, क्योंकि उनकी पेंशन में मामूली या बिल्कुल भी वृद्धि नहीं हुई है। केंद्र सरकार ने जुलाई 2024 से OROP का तीसरा संस्करण (OROP-3) लागू किया और रक्षा मंत्रालय ने 4 सितंबर 2024 को इसकी संशोधित पेंशन दरों के साथ एक अधिसूचना जारी की थी।

कई पूर्व सैनिक, विशेषकर जेसीओ रैंक के नीचे के जवानों की पेंशन में मामूली बढ़ोतरी के कारण असंतोष व्यक्त कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, असम के ऑनरी कैप्टन लक्षी नाथ सैकिया ने बताया कि 33 साल की सेवा के बावजूद उनकी पेंशन में कोई वृद्धि नहीं हुई। इसी तरह, पूर्व सैनिक समित्तर सिंह ने बताया कि उनकी पेंशन केवल 1 रुपये बढ़ी और दो महीने का एरियर केवल 2 रुपये रहा, जिससे उनका परिवार अत्यधिक निराश हुआ।

OROP-Pension

 

नौसेना के रिटायर्ड जवान अखिल राय और वायुसेना से रिटायर्ड तोमर ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार साझा किए। उनका मानना है कि ओआरओपी-3 संशोधन के दौरान MACP को ध्यान में नहीं रखा गया, जिससे एयर वेटरंस की पेंशन निचले स्तर पर संशोधित हुई। वहीं, वीर नारियों की फैमिली पेंशन में भी बढ़ोतरी न होने से परिवारजनों ने निराशा जताई है। त्रिपुरा की वीर नारी रंजना शर्मा के पुत्र ने इस पर सरकार से सवाल किए।

भूतपूर्व सैनिकों का मानना है कि OROP का यह नया संशोधन सरकार के पेंशन खर्च को कम करने की योजना का हिस्सा है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल गुरप्रकाश सिंह विर्क और अन्य सैनिकों का कहना है कि सरकार अग्निवीर योजना को लागू करके पेंशन खर्च बचाने की कोशिश कर रही है, जबकि इस कदम से सेना की ऑपरेशनल तैयारियों पर भी असर पड़ सकता है।

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग जैसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने भी पेंशन और भर्ती के मसले पर अपने विचार व्यक्त किए हैं, जिससे यह मुद्दा और गहराई से सामने आया है।

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