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Dr. Jitendra Singh: अंतरिक्ष में जाएगा DRDO का ये वैज्ञानिक! फ्रांस में कमर्शियल एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग लेने वालों में अकेले भारतीय

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Dr. Jitendra Singh: भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र सिंह को फ्रांस के स्पेसफ्लाइट इंस्टीट्यूट में पहले कमर्शियल अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण बैच के लिए चुना गया है। खास बात यह है कि इस बैच में वह अकेले भारतीय हैं। यह उपलब्धि न केवल उनके मेहनत और समर्पण की गवाही देती है, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की बढ़ती मौजूदगी को भी दर्शाती है।

Dr. Jitendra Singh Selected for First Batch of Commercial Astronaut Training in France

वैज्ञानिक करियर की शुरुआत

डॉ. सिंह ने 1997 में रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की। वह भारत के एकमात्र फ्लाइट टेस्ट इंजीनियर (FTE) हैं, जिन्होंने सैन्य और वाणिज्यिक दोनों विमान परीक्षणों में काम किया है। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में एयरबस A320neo का परीक्षण और टाइप सर्टिफिकेशन शामिल है।

शैक्षिक उपलब्धियां

डॉ. सिंह ने पीईसी चंडीगढ़ से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने टीयू डेल्फ्ट, नीदरलैंड्स और आईएसएई सुपएरो, फ्रांस से मास्टर डिग्री पूरी की। उनकी थीसिस स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित ईटीएच ज्यूरिख में हुई।

उन्हें एआरडीबी डीआरडीओ नेशनल मेरिट स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया था, जो उनकी शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रमाण है।

Dr. Jitendra Singh Selected for First Batch of Commercial Astronaut Training in France

करियर

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं में काम किया है, जैसे:

  1. राष्ट्रीय नागरिक विमान विकास कार्यक्रम (USD 2 बिलियन):
    उन्होंने भारत के क्षेत्रीय विमान विकास परियोजना के लिए कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में कार्य किया।
  2. डीआरडीओ वैज्ञानिक:
    उन्होंने हल्के लड़ाकू विमान (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के लिए “कावेरी” इंजन परियोजना में रक्षा मंत्रालय के तहत काम किया।
  3. टर्बोमेका हेलिकॉप्टर इंजन:
    वह इंजीनियरिंग और गुणवत्ता निदेशक के रूप में जुड़े, जहां उन्होंने अर्दिडेन इंजन पर काम किया।
  4. हनीवेल इंटरनेशनल, चेक गणराज्य:
    उन्होंने कोर टेक्नोलॉजी कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में योगदान दिया।
  5. जीई पावर सिस्टम्स, न्यूयॉर्क, यूएसए:
    उन्होंने आरएंडडी इंजीनियर के रूप में काम किया।

कॉमर्शियल अंतरिक्ष यात्री बनने की उपलब्धि

स्पेसफ्लाइट इंस्टीट्यूट में यह प्रशिक्षण अंतरिक्ष अभियानों में उपयोग होने वाले तकनीकी और भौतिक कौशल को विकसित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। डॉ. सिंह का चयन भारतीय अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छूने का प्रतीक है।

वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन

डॉ. सिंह का यह चयन देश की “आत्मनिर्भर भारत” पहल को और मजबूती देता है। उनके अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने से न केवल भारत को वैश्विक मंच पर पहचान मिलेगी, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगा।

ATAGS: भारत फोर्ज और रक्षा मंत्रालय के बीच ATAGS कॉन्ट्रैक्ट को लेकर बातचीत हुई शुरू, डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर भारत पहल को मिल सकती है बड़ी कामयाबी

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ATAGS: भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए, कल्याणी ग्रुप की भारत फोर्ज और रक्षा मंत्रालय के बीच 155 मिमी/52 कैलिबर एडवांस्ड टोएड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) के अनुबंध को लेकर बातचीत शुरू हो चुकी है। यह कदम भारत की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने और स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

ATAGS: Bharat Forge and Defence Ministry Begin Contract Talks, Boosting India's Self-Reliance in Defence Manufacturing

क्या है ATAGS?

ATAGS भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है, जिसमें भारत फोर्ज और टाटा समूह ने सहयोग किया है। यह तोप प्रणाली न केवल अपनी लंबी रेंज और सटीकता के लिए जानी जाती है, बल्कि यह स्वदेशी तकनीक का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। इसकी विशेषता यह है कि यह 35-45 किलोमीटर तक प्रभावी रेंज में गोलीबारी कर सकती है।

बातचीत का उद्देश्य

रक्षा मंत्रालय ने 307 ATAGS तोपों की खरीद के लिए भारत फोर्ज को प्राथमिकता दी है। बताया जा रहा है कि 60 फीसदी तोपों की आपूर्ति भारत फोर्ज और शेष 40 फीसदी टाटा समूह द्वारा की जाएगी, बशर्ते टाटा समूह, भारत फोर्ज द्वारा तय की गई कीमत पर सहमत हो।

विदेशी मांग और सफलता

ATAGS पहले ही अपनी गुणवत्ता का लोहा मनवा चुका है। 2022 में, आर्मेनिया ने ATAGS का ऑर्डर दिया था, जिसकी सफलतापूर्वक तैनाती भी हो चुकी है। अब आर्मेनिया बड़े ऑर्डर के लिए भी चर्चा कर रहा है।

ATAGS की विकास यात्रा

ATAGS परियोजना 2012 में शुरू की गई थी। हालांकि इसे विकसित करने में ज्यादा समय नहीं लगा, लेकिन विभिन्न परीक्षण और प्रक्रियाएं इसे अंतिम मंजिल तक पहुंचाने में धीमा साबित हुईं। 2017 में 68वें गणतंत्र दिवस परेड में ATAGS की पहली बार सार्वजनिक तौर पर झलक दिखाई दी थी। 2022 में, इसने 76वें स्वतंत्रता दिवस पर 21-गन सल्यूट में भाग लेकर इतिहास रच दिया।

आर्मी की भविष्य की योजनाएं

भारतीय सेना भविष्य में अधिक हल्के और स्वचालित तोप प्रणाली की ओर देख रही है। लेकिन ATAGS जैसे स्वदेशी हथियारों के माध्यम से वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा किया जा रहा है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह अनुबंध न केवल भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए बल्कि स्थानीय उद्योगों और स्वदेशी तकनीकी विकास के लिए भी एक बड़ा कदम है। यह न केवल आयात पर निर्भरता को कम करेगा बल्कि भारत को एक आत्मनिर्भर रक्षा शक्ति बनाने की दिशा में भी मदद करेगा।

आगे की राह

ATAGS का अनुबंध इस वित्तीय वर्ष में पूरा होने की उम्मीद है। यह न केवल भारतीय सेना की ताकत बढ़ाएगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन की क्षमता को भी उजागर करेगा।

भारत फोर्ज और रक्षा मंत्रालय के बीच चल रही यह बातचीत आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और मील का पत्थर साबित हो सकती है। अब देखना यह है कि यह अनुबंध कब अंतिम रूप लेता है और ATAGS भारतीय सेना की ताकत में कैसे इजाफा करता है।

India-China Border Dispute: राजनाथ सिंह की चीनी रक्षा मंत्री से अहम मुलाकात आज, दुनिया की टिकीं नजरें

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India-China Border Dispute: एक महीने पहले भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनावपूर्ण क्षेत्रों में सैनिकों के हटने की सहमति बनी थी। इसके बाद, डेमचोक और डेपसांग मैदान जैसे संवेदनशील इलाकों में हालात में सुधार देखा गया है। दोनों देशों की सेनाओं ने इन क्षेत्रों में अस्थायी ढांचे हटा दिए हैं और अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल करने के लिए पेट्रोलिंग फिर से शुरू कर दी है।

India-China Border Dispute: Rajnath Singh to Hold Key Talks with Chinese Defence Minister

बातचीत से तनाव में कमी

गालवान घाटी में 2020 के संघर्ष के बाद से, सीमा पर तनाव कम करने के प्रयास जारी थे। इस दिशा में, दोनों देशों की सेनाओं ने हाल ही में एक नया कदम उठाया है। नवंबर की शुरुआत में पहली बार जॉइंट पेट्रोलिंग की गई, जिसमें भारतीय और चीनी सैनिकों ने एक ही क्षेत्र में अलग-अलग समय पर गश्त की। यह कदम सीमा पर स्थिरता बनाए रखने और संघर्ष टालने की दिशा में बड़ा बदलाव है।

यह भी पढ़ें: India-China Relations: सीमा विवाद के बाद पहली बार मिलेंगे राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष

स्थानीय कमांडरों के बीच नियमित संवाद स्थापित किया गया है, जो इस प्रक्रिया को सुचारू बनाने और किसी भी अप्रत्याशित स्थिति को रोकने में मदद कर रहा है। यह संवाद पिछले चार वर्षों के तनावपूर्ण माहौल से बिलकुल अलग है और दोनों देशों के संबंधों में सकारात्मक बदलाव का संकेत देता है।

राजनाथ सिंह और चीनी रक्षा मंत्री की अहम बैठक

वहीं, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष की आगामी मुलाकात पर सबकी निगाहें टिकी हैं। यह बैठक 20-22 नवंबर 2024 को लाओस की राजधानी वियनतियाने में आयोजित ASEAN रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM-Plus) के दौरान होगी। यह दोनों नेताओं की पहली बातचीत होगी, जब से सैनिकों के हटने का समझौता हुआ है।

यह बैठक इस बात का संकेत है कि दोनों देश तनाव कम करने और सीमा विवाद सुलझाने के लिए बातचीत को प्राथमिकता दे रहे हैं। सिंह इस मौके का इस्तेमाल क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा के लिए करेंगे। साथ ही, वह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के रक्षा मंत्रियों के साथ भी बातचीत करेंगे।

डिप्लोमैसी से बदलती तस्वीर

हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष के बीच भी बातचीत हुई थी। चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच BRICS शिखर सम्मेलन के दौरान बनी सहमतियों का पालन करने की प्रतिबद्धता जताई है।

चार साल तक चले सैन्य गतिरोध के बाद, हाल ही में गुए बदलावों से उम्मीद जगी है कि सीमा पर स्थिरता बहाल होगी और तनावव में कमी आएगी। सैनिकों की गश्त में पारदर्शिता और समन्वय से तनाव कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

ADMM-Plus की अहमियत

ADMM-Plus भारत और ASEAN देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण मंच है। 1992 से भारत ASEAN का डायलॉग पार्टनर है और 2010 से इस मंच में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इस बैठक के दौरान, भारत क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों पर अपनी भूमिका को मजबूत करेगा और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाए रखने के अपने प्रयासों को रेखांकित करेगा।

दुनिया की टिकीं नजरें

लाओस में होने वाली चर्चाओं पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं। सवाल यह है कि LAC पर हालिया प्रगति क्या लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को हल करने की दिशा में नया अध्याय लिख सकती है? राजनाथ सिंह और चीनी रक्षा मंत्री के बीच संवाद इस दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

सीमा पर सैनिकों की वापसी और समन्वित गश्त ने हालात में सुधार के संकेत दिए हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या इन प्रयासों से भारत और चीन के बीच स्थायी समाधान की राह खुलेगी।

Lieutenant General Sadhna S Nair: दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र पहुंची सेना चिकित्सा सेवा और आर्मी मेडिकल कॉर्प्स की वरिष्ठ कर्नल कमांडेंट, बढ़ाया जवानों का हौसला

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Lieutenant General Sadhna S Nair: सेना चिकित्सा सेवा (DGMS) और आर्मी मेडिकल कॉर्प्स (AMC) की वरिष्ठ कर्नल कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल साधना एस. नायर ने 18 नवंबर 2024 को सियाचिन बेस कैंप और अग्रिम क्षेत्रों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने देश के सबसे उंचे युद्धक्षेत्र में तैनात जवानों का हालचाल पूछा और वहां की चिकित्सा सुविधाओं का जायजा लिया।

Lieutenant General Sadhna S Nair: Senior Colonel Commandant of Army Medical Corps Boosts Morale at the World's Highest Battlefield

सैनिकों के साथ संवाद

लेफ्टिनेंट जनरल साधना एस. नायर ने सियाचिन बेस कैंप पर तैनात सैनिकों से मुलाकात की और उनकी कठिन परिस्थितियों में निःस्वार्थ सेवा के लिए उनकी सराहना की। उन्होंने कहा, “सियाचिन के दुर्गम और चुनौतीपूर्ण हालातों में आपकी सेवा देश के लिए गर्व की बात है।”

चिकित्सा सुविधाओं का निरीक्षण

अपने दौरे के दौरान, उन्होंने सियाचिन बेस कैंप और पार्टापुर में स्थापित नए मिलिट्री हॉस्पिटल (MH) की चिकित्सा सेवाओं और लॉजिस्टिक्स का निरीक्षण किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि सैनिकों को अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं और देखभाल मिले। इसके साथ ही उन्होंने आर्मी मेडिकल कॉर्प्स, आर्मी डेंटल कॉर्प्स (ADC) और मिलिट्री नर्सिंग स्टाफ की सराहना की, जो कठिन परिस्थितियों में सैनिकों के स्वास्थ्य और मनोबल को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

शहीदों को श्रद्धांजलि

सियाचिन युद्ध स्मारक पर पहुंचकर लेफ्टिनेंट जनरल साधना एस. नायर ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने वहां पुष्पचक्र अर्पित करते हुए कहा कि इन वीर सैनिकों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके इस बलिदान ने  न केवल सेना बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया है।

Lieutenant General Sadhna S Nair: Senior Colonel Commandant of Army Medical Corps Boosts Morale at the World's Highest Battlefield

चुनौतियों का सामना करने का जज़्बा

सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात सैनिकों का जीवन बेहद कठिन है। -50 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे तापमान और ऑक्सीजन की कमी के बावजूद, ये सैनिक देश की सीमाओं की सुरक्षा में डटे रहते हैं। इस चुनौतीपूर्ण माहौल में चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेफ्टिनेंट जनरल नायर ने इन सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयासों को और तेज करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

आर्मी मेडिकल कॉर्प्स की भूमिका

लेफ्टिनेंट जनरल नायर ने आर्मी मेडिकल कॉर्प्स के जवानों की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी सेवाएं सैनिकों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और उनकी मानसिक मजबूती बढ़ाने में अहम हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सा सेवाओं में नवाचार और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए वरदान साबित हो रहा है।

महिलाओं की अग्रणी भूमिका

लेफ्टिनेंट जनरल साधना एस. नायर का यह दौरा इस बात का प्रमाण है कि भारतीय सेना में महिलाएं आज हर चुनौती को स्वीकार कर रही हैं और नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं। उनके इस दौरे ने न केवल सैनिकों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि यह भी दिखाया कि सेना में महिला अधिकारियों का योगदान कितना महत्वपूर्ण है।

समर्पण और प्रेरणा का प्रतीक

सियाचिन का दौरा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि सैनिकों के समर्पण और बलिदान को मान्यता देने का एक कदम था। लेफ्टिनेंट जनरल नायर का यह दौरा उन सभी के लिए प्रेरणा है जो किसी भी रूप में देश की सेवा कर रहे हैं। सियाचिन के दुर्गम क्षेत्रों में सैनिकों की सेवा और आर्मी मेडिकल कॉर्प्स की भूमिका देश के लिए एक गौरवशाली अध्याय है। लेफ्टिनेंट जनरल साधना एस. नायर का दौरा इन साहसी सैनिकों के प्रति देश की कृतज्ञता और सम्मान को दर्शाता है। उनके इस दौरे ने यह स्पष्ट कर दिया कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, भारतीय सेना का हर सदस्य देश की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित है।

IAF Commanders Conference: पूर्वी लद्दाख में डिसइंगेजमेंट के बावजूद LAC पर तैनाती बनाए रखेगी भारतीय वायुसेना, सीमा सुरक्षा पर फोकस

IAF Commanders Conference: भारतीय वायुसेना (IAF) ने पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग में भारत-चीन सैनिकों के बीच तनाव खत्म होने के बावजूद, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपनी तैनाती जारी रखने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार, वायुसेना वर्तमान सुरक्षा स्थिति को देखते हुए सीमा पर अपनी सक्रियता बनाए रखेगी।

IAF Commanders Conference: Despite Disengagement in Eastern Ladakh, Indian Air Force to Maintain Deployment Along LAC, Focus on Border Security

शुरू हुई कमांडर्स कॉन्फ्रेंस

रविवार, 18 नवंबर को नई दिल्ली स्थित एयर हेडक्वार्टर में भारतीय वायुसेना की द्विवार्षिक कमांडर्स कॉन्फ्रेंस शुरू हुई। यह कॉन्फ्रेंस बुधवार, 20 नवंबर तक चलेगी। यह सम्मेलन खासकर उत्तरी सीमा पर मौजूदा सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए वायुसेना की ऑपरेशनल तैयारियों और क्षमताओं की समीक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, ।

मौजूदा तैनाती और सुरक्षा पर चर्चा

सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में न केवल वायुसेना की वर्तमान तैनाती की समीक्षा की जाएगी, बल्कि सर्दियों के दौरान सुरक्षा बनाए रखने के लिए रणनीतियों पर भी चर्चा होगी। कठिन मौसम और बढ़ती चुनौतियों के बीच ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के तरीकों पर भी जोर दिया जाएगा।

वायुसेना की ओर से सीमा पर तैनाती बनाए रखने का फैसला यह बताता है कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर सतर्क है। भारत-चीन के बीच हाल ही में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया पूरी हुई थी, लेकिन वायुसेना ने साफ किया है कि मौजूदा तैनाती में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा।

सैन्य आधुनिकीकरण और समन्वय पर फोकस

इस सम्मेलन में वायुसेना के आधुनिकीकरण योजनाओं पर भी चर्चा होगी। क्षेत्रीय खतरों और बदलती परिस्थितियों के बीच, वायुसेना अपनी क्षमताओं को और मजबूत करने पर विचार कर रही है।

इसके साथ ही, कॉन्फ्रेंस में तीनों सेनाओं – थलसेना, वायुसेना और नौसेना – के बीच बेहतर समन्वय और साझा ऑपरेशन्स को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाएगा। आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से सेनाओं की कार्यक्षमता को और प्रभावी बनाने की योजनाएं बनाई जाएंगी।

भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयारियां

कॉन्फ्रेंस के दौरान वरिष्ठ कमांडर भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों और वायुसेना की भूमिका पर विचार-विमर्श करेंगे। सर्दियों के मौसम में उत्तरी सीमाओं पर होने वाले खतरों से निपटने के लिए ऑपरेशनल रणनीतियां तैयार की जाएंगी।

सूत्रों के अनुसार, वायुसेना अपनी तैयारियों को न केवल सीमा सुरक्षा बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए भी निरंतर मजबूत कर रही है।

भारत-चीन सीमा पर तनाव और वायुसेना की भूमिका

पिछले कुछ वर्षों से भारत-चीन सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति रही है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। वायुसेना का यह फैसला न केवल सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए सेना पूरी तरह तैयार है।

सुरक्षा और स्थिरता के प्रति वचनबद्धता

भारतीय वायुसेना का यह कदम दिखाता है कि देश की सीमा सुरक्षा सर्वोपरि है। सीमा पर तैनाती बनाए रखने और भविष्य की चुनौतियों के लिए रणनीतियां तैयार करने से यह साफ है कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपने राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए तत्पर है। वहीं, वायुसेना न केवल वर्तमान तैनाती को जारी रखेगी, बल्कि भविष्य में और भी आधुनिक व प्रभावी योजनाओं के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा में अपनी भूमिका को मजबूत करेगी।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: 1962 के भारत-चीन युद्ध के नायक जसवंत सिंह रावत, जिन्होंने 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया

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1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सेना के वीर सैनिक जसवंत सिंह रावत का नाम आज भी साहस और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। कठिन हालात में अपने प्राणों की आहुति देकर उन्होंने अकेले ही 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों का सामना किया और भारत की सैन्य परंपरा में अमर हो गए।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: The Braveheart Who Took Down Over 300 Chinese Soldiers

जन्म और सेना में शामिल होने की कहानी

जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बऱ्युन गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम गुमान सिंह रावत था। जसवंत सिंह ने 19 साल की उम्र में 19 अगस्त 1960 को भारतीय सेना में भर्ती होकर 4 गढ़वाल राइफल्स में अपनी सेवा शुरू की। यह रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे बहादुर और सम्मानित रेजिमेंट्स में से एक है।

नुरानांग की लड़ाई

17 नवंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश (तब नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) के तवांग सेक्टर के नुरानांग क्षेत्र में चीनी सेना ने भारतीय सेना की पोस्ट पर हमला किया। जसवंत सिंह और उनके साथी सैनिकों ने चीनी सेना को रोकने के लिए अदम्य साहस का परिचय दिया। जब उनके साथी घायल हो गए या शहीद हो गए, तब जसवंत सिंह ने अकेले मोर्चा संभाला।

उनके पास केवल एक मशीन गन थी, लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ और रणनीति से दुश्मन को 72 घंटे तक आगे बढ़ने नहीं दिया। चीनी सेना को लगा कि भारतीय सैनिकों की संख्या अधिक है, जबकि जसवंत सिंह अकेले लड़ रहे थे।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: The Braveheart Who Took Down Over 300 Chinese Soldiers

स्थानीय लड़कियों ने की मदद

इस लड़ाई में स्थानीय मोनपा समुदाय की दो लड़कियां, सेला और नूरा, ने जसवंत सिंह की मदद की। वे उनके लिए खाना और गोलियां लाती थीं। सेला ग्रेनेड विस्फोट में शहीद हो गईं और नूरा को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया।

अंतिम बलिदान

जब चीनी सैनिकों को यह पता चला कि बंकर में केवल जसवंत सिंह ही लड़ रहे हैं, उन्होंने बड़े पैमाने पर हमला किया। लेकिन जसवंत सिंह ने आखिरी समय तक लड़ाई जारी रखी। अंत में, उन्होंने अपनी आखिरी गोली से खुद को मार लिया ताकि दुश्मन के हाथों में न गिरें।

चीनी सैनिक उनकी वीरता से इतने प्रभावित हुए कि युद्धविराम के बाद उनका सिर और एक कांस्य की प्रतिमा भारत को लौटा दी।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: The Braveheart Who Took Down Over 300 Chinese Soldiers

सम्मान और स्मारक

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र, भारत का दूसरा सबसे बड़ा युद्धकालीन वीरता पुरस्कार, प्रदान किया गया। उनकी स्मृति में तवांग के पास जसवंतगढ़ नामक एक स्मारक बनाया गया है। यह स्मारक भारतीय सेना के साहस और बलिदान का प्रतीक है।

जसवंतगढ़ में अमर कहानी

जसवंतगढ़ स्मारक पर उनकी वर्दी और बिस्तर हर दिन तैयार किया जाता है। वहां के जवान मानते हैं कि जसवंत सिंह की आत्मा आज भी उस क्षेत्र की रक्षा कर रही है। यह स्थान देशभक्ति का प्रतीक बन चुका है और हर साल हजारों लोग यहां श्रद्धांजलि देने आते हैं।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: The Braveheart Who Took Down Over 300 Chinese Soldiers

एक प्रेरणादायक विरासत

जसवंत सिंह रावत की कहानी केवल एक वीरता की गाथा नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य के प्रति समर्पण और देशभक्ति से बड़ा कोई आदर्श नहीं है। उनकी वीरता और बलिदान आज भी भारतीय सेना के जवानों को प्रेरित करता है।

1962 के भारत-चीन युद्ध में उनकी भूमिका न केवल भारतीय इतिहास में अमर हो गई है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस और प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

Jammu-Kashmir: भारतीय सेना की कोचिंग से वॉलीबॉल खेल में लड़कियों ने गाड़े झंडे, राष्ट्रीय टूर्नामेंट में राज्य का करेंगी प्रतिनिधित्व

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Jammu-Kashmir: Indian Army Coaching Empowers Girls in Volleyball, to Represent the State in National Tournament.

जम्मू और कश्मीर के दक्षिणी पीर पंजाल क्षेत्र की लड़कियों ने हाल ही में एक बड़ी सफलता हासिल की है। इन लड़कियों ने भारतीय सेना के प्रशिक्षण की बदौलत वॉलीबॉल खेल में जबरदस्त मुकाम हासिल किया है। लड़कियों की वॉलीबॉल टीम ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए राज्य स्तर तक अपनी जगह बनाई है। इस सफलता के पीछे भारतीय सेना का मार्गदर्शन और समर्पण है, जिसने इन लड़कियों की क्षमता को पहचान कर उन्हें सही दिशा दी।

Jammu-Kashmir: Indian Army Coaching Empowers Girls in Volleyball, to Represent the State in National Tournament.

भारतीय सेना ने इस क्षेत्र की लड़कियों के लिए एक विशेष वॉलीबॉल कोचिंग कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत, 30 लड़कियों का चयन किया गया और उन्हें वॉलीबॉल के बुनियादी कौशल, फिटनेस और खेल की रणनीतियों की शिक्षा दी गई। इन लड़कियों को प्रशिक्षित करने के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य के खेल अधिकारियों और अनुभवी कोचों की मदद ली गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना, उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना और उन्हें नेतृत्व की ओर प्रेरित करना था।

प्रशिक्षण की शुरुआत और सफलता की कहानी

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत 29 अगस्त 2024 को हुई थी। इस दौरान 30 लड़कियों को वॉलीबॉल खेल की बारीकियों को समझने और सीखने का मौका मिला। पहले चरण में, 19 लड़कियों को जिला स्तर पर वॉलीबॉल प्रतियोगिता के लिए चुना गया। इसके बाद, 15 लड़कियों ने जम्मू डिवीजन की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और आठ लड़कियां राज्य स्तर की टीम के लिए चयनित हुईं।

Jammu-Kashmir: Indian Army Coaching Empowers Girls in Volleyball, to Represent the State in National Tournament.

इन आठ लड़कियों में से सात ने राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल टूर्नामेंट में जम्मू और कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त किया। इनमें से तीन लड़कियां U-19 श्रेणी, एक U-17 श्रेणी और तीन लड़कियां U-14 श्रेणी में राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनेंगी। यह सफलता इन लड़कियों के खेल कौशल, समर्पण और मेहनत का प्रमाण है।

महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण कदम

भारतीय सेना का यह वॉलीबॉल कोचिंग कार्यक्रम विशेष रूप से इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए एक बड़ा कदम है। इसने न केवल लड़कियों को खेल के मैदान पर अपने कौशल को दिखाने का मौका दिया, बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में भी मदद की। इसके साथ ही, यह कार्यक्रम पीर पंजाल क्षेत्र में समाज की सोच को बदलने में भी मददगार साबित हुआ है। लड़कियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है और अब वे खेल के माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर रही हैं।

Jammu-Kashmir: Indian Army Coaching Empowers Girls in Volleyball, to Represent the State in National Tournament.

यह पहल महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। पहले, इस क्षेत्र की लड़कियों के लिए समाज में कई सीमाएं थीं, लेकिन अब वे अपनी मेहनत से ना केवल खेल की दुनिया में पहचान बना रही हैं, बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। भारतीय सेना का यह कार्यक्रम उन्हें जीवनभर के लिए महत्वपूर्ण स्किल प्रदान कर रहा है, जो उनकी व्यक्तिगत और प्रोफेशनल जिंदगी में मददगार साबित होगा।

समाज में सकारात्मक बदलाव और प्रेरणा

भारतीय सेना का यह कदम दिखाता है कि कैसे एक ठोस और लक्ष्य-निर्देशित पहल समाज में बदलाव ला सकती है। खेल के माध्यम से इन लड़कियों को सशक्त किया गया है, जो भविष्य में समाज में नेतृत्व की भूमिका निभा सकती हैं। यह कार्यक्रम यह भी दर्शाता है कि खेल केवल शारीरिक विकास के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव और मानसिक विकास के लिए भी अहम है। लड़कियों को आत्मविश्वास और नेतृत्व के गुण सिखाने से उनका समग्र विकास हुआ है।

Jammu-Kashmir: Indian Army Coaching Empowers Girls in Volleyball, to Represent the State in National Tournament.

भारतीय सेना का वॉलीबॉल कोचिंग प्रोग्राम पीर पंजाल क्षेत्र की लड़कियों के लिए एक बड़ा मौका साबित हुआ है। इन लड़कियों ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से न केवल खेल की दुनिया में अपनी जगह बनाई है, बल्कि वे समाज में एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। यह पहल न केवल महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है, बल्कि यह दिखाती है कि खेल के माध्यम से हम सामाजिक बदलाव ला सकते हैं। इन लड़कियों की सफलता उन सभी को प्रेरित करेगी जो समाज में अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं।

Indian Navy: अब दुश्मन की आंखों से ‘ओझल’ रहेंगे भारतीय नौसेना के जहाज, भारत और जापान मिल कर बनाएंगे ये खास एंटीना, हुआ ऐतिहासिक समझौता

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Indian Navy: India-Japan Sign Historic Memorandum for Co-Development of UNICORN Mast for Indian Navy’s Advanced Stealth Capabilities.

भारतीय नौसेना के लिए यूनिकॉर्न मस्त (स्तंभ) के सह-विकास के लिए भारत और जापान सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, भारत और जापान मिलकर भारतीय नौसेना के जहाजों पर यूनिकॉर्न मस्त (स्तंभ) बनाएंगे, जिससे नौसेना की स्टील्थ क्षमता में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी।

Indian Navy: India-Japan Sign Historic Memorandum for Co-Development of UNICORN Mast for Indian Navy's Advanced Stealth Capabilities

इस समझौते की घोषणा भारतीय दूतावास, टोक्यो में 15 नवंबर 2024 को की गई। इस मौके पर भारत के जापान में दूत सिबी जॉर्ज और जापान के रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्यरत अधिग्रहण प्रौद्योगिकी और लॉजिस्टिक्स एजेंसी (ATLA) के आयुक्त इशिकावा ताकेशी ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।

यूनिकॉर्न मस्त: क्या है यह प्रणाली?

यूनिकॉर्न मस्त एक विशेष प्रकार का एंटीना है, जिसमें इंटीग्रेटेड कंम्यूनिकेशन सिस्टम हैं। यह मस्त भारतीय नौसेना के जहाजों पर लगाया जाएगा, जिससे उनकी स्टील्थ (गोपनीयता) क्षमताओं में सुधार होगा। इसका मुख्य उद्देश्य नौसेना के प्लेटफार्मों को अधिक अदृश्य और सुरक्षित बनाना है, ताकि दुश्मन से बचाव बेहतर हो सके। इस तकनीक से भारतीय नौसेना को समुद्र में अपनी रणनीतिक ताकत और प्रभावी तरीके से संचालन करने में मदद मिलेगी।

Indian Navy: India-Japan Sign Historic Memorandum for Co-Development of UNICORN Mast for Indian Navy's Advanced Stealth Capabilities

भारत और जापान का ऐतिहासिक सहयोग

यह परियोजना भारत और जापान के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग का एक नया अध्याय है। यह पहली बार होगा जब दोनों देशों के बीच सह-विकास और सह-निर्माण के तहत कोई रक्षा उपकरण तैयार किया जाएगा। भारत और जापान का यह सहयोग दोनों देशों के रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा और साथ ही नई तकनीक को अपनाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और जापान का सहयोग

इस परियोजना को भारतीय कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और जापान के विशेषज्ञों के सहयोग से डेवलप किया जाएगा। BEL भारत में रक्षा उपकरणों का निर्माण करने वाली प्रमुख कंपनी है, और यह तकनीकी सहयोग भारतीय नौसेना के लिए आधुनिक और प्रभावी प्रणालियां तैयार करने में मदद करेगा। जापान की अत्याधुनिक तकनीक के साथ मिलकर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

Indian Navy: India-Japan Sign Historic Memorandum for Co-Development of UNICORN Mast for Indian Navy's Advanced Stealth Capabilities

दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों का महत्व

इस सह-विकास परियोजना के साथ ही भारत और जापान के बीच रक्षा सहयोग की एक नई मिसाल स्थापित हो रही है। यह समझौता दोनों देशों के रक्षा क्षेत्र में एक नई साझेदारी की ओर इशारा करता है, जिसमें तकनीकी विशेषज्ञता, साझा अनुभव और रणनीतिक विचारों का आदान-प्रदान होगा। इसके अलावा, यह समझौता भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी मजबूत करेगा, क्योंकि अब देश में ही अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों का विकास होगा।

नौसेना को लंबे वक्त तक मिलेगा फायदा

यह परियोजना भारतीय नौसेना के लिए दीर्घकालिक फायदे लेकर आएगी। यूनिकॉर्न मस्त के जरिए नौसेना के जहाजों की रक्षा क्षमता में सुधार होगा और वे दुश्मन के रडार से बचने में सक्षम होंगे। इसके साथ ही, भारत अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए और अधिक सक्षम होगा।

यह समझौता न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि भारतीय रक्षा उद्योग के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे देश में नए अवसर पैदा होंगे और रक्षा तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।

भारत और जापान के बीच रक्षा सहयोग को एक नई दिशा देने वाला यह समझौता भारतीय नौसेना के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा। इससे दोनों देशों के बीच सैन्य रिश्ते और भी मजबूत होंगे और भारत को अपनी रक्षा क्षमताओं को और बढ़ाने का अवसर मिलेगा।

High Altitude Adventure: आदि कैलाश, ओम पर्वत और लिपुलेख दर्रे तक साइकिल से पहुंचे भारतीय वायुसेना के जवान, वाइब्रेंट विलेज प्रोजेक्ट दी मजबूती

High Altitude Adventure: भारतीय वायुसेना (IAF) ने हाल ही में एक ऐतिहासिक साहसिक यात्रा पूरी की है। इस एडवेंचर ट्रिप के तहत साइकिलिस्ट आदिकैलाश, ओम पर्वत और लिपुलेख दर्रे की ऊंचाइयों तक को साइकिलों से पहुंचे। इस साहसिक यात्रा का नेतृत्व ग्रुप कैप्टन भावना मेहरा ने किया। इस साइकिल यात्रा को IAF स्टेशन आगरा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोजेक्ट’ के तहत आयोजित किया गया था। यह यात्रा उत्तराखंड के आठ जिलों को पार करते हुए लिपुलेख दर्रे तक पहुंची।

High Altitude Adventure: IAF Cyclists Reach Adi Kailash, Om Parvat, and Lipulekh Pass, Strengthening the Vibrant Village Project

साहसिक यात्रा का उद्देश्य

इस ऐतिहासिक अभियान का उद्देश्य भारतीय वायुसेना के जवानों की अद्वितीय शारीरिक और मानसिक ताकत को दिखाना था। यह यात्रा न केवल शारीरिक साहस का प्रतीक थी, बल्कि इससे देशवासियों को भी यह प्रेरणा मिलती है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिक कैसे हर चुनौती को पार करते हैं। यह यात्रा प्रधानमंत्री के ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोजेक्ट’ के तहत भी अहम है, जिसका उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में जीवनस्तर को सुधारना और इन क्षेत्रों की सुरक्षा को बढ़ावा देना है।

High Altitude Adventure: IAF Cyclists Reach Adi Kailash, Om Parvat, and Lipulekh Pass, Strengthening the Vibrant Village Project

यात्रा की खासियतें

इस यात्रा की शुरुआत 11 नवंबर को हुई थी। जिसमें भारतीय वायुसेना के दस साइकिलिस्टों ने आदिकैलाश (16,000 फीट), ओम पर्वत (15,500 फीट) और लिपुलेख दर्रे (16,750 फीट) की यात्रा शुरू की। यह तीनों स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उच्चतम पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित होने के कारण शारीरिक दृष्टि से भी बहुत चुनौतीपूर्ण हैं। इन स्थलों तक पहुंचने के लिए इन साइकिलिस्टों को न केवल कड़ी चुनौतियों को पार किया, बल्कि शारीरिक और मानसिक तौर पर भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

इस यात्रा का नेतृत्व करने वाली ग्रुप कैप्टन भावना मेहरा का कहना है कि यह अभियान उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन उनकी टीम ने अपने दृढ़ निश्चय और सामूहिक प्रयासों से इसे सफलतापूर्वक पूरा किया। उन्होंने यह भी बताया कि इस यात्रा का उद्देश्य न केवल भारतीय वायुसेना के जवानों की शारीरिक क्षमताओं को दिखाना था, बल्कि यह देश की सुरक्षा और वेलफेयर से संबंधित कई अहम पहलुओं पर भी प्रकाश डालने का प्रयास था।

High Altitude Adventure: IAF Cyclists Reach Adi Kailash, Om Parvat, and Lipulekh Pass, Strengthening the Vibrant Village Project

भारतीय वायुसेना का साहस और दृढ़ संकल्प

इस अभियान में शामिल सभी साइकिलिस्टों ने कठिन रास्तों और ऊंचाईयों पर साइकिल चलाकर यह साबित किया कि भारतीय वायुसेना के जवान किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। यह अभियान वायुसेना के जवानों के साहस, टीमवर्क और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है। टीम ने न केवल शारीरिक रूप से कठिन रूट को पार किया, बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत बड़ा दबाव झेला। इस अभियान में हर सदस्य ने अपनी सीमाओं को पार करते हुए यह सिद्ध कर दिया कि वायुसेना के जवान मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी अपने मिशन को पूरा करने में सक्षम होते हैं।

14 नवंबर को इस यात्रा का समापन लिपुलेख दर्रे पर हुआ, जो 16,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह सफलता भारतीय वायुसेना के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और इसने सभी भारतीयों को यह संदेश दिया है कि जब हम एकजुट होते हैं, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। इस साहसिक यात्रा ने वायुसेना के जवानों के मनोबल को मजबूत किया है, और देशवासियों को भी यह एहसास कराया है कि हमारे सैनिकों का साहस और उनके प्रति हमारी सराहना कभी कम नहीं होनी चाहिए।

वहीं, इस अभियान के आयोजक, भारतीय वायुसेना स्टेशन आगरा ने इस यात्रा को शानदार रूप से आयोजित किया, जिससे यह पूरे मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सका। यह घटना न केवल भारतीय वायुसेना के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज होगी, बल्कि यह भविष्य में और भी ऐसे साहसिक अभियानों को प्रेरित करेगी, जो भारतीय सैनिकों के अद्वितीय साहस और समर्पण को दर्शाएंगे।

Indian Army: सेना के दृष्टिहीन अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल सी द्वारकेश ने 10 मीटर एयर राइफल वीआईपी श्रेणी में जीता गोल्ड मेडल, बनाया राष्ट्रीय रिकॉर्ड

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Indian Army: Vision-Impaired Officer Lt Col C Dwarakesh Wins Gold Medal in 10m Air Rifle VIP Category, Sets National Record.

पुणे के बालेवाड़ी स्टेडियम में आयोजित 5वीं पैरा नेशनल शूटिंग प्रतियोगिता में भारतीय सेना के इंटेलिजेंस कोर के लेफ्टिनेंट कर्नल सी द्वारकेश ने 14 नवंबर 2024 को स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया। उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल वीआईपी श्रेणी में पहला स्थान हासिल करते हुए नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। अपने इस उत्कृष्ट प्रदर्शन में उन्होंने 610 अंक हासिल कर वहां बैठे सभी दर्शकों को प्रभावित कर दिया।

Indian Army: Vision-Impaired Officer Lt Col C Dwarakesh Wins Gold Medal in 10m Air Rifle VIP Category, Sets National Record

लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश, दिव्यांग हैं और दृष्टिहीन हैं। वे इस समय आर्मी मार्क्समैनशिप यूनिट, महू में तैनात हैं। उनकी यह उपलब्धि न केवल खेलों में उनकी उत्कृष्टता को दर्शाती है, बल्कि यह साबित करती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

साहस और उत्कृष्टता की मिसाल

लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश ने प्रतियोगिता में अपने पहले स्थान को लगातार दूसरी बार बरकरार रखते हुए यह साबित किया कि वे असाधारण प्रतिभा के धनी हैं। उनकी उपलब्धि न केवल भारतीय सेना के लिए गर्व का विषय है, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है जो जीवन में किसी भी चुनौती का सामना कर रहे हैं।

भारतीय सेना और खेलों में योगदान

द्वारकेश भारतीय सेना के उन सैनिकों में से एक हैं, जिन्होंने खेल के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी है। उनकी उपलब्धियां न केवल सेना की प्रतिष्ठा को बढ़ाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि सेना अपने जवानों को हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ बनने का अवसर देती है।

संदेश और प्रेरणा

लेफ्टिनेंट कर्नल सी द्वारकेश की इस उपलब्धि पर सेना और देशवासियों ने उन्हें बधाई दी है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि शारीरिक चुनौतियां किसी की क्षमता को परिभाषित नहीं कर सकतीं। उनकी मेहनत और लगन हर युवा के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

Indian Army: Vision-Impaired Officer Lt Col C Dwarakesh Wins Gold Medal in 10m Air Rifle VIP Category, Sets National Record

लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश ने अपने शब्दों में कहा, “यह पदक मेरे लिए सिर्फ एक पुरस्कार नहीं, बल्कि मेरी कड़ी मेहनत और सेना के समर्थन का परिणाम है। मैं इसे अपने देश और उन सभी के लिए समर्पित करता हूं जो चुनौतियों के बावजूद सपने देखते हैं।”

देश के लिए गर्व का क्षण

उनकी यह उपलब्धि भारत में खेल और विशेष रूप से पैरा-खेलों को और भी मजबूती प्रदान करेगी। लेफ्टिनेंट कर्नल सी द्वारकेश का यह सफर यह साबित करता है कि अगर हौसला और संकल्प हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

भारतीय सेना और खेल प्रेमी उनके इस गौरवशाली प्रदर्शन पर गर्व महसूस कर रहे हैं। यह क्षण पूरे देश के लिए गर्व का है और हमें उम्मीद है कि उनके जैसे योद्धा भविष्य में भी देश का नाम रोशन करते रहेंगे।

लेफ्टिनेंट कर्नल सी द्वारकेश के बारे में

लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश, भारतीय सेना के एकमात्र नेत्रहीन एक्टिव-ड्यूटी अफसर, ने हाल ही में 23वीं नेशनल पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीता था। उनका कहना है, “हौसला हर चुनौती पर जीत पा सकता है।”

यह प्रतियोगिता 29 से 31 मार्च 2024 के बीच मध्य प्रदेश के ग्वालियर में आयोजित की गई थी। लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश ने 50 मीटर स्विमिंग (51 सेकंड) में गोल्ड और 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक (1 मिनट 50 सेकंड) में सिल्वर मेडल हासिल किया था। वह बताते हैं, “आंखें खोने के बाद खेलों ने मुझे नई रोशनी दी है। कई महीनों की मेहनत के बाद यह सफलता मिली है।”

द्वारकेश की आंखों की रोशनी 2016 में एक सड़क दुर्घटना के बाद चली गई थी। उस हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। लेफ्टिनेंट कर्नल द्वारकेश ने 2021 में सियाचीन ग्लेशियर की चढ़ाई भी पूरी की और उसके बाद खेलों में अपना करियर बनाने का फैसला किया। नवंबर 2023 में, द्वारकेश ने शूटिंग में भी नेशनल मेडल जीते और अब वह लगातार शूटिंग की प्रैक्टिस करते हैं।

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