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Indian Army Internship Program: भारतीय सेना ने लॉन्च किया इंटर्नशिप प्रोग्राम, नई उभरती टेक्नोलॉजी में युवाओं को देगी ट्रेनिंग

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Indian Army Internship Program: भारतीय सेना ने अपने मॉर्डेनाइजेशन के प्रयासों को जारी रखते हुए युवाओं के लिए खास इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू किया है, जो तकनीकी रूप से दक्ष युवाओं को सेना के साथ उभरती हुई तकनीकों के क्षेत्र में काम करने का अवसर प्रदान करेगा। इस पहल का उद्देश्य युवाओं को नई तकनीकों, जैसे साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), और सूचना युद्ध के क्षेत्र में ट्रेनिंग देना है। यह कदम सेना को भविष्य की युद्ध रणनीतियों के लिए तैयार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

Indian Army Internship Program: Empowering Youth with Training in Emerging Technologies
Deputy Chief of Army Staff (DCOAS) Lt. Gen. Rakesh Kapoor

तकनीक को लेकर क्या सोचती है सेना

शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में भारतीय सेना के उप प्रमुख (सूचना प्रणाली और संचार) लेफ्टिनेंट जनरल राकेश कपूर ने बताया कि सेना अब केवल विशेषज्ञों की भर्ती तक सीमित नहीं है, बल्कि इंटर्नशिप कार्यक्रम के माध्यम से युवाओं को आधुनिक तकनीकों से परिचित कराने की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि 2024-25 को “Technology Absorption Year” घोषित किया गया है।

यह भी पढ़ें: Indian Army: फ्यूचर वॉरफेयर के लिए भारतीय सेना कर रही बड़ी तैयारी, पहली बार होगी डोमेन एक्सपर्ट्स की भर्ती, युवाओं के लिए खुलेंगे नए रास्ते

उन्होंने कहा, “यूक्रेन युद्ध ने यह साबित कर दिया है कि साइबर और डिजिटल युद्ध रणनीतियों का महत्व लगातार बढ़ रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए सेना ने ऐसे विशेषज्ञों को जोड़ने का निर्णय लिया है, जो इन टेक्नोलॉजी में एक्सपर्ट हों।”

भर्ती प्रक्रिया और नई जरूरतें

इस कार्यक्रम के तहत सेना न केवल नियमित बलों में, बल्कि टेरिटोरियल आर्मी (TA) में भी साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञों की भर्ती कर रही है। अधिकारियों के लिए पोस्टग्रेजुएट डिग्री और जूनियर कमीशंड अधिकारियों (JCO) के लिए ग्रेजुएट डिग्री आवश्यक है।

भर्ती प्रक्रिया के अलावा, सेना ने अपने इंटर्नशिप कार्यक्रम को प्रधानमंत्री इंटर्नशिप मिशन (PM Internship Scheme 2024) के तहत भी शामिल किया है। इस पहल का उद्देश्य युवाओं को सेना की तकनीकी आवश्यकताओं से जोड़ना और उन्हें रक्षा प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरित करना है।

इंटर्नशिप का महत्व

यह कार्यक्रम युवा पेशेवरों और छात्रों को सेना की साइबर सुरक्षा टीमों, AI रिसर्च यूनिट्स, और इनोवेशंस सेल्स के साथ काम करने का मौका देगा। इसके अलावा, इंटर्न को संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान और “सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज” जैसे क्षेत्रों में योगदान का अवसर मिलेगा।

इस पहल का उद्देश्य युवाओं को सेना की आधुनिक तकनीकी परियोजनाओं से जोड़ना और उन्हें रोबोटिक्स, 5G, और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक अनुभव प्रदान करना है।

अन्य देशों से प्रेरणा

पूरी दुनिया में कई देश इस तरह के प्रोग्राम चला रहे हैं। अमेरिका और इजराइल जैसे देश पहले ही साइबर सुरक्षा और डिजिटल युद्ध क्षेत्रों में विशेषज्ञों को जोड़ने के लिए प्रभावी कार्यक्रम चला रहे हैं। भारतीय सेना भी इन देशों से प्रेरणा लेते हुए नई प्रतिभाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही है।

भारतीय सेना का यह कदम युवाओं को आधुनिक तकनीकों में दक्ष बनाते हुए उन्हें सेना की भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करेगा। यह कार्यक्रम न केवल सेना को तकनीकी रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि युवाओं को राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देने का अवसर भी प्रदान करेगा।

भारतीय सेना का यह इंटर्नशिप कार्यक्रम न केवल युवाओं के लिए एक सीखने का मंच बनेगा, बल्कि उन्हें देश की सुरक्षा में योगदान देने का गौरव भी प्रदान करेगा।

SIG-716i Rifles: अब भारत में ही राइफलें और गोला-बारूद बनाएगी यह अमेरिकी कंपनी, मेक इन इंडिया को मिलेगा बढ़ावा

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SIG-716i Rifles: भारत में स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका की हथियार निर्माता कंपनी एसआईजी (SIG) ने भारतीय कंपनी नाइब डिफेंस के साथ एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत एसआईजी-716i राइफल और उससे संबंधित गोला-बारूद का निर्माण भारत में किया जाएगा। इस कदम से न केवल भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारतीय सेना की स्वदेशी हथियार निर्माण क्षमता भी मजबूत होगी।

SIG-716i Rifles: SIG Sauer to Manufacture Rifles and Ammunition in India, Partnership with Nibe Defence Boosts Make in India Initiative

एसआईजी-716i राइफल और भारतीय सेना की जरूरतें

भारतीय सेना वर्तमान में एसआईजी-716i राइफल का इस्तेमाल कर रही है, जिसकी संख्या 145,400 से अधिक है। 2019 में भारत सरकार ने SIG Sauer को 72,400 SIG-716 राइफलों का ऑर्डर दिया था, इसके बाद SIG Sauer को अतिरिक्त 73,000 राइफलों की आपूर्ति का आदेश भी दिया गया था। यह राइफल भारतीय सेना के विभिन्न सशस्त्र बलों में प्रमुख हथियार के तौर पर इस्तेमाल हो रही है।

इस समझौते के साथ, अब एसआईजी-716i राइफल और उससे संबंधित गोला-बारूद का निर्माण भारत में होगा। इससे न केवल आयात पर निर्भरता कम होगी, बल्कि भारतीय उद्योगों को भी एक बड़ी संजीवनी मिलेगी। इस पहल के साथ ही भारत का रक्षा क्षेत्र न केवल मजबूत होगा, बल्कि वह आत्मनिर्भरता की ओर भी तेजी से बढ़ेगा।

मेक इन इंडिया’ के तहत एक ऐतिहासिक साझेदारी

SIG Sauer के अध्यक्ष रॉन कोहेन ने इस समझौते का एलान करते हुए कहा, “SIG Sauer की अंतरराष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिए हम दुनियाभर में महत्वपूर्ण साझेदारियों को मजबूत कर रहे हैं। भारत में Nibe Defence के साथ हमारा यह नया गठबंधन आने वाले दशकों में भारत के रक्षा क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को पूरा करने में मदद करेगा।” इस सहयोग के तहत SIG Sauer को भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाने और भारतीय रक्षा उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए नई अवसरों का लाभ मिलेगा।

रॉन कोहेन ने इस साझेदारी के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “हम भारत में Nibe Defence के साथ इस साझेदारी को लेकर बेहद उत्साहित हैं। यह साझेदारी हमारे लिए भारत के रक्षा उद्योग में योगदान करने का एक शानदार अवसर है।”

Nibe Defence और SIG Sauer के बीच यह साझेदारी भारतीय सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए की गई है। इसी महीने नवंबर 2024 में पुणे में आयोजित एक औपचारिक समारोह में Nibe Defence और SIG Sauer के अधिकारियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।

वहीं, इस समझौते से भारतीय सेना को कई फायदे होंगे। सबसे पहले, स्वदेशी उत्पादन होने से आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे लागत में भी कमी आएगी। दूसरा, भारतीय जवानों को उच्च गुणवत्ता वाले और तेजी से उपलब्ध हथियार मिलेंगे, जो कि उनकी तैयारियों और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

SIG-716i Rifles: SIG Sauer to Manufacture Rifles and Ammunition in India, Partnership with Nibe Defence Boosts Make in India Initiative

बता दें कि Nibe Defence और Aerospace Limited एक प्रमुख डिफेंस इक्विपमेंट्स बनाने वाली कंपनी है, जिसका प्लांट चाकन, पुणे में स्थित है। यह कंपनी भारतीय सेना और अन्य रक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण इक्विपमेंट्स का निर्माण करती है। कंपनी का उद्देश्य ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत देश में रक्षा उपकरणों का निर्माण बढ़ाना और भारत को आत्मनिर्भर बनाना है।

वहीं, SIG SAUER, Inc. एक प्रसिद्ध अमेरिकी कंपनी है जो हथियार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स, गोला-बारूद, एयरगन्स, सप्रेसर्स, रिमोट-कंट्रोल्ड वेपन्स स्टेशनों और प्रशिक्षण उपकरणों का निर्माण करती है। 250 साल पुरानी यह कंपनी यू.एस. मिलिट्री, वैश्विक रक्षा समुदाय, पुलिस, प्रतिस्पर्धी शूटरों, शिकारियों और जिम्मेदार नागरिकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसके अलावा, SIG SAUER अपने SIG SAUER अकादमी में विशेष हथियारों का प्रशिक्षण और रणनीतिक प्रशिक्षण भी देती है।

SIG SAUER का मुख्यालय न्यूइंगटन, न्यू हैम्पशायर में है, और इसके पास अमेरिका में तीन राज्यों में सोलह स्थान और चार अन्य देशों में भी सुविधाएं हैं। इस कंपनी के पास 3,400 से अधिक कर्मचारी हैं। SIG SAUER को “ग्रेट प्लेस टू वर्क™” का प्रमाणपत्र भी मिला हुआ है।

India-Australia Pact: भारत और ऑस्ट्रेलिया की रॉयल एयर फोर्स के बीच हुआ अहम करार, दोनों देश एक-दूसरे के विमानों की करेंगे एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग

India-Australia Pact: ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करते हुए, दोनों देशों ने एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत ऑस्ट्रेलियाई रॉयल एयर फोर्स (RAAF) और भारतीय सशस्त्र बल अब एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग (वायु-से-वायु ईंधन भरने) का संचालन करेंगे। यह कदम दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।

India-Australia Pact: Royal Australian Air Force and Indian Air Force Sign Key Agreement for Air-to-Air Refueling of Each Other’s Aircraft

21 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया के रक्षा उद्योग और क्षमता वितरण मंत्री, माननीय पैट कोंरॉय MP और भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस समझौते की घोषणा की। इस समझौते के तहत, RAAF का एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग विमान, KC-30A मल्टी-रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट, भारतीय सशस्त्र बलों के विमानों को रिफ्यूलिंग करने में सक्षम होगा।

ऑस्ट्रेलियाई वायुसेना के डिप्टी चीफ एयर वाइस मार्शल हार्वी रेनॉल्ड्स ने 19 नवंबर को नई दिल्ली में हुए ऑस्ट्रेलिया-भारत एयर स्टाफ वार्ता के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। एयर वाइस मार्शल रेनॉल्ड्स ने इस समझौते का स्वागत करते हुए कहा कि यह ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा।

उन्होंने कहा, “भारत ऑस्ट्रेलिया के लिए एक शीर्ष सुरक्षा साझेदार है, और हमारी व्यापक रणनीतिक साझेदारी के तहत हम ऐसे व्यावहारिक और ठोस सहयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो सीधे तौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता में योगदान करता है।”

“एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग की क्षमता भारतीय सशस्त्र बलों के साथ हमारी इंटरऑपरेबिलिटी को बढ़ाती है और हमें विभिन्न परिदृश्यों में अधिक प्रभावी रूप से सहयोग करने का अवसर देती है।”

इस समझौते को महत्वपूर्ण कदम मानते हुए, उन्होंने कहा, “यह समझौता हमारे भारत के साथ रिश्ते को और आगे बढ़ाएगा और हमारे कर्मचारियों को करीबी सहयोग, ज्ञान और विशेषज्ञता साझा करने, विश्वास और समझ बनाने के महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगा।”

RAAF भारतीय नौसेना के P-8I नेप्च्यून निगरानी विमान के साथ भी प्रशिक्षण और सहयोग गतिविधियाँ आयोजित करता है। इस समझौते के तहत, KC-30A विमान P-8I को रिफ्यूल करेगा, जिससे भारत की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहुंच और स्थायित्व बढ़ेगा।

भारत और ऑस्ट्रेलिया का यह रक्षा सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग की क्षमता भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना के लिए नए अवसर खोलती है, जिससे वे लंबे समय तक और अधिक प्रभावी ढंग से अभियानों का संचालन कर सकते हैं।

इस समझौते के माध्यम से, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा। ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच इस प्रकार के समझौतों से न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती मिलती है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए एक साझी प्रतिबद्धता भी मजबूत होती है।

इस महत्वपूर्ण समझौते के साथ, भारत और ऑस्ट्रेलिया अब और अधिक समन्वय से काम करेंगे, और उनके सैन्य बल वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे।

Indian Army: फ्यूचर वॉरफेयर के लिए भारतीय सेना कर रही बड़ी तैयारी, पहली बार होगी डोमेन एक्सपर्ट्स की भर्ती, युवाओं के लिए खुलेंगे नए रास्ते

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Indian Army: भारतीय सेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और भविष्य के खतरों से निपटने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत, सेना पहली बार नियमित कैडर में डोमेन विशेषज्ञों की भर्ती करने जा रही है। अब सेना में भाषा विशेषज्ञ और साइबर योद्धाओं की भर्ती की जाएगी, जिसमें चीनी भाषा विशेषज्ञों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह पहल गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद बनीं परिस्थितियों को देखते हुए की जा रही है।

Indian Army: Preparing for Future Warfare, First-Time Recruitment of Domain Experts, New Opportunities for Youth
Deputy Chief of Army Staff (DCOAS) Lt. Gen. Rakesh Kapoor

चीनी भाषा विशेषज्ञों की आवश्यकता

चीनी भाषा के इंटरप्रिटर्स की भर्ती से भारत और चीन के बीच सीमा बैठक (बॉर्डर पर्सनल मीटिंग – BPM) के दौरान बेहतर कम्यूूनिकेशन स्थापित करने में मदद मिलेगी। इसका उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच संवाद को मजबूत करना और विवादों का शांति से हल निकालना है। यह पहल भारत-चीन सीमा पर आपसी विश्वास बढ़ाने और तनाव कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

साइबर सुरक्षा में विशेषज्ञों की अहमियत

तेजी से बदलते खतरों के दौर में, साइबर सुरक्षा सेना के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता बन चुकी है। भारतीय सेना ने साइबर खतरों का पता लगाने, उन्हें रोकने और उनका जवाब देने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती शुरू की है।

एक सिक्योरिटी एनालिस्ट ने बताया, “यह पहल सेना की डिजिटल रक्षा क्षमताओं को मजबूत करेगी और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।” सेना ने अत्याधुनिक तकनीकों और विशेषज्ञता को अपनाते हुए खुद को उभरते खतरों से आगे बनाए रखने का संकल्प लिया है।

रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध से सीखे सबक

रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-गाजा संघर्ष ने आधुनिक युद्ध में साइबर सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने दिखाया कि साइबर हमले किसी देश के महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को कितनी बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। हैकिंग और गलत जानकारी फैलाने जैसे साइबर युद्ध के तरीकों ने इस संघर्ष को और भी मुश्किल बना दिया। वहीं, इजरायल-गाजा के बीच रहे युद्ध में साइबर हमलों ने मिलिट्री ऑपरेशंस में व्यवधान डालने और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने की क्षमता को दर्शाया।

भारतीय सेना ने इन वैश्विक घटनाओं से सबक लेते हुए अपनी साइबर सुरक्षा को मजबूत करने और विशेषज्ञों को नियुक्त करने का निर्णय लिया है।

साइबर विशेषज्ञों की भर्ती: समय की मांग

सेना ने साइबर विशेषज्ञों को अपनी टेरिटोरियल आर्मी के माध्यम से भर्ती करने का अभियान शुरू किया है। सेना ने यह भी स्पष्ट किया है कि साइबर सुरक्षा अब केवल एक सहायक पहलू नहीं, बल्कि मॉर्डन डिफेंस स्ट्रैटेजी का अहम हिस्सा है।

सेना की यह पहल दिखाती है कि भारतीय सेना न केवल उभरते खतरों का सामना करने के लिए तैयार है, बल्कि संवाद और सहयोग के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। साइबर सुरक्षा में निवेश और विशेषज्ञों की भर्ती भारत की संप्रभुता की रक्षा करने और डिजिटल युग में राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इसके अलावा भारतीय सेना ने भविष्य के युद्धों और नई ऑपरेशनल चुनौतियों का सामना करने के लिए पहली बार नियमित कैडर में डोमेन विशेषज्ञों की भर्ती करने जा रही है। सेना ने दुुनिया में चल रहे दो संघर्षों और तकनीकी विकास पर नजर रखते हुए यह फैसला लिया है कि सूचना युद्ध, साइबर सुरक्षा, और भाषाई विशेषज्ञता जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञों की जरूरत है। इन डोमेन विशेषज्ञों का चयन अधिकारी और एनसीओ (नॉन-कमीशंड ऑफिसर्स) स्तर पर किया जाएगा।

डोमेन विशेषज्ञों में शामिल होंगे:

  • सूचना युद्ध विशेषज्ञ (Information Warfare Experts)
  • भाषाई विशेषज्ञ (Linguistic Experts)
  • साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ (Cybersecurity Experts)
  • आईटी विशेषज्ञ (IT Specialists)

भर्ती प्रक्रिया का प्रारूप

  1. योग्यता स्तर:
    • अधिकारियों के लिए पोस्टग्रेजुएट डिग्री की आवश्यकता होगी।
    • जवानों के लिए ग्रेजुएट स्तर की योग्यता अनिवार्य होगी।
  2. चयन प्रक्रिया:
    • उम्मीदवारों का चयन एसएसबी इंटरव्यू (Services Selection Board) के माध्यम से किया जाएगा।
  3. प्रारंभिक भर्ती:
    • पहले चरण में 17 नई एंट्रीज लाई जाएंगी, जिनमें से 5 स्थान रणनीतिक भाषाई विशेषज्ञों के लिए आरक्षित होंगे।

प्रारंभिक पायलट प्रोजेक्ट की सफलता

इस भर्ती प्रक्रिया का एक पायलट प्रोजेक्ट पहले ही सफलतापूर्वक पूरा किया जा चुका है। इसके अलावा, सेना पहले से ही टेरिटोरियल आर्मी (TA) के माध्यम से डोमेन विशेषज्ञों को शामिल कर रही है।

सेना ने पुष्टि की है कि टेरिटोरियल आर्मी के जरिए डोमेन विशेषज्ञों की भर्ती जारी रहेगी, जबकि नियमित कैडर में भर्ती के लिए अलग से विज्ञापन जारी किए जाएंगे।

तकनीकी और रणनीतिक उन्नति पर ध्यान

सेना के उप प्रमुख (DCOAS), लेफ्टिनेंट जनरल राकेश कपूर ने बताया कि भविष्य के युद्ध तकनीकी कौशल और डोमेन विशेषज्ञता पर निर्भर करेंगे। उन्होंने कहा, “सेना को न केवल लड़ाई के मैदान में बल्कि साइबर और सूचना युद्ध जैसे क्षेत्रों में भी विशेषज्ञता विकसित करनी होगी।”

भाषाई विशेषज्ञों की भूमिका

इस भर्ती में भाषाई विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वे न केवल विभिन्न भाषाओं के अनुवाद और व्याख्या में मदद करेंगे, बल्कि दुश्मन की रणनीतियों को समझने और संचार बाधाओं को तोड़ने में भी सहायक होंगे।

भर्ती के लिए जल्द विज्ञापन

भर्ती प्रक्रिया के लिए विज्ञापन जल्द ही जारी किए जाएंगे। यह पहल भारतीय सेना को एक आधुनिक और प्रौद्योगिकी-आधारित बल के रूप में मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

वहीं, सेना का यह कदम भारतीय सेना को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी और तकनीकी रूप से सक्षम बनाएगा। डोमेन विशेषज्ञों की भर्ती से सेना न केवल भविष्य के युद्धों के लिए तैयार होगी, बल्कि अपने ऑपरेशनल ढांचे को भी और मजबूत करेगी।

भर्ती प्रक्रिया की घोषणा के साथ, उम्मीद है कि योग्य और प्रेरित युवा इस अवसर का लाभ उठाकर देश की सेवा में योगदान देंगे। भारतीय सेना की यह पहल न केवल तकनीकी उन्नति को प्रोत्साहित करती है, बल्कि यह दिखाती है कि देश की सुरक्षा के लिए सेना हर मोर्चे पर तैयार है।

One Rank One Pension: OROP-3 में पेंशन विसंगतियों से नाराज हैं सेवानिवृत्त सैन्य कर्मी, 401 JCOs ने रक्षा मंत्रालय और नेवी चीफ को भेजा कानूनी नोटिस

One Rank One Pension: भारत के सशस्त्र बलों से सेवानिवृत्त कर्मी, विशेषकर भारतीय नौसेना के ऑनरेरी कमीशंड ऑफिसर यानी मानद कमीशन प्राप्त अधिकारी (AGHCOs), इन दिनों अपनी मूल पेंशन में हो रही विसंगतियों को लेकर चिंतित हैं। यह मामला वन रैंक, वन पेंशन (OROP-3) योजना के तहत पेंशन में विसंगतियों और असमानता से जुड़ा है। जिसके चलते ये अधिकारी कानूनी लड़ाई लड़ने की योजना बना रहे हैं। ऐसे लगभग 401 अधिकारियों ने रक्षा  मंत्रालय और नेवी चीफ को कानूनी नोटिस भेजा है।

One Rank One Pension: Discontent Among Retired Military Personnel Over OROP-3 Pension Discrepancies, 401 JCOs Send Legal Notice to Defence Ministry and Navy Chief

क्या है वजह?

इस मामले में कानूनी नोटिस भेजने वाले नौसेना में 34 वर्षों की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हुए लेफ्टिनेंट (रिटायर्ड) जोगी राम और उनके जैसे लगभग 400 अन्य अधिकारियों का कहना है कि OROP-3 के तहत उनकी पेंशन का निर्धारण समान रैंक और सेवा अवधि के अन्य बलों के अधिकारियों से कम किया गया है।

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OROP-3 के अनुसार, जोगी राम और अन्य AGHCOs को 46,300 रुपये प्रति माह की मूल पेंशन मिलनी चाहिए थी। लेकिन वास्तविकता में उन्हें केवल 41,352 रुपये प्रति माह की पेंशन ही मिल रही है। उनका कहना है कि इस अंतर से न केवल उन्हें वित्तीय नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि इसे संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन माना जा रहा है।

समान रैंक में असमानता

AGHCOs का कहना है कि उनकी सहयोगी सेवाओं, जैसे भारतीय वायुसेना के मानद फ्लाइंग ऑफिसर्स और फ्लाइट लेफ्टिनेंट्स, को समान सेवा अवधि के बावजूद पूरी पेंशन दी जा रही है। यह असमानता न केवल आर्थिक स्तर पर अन्यायपूर्ण है, बल्कि सशस्त्र बलों के भीतर समानता और सम्मान की भावना को भी ठेस पहुंचाती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील सुरेश कुमार पालटा ने इस मामले में AGHCOs की ओर से रक्षा मंत्रालय, भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग (DESW), और नौसेना प्रमुख को कानूनी नोटिस भेजा है।

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इस नोटिस में मांग की गई है कि 30 दिनों के भीतर पेंशन विसंगतियों को सुधारा जाए और AGHCOs को OROP-3 के तहत उनके हक का भुगतान किया जाए। याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य होंगे।

संविधान का उल्लंघन

नोटिस में यह भी आरोप लगाया गया है कि यह विसंगति भारतीय संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन करती है, जो समानता और सम्मानजनक जीवन का अधिकार प्रदान करते हैं। यह मुद्दा न केवल पेंशन का है, बल्कि उन सैनिकों की गरिमा का भी है जिन्होंने देश की सेवा में अपने जीवन का बड़ा हिस्सा समर्पित किया।

AGHCOs का कहना है कि उन्होंने देश के लिए अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया है। वहीं अब सरकार को भी उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। जोगी राम का कहना है, “यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है। यह हमारे बलिदान की मान्यता और हमारे साथ न्याय का मामला है।”

बता दें, OROP-3 योजना की विसंगतियां एक रिटायर्ड सैनिकों के एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर रही हैं। यह मामला केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सवाल सरकार और सैनिकों के बीच पनप रहे अविश्वास का भी है। इस मामे में नोटिस भेजने वाले पूर्व सैनिकों ने उम्मीद जताई है कि संबंधित विभाग इस समस्या का समाधान करके सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति अपने दायित्व को पूरा करेंगे।

पूर्व सैनिकों का कहना है कि जिन सैनिकों ने देश के लिए अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय दिया है, वे सम्मान और न्याय के हकदार हैं। उनके मुद्दों को गंभीरता से सुनना और उनका समाधान करना सरकार का कर्तव्य है।

DRDO Missile Test: डीआरडीओ फिर करने वाला है एक घातक मिसाइल का टेस्ट! समंदर से दुश्मन को मात देने की है तैयारी

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DRDO Missile Test: भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) अपनी नई मिसाइल टेक्नोलॉजी को लेकर बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। जल्द ही बंगाल की खाड़ी में DRDO एक सीक्रेट मिसाइल का परीक्षण करेगा। इस परीक्षण की चर्चा रक्षा क्षेत्र में जोरों पर है, लेकिन इसे लेकर ज्यादा जानकारी साझा नहीं की गई है। खबरों के अनुसार, यह परीक्षण विशाखापट्टनम के पास किया जा सकता है, जो भारतीय नौसेना का प्रमुख बेस है।

DRDO Missile Test: DRDO Set to Conduct a Lethal Missile Trial, Ready to Dominate from the Seas!

कौन सी मिसाइल होगी परीक्षण का हिस्सा?

माना जा रहा है कि यह परीक्षण सबमरीन से लॉन्च की जाने वाली क्रूज मिसाइल (SLCM) या K-15 सागरिका मिसाइल का हो सकती है। DRDO ने हाल ही में बंगाल की खाड़ी में 27 से 30 नवंबर के बीच “नो-फ्लाई ज़ोन” घोषित करते हुए NOTAM (नोटिस टू एयरमेन) जारी किया है। इससे संकेत मिलता है कि यह परीक्षण किसी मीडियम रेंज की मिसाइल का हो सकता है।

SLCM: दुश्मन को मात देने वाली तकनीक

फरवरी 2023 में DRDO ने SLCM का सफल परीक्षण किया था, जिसकी रेंज 500 किमी तक है। यह मिसाइल समुद्र से थोड़ी ऊंचाई पर उड़कर रडार को चकमा देने की क्षमता रखती है। इसकी गति 864 किमी/घंटा से 1000 किमी/घंटा तक हो सकती है। इसे भारतीय नेविगेशन सिस्टम और RF सीकर की मदद से टारगेट तक पहुंचाया जाता है।

खासियतें:

  • सी-स्किमिंग क्षमता: मिसाइल पानी की सतह के करीब उड़ती है, जिससे इसे ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
  • टेरेन-हगिंग तकनीक: यह मिसाइल जमीन की ऊंचाई के साथ उड़ान भरती है, जिससे दुश्मन के रडार इसे पकड़ नहीं पाते।
  • वॉरहेड विकल्प: इसमें प्रेसिशन-कम-ब्लास्ट और एयरबर्स्ट वॉरहेड लगाए जा सकते हैं।

K-15 सागरिका: समंदर से निकलेगी मौत

K-15 सागरिका भारत की प्रमुख परमाणु-सक्षम मिसाइलों में से एक है। इसकी रेंज 750-1500 किमी है और यह पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकती है। यह मिसाइल 9260 किमी/घंटा की गति से दुश्मन को तबाह करने में सक्षम है। इसकी लंबाई 33 फीट है और वजन 6-7 टन है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • भारतीय नौसेना इस मिसाइल का उपयोग कर रही है।
  • इसकी गति और मारक क्षमता इसे दुश्मन के लिए अचूक बनाती है।
  • यह मिसाइल जमीन और समुद्र से लॉन्च के लिए उपलब्ध है।

हाइपरसोनिक मिसाइल परीक्षण भी चर्चा में

16 नवंबर को DRDO ने 1500 किमी रेंज की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। अब DRDO अपनी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी को अगले स्तर पर ले जाने की योजना बना रहा है। आगामी परीक्षणों में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) की क्षमताओं को 400 सेकंड तक विस्तारित किया जाएगा, जिससे इसकी स्थिरता और परफॉर्मेंस का आकलन हो सके।

भारत की रक्षा ताकत को नई ऊंचाई

DRDO के इन परीक्षणों से न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि होगी, बल्कि देश को हाइपरसोनिक और आधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विश्व पटल पर नई पहचान भी मिलेगी। ये तकनीकें भारत को न केवल सामरिक बढ़त देंगी, बल्कि इसे वैश्विक रक्षा टेक्नोलॉजी के अग्रणी देशों की श्रेणी में खड़ा करेंगी।

रक्षा समाचार की राय

DRDO का यह सीक्रेट परीक्षण भारत की रक्षा ताकत को और मजबूती देगा। SLCM और K-15 जैसी मिसाइलें भारतीय सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक तकनीक के साथ लैस करेंगी। यह कदम भारत की सुरक्षा और सामरिक उद्देश्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

General Upendra Dwivedi Nepal Visit: नेपाली सेना के ऑनरेरी जनरल बने भारतीय सेना प्रमुख, राष्ट्रपति रामचंद्र पाउडेल ने किया सम्मानित

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General Upendra Dwivedi: भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी को नेपाल सेना का मानद जनरल यानी ऑनरेरी जनरल पद से सम्मानित किया गया है। नेपाल के राष्‍ट्रपति रामचंद्र पाउडेल ने उन्हें देश का ऑनरेरी आर्मी चीफ नियुक्‍त किया है। यह सम्मान भारत और नेपाल की सेनाओं के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सैन्य संबंधों को दर्शाता है। यह परंपरा 1950 के दशक से चली आ रही है और दोनों देशों की गहरी मित्रता और आपसी सम्मान का प्रतीक है।

General Upendra Dwivedi Honoured as Honourary General of Nepali Army, Strengthening India-Nepal Military Ties

सम्मान की ऐतिहासिक परंपरा

भारत और नेपाल की सेनाओं के बीच मानद जनरल का सम्मान हर तीन साल में दिया जाता है। इस परंपरा के तहत भारतीय सेना प्रमुख को नेपाली सेना का मानद जनरल बनाया जाता है, और नेपाल सेना प्रमुख को भारतीय सेना का। यह परंपरा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि दोनों सेनाओं के बीच लंबे समय से चले आ रहे विश्वास और भाईचारे का प्रतीक है।

General Upendra Dwivedi Honoured as Honourary General of Nepali Army, Strengthening India-Nepal Military Ties

यह सम्मान दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग, सैन्य अभ्यास और आपदा प्रबंधन में साझेदारी की मजबूत नींव को दर्शाता है। भारत और नेपाल न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। इस अनूठी परंपरा के माध्यम से दोनों देशों के बीच की सैन्य साझेदारी और रणनीतिक संबंध और मजबूत होते हैं।

गहरे संबंधों का प्रतीक

नेपाल और भारत के बीच खुले बॉर्डर और आपसी सुरक्षा हितों के कारण यह परंपरा और भी महत्वपूर्ण बन जाती है। यह केवल सैन्य रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी दर्शाती है जो दशकों से दोनों देशों को जोड़ते आ रहे हैं।

General Upendra Dwivedi Honoured as Honourary General of Nepali Army, Strengthening India-Nepal Military Ties

जनरल उपेंद्र द्विवेदी को यह सम्मान मिलने से भारत-नेपाल के बीच सैन्य सहयोग और विश्वास और मजबूत होगा। इस सम्मान के माध्यम से नेपाल ने भारतीय सेना की प्रतिबद्धता और समर्पण को स्वीकार किया है।

जनरल उपेंद्र द्विवेदी: एक परिचय

जनरल उपेंद्र द्विवेदी 2024 में भारतीय सेना के प्रमुख बने। अपने लंबे और समृद्ध सैन्य करियर में उन्होंने न केवल भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत किया है, बल्कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया है। उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदृष्टि भारत-नेपाल संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सहायक होगी।

General Upendra Dwivedi Honoured as Honourary General of Nepali Army, Strengthening India-Nepal Military Ties

दो सेनाओं का भाईचारा

भारत और नेपाल की सेनाओं के बीच लंबे समय से साझा सैन्य अभ्यास और प्रशिक्षण होता रहा है। दोनों सेनाएं आपसी रक्षा और सुरक्षा में एक-दूसरे का समर्थन करती हैं। यह सम्मान इस सहयोग को और गहरा करने का अवसर प्रदान करता है।

General Upendra Dwivedi Honoured as Honourary General of Nepali Army, Strengthening India-Nepal Military Ties

रक्षा समाचार की राय

जनरल उपेंद्र द्विवेदी को नेपाल सेना का मानद जनरल बनाए जाने का सम्मान दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करेगा। यह परंपरा भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक और सैन्य संबंधों का प्रतीक है। यह सम्मान न केवल दोनों देशों की सेनाओं के बीच आपसी विश्वास को बढ़ावा देता है, बल्कि पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता को भी बढ़ावा देता है।

जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह सम्मान केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत और नेपाल के बीच की अनूठी दोस्ती का उत्सव है, जो आने वाले वर्षों में और प्रगाढ़ होती जाएगी।

Book Review Generals Jottings: अपनी नई किताब में Lt. Gen (रिटायर्ड) केजे सिंह ने उठाए राष्ट्रीय सुरक्षा और यूक्रेन युद्ध पर सवाल

Generals Jottings: National Security, Conflicts, and Strategies: भारतीय सेना के पूर्व पश्चिमी कमान के प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) केजे सिंह ने अपनी नई किताब “जनरल्स जॉटिंग्स: नेशनल सिक्योरिटी, कॉन्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटेजीज़” (General’s Jottings: National Security, Conflicts, and Strategies) में राष्ट्रीय सुरक्षा पर स्पष्ट रणनीति बनाने और देशव्यापी सहमति की आवश्यकता पर जोर दिया है।

Book Review: "General's Jottings: National Security, Conflicts and Strategies" – Author: Lieutenant General K.J. Singh

यूक्रेन युद्ध और परमाणु हथियारों की अहमियत

किताब में जनरल सिंह ने तर्क दिया है कि अगर यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियार नहीं छोड़े होते, तो रूस के साथ युद्ध की नौबत नहीं आती। 1994 में यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियार छोड़ दिए थे और इसके बदले रूस की परमाणु छत्रछाया और सुरक्षा की गारंटी ली थी।

उन्होंने लिखा, “अगर यूक्रेन के पास परमाणु हथियार होते, तो रूस शायद इस पर हमला करने से बचता।” उन्होंने यह भी बताया कि इन हालात की पहले ही भविष्यवाणी की गई थी कि परमाणु हथियारों के बिना यूक्रेन युद्ध का सामना करेगा।

परमाणु ठिकानों पर बढ़ते हमले

जनरल सिंह ने हाल के वर्षों में क्षेत्रीय संघर्षों के दौरान परमाणु ठिकानों पर हमलों को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने यूक्रेन के ज़ापोरिज़्ज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमले का जिक्र किया, जिसे रूसी सेना की कार्रवाई ने नुकसान पहुंचाया। इसी तरह, इस्राइल के स्डोट माइका बेस पर हुए हमलों पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की।

उन्होंने कहा, “परमाणु ठिकानों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे रेडिएशन और प्रसार का खतरा रहता है, जो नागासाकी, हिरोशिमा की तरह पूरी आबादी को लील सकता है।”

परमाणु हथियारों की दौड़

सिंह ने भविष्यवाणी की कि यूक्रेन युद्ध के अनुभव के बाद परमाणु हथियारों को छोड़ने की प्रवृत्ति कमजोर पड़ेगी। उन्होंने ईरान का जिक्र करते हुए कहा कि यह देश परमाणु हथियार बनाने की सीमा के करीब पहुंच रहा है।

यूक्रेन युद्ध में पश्चिम की सीमित मदद

सिंह ने यूक्रेन युद्ध का विश्लेषण करते हुए कहा कि पश्चिमी देशों की मदद सीमित हो रही है। उन्होंने लिखा, “यूक्रेन अपने साझेदारों की अनिच्छा के कारण मुश्किल में है, क्योंकि वे जमीनी सैनिक भेजने को तैयार नहीं हैं।”

उन्होंने पश्चिमी देशों द्वारा दिए गए F-16 फाइटर जेट और जर्मन लेपर्ड टैंकों की तैनाती में आने वाली चुनौतियों का भी जिक्र किया। सिंह ने बताया कि इन हथियारों का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग और तकनीक से जोड़ने की जरूरत है।

भारत के लिए सबक

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत के लिए सीख लेते हुए सिंह ने लिखा कि जैसे यूक्रेन को अपने सैन्य उपकरणों में बदलाव का सामना करना पड़ा, वैसे ही भारत को भी रूसी उपकरणों पर निर्भरता कम करते समय ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

अन्य सामरिक मुद्दे

यह पुस्तक केवल रणनीतिक मुद्दों तक सीमित नहीं है। लेखक ने अपने सैन्य अनुभवों और विभिन्न मोर्चों पर उनकी तैनाती के दौरान सीखे सबकों को भी साझा किया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उभरती चुनौतियों और दो-फ्रंट युद्ध की संभावनाओं पर लेखक के विचार काफी प्रासंगिक और उपयोगी हैं।

सैन्य अनुभव की झलक

अपनी लंबी सैन्य सेवा में, जनरल सिंह ने सिक्किम कोर, बख्तरबंद डिवीजन, और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व किया। उनकी किताब “जनरल्स जॉटिंग्स” राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक मुद्दों पर उनके अनुभव और चिंतन का बेहतरीन संग्रह है।

रक्षा समाचार की राय

इस किताब के माध्यम से, लेफ्टिनेंट जनरल केजे सिंह ने न केवल वैश्विक और क्षेत्रीय संघर्षों का विश्लेषण किया है, बल्कि भारत के लिए ठोस राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता पर भी बल दिया है। उनकी बातों में भारतीय सेना और नीति निर्माताओं के लिए गहरे संदेश छिपे हैं।

“जनरल्स जॉटिंग्स” एक ऐसी पुस्तक है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य रणनीतियों में रुचि रखने वालों को जरूर पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक केवल एक विश्लेषण नहीं, बल्कि एक चेतावनी और मार्गदर्शिका भी है। लेखक की सोच स्पष्ट और व्यावहारिक है, जो पाठकों को मौजूदा वैश्विक परिदृश्य के प्रति चेताता है।

यदि आप वैश्विक संघर्षों और भारत की सुरक्षा रणनीतियों को समझने में रुचि रखते हैं, तो यह पुस्तक निश्चित रूप से आपकी रुचि और ज्ञान को समृद्ध करेगी।

Delhi High Court Fines MOD: दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय और नौसेना पर ठोका 50,000 रुपये का जुर्माना, सेना के पूर्व अफसर की पेंशन पर बेवजह अपील पर जताई नाराजगी

Delhi High Court Fines MOD: दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय (MoD) और भारतीय नौसेना पर 50,000 रुपये का जुर्माना ठोका है। यह जुर्माना एक ऐसे मामले में लगाया गया है, जहां दोनों संस्थानों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले से तय कानून के खिलाफ अपील दायर की थी। मामला एक पूर्व नौसेना कमांडर एके श्रीवास्तव से जुड़ा है, जिन्हें पहले ही आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (AFT) ने विकलांगता पेंशन देने का आदेश दिया था।

Delhi High Court Fines MoD and Navy ₹50,000 for Unnecessary Appeal Against Ex-Officer’s Pension

क्या है मामला?

पूर्व नौसेना अधिकारी एके श्रीवास्तव ने अपनी सेवा के दौरान हुई विकलांगता के लिए पेंशन का दावा किया था। AFT ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए उनके पक्ष में निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार, यदि सेवा के दौरान कोई स्वास्थ्य समस्या होती है, तो उसे सेवा से संबंधित माना जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि यह समस्या पहले से मौजूद थी और सेवा में शामिल होने से पहले इसका उल्लेख किया गया हो।

इसके बावजूद, रक्षा मंत्रालय और नौसेना ने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 12 नवंबर को इस अपील को खारिज कर दिया और इसे बेवजह और समय की बर्बादी करार दिया।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने यह अपील खारिज करते हुए कहा कि पहले से तय कानून के खिलाफ अपील दायर करना न केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी है, बल्कि न्यायालय का समय भी बरबाद होता है। कोर्ट ने पहले ही अक्टूबर में रक्षा मंत्रालय को चेतावनी दी थी कि अगर ऐसे मामलों में अपील जारी रही तो भारी जुर्माना लगाया जाएगा।

रक्षा मंत्रालय पर पहले भी लग चुका है जुर्माना

यह पहली बार नहीं है जब रक्षा मंत्रालय को अदालत की सख्त टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है।

  • 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने सैनिकों को विकलांगता पेंशन देने के खिलाफ अपील दायर करने पर MoD पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
  • 2022 में भी, सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की लगातार अपील दायर करने की आदत पर नाराजगी जताई थी।
  • हाल ही में, केरल और पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी MoD और रक्षा सेवाओं की अपीलों को खारिज किया है।

रक्षा मंत्रालय का असंवेदनशील रवैया

यह घटना बताती है कि सरकारी संस्थानों को न केवल पहले से तय कानूनों का सम्मान करना चाहिए, बल्कि अनावश्यक मुकदमों से बचना चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस तरह के मामलों पर कानून स्पष्ट कर दिया है, तो बार-बार अपील दायर करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह उन सैनिकों के लिए भी असंवेदनशील है, जिन्होंने देश की सेवा में अपना स्वास्थ्य गंवाया।

सैनिकों के अधिकारों की सुरक्षा

हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि सैनिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका हमेशा तत्पर है। विकलांगता पेंशन जैसे मामलों में, सैनिकों को सेवा के दौरान हुई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए लाभ दिया जाना चाहिए।

न्यायपालिका की कड़ी चेतावनी

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला सरकारी संस्थानों को अनावश्यक मुकदमों से बचने और पहले से तय कानूनों का सम्मान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है। अदालत ने यह भी साफ किया कि इस तरह की बेवजह अपीलों पर भविष्य में और भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।

रक्षा समाचार की राय

रक्षा मंत्रालय और अन्य सरकारी संस्थानों को अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न करें। समय और संसाधनों का सही उपयोग करते हुए, उन्हें देश की सेवा में लगे सैनिकों और उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि न्यायपालिका का उद्देश्य सिर्फ कानून का पालन करवाना नहीं है, बल्कि लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और सरकारी संस्थानों को जवाबदेह बनाना भी है।

INS Brahmaputra: आग भी नहीं तोड़ पाई नौसेना की हिम्मत, जल्द ही काम पर वापस लौटेगा INS ब्रह्मपुत्र, कई मिशनों को देगा अंजाम

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INS Brahmaputra: चार महीने पहले मुंबई के नेवल डॉकयार्ड में आग की चपेट में आए भारतीय नौसेना के युद्धपोत INS ब्रह्मपुत्र की मरम्मत का काम एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गया है। इस घटना ने न केवल नौसेना को आहत किया था, बल्कि यह भी दिखाया कि मुश्किल परिस्थितियों में भारत की रक्षा ताकत को कैसे मजबूत किया जा सकता है।

INS Brahmaputra: Indian Navy's Warship Restoration Reaches Key Milestone After Devastating Fire

कैसे लगी थी आग

जुलाई में, INS ब्रह्मपुत्र में चल रहे रिफिटिंग कार्य के दौरान भीषण आग लग गई थी। इस हादसे में एक नौसैनिक की जान चली गई और युद्धपोत को भारी नुकसान हुआ। आग बुझाने के लिए हुए ऑपरेशनों के कारण पानी जहाज में भर गया, जिससे यह एक तरफ झुक गया और लगभग डूबने की स्थिति में आ गया।

उस समय, तमाम कोशिशों के बावजूद जहाज को सीधा करना संभव नहीं हो सका। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति के चलते नौसेना ने विदेशी विशेषज्ञों की मदद लेने का निर्णय लिया।

कैसे हो रही है मरम्मत?

INS ब्रह्मपुत्र की मरम्मत करने के लिए विशेष तकनीक और मशीनरी का सहारा लिया जा रहा है। विशेषज्ञों ने “ब्लून जैसी संरचनाओं” का उपयोग करके जहाज को सीधा किया है। यह प्रक्रिया जहाज की सतह को ऊपर उठाने और उसके वजन को संतुलित करने में मदद करती है।

आग और पानी के कारण हुए नुकसान का आकलन करने के लिए विदेशी विशेषज्ञों की एक टीम ने जहाज का गहन निरीक्षण किया। रिपोर्ट के अनुसार, जहाज के अंदर पानी भरने और भारी वजन के कारण इसकी मरम्मत करना बेहद कठिन हो गया है। इसके बावजूद, मरम्मत का काम निरंतर जारी है।

INS Brahmaputra: Indian Navy's Warship Restoration Reaches Key Milestone After Devastating Fire

मिनट स्तर पर मरम्मत

इस घटना के बाद जहाज को उस स्थान से दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया, जहां यह दुर्घटना हुई थी। जहाज को पूरी तरह चालू स्थिति में लाने के लिए कई महीनों का समय लग सकता है। इसके लिए विशेष मशीनरी और तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत है।

नौसेना के अधिकारियों का कहना है कि जहाज को फिर से समुद्र में चलाने के लिए मिनट स्तर पर मरम्मत की जा रही है। हालांकि, यह प्रक्रिया लंबी और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसके जरिए नौसेना की ताकत को दोबारा खड़ा किया जा सकेगा।

INS ब्रह्मपुत्र की अहमियत

INS ब्रह्मपुत्र भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े का अहम हिस्सा है। यह 24 साल पुराना जहाज विभिन्न मल्टी-रोल मिशनों में अपनी ताकत दिखा चुका है। घटना के समय यह अपने अंतिम रिफिटिंग चरण में था, जिसके बाद इसे नौसैनिक मिशनों पर भेजा जाना था।

सुरक्षा को लेकर सख्त कदम

आग की घटना के बाद नौसेना ने सुरक्षा और प्रोटोकॉल की समीक्षा के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है। यह टीम एक रियर एडमिरल के नेतृत्व में काम कर रही है और नौसैनिक अभियानों में सुरक्षा के उच्च मानकों को लागू करने पर जोर दे रही है।

नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने मुंबई जाकर स्थिति का जायजा लिया और INS ब्रह्मपुत्र को फिर से सामरिक तैयारी के लिए बहाल करने के महत्व पर बल दिया।

भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों का योगदान

वाइस चीफ ऑफ नेवल स्टाफ, वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन ने कहा, “हमारे पास भारतीय विशेषज्ञता की कोई कमी नहीं है, लेकिन INS ब्रह्मपुत्र के लिए हमने विदेशी मदद भी ली है। और हमें उम्मीद है कि जल्द ही जहाज काम पर लौट आएगा।”

नौसेना को है उम्मीद

इस हादसे ने भारतीय नौसेना के सामने बड़ी चुनौती पेश की, लेकिन जिस तरह से नौसेना इसे संभाल रही है, वह साहस और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। INS ब्रह्मपुत्र न केवल भारत की सुरक्षा ताकत का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे सैनिकों के जज्बे और तकनीकी कौशल की मिसाल भी है।

आशा है कि बहाली के बाद INS ब्रह्मपुत्र फिर से समुद्र में अपने मिशनों के लिए तैयार होगा और भारतीय नौसेना की शक्ति में एक नई चमक जोड़ेगा।

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