ARMY CHIEF GENERAL UPENDRA DWIVEDI: पुणे स्थित Military Institute of Technology (MILIT) मिलिट संस्थान के मेहरा ऑडिटोरियम में भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी का भाषण सेना के युवा कमांडरों और अगली पीढ़ी के सैन्य नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। रक्षा सेवा तकनीकी कर्मचारी पाठ्यक्रम (DSTSC) में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे भारतीय सेना के अधिकारियों को संबोधित करते हुए, जनरल द्विवेदी ने उन्हें मॉर्डन वारफेयर के चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में आत्मविश्वास और जोश से सामना करने के लिए प्रेरित किया।
अपने संबोधन में जनरल द्विवेदी ने युद्ध के परिदृश्य में हो रहे तेजी से बदलाव पर जोर देते हुए कहा कि सैन्य तैयारियां केवल एक आवश्यकता नहीं हैं, बल्कि एक कला है। उन्होंने कहा कि यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें रणनीति और सटीकता की आवश्यकता होती है। भारतीय संदर्भ में सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने भारतीय सेना द्वारा किए जा रहे बदलावों और सुधारों पर प्रकाश डाला। जनरल द्विवेदी ने अधिकारियों से कहा कि वे लचीलापन, अनुकूलता और दृढ़ संकल्प के साथ परिवर्तन को अपनाएं, जो कि सेना सुधारों का हिस्सा हैं।
जनरल द्विवेदी ने भारतीय सेना के राष्ट्र निर्माण में अद्वितीय योगदान पर गर्व व्यक्त करते हुए सेना की भूमिका को सराहा। उन्होंने कहा कि सेना प्राकृतिक आपदाओं के समय मानवीय सहायता प्रदान करने में अग्रणी रही है। इसके अलावा, भारतीय सेना संकटग्रस्त इलाकों से भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने में भी आगे रही है। जो दिखाता है कि भारतीय सेना केवल लड़ाई में ही नहीं, बल्कि मानवीय कार्यों में भी अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देती है।
जनरल द्विवेदी ने सैन्य-राजनयिक सहयोग के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाहरी खतरों का मुकाबला करने के लिए एकता और समन्वय महत्वपूर्ण हैं। ऑपरेशनल रेडिनेस, रणनीतिक समन्वय और एकजुटता ही एक मजबूत सेना की नींव हैं। उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे सैन्य युद्ध विधियों के उपकरणों और तकनीकों को नए दृष्टिकोण से देखें और फिर से कल्पना करें।
सैन्य प्रमुख ने मिलिट संस्थान की भूमिका की सराहना की, जो न केवल भारतीय सशस्त्र बलों के लिए बल्कि मित्रवत विदेशी देशों (FFCs) के लिए भी नेताओं का निर्माण करता है। उन्होंने मिलिट को उत्कृष्टता का प्रतीक माना, जहां आने वाले कल के नेता दिमाग, चरित्र और उद्देश्य के साथ तैयार होते हैं, जिससे फैकल्टी और छात्रों दोनों को प्रेरणा मिलती है।
मिलिट के कमांडेंट रियर एडमिरल नेल्सन डी’सूजा, एनएम ने जनरल द्विवेदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके शब्दों ने स्टाफ और छात्र अधिकारियों में एक नया उत्साह और उद्देश्य की भावना जागृत की है, जो उन्हें महान ऊंचाइयों तक पहुंचने में मार्गदर्शन करेंगे। यह साहस और समर्पण के सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा।
K9 Vajra Guns: भारतीय सेना की मारक क्षमता को और मजबूत करने के लिए 100 और K-9 वज्र सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्ज़र तोपों की मांग का प्रस्ताव जल्द ही कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) के सामने रखा जाएगा। इस प्रस्ताव पर फैसला होते ही लार्सन एंड टूब्रो (L&T) को इन तोपों की मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने का आदेश जारी किया जाएगा।
K9 Vajra Guns: भारत की सीमा सुरक्षा का मजबूत हथियार
K-9 वज्र तोपें 155 मिमी, 52-कैलिबर की ट्रैक सेल्फ-प्रोपेल्ड गन हैं। इन्हें पहले ही चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) पर तैनात किया जा चुका है। इन तोपों ने अत्यधिक गर्मी और ठंडे मौसम में अपनी उपयोगिता साबित की है।
गुजरात के “आर्मर्ड सिस्टम्स कॉम्प्लेक्स” में L&T इन तोपों को बना रही है। इन्हें बनाने की टेक्नोलॉजी दक्षिण कोरियाई रक्षा कंपनी हनवा डिफेंस से ली गई है, लेकिन इसे भारत में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय स्तर पर कई कंपोनेंट्स के साथ बनाया गया है। K-9 वज्र, हनवा डिफेंस के बनाए K-9 थंडर सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर का एक कस्टमाइज्ड वैरिएंट है। एलएंडटी डिफेंस ने भारतीय सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए K-9 थंडर को भारत के मुताबिक तैयार किया है। इस कस्टमाइजेशन में 18,000 से अधिक भारत में निर्मितत कंपोनेंट्स का उपयोग किया गया है।
वज्र तोपों की खासियत
एक K-9 वज्र तोप का वजन लगभग 50 टन है।
यह तोप 50 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक गोलाबारी कर सकती है।
आधुनिक तकनीक से लैस यह तोप भारतीय सेना की फायर पावर को कई गुना बढ़ा सकती है।
वहीं, भारतीय सेना भी K-9 वज्र की प्रदर्शन क्षमताओं से संतुष्ट है। इसकी प्रभावशीलता को देखते हुए, इसके नए बैच में विशेष विंटर क्लाइमेटाइजेशन किट्स लगाई जाएंगी, जो इन्हें लद्दाख के सर्दियों के कठोर उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने में उपयोगी बनाएंगी।
2017 के बाद दूसरी बड़ी डील
L&T को 2017 में पहली बार 100 K-9 वज्र तोपों का ऑर्डर मिला था, जिसे 2021 में तय समय से पहले पूरा कर लिया गया। यह डील लगभग 4500 करोड़ ररुपये की थी। हालांकि, इस बार 100 तोपों की लागत इससे अधिक होने की संभावना है।
प्रस्ताव में देरी की वजह
सूत्रों के मुताबिक, सेना ने एक साल पहले ही इन तोपों की खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी थी, लेकिन 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के कारण इस प्रक्रिया में देरी हो रही है।
आत्मनिर्भर भारत की ओर एक और कदम
L&T ने K-9 वज्र तोपों में बड़ी संख्या में स्वदेशी घटकों को शामिल कर इसे “मेक इन इंडिया” का हिस्सा बनाया है। यह कदम न केवल रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक मजबूत स्थान दिलाने में भी मदद करता है।
सेना की फायर पावर में बढ़ोतरी
K-9 वज्र तोपों का नया बैच सेना की ताकत को और बढ़ाएगा। इन तोपों की तैनाती से भारत की सीमा सुरक्षा और मजबूत होगी, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव बना रहता है। वहीं, भारतीय सेना का यह कदम न केवल उसकी रणनीतिक ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि यह भारत के रक्षा उत्पादन और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। अब देखना होगा कि कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी इस प्रस्ताव को कब मंजूरी देती है और भारतीय सेना को कब ये नई तोपें मिलती हैं।
Border Tourism: भारतीय सेना ने सीमा से इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देने और दूरस्थ क्षेत्रों के विकास के लिए एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी की है। जल्द ही, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के पास के कुछ प्रतिबंधित क्षेत्रों को पर्यटकों के लिए खोलने की योजना है। यह कदम न केवल देश की सीमाओं को लोगों के करीब लाने का प्रयास है, बल्कि सीमावर्ती इलाकों के सामाजिक और आर्थिक विकास को भी गति देगा।
Galwan War Memorial
Border Tourism: वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत पहल
सरकार के वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत यह पहल की जा रही है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सीमावर्ती इलाकों में कनेक्टिविटी, पर्यटन और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
सूत्रों के अनुसार, इस योजना में गलवान मेमोरियल को पर्यटकों के लिए खोलने पर भी विचार किया जा रहा है। बता दें कि रेजांग ला वॉर मेमोरियल पहले से ही पर्यटकों के लिए खुला है। इसके अलावा, लद्दाख के त्रिशूल और रंगला जैसे स्थानों को भी पर्यटकों के लिए खोला जाएगा। इन क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम तेजी से चल रहा है।
इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर जोर
भारतीय सेना और बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने पिछले चार वर्षों में सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है।
8500 किलोमीटर सड़कों का निर्माण: खासकर एलएसी के पास।
400 स्थायी पुलों का निर्माण: इसमें सेला और शिंकुन ला सुरंगों जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट शामिल हैं।
भारत नेट कार्यक्रम के तहत हाई-स्पीड इंटरनेट: 1,500 गांवों तक इंटरनेट की सुविधा दी गई है, जिससे 7,000 से अधिक सीमावर्ती गांवों को जोड़ा गया है।
बुनियादी ढांचा में ये सुधार न केवल दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच को आसान बनाएंगे, बल्कि पर्यटन और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देंगे।
Galwan War Memorial
पर्यटकों की बढ़ती रुचि
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में बताया कि पिछले चार वर्षों में लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पर्यटकों की संख्या में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसके पीछे बेहतर बुनियादी ढांचा और सीमाई पर्यटन के प्रति बढ़ती दिलचस्पी मुख्य कारण हैं।
स्थानीय समुदायों को मदद
सीमाई इलाकों में केवल बुनियादी ढांचे का विकास ही नहीं हो रहा, बल्कि भारतीय सेना स्थानीय समुदायों की मदद में भी अहम भूमिका निभा रही है।
स्वास्थ्य सेवाएं और राहत कार्य: सेना ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सहायता और आपदा राहत सेवाएं प्रदान कर रही है।
जीवन स्तर सुधारने का प्रयास: सेना की यह पहल सीमावर्ती इलाकों के निवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बना रही है।
मुख्यधारा से जोड़ने की पहल
प्रतिबंधित क्षेत्रों को पर्यटन के लिए खोलने का यह निर्णय सीमावर्ती इलाकों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके जरिए इन इलाकों की सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान को भी बढ़ावा मिलेगा भारतीय सेना और सरकार की यह पहल न केवल सीमा क्षेत्रों को विकास की नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी, बल्कि देशवासियों को अपनी सीमाओं और वहां की जीवनशैली से जोड़ने में भी मदद करेगी। इस फैसले से न केवल इन क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों का भी सशक्तिकरण होगा।
Women COs in Indian Army: भारतीय सेना में महिला कमांडिंग अधिकारियों (सीओ) की भूमिका को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। सेना की 17वीं कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी ने सेना के ईस्टर्न आर्मी कमांडर सहित सेना के एमएस (मिलिट्री सेक्रेटरी) और एजी (Adjutant General)) को भेजे गए फीडबैक में कहा है कि महिला अधिकारियों को सेना की यूनिट कमांड करते हुए एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। यह जरूरी है कि उनकी परफॉर्मेंशन का प्रैक्टिकल तरीके से मूल्यांकन किया जाए। लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी ने महिला सीओ के प्रदर्शन और उनसे जुड़े मुद्दों पर अपने अनुभव साझा किए हैं। यह पत्र उन्होंने 17वीं कोर के कोर कमांडर के रूप में पूर्वी कमान के जीओसी-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राम चंदर तिवारी को लिखा था।
1 अक्टूबर 2024 को लिखा गए इस पत्र में लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने महिला अधिकारियों के प्रदर्शन के एक साल का विश्लेषण लिखा है। पत्र में उठाए गए मुद्दों ने सेना और रक्षा विशेषज्ञों के बीच महिला नेतृत्व को लेकर व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। पत्र में महिला अधिकारियों के नेतृत्व में आने वाली चुनौतियों और कमियों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
1. आपसी संबंध और संवाद की कमी
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा कि महिला सीओ के नेतृत्व वाली यूनिटों में ऑफिसर मैनेजमेंट की समस्याएं बढ़ गई हैं। उन्होंने इसे महिला अधिकारियों की पर्सनल और प्रोफेशनल जरूरतों को समझने में कमी से जोड़ा। उनका कहना था कि महिला सीओ अक्सर विवादों को संवाद से हल करने की बजाय अधिकारवादी दृष्टिकोण अपनाती हैं।
2. बार-बार शिकायतें करना
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि महिला सीओ छोटी-छोटी समस्याओं को सीनियर अधिकारियों तक ले जाती हैं, बजाय इसके कि वे उन्हें अपनी यूनिट में हल करें। इसे ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट की कमी के रूप में देखा गया।
3. केंद्रीकृत नेतृत्व शैली
महिला सीओ के नेतृत्व में निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधीनस्थ अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाता। पत्र में इसे “My Way or Highway” मानसिकता कहा गया, जो अधीनस्थ अधिकारियों में असंतोष का कारण बनती है।
4. अधिकार और एंपैथी का संतुलन
पत्र में कुछ घटनाओं का जिक्र है, जहां महिला सीओ ने व्यक्तिगत सुविधाओं को प्राथमिकता दी। उदाहरण के तौर पर, एक महिला सीओ ने यूनिट के सूबेदार मेजर से अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलने को कहा। यह अपने अधिकारों के अनुचित इस्तेमाल का संकेत है।
5. एंपैथी की कमी
पत्र में कहा गया कि महिला सीओ संवेदनशीलता की कमी के कारण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की वास्तविक जरूरतों को समझने में असफल रहीं हैं।
6. नेतृत्व में अधिक सख्ती
महिला अधिकारी, पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान वातावरण में खुद को साबित करने के प्रयास में, अधिक सख्त नेतृत्व शैली अपनाती हैं, जो संतुलित नेतृत्व में बाधा डालती है।
7. छोटी उपलब्धियों का अधिक उत्सव
महिला अधिकारियों की छोटी-छोटी उपलब्धियों का ज्यादा जश्न मनाने की प्रवृत्ति ने गलत उम्मीदें पैदा की हैं, जिससे नेतृत्व की गतिशीलता प्रभावित होती है।
सुधारात्मक उपायों के सुझाव
पत्र में इन समस्याओं को हल करने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं:
जेंडर-न्यूट्रल पोस्टिंग नीति: महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक समान नीति लागू की जाए।
बेहतर प्रशिक्षण: महिला अधिकारियों को नेतृत्व और निर्णय लेने के कौशल में बेहतर प्रशिक्षण दिया जाए।
प्रतीकात्मकता कम करना: महिला अधिकारियों को केवल सशक्तिकरण दिखाने के लिए प्रतीकात्मक भूमिकाओं में नहीं रखा जाए।
स्पाउस कोऑर्डिनेटेड पोस्टिंग पर पुनर्विचार: इस नीति को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए।
चर्चा और विवाद
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी का यह पत्र सेना के भीतर और रक्षा विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। यह पत्र तब आया है जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद महिला अधिकारियों को कमांड भूमिकाओं में नियुक्त किया गया है।
हालांकि, सेना के कुछ अधिकारियों का कहना है कि यह पत्र सिर्फ लेफ्टिनेंट जनरल पुरी के व्यक्तिगत अवलोकन हो सकते हैं, क्योंकि इसका आधार 17वीं कोर की केवल 7 महिला अधिकारियों पर आधारित है। सेना में वर्तमान में लगभग 100 महिला अधिकारी कमांडिंग भूमिकाओं में हैं।
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को नेतृत्व भूमिकाएं देना लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। हालांकि, यह प्रक्रिया शुरुआती दौर में है और इसमें सुधार की गुंजाइश है। वहीं, महिला अधिकारियों के सामने आईं चुनौतियां न केवल उनके नेतृत्व कौशल को मजबूत करने की जरूरत को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि सेना को अपनी नीतियों और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं में बदलाव करना होगा। यह पहल महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ सेना को अधिक मजबूत और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
Fire Fury Corps: भारतीय सेना के फायरफ्यूरी कॉर्प्स के सिग्नलर्स ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने सियाचिन और दौलत बेग ऑल्डी (DBO) की बर्फीली ऊँचाइयों पर ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी स्थापित की है। 18,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित हाई एल्टीट्यूड इलाकों में ऑप्टिकल फाइबर केबल्स को बिछाने का यह मिशन न केवल चुनौतीपूर्ण था, बल्कि यह इन क्षेत्रों की कठिन परिस्थितियों के बावजूद पूरा किया गया।
बर्फीले और क्रेवास बने बाधा
सुपर हाई एल्टीट्यूड सियाचिन और DBO जैसे क्षेत्रों में मौसम की परिस्थितियां बेहद कठोर होती हैं। यहाँ की बर्फीली हवाएँ, हड्डियाँ जमा देने वाली ठंड, और खतरनाक दरारों (क्रेवास) के बीच ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाना एक मुश्किल काम था, क्योंकि इसके लिए ना केवल तकनीकी कौशल की आवश्यकता थी, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होने की भी जरूरत थी।
लेकिन भारतीय सेना के सिग्नलर्स ने यह साबित किया कि अगर दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता पार किया जा सकता है। उन्होंने इन बर्फीली ऊँचाइयों पर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को बिछाने के लिए उन खतरनाक दरारों को पार किया, जहाँ कभी-कभी बर्फ के नीचे विशाल दरारें छुपी होती हैं।
प्रयास और समर्पण की मिसाल
यह कार्य तकनीकी तौर पर बेहद मुश्किल था। लेकिन अपना तकनीकी कौशल दिखाते हुए जवानों ने अपने प्र.ास औऱ समर्पण की नई मिसाल पेश की। सियाचिन जैसे कठिन क्षेत्र में, जहां हर कदम पर जान जोखिम में डालनी पड़ती है, वहां सिग्नलर्स ने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बिना किसी डर के, कठोर से कठोर परिस्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारी को निभाया और ऑप्टिकल फाइबर को बिछाया।
सिग्नलर्स ने बर्फीले तूफानों, तेज हवाओं और जमा देने वाली सर्दी के बावजूद यह सुनिश्चित किया कि रिमोट इलाकों को जोड़ा जाए और उनसे संपर्क की एक सशक्त और निरंतर कड़ी स्थापित की जाए।
कनेक्टिविटी के फायदे
ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के बिछाए जाने से भारतीय सेना को कई रणनीतिक लाभ मिलेंगे। यह नेटवर्क न केवल सामरिक उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भारतीय सेना के अभियानों को और भी सशक्त बनाया जाएगा। इन क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी के कारण सैनिकों को अब तुरंत जानकारी मिलेगी, जिससे उनकी रेस्पॉन्स क्षमता में बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा, इस कनेक्टिविटी का उपयोग सैनिकों को आपातकालीन स्थितियों में सहायता प्रदान करने के लिए भी किया जाएगा।
Reaching Out To The Farthest & The Highest Battlefield
Amidst the icy heights of #Siachen and #DBO the firefurycorps #Signallers braved the toughest weather conditions to ensure optical fibre connectivity at heights above 18000 feet.
सियाचिन और DBO जैसे मुश्किल इलाकों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाना एक अद्वितीय मिशन था, जिसे अंजाम देने में सिग्नलर्स ने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि मनुष्य की इच्छाशक्ति की कोई सीमा नहीं होती। यह न केवल एक तकनीकी सफलता थी, बल्कि यह भारतीय सेना के हर सैनिक की मेहनत और समर्पण का प्रतीक भी बन गया।
इस सफलता से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय सेना ने एक बार फिर साबित किया है कि वह किसी भी कठिनाई को पार करने की क्षमता रखती है। सियाचिन और DBO जैसी खतरनाक जगहों पर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क की सफलता भारतीय सेना की तकनीकी और शारीरिक मजबूती का प्रतीक है। यह न केवल भारतीय सेना के लिए गर्व की बात है, बल्कि समूचे राष्ट्र के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है।
Russia Sukhoi Su-57: 13 नवंबर को, रूस की रक्षा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी Rosoboronexport के प्रमुख, अलेक्जेंडर मिखीव ने रूस के पत्रकारों के सामने एक महत्वपूर्ण एलान किया। उन्होंने बताया कि रूस के Su-57 Felon फाइटर जेट के लिए एक विदेशी ऑपरेटर के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस खबर के बाद से इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि आखिरकार यह पांचवी पीढ़ी का फाइटर जेट किस देश को बेचा जाएगा।
वहीं, खरीदारों में अल्जीरिया का नाम सबसे ज्यादा उभरकर सामने आ रहा है। अफ्रीका, एशिया और यूरोप से आई रिपोर्ट्स में यह संभावना जताई जा रही है कि अल्जीरिया Su-57 Felon फाइटर जेट का पहला विदेशी ग्राहक हो सकता है। हालांकि इस बात की कोई स्पष्ट पुष्टि तो नहीं पाई है, लेकिन अंदाजा इस बात से भी लगाया जा रहा है कि हाल ही में अल्जीरिया ने अपनी सेना में शामिल पुराने रूस के MiG-29 विमानों को सूडानी वायुसेना को सौंपे जाने की बात कही थी।
X अकाउंट पर “Kad-Ghani” नामक एक यूजर ने दावा किया कि अल्जीरिया Su-57 का पहला विदेशी ऑपरेटर बन रहा है। “अल्जीरिया फिर से इतिहास बना रहा है! पहले MiG-25 का ग्राहक, अब Su-57 का पहला ग्राहक,” उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा। हालांकि, इस पोस्ट में कोई स्पष्ट स्रोत नहीं दिया गया है, जिससे इस जानकारी की सत्यता पर सवाल उठते हैं।
अल्जीरियाई वायुसेना के लिए Su-57 के भविष्य में उपयोग की संभावना विभिन्न सूत्रों से सामने आई है, लेकिन कोई भी इस दावे की पुष्टि नहीं कर पाया है। डच वेबसाइट Scramble ने भी लिखा है, हालांकि कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, फिर भी “अफवाहें” अल्जीरिया को पहला निर्यात ग्राहक बताते हुए सामने आ रही हैं।
क्या हैं अल्जीरिया के Russia Sukhoi Su-57 खरीदने के कयास?
अल्जीरिया को लेकर कयासों की शुरुआत 2020 में हुई थी। उस समय, अल्जीरियाई सेना के प्रमुख सईद चेंगरीहा ने अचानक रूस के डिमिट्री शुगायव, जो कि सैन्य-तकनीकी सहयोग के निदेशक हैं, से मुलाकात की थी। इस मुलाकात में Su-57 की खरीद को लेकर चर्चा की गई थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, चेंगरीहा को Su-57 का एक मॉडल भी दिया गया था। उस वक्त अफवाहें सामने आई थीं कि अल्जीरिया को 14 Su-57 विमान लगभग 2 बिलियन डॉलर में बेचे जाएंगे, लेकिन इनकी पुष्टि नहीं हो सकी।
कुछ समय पहले तक, विशेषज्ञों का मानना था कि चीन शायद यह विमान खरीदने वाला देश हो सकता है, लेकिन अब यह संभावना काफी कम नजर आती है। चीन के पास पहले ही Chengdu J-20 जैसा पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जो लगभग Su-57 जैसा ही है।
रूस पर निर्भर है अल्जीरिया
अल्जीरिया के लिए Su-57 खरीदने की संभावना कई दृष्टिकोणों से सही नजर आती है। पहली तो यह कि अल्जीरिया और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में पुराने और मजबूत संबंध हैं। अल्जीरिया वायुसेना पहले से ही रूसी उपकरणों पर निर्भर है, जिसमें Su-30 और MiG-29 जैसे विमान शामिल हैं। इस कारण, अल्जीरिया के पास पहले से ही ऐसे विमान रखने का अनुभव है।
वहीं, आर्थिक दृष्टि से भी अल्जीरिया में इस विमान को खरीदने की क्षमता है। रूस से यह विमान खरीदने के लिए अल्जीरिया के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं, खासकर प्राकृतिक गैस और तेल निर्यात से होने वाली आय के कारण।
सूडान को MiG-29s कर रहा है दान
अरब मीडिया प्लेटफॉर्म ‘डिफेंस अरेबिक’ ने हाल ही में खबर दी थी कि अल्जीरियाई रक्षा मंत्रालय रूस के पुराने MiG-29 विमानों को जल्द ही सूडानी वायुसेना को सौंप सकता है। उस समय कहा गया था अल्जीरिया अपने हवाई बेड़े को आधुनिक बनाने के लिए Su-57 जेट्स और 70 Su-30 लड़ाकू विमानों की खरीद कर सकता है।
खास बात यह है कि ये MiG-29s अल्जीरिया की वर्तमान युद्धक विमान क्षमता का अहम हिस्सा हैं। अल्जीरियाई वायुसेना कथित तौर पर आगे और अधिक आधुनिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रही है और इस दशक के अंत तक रूस से पांचवी पीढ़ी के Su-57 लड़ाकू विमानों की खरीद की योजना है।
1999 में, अल्जीरियाई रक्षा मंत्रालय ने 31 MiG-29 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए अनुरोध किया था। यह डिलीवरी अगले वर्ष रूस और बेलारूस के साथ कॉन्ट्रैक्ट के तहत हुई थी। हालांकि, 2006 में MiG-29SMT विमानों की खरीद रद्द कर दी गई, जिसके बाद ये विमान रूस को वापस कर दिए गए।
अल्जीरियाई वायुसेना Su-30MKA लड़ाकू विमानों को प्राथमिकता देती है। अल्जीरिया का कहना है कि Su-30MKA वर्तमान में अल्जीरियाई वायुसेना के प्रमुख विमान हैं, MiG-29 से कहीं अधिक प्रभावी है। हालांकि 2020 के बाद से, अल्जीरिया ने अपने पुराने MiG-29 विमानों को सेवा से बाहर करना शुरू कर दिया था। इसके स्थान पर, देश ने 14 MiG-29M विमानों और अतिरिक्त 16 Su-30MKA विमानों की खरीद की। MiG-29M में एक पूरी तरह से नया एयरफ्रेम लगा है, जो किफायती होने के साथ ऑपरेशन में भी अधिक प्रभावी है।
वहीं, अगर अल्जीरिया Su-57 खरीदता है और सूडान MiG-29 प्राप्त करता है, तो क्षेत्रीय सैन्य और भू-राजनीतिक गतिशीलता में भारी बदलाव हो सकता है। सबसे पहले, अल्जीरिया की सैन्य ताकत में Su-57 के साथ उल्लेखनीय वृद्धि होगी। मिलिट्री विशेषज्ञों का कहना है कि Su-57 खरीदने के बाद अल्जीरिया उत्तर अफ्रीका में एक प्रमुख सैन्य ताकत बन जाएगा। इससे पड़ोसी देशों जैसे मोरक्को और ट्यूनीशिया को भी अपनी सैन्य ताकत बढ़ानी होगी।
उत्तरी अफ्रीका में बढ़ेगी हथियारों की होड़
अल्जीरिया का सुखोई Su-57 खरीदना न केवल उसकी वायुसेना को मजबूत करेगा, बल्कि यह उसे उत्तरी अफ्रीका में सैन्य शक्ति में बढ़त भी दिलाएगा, विशेष रूप से मोरक्को जैसे देशों के मुकाबले। मोरक्को ने हाल ही में अमेरिका और इजराइल के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को बढ़ाया है। ऐसे में, Su-57 अल्जीरिया को सैन्य रूप से एक बड़ा फायदा दे सकता है।
इसके अलावा, यह कदम अल्जीरिया की बाहरी रक्षा नीति को भी मजबूत करेगा। यह संकेत देता है कि अल्जीरिया अपने सैन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अपने रक्षा संबंधों को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। जिसके चलते अल्जीरिया के Su-57 खरीदने की संभावनाएं मजबूत नजर आ रही हैं। इसके साथ ही, अगर अल्जीरिया वास्तव में इस विमान को अपनी वायुसेना में शामिल करता है, तो यह अफ्रीका और मध्य-पूर्व में सैन्य शक्ति के संदर्भ में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
Indian Army Chief Nepal Visit: भारत और नेपाल के बीच गहरे भाईचारे और मजबूत रक्षा सहयोग को और भी मजबूत करने के उद्देश्य से भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने हाल ही में नेपाल का पांच दिवसीय सफल दौरा किया। इस दौरे ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा दी, जिसमें सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों के साथ-साथ सुरक्षा संबंधों को भी और अधिक सुदृढ़ किया गया।
Indian Army Chief Nepal Visit: गोरखा भारतीय सेना के पूर्व सैनिकों से मुलाकात
जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने पोखरा में भारतीय सेना के गोरखा पूर्व सैनिकों और वीर नारियों से मिलकर उनका हाल-चाल लिया। इस दौरान, उन्होंने भारतीय सेना के प्रति उनके आभार को स्वीकार किया और उन्हें यह भरोसा दिलाया कि भारतीय सेना उनके कल्याण के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहेगी। जनरल द्विवेदी ने ईसीएचएस (ECHS) नेटवर्क के विस्तार के बारे में भी जानकारी दी, जिसमें नेपाल में नए पॉलीक्लिनिक खोले जाएंगे और अस्पतालों का पैनल भी बढ़ाया जाएगा।
नेपाल के सेना प्रमुख को भारत आने का निमंत्रण
दौरे के दौरान जनरल द्विवेदी ने नेपाल के सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल को भारत आने का औपचारिक निमंत्रण दिया। यह निमंत्रण दोनों सेनाओं के बीच सहयोग को और बढ़ाने के उद्देश्य से दिया गया।
नेपाल के पूर्व सैनिकों ने भारतीय सेना की अडिग मदद और समर्थन के लिए गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और नेपाल के बीच दोस्ती और आपसी सम्मान की मजबूत नींव है, जो समय के साथ और भी गहरी होती जा रही है। इस कार्यक्रम में भारतीय सेना के प्रमुख के साथ एक भावुक पुनर्मिलन भी हुआ, जब उन्होंने अपनी बटालियन के सूबेदार मेजर और मानद कैप्टन गोपाल बहादुर थापा से मुलाकात की। यह व्यक्तिगत मुलाकात भारतीय सेना के भीतर के संबंधों की गहरी मानवीयता और स्नेह को दर्शाती है।
भारत-नेपाल रक्षा सहयोग पर जोर
जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल, प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, और रक्षा मंत्री मंभीर राय से उच्च स्तरीय बैठकें कीं। इन बैठकों में भारत और नेपाल के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा की गई। इस दौरान, उन्होंने दोनों सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण सहयोग, और क्षमता विकास के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। जनरल द्विवेदी ने नेपाल सेना के प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल के साथ भी बातचीत की और दोनों देशों के बीच मजबूत सैन्य संबंधों की दिशा पर विचार किया।
नेपाल में भारतीय सेना के सम्मान में विशेष सम्मान समारोह
नेपाल दौरे के दौरान जनरल द्विवेदी ने बिर स्मारक, तुंडिखेल पर नेपाल के वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने नेपाली सेना मुख्यालय में गार्ड ऑफ ऑनर की सलामी भी ली। इस यात्रा के दौरान जनरल द्विवेदी को नेपाल सेना का मानद जनरल रैंक प्रदान किया गया, जो दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों की गहरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साझेदारी का प्रतीक है।
संस्कृति और सामाजिक संबंधों की नई दिशा
इस यात्रा के दौरान, जनरल द्विवेदी ने भारतीय और नेपाली सेनाओं के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को बढ़ाने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने शिवपुरी स्थित नेपाल सेना कमांड और स्टाफ कॉलेज में “युद्ध की बदलती प्रकृति” पर एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने दोनों देशों के सैन्य नेतृत्व को साझा चुनौतियों और अवसरों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।
जनरल उपेंद्र द्विवेदी का नेपाल दौरा भारतीय सेना और नेपाली सेना के बीच मजबूत और स्थिर साझेदारी को और भी मजबूत करने का एक ऐतिहासिक अवसर था। इस यात्रा ने न केवल सैन्य संबंधों को बढ़ाया बल्कि भारत और नेपाल के लोगों के बीच दोस्ती और सम्मान की एक नई मिसाल पेश की है।
यह दौरा भारतीय और नेपाली सेनाओं के बीच सहयोग और साझा सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को सशक्त करेगा, जिससे दोनों देशों के बीच एक मजबूत और पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंध स्थापित होगा।
Apache Helicopters: भारतीय सेना को दिसंबर 2024 में ‘टैंक किलर’ के नाम से मशहूर पहले तीन AH-64E अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर (Apache Helicopters) मिलने वाले हैं। यह डिलीवरी पश्चिमी सेक्टर में भारतीय सेना की हवाई युद्ध क्षमता को मजबूत करेगा। हालांकि, यह डिलीवरी छह महीने की देरी से हो रही है, जिसका कारण वैश्विक सप्लाई चेन में आई दिक्कतें हैं।
पहले इन हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी फरवरी 2024 में होनी थी, लेकिन जरूरी कंपोनेंट्स की सप्लाई में देरी के चलते इसे टालना पड़ा। अब बोइंग ने पुष्टि की है कि नई समय-सीमा के तहत दिसंबर 2024 से डिलीवरी शुरू हो जाएगी। इसके बाद अन्य बैचों की सप्लाई भी तय समयसीमा के मुताबिक की जाएगी।
Apache Helicopters: रेगिस्तानी इलाकों में तैनाती की योजना
अपाचे हेलीकॉप्टरों को पाकिस्तान से सटी भारतीय सेना देश के पश्चिमी सीमा के रेगिस्तानी क्षेत्रों में तैनात करेगी। इन इलाकों में बड़े और खुले भूभागों की वजह से ऑपरेशनल चुनौतियां रहती हैं, जिनका सामना अपाचे कर सकता है। यह हेलीकॉप्टर दुश्मन के खिलाफ तेज और सटीक कार्रवाई करने के साथ-साथ जमीनी बलों को एयर सपोर्ट देने में सक्षम है। पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान को जवाब देने के लिए अपाचे हेलीकॉप्टर बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अपाचे हेलीकॉप्टर ने अफगानिस्तान और खाड़ी युद्ध में अपनी ताकत पहले ही साबित की है। रेगिस्तानी और खुले इलाकों में यह हेलीकॉप्टर बेहद प्रभावी साबित होता है।
451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन में तैनात होंगे अपाचे हेलीकॉप्टर, तैयारियां पूरी
भारतीय सेना के पहले अपाचे स्क्वाड्रन की तैनाती जोधपुर के पास नागतलाओ में स्थित 451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन में की जाएगी। यह स्क्वाड्रन इस साल 15 मार्च को पाकिस्तान की सीमा को ध्यान में रखते हुए स्थापित की गई थी। अपाचे हेलीकॉप्टरों के संचालन के लिए यह बेस पूरी तरह से तैयार है।
बेस पर ट्रेनिंग और तैयारियां पूरी
बेस पर बोइंग की तकनीकी टीम पहले ही ग्राउंड और मेंटेनेंस एयर स्टाफ को जरूरी ट्रेनिंग दे चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, जब यह स्क्वाड्रन बनाई गई थी, तब यह उम्मीद थी कि अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी बोइंग जल्द ही हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी शुरू कर देगी। हालांकि, विभिन्न कारणों से डिलीवरी में देरी होती रही।
सेना में दूसरा अटैक हेलीकॉप्टर
देश में बने लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) प्रचंड के बाद, अपाचे भारतीय सेना का दूसरा अटैक हेलीकॉप्टर होगा। इन हेलीकॉप्टरों को सेना की मारक क्षमता बढ़ाने और दुश्मन के खिलाफ तेजी से कार्रवाई के लिए तैनात किया जाएगा। भारतीय सेना 11 और अपाचे हेलीकॉप्टरों की मांग कर रही है। यह मांग सेना की क्षमताओं को और मजबूत करने के उद्देश्य से की गई है।
4500 करोड़ का सौदा और अमेरिकी ट्रेनिंग
2020 में रक्षा मंत्रालय ने लगभग 4100 करोड़ रुपये की लागत से छह अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर की खरीद का ऑर्डर दिया था। इस समझौते के तहत बोइंग ने भारतीय वायुसेना के छह पायलटों और 24 तकनीशियनों को अमेरिका में ट्रेनिंग देने का भी प्रावधान किया था।
स्क्वाड्रन के लिए क्यों है अपाचे खास?
451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन को अपाचे हेलीकॉप्टरों के जरिए भारतीय सेना की ताकत को रेगिस्तानी और सीमावर्ती इलाकों में मजबूत करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। अपाचे हेलीकॉप्टर अपनी उन्नत तकनीक, सटीक हमले की क्षमता और दुश्मन की निगरानी के लिए जाने जाते हैं। इनकी तैनाती से भारतीय सेना को जमीनी बलों को हवाई समर्थन देने और दुश्मन के ठिकानों पर त्वरित और सटीक हमले करने में मदद मिलेगी।
डिलीवरी में देरी के बावजूद, स्क्वाड्रन में अपाचे के शामिल होने से भारतीय सेना की हवाई क्षमताओं में बड़ी बढ़ोतरी होगी। यह कदम देश की सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत करेगा।
वायुसेना और सेना के बीच तालमेल
भारतीय वायुसेना (IAF) पहले से ही 22 AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टरों का ऑपरेट कर रही है, जिन्हें 2019 और 2020 के बीच शामिल किया गया था। भारतीय सेना ने 2020 में इन हेलीकॉप्टरों के लिए छह अपाचे का सीधा कॉन्ट्रैक्ट किया था। यह पहली बार है जब सेना की एविएशन विंग में अपाचे हेलीकॉप्टर शामिल किए जा रहे हैं। इनसे सेना और वायुसेना के बीच ऑपरेशनल तालमेल और बेहतर होगा, जिससे युद्ध की तैयारियों को और मजबूती मिलेगी।
आपूर्ति में देरी और आत्मनिर्भरता की ओर कदम
हालांकि अपाचे की डिलीवरी में देरी की मुख्य वजह ग्लोबल सप्लाई चेन में देरी रह रही है, जो कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक तनावों के कारण पैदा हुई। वहीं, इन हालात ने “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों के तहत रक्षा उत्पादन को स्थानीय स्तर पर बढ़ाने की जरूरतों को भी जोर दिया है।
बोइंग और टाटा बोइंग एयरोस्पेस लिमिटेड (TBAL) के बीच हैदराबाद में अपाचे हेलीकॉप्टरों के फ्यूज़लेज निर्माण को लेकर सहयोग एक सकारात्मक पहल है। इससे भारत में रक्षा उत्पादन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में विदेशी निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी।
अपाचे की विशेषताएं और भूमिका
AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर अत्याधुनिक हथियार प्रणाली और उन्नत एवियोनिक्स से लैस हैं। ये हेलीकॉप्टर न केवल दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले कर सकते हैं, बल्कि खुफिया जानकारी जुटाने और दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
अपाचे हेलीकॉप्टरों की तैनाती से भारतीय सेना की पश्चिमी सीमा पर रक्षा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। रेगिस्तानी और अर्ध-शुष्क इलाकों में ये प्लेटफॉर्म जमीनी बलों को न केवल हवाई समर्थन देंगे, बल्कि दुश्मन के खिलाफ सटीक हमलों और टोही अभियानों को अंजाम देने में भी मदद करेंगे।
अपाचे हेलीकॉप्टर की विशेषताएं
अपाचे हेलीकॉप्टर को दुनिया के सबसे घातक अटैक हेलीकॉप्टरों में गिना जाता है।
इंजन और पावर:
इसमें जनरल इलेक्ट्रिक के 2 T700-GE-701 टर्बोशाफ्ट इंजन लगे हैं।
यह 1409 किलोवॉट की पावर पैदा करते हैं।
अधिकतम रफ्तार 293 किलोमीटर प्रति घंटा है।
वजन और क्षमताएं:
बिना पेलोड के इसका वजन 5165 किलोग्राम है।
यह 10,433 किलोग्राम तक वजन ले जा सकता है।
हेलीकॉप्टर की लंबाई 58.2 फीट और ऊंचाई 12.8 फीट है।
अत्याधुनिक हथियार:
इसमें 114 हेलफायर और स्टिंगर मिसाइलें लगाई जा सकती हैं।
इसमें हाइड्रा रॉकेट और 30 एमएम की चेन गन भी है, जिसमें 1200 राउंड्स होते हैं।
दुश्मन के इलाकों को बर्बाद करने के लिए एक हेलीकॉप्टर से ड्रोन भी कंट्रोल किए जा सकते हैं।
नाइटविजन और सेंसर:
हेलीकॉप्टर में नोज माउंटेड सेंसर सूट है, जो नाइटविजन की सुविधा प्रदान करता है।
यह हेलीकॉप्टर रात के समय भी सटीक निशाना लगाने में सक्षम है।
बता दें, कि पहले बैच की डिलीवरी के साथ, भारतीय सेना को एडवांस हवाई युद्ध उपकरण मिलेंगे, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा को और मजबूत करेंगे। यह देरी भले ही चुनौतीपूर्ण रही हो, लेकिन इससे भारत को अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता को मजबूत करने और आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ने का सबक भी मिला है।
SC Slams Centre and Army: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सेना को कड़ी फटकार लगाई है। मामला एक शहीद जवान की विधवा को लेकर था, जिनकी पेंशन पर सेना और सरकार ने कोर्ट में अपील दायर की थी। कोर्ट ने इसे “अनुचित और कठोर” करार देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अपील करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि देश के लिए अपनी जान देने वाले जवानों और उनके परिवारों के प्रति असंवेदनशीलता भी है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला नाइक इंदरजीत सिंह का है, जो 2013 में जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान एक आतंकवाद विरोधी गश्ती में शामिल थे। कड़ी ठंड और दुर्गम परिस्थितियों में गश्त करते हुए उन्हें अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई। समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण उनकी मौत हो गई। उनके कमांडिंग ऑफिसर ने इसे “युद्ध हताहत” (Battle Casualty) के रूप में वर्गीकृत किया, लेकिन उनकी पत्नी को केवल स्पेशल फैमिली पेंशन दी गई, जिसमें कम फायदे मिलते हैं।
इंदरजीत सिंह की पत्नी ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) का रुख किया। 2019 में, न्यायाधिकरण ने सेना को आदेश दिया कि उनकी पत्नी को लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन के साथ-साथ बकाया राशि और मुआवजा दिया जाए। इसके बाद सेना और केंद्र सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस मामले में सरकार की अपील पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “वह इस देश के सैनिक थे और आपके लिए काम कर रहे थे। आप इस तरह के मामले में अपील कैसे कर सकते हैं? यह बहुत कठोर है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में अपील करना विधवाओं और उनके परिवारों के लिए आर्थिक और मानसिक पीड़ा का कारण बनता है। न्यायालय ने आगे कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों का था, जहां सैनिक ने कठिन मौसम और दुर्गम इलाकों में अपनी ड्यूटी निभाई। ऐसे में उनकी विधवा को लाभ से वंचित करना अन्यायपूर्ण है।
सरकार की दलील और कोर्ट का जवाब
सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने तर्क दिया कि “युद्ध हताहत” और “शारीरिक हताहत” (Physical Casualty) में अंतर है। उन्होंने कहा कि सभी मामलों में लिबरलाइज्ड पेंशन देना उन सैनिकों के योगदान को कमजोर कर सकता है, जो सीधे युद्ध या दुश्मन की कार्रवाई में मारे गए हैं।
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला अलग है क्योंकि सैनिक ऑपरेशनल ड्यूटी पर थे और कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी जान गंवाई। अदालत ने कहा, “आप यह नहीं कह सकते कि उनकी पत्नी इस पेंशन की हकदार नहीं है। यह बेहद अनुचित है।”
3,000 लंबित अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि रक्षा मंत्रालय द्वारा ऐसी 3,000 अपीलें विभिन्न उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। ये सभी मामले मृत्यु और विकलांगता लाभ से संबंधित हैं, जिन्हें विभिन्न न्यायाधिकरणों ने मंजूरी दी थी।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी अपीलें केवल विधवाओं और उनके परिवारों पर बोझ बढ़ाती हैं। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह ऐसे मामलों में नियम तय करेगा और सरकार व सेना पर अनावश्यक अपीलों के लिए वास्तविक लागत (Actual Costs) वसूलेगा।
न्यायाधिकरण का आदेश
AFT ने 2019 में दिए गए अपने आदेश में सिंह की मृत्यु को “युद्ध हताहत” मानते हुए उनकी पत्नी को लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन देने का निर्देश दिया था। इसमें जनवरी 2013 से बकाया राशि और एकमुश्त अनुग्रह राशि (Ex-Gratia) शामिल थी। इसके अलावा, आदेश में देरी होने पर ब्याज का प्रावधान भी रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल शहीद जवानों और उनके परिवारों के प्रति सम्मान दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि ऐसे मामलों में न्याय हो। कोर्ट ने कहा कि सरकार और सेना को इन मामलों में संवेदनशीलता और निष्पक्षता दिखाने की जरूरत है। इस दिशा में विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने का भरोसा देते हुए, शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। वहीं, यह मामला उन हजारों सैनिकों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अपने हक के लिए लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
Teaser missile: इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने हाल ही में एक अत्याधुनिक ‘टीजर’ मिसाइल को पेश किया है, जिसे गाइडेड हथियारों की दुनिया में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह मिसाइल अपनी अनोखी गाइडेंस टेक्नोलॉजी के चलते चर्चा में है। आम गाइडेड मिसाइलों से अलग, ‘टीजर’ एक बाहरी ऑप्टिकल साइट पर बेस्ड है, न कि बिल्ट-इन होमिंग सेंसर पर। इस तकनीक ने इसे हल्की और सामरिक मिसाइलों की श्रेणी में खास मुकाम हासिल हुआ है। IAI ने इसे बनाने और बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए भारत जैसे देशों के साथ साझेदारी करने की इच्छा जताई है।
क्या है ‘टीजर’ मिसाइल की खासियत
टीजर मिसाइल को खासतौर पर इन्फैंट्री यूनिट्स और विशेष सैन्य अभियानों के लिए डिजाइन किया गया है। इसका वजन पांच पाउंड से भी कम है और इसे कंधे पर रखकर लॉन्च किया जा सकता है। इसकी यही खासियत ही इसे ग्राउंड फोर्सेस के लिए खास बनाती है।
टीजर में ऑटोमैटिक कमांड टू लाइन-ऑफ-साइट (ACLOS) गाइडेंस तकनीक का इस्तेमाल होता है। यह ऑपरेटर द्वारा एक बाहरी उपकरण, जिसे ‘टीजर-साइट’ कहा जाता है, की मदद से कंट्रोल होती है। इस मिसाइल की अधिकतम मारक क्षमता 2.5 किलोमीटर (करीब 1.6 मील) है।
इसके गाइडेंस सिस्टम की एक और खासियत यह है कि इसे GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इसका मतलब यह है कि इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के दौरान इस मिसाइल पर GNSS जैमिंग और स्पूफिंग का कोई असर नहीं पड़ता। वहीं, टीजर की गति 200 मीटर प्रति सेकंड है, जो इसे हल्के ऑर्मर्ड व्हीकल्स, लाइट स्ट्रक्चर्स और एंटी पर्सनल टारगेट्स को मार गिराने में सक्षम बनाती है।
भारत को प्राथमिकता क्यों?
IAI ने टीजर मिसाइल के पहले डेवलपमेंट फेज को पूरा कर लिया है और अब उत्पादन बढ़ाने के लिए साझेदार ढूंढ रही है। कंपनी का लक्ष्य है कि उत्पादन की क्षमता को वैश्विक स्तर पर फैलाया जाए, ताकि स्थानीय मांग के साथ-साथ निर्यात को भी पूरा किया जा सके। भारत को IAI ने उत्पादन के लिए प्राथमिकता दी है, क्योंकि यहां रक्षा क्षेत्र में बढ़ते अवसर और सहयोग के अनुकूल माहौल मौजूद है।
इस साझेदारी की जरूरत इसलिए भी महसूस हो रही है क्योंकि इजरायल के घरेलू उत्पादन केंद्र गाजा और लेबनान में चल रहे सैन्य अभियानों की वजह से दबाव में हैं। ऐसे में, भारत के साथ मिलकर उत्पादन शुरू करना IAI के लिए एक रणनीतिक और व्यावसायिक रूप से फायदेमंद कदम हो सकता है।
भारत-इजरायल रक्षा सहयोग की मजबूती
भारत और इजरायल का रक्षा संबंध लंबे समय से मजबूत रहा है। भारत, जो विश्व के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है, अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में IAI के साथ ‘टीजर’ मिसाइल का निर्माण करना भारत के लिए न केवल एक तकनीकी सफलता होगी, बल्कि यह ‘मेक इन इंडिया’ और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को भी मजबूत करेगा।
भारत में सस्ती उत्पादन लागत और अनुकूल सरकारी नीतियां IAI के लिए इसे एक आदर्श साझेदार बनाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस सहयोग से न केवल इजरायल को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि भारत को अत्याधुनिक रक्षा तकनीक हासिल करने और वैश्विक रक्षा निर्यात बाजार में अपनी पहचान बनाने का अवसर भी मिलेगा।
नई साझेदारी से मजबूत होंगे संबंध
यह सहयोग भारत और इजरायल के बीच एक नई साझेदारी को जन्म देगा, जो दोनों देशों की ताकतों को जोड़ने का काम करेगा। जहां एक ओर भारतीय कंपनियों को नई तकनीकों को सीखने और समझने का मौका मिलेगा, वहीं इजरायल को अपने अत्याधुनिक हथियारों के उत्पादन में बढ़त मिलेगी।
भारत जैसे देश, जो अपनी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है, उसके लिए यह मिसाइल तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। ‘टीजर’ का निर्माण न केवल भारतीय सेना को नई क्षमताओं से लैस करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक हथियार उद्योग में एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में भी स्थापित करेगा।
IAI और भारत के बीच इस संभावित सहयोग से दोनों देशों को सामरिक, आर्थिक और तकनीकी लाभ मिलेगा। यह एक ऐसी पहल है जो केवल रक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इससे स्थानीय उत्पादन, रोजगार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी मजबूती मिलेगी। ‘टीजर’ मिसाइल का भारत में उत्पादन रक्षा क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत कर सकता है।