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General’s Jottings: क्यों खतरे में हैं चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद? वेस्टर्न कमांड के पूर्व प्रमुख ले. जन. केजे सिंह ने क्यों जताई इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता?

General’s Jottings: भारतीय सेना के पश्चिमी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के जे सिंह का कहहना है कि भारत के आर्थिक केंद्र, जैसे चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद, न केवल विकास के प्रतीक हैं बल्कि हमारी सुरक्षा रणनीति के अहम हिस्से होने चाहिए। हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में देश के आर्थिक और सुरक्षा संतुलन पर उन्होंने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भारत के दक्षिणी हिस्से में मौजूद आर्थिक केंद्र अब वैश्विक व्यापार और निवेश का केंद्र बन चुके हैं। इन शहरों की बढ़ती आर्थिक महत्ता को देखते हुए, इनके लिए एक विशेष सुरक्षा ढांचा तैयार करना बेहद ज़रूरी है।

General’s Jottings: Why Are Chennai, Bengaluru, and Hyderabad at Risk? Former Western Command Chief Lt. Gen. KJ Singh Raises Concerns Over Their Security

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के जे सिंह ने कहा कि चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर सिर्फ आर्थिक हब ही नहीं हैं, बल्कि हमारी सुरक्षा प्राथमिकताओं का केंद्र भी बनने चाहिए। जनरल सिंह ने कहा, “पारंपरिक रूप से हमारी सेना पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं पर खतरों के लिए तैयार रही हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि इन आर्थिक केंद्रों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए।”

समुद्री व्यापार और अंतरराष्ट्रीय निवेश का प्रमुख केंद्र

उन्होंने कहा कि चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर न केवल भारत की आर्थिक रीढ़ बन चुके हैं, बल्कि साइबर सुरक्षा, बुनियादी ढांचे की सुरक्षा, और आतंकी खतरों के मद्देनज़र इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण हो गया है। सिंह ने बताया कि यह क्षेत्र समुद्री व्यापार और अंतरराष्ट्रीय निवेश का प्रमुख केंद्र है।

उन्होंने सुझाव दिया कि इन क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए “विशिष्ट रणनीतिक योजना और स्थायी सुरक्षा व्यवस्था” होनी चाहिए। उनके अनुसार, “आर्थिक सुरक्षा अब सिर्फ अर्थव्यवस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह रणनीतिक मामलों का अहम हिस्सा बन चुकी है।”

थिंक टैंक की जरूरत

जनरल सिंह ने भारतीय सशस्त्र बलों में थिंक टैंक की स्थापना पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि देश को सुरक्षा के मुद्दों पर एक पेशेवर दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। उन्होंने आगाह किया कि थिंक टैंक की स्थापना में दोहराव और संसाधनों की बर्बादी से बचना चाहिए।

सिंह ने सेना के कमांड स्तर पर थिंक टैंकों की ज़रूरत को स्पष्ट करते हुए कहा, “हमें न केवल मौजूदा मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए, बल्कि भविष्य के खतरों के लिए भी रणनीति बनानी चाहिए।”

सीमाओं पर नई चुनौतियां और समाधान

सिक्किम कॉर्प्स के पूर्व प्रमुख के रूप में जनरल सिंह ने कहा कि पूर्वी सीमा पर नई चुनौतियां उभर रही हैं। उन्होंने सशस्त्र बलों के पुनर्गठन और केंद्रीय सशस्त्र बलों को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

General’s Jottings: Why Are Chennai, Bengaluru, and Hyderabad at Risk? Former Western Command Chief Lt. Gen. KJ Singh Raises Concerns Over Their Security

‘General’s Jottings’: आर्मी चीफ को की भेंट

इस कार्यक्रम में जनरल सिंह ने अपनी पुस्तक ‘जनरल्स जॉटिंग्स: नेशनल सिक्योरिटी, कॉन्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटेजीज’ भी प्रस्तुत की। उन्होंने सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी को यह पुस्तक भेंट की।

यह भी पढ़ें: Book Review Generals Jottings: अपनी नई किताब में Lt. Gen (रिटायर्ड) केजे सिंह ने उठाए राष्ट्रीय सुरक्षा और यूक्रेन युद्ध पर सवाल

पुस्तक में उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य का भी विश्लेषण किया है। उन्होंने लिखा, “यूक्रेन के सैनिकों में थकान और पश्चिमी सहयोगियों की निष्क्रियता ने संघर्ष को और मुश्किल बना दिया है।”

जनरल सिंह ने बताया कि “रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है, और इसमें निर्णायक परिणाम की संभावना कम होती दिख रही है।”

कैसे होंगी भविष्य की लड़ाईयां

सिंह ने भविष्य में संभावित वैश्विक संघर्षों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि दुनिया अब ‘कॉरिडोर के संघर्ष’ की ओर बढ़ रही है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) के बीच प्रतिस्पर्धा इसे और बढ़ा सकती है।

उन्होंने कहा, “भू-अर्थशास्त्र का उपयोग अब प्रतिबंधों के माध्यम से किया जा रहा है, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में। बीआरआई और आईएमईसी के बीच यह संघर्ष भविष्य की रणनीतिक दिशा तय करेगा।”

जनरल सिंह का कहना है कि भारत को अपनी सुरक्षा रणनीतियों को न केवल पारंपरिक दृष्टिकोण से बल्कि आधुनिक और व्यापक दृष्टिकोण से विकसित करना होगा। “आर्थिक सुरक्षा के बिना भारत का विकास अधूरा है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे आर्थिक हब वैश्विक खतरों से सुरक्षित रहें,” उन्होंने कहा।

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MiG-21: 1971 की जंग में अहम भूमिका निभाने वाले “उड़ते ताबूत” को मिली लाइफलाइन! वायुसेना अब क्यों नहीं करना चाहती रिटायर

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MiG-21: “उड़ता ताबूत” या Flying Coffin के नाम से मशहूर भारतीय वायुसेना (IAF) का मिग-21 बायसन एक बार फिर से चर्चा में है। 1960 के दशक से भारत के आसमान पर राज करने वाला मिग-21 बायसन पिछले कुछ दशकों से हो रहे हादसों के चलते भारतीय वायुसेना से फेज आउट होने की प्रक्रिया में है, जो पिछले कुछ समय से चरणबद्ध तरीके से वायुसेना से बाहर किया जा रहा है। मिग-21 बायसन को 2025 तक पूरी तरह से वापस लिए जाने की डेडलाइन तय की गई है। लेकिन अब यह डेडलाइन और आगे खिसक सकती है।

MiG-21: The Iconic 'Flying Coffin' of 1971 Gets a Lifeline! Tejas Jet Production Challenges Force IAF to Extend Service

MiG-21: तेजस एमके1ए में देरी बनी वजह

भारतीय वायु सेना के सूत्रों ने बताया कि स्वदेशी तेजस एमके1ए फाइटर जेट्स के उत्पादन में देरी के चलते मिग-21 बायसन की फेज आउट करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस एमके1ए, जो अत्याधुनिक तकनीक और मल्टीरोल क्षमताओं से लैस है, मिग-21 का स्थान लेने के लिए तैयार है। परंतु इंजन सप्लाई की समस्या के कारण इसका उत्पादन समयसीमा से पीछे चल रहा है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान के बीकानेर स्थित नल एयरबेस, जहां वर्तमान में मिग-21 की आखिरी ऑपरेशन स्क्वाड्रन तैनात है, उसे जुलाई 2024 में पहले तेजस स्क्वाड्रन बनाया जाना था। परंतु तेजस की आपूर्ति में देरी ने इस योजना की राह में रोड़े अटका दिए हैं।

1964 में भारत के पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में शामिल किए गए मिग-21 ने दक्षिण एशिया में हवाई युद्ध के तौर-तरीकों को बदल दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बांग्लादेश के गठन में योगदान दिया। 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक में इसकी मौजूदगी ने इसे भारत के सैन्य इतिहास का अभिन्न हिस्सा बना दिया।

हालांकि, मिग-21 का इतिहास विवादों से भी अछूता नहीं रहा। इसे “फ्लाइंग कॉफिन” का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसके फ्लाइट ऑपरेशन के दौरान 400 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें कई पायलटों ने अपनी जान गंवाई। बावजूद इसके, मिग-21 की क्षमता और इसकी रणनीतिक उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।

वायुसेना की मौजूदा जरूरत

वर्तमान में भारतीय वायुसेना में मिग-21 बायसन के दो स्क्वाड्रन हैं, जिनमें कुल 31 विमान शामिल हैं। जबकि वायुसेना को कुल 42 स्क्वाड्रन जरूरत है, लेकिन फिलहाल यह आंकड़ा केवल 30 के करीब है। ऐसे में तेजस एमके1ए जैसे अत्याधुनिक विमानों की तैनाती बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।

मिग-21 बायसन को सेवा विस्तार देने का मतलब यह है कि भारतीय वायुसेना को अपनी ऑपरेशनल कैपेबिलिटी बनाए रखने के लिए अभी भी पुराने विमानों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

तेजस एमके1ए, में Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार, एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और ज्यादा क्षमता वाले हथियार ले जाने की क्षमता है। लेकिन उत्पादन में देरी के चलते न केवल वायुसेना के ऑपरेशंस प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

एक रक्षा विशेषज्ञ ने बताया, “मिग-21 का सेवा विस्तार भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को बनाए रखने के लिए एक रणनीतिक कदम है, लेकिन यह भी जरूरी है कि तेजस जैसे स्वदेशी विमानों का उत्पादन जल्द से जल्द शुरू हो।”

भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “मिग-21 ने वर्षों तक हमारी वायुसेना की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया है। हालांकि अब समय आ गया है कि इसे आराम दिया जाए और अत्याधुनिक विमानों को उसकी जगह दी जाए।”

मिग-21 बायसन, जिसने अपनी उपयोगिता और इतिहास के माध्यम से भारतीय वायुसेना को परिभाषित किया है, अब अपने अंतिम दिनों की ओर बढ़ रहा है। हालांकि, तेजस एमके1ए के आने से भारतीय वायुसेना की ऑपरेशनल कैपेबिलिटी को मजबूती मिलेगी।

China Drone: चीन की यह ‘बदनाम’ ड्रोन कंपनी मणिपुर और नागालैंड में रच रही बड़ी साजिश! पंजाब को भी तबाह करने में है इसका हाथ

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China Drone: चीन की ड्रोन निर्माता कंपनी DJI विवादों में है। खबरों के मुताबिक, यह कंपनी म्यांमार में भारतीय सीमा के पास और रूस को युद्ध के लिए घातक उपकरण जैसे बमवर्षक हेक्साकॉप्टर और 60 मिमी मोर्टार शेल्स सप्लाई कर रही है। म्यांमार में ये उपकरण उत्तर-पूर्वी राज्यों मणिपुर और नागालैंड के नजदीक इस्तेमाल हो रहे हैं। वहीं, रूस में इन्हें यूक्रेन के खिलाफ संघर्ष में इस्तेमाल किया जा रहा है।

China Drone: This Controversial Chinese DJI Drone Company Fuels Conspiracy in Manipur and Nagaland, Threatens Punjab's Security!

म्यांमार में China Drone का इस्तेमाल

म्यांमार में इन ड्रोन का उपयोग उन इलाकों में किया जा रहा है जो भारत की सीमा के नजदीक हैं। इन इलाकों में हथियारबंद समूह सक्रिय हैं, और इनका भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए खतरा बढ़ गया है। हेक्साकॉप्टर, एक प्रकार का ड्रोन जो भारी भार उठाने और सटीक हमले करने में सक्षम है, म्यांमार के हथियारबंद समूहों द्वारा मोर्टार शेल्स गिराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

भारतीय सीमा के करीब इस प्रकार की गतिविधियां भारत के लिए सुरक्षा चिंता का विषय हैं। म्यांमार के कई क्षेत्रों में लंबे समय से सशस्त्र संघर्ष चल रहा है, और इस संघर्ष में एडवांस तकनीक के उपकरणों का इस्तेमाल हालात को और मुश्किल बना सकते हैं।

China Drone: This Controversial Chinese DJI Drone Company Fuels Conspiracy in Manipur and Nagaland, Threatens Punjab's Security!

रूस-यूक्रेन संघर्ष में ड्रोन का इस्तेमाल

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष में भी DJI के ड्रोन और मोर्टार शेल्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। खबरों के अनुसार, रूस ने युद्ध में अपने मिशनों को और प्रभावी बनाने के लिए इन ड्रोन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया है।

यूक्रेन के खिलाफ इन ड्रोन का इस्तेमाल रूस को रणनीतिक बढ़त देने के लिए किया जा रहा है। हेक्साकॉप्टर ड्रोन का उपयोग न केवल निगरानी के लिए बल्कि बम गिराने के लिए भी किया जा रहा है।

DJI को लेकर पहले भी विवाद उठ चुके हैं। कंपनी पर आरोप है कि वह अपनी ए़डवांस तकनीक को ऐसे जगहों में बेच रही है जहां यह मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए इस्तेमाल हो सकती है।

डीजेआई का कहना है कि वह सिर्फ व्यावसायिक उपयोग के लिए उपकरण बेचती है और सैन्य उद्देश्यों के लिए उनका उपयोग करना उनकी नीति के खिलाफ है। हालांकि, इस मामले में कंपनी की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

पंजाब में ड्रग्स तस्करी की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। हालिया घटनाओं ने यह खुलासा किया है कि पाकिस्तान सीमा पार से ड्रग्स पहुंचाने के लिए चीन निर्मित DJI ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान की तरफ से तस्कर इन ड्रोन के जरिए सीमावर्ती इलाकों में ड्रग्स, हथियार, और नकली करेंसी गिरा रहे हैं। ये ड्रोन रात के अंधेरे में उड़ान भरते हैं और GPS तकनीक का इस्तेमाल कर सटीक स्थान पर ड्रग्स गिराने में सक्षम हैं। पंजाब के अमृतसर और फिरोजपुर जिलों में सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने हाल के महीनों में कई ड्रोन पकड़े हैं।

भारतीय सीमा सुरक्षा बल और पंजाब पुलिस इस बढ़ती समस्या को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। BSF ने ड्रोन गतिविधियों को ट्रैक करने और उन्हें नष्ट करने के लिए एडवांस तकनीकों का सहारा लेना शुरू कर दिया है।

हाल में पकड़े गए ड्रोन के जरिए यह भी पता चला कि पाकिस्तान इन पर बड़ी रकम खर्च कर रहा है। एक ड्रोन की कीमत लाखों रुपये तक बैठती है।

पंजाब के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी DJI ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है। वहां यह देखा गया है कि ड्रोन का उपयोग न केवल ड्रग्स बल्कि आतंकवादी गतिविधियों के लिए हथियार भेजने के लिए भी हो रहा है।

भारत के लिए चुनौती

भारत के लिए यह मामला न केवल सुरक्षा बल्कि कूटनीति से जुड़ा है। मणिपुर और नागालैंड जैसे राज्यों के पास ड्रोन का यह इस्तेमाल भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों को इस मामले में सतर्क रहना होगा और इन क्षेत्रों में निगरानी बढ़ानी होगी।

भारत ने पहले भी म्यांमार के साथ मिलकर हथियारबंद समूहों के खिलाफ कार्रवाई की है। लेकिन अब, ड्रोन जैसे उन्नत तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।

MH-60R Seahawk Helicopters: अमेरिका ने MH-60R हेलिकॉप्टर के सपोर्ट सिस्टम की बिक्री के लिए दी मंजूरी, भारत की समुद्री सुरक्षा को मिलेगी मजबूती

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MH-60R Seahawk Helicopters: भारत और अमेरिका के बढ़ते रक्षा संबंधों को और मजबूती देते हुए अमेरिकी सरकार ने MH-60R मल्टी-रोल हेलिकॉप्टरों के लिए सर्पोर्ट सिस्टम और इक्विपमेंट्स की बिक्री को मंजूरी दी है। यह सौदा $1.17 बिलियन का है, जो अमेरिकी विदेश सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत किया जाएगा।

MH-60R Seahawk Helicopters: US Approves Sale of Support Systems to Strengthen India's Maritime Security

MH-60R Seahawk Helicopters: भारत की रक्षा क्षमताओं में बड़ा कदम

भारत ने फरवरी 2020 में $2.2 बिलियन के अनुबंध के तहत 24 MH-60R हेलिकॉप्टरों का ऑर्डर दिया था। इनमें से नौ हेलिकॉप्टर पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल हो चुके हैं। यह हेलिकॉप्टर विशेष रूप से पनडुब्बी रोधी युद्ध और समुद्री निगरानी के लिए डिजाइन किए गए हैं।

MH-60R हेलिकॉप्टर अत्याधुनिक उपकरणों से लैस हैं, जिनमें हेलफायर मिसाइल, MK-54 टॉरपीडो, और प्रिसिजन-किल रॉकेट शामिल हैं। इनके साथ मल्टी-मोड रडार और नाइट-विजन डिवाइस जैसी सुविधाएं भी हैं। मार्च 2024 में, भारतीय नौसेना ने कोच्चि स्थित INS गरुड़ा पर इन हेलिकॉप्टरों का पहला स्क्वाड्रन कमीशन किया था।

नई बिक्री में क्या है खास?

अमेरिकी डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (DSCA) ने अमेरिकी कांग्रेस को इस बिक्री की जानकारी दी है। भारत ने इस नए सौदे के तहत 30 मल्टीफंक्शनल इंफॉर्मेशन डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम-जॉइंट टैक्टिकल रेडियो सिस्टम, एडवांस डेटा ट्रांसफर सिस्टम, बाहरी फ्यूल टैंक, फॉरवर्ड-लुकिंग इन्फ्रारेड सिस्टम, और पहचानने व मित्र/दुश्मन को अलग करने वाले उपकरण (Identification Friend or Foe) मांगे हैं।

इसके अलावा, अन्य उपकरणों और सेवाओं में शामिल हैं:

  • स्पेयर और रिपेयर पार्ट्स
  • सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और मिशन प्लानिंग सिस्टम
  • संचार उपकरण
  • तकनीकी और लॉजिस्टिक्स सहायता सेवाएं
  • प्रशिक्षण और प्रशिक्षण उपकरण

रक्षा क्षमताओं में वृद्धि

अमेरिकी सरकार ने कहा कि यह प्रस्तावित बिक्री भारत की वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने की क्षमता को बढ़ाएगी। खासतौर पर पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमताओं को एडवांस करने में यह उपकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भारत की नौसेना के लिए यह सौदा न केवल रणनीतिक रूप से बल्कि तकनीकी दृष्टि से भी बड़ा कदम है।

बाइडन प्रशासन ने इस सौदे को अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए जरूरी बताया। अमेरिका का कहना है कि यह सौदा भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में मजबूत करेगा, जो हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत और अमेरिका पिछले कुछ सालों से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के खिलाफ मिलकर काम कर रहे हैं। इस तरह के उन्नत उपकरण भारत को अपने समुद्री क्षेत्रों में निगरानी और सुरक्षा के लिए एक मजबूत रणनीतिक बढ़त प्रदान करेंगे।

आने वाले सालों में और हेलिकॉप्टर शामिल होंगे

2025 तक, भारत सभी 24 MH-60R हेलिकॉप्टरों को नौसेना में शामिल कर लेगा। ये हेलिकॉप्टर समुद्री क्षेत्रों में गश्त, निगरानी, और पनडुब्बी रोधी अभियानों के लिए बेहद उपयोगी होंगे।

Harimau Shakti 2024: भारत और मलेशिया के सैन्य संबंधों को मजबूत करेगा ‘हरिमाऊ’, दोनों देशों के बीच शुरू हुआ विशेष संयुक्त सैन्य अभ्यास

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Harimau Shakti 2024: भारत और मलेशिया के बीच रक्षा संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास हरिमाऊ शक्ति 2024 का शुभारंभ हुआ। इस समारोह ने दोनों देशों की सेनाओं के बीच आपसी सहयोग को और मजबूती देने और क्षेत्रीय सुरक्षा में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।

Harimau Shakti 2024: Strengthening India-Malaysia Defense Ties Through Joint Military Exercise

Harimau Shakti 2024: समारोह की शुरुआत

समारोह की शुरुआत दोनों देशों की संयुक्त टुकड़ियों के शानदार मार्च पास्ट से हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी ने एक प्रभावशाली परेड का प्रदर्शन किया, जिसमें उनकी उच्च प्रशिक्षण और संचालनात्मक तत्परता को दिखाया गया। इस अवसर पर मलेशियाई सेना के ब्रिगेडियर जनरल शहीर हफीजुल बिन अब्द रहमान ने दोनों देशों की टुकड़ियों के कमांडरों और अभ्यास में शामिल अंपायरों को विशेष आर्म बैंड सौंपे।

Harimau Shakti 2024: Strengthening India-Malaysia Defense Ties Through Joint Military Exercise

सद्भावना के प्रतीक

कार्यक्रम के दौरान भारतीय और मलेशियाई सेना के अधिकारियों ने आपसी सद्भावना और सहयोग को दर्शाते हुए स्मृति चिह्नों का आदान-प्रदान किया। यह कदम दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक और सकारात्मक प्रयास था।

ब्रिगेडियर जनरल का संबोधन

अपने उद्घाटन भाषण में ब्रिगेडियर जनरल शहीर हफीजुल बिन अब्द रहमान ने इस अभ्यास को औपचारिक रूप से शुरू करते हुए कहा कि वर्तमान समय की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे संयुक्त सैन्य अभ्यास बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी अभियानों और शांति स्थापना कार्यों में इस तरह के सहयोग की भूमिका को रेखांकित किया।

Harimau Shakti 2024: Strengthening India-Malaysia Defense Ties Through Joint Military Exercise

तकनीकी प्रदर्शन

समारोह के बाद आधुनिक सैन्य उपकरणों और हथियारों का प्रदर्शन किया गया, जिसमें नेगेव एलएमजी, मिनी-आरपीए, अनकूल्ड एचएचटीआई, एमटीएमएसएल और एमजीएल जैसे उन्नत हथियार शामिल थे। इन हथियारों ने दर्शकों को दोनों देशों की सैन्य ताकत और तकनीकी प्रगति की झलक दिखाई।

संयुक्त प्रशिक्षण और सहयोग की भूमिका

हरिमाऊ शक्ति 2024 का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे की संचालनात्मक क्षमताओं और रणनीतियों से परिचित कराना है। यह अभ्यास आतंकवाद विरोधी अभियानों और शांति स्थापना कार्यों में समन्वय और साझेदारी को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।

इस अभ्यास के माध्यम से सैनिक न केवल एक-दूसरे के अनुभवों से सीखेंगे, बल्कि जमीनी हकीकत के आधार पर बेहतर तालमेल विकसित करने में भी सक्षम होंगे।

भारतीय रक्षा अटैच का योगदान

कार्यक्रम में भारत के डिफेंस अटैच कर्नल एस. प्रवीन ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने इस कार्यक्रम को दोनों देशों के सैन्य और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

साझेदारी की नई ऊंचाइयां

हरिमाऊ शक्ति 2024 जैसे अभ्यास दोनों देशों के लिए केवल सैन्य सहयोग का ही नहीं, बल्कि आपसी विश्वास और साझेदारी को मजबूत करने का भी अवसर हैं। यह अभ्यास न केवल सैन्य क्षेत्र में तकनीकी और रणनीतिक कौशल को बढ़ावा देता है, बल्कि दो देशों के बीच सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।

संयुक्त अभ्यास के दौरान सैनिकों को जमीनी संचालन, संघर्ष प्रबंधन और मानवीय सहायता जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा, दोनों सेनाएं अपने अनुभव साझा करेंगी और एक-दूसरे की चुनौतियों को समझकर समाधान खोजेंगी।

हरिमाऊ शक्ति 2024 भारत और मलेशिया की सेनाओं के लिए एक ऐसा मंच है, जहां वे एक-दूसरे से सीखते हुए क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करेंगे। यह अभ्यास दोनों देशों के रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा और आने वाले समय में क्षेत्रीय सुरक्षा में एक नई परिभाषा गढ़ेगा।

हरिमाऊ शक्ति 2024 सिर्फ एक सैन्य अभ्यास नहीं है, बल्कि यह भारत और मलेशिया के बीच एक गहरी साझेदारी और आपसी सहयोग का प्रतीक है। यह दोनों देशों के सैनिकों को एकजुट होने और एक साझा उद्देश्य की दिशा में काम करने का अवसर देता है। इस तरह के कार्यक्रम न केवल क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हमारे सैनिकों को आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए और अधिक तैयार करते हैं।

हरिमाऊ शक्ति 2024 भारतीय सेना की क्षमता और प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जो न केवल अपनी सीमाओं की सुरक्षा करती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और स्थिरता में भी योगदान देती है।

Defence: भारत की रक्षा तैयारियों को मजबूत करने के लिए DAC ने 21,772 करोड़ रुपये के 5 प्रस्तावों को दी मंजूरी

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Defence: रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने 3 दिसंबर 2024 को पांच प्रमुख डिफेंस इक्विपमेंट्स की खरीद को मंजूरी दे दी है। इन प्रस्तावों में कुल 21,772 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। इन उपकरणों का उद्देश्य भारतीय सेना की क्षमता को और मजबूत करना है और हमारी सुरक्षा में बढ़ोतरी करना है।

Defence: DAC Approves 5 Proposals Worth Rs. 21,772 Crores to Strengthen India's Defence Preparedness

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इन प्रस्तावों को मंजूरी दी। इन प्रस्तावों के तहत भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल को अत्याधुनिक रक्षा उपकरण प्राप्त होंगे, जो समुद्र और तटीय क्षेत्रों में सुरक्षा की स्थिति को और बेहतर करेंगे।

1. Defence: वाटर जेट फास्ट अटैक क्राफ्ट (Water Jet Fast Attack Crafts) की खरीद:

DAC ने भारतीय नौसेना के लिए 31 जल जेट फास्ट अटैक क्राफ्ट (NWJFACs) की खरीद को मंजूरी दी है। ये क्राफ्ट समुद्र के किनारे की निगरानी, गश्त, और खोज एवं बचाव कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे। इन क्राफ्टों का इस्तेमाल विशेष रूप से एंटी-पाइरेसी मिशनों में किया जाएगा, जो हमारे समुद्री क्षेत्र और द्वीप क्षेत्रों के आसपास सुरक्षा में मदद करेंगे। यह कदम समुद्री सुरक्षा को और मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएगा।

2. फास्ट इंटरसेप्टर क्राफ्ट (Fast Interceptor Craft) की खरीद:

भारतीय नौसेना के लिए 120 तेज इंटरसेप्टर क्राफ्ट (FIC-1) की भी खरीद को मंजूरी दी गई है। यह क्राफ्ट एयरक्राफ्ट कैरियर, डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट और पनडुब्बियों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होंगे। यह तेज क्राफ्ट तटीय रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और तटीय क्षेत्रों में सुरक्षा को बढ़ावा देंगे।

3. इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली (Electronic Warfare Suite):

DAC ने SU-30 MKI विमान के लिए एक उन्नत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली (EWS) की खरीद को मंजूरी दी है। इसमें एयरबॉर्न सेल्फ प्रोटेक्शन जैमर पॉड्स और अगला पीढ़ी का रडार वार्निंग रिसीवर शामिल है। यह प्रणाली SU-30 MKI को शत्रु के रडार और रक्षा प्रणालियों से बचाने में मदद करेगी और उसे शत्रु के विमानों और मिसाइलों से सुरक्षित रखते हुए मिशन में सफलता प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी। यह प्रणाली भारतीय वायु सेना की ताकत को और बढ़ाएगी, विशेष रूप से उन अभियानों में जहां शत्रु की हवाई रक्षा प्रणाली मौजूद होती है।

4. उन्नत लाइट हेलीकॉप्टर (Advanced Light Helicopters):

भारतीय तटरक्षक बल के लिए 6 उन्नत लाइट हेलीकॉप्टर (ALH-MR) की खरीद को भी मंजूरी दी गई है। ये हेलीकॉप्टर तटीय सुरक्षा और निगरानी को मजबूत करेंगे। तटीय क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन हेलीकॉप्टरों का विशेष रूप से उपयोग किया जाएगा। इसके साथ ही तटीय सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ये हेलीकॉप्टर तटरक्षक बल के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होंगे।

5. पुराने टैंक और विमानों की मरम्मत:

इसके अलावा, DAC ने T-72 और T-90 टैंकों, BMP वाहनों और सुखोई लड़ाकू विमानों के इंजन की ओवरहालिंग के लिए मंजूरी दी है। इससे इन महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों की सेवा जीवन में वृद्धि होगी और इन्हें और अधिक प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह कदम भारतीय सेना की ताकत को बनाए रखने में मदद करेगा और रक्षा प्रणाली की कार्यक्षमता को बढ़ाएगा।

बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत कदम

भारत के रक्षा विभाग द्वारा इन प्रस्तावों को मंजूरी देने का निर्णय आने वाले समय में हमारी सुरक्षा स्थिति को मजबूत करेगा। आजकल समुद्र और तटीय क्षेत्रों में बढ़ती चुनौतियों के बीच यह कदम बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। आतंकवाद, समुद्री लूटपाट और सीमा पार से होने वाली घुसपैठ जैसी समस्याओं को लेकर हमारी सेनाओं को हमेशा तैयार रहना होता है। इन नए उपकरणों के अधिग्रहण से भारतीय सेना और नौसेना की तैयारियों में और अधिक मजबूती आएगी।

SIPRI Arms Export: दुनियाभर में बढ़ा हथियारों का कारोबार, भारत की तीन बड़ी हथियार निर्माता कंपनियों ने गाड़े झंडे, आत्मनिर्भर भारत को मिली बड़ी कामयाबी

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SIPRI Arms Export: दुनिया के प्रमुख हथियार बनाने वाली कंपनियों की आय में 2023 में बड़ा इज़ाफा हुआ है। इस बढ़ोतरी की वजह दुनिया भर में जारी युद्ध, क्षेत्रीय तनाव और सुरक्षा को लेकर देशों का बढ़ता खर्च बताया जा रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, हथियारों की बिक्री में बढ़ोतरी लगभग हर क्षेत्र में दर्ज की गई है। खासकर रूस, मध्य पूर्व और एशिया में हथियार निर्माताओं का तगड़ा मुनाफा हासिल हुआ है।

SIPRI Arms Export: Global Arms Trade Soars, India's Top Three Manufacturers Shine, Major Boost for Aatmanirbhar Bharat

युद्ध और वैश्विक तनाव ने बढ़ाई हथियारों की मांग

2023 में वैश्विक स्तर पर हथियारों की मांग में बड़ा उछाल आया है। SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के शीर्ष 100 हथियार निर्माता कंपनियों ने अपनी आय में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की। इनमें से छोटे और मध्यम आकार के निर्माता कंपनियों ने तेज़ी से नए ऑर्डर पूरे करने में जबरदस्त तेजी दिखाई।

SIPRI के रिसर्चर लोरेंजो स्कारज़ाटो कहते हैं, “2023 में हथियारों की बिक्री में तेज़ी देखी गई, और यह रुझान 2024 में भी जारी रहने की संभावना है।” रिपोर्ट बताती है कि कई कंपनियां अपने उत्पादन को बढ़ाने और नए कर्मचारियों को हायर करने में लगी हुई हैं, जिससे यह साफ़ होता है कि वे भविष्य में और भी अधिक ऑर्डर की उम्मीद कर रही हैं।

अमेरिका: सबसे आगे, लेकिन चुनौतियां बरकरार

अमेरिका के 41 हथियार निर्माता कंपनियों ने कुल 317 बिलियन डॉलर का कमाई की, जो SIPRI की टॉप 100 कंपनियों की कुल आय का लगभग आधा है। हालांकि, कुछ बड़ी कंपनियां जैसे लॉकहीड मार्टिन और RTX को सप्लाई चेन में में आने वाली समस्याओं के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा है।

इन चुनौतियों के बावजूद, अमेरिका ने वैश्विक हथियार बाजार में अपना दबदबा बनाए रखा है। पिछले पांच वर्षों से SIPRI की टॉप 5 कंपनियां में अमेरिका की पोजिशन बरकरार है।

यूरोप में मामूली बढ़ोतरी

यूरोप की हथियार निर्माता कंपनियों की आय में केवल 0.2% की मामूली वृद्धि दर्ज की गई। इसकी वजह यह है कि कई यूरोपीय कंपनियां पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स पर काम कर रही थीं, जिसका असर उनकी आय पर असर पड़ा।

हालांकि, कुछ देशों जैसे जर्मनी, पोलैंड और नॉर्वे ने तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज की। जर्मनी की कंपनी राइनमेटल ने गोला-बारूद और टैंकों के उत्पादन में बढ़ोतरी की, जिससे उसकी आय में बड़ा इज़ाफा हुआ।

रूसी कंपनियों की आय बढ़ी

रूस की हथियार कंपनियों ने 2023 में 40% की आय वृद्धि दर्ज की। SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, यह वृद्धि मुख्य रूप से रोस्टेक के कारण हुई, जो कई हथियार निर्माताओं को कंट्रोल करती है।

रूस ने अपनी सेना के लिए टैंकों, मिसाइलों और ड्रोन जैसे हथियारों के उत्पादन में बड़ा इज़ाफा किया है। हालांकि, रूस के हथियार उत्पादन पर सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध ने इस बढ़ोतरी में इजाफा किया है।

भारत और दक्षिण कोरिया का प्रदर्शन शानदार

एशिया और ओशिनिया क्षेत्र में हथियारों की बिक्री में 5.7% की वृद्धि दर्ज की गई। दक्षिण कोरिया और जापान ने इस क्षेत्र में बढ़त बनाई। दक्षिण कोरिया की कंपनियों की आय में 39% की वृद्धि हुई, जबकि जापान की कंपनियों ने 35% की बढ़ोतरी दर्ज की।

भारत की तीन बड़ी हथियार निर्माता कंपनियों ने भी 5.8% की आय वृद्धि के साथ 6.7 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया। भारत सरकार की “आत्मनिर्भर भारत” योजना के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे भारत का प्रदर्शन भी हथियारों के निर्यात में लगातार बेहतर हो रहा है।

मध्य पूर्व: अभूतपूर्व बढ़ोतरी

मध्य पूर्व की हथियार कंपनियों ने 2023 में 18% की वृद्धि के साथ 19.6 बिलियन डॉलर की आय दर्ज की। इज़राइल की कंपनियों ने 13.6 बिलियन डॉलर की आय के साथ रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया। तुर्की की कंपनियों ने भी 24% की बढ़ोतरी दर्ज की।

भारत: आत्मनिर्भर बनने की ओर

भारत ने अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता को मजबूत करने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) जैसी कंपनियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत का लक्ष्य न केवल अपनी सुरक्षा जरूरतों को पूरा करना है, बल्कि वैश्विक हथियार बाजार में एक प्रमुख स्थान हासिल करना भी है।

सरकार की नीतियां भारतीय कंपनियों को नए अवसर प्रदान कर रही हैं। स्वदेशी उत्पादन के जरिए भारत न केवल विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता कम कर रहा है, बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा दे रहा है।

Indian Air Force: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में वायुसेना के अधिकारी के खिलाफ जांच जारी रखने का दिया आदेश

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Indian Air Force: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) बडगाम की तरफ से जारी दो आदेशों को रद्द करते हुए विशेष जांच दल (SIT) को वायुसेना के विंग कमांडर के खिलाफ चल रही जांच को जारी रखने का निर्देश दिया है। आरोपी विंग कमांडर पर एक महिला फ्लाइंग ऑफिसर ने यौन उत्पीड़न और बलात्कार का आरोप लगाया है।

Indian Air Force: Jammu-Kashmir and Ladakh High Court Orders Continuation of Investigation Against Air Force Officer in Sexual Harassment Case

क्या है मामला?

यह मामला 31 दिसंबर 2023 का है, जब महिला फ्लाइंग ऑफिसर ने आरोप लगाया कि श्रीनगर में ऑफिसर्स मेस में आयोजित न्यू ईयर पार्टी के दौरान विंग कमांडर ने उसका यौन उत्पीड़न किया। इस घटना के करीब नौ महीने बाद, 8 सितंबर 2024 को बडगाम पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) (जिसमें पद और अधिकार का दुरुपयोग कर बलात्कार करने का मामला आता है) के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

क्या कहा अदालत ने?

CJM बडगाम ने 10 और 16 अक्टूबर 2024 को क्रमशः दो आदेश जारी किए, जिनमें भारतीय वायुसेना अधिनियम की धारा 124 का हवाला देते हुए यह तय करने का प्रयास किया गया था कि आरोपी पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलेगा या किसी आपराधिक अदालत में।

हाई कोर्ट ने इन आदेशों को रद्द कर दिया है और SIT को निर्देश दिया है कि वह अपनी जांच जारी रखे। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे गंभीर मामलों में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना आवश्यक है।

आरोपी को मिली अंतरिम जमानत

13 सितंबर 2024 को हाई कोर्ट ने आरोपी विंग कमांडर को अंतरिम जमानत दी थी। अदालत ने यह जमानत उनकी वायुसेना में पदस्थ स्थिति और करियर पर संभावित प्रभाव को ध्यान में रखते हुए दी थी। हालांकि, इसके साथ ही कड़ी शर्तें भी लागू की गईं। इनमें जांच अधिकारी के समक्ष नियमित उपस्थिति और यात्रा प्रतिबंध शामिल थे।

अगली सुनवाई पर नजर

सेहरावत की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 10 दिसंबर 2024 को होगी। इस मामले में महिला अधिकारी और आरोपी दोनों के लिए न्याय की मांग के साथ-साथ वायुसेना और पुलिस की भूमिका की भी बारीकी से जांच की जा रही है।

यह मामला भारतीय सशस्त्र बलों में यौन उत्पीड़न और अधिकारों के दुरुपयोग जैसे संवेदनशील मुद्दों को उजागर करता है। यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि सेना में भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में सशस्त्र बलों को पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए। साथ ही, महिला अधिकारियों को सुरक्षा और समर्थन प्रदान करने के लिए व्यापक नीति बनाने की आवश्यकता है।

Autonomous Underwater Vehicles: भारतीय नौसेना के क्यों बेहद खास हैं ये अंडर वाटर व्हीकल्स? बिना किसी ऑपरेटर के सीक्रेट तरीके से समुद्र के अंदर मिशन को देंगे अंजाम

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Autonomous Underwater Vehicles: भारत की नौसेना इस हफ्ते ‘नौसेना दिवस’ मनाने जा रही है, और इस अवसर पर एक बेहद खास और गेम-चेंजिंग इनोवेशन की चर्चा हो रही है — स्वदेशी ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUVs)। इन्हें खास तौर पर सागर डिफेंस इंजीनियरिंग ने बनाया है। ये अत्याधुनिक अंडरवाटर ड्रोन, जो ‘इनोवेशन्स फॉर डिफेंस एक्सीलेंस’ (iDEX) पहल के तहत बनाए गए हैं, भारतीय नौसेना की मिशन कैपेबिलिटीज को पूरी तरह से बदलने जा रहे हैं। इन AUVs से नौसेना को माइन क्लीयरेंस, सर्विलांस और रिकॉन्गनाइज़ेंस जैसे महत्वपूर्ण मिशन को अंजाम देने में मदद मिलेगी।

Autonomous Underwater Vehicles: Why These Underwater Drones Are Crucial for the Indian Navy? Undertaking Secret Missions Underwater Without Any Operator

सागर डिफेंस इंजीनियरिंग के सूत्रों ने बताया कि ये AUVs नौसेना की ऑपरेशनल कैपेबिलिटीज में बड़ी बढ़त लेकर आ रहे हैं। इन AUVs को पूरी तरह से ऑटोनॉमस तौर पर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है और इनमें अत्याधुनिक सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और नेविगेशन सिस्टम्स हैं, इन्हें चलाने के लिए किसी मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ती है। बता दें कि भारतीय नौसेना ने माइन डिटेक्शन जैसे कामों के लिए सागर डिफेंस इंजीनियरिंग को 30 AUVs का ऑर्डर भी दिया है।

सूत्रों ने बताया, “इन AUVs का फायदा यह है कि ये बिना किसी मानव जीवन को खतरे में डाले समुद्र के अंदर मिशन को पूरा कर सकते हैं, साथ ही साथ ऑपरेशनल लागत को भी कम करते हैं। ये प्री-प्रोग्राम्ड रूट्स पर ऑटोनॉमस तरीके से नेविगेट कर सकते हैं, रिकॉन्गनाइज़ेंस कर सकते हैं, और वास्तविक समय में जरूरी डेटा कमांड सेंटर तक भेज सकते हैं, जिससे किसी भी इमरजेंसी हालात में तुरंत तैयारी की जा सकती है।”

इन AUVs का उपयोग विभिन्न प्रकार के मिशन के लिए किया जा सकता है, जैसे माइन काउंटरमेजर्स, पर्यावरण निगरानी, और सर्विलांस। यह उन्हें सैन्य और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। खास बात यह है कि ये AUVs एक साथ समूहों में काम कर सकते हैं, यानी कई AUVs मिलकर सूचना साझा करते हुए समुद्र की गहराई की मैपिंग और तटीय निगरानी भी कर सकते हैं।

ऑटोनॉमस फीचर होने से AUVs खुद फैसला ले सकते हैं, जिसका इनकी निगरानी की आवश्यकता कम हो जाती है। जिससे ऑपरेटर दूसरे कामों पर फोकस कर सकते हैं, जबकि AUVs बिना ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप के अपने मिशन को अंजाम देते हैं। इससे नौसेना की समुद्र में निगरानी की क्षमता और भी बेहतर हो जाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।

इन AUVs का व्यावसायिक क्षेत्र में भी बड़ा उपयोग हो सकता है, खासकर हाइड्रोग्राफिक सर्वे, अंडरवाटर एक्सप्लोरेशन और पर्यावरणीय निगरानी में। सूत्रों का कहना है कि इनका हल्का डिजाइन और एडवांस क्षमताएं इन्हें सैन्य और व्यावसायिक दोनों प्रकार के कार्यों के लिए उपयुक्त बनाती हैं। इन AUVs में AI-चालित सेंसर लगाए गए हैं। जिसके चलते ये AUVs लंबी अवधि के मिशन को बिना निरंतर मानवीय निगरानी के पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा, इनकी AI-आधारित सेंसर प्रणाली वास्तविक समय में बेहतर डेटा विश्लेषण करने में मदद करती है, जिससे ऑपरेटरों को कार्रवाई योग्य जानकारी मिलती है और निर्णय लेने की गति बढ़ती है।

वर्तमान में इन AUVs को स्वॉर्म ऑपरेशंस के लिए भी विकसित किया जा रहा है, यानी एक साथ कई यूनिट्स मिलकर काम करेंगे, जिससे मिशन की कार्यक्षमता और कवरेज बढ़ जाएगी। वहीं, भविष्य में, इन AUVs की तकनीक को रक्षा क्षेत्र से बाहर विभिन्न उद्योगों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हाइड्रोग्राफिक कंपनियां, शोध संस्थान और पर्यावरणीय एजेंसियां इन AUVs का उपयोग समुद्र के तल का मानचित्रण, समुद्री जीवन की निगरानी और प्रदूषण का पता लगाने के लिए कर सकती हैं, जिससे ये सिस्टम बेहद अनुकूलनीय हो जाएंगे।

वहीं, इन AUVs का विकास भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाने के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारत को वैश्विक मंच पर स्वायत्त रक्षा प्रौद्योगिकियों में एक नेता बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।”

Loitering munitions: भारत का पहला स्वदेशी लूटिंग म्यूनिशन “नागास्त्र-1” भारतीय सेना में शामिल होने के लिए तैयार, अब लंबी रेंज वाले ड्रोन की तैयारी

Loitering Munitions: भारतीय सशस्त्र बलों को हाल ही में देश में बने लूटिंग म्यूनिशन  (loitering munitions) की डिलीवरी मिली है, इन्हें सुसाइड ड्रोन भी कहा जाता है। वहीं, अब उनकी नजर स्वदेशी लंबे रेंज के ड्रोन पर है, जिनका उपयोग खुफिया जानकारी जुटाने से लेकर आक्रामक अभियानों तक में किया जा सके। वहीं, भारत का पहला स्वदेशी लूटिंग म्यूनिशन (Loitering Munition) “नागास्त्र-1” भारतीय सेना में शामिल होने के लिए तैयार है।

स्वदेशी ड्रोन की जरूरत

मध्यम ऊंचाई और लंबी अवधि तक उड़ने वाले (Medium Altitude Long Endurance – MALE) ड्रोन की मांग तीनों सेनाओं—थलसेना, वायुसेना और नौसेनो को है। अभी तक ये ड्रोन मुख्यतः इजरायल से आयात किए जाते थे, लेकिन अब इसे स्वदेशी तकनीक से बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

सूत्रों के अनुसार, MALE ड्रोन को Indigenously Designed, Developed, and Manufactured (IDDM) रूट के तहत खरीदा जाएगा। इसका मतलब है कि ये ड्रोन पूरी तरह भारत में निर्मित होंगे। इस योजना के तहत, नागपुर स्थित इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (EEL) नामक एक कंपनी ने प्रस्ताव भेजा है। कंपनी इन ड्रोन के विकास के लिए रिसर्च का काम पहले ही शुरू कर चुकी है।

“नागास्त्र-1” भारतीय सेना में शामिल होने के लिए तैयार

भारत की रक्षा तकनीक में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए, स्वदेशी लूटिंग म्यूनिशन (Loitering Munition) “नागास्त्र-1” भारतीय सेना में शामिल होने के लिए तैयार है। यह लूटिंग म्यूनिशन सोलर इंडस्ट्रीज ने डेवलप किया है और इसे इकोनॉमिक्स एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (EEL), जो सोलर ग्रुप की एक सहायक कंपनी है, ने भारतीय सेना के लिए आपातकालीन खरीद के तहत 480 यूनिट्स का निर्माण किया है।

यह स्वदेशी लूटिंग म्यूनिशन भारतीय सेना की आधुनिक तकनीकी जरूरतों को पूरा करेगा और युद्ध के मैदान में एक महत्वपूर्ण हथियार साबित होगा। नागास्त्र-1 को विशेष रूप से सटीक लक्ष्यों पर हमला करने, दुश्मन के उपकरणों को नष्ट करने और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए डिजाइन किया गया है।

EEL ने इस परियोजना को आपातकालीन खरीद (Emergency Procurement) के तहत पूरा किया है, जिससे भारतीय सेना को जल्द से जल्द अपनी युद्ध क्षमताओं को मजबूत करने में मदद मिली है। यह लूटिंग म्यूनिशन भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का एक प्रमुख कदम है।

“नागास्त्र” ड्रोन की प्रमुख विशेषताएँ

  • वजन: 9 किलोग्राम
  • विकास स्थान: नागपुर, भारत
  • जीपीएस क्षमता: सटीक लक्ष्य निर्धारण के लिए
  • प्रभावी रेंज: 30 किलोमीटर (स्वतंत्र मोड में)
  • रडार प्रतिरोध: दुश्मन के रडार से सुरक्षा सुनिश्चित
  • मुख्य लॉन्च रेंज: 15 किलोमीटर
  • ऑपरेशनल ऊंचाई: 1,200 मीटर

नई तकनीक और टेस्टिंग सुविधा

EEL ने देश के निजी क्षेत्र में पहली बार 1.4 किमी लंबा रनवे और ड्रोन परीक्षण के लिए अत्याधुनिक सुविधा तैयार की है। यह देश में सबसे बड़ा निजी परीक्षण केंद्र है, जो खास तौर पर लंबे रेंज के ड्रोन के लिए बनाया गया है।

चीन के खतरे के मद्देनजर त्वरित कार्रवाई

IDDM रूट के तहत MALE ड्रोन को प्राथमिकता से हासिल करने की योजना को चीन के साथ लगी पूर्वी सीमा पर खतरों के चलते बनाया गया है। निजी क्षेत्र की कंपनियों ने आपातकालीन खरीद (Emergency Procurement) श्रेणी में रिकॉर्ड समय में लूटिंग म्यूनिशन जैसे ड्रोन बना कर सरकार का भरोसा जीता है।

इस परियोजना में तीनों सेनाओं की जरूरतों को ध्यान में रखकर ड्रोन विकसित किए जाएंगे। हालांकि, शुरुआती चरण में छोटे पैमाने पर ऑर्डर दिया जाएगा।

आयात पर कम होगी निर्भरता

पिछले वर्षों में इजरायल से सीधे आयात किए गए ड्रोन पर अब निर्भरता कम करने का प्रयास हो रहा है। इस दिशा में सरकारी और निजी क्षेत्र मिलकर काम कर रहे हैं। राज्य संचालित शोध संस्थाओं की कोशिशें अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं दे सकी थीं, लेकिन निजी क्षेत्र के योगदान से उम्मीदें बढ़ गई हैं।

वहीं, स्वदेशी ड्रोन का विकास भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम है। लूटिंग म्यूनिशन की सफल डिलीवरी से यह साबित हो गया है कि भारतीय कंपनियां अब उन्नत रक्षा तकनीक को तेजी से विकसित करने में सक्षम हैं। इन प्रयासों से भारत न केवल आयात पर निर्भरता कम करेगा, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में अपनी स्थिति भी मजबूत करेगा।

इस परियोजना का सफल क्रियान्वयन सशस्त्र बलों को तकनीकी बढ़त देने के साथ-साथ भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मील का पत्थर साबित होगा।

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