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IMA Passing Out Parade: आर्मी मेस का ‘रसोइया’ बना सेना में अफसर, धोबी के बेटे ने लिखी संघर्ष की अनूठी कहानी

IMA Passing Out Parade: इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) के पासिंग आउट परेड में चमचमाते बूट और मेडलों के पीछे कई प्रेरक कहानियां भी छुपी हुती हैं। ये कहानियां उन मेधावी छात्रों की होती हैं, जो बेहद गरीब तबके से उठ कर अपनी मेहनत और समघर्ष के बल पर यहां तक पहुंचे हैं। इस बार भी इस समारोह में ऐसी कई संघर्ष गाथाएं थीं। इनमें से दो युवा अधिकारी, लेफ्टिनेंट राहुल वर्मा और लेफ्टिनेंट रमन सक्सेना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

IMA Passing Out Parade: Army Mess Cook and Washerman Son become Officer
Lt Rahul Verma and Lt Raman Saxena

IMA Passing Out Parade: कुक से अफसर तक का सफर

आगरा के रमन सक्सेना की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। रमन का भारतीय सेना में भर्ती होने का रास्ता किसी भी अन्य अधिकारी से बिल्कुल अलग था। उनका सफर एक होटल के रसोईघर से शुरू हुआ था। 2007 में होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद, रमन ने होटल में रसोइये के तौर पर काम करना शुरू किया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 2014 में उन्हें इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) में जनरल कैडेट्स (GC) मेस में रसोइये (कुक) के तौर पर नियुक्ति मिली। यहीं पर उनकी जिंदगी का अहम मोड़ आया।

रमन बताते हैं, “जब मैं होटल में काम कर रहा था, तब मेरे पिता ने मुझे भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया।” उसी दौरान, रमन ने पहली बार सेना में अफसर बनने का सपना देखा। उन्हें मेस में खाने परोसते हुए वहां के गेस्ट और अफसरों को देख कर एक नई प्रेरणा मिली। वे कहते हैं, “यह मुझे बहुत प्रेरित करता था। मैंने तय किया कि मुझे एक दिन उनमें से एक बनना है।”

हालांकि, रमन का सफर इतना भी आसान नहीं था। उन्होंने पहले दो प्रयासों में वे ये परीक्षा पास नहीं कर पाए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश जारी रखी। “स्पेशल कमीशन ऑफिसर (SCO) स्कीम के तहत जूनियर कमीशन अधिकारियों को 28 से 35 साल की उम्र में अफसर बनने का अवसर मिलता है,” रमन बताते हैं। “34 साल की उम्र में, मैंने तीसरे प्रयास में सफलता हासिल की।”

रमन की सफलता के पीछे उनके पिता, जो एक सेवानिवृत्त कैप्टन रहे हैं, का सपोर्ट था। उन्होंने 30 साल तक सेना में सेवा दी थी। इसके अलावा, उनके वरिष्ठ अधिकारी कर्नल विक्रम सिंह का मार्गदर्शन भी बहुत महत्वपूर्ण था। कर्नल विक्रम सिंह ने हमेशा रमन को अपने सपने को पूरा करने के लिए सही दिशा दिखाई।

IMA Passing Out Parade: धोबी के बेटे से अफसर बनने तक का संघर्ष

दूसरी तरफ, राजस्थान के कोटा जिले के राहुल वर्मा की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है। राहुल के पिता धोबी व्यवसाय से जुड़े हैं। उनका बचपन घर के उस छोटे से कोने में बीता, जहां कपड़े प्रेस किए जाते थे। वहीं से उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपने सपनों को पंख दिए। उनके पिता हमेशा उन्हें यह कहते थे, “तुम ऐसा पेशा चुनो, जिससे सम्मान मिले।” राहुल के लिए, यह शब्द उनके जीवन का मूल मंत्र बने।

राहुल बताते हैं, “मेरे पिता मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। वह हमेशा कहते थे कि अब यह जरूरी नहीं कि केवल राजा का बेटा ही राजा बने, बल्कि मेहनत करने वाला कोई भी व्यक्ति शिखर तक पहुंच सकता है।” उनके पिता के इन शब्दों ने राहुल को अपने सपनों की ओर आगे बढ़ने की शक्ति दी।

राहुल ने घर की परिस्थितियों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी। “मैं रात को एक बल्ब की हल्की सी रोशनी में पढ़ाई करता था,” राहुल बताते हैं। घर में पैसे की कमी और अन्य कठिनाइयों के बावजूद राहुल ने अपनी मेहनत और लगन से इस मुश्किल सफर को पार किया।

दोनों की प्रेरक यात्रा

रमन सक्सेना और राहुल वर्मा दोनों ही उस जगह खड़े थे, जहां पहुंचना हर युवा का सपना होता है — भारतीय सेना में अफसर बनना। लेकिन इन दोनों के लिए यह यात्रा आसान नहीं थी। एक तरफ रमन ने होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेकर सेना के कैटरिंग विभाग में काम करते हुए अपनी मंजिल पाई, वहीं दूसरी तरफ राहुल ने अपने पिता की प्रेरणा से उस छोटे से कमरे में अपने सपनों को पंख दिए, जहां कपड़े प्रेस किए जाते थे।

इन दोनों की कहानियाँ यह साबित करती हैं कि अगर मेहनत और समर्पण से किसी काम को किया जाए, तो किसी भी मुश्किल रास्ते से सफलता प्राप्त की जा सकती है। रमन और राहुल की मेहनत ही उनके सपनों को साकार करने का कारण बनी।

IMA Passing Out Parade: 100 रुपये रोज कमाने वाले दैनिक मजदूर के बेटे ने लिखी सफलता की कहानी, भारतीय सेना में अफसर बना काबिलन

IMA Passing Out Parade: भारतीय सैन्य अकादमी के पासिंग आउट परेड हर बार संघर्ष की कहानियों से भरपूर होती है। जहां परेड में इस बार गर्व से भरे हुए परिवारों और सैनिकों के कदमों की गूंज सुनाई दे रही थी, तो परेड में एक कहानी ऐसी थी, जो हर किसी के दिल को छू गई। यह कहानी है लेफ्टिनेंट काबिलन वी (Lt Kabilan V) की, जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से हैं और जिन्होंने भारतीय सेना में अफसर बनने का सपना साकार किया।

IMA Passing Out Parade: Daily Wage Labourer's Son Lt Kabilan V Becomes Indian Army Officer
Lt Kabilan V

काबिलन के पिता वेटरिसेल्वम पी, जो एक दैनिक मजदूर के तौर पर काम करके रोजाना 100 रुपये ही कमा पाते थे। लेकिन अब वे व्हीलचेयर पर हैं। तीन महीने पहले एक भारी काम करते समय आए स्ट्रोक के कारण उनका शरीर आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हो गया था। उनके चेहरे पर गर्व और खुशी की चमक साफ दिखाई दे रही थी। उनके पास पनमैयम्मल की एक तस्वीर रखी थी, जो काबिलन की मां की थी, जिनका तीन साल पहले कैंसर और कोविड-19 के कारण निधन हो गया था।

काबिलन की यात्रा बेहद कठिन रही है। “मैं कई बार असफल हुआ,” उन्होंने कहा, और उनके चेहरे पर जो मुस्कान थी, उससे यह एहसास हुआ कि उन असफलताओं को उन्होंने अपने संघर्ष से जीत लिया था। “मुझे सेना में जाना था, और मैंने वह किया। यह सिर्फ मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि उन सभी की सफलता है जो भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखते हैं। अगर एक ऐसा व्यक्ति, जो एक दैनिक मजदूर का बेटा है, 100 रुपये रोज कमाता था, वह यह कर सकता है, तो कोई भी इसे कर सकता है।”

काबिलन का जन्म तमिलनाडु के मेलुर गांव में हुआ था। उन्होंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की और फिर अन्ना विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। बचपन से ही काबिलन का सपना था कि वह भारतीय सेना में जाएं, लेकिन हर बार वह असफल होते गए। उन्होंने एनसीसी से लेकर ग्रेजुएट एंट्री तक के हर रास्ते पर आवेदन किया, लेकिन हर बार उनका सपना अधूरा रह गया। फिर भी, काबिलन हार नहीं माने और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।

“साहस मुझे प्रेरित करता है,” काबिलन ने अपनी यात्रा को इस शब्दों में समेटा। उनका साहस ही था, जिसने उन्हें उनके सपने को पूरा करने की दिशा दी। लेकिन साहस ही उनकी एकमात्र ताकत नहीं था। काबिलन ने अपनी मां के निधन के बाद अपने परिवार की जिम्मेदारी ली। उनका छोटा भाई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था और उनके पिता की सेहत भी गिर रही थी। ऐसे में काबिलन ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक कठिन नौकरी भी की। वह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) के डेल्टा स्क्वाड में जलनाविक पर्यवेक्षक के रूप में काम करते थे।

काबिलन के मार्गदर्शक, सब लेफ्टिनेंट (रिटायर्ड) सुगल ईसान का कहना है, “उन्हें अपने परिवार का पालन-पोषण करते हुए अपने सपने को भी पूरा करना था।” “चेन्नई और कन्याकुमारी में आई बाढ़ के दौरान, काबिलन हमारे बचाव दल का हिस्सा थे। उन्होंने अन्य स्वयंसेवकों के साथ मिलकर लगभग 200 जानों को बचाया।”

काम और पढ़ाई की दोहरी जिम्मेदारी का बोझ काबिलन पर बहुत भारी हो सकता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। “मैं सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम करता था, और फिर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक, सेना में भर्ती परीक्षा की तैयारी करता था,” उन्होंने कहा। उनका यह संघर्ष और बलिदान आखिरकार रंग लाया। आज उनके कंधे पर पैरा रेजिमेंट का चिन्ह है, जो उनके अगले चरण की शुरुआत का प्रतीक है। “सीखो, असफल हो, और फिर बेहतर असफल हो, तुम्हें सफलता मिलेगी। तुम्हारी दृढ़ता और समर्पण ही सफलता के दरवाजे तक पहुंचाएंगे,” काबिलन ने कहा।

काबिलन की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो मानते हैं कि जीवन में परिस्थितियां या सामाजिक स्थिति मायने रखती हैं। काबिलन ने यह साबित कर दिया कि अगर किसी के पास सच्ची मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता कठिन नहीं होता।

NSA China Visit: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल जाएंगे चीन, LAC पर सीमा विवाद सुलझाने के लिए अहम वार्ता

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NSA China Visit: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोवाल 17-18 दिसंबर को चीन का दौरा करेंगे, जहां वे चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधि स्तर (SR) की महत्वपूर्ण वार्ता करेंगे। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत-चीन सीमा पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को लेकर चल रही तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाना है। यह बैठक भारत-चीन के बीच SR स्तर की वार्ता फिर से शुरू होने की शुरुआत है, जिसकी सहमति प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कज़ान बैठक के दौरान हुई थी। यह वार्ता 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद पहली बार हो रही है, और पिछले पांच वर्षों में पहली ऐसी बैठक होगी।

NSA China Visit: Ajit Doval to Visit China for Key LAC Border Talks

अजीत डोवाल का यह दौरा चीन और भारत के बीच LAC पर सीमा की स्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे पहले अक्टूबर में दोनों देशों के बीच पैट्रोलिंग और सीमा पर प्रबंधन के लिए एक समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत, दोनों देशों ने LAC पर शांति बनाए रखने के लिए कुछ नए कदम उठाने पर सहमति जताई थी।

NSA China Visit: 2020 से लगातार बढ़ रहा था तनाव

भारत और चीन के बीच LAC पर तनाव 2020 से बढ़ने लगा था, जब चीन की सेना ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी थीं। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें कई सैनिकों की जान गई थी। गलवान घाटी में हुई इस घटना के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में खटास आई और सीमा पर सैन्य गतिरोध गहरा गया।

2019 में आखिरी बार विशेष प्रतिनिधि स्तर पर वार्ता हुई थी, जब अजीत डोवाल ने भारतीय पक्ष का नेतृत्व किया था और वांग यी ने चीनी पक्ष का। उस समय दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर सहमति बनी थी, लेकिन इसके बाद सीमा पर तनाव बढ़ने लगा था।

विशेष प्रतिनिधि वार्ता का उद्देश्य

इस बार की विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता का मुख्य उद्देश्य LAC की सीमाओं को और स्पष्ट करना है। सूत्रों के अनुसार, यह वार्ता LAC पर वर्तमान स्थिति के विस्तार और साफ-साफ पहचान पर केंद्रित होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दोनों देशों के सैनिकों के बीच किसी भी तरह की गलतफहमी या टकराव की स्थिति न बने। इसके अलावा, बातचीत का लक्ष्य भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक स्थिर और दीर्घकालिक समाधान ढूंढना भी है।

यह बैठक दोनों देशों के बीच रिश्तों को सामान्य करने और विश्वास बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके परिणामस्वरूप, दोनों देशों के उच्च अधिकारियों के बीच अगले कोर कमांडर-स्तरीय बैठक की तारीख तय हो सकती है, जो सीमा पर पैट्रोलिंग और बफर जोन के मुद्दों पर केंद्रित होगी।

भारत-चीन के बीच बढ़ी कूटनीतिक बातचीत

इससे पहले, 3 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह बयान दिया था कि भारत चीन के साथ द्विपक्षीय संवादों के माध्यम से सीमा विवाद को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच एक ऐसा समझौता हो, जो न्यायपूर्ण, उचित और आपसी स्वीकृति पर आधारित हो। भारत ने यह भी साफ किया है कि वह किसी भी स्थिति में सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए चीन के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।

भारत और चीन के बीच 2020 से अब तक कई सैन्य और कूटनीतिक प्रयास किए गए हैं, ताकि LAC पर तनाव को कम किया जा सके। इनमें दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की बैठकों के अलावा, विभिन्न स्तरों पर कूटनीतिक वार्ताएं भी शामिल हैं। अब, अजीत डोवाल का यह आगामी दौरा दोनों देशों के लिए सीमा विवाद के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण अवसर है।

आने वाले समय में क्या हो सकता है?

विशेष प्रतिनिधि वार्ता के बाद, दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक बातचीत का एक नया दौर शुरू हो सकता है। इस बातचीत में न केवल सीमा पर विवादों को हल करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे, बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास को फिर से स्थापित करने की भी कोशिश की जाएगी। इसके अलावा, यह वार्ता चीन और भारत के रिश्तों में एक नया अध्याय लिखने का मौका भी हो सकती है।

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए यह वार्ता एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि इससे दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो सकता है और सीमा पर शांति बनी रह सकती है। यह वार्ता भारतीय सैनिकों और नागरिकों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी।

1971 War Surrender Painting: रक्षा समाचार की खबर का असर! ‘गायब’ हुई पेंटिंग को मिली नई जगह, अब यहां देख सकेंगे लोग

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1971 War Surrender Painting: हाल ही में भारतीय सेना के प्रमुख जनरल की ऑफिस के बैकग्राउंड से एक ऐतिहासिक पेंटिंग जो 1971 की जंग में पाकिस्तान सेना के सरेंडर की थी, उसे हटा लिया गया था। रक्षा समाचार डॉट कॉम ने इस मुद्दे को मुरजोर से उठाया था। लेकिन अब बड़ी खबर सामने आई है। पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा समाचार.कॉम के सवाल उठाने के बाद 16 दिसंबर को विजय दिवस के मौके पर उस एतिहासिक पेंटिंग को नई जगह मिल गई है। उस पेंटिंग को अब मानेकशॉ सेंटर में लगाया गया है। यह सेंटर 1971 की जंग के हीरो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नाम पर समर्पित है। बता दें कि यह तस्वीर भारतीय सेना की एक बड़ी एतिहासिक जीत की याद दिलाती रही है, जब 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तान सेना ने पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के ढाका में भारतीय सेना के सामने बिना शर्त समर्पण किया था।

1971 War Surrender Painting: News Impact! Gets New Placement at Manekshaw Centre

इस घटना ने सभी का ध्यान उस समय खींचा था, जब सेना प्रमुख समेत तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने नेपाली सेना के आर्मी चीफ से मुलाकात की थी, जो इन दिनों 14 दिसंबर तक भारत दौरे पर थे। उस समय यह तस्वीर दीवार से नादारद दिखी और उसके जगह एक दूसरे फोटो लगी थी। यह चित्र 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान की सेना के समर्पण के दौरान लिया गया था, जो भारतीय सेना की सबसे बड़ी जीतों में से एक मानी जाती है।

1971 War Surrender Painting: News Impact! Gets New Placement at Manekshaw Centre

1971 War Surrender Painting: सेना के पूर्व अधिकारियों ने जताई थी गहरी चिंता

बता दें कि तस्वीर हटाने के फैसले को लेकर सेना की तरफ से कोई पूर्व जानकारी साझा नहीं की गई थी। जिसके बाद रक्षा विशेषज्ञों औऱ सेना के पूर्व अधिकारियों ने गहरी चिंता जताई थी। कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि इस चित्र को हटाने के पीछे कोई विशेष विचारधारा हो सकती है, जो भारतीय सेना के ऐतिहासिक और सैन्य गौरव को नकारने की कोशिश कर रही है। बता दें कि 9 दिसंबर तक यह फोटो सेना प्रमुख के दफ्तर की दीवार पर मौजूद थी, जिसमें वे उस दिन भारतीय मिलिट्री हिस्ट्री पर किताबें लिखने वाले कुछ लेखकों से मिले थे। उसके बाद Indian Army ADGPI की तरफ से एक्स अकाउंट पर 13 दिसंबर को दो फोटो शेयर की गईं, जिसमें यह बताने की कोशिश की गई कि दोनों फोटो अभी भी सेना अध्यक्ष के ऑफिस में हैं।

1971 War Surrender Painting: News Impact! Gets New Placement at Manekshaw Centre

Indian Army: सेना प्रमुख के दफ्तर की दीवार से गायब हुई यह एतिहासिक फोटो, पूर्व अफसर बोले- क्या भारतीय सेना की गौरवमयी जीत की अनदेखी कर रही सरकार?

क्या लिखा है पोस्ट में

वहीं आज जब पूरा राष्ट्र 1971 की जंग में भारत की जीत को लेकर मनाए जाने वाले कार्यक्रम विजय दिवस को सेलिब्रेट कर रहा है, तो इस वर्ष इस गौरवशाली दिन को और खास बनाने के लिए, भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और जवानों ने मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में 1971 युद्ध के सरेंडर की ऐतिहासिक पेंटिंग को एक प्रतिष्ठित स्थान पर स्थापित किया है। सेना की तरफ से जारी पोस्ट में इसकी जानकारी दी गई है।

विजय दिवस के मौके पर, जनरल उपेन्द्र द्विवेदी COAS और  AWWA की प्रेसिडेंट सुनीता द्विवेदी के साथ , 1971 की आत्मसमर्पण पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान, मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया। यह सेंटर 1971 युद्ध के आर्किटेक्ट और नायक, फील्ड मार्शल सम मानेकशॉ के नाम पर है। इस अवसर पर भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी और सेवानिवृत्त अधिकारी उपस्थित थे।

यह पेंटिंग भारतीय सशस्त्र बलों की सबसे बड़ी सैन्य जीतों में से एक का प्रतीक है और भारत की न्याय और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मानेकशॉ सेंटर में इसे प्रतिष्ठापित करने के बाद, यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को इसका दर्शन करने का अवसर मिलेगा।

Indian Army: Historic Photo Disappears from Army Chief's Office Wall, Former Officers Question if Government is Overlooking Indian Army's Glorious Victory

किसने बनाई है नई पेंटिंग

सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।

Indian Army: Historic Photo Disappears from Army Chief's Office Wall, Former Officers Question if Government is Overlooking Indian Army's Glorious Victory

1971 युद्ध की अहमियत

दूसरी तरफ, एयर वाइस मार्शल (रिटायर्ड) मनमोहन बहादुर ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 1971 का युद्ध भारत के रक्षा इतिहास में सबसे बड़ी जीत थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह युद्ध भारत के एकीकृत राष्ट्र के रूप में पहली सैन्य विजय का प्रतीक है, और इस चित्र को हटाना भारतीय सेना की इस महान उपलब्धि को नजरअंदाज करना है। उनका कहना था कि यह चित्र कई देशों के सैन्य प्रमुखों और गणमान्य व्यक्तियों के लिए भारत की सामरिक ताकत और उसकी सफलता का प्रतीक था।

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1971 की समर्पण तस्वीर का महत्व

भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग ने कहा कि यह चित्र पिछले 1000 सालों में भारत की पहली बड़ी सैन्य विजय का प्रतीक था। यह न केवल सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि भारतीय एकता और शक्ति का प्रतीक भी था। उन्होंने आरोप लगाया कि जो लोग इस चित्र को हटाने का कारण बने हैं, वे भारतीय सेना के गौरव को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, और इस कदम के पीछे एक विशेष विचारधारा काम कर रही है जो भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को बढ़ावा देती है।

Indian Army: Historic Photo Disappears from Army Chief's Office Wall, Former Officers Question if Government is Overlooking Indian Army's Glorious Victory

बताया- बदलाव समय की जरूरत

इस मुद्दे पर रिटायर्ड पश्चिमी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह ने भी अपनी राय दी थी। उनका कहना था कि बिना पूरे हालात को देखे इस चित्र पर टिप्पणी करना सही नहीं होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि बदलाव समय की जरूरत है और आने वाली पीढ़ियों को इसे समझने और उनका दृष्टिकोण बदलने का अवसर देना चाहिए। उनका यह भी मानना ​​है कि यह मामला राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है और इससे आगे बढ़ने की जरूरत है।

विजय दिवस के मौके पर भारतीय सेना द्वारा इस ऐतिहासिक पेंटिंग को मानेकशॉ सेंटर में स्थापित करना भारतीय सेना के इतिहास और गौरव को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पेंटिंग न केवल भारतीय सेना की महानता का प्रतीक है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को हमारे सैन्य इतिहास और उपलब्धियों से परिचित कराएगी।

1971 India-Pakistan War: जब एक बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोया था पाकिस्तानी जनरल, रावलपिंडी और याह्या खान पर फोड़ा था सरेंडर का ठीकरा

1971 India-Pakistan War: 16 दिसंबर 1971, भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम दिन, जब पाकिस्तान सेना ने ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। यह दिन केवल एक सैन्य जीत का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय सेना की अद्वितीय रणनीति, साहस और नेतृत्व की मिसाल है। इस दिन को याद करते हुए, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बातों को भुलाया नहीं जा सकता, जिनके कुशल नेतृत्व ने भारत को इस गौरवशाली विजय तक पहुंचाया। यह कहानी सिद्दीक़ सालिक (Siddiq Salik) की किताब “विटनेस टू सरेंडर” (Witness to Surrender) से ली गई है, जो उस समय की परिस्थितियों और तनाव को बयां करती है।

1971 India-Pakistan War: When a Pakistani General Broke Down Like a Child, Blamed Rawalpindi and Yahya Khan for the Surrender

1971 India-Pakistan War: सरेंडर से पहले का माहौल

16 दिसंबर से कुछ दिन पहले, ढाका के गवर्नमेंट हाउस में गवर्नर मलिक, जनरल नियाजी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी एक कमरे में बैठे हुए थे। माहौल भारी था और बातचीत बहुत कम हो रही थी। हर थोड़ी देर में चुप्पी पूरे कमरे पर छा जाती। गवर्नर मलिक ही ज्यादातर बोल रहे थे, वह भी बहुत सामान्य बातें। उन्होंने कहा, “परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं रहतीं। अच्छे दिन बुरे दिनों में बदल सकते हैं और बुरे दिन भी अच्छे हो सकते हैं। एक जनरल के करियर में भी उतार-चढ़ाव आते हैं। कभी उसे सफलता गौरवान्वित करती है तो कभी हार उसके आत्मसम्मान को तोड़ देती है।”

जैसे ही गवर्नर मलिक ने यह बात खत्म की, जनरल नियाजी की बड़ी कद-काठी वाला शरीर कांप उठा। उन्होंने अपने हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया और एक बच्चे की तरह रोने लगे। गवर्नर ने सांत्वना देते हुए उनका हाथ पकड़कर कहा, “जनरल साहब, एक कमांडर की जिंदगी में कठिन दिन आते हैं। लेकिन हिम्मत मत हारिए। ऊपर वाला महान है।”

‘साहिब रो रहे हैं’

इसी बीच, एक बंगाली वेटर कॉफी और स्नैक्स की ट्रे लेकर कमरे में आया। लेकिन उसे तुरंत डांटकर बाहर भगा दिया गया। जैसे ही वह बाहर निकला, उसने बाकी बंगालियों से कहा, “साहिब अंदर रो रहे हैं।” यह बात पाकिस्तानी गवर्नर के मिलिट्री सेक्रेटरी ने सुन ली और उसने वेटर को चुप रहने को कहा।

यह घटना एक तरह से उस युद्ध की सच्चाई का सबसे स्पष्ट और दर्दनाक विवरण थी। गवर्नर मलिक ने फिर जनरल नियाजी से कहा, “स्थिति खराब है। मुझे लगता है कि हमें राष्ट्रपति को संदेश भेजकर युद्धविराम की व्यवस्था करने को कहना चाहिए।”

जनरल नियाजी ने चुप्पी के बाद कमजोर स्वर में कहा, “मैं आदेश मानूंगा।” लेकिन इस प्रस्ताव पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई।

1971 India-Pakistan War: When a Pakistani General Broke Down Like a Child, Blamed Rawalpindi and Yahya Khan for the Surrender

नियाजी की टूटती उम्मीदें

इसके बाद जनरल नियाजी अपने मुख्यालय लौटे और खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। तीन दिनों तक उन्होंने किसी से मुलाकात नहीं की। उस दौरान, लेखक सिद्दीक़ सालिक ने 8/9 दिसंबर की रात को उनसे मिलने की कोशिश की। जब वह कमरे में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि जनरल नियाजी अपनी बांह पर सिर टिकाए हुए थे। उनका चेहरा किसी को दिखाई नहीं दे रहा था।

जनरल नियाजी ने उस बातचीत के दौरान एक ही बात कही, “सालिक, अपने भाग्य को धन्यवाद दो कि तुम आज जनरल नहीं हो।” उनकी आवाज में दर्द और असहायता झलक रही थी। यह वह समय था जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को चारों ओर से घेर लिया था। नियाजी का आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट चुका था।

चैप्टर 23: ढाका पर कब्जा और आत्मसमर्पण का दिन

16 दिसंबर को ढाका में पाकिस्तानी सेना के खाकी वर्दी की जगह भारतीय सेना की हरी वर्दी ने ले ली। बंगाली लोग चुपचाप किनारे खड़े होकर यह नजारा देख रहे थे। शायद उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि इतने बड़े बदलाव के बाद उनका भविष्य कैसा होगा।

ढाका के आत्मसमर्पण के बाद, सिद्दीक़ सालिक ने फोर्ट विलियम, कोलकाता में जनरल नियाजी से बातचीत की। इस दौरान नियाजी ने अपनी नाराजगी और गुस्से को खुलकर व्यक्त किया। उन्होंने अपनी असफलताओं के लिए कोई पछतावा नहीं दिखाया। बल्कि उन्होंने पूरे घटनाक्रम का जिम्मेदार जनरल याह्या खान को ठहराया।

‘कुर्बानी का कोई मतलब नहीं था’

जब सिद्दीक़ सालिक ने उनसे पूछा कि वह ढाका को बचाने के लिए और प्रयास क्यों नहीं कर सके, तो नियाजी का जवाब था, “इससे क्या होता? और ज्यादा मौतें होतीं। ढाका की नालियां जाम हो जातीं। लाशें सड़कों पर पड़ी रहतीं। और अंत में नतीजा यही रहता। मैं 90,000 कैदियों को वेस्ट पाकिस्तान लेकर जाऊंगा, न कि 90,000 विधवाओं और लाखों अनाथों को वहां छोड़कर। यह कुर्बानी बेकार होती।”

जनरल नियाजी की यह स्वीकारोक्ति युद्ध के परिणाम और पाकिस्तान के टूटने की कहानी को साफ बयां करती है। यह ऐतिहासिक दिन भारत के साहस, रणनीति और मानवता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वह महान बात आज भी प्रेरणा देती है: “अगर कोई व्यक्ति कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता, या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह एक गोरखा है।”

1971 India-Pakistan War: When a Pakistani General Broke Down Like a Child, Blamed Rawalpindi and Yahya Khan for the Surrender

आत्मसमर्पण का दिन

16 दिसंबर 1971 को, भारतीय सेना के नेतृत्व में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने ढाका में पाकिस्तान सेना को आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। यह भारतीय सेना की अद्भुत योजना और बहादुरी का परिणाम था। इस विजय ने न केवल बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई, बल्कि भारतीय सेना के इतिहास में यह दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया।

सिद्दीक सालिक, जो कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना के अधिकारी थे, ने अपनी किताब “विटनेस टू सरेंडर” में इस ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि किस तरह पाकिस्तान सेना के अधिकारी आत्मसमर्पण से पहले टूट चुके थे। सालिक ने लिखा कि जब वे जनरल नियाज़ी से युद्ध के बारे में बात कर रहे थे, तो नियाज़ी ने अपनी असफलताओं के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं ठहराया, बल्कि रावलपिंडी और याह्या खान को दोषी ठहराया।

सैम मानेकशॉ का कुशल नेतृत्व

इस युद्ध में भारतीय सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का नेतृत्व भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। उनके कुशल नेतृत्व और स्पष्ट रणनीति ने भारतीय सेना को एकजुट रखा और दुश्मन को घुटनों पर ला दिया। मानेकशॉ ने अपने सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखा और हर कदम पर सही निर्णय लिया।

16 दिसंबर 1971 को, जब नियाज़ी ने आत्मसमर्पण किया, तो यह केवल एक कागज़ पर दस्तखत नहीं थे, बल्कि यह भारत की ताकत, भारतीय सेना की बहादुरी और सैम मानेकशॉ के नेतृत्व का प्रमाण था।

Combat Training: समुद्री लुटेरों को मजा चखाने के लिए बड़ी तैयारी कर रही भारतीय नौसेना, बनाने जा रही है यह खतरनाक कॉम्बैट ट्रैनिंग सेंटर

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Combat Training: भारतीय नौसेना ने कर्नाटक के समुद्र तटीय शहर कारवार में एक अत्याधुनिक कॉम्बैट ट्रेनिंग सेंटर (सीटीसी) बनाने की तैयारी कर ररही है। यह ट्रेनिंग सेंटर विशेष रूप से नौसेना के जवानों, मार्कोस कमांडो और मित्र देशों की स्पेशल फोर्सेज को आतंकवाद और समुद्री लुटेरों से निपटने के लिए ट्रेनिंग देने के लिए तैयार किया जाएगा।

Indian Navy to Build Advanced Combat Training Centre in Karwar

Combat Training: 75 एकड़ भूमि पर होगा निर्माण

यह केंद्र 75 एकड़ भूमि पर बनाया जाएगा , जो आधुनिक सुविधाओंसे लैस होगा। यह भारतीय नौसेना की स्पेशवल फोर्सेज की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम है। इस ट्रेनिंग सेंटर में ऐसे उपकरण और सुविधाएं होंगी, जो असली जिंदगी में होती हैं।

क्या-क्या होगा Combat Training सेंटर में?

इस अत्याधुनिक ट्रेनिंग सेंटर में कई खास सुविधाएं होंगी, जो इसे भारत का सबसे एडवांस ट्रेनिंग सेंटर बनाएंगी।

  1. थ्री-स्टोरी मल्टीलेवल किल हाउस

यह तीन मंजिला इमारत होगी, जिसमें होटल लॉबी, कमरे, कॉन्फ्रेंस हॉल, कार्यालय, जहाज के उपकरण और रहने की जगह जैसे कई स्ट्रक्चर बनाए जाएंगे। इसमें स्नाइपर हथियारों सहित विभिन्न हथियारों से फायरिंग के लिए बैलिस्टिक सुरक्षा भी होगी। इसके अलावा, बंधकों को छुड़ाने जैसे हालात के दौरान पैदा होने वाली परिस्थितयों में भी अभ्यास करने की सुविधा होगी।

  1. मैरिटाइम वर्कअप स्टेशन

इसमें ऑयल रिग का नकली मॉडल, जहाज का मॉडल, विभिन्न समुद्री परिस्थितियों को दिखाने के लिए वेव जनरेशन पूल और ऑब्स्टेकल-कम-जंगल फायरिंग रेंज शामिल होगी। ऑयल रिग मॉडल को असली ऑयल रिग प्लेटफॉर्म के पैमाने पर तैयार किया जाएगा, जिसमें जैकेट डेक, मेन डेक, लिविंग क्वार्टर और टॉप डेक (हेलीपैड) जैसे स्ट्रक्चर होंगे।

  1. मिलिट्री ऑपरेशंस इन अर्बन टेरेन कॉम्प्लेक्स

यह एक आधुनिक ट्रेनिंग फैसिलिटी होगी, जो शहरी क्षेत्रों में मिलिट्री ऑपरेशनों के लिए तैयार की जाएगी। इसमें दो कंपाउंड होंगे—एक शहरी सेटअप और दूसरा ग्रामीण सेटअप।

  • शहरी सेटअप: यह एक छोटे शहर या कस्बे जैसा होगा, जिसमें कम से कम 10 बहुमंजिला इमारतें और 50 कमरे होंगे। इसमें अस्पताल, पुलिस स्टेशन, रेडियो स्टेशन, फैक्ट्री, बैंक, होटल, सिनेमा हॉल, स्कूल, गोदाम और प्रशासनिक भवन शामिल होंगे। इन इमारतों पर हेलीकॉप्टर से स्लिदरिंग और रैपलिंग जैसे विशेष अभियानों का अभ्यास किया जा सकेगा।
  • ग्रामीण सेटअप: यह एक भारतीय गांव का नक्शा होगा, जिसमें गोशाला, मंदिर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मिट्टी के घर, फसल भंडारण सुविधा और एक खुला मैदान या हेलीपैड होगा। यह सेटअप विशेष हेलीकॉप्टर अभियान के लिए तैयार किया जाएगा।

MARCOS कमांडो और मित्र देशों की स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग

यह ट्रेनिंग सेंटर विशेष रूप से भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो के लिए तैयार किया जा रहा है, जो आतंकवाद विरोधी अभियानों में विशेषज्ञ हैं। इसके अलावा, इसे मित्र देशों के विशेष बलों को प्रशिक्षित करने और नए उपकरणों के परीक्षण के लिए भी उपयोग किया जाएगा।

इस सेंटर में अत्याधुनिक सिमुलेटर और मॉड्यूलर बिल्डिंग्स होंगी, जो वास्तविक परिस्थितियों का अनुभव कराएंगी। नौसेना के दस्तावेजों के अनुसार, यह परियोजना नई चुनौतियों से निपटने के लिए विशेष बलों को तैयार करने में मददगार साबित होगी। भारतीय नौसेना ने इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए एक सलाहकार को शामिल किया है। यह ट्रेनिंग सेंटर भारत की समुद्री सुरक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा। स्पेशल फोर्सेज की क्षमताओं को बढ़ाकर, यह केंद्र आतंकवाद और समुद्री लुटेरों के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

IAF Combined Graduation Parade: एयर फोर्स अकादमी में आयोजित हुई कंबाइंड ग्रेजुएशन परेड, 204 कैडेट्स को मिला कमीशन

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IAF Combined Graduation Parade: आज 14 दिसंबर 2024 को हैदराबाद के एयर फोर्स अकादमी (AFA) डुंडीगल में एक भव्य Combined Graduation Parade (CGP) का आयोजन किया गया। इस परेड के जरिए भारतीय वायुसेना (IAF) के फ्लाइंग और ग्राउंड ड्यूटी ब्रांच के फ्लाइट कैडेट्स का प्री-कमीशनिंग ट्रेनिंग कार्यक्रम सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, जो कि भारतीय वायुसेना के प्रमुख (CAS) हैं, इस परेड के रिव्यूइंग ऑफिसर (RO) थे और उन्होंने परेड में सम्मिलित होने वाले फ्लाइट कैडेट्स को राष्ट्रपति की कमीशन प्रदान की। इस बार कुल 204 कैडेट्स ने स्नातक की डिग्री प्राप्त की, जिनमें 178 पुरुष और 26 महिलाएं शामिल थीं।

IAF Combined Graduation Parade: 204 Cadets Commissioned at Air Force Academy

IAF Combined Graduation Parade: वायुसेना प्रमुख बने रिव्यूइंग ऑफिसर

एयर चीफ मार्शल एपी सिंह का स्वागत एयर मार्शल नागेश कपूर, एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, ट्रेनिंग कमांड और एयर मार्शल एस श्रीनिवास, कमांडेंट, एयर फोर्स अकादमी द्वारा किया गया। इसके बाद, परेड ने रिव्यूइंग ऑफिसर को जनरल सल्यूट दिया और एक शानदार मार्च पास्ट हुआ।

इस अवसर पर भारतीय नौसेना के नौ अधिकारियों, भारतीय कोस्ट गार्ड के नौ अधिकारियों और एक मित्र राष्ट्र के एक अधिकारी को भी उड़ान प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ‘विंग्स’ से सम्मानित किया गया। इस समारोह में भारतीय वायुसेना के उच्च अधिकारी, परिवार के सदस्य और अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।

IAF Combined Graduation Parade: 204 Cadets Commissioned at Air Force Academy

कमीशनिंग समारोह का महत्व

परेड का सबसे अहम पल था ‘कमीशनिंग समारोह’, जिसमें स्नातक कैडेट्स को उनके ‘रैंक’ से नवाजा गया। इस समारोह में, अकादमी के कमांडेंट ने स्नातक अधिकारियों को एक शपथ दिलाई, जिसमें उन्होंने देश की संप्रभुता और सम्मान की रक्षा करने का संकल्प लिया।

इसके बाद, परेड के बीच में प्रशिक्षक विमानों द्वारा एक शानदार फ्लाईपास्ट भी किया गया, जिसमें पिलाटस PC-7 MkII, हॉक, किरण और चेतक विमान शामिल थे। इन विमानों की समन्वित उड़ान ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

IAF Combined Graduation Parade: 204 Cadets Commissioned at Air Force Academy

अपने प्रशिक्षण में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले स्नातक अधिकारियों को रिव्यूइंग ऑफिसर ने पुरस्कार प्रदान किए। फ्लाइंग ब्रांच के फ्लाइंग ऑफिसर पराग धांकर को ‘President’s Plaque’ और ‘Chief of the Air Staff Sword of Honour’ से नवाजा गया। यह पुरस्कार उन्हें पायलट कोर्स में कुल मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए दिया गया। ग्राउंड ड्यूटी ब्रांच के फ्लाइंग ऑफिसर राम प्रसाद गुर्जर को भी ‘President’s Plaque’ प्रदान किया गया।

IAF Combined Graduation Parade: 204 Cadets Commissioned at Air Force Academy

रिव्यूइंग ऑफिसर ने परेड को संबोधित करते हुए सभी कैडेट्स की उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सराहना की। उन्होंने कहा कि, “आप सभी ने जिस अनुशासन, आत्मविश्वास और समर्पण के साथ अपनी ट्रेनिंग पूरी की है, वह वायुसेना के लिए गर्व की बात है।” उन्होंने यह भी बताया कि वायुसेना के पायलट और अधिकारी के रूप में आपको बहुत जिम्मेदारी और चुनौती मिलेगी, लेकिन आपका प्रशिक्षण आपको इस कार्य के लिए तैयार करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि “आप सभी भविष्य के नेता हैं और वायुसेना की दिशा तय करेंगे।”

परेड के अंत में, नए कमीशन किए गए अधिकारियों ने “प्रथम पग” एयर फोर्स में डाला और वे दो कॉलमों में मार्च करते हुए देशभक्ति के जोश से भरे हुए थे। इस विशेष मौके पर, PC-7 MK-II, SU-30 MKI विमान, सारंग हेलीकॉप्टर डेमोंस्ट्रेशन टीम और सूर्य किरण एरोबेटिक टीम (SKAT) का शानदार एरोबेटिक्स प्रदर्शन भी देखने को मिला।

IAF Combined Graduation Parade: 204 Cadets Commissioned at Air Force Academy

कमीशनिंग समारोह वायुसेना अधिकारियों के जीवन में एक महत्वपूर्ण दिन होता है, क्योंकि इसे वे अपने परिवार और प्रियजनों के सामने राष्ट्रपति की कमीशन प्राप्त करते हैं। यह उनके करियर का एक अहम दिन होता है और उनके जीवन में यह हमेशा यादगार रहता है, क्योंकि यह दिन उनके राष्ट्र की सेवा में एक नई शुरुआत का प्रतीक होता है।

Indian Navy Project-76: क्या है भारतीय नौसेना का ये खास Project-76? समुद्र के नीचे चीन-पाकिस्तान को टक्कर देने की कर रही बड़ी तैयारी!

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Indian Navy Project-76: भारतीय नौसेना अपनी समुद्र संबंधी ताकत को और मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर रही है। इन योजनाओं में से एक खास प्रोजेक्ट है, जिसे “Project-76” के नाम से जाना जाता है। यह प्रोजेक्ट भारतीय नौसेना की समुद्र के अंदर युद्धक्षमता (undersea warfare capabilities) को और अधिक बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। खास बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय नौसेना पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है, ताकि देश की सुरक्षा में आत्मनिर्भरता बढ़े और रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिले।

Indian Navy Project 76: India’s Major Plan to Improve Undersea Warfare Capabilities

Indian Navy Project-76 का उद्देश्य

भारतीय नौसेना का Project-76 एक नई श्रेणी के डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों के निर्माण पर फोकस है। ये पनडुब्बियां भारतीय नौसेना की समुद्र में गहराई में रणनीतिक ताकत को बढ़ाने में सहायक होंगी। इन पनडुब्बियों का प्रमुख उद्देश्य दुश्मन के जहाजों और पनडुब्बियों से मुकाबला करना और समुद्र में भारतीय नौसेना की उपस्थिति को मजबूत करना है।

स्वदेशी डीजल इंजन का महत्व

इस प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन पनडुब्बियों के लिए स्वदेशी डीजल इंजन विकसित किए जाएंगे। भारत में एक निजी क्षेत्र की कंपनी है, जिसने पहले ही औद्योगिक डीजल इंजन विकसित किए हैं और वह अब भारतीय नौसेना के साथ मिलकर Project-76 के लिए आवश्यक इंजन तैयार करने की प्रक्रिया में है। यह इंजन पनडुब्बियों को ताकत देगा और इनकी क्षमता 1231-1300 किलोवाट तक हो सकती है। प्रत्येक इंजन का वजन लगभग 6 टन होगा।

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इन पनडुब्बियों को दो ऐसे इंजन की आवश्यकता होगी, जिनका मुख्य कार्य लिथियम-आयन बैटरी को रिचार्ज करना होगा, जब पनडुब्बी स्नॉर्कल गहराई (snorkel depth) पर ऑपरेट कर रही होगी। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि पनडुब्बियों को बिना सतह पर आए लंबे समय तक समुद्र के नीचे रहने की आवश्यकता होती है।

भारतीय नौसेना को स्वदेशी इंजन पर जोर देने की एक बड़ी वजह है – सप्लाई चेन की विश्वसनीयता में सुधार, आयात पर निर्भरता को कम करना और रक्षा क्षेत्र में घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना। स्वदेशी इंजन बनाने से न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि देश के रक्षा उद्योग को भी एक नई दिशा मिलेगी। एक बार तकनीकी आवश्यकताएं पूरी हो जाने के बाद, इंजन के विकास का चरण शुरू हो जाएगा, जो भारत के समुद्री रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।

Project-77 की तैयारी

यह स्वदेशी डीजल इंजन सिर्फ Project-76 के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगा, बल्कि इसके भविष्य में और भी महत्वपूर्ण उपयोग हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, इन इंजन का इस्तेमाल Project-77 में भी हो सकता है, जो भारत के न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बी (SSN) के लिए विकसित किया जा रहा है। यहां तक कि न्यूक्लियर पनडुब्बियों में भी डीजल इंजन बैकअप पावर सिस्टम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये इंजन पनडुब्बी के रिएक्टर कूलिंग जैसे महत्वपूर्ण सिस्टम को चलाने के लिए इमरजेंसी पावर प्रदान करते हैं। इसके अलावा, अगर रिएक्टर में कोई खराबी आती है, तो यह इंजन इमरजेंसी प्रोपल्शन (propulsion) की सुविधा भी देते हैं।

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ये इंजन न्यूक्लियर पनडुब्बियों के लिए एक सिक्योरिटी सिस्टम के तौर पर भी कार्य करेंगे, जिससे पनडुब्बी के ऑपरेशन में कोई संकट न हो। इसके कारण, इन इंजन का विकास सिर्फ Project-76 के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाली न्यूक्लियर पनडुब्बियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इन स्वदेशी इंजन को बनाने के पीछे नौसेना का लक्ष्य एक विश्वसनीय, बहु-उद्देशीय और स्वदेशी पनडुब्बी बेड़ा तैयार करना है। यह पनडुब्बी केवल दुश्मन से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए भी तैयार की जा रही हैं। भारत का यह कदम सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।

स्वदेशी इंजन तकनीक का उपयोग न केवल भारतीय नौसेना को ताकतवर बनाएगा, बल्कि यह रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि होगी। Project-76 भारतीय नौसेना के लिए एक ऐसे प्रोजेक्ट के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, जो न केवल देश की समुद्री ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में भी बड़ा योगदान देगा।

Indian Navy: हिंद-प्रशांत में दोस्ती की लहर! समुद्री साझेदारी मजबूत करने इंडोनेशिया पहुंचे नौसेना प्रमुख

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Indian Navy: भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी 15 से 18 दिसंबर 2024 तक इंडोनेशिया के आधिकारिक दौरे पर हैं। इस दौरे का उद्देश्य भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को और मजबूत करना है। यह दौरा दोनों देशों के बीच व्‍यापक रणनीतिक साझेदारी के तहत समुद्री सहयोग को केंद्र में रखकर आयोजित किया जा रहा है।

Indian Chief Admiral Dinesh Tripathi in Indonesia to Strengthen Maritime Partnership

Indian Navy: उच्च स्तरीय वार्ताओं का कार्यक्रम

इस दौरे के दौरान एडमिरल त्रिपाठी इंडोनेशिया के शीर्ष सरकारी और रक्षा अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे। इनमें इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल स्याफरी स्यामसुद्दीन (सेवानिवृत्त), इंडोनेशियाई सशस्त्र बलों के कमांडर जनरल अगुस सुबियंतो और इंडोनेशियाई नौसेना के चीफ ऑफ स्टाफ एडमिरल मुहम्मद अली शामिल हैं। इन वार्ताओं में समुद्री सुरक्षा, संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों और दोनों नौसेनाओं के बीच परिचालन सहयोग को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की जाएगी।

भारत-इंडोनेशिया समुद्री सहयोग

भारत और इंडोनेशिया के बीच मजबूत समुद्री संबंध दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। यह सहयोग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। वर्तमान में दोनों देशों के बीच 43वां समन्वित समुद्री गश्ती (कॉरपेट) 10 से 18 दिसंबर तक अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पर चल रहा है। यह गश्ती अभियान दोनों नौसेनाओं के बीच सहयोग और विश्वास को और गहरा करता है।

साझा प्रयासों का विस्तार

दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच पहले से ही कई क्षेत्रों में सहयोग हो रहा है। इनमें संयुक्त अभ्यास, बंदरगाहों की यात्रा और प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं। ये सभी गतिविधियां क्षमता निर्माण और परिचालन दक्षता बढ़ाने में मदद करती हैं। एडमिरल त्रिपाठी के इंडोनेशिया दौरे से इन प्रयासों को और बल मिलने की उम्मीद है।

हिंद-प्रशांत में भारत की रणनीतिक भागीदारी

भारत और इंडोनेशिया के बीच गहराते समुद्री संबंध हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक भागीदारी को भी मजबूत करते हैं। यह साझेदारी न केवल समुद्री सुरक्षा बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। दोनों देशों का यह सहयोग क्षेत्र में बाहरी हस्तक्षेप को कम करने और स्थायी विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो रहा है।

एडमिरल त्रिपाठी के नेतृत्व में भारतीय नौसेना ने समुद्री क्षेत्र में अपनी क्षमता और पहुंच को काफी हद तक बढ़ाया है। उनका यह दौरा भारत और इंडोनेशिया के बीच आपसी विश्वास और मित्रता को और गहरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

इस दौरे में समुद्री सुरक्षा से संबंधित कई नई पहलों पर चर्चा होने की संभावना है। इनमें नौसैनिक अभ्यासों को और उन्नत करना, संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और समुद्री सूचना साझेदारी को मजबूत करना शामिल है। ये पहल दोनों देशों की नौसेनाओं को नई चुनौतियों से निपटने के लिए और अधिक सक्षम बनाएंगी।

K9 Vajra Artillery Guns: भारतीय सेना को मिलेंगी 100 अतिरिक्त K9 वज्र तोपें; लद्दाख में चीन की चुनौती से निपटने की तैयारी

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K9 Vajra Artillery Guns: भारत की सैन्य ताकत को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट कमेटी ने 100 अतिरिक्त K9 वज्र तोपों और 12 नए Su-30MKI लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण को मंजूरी दी है। यह फैसला भारत की उत्तरी सीमाओं, विशेष रूप से लद्दाख और अन्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चीन के साथ बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए लिया गया है। बता दें कि रक्षा समाचार.कॉम ने यह खबर (K9 Vajra Guns: भारतीय सेना को जल्द मिल सकती हैं 100 और K-9 वज्र तोपें, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के सामने प्रपोजल पेश करने की तैयारी) 26 नवंबर को ही प्रकाशित कर दी थी।

K9 Vajra Guns: Indian Army Likely to Get 100 More K9 Vajra Howitzers, Proposal to Be Presented to CCS Soon

K9 Vajra Artillery Guns: तकनीकी ताकत और अनोखी क्षमताएं

K9 वज्र एक 155 मिमी की ट्रैक्ड आर्टिलरी गन है, जो टैंक जैसी मारक क्षमता, एडवांस मोबिलिटी और सटीकता के लिए मशहूर है। यह तोप पहले राजस्थान के रेगिस्तान में तैनात की गई थी, लेकिन 2020 में चीन के साथ सीमा पर तनाव के बाद इसे लद्दाख जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया गया। बता दें कि सेना में पहले से ही के9 वज्र गनों की पांच रेजिमेंट हैं, और इस फैसले के बाद पांच रेजिमेंट और बनाईं जाएंगी। जिसके बाद इनकी संख्या कुल 10 हो जाएगी।

K9 Vajra Guns: भारतीय सेना को जल्द मिल सकती हैं 100 और K-9 वज्र तोपें, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के सामने प्रपोजल पेश करने की तैयारी

इस तोप की सबसे बड़ी खासियत इसकी सेल्फ-प्रोपेल्ड (स्व-चालित) प्रणाली है, जो इसे अन्य तोपों से अलग बनाती है। इसे खींचने के लिए किसी बाहरी वाहन की आवश्यकता नहीं होती, और इसके एडवांस सिस्टम इसे कठिन परिस्थितियों में भी तेजी से फायरिंग और पुनः तैनाती में सक्षम बनाते हैं।

K9 Vajra Artillery Guns में हाई एल्टीट्यूड पर तैनाती के लिए खास अपग्रेड

नई K9 वज्र तोपों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए खास तौर पर तैयार किया जा रहा है। इन्हें -20°C तक के ठंडे मौसम में भी प्रभावी रूप से काम करने लायक बनाया गया है। इसके लिए इनमें कई खास फीचर जोड़े गए हैं, जैसे:

  • एडवांस्ड फायर-कंट्रोल सिस्टम
  • विशेष लुब्रिकेंट्स
  • ठंडे मौसम के लिए तैयार की गई बैटरियां

तोप की रेंज 40 किलोमीटर से अधिक है और यह 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मूव कर सकती है। इसे पांच जवानों की टीम मैनेज करती है और यह 49 राउंड तक गोला-बारूद अपने साथ ले जाने में सक्षम है।

लद्दाख में सैन्य रणनीति को मिलेगी मजबूती

लद्दाख जैसे क्षेत्रों में इन तोपों की तैनाती भारत की सीमा सुरक्षा को एक नई मजबूती प्रदान करेगी। इन तोपों की मदद से किसी भी आकस्मिक स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया देने में मदद मिलेगी। K9 वज्र तोपें लद्दाख में पहले से तैनात Dhanush और M777 अल्ट्रा-लाइट होवित्जर तोपों के साथ तैनात होंगी। यह तैनाती भारत के उत्तरी सीमा पर मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर को पुनर्गठित करने के बड़े प्रयास का हिस्सा है। यह कदम भारत की आर्टिलरी ताकत को चीन जैसे संभावित खतरों के मुकाबले और अधिक प्रभावी बनाएगा।

स्वदेशी निर्माण: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम

K9 वज्र तोपें भारत में बनी हैं। इन्हें गुजरात के हजीरा स्थित लार्सन एंड टुब्रो (L&T) प्लांट में तैयार किया गया है। इन तोपों के निर्माण में 18,000 से अधिक पुर्जे भारतीय सप्लायर्स द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। यह परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

स्वदेशी उत्पादन से न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा मिलता है, बल्कि यह देश के रक्षा उद्योग को भी मजबूती प्रदान करता है। इससे भविष्य में अन्य सैन्य उपकरणों के निर्माण और निर्यात की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।

सेना की मौजूदा K9 वज्र बेड़े को मिलेगा विस्तार

फिलहाल, भारतीय सेना के पास पहले से ही 100 K9 वज्र तोपों का बेड़ा है। नई 100 तोपों के जुड़ने से इस संख्या में दोगुनी वृद्धि होगी, जिससे सेना को सामरिक बढ़त मिलेगी।

सेना इन नई तोपों का उपयोग सीमावर्ती क्षेत्रों में उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए करेगी। इनमें लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जहां भौगोलिक और कठोर मौसम की परिस्थितियां हमेशा एक चुनौती रहती हैं।

सीमा सुरक्षा के लिए नई शुरुआत

2020 में चीन के साथ सीमा विवाद के बाद से भारत ने अपनी सीमा सुरक्षा और सैन्य तैयारियों में बड़े सुधार किए हैं। K9 वज्र तोपें इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इन तोपों की तेज़ फायरिंग क्षमता और मुश्किल इलाकों में तैनाती की सहूलियत भारतीय सेना के लिए एक बड़ा लाभ है।

इस निर्णय से भारतीय सेना को न केवल बेहतर तकनीकी ताकत मिलेगी, बल्कि दुश्मन के साथ किसी भी स्थिति में कुशलता से निपटने का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। K9 वज्र का अपग्रेडेड संस्करण भारतीय सेना के भविष्य के अभियानों को सफल बनाने में एक अहम भूमिका निभाएगा। यह कदम न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय रक्षा प्रणाली की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी निर्माण क्षमताओं को भी प्रदर्शित करता है। K9 वज्र तोपों की तैनाती भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।