INS Nirdeshak: विशाखापत्तनम के नेवल डॉकयार्ड में बुधवार को भारतीय नौसेना के सर्वेक्षण पोत INS निर्देशक (INS Nirdeshak) को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। इस ऐतिहासिक मौके पर रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। समारोह की मेजबानी पूर्वी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल राजेश पेंढरकर ने की। इस कार्यक्रम में नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) के प्रतिनिधि और अन्य विशिष्ट गणमान्य व्यक्ति भी शामिल हुए।
INS Nirdeshak: आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक
INS निर्देशक भारतीय नौसेना के सर्वेक्षण पोत (बड़े) परियोजना का दूसरा जहाज है, जिसे कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने बनाया है। इस पोत में 80 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग हुआ है, जो रक्षा निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) के संकल्प को दर्शाता है।
INS निर्देशक का निर्माण भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिज़ाइन ब्यूरो की विशेषज्ञता और MSMEs, SAIL, और अन्य निजी उद्योग साझेदारों के सहयोग से किया गया है। यह पोत भारतीय नौसेना के डिज़ाइन और निर्माण कौशल का प्रमाण है।
INS निर्देशक भारतीय नौसेना के उस ऐतिहासिक पोत का पुनर्जन्म है, जिसने 32 वर्षों तक देश की सेवा की और 2014 में सेवामुक्त हो गया। नए निर्देशक को उस गौरवशाली परंपरा का सम्मान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह पोत अत्याधुनिक सुविधाओं और तकनीकी क्षमताओं से लैस है।
बेहतर संचालन क्षमता और समुद्री ताकत
INS निर्देशक 25 दिनों तक समुद्र में लगातार काम कर सकता है। इसकी अधिकतम गति 18 नॉट्स से अधिक है। यह पोत आधुनिक हाइड्रोग्राफिक उपकरणों से सुसज्जित है, जो इसे समुद्र की गहराई और सतह की विस्तृत जानकारी इकट्ठा करने में सक्षम बनाता है।
यह पोत भारत की समुद्री ताकत को नई ऊंचाई प्रदान करेगा। इसकी उन्नत क्षमताएं न केवल सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोगी होंगी, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और वैज्ञानिक अन्वेषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
सागर विज़न और भारतीय नौसेना का विस्तार
INS निर्देशक का जलावतरण भारतीय नौसेना के हाइड्रोग्राफिक बेड़े के आधुनिकीकरण की दिशा में एक अहम कदम है। यह भारत की “सागर” (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) दृष्टि को भी मजबूती देता है। इस दृष्टि के तहत भारत क्षेत्रीय सुरक्षा और समुद्री विकास को प्राथमिकता देता है।
INS निर्देशक के शामिल होने से न केवल नौसेना की परिचालन क्षमता बढ़ेगी, बल्कि यह क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में भी भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को मजबूत करेगा।
उन्नत तकनीक और स्वदेशी योगदान
INS निर्देशक में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे समुद्री अनुसंधान और संचालन के लिए बेहतरीन बनाती है। पोत में हाई-टेक उपकरण लगे हैं, जो इसे समुद्र की सतह और गहराई का सटीक मानचित्र तैयार करने में सक्षम बनाते हैं।
इस पोत का निर्माण रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत के प्रयासों को भी दर्शाता है। GRSE और अन्य भारतीय उद्योगों ने मिलकर इसे तैयार किया है, जो भारत की स्वदेशी निर्माण क्षमता का प्रतीक है।
INS निर्देशक भारतीय नौसेना की उन योजनाओं का हिस्सा है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं। यह पोत समुद्री सीमाओं की निगरानी, संसाधनों की खोज और सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
LCA Tejas: भारतीय वायुसेना (IAF) की ताकत बढ़ाने और स्क्वाड्रन की कमी को पूरा करने के लिए, संसद की रक्षा पर स्थायी समिति ने रक्षा मंत्रालय (MoD) को निर्देश दिया है कि वह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को तेजस लड़ाकू विमानों के उत्पादन में तेजी लाने के लिए कहे। यह बात समिति के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद राधा मोहन सिंह की अध्यक्षता में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कही गई।
File Photo
LCA Tejas: वायुसेना की घटती ताकत पर चिंता
रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन के साथ संभावित दो-फ्रंट युद्ध की तैयारी के लिए 42 फाइटर स्क्वाड्रन की जरूरत है। हालांकि, वर्तमान में वायुसेना के पास केवल 31 सक्रिय स्क्वाड्रन हैं, जिनमें प्रत्येक में 16-18 लड़ाकू विमान होते हैं।
समिति ने तेजस विमानों की देरी से डिलीवरी को लेकर भी चिंता जताई। HAL को 83 तेजस मार्क-1ए विमानों का ऑर्डर दिया गया था, जिसकी कुल लागत 48,000 करोड़ रुपये है। मार्च 2024 से इनकी डिलीवरी शुरू होनी थी, लेकिन अभी तक एक भी विमान वायुसेना को नहीं सौंपा गया है।
HAL को LCA Tejas की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के निर्देश
HAL को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का निर्देश दिया गया है। रक्षा मंत्रालय, जो HAL का प्रमुख हिस्सेदार है, ने समिति को आश्वस्त किया है कि इस मामले में जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं।
रक्षा मंत्रालय ने यह भी बताया कि वायुसेना ने 97 अतिरिक्त तेजस मार्क-1ए विमानों को खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इन विमानों की खरीद को प्रारंभिक मंजूरी दे दी है और इसके लिए औपचारिक प्रस्ताव मांगे गए हैं।
पुराने विमानों के रिटायर होने से बढ़ी चुनौतियां
भारतीय वायुसेना के लिए एक और चुनौती पुराने विमानों का रिटायर होना है। अगले साल तक सोवियत-युग के दो मिग-21 स्क्वाड्रन को चरणबद्ध तरीके से रिटायर कर दिया जाएगा। इसके अलावा, 1980 के दशक में शामिल जगुआर, मिग-29 और मिराज 2000 के लगभग 250 विमानों को 2029-30 के बाद सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।
इन विमानों की रिटायरमेंट के बाद वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमता पर असर पड़ सकता है। इसलिए तेजस जैसे स्वदेशी विमानों की तत्काल डिलीवरी और नए विमानों की खरीद वायुसेना की जरूरत बन गई है।
हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण और सुरक्षा उपाय
रक्षा मंत्रालय ने समिति को बताया कि वायुसेना के हवाई ठिकानों के आधुनिकीकरण के लिए “मॉडर्नाइजेशन ऑफ एयरफील्ड्स इंफ्रास्ट्रक्चर” (MAFI) प्रोग्राम के तहत 52 एयरफील्ड्स को अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया गया है।
इसके साथ ही, अग्रिम हवाई अड्डों पर नए और सुरक्षित एयरक्राफ्ट शेल्टर्स (हवाई ठिकानों के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर) बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है, ताकि दुश्मन के हमलों से महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
तेजस लड़ाकू विमान भारत के आत्मनिर्भर अभियान का प्रतीक है। यह हल्का, मल्टी-रोल लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ देश की रक्षा उत्पादन क्षमता को भी आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।
हालांकि, HAL द्वारा डिलीवरी में हो रही देरी को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरने की कोशिश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस परियोजना को तेज़ी से लागू करने के लिए न केवल HAL को बल्कि रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायुसेना को भी समन्वय के साथ काम करना होगा।
समिति की सिफारिशें
समिति ने कहा कि रक्षा मंत्रालय को HAL के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तेजस विमानों का उत्पादन समयबद्ध तरीके से हो। साथ ही, स्क्वाड्रन की कमी को दूर करने के लिए अन्य वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करना चाहिए।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस विमानों की त्वरित डिलीवरी और नई तकनीकों का उपयोग भारतीय वायुसेना को न केवल मजबूत बनाएगा, बल्कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत की रक्षा तैयारियों को भी बेहतर करेगा।
Bioscope Photography Exhibition: प्रकृति की अद्भुत सुंदरता को फोटोग्राफी के माध्यम से प्रदर्शित करना न केवल एक कला है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण से जुड़ाव को और गहरा करता है। सेना में रहते हुए ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह ने न सिर्फ अपने फोटोग्राफी के हुनर को निखारा, बल्कि उसे नई पहचान भी दी। उन्होंने अपनी फोटो प्रदर्शनी “Bioscope” के माध्यम से प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया है। इस प्रदर्शनी में उन्होंने वन्यजीवों, लैंडस्केप, एरियल व्यूज और खूबसूरत फूलों की तस्वीरों के जरिए दर्शकों को प्रकृति के अदृश्य और अनदेखे पहलुओं से परिचित कराया।
क्या खास है Bioscope Photography Exhibition में
“Bioscope” फोटो प्रदर्शनी का उद्देश्य न केवल कला के प्रेमियों को आकर्षित करना है, बल्कि यह उन सभी को जागरूक करना है जो प्रकृति और उसके संरक्षण में दिलचस्पी रखते हैं। प्रदर्शनी में प्रदर्शित तस्वीरें जंगलों के जंगली जानवरों से लेकर आकाश की छटा और फूलों के सौंदर्य तक का विस्तृत चित्रण करती हैं। हर तस्वीर में जीवन के किसी विशेष रूप का संदेश है, जो दर्शकों को एक नई दृष्टि से प्रकृति को देखने के लिए प्रेरित करती है।
ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह की खींची गई इन तस्वीरों में प्रकृति की विविधता और इसकी जटिलताओं का खामोशी से चित्रण किया गया है। चाहे वह जंगल में घूमते जंगली जानवर हों, आकाश में उड़ते पक्षी हों या फिर एक खिलता हुआ फूल, हर तस्वीर अपनी गहरी कहानी बयां करती है।
प्रदर्शनी का उद्देश्य और संदेश
“Bioscope” प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति जागरूकता फैलाना और इसे बचाने की आवश्यकता को समझाना है। प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्र यह दिखाते हैं कि प्रकृति और मनुष्य का संबंध कैसे एक दूसरे से गहरे जुड़ा हुआ है। हर तस्वीर यह संदेश देती है कि अगर हम प्रकृति का सम्मान करेंगे और उसकी रक्षा करेंगे, तो यही प्रकृति हमारे जीवन को और भी सुंदर और समृद्ध बनाएगी।
ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह का मानना है कि हम सभी का कर्तव्य है कि हम प्रकृति और उसके संसाधनों का संरक्षण करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इस खूबसूरत दुनिया का अनुभव हो सके। उन्होंने अपनी फोटोग्राफी को माध्यम बनाकर इस संदेश को लोगों तक पहुंचाया है।
ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह का फोटोग्राफी सफर
ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो पिछले 32 वर्षों से सेवा दे रहे हैं। उनकी सेवाओं ने न केवल सेना में, बल्कि कई मानवीय मिशनों में भी उन्हें ख्याति दिलाई है। लेकिन सेना की सेवा के साथ-साथ, उनकी एक और खास पहचान वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के तौर पर बन चुकी है। उन्होंने अपनी फोटोग्राफी में प्राकृतिक जीवन और पारिस्थितिकी को दर्शाते हुए एक नई दिशा दी है।
COVID-19 महामारी के दौरान, जब अधिकांश लोग अपने घरों में बंद थे, ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह ने अपने फोटोग्राफी कौशल को और भी निखारा। इसके बाद, उनकी फोटोग्राफी को और अधिक सजीव रूप में देखा गया और इसके परिणामस्वरूप उन्होंने कई प्रमुख प्रदर्शनी आयोजित की। “Bioscope” भी उसी प्रयास का हिस्सा है, जिसमें उन्होंने प्रकृति के अद्भुत और अनदेखे पहलुओं को कैमरे के लेंस से कैद किया है।
उनकी पत्नी सोनिया भी हैं काफी एक्टिव
ब्रिगेडियर बिक्रम सिंह की पत्नी सोनिया भी फोटोग्राफी के क्षेत्र में उनकी साझेदार हैं। दोनों मिलकर “Bison Shot” नामक ब्रांड के तहत फोटोग्राफी करते हैं, जिसमें उनका उद्देश्य वन्यजीवों और प्रकृति के संरक्षण को बढ़ावा देना है। उनका काम न केवल क़ला के प्रति प्रेम का प्रतीक है, बल्कि यह एक संदेश भी देता है कि प्रकृति और मनुष्य का एक मजबूत और स्थिर संबंध होना चाहिए।
“Bioscope” प्रदर्शनी केवल कला प्रेमियों के लिए नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए है जो प्रकृति और उसके संरक्षण में रुचि रखते हैं। प्रदर्शनी में प्रदर्शित तस्वीरें न केवल सौंदर्य से भरपूर हैं, बल्कि यह संदेश देती हैं कि अगर हम प्रकृति का सही तरीके से सम्मान करेंगे, तो यह हमें हमेशा अपने अद्भुत रूपों से रूबरू कराती रहेगी।
यहां लगी है प्रदर्शनी
अगर आप भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का शौक रखते हैं और प्रकृति के खूबसूरत रंगों को देखना चाहते हैं, तो आप इस प्रदर्शनी को देखने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, आर्ट गैलरी एनेक्सी, लोदी एस्टेट, नई दिल्ली-03 जा सकते हैं। यह प्रदर्शनी 15 से 21 नवंबर तक सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक है। आप bisonshot@gmail.com पर भी संपर्क कर सकते हैं।
Indian Army: राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज (MFFR) में एक दर्दनाक घटना में 199वीं मीडियम रेजिमेंट के हवलदार (गनर) चंद्र प्रकाश पटेल का निधन हो गया। यह हादसा 15 दिसंबर की रात को उस समय हुआ जब वह ऑर्टिलरी डिप्लॉयमेंट ट्रेनिंग के दौरान अपनी ड्यूटी कर रहे थे।
रक्षा अधिकारियों के अनुसार, 31 वर्षीय हवलदार चंद्र प्रकाश पटेल गन बैटरी में डिटैचमेंट कमांडर के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे थे। हादसा रात करीब 9:40 बजे तब हुआ जब पटेल एक आर्टिलरी गन को टोइंग वाहन से जोड़ रहे थे। इसी दौरान वाहन ने रैंप पर संतुलन खो दिया और पीछे की ओर फिसल गया, जिससे पटेल गंभीर रूप से घायल हो गए।
Indian Army: तत्काल इलाज के बावजूद नहीं बच सकी जान
घटना के तुरंत बाद हवलदार पटेल को सेना के एंबुलेंस के जरिए नजदीकी फील्ड अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। सेना ने घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का आदेश दिया है। चूंकि यह घटना एक ऑपरेशनल अभ्यास के दौरान हुई, इसलिए इसे “बैटल कैजुअल्टी” के रूप में दर्ज किया गया है।
13 साल की सेवा और अटूट समर्पण
हवलदार चंद्र प्रकाश पटेल का सेना में 13 साल का लंबा अनुभव था। अपने समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा के लिए वह अपने साथियों और अधिकारियों के बीच बेहद सम्मानित थे। वह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के नारायणपुर गांव के रहने वाले थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी और 3 साल का बेटा है।
डिटैचमेंट कमांडर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका
सेना अधिकारियों ने बताया कि हवलदार पटेल की भूमिका अभ्यास के दौरान बेहद महत्वपूर्ण थी। डिटैचमेंट कमांडर के रूप में उनका काम आर्टिलरी गन और अन्य उपकरणों की सही तैनाती सुनिश्चित करना था। ऐसे प्रशिक्षण अभ्यास सेना की युद्ध-तैयारी का अहम हिस्सा होते हैं, जहां सैनिकों की जिम्मेदारी और कुशलता का परीक्षण होता है।
सेना ने जताया शोक
भारतीय सेना ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया है। सेना ने हवलदार पटेल के परिवार के प्रति संवेदनाएं प्रकट करते हुए कहा कि उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। सेना अधिकारियों ने यह भी बताया कि हवलदार पटेल जैसे समर्पित जवान ही देश की सीमाओं की सुरक्षा का मजबूत आधार हैं।
“हवलदार चंद्र प्रकाश पटेल की अकाल मृत्यु हमारे सैनिकों द्वारा अभ्यास और युद्ध-तैयारी के दौरान झेले जाने वाले कठिन संघर्षों की याद दिलाती है। उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा,” एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा।
परिवार को हर संभव मदद का आश्वासन
सेना और उनके यूनिट के अधिकारियों ने हवलदार पटेल के परिवार को हर संभव मदद और सहयोग का आश्वासन दिया है। उनके अंतिम संस्कार के लिए परिवार को सम्मानपूर्वक व्यवस्था की जाएगी और सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।
सैन्य अभ्यास: युद्ध-तैयारी का एक अहम हिस्सा
राजस्थान का महाजन फील्ड फायरिंग रेंज भारतीय सेना के सबसे महत्वपूर्ण प्रशिक्षण क्षेत्रों में से एक है। यहां समय-समय पर विभिन्न प्रशिक्षण अभ्यास किए जाते हैं, ताकि सैनिकों को वास्तविक युद्ध परिस्थितियों के अनुरूप तैयार किया जा सके। इन अभ्यासों में तोपों की तैनाती, फायरिंग अभ्यास और युद्ध रणनीति का परीक्षण किया जाता है।
लेकिन ऐसे कठिन अभ्यास जोखिमों से भी भरे होते हैं। चाहे तापमान की मार हो या भारी उपकरणों के साथ काम करना, सैनिक हमेशा चुनौतियों का सामना करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
गांव और परिवार में शोक की लहर
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित उनके गांव नारायणपुर में जब इस घटना की खबर पहुंची, तो पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। गांववाले उनके साहस और बलिदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। उनके परिवार और करीबियों ने बताया कि हवलदार पटेल हमेशा से ही सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते थे और उन्होंने अपने सपने को पूरा किया।
Exercise Himshakti: लद्दाख में तैनात भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स (Fire and Fury Corps) ने चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जबरदस्त फायरपावर का प्रदर्शन कर पूरी दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराया है। हाल ही में जारी एक वीडियो में भारतीय सेना के तोपों की गूंज बर्फ से ढके हिमालय की ऊंचाइयों पर सुनाई दी। यह सैन्य अभ्यास 14,500 फीट की ऊंचाई पर हुआ, जहां तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था।
इन कठिन परिस्थितियों में भी भारतीय तोपखाने के जवानों ने अपनी उत्कृष्ट निपुणता और अदम्य साहस का प्रदर्शन किया। इस अभ्यास ने भारतीय सेना के दृढ़ संकल्प और जज़्बे को पूरी दुनिया के सामने रख दिया। भारतीय जवानों की यह तैयारी देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
Exercise Himshakti का समय और संदर्भ
हिमशक्ति युद्धाभ्यास एक महत्वपूर्ण समय पर हुआ है, जब हाल ही में भारत और चीन के बीच डिसएंगेजमेंट समझौता हुआ है, जिसके तहत दोनों देशों ने देपसांग प्लेन्स और डेमचोक के दो प्रमुख विवादित क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति जताई है। लंबे समय तक चले तनाव और विवाद के बाद यह समझौता सीमा पर शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
इस अभ्यास के जरिए भारतीय सेना ने साफ संदेश दिया है कि वह सिर्फ कूटनीति पर निर्भर नहीं है, बल्कि किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।
बर्फीले इलाकों में भारतीय सेना का हौसला
14,500 फीट की ऊंचाई पर दुर्लभ वायु दबाव और माइनस 35 डिग्री की जानलेवा ठंड के बीच तोपों की गड़गड़ाहट एक अनोखा नज़ारा था। भारतीय सेना के ‘टॉप गन गनर्स’ ने यह साबित किया कि चाहे मौसम कितना भी प्रतिकूल क्यों न हो, उनकी सटीक निशानेबाजी और मजबूत हौसले को कोई डिगा नहीं सकता।
Low on Oxygen; High on Morale!
Unleashing Firepower on Icy Heights
TOP GUN Gunners of #ForeverinOperationsDivision showcased their operational preparedness in the inhospitable terrain of Ladakh at over 14,500ft and amidst extreme temperatures of minus 35°C with undaunted grit,… pic.twitter.com/Pxj9DIlJWK
फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स का यह प्रदर्शन बेहद हाई एल्टीट्यूड इलाके में किया, जहां सांस लेना भी मुश्किल होता है। लेकिन भारतीय सेना के जवानों ने दुर्गम परिस्थितियों में भी यह अभ्यास कर दिखाया कि देश की सुरक्षा के लिए वे हर चुनौती को पार करने में सक्षम हैं।
वहीं, इस सैन्य अभ्यास के जरिए भारत के रक्षा आधुनिकीकरण और तकनीकी सशक्तिकरण की झलक भी देखने को मिली। सेना ‘Year of Tech Absorption’ और ‘Tech Infused Future Ready’ जैसी पहलों के तहत अपनी क्षमताओं को लगातार मजबूत कर रही है।
भारतीय सेना की यह तैयारी यह दिखाती है कि देश के सैनिक सालभर दुर्गम इलाकों में तैनात रहते हुए अपनी ऑपरेशनल रेडीनेस पर पूरा ध्यान देते हैं। चाहे वह तकनीकी साजो-सामान हो या अत्याधुनिक आर्टिलरी, सेना लगातार खुद को मजबूत और आधुनिक बना रही है।
राजनयिक वार्ता के बीच सख्त संदेश
इस अभ्यास का समय बेहद खास है, क्योंकि अगले दो दिनों में भारत और चीन के बीच बेहद अहम बातचीत होने जा रही है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात करेंगे। यह चर्चा विशेष प्रतिनिधि (SR) स्तर की वार्ता होगी, जो गलवान संघर्ष के बाद पांच साल में पहली बार हो रही है।
इस वार्ता का उद्देश्य LAC पर शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए एक रोडमैप तैयार करना है। हालांकि, इस बीच भारतीय सेना का यह अभ्यास एक सख्त संदेश देता है कि भले ही बातचीत के जरिए शांति की कोशिशें जारी हैं, लेकिन देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए सेना पूरी तरह तैयार है।
फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स यानी 14 कोर भारतीय सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लद्दाख जैसे दुर्गम और ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात है। यह कॉर्प्स बेहद सटीक फायरपावर और मजबूत रणनीतियों के लिए जानी जाती है। चाहे -35 डिग्री की कड़ाके की ठंड हो या बर्फीली हवाओं का कहर, फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स के जवान किसी भी परिस्थिति में अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हैं।
सेना का अडिग संकल्प
भारतीय सेना का यह अभ्यास इस बात का प्रमाण है कि चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न हों, हमारे जवान देश की सुरक्षा में कोई समझौता नहीं करते। उन्होंने बर्फ की चादर से ढके लद्दाख में जिस सटीकता और ताकत का प्रदर्शन किया है, वह देशवासियों के मन में विश्वास और गर्व की भावना को और मजबूत करता है।
सेना का यह प्रदर्शन न सिर्फ भारत की रक्षा तैयारियों को दर्शाता है, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी देता है कि भारतीय सेना किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हमेशा तैयार है।
Bangladesh Army Exercise: बांग्लादेश में इन दिनों सैन्य गतिविधियां अचानक तेज हो गई हैं। देश भर में सैन्य अभ्यास और सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन तैनाती से यह सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है या किसी बड़े कदम की तैयारी में है। वहीं, बांग्लादेश सेना ने 17 दिसंबर 2024 से 9 जनवरी 2025 तक देशव्यापी “विंटर एक्सरसाइज” की योजना बनाई है। यह अभ्यास विभिन्न सैन्य डिवीजनों द्वारा उनके संबंधित इलाकों में आयोजित किया जाएगा। इसे सेना की Regular Annual Joint Training Process कहा जा रहा है, लेकिन इसकी व्यापकता और समय को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
Bangladesh Army exercise: दिखाया एयर डिफेंस प्लान
हाल ही में बांग्लादेश सेना ने अपने लेयर-बेस्ड एयर डिफेंस प्लान का प्रदर्शन किया। इसमें दिखाया कि शॉर्ट रेंज के लिए सेना रडार गाइडेड एयर डिफेंस गन और VSHORAD का इस्तेमाल करेगी, इसके बाद FM-90C SHORAD सिस्टम का प्रयोग किया जाएगा। मीडियम रेंज के लिए बांग्लादेश सेना FM-3000 और LY-80D SAM सिस्टम (रेंज 25-70 किमी) को शामिल करेगी। इसके अलावा, लॉन्ग रेंज के लिए FK-3 मिसाइल सिस्टम (रेंज 100 किमी) को तैनात किया जाएगा।
तुर्की से Bayraktar TB2 UAV की खरीद
बांग्लादेश ने हाल ही में तुर्की से Bayraktar TB2 ड्रोन खरीदे हैं और उन्हें पश्चिम बंगाल सीमा के पास तैनात किया है। यह ड्रोन मॉर्डन मिलिट्री ऑपरेशन्स में गेम चेंजर माना जाता है। ड्रोन तकनीक का यह उपयोग बांग्लादेश की सैन्य ताकत को न केवल उन्नत करता है, बल्कि क्षेत्रीय तनाव को भी बढ़ाता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश एयरफोर्स तुर्की के Bayraktar Akinchi UCAV को भी खरीदने पर विचार कर रही है। वर्तमान में बांग्लादेश एयरफोर्स के पास इटली से खरीदा गया Selex Falco Astore UAV भी है, लेकिन इसकी आक्रामक क्षमताएं सीमित हैं। Akinchi ड्रोन की तैनाती बांग्लादेश को बाहरी खतरों से अपने हवाई क्षेत्र की सुरक्षा करने में बड़ी मदद कर सकती है।
वहीं, पश्चिम बंगाल की सीमा के पास बांग्लादेश सशस्त्र बलों द्वारा तुर्की के बायरकटर टीबी2 ड्रोन (यूएवी) की तैनाती ने चिंता बढ़ा दी है। बांग्लादेश सशस्त्र बलों ने इस साल की शुरुआत में 12 बायरकटर टीबी2 ड्रोन में से छह हासिल किए। ये ड्रोन मुख्य रूप से खुफिया, निगरानी और टोही मिशनों के साथ-साथ हल्के हमले के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन ड्रोन का उपयोग बांग्लादेश की रक्षा क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल सीमा के पास तैनात Bayraktar TB2 ड्रोन ने भारत में भी चिंता बढ़ा दी है। जबकि बांग्लादेश इन ड्रोन का उपयोग अपनी सुरक्षा और निगरानी के लिए करता है, लेकिन यह भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए चिंता की बात है। क्षेत्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश का यह कदम भारत के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है।
16 दिसंबर को विजय दिवस
16 दिसंबर का दिन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। 1971 में इसी दिन भारतीय सेना ने ढाका में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया था। इस युद्ध ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म दिया। 16 दिसंबर को बांग्लादेशी सेना ने अपनी आजादी का जश्न मनाया। इस जश्न को मनाने के लिए 1971 की जंग में शामिल हो चुके कुछ बांग्लादेशी सेना के वेटरंस भी भारतीय सेना की ईस्टर्न कमांड की तरफ से आयोजित समारोह में भी शामिल हुए।
In a nostalgic meeting between Bangladesh delegation led by Brig Gen Md Aminur Rahman and Indian war veterans, old memories of the glorious 1971 Liberation War were relived. The war veterans were… pic.twitter.com/myWoURZHIt
लेकिन 54 साल बाद, बांग्लादेश एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़ने और देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया गया है। इसके साथ ही, म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है।
अराकान आर्मी का उभार और बांग्लादेश की सीमाओं पर संकट
वहीं, म्यांमार के विद्रोही गुट अराकान आर्मी (AA) ने बांग्लादेश के टेकनाफ क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। यह इलाका न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों और सेंट मार्टिन द्वीप के करीब होने के कारण अत्यधिक संवेदनशील भी है।
स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, अराकान आर्मी और बांग्लादेशी बलों के बीच कई बार गोलीबारी हुई है। हालांकि, बांग्लादेश सरकार ने अब तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
अराकान आर्मी की बढ़ती ताकत
अराकान आर्मी ने म्यांमार के रखाइन प्रांत के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया है और अब उनकी नजर बांग्लादेश की सीमा के सामरिक क्षेत्रों पर है। माना जा रहा है कि सेंट मार्टिन द्वीप और अन्य रणनीतिक इलाकों पर कब्जा करने के लिए अराकान आर्मी बांग्लादेश की कमजोर सीमाओं का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है।
मनीष झा की एक रिपोर्ट के अनुसार, अराकान आर्मी की रणनीति बेहद आक्रामक हो गई है। मोंगडॉ और अन्य क्षेत्रों में सफलता के बाद, वे अब बांग्लादेश की सीमाओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं।
क्या बांग्लादेश की सुरक्षा रणनीति पर्याप्त है?
बांग्लादेश का एयर डिफेंस सिस्टम और ड्रोन तकनीक का प्रदर्शन यह दिखाता है कि बांग्लादेश अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर है। लेकिन क्या यह अराकान आर्मी और अन्य खतरों से निपटने के लिए पर्याप्त होगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमावर्ती इलाकों में अराकान आर्मी की गतिविधियां और देश के भीतर सैन्य अभ्यास, दोनों बांग्लादेश की सुरक्षा नीति के अहम संकेतक हैं।
बांग्लादेश में जारी सैन्य गतिविधियां और सीमावर्ती तनाव इस ओर इशारा करते हैं कि देश एक अस्थिर दौर से गुजर रहा है। ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल और नई वायु रक्षा प्रणाली की तैनाती इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश अपनी सुरक्षा नीति में बड़ा बदलाव कर रहा है।
(यह खबर अभी जारी है। रक्षा समाचार से जुड़े ताजा अपडेट के लिए हमारे साथ बने रहें।)
1971 War Surrender Painting: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक तस्वीर को भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) लाउंज से हटाने का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। भले ही सेना ने 16 दिसंबर विजय दिवस के मौके पर इस एतिहासिक पेंटिंग को मानेकशॉ सेंटर में स्थापित कर दिया है, लेकिन इस फैसले पर वेटरंस अभी भी नाराज हैं। भारतीय पूर्व सेवा लीग (Indian Ex-Services League) के अध्यक्ष और रिटायर्ड ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे न केवल इतिहास का अपमान बताया, बल्कि सेना के नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने 16 दिसंबर, 2024 को रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं के प्रमुखों को एक पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की। उनका कहना है कि यह तस्वीर केवल एक पेंटिंग नहीं है, बल्कि भारतीय सैन्य इतिहास का गौरवशाली प्रतीक है।
1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को आजाद कराया था। इस युद्ध के दौरान ढाका में भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान के जनरल ए ए के नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे। यह तस्वीर उस ऐतिहासिक क्षणों को दर्शाती है, जो भारत के लिए गर्व के पल थे।
ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने इस तस्वीर को हटाने पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे “इतिहास को मिटाने की कोशिश” बताया। उन्होंने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी जीत थी, जहां एक देश ने औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण किया। इस तस्वीर को हटाना उन सैनिकों के बलिदान का अपमान है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक विजय को संभव बनाया।”
नई पेंटिंग पर सवाल
तस्वीर को हटाकर, उसकी जगह एक नई पेंटिंग लगाने के फैसले को लेकर ब्रिगेडियर सिंह ने तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा, “नई पेंटिंग ऐसी लगती है जैसे किसी स्कूल स्तर की प्रतियोगिता में किसी बच्चे ने बनाई हो। इसमें पैंगोंग त्सो झील, पहाड़ और कुछ सैन्य हथियार और इक्विपमेंट्स दिखाए गए हैं। लेकिन इसका क्या महत्व है? हम तो फिंगर 4 से 8 तक अपने पेट्रोलिंग के अधिकार भी खो चुके हैं।”
इसके अलावा, पेंटिंग में शामिल चाणक्य और महाभारत के रथ के चित्रण पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “सशस्त्र बलों में धर्म को लाने की कोशिश क्यों की जा रही है? हमारी सेना की ताकत उसकी धर्मनिरपेक्षता और एकता में है। क्या हम अपनी जड़ों को मिटाना चाहते हैं?”
‘फोटो को IESL को सौंपें’
ब्रिगेडियर सिंह ने यह भी सुझाव दिया कि हटाई गई 1971 की ऐतिहासिक तस्वीर को भारतीय पूर्व सेवा लीग (IESL) को भेंट कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “हम इस तस्वीर को अपने मुख्यालय में सम्मानजनक स्थान देंगे। यह तस्वीर हमारे लिए केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि उन सैनिकों का स्मारक है, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।”
सेना के नेतृत्व पर निशाना
ब्रिगेडियर सिंह ने सेना के वर्तमान नेतृत्व पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “आज की पीढ़ी के सैन्य अधिकारी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जैसी ऊंचाई कभी नहीं छू पाएंगे।”
उन्होंने सेना के कुछ हालिया फैसलों और राजनीतिक नेताओं के वादों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “हरियाणा चुनाव के दौरान हमारे वरिष्ठ नेताओं ने कहा था कि छह महीने के भीतर हम पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) को वापस ले लेंगे। लेकिन यह भी एक सपना ही रह जाएगा।”
वेटरंस की अनदेखी
भारतीय पूर्व सेवा लीग (IESL) के अध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और सेना के वरिष्ठ अधिकारी दिग्गज सैनिकों की चिंताओं को अनदेखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस साल तीन चीफ सेवानिवृत्त हुए, लेकिन किसी ने भी IESL या अन्य वेटरन संगठनों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यह हमारे लिए निराशाजनक है।”
रिटायर्ड ब्रिगेडियर सिंह ने अपने पत्र में यह भी कहा कि “फोटो-फिनिश” हमेशा प्रशंसा के योग्य होती है। उन्होंने लिखा, “चाहे वह जीत का क्षण हो या मामूली अंतर से हारने वाला पल, इतिहास को खत्म करना अक्षम्य है।”
मानेकशॉ सेंटर का नाम बदलें
उन्होंने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के योगदान और उनकी प्रतिमा का उल्लेख करते हुए चुटकी ली, “अगर इतिहास को बदलना ही है, तो मानेकशॉ सेंटर का नाम बदलकर ‘चाणक्य सेंटर’ क्यों न कर दिया जाए? और उनकी प्रतिमा की जगह चाणक्य की मूर्ति लगा दी जाए।” ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने अपने पत्र के अंत में सेना और रक्षा मंत्रालय से कहा, “आपमें से कोई भी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जैसा कद कभी हासिल नहीं कर पाएगा।”
लगातार उठ रही है नाराजगी
विजय दिवस जैसे पवित्र दिन पर इस बदलाव को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। पूर्व सैन्य अधिकारी और 1971 के युद्ध के दिग्गज इस बदलाव को अनुचित मानते हैं। एडमिरल अरुण प्रकाश और जनरल एच.एस. पनाग जैसे अधिकारियों ने नई पेंटिंग को लेकर अपनी असहमति जाहिर की है। उनका कहना है कि यह बदलाव न केवल इतिहास की अनदेखी करता है बल्कि सैनिकों की कुर्बानी को भी कम करके आंकता है। इस बदलाव के समय को भी लेकर सवाल उठ रहे हैं। 16 दिसंबर, विजय दिवस, जब पूरी दुनिया भारतीय सेना की इस महान जीत को याद करती है, ऐसे समय में पेंटिंग बदलना कई लोगों के लिए असंवेदनशील कदम माना जा रहा है।
रक्षा समाचार डॉट ने उठाया था मुद्दा
रक्षा समाचार डॉट कॉम ने इस मुद्दे को मुरजोर से उठाया था। पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा समाचार.कॉम के सवाल उठाने के बाद 16 दिसंबर को विजय दिवस के मौके पर सेना ने उस एतिहासिक पेंटिंग को नई जगह स्थापित किया।
सेना ने अपनी पोस्ट में लिखा, “विजय दिवस के मौके पर, जनरल उपेन्द्र द्विवेदी COAS और AWWA की प्रेसिडेंट सुनीता द्विवेदी के साथ , 1971 की आत्मसमर्पण पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान, मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया। यह सेंटर 1971 युद्ध के आर्किटेक्ट और नायक, फील्ड मार्शल सम मानेकशॉ के नाम पर है। इस अवसर पर भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी और सेवानिवृत्त अधिकारी उपस्थित थे।”
“यह पेंटिंग भारतीय सशस्त्र बलों की सबसे बड़ी सैन्य जीतों में से एक का प्रतीक है और भारत की न्याय और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मानेकशॉ सेंटर में इसे प्रतिष्ठापित करने के बाद, यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को इसका दर्शन करने का अवसर मिलेगा।”
किसने बनाई है नई पेंटिंग
सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।
वहीं, पुरानी पेंटिंग, जो सेना मुख्यालय के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के कार्यालय में प्रमुखता से लगाई गई थी, 1971 की युद्ध-विजय को दर्शाती थी। यह वही पेंटिंग है, जो 1971 की जीत भारतीय सेना की सबसे बड़ी सैन्य उपलब्धियों में से एक थी। इस युद्ध में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जनरल अरोड़ा और उनके साथियों की रणनीतिक कुशलता ने एक नया इतिहास रच दिया। इस जीत ने न केवल पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारतीय सेना के जज्बे और नेतृत्व के सामने कोई टिक नहीं सकता।
नई पेंटिंग: फ्यूचरिस्टिक दृष्टिकोण या इतिहास से दूर?
हाल ही में, इस ऐतिहासिक पेंटिंग को हटा कर एक नई पेंटिंग लगाई गई है। नई पेंटिंग में माइथोलॉजिकल और फ्यूचरिस्टिक तत्वों का समावेश है। इसमें एक ऋषि, जिन्हें चाणक्य का रूप दिया गया है, आक्रोशित मुद्रा में आदेश देते हुए दिखाई देते हैं। उनके पीछे महाभारत का रथ, श्रीकृष्ण और अर्जुन का प्रतीक, और ऊपर गरुड़ जैसी संरचना नजर आती है।
पेंटिंग के निचले हिस्से में आधुनिक सैन्य उपकरण जैसे T-90 टैंक, अपाचे हेलीकॉप्टर, ड्रोन और पैरा-कमांडो दर्शाए गए हैं। यह पेंटिंग भविष्य की सेना की तकनीकी क्षमताओं और आधुनिक युद्ध के लिए तैयार भारत का संदेश देने की कोशिश करती है।
Tejas Mk1 Fighters: भारतीय वायु सेना (IAF) ने पाकिस्तान के साथ अपनी पश्चिमी सीमा पर एयर डिफेंस क्षमता को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। IAF ने अपने फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेंस (FOC) तेजस Mk1 लड़ाकू विमानों को तैनात किया है। यह कदम पुराने हो चुके MiG-21 विमानों की धीरे-धीरे भारतीय वायुसेना से फेज आउट होने की प्रक्रिया के चलते लिया गया है, जिसके तहत 2026 तक MiG-21 विमानों को पूरी तरह से बाहर कर दिया जाएगा।
File Photo
हाल ही में IAF ने तेजस Mk1 FOC फाइटर जेट्स को अपनी दक्षिणी वायु सेना ठिकानों (सुलुर) से पाकिस्तान से सटे वेस्टर्न बॉर्डर पर तैनात किया है। तेजस Mk1 FOC संस्करण अब राफेल डर्बी और वायमपल R-77 (AA-12 एडर) जैसी एडवांस एयर-टू-एयर मिसाइलों से लैस हैं। इन्हें खासकर जमनगर एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात किया गया है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान के बीकानेर स्थित नाल एयरबेस, जहां वर्तमान में मिग-21 का आखिरी ऑपरेशन स्क्वाड्रन तैनात है, उसे जुलाई 2024 में पहले तेजस स्क्वाड्रन बनाया जाना था। लेकिन तेजस की सप्लाई में देरी से इस योजना के क्रियान्वयन में देरी हो रही है। अपग्रेडेड तेजस Mk1A में Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार जैसे उपकरण शामिल हैं। इसे मार्च 2025 तक IAF में औपचारिक रूप से शामिल किए जाने की उम्मीद है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने इन विमानों की कम से कम चार यूनिट्स की सप्लाई का वादा किया है।
तेजस विमानों की तैनाती MiG-21 विमानों के बाहर होने के साथ ही रणनीतिक तौर पर की गई है, ताकि एयर डिफेंस कवरेज में कोई कमी न हो। तेजस अब उन कई ऑपरेशननल्स रोल्स को निभाएगा, जो पहले MiG-21 विमानों के पास थीं। तेजस Mk1 विमानों की पश्चिमी सीमा पर तैनाती न केवल युद्ध मिशनों में मदद करेगी, बल्कि यह एक प्रतिरोधक का भी काम करेगी।
इससे पहले खबरें आई थीं कि मिग-21 को और सेवा विस्तार दिया जा सकता है। पहले मिग-21 बायसन को 2025 तक पूरी तरह से वापस लिए जाने की डेडलाइन तय की गई थी। लेकिन अब यह डेडलाइन और आगे खिसक सकती है। भारतीय वायु सेना के सूत्रों ने बताया कि स्वदेशी तेजस एमके1ए फाइटर जेट्स के उत्पादन में देरी के चलते मिग-21 बायसन की फेज आउट करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस एमके1ए, जो अत्याधुनिक तकनीक और मल्टीरोल क्षमताओं से लैस है, मिग-21 का स्थान लेने के लिए तैयार है। परंतु इंजन सप्लाई की समस्या के कारण इसका उत्पादन समयसीमा से पीछे चल रहा है।
1964 में भारत के पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में शामिल किए गए मिग-21 ने दक्षिण एशिया में हवाई युद्ध के तौर-तरीकों को बदल दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बांग्लादेश के गठन में योगदान दिया। 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक में इसकी मौजूदगी ने इसे भारत के सैन्य इतिहास का अभिन्न हिस्सा बना दिया।
हालांकि, मिग-21 का इतिहास विवादों से भी अछूता नहीं रहा। इसे “फ्लाइंग कॉफिन” का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसके फ्लाइट ऑपरेशन के दौरान 400 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें कई पायलटों ने अपनी जान गंवाई। बावजूद इसके, मिग-21 की क्षमता और इसकी रणनीतिक उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।
Tejas Mk1 Fighters: वायुसेना की मौजूदा जरूरत
वर्तमान में भारतीय वायुसेना में मिग-21 बायसन के दो स्क्वाड्रन हैं, जिनमें कुल 31 विमान शामिल हैं। जबकि वायुसेना को कुल 42 स्क्वाड्रन जरूरत है, लेकिन फिलहाल यह आंकड़ा केवल 30 के करीब है। ऐसे में तेजस एमके1ए जैसे अत्याधुनिक विमानों की तैनाती बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
मिग-21 बायसन को सेवा विस्तार देने का मतलब यह है कि भारतीय वायुसेना को अपनी ऑपरेशनल कैपेबिलिटी बनाए रखने के लिए अभी भी पुराने विमानों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “मिग-21 ने वर्षों तक हमारी वायुसेना की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया है। हालांकि अब समय आ गया है कि इसे आराम दिया जाए और अत्याधुनिक विमानों को उसकी जगह दी जाए।”
1971 India-Pakistan War: भारत ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीत लिया था, लेकिन एक बड़ा मौका खो दिया था, जो भविष्य में कश्मीर मुद्दे को सुलझा सकता था। यह कहानी दिसंबर 1971 से शुरू होती है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरा युद्ध हुआ था। युद्ध के बाद, भारत के पास 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदी थे और पाकिस्तान के 5000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा था। इस पृष्ठभूमि में, भारत और पाकिस्तान ने 1972 में शिमला में मिलने का फैसला किया ताकि भविष्य के बारे में फैसला लिया जा सके। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से मुलाकात की और भारत की मांगों से अवगत कराया।
1971 India-Pakistan War: भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक समझौता
अंरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और पत्रकार शशांक मट्टू बताते हैं कि इंदिरा गांधी जानती थीं कि शांति वार्ता में भारत मजबूत स्थिति में है। उन्होंने कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए दोनों देशों को अंतिम समझौते पर पहुंचने के लिए दबाव डाला। गांधी ने यह प्रस्ताव रखा कि भारत-पाकिस्तान के बीच जो संघर्ष विराम रेखा थी, उसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा बना दिया जाए। इसका मतलब था कि दोनों पक्ष अपने कब्जे वाले कश्मीर के इलाकों को रखेंगे और विवाद को समाप्त कर देंगे।
भारत की योजना थी कि कश्मीर का समाधान हो जाने के बाद, पाकिस्तान की जमीन वापस की जाए और युद्धबंदी रिहा किए जाएं। इस समझौते के जरिए भारत यह चाहता था कि दोनों देशों के रिश्ते अच्छे हों और दुश्मनी समाप्त हो।
1971 India-Pakistan War: कश्मीर पर समझौते से इंकार
लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो भारत की मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं थे। शिमला सम्मेलन में भारत की तरफ से मौजूद भारतीय राजनयिक केएन बक्शी के मुताबिक भुट्टो ने अपने पुराने आक्रामक रुख के बावजूद भारतीय अधिकारियों से कहा कि वह भारत-पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने के लिए तैयार हैं।
भुट्टो ने भारत से यह आग्रह किया कि वह उन्हें “राजनयिक कौशल” दिखाने का मौका दे और एक ऐसी डील पेंश करें, जिसे वह अपनी जनता के बीच स्वीकार कर सकें। भुट्टो ने यह भी कहा कि अगर वह भारत की कश्मीर पर मांगों को स्वीकार कर लेते हैं, तो पाकिस्तान में उनका समर्थन समाप्त हो जाएगा और पाकिस्तान में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।
शशांक मट्टू के मुताबिक, यह हालात शिमला सम्मेलन को विफल करने की तरफ बढ़ रहे थी, लेकिन फिर अचानक चीजें बदल गईं। केएन बक्शी के मुताबिक, भुट्टो ने इंदिरा गांधी से एक आखिरी बार मुलाकात की और भारत से कश्मीर पर समझौता करने का अनुरोध किया। गांधी ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हस्ताक्षरित हुआ।
इस समझौते में भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय आधार पर हल करने का निर्णय लिया। इसका मतलब था कि इस मुद्दे पर किसी बाहरी हस्तक्षेप (जैसे अमेरिका, ब्रिटेन या संयुक्त राष्ट्र) की आवश्यकता नहीं होगी। दोनों देशों ने यह तय किया कि संघर्ष विराम रेखा (LoC) को एक नई अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
इसके अलावा, दोनों देशों ने राजनयिक संबंध बहाल करने, युद्धबंदियों को वापस करने और पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र को भारत को लौटाने पर सहमति जताई। साथ ही, दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ दुष्प्रचार खत्म करने पर भी सहमति जताई।
शिमला समझौते की विफलता, भुट्टो ने मोड़ा मुंह
भारत ने शिमला समझौते के जरिए पाकिस्तान को शांति का पैगाम देने की उम्मीद जताई थी, लेकिन यह कुछ समय बाद टूट गई। भुट्टो ने पाकिस्तान के नेताओं के दबाव में आकर शिमला समझौते पर दी गई अपनी प्रतिबद्धताओं से मुंह मोड़ लिया। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अपने आक्रामक प्रचार को फिर से शुरू कर दिया और राजनयिक संबंधों को फिर से स्थापित करने में भी सालों लग गए।
यहां तक कि सबसे महत्वपूर्ण समझौते, यानी कश्मीर विवाद पर द्विपक्षीय समाधान और LoC को अंतर्राष्ट्रीय सीमा में बदलने के मुद्दे पर पाकिस्तान ने समझौता का पालन नहीं किया। भुट्टो ने इंदिरा गांधी को यह भरोसा दिलाया था कि वह धीरे-धीरे पाकिस्तान में आम राय को बदलेंगे और कश्मीर पर भारत के साथ एक समझौते पर पहुंचेंगे। हालांकि, भुट्टो ने धीरे-धीरे अपनी वायदों से मुंह मोड़ लिया और कश्मीर विवाद फिर से एक बड़ा मुद्दा बन गया।
इस समझौते के बाद कई लेखकों ने कहा कि गांधी ने भुट्टो के साथ एक अनौपचारिक रूप से सहमति जताई थी कि संघर्ष विराम रेखा (LoC) को eventually अंतर्राष्ट्रीय सीमा में बदल दिया जाएगा, लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते पर अपनी प्रतिबद्धता से मुंह मोड़ लिया।
क्या भारत ने सही फैसला लिया?
भारतीय दृष्टिकोण से, शिमला समझौते को लेकर बहुत से आलोचनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भारत के पास शिमला में मजबूत स्थिति थी। भारत के पास पाकिस्तान के युद्धबंदी और उसके कब्जे वाले क्षेत्रों का कब्जा था। यदि भारत ने कश्मीर मुद्दे पर एक अंतिम समझौते को मजबूती से लागू किया होता, तो पाकिस्तान को मजबूर होकर यह स्वीकार करना पड़ता और कश्मीर विवाद का समाधान हो जाता।
हालांकि, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि भुट्टो कश्मीर पर कोई समझौता स्वीकार नहीं कर सकते थे। इतिहासकार श्रीनाथ राघवन का कहना है कि अगर भारत ने कश्मीर पर समझौता थोप दिया होता, तो पाकिस्तान की सेना भुट्टो को सत्ता से हटा देती। वहीं, एबेंसडर टीसीए राघवन शिमला में भारत के रुख का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान की ज़मीन और 93,000 युद्ध बंदियों को अनिश्चितकाल तक दबाव के रूप में रखना संभव नहीं था। वे चेतावनी देते हैं कि इस तरह की नीति से अमेरिकी हस्तक्षेप हो सकता था। 50 साल बाद भी शिमला समझौता एक विवादित मुद्दा है।
SLINEX 2024: भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास SLINEX 2024 (Sri Lanka-India Exercise) का आयोजन 17 से 20 दिसंबर 2024 के बीच विशाखापत्तनम में किया जा रहा है। यह अभ्यास पूर्वी नौसेना कमान (Eastern Naval Command) के तत्वावधान में आयोजित होगा। इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करना है। यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है, जब श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायक भारत के दौरे पर हैं। बता दें कि 17-19 दिसंबर के बीच भारत ने इस क्षेत्र में 800 किमी लंबा नोटाम (Notice to Airmen) भी जारी किया हुआ है।
SLINEX 2024: दो चरणों में होगा आयोजन
इस बार SLINEX का आयोजन दो चरणों में किया जाएगा:
हार्बर फेज़ (17-18 दिसंबर): इस चरण में बंदरगाह पर नौसैनिक इकाइयों के बीच पेशेवर और सामाजिक संवाद होंगे।
सी फेज़ (19-20 दिसंबर): समुद्र में संयुक्त सैन्य अभ्यास किए जाएंगे, जिनमें विशेष बलों के संचालन, गन फायरिंग, नेविगेशन अभ्यास, संचार ड्रिल्स, हेलीकॉप्टर संचालन, और सीमैनशिप गतिविधियां शामिल हैं।
अभ्यास में भाग लेने वाली इकाइयां
इस अभ्यास में भारत और श्रीलंका की नौसेनाएं अपनी श्रेष्ठतम इकाइयों के साथ भाग लेंगी:
भारत से:
INS सुमित्रा – पूर्वी बेड़े का एक नौसैनिक ऑफशोर गश्ती पोत।
विशेष बलों (Special Forces) की टीम।
श्रीलंका से:
SLNS सायुरा – एक ऑफशोर गश्ती पोत, जिस पर विशेष बलों की टीम तैनात होगी।
अभ्यास का महत्व और उद्देश्य
SLINEX की शुरुआत 2005 में हुई थी और तब से यह भारत और श्रीलंका के बीच मजबूत समुद्री सहयोग का प्रतीक बन चुका है। इस अभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी समझ को बढ़ाना, सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को साझा करना और समुद्र में आपसी संचालन क्षमता (Interoperability) को और सशक्त बनाना है।
हर साल इस अभ्यास का दायरा बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष का SLINEX 2024 न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच गहरे कूटनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी उजागर करता है। अभ्यास में भाग लेने वाली इकाइयां अपने अनुभवों और तकनीकों को साझा करेंगी, जिससे एक सुरक्षित और नियम-आधारित समुद्री वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
संयुक्त अभ्यास और गतिविधियां
सी फेज़ के दौरान की जाने वाली प्रमुख गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
विशेष बलों के संयुक्त अभ्यास: इसमें आतंकवाद निरोधक संचालन और समुद्री कमांडो ट्रेनिंग पर जोर दिया जाएगा।
गन फायरिंग: युद्धाभ्यास के दौरान गनफायरिंग का प्रदर्शन किया जाएगा।
संचार और नेविगेशन अभ्यास: आधुनिक समुद्री संचार और नेविगेशन तकनीकों को साझा किया जाएगा।
हेलीकॉप्टर संचालन: हवाई और समुद्री सुरक्षा के लिए हेलीकॉप्टरों का समन्वय और संचालन।
भारत और श्रीलंका के रिश्ते और समुद्री सहयोग
भारत और श्रीलंका के बीच भौगोलिक निकटता और सांस्कृतिक समानताओं के कारण लंबे समय से दोस्ताना रिश्ते हैं। SLINEX के जरिए दोनों देशों की नौसेनाएं मिलकर समुद्री सुरक्षा चुनौतियों का सामना करती हैं और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में योगदान देती हैं।
इस बार का SLINEX, विशाखापत्तनम जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर आयोजित हो रहा है, जो पूर्वी नौसेना कमान का मुख्यालय है। यह स्थान भारत के समुद्री हितों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है और भारतीय नौसेना के लिए पूर्वी हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति मजबूत करने का एक मंच है।
SLINEX 2024 इस बात का भी उदाहरण है कि कैसे भारत अपनी “पड़ोसी पहले” (Neighbourhood First) नीति के तहत अपने पड़ोसी देशों के साथ सामरिक और सुरक्षा सहयोग को प्राथमिकता देता है।
बढ़ेगा विश्वास और सहयोग
SLINEX का उद्देश्य सिर्फ सैन्य अभ्यास तक सीमित नहीं है। यह दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को बढ़ाने का एक बड़ा मंच भी है। यह अभ्यास क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में योगदान देने के साथ-साथ समुद्री आतंकवाद, मानव तस्करी और अवैध मछली पकड़ने जैसे खतरों से निपटने के लिए रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है।
इस अभ्यास का उद्घाटन समारोह 17 दिसंबर 2024 को आयोजित किया जाएगा, जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समारोह द्विपक्षीय सहयोग की भावना को दर्शाएगा और SLINEX 2024 की औपचारिक शुरुआत करेगा।
SLINEX 2024 से भारत और श्रीलंका की नौसेनाओं को नई चुनौतियों का सामना करने और आधुनिक समुद्री युद्ध के तरीकों को समझने का अवसर मिलेगा। यह अभ्यास न केवल सुरक्षा की दृष्टि से बल्कि दोनों देशों के लिए आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है।