back to top
Home Blog Page 70

Sukhoi-30: अब सुखोई-30 भी चला LCA तेजस की राह पर! सुस्त HAL ने 12 SU-30 की डिलीवरी को भी लटकाया! आत्मनिर्भरता पर उठे सवाल

Sukhoi-30: भारत के स्वदेशी हल्के फाइटर जेट तेजस के इंजन की डिलीवरी में हो रही देरी से पहले ही भारतीय एयरफोर्स फाइटर स्क्वाड्रन की कमी से जूझ रही है। वहीं अब सुखोई-30 को लेकर भी भारतीय वायुसेना को बड़ा झटका लगा है। सूत्रों के मुताबिक सरकारी विमान निर्माता कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) अब भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए नए सुखोई-30 विमानों की डिलीवरी अप्रैल 2027 में शुरू करेगी। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में 12 सुखोई-30 विमानों के लिए HAL के साथ 13,500 करोड़ रुपये के अनुबंध पर दस्तखत किए थे। लेकिन डिलीवरी की समयसीमा और देरी पर अब सवाल उठ रहे हैं।

sukhoi-30-hal-delays-delivery-questions-on-atmanirbhar-bharat-initiative

वहीं, इन विमानों की डिलीवरी में होने वाली देरी ने सरकार की आत्मनिर्भर भारत योजना और रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण की दिशा में उसके प्रयासों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

Sukhoi-30: क्यों हो रही है देरी?

सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इस कॉन्ट्रैक्ट को “देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने वाला” बताया गया है। लेकिन असलियत में, HAL के नासिक स्थित उत्पादन केंद्र को फिर से एक्टिव करने और उत्पादन प्रक्रिया शुरू करने में लंबा वक्त लगने वाला है। सूत्रों के अनुसार, पहला सुखोई विमान 2027 में रोल आउट होगा, जबकि आखिरी विमान 2029 तक तैयार होगा। HAL के एक अधिकारी ने बताया, “तैयारी अब शुरू हो रही है। अधिकांश स्ट्रक्चरल हिस्सा और कंपोनेंट्स स्थानीय विक्रेताओं द्वारा निर्मित और सप्लाई किए जाएंगे। जबकि कुछ सामान रूस से आयात किया जाएगा।” जबकि ओडिशा के कोरापुट में AL-31FP इंजनों का निर्माण किया जाएगा, लेकिन इसमें भी समय लगेगा। बता दें कि HAL ने नासिक स्थित अपने सुखोई उत्पादन लाइन को दोबारा शुरू करने का निर्णय लिया है। यह वही लाइन है जहां पहले भी MIG और सुखोई जैसे लड़ाकू विमान बनाए गए थे।

LCA Tejas: भारत के स्वदेशी फाइटर जेट तेजस के प्रोडक्शन में तेजी लाने पर जोर, संसदीय समिति ने रक्षा मंत्रालय को दिए निर्देश

Sukhoi-30 की देरी से होगी ऑपरेशनल क्षमता प्रभावित

IAF पहले ही 260 सुखोई-30 विमानों का बेड़ा संचालित करता है। जिनमें से 50 रूस से आए थे और बाकी HAL द्वारा भारत में बनाए गए थे। ये 12 अतिरिक्त विमान उन विमानों की भरपाई के लिए हैं, जो दुर्घटनाओं में खो गए। लेकिन देरी के कारण वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमताओं पर असर पड़ सकता है।

IAF के लिए सुखोई-30 विमान का महत्व किसी से छिपा नहीं है। लेकिन 2027 तक पहले विमान की डिलीवरी और 2029 तक अंतिम विमान के तैयार होने का मतलब है कि वायुसेना को मौजूदा संसाधनों के साथ काम करना होगा।

स्वदेशीकरण पर बड़े दावे, लेकिन हकीकत क्या है?

HAL ने दावा किया है कि सुखोई-30 विमानों में 62.6 फीसदी स्वदेशी सामग्री होगी। लेकिन महत्वपूर्ण हिस्से और सामग्री अभी भी रूस से आयात किए जाएंगे। इससे पहले सितंबर 2024 में, रक्षा मंत्रालय ने HAL के साथ 26,000 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसके तहत 240 सुखोई-30 विमानों के लिए इंजन तैयार किए जाएंगे। इन इंजनों का उत्पादन उड़ीसा के कोरापुट संयंत्र में किया जाएगा। लेकिन यहां भी, कच्चे माल का आयात रूस से होगा।

IAF Pilots Training: भारतीय वायुसेना के पायलट प्रशिक्षण में खामियां; सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा

बता दें कि HAL भारतीय वायुसेना के सुखोई बेड़े को अपग्रेड करने की योजना बना रहा है, जिसमें स्वदेशी “उत्तम रडार” और अन्य आधुनिक उपकरण लगाए जाएंगे। इस पर लगभग 65,000 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है।

सरकार की योजनाओं पर सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा उत्पादन के दावों और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। HAL को सुखोई-30 विमानों का उत्पादन शुरू करने में चार साल का समय लग रहा है, जो कि सरकार की बातों के विपरीत है। विशेषज्ञ सवाल उठ रहे हैं कि जब भारत “मेक इन इंडिया” पर जोर दे रहा है, तो जरूरी कंपोनेंट्स और कच्चे माल के लिए अब भी रूस पर निर्भर क्यों है।

रिपोर्ट के अनुसार, अर्मेनिया जैसे देशों ने भारत से सुखोई-30 विमानों को अपग्रेड करने में मदद मांगी है। लेकिन अगर HAL को अपने उत्पादन में ही चार साल लग रहे हैं, तो भारत की अंतरराष्ट्रीय सहयोग क्षमताओं पर भी सवाल खड़े होते हैं।

विशेषज्ञों ने इस देरी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है, “जब सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, तो HAL जैसे संस्थानों को समय पर डिलीवरी और उत्पादन में सक्षम बनाना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम अभी भी रूस और अन्य देशों पर निर्भर हैं। यह किस प्रकार की आत्मनिर्भरता है?”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि IAF की जरूरतों को पूरा करने में देरी से देश की सुरक्षा पर क्या असर पड़ेगा।

क्या वायुसेना की जरूरतों को पूरा कर पाएगा HAL?

IAF के 12 नए सुखोई-30 विमानों का अनुबंध उन विमानों की भरपाई के लिए है जो हादसों का शिकार हुए हैं। लेकिन यह केवल शुरुआत है। वायुसेना को वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वहीं 2027 से डिलीवरी शुरू होने से वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमताओं पर सीधा असर पड़ेगा।  वइसके अलावा पुराने सुखोई विमानों को अपग्रेड करने का काम भी अभी शुरुआती चरण में है, जिसमें कई साल लग सकते हैं।

क्या हैं विकल्प?

रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को HAL जैसे संस्थानों को अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करने की आवश्यकता है। निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर रक्षा उत्पादन में शामिल करना एक संभावित समाधान हो सकता है। साथ ही, तकनीकी हस्तांतरण और विदेशी सहयोग के माध्यम से उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

India-China Talks: क्या है 2005 का समझौता जिस पर चीन है अटका? और भारत को क्यों नहीं है स्वीकार

0

India-China Talks: चीन ने हाल ही में बीजिंग में हुई 23वीं भारत-चीन विशेष प्रतिनिधि वार्ता के बाद दावा किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए “छह बिंदुओं पर सहमति” बनाई है। चीन ने इस वार्ता में 2005 के समझौते का हवाला दिया, जिसमें सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात की गई थी।

India-China Talks: What is the 2005 Agreement China Sticks To, and Why India Disagrees?

हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने चीन के इस दावे का कोई उल्लेख नहीं किया। भारतीय बयान में “छह बिंदुओं पर सहमति” का जिक्र नहीं किया गया।

India-China Talks: चीन का दावा और भारत की चुप्पी

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने सीमा विवाद का “उचित समाधान” खोजने के लिए 2005 के राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत बातचीत जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है।

हालांकि, भारतीय सूत्रों का कहना है कि 2005 के समझौते का बार-बार उल्लेख करना चीन की रणनीति है, क्योंकि इसमें सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात कही गई थी, जिसे भारत स्वीकार नहीं कर रहा है।

India-China talks: चीन का दावा ‘छह बिंदुओं पर बनी सहमति’, लेकिन भारत ने साधी चुप्पी!, जानें कहां फंसा है पेंच

2005 का समझौता: क्या कहता है?

2005 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था। यह समझौता भारत और चीन के बीच दीर्घकालिक साझेदारी को बढ़ाने और सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए किया गया था।

समझौते के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:

  1. सीमा विवाद को शांतिपूर्ण और मित्रतापूर्ण बातचीत के माध्यम से हल किया जाएगा।
  2. सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करने दिया जाएगा।
  3. दोनों पक्ष सीमा के अंतिम समाधान तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान करेंगे।
  4. सीमा का निर्धारण प्राकृतिक भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर किया जाएगा, जो दोनों पक्षों द्वारा सहमति से तय किया जाएगा।
  5. समझौते के तहत, दोनों पक्ष सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए काम करेंगे।

चीन के 2005 समझौते की ओर लौटने की वजह

सूत्रों के अनुसार, चीन ने 2005 के समझौते का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि यह सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने की बात करता है। चीन हाल के वर्षों में इस पर जोर दे रहा है, लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया है।

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि 2020 के पहले की स्थिति बहाल किए बिना द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते। इसका अर्थ है कि जब तक चीन अग्रिम क्षेत्रों से अपने सैनिक वापस नहीं बुलाता, तब तक संबंधों में प्रगति संभव नहीं।

India-China Disengagement: चीन का दोहरा रवैया, बातचीत में सहमति लेकिन LAC पर सैनिकों का जमावड़ा

India-China Talks: समझौते का उल्लंघन और विवाद

2005 के बाद चीन ने कई बार इस समझौते का उल्लंघन किया। रक्षा और सुरक्षा से जुड़े भारतीय सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक चीनी घुसपैठ, भले ही वह अस्थायी हो, इस समझौते का उल्लंघन थी।

2013 के देपसांग विवाद, 2017 के डोकलाम गतिरोध और 2020 के गलवान संघर्ष में चीनी घुसपैठ को इस समझौते के उल्लंघन के रूप में देखा गया।

सीमा पर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता

समझौते में यह भी कहा गया कि अंतिम सीमा समाधान होने तक, दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान और पालन करना चाहिए।

समझौते के तहत दोनों देशों के बीच 1993 और 1996 के समझौतों के आधार पर सीमा क्षेत्रों में विश्वास निर्माण उपायों को लागू करने और LAC की स्पष्टता सुनिश्चित करने का प्रावधान था।

अक्साई चिन और अरुणाचल पर मतभेद

समझौते में कहा गया था कि दोनों पक्ष सीमा विवाद का “पैकेज समाधान” खोजने के लिए अपने-अपने रुख में बदलाव करेंगे। भारत अक्साई चिन पर दावा करता है, जबकि चीन अरुणाचल प्रदेश, विशेष रूप से तवांग क्षेत्र, पर अपना अधिकार जताता है।

भारतीय पक्ष ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि चीन को 2020 से पहले की स्थिति में वापस जाना चाहिए, जबकि चीन सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करना चाहता है।

चीन की  बुनियादी ढांचे पर आपत्ति

भारतीय रणनीति के तहत 2009 से पूर्वी लद्दाख में बुनियादी ढांचे का निर्माण तेज किया गया। यह गति मोदी सरकार के कार्यकाल में और बढ़ी। चीन इसे 2005 के समझौते का उल्लंघन मानता है।

समझौते में कहा गया कि जब तक सीमा का अंतिम समाधान नहीं हो जाता, दोनों पक्षों को LAC का सम्मान करना चाहिए और शांति बनाए रखनी चाहिए।

नए विवाद की शुरुआत?

हालिया वार्ता में चीन ने 2005 के समझौते का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों पक्षों को सीमा विवाद पर “उचित समाधान” खोजने के लिए आपसी समझ और समायोजन करना चाहिए।

हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में इन दावों का कोई जिक्र नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या दोनों देशों के बीच सहमति वास्तव में बनी है या नहीं।

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है। 2005 का समझौता इस विवाद को सुलझाने का एक आधार हो सकता था, लेकिन दोनों पक्षों के अलग-अलग दृष्टिकोण और दावों ने इसे और जटिल बना दिया है।

India-China talks: चीन का दावा ‘छह बिंदुओं पर बनी सहमति’, लेकिन भारत ने साधी चुप्पी! जानें कहां फंसा है पेंच

1

India-China talks: चीन ने दावा किया है कि 18 दिसंबर को बीजिंग में हुई भारत-चीन सीमा वार्ता में दोनों पक्षों ने “छह बिंदुओं पर सहमति” बनाई है। चीन के अनुसार, यह सहमति 2005 के मार्गदर्शक सिद्धांतों के आधार पर सीमा विवाद के “स्वीकार्य समाधान” की दिशा में एक बड़ा कदम है। हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने अपने बयान में इस कथित सहमति का कोई उल्लेख नहीं किया।

India-China Talks: China Claims ‘Six-Point Consensus’, India Silent!

India-China talks: चीन का बयान- छह बिंदुओं पर सहमति

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने 23वें विशेष प्रतिनिधि (SR) स्तर की वार्ता में निम्नलिखित छह बिंदुओं पर सहमति व्यक्त की:

  1. दोनों पक्षों ने सीमा विवाद पर अब तक हुई प्रगति का सकारात्मक मूल्यांकन किया और तय किया कि समाधान के लिए कार्य जारी रहेगा।
  2. दोनों पक्ष 2005 के राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत निष्पक्ष और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  3. सीमा प्रबंधन और नियंत्रण नियमों को और बेहतर बनाने, विश्वास निर्माण उपायों को मजबूत करने और सीमा पर स्थायी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने पर सहमति।
  4. सीमा पार सहयोग और तीर्थयात्राओं को फिर से शुरू करने, नदियों पर सहयोग बढ़ाने और नाथू ला पास पर व्यापार को बढ़ावा देने पर चर्चा।
  5. विशेष प्रतिनिधियों की बैठक तंत्र को मजबूत करने और कूटनीतिक व सैन्य समन्वय को बढ़ावा देने पर सहमति।
  6. अगली विशेष प्रतिनिधि बैठक भारत में आयोजित करने और इसकी तारीख राजनयिक चैनलों के माध्यम से तय करने पर सहमति।

India-China Talks: China Claims ‘Six-Point Consensus’, India Silent!

India-China talks: भारत का रुख- अस्पष्टता बरकरार

भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, “विशेष प्रतिनिधियों ने सीमा प्रश्न के समाधान के लिए एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे की तलाश करते हुए समग्र द्विपक्षीय संबंधों के राजनीतिक दृष्टिकोण को बनाए रखने के महत्व को दोहराया।”

भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन के दावे का खंडन नहीं किया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि चीनी बयान कोई संयुक्त घोषणा नहीं है। मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा कि संयुक्त बयान तभी जारी किया जाता है जब दोनों पक्ष सभी बिंदुओं पर सहमत होते हैं।

India-China Talks: China Claims ‘Six-Point Consensus’, India Silent!

पांच साल बाद बातचीत

यह 23वीं विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता थी, जो पांच साल के अंतराल के बाद आयोजित की गई। पिछली बार 2019 में यह बैठक भारत में हुई थी।

India-China Disengagement: चीन का दोहरा रवैया, बातचीत में सहमति लेकिन LAC पर सैनिकों का जमावड़ा

इस बार की वार्ता में चीनी पक्ष ने ‘सीमा प्रश्न को द्विपक्षीय संबंधों में उचित स्थान पर रखने’ और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को खोलने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, इस ‘उचित स्थान’ का क्या अर्थ है, इस पर भारतीय बयान में विस्तार से कुछ नहीं कहा गया।

पिछले कदम और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की वार्ता

21 अक्टूबर 2024 को, दोनों देशों ने सीमा के विवादित बिंदुओं पर सैन्य बलों को अलग करने पर सहमति जताई थी। इसके बाद रूस के कज़ान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई।

इस बैठक में दोनों नेताओं ने विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत को फिर से शुरू करने और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने पर सहमति जताई।

डोभाल और चीनी उपराष्ट्रपति की मुलाकात

इस वार्ता के बाद अजीत डोभाल ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मुलाकात की। इस बैठक में भी द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और भविष्य की चुनौतियों पर चर्चा हुई।

2005 का समझौता

चीन ने 2005 के राजनीतिक मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लेख किया है, लेकिन इस समझौते के विशिष्ट बिंदुओं को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है। विशेषज्ञ इसे भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदर्भ मानते हैं।

क्या भारत-चीन संबंध सुधरेंगे?

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों में तनाव को कम करने की कोशिशें जारी हैं। हालांकि, दोनों पक्षों के बयान में अंतर और चीनी दावों पर भारत की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। दोनों देशों ने बातचीत के जरिए समाधान की ओर बढ़ने की बात कही है, लेकिन बयानों में अंतर और चीनी दावों पर भारत की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या यह वार्ता भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने में एक बड़ा कदम साबित होगी, यह देखना बाकी है।

India-China Disengagement: चीन का दोहरा रवैया, बातचीत में सहमति लेकिन LAC पर सैनिकों का जमावड़ा

1

India-China Disengagement: एक तरफ जहां भारत औऱ चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि वार्ता में भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने को लेकर सहमति बन रही हैं, तो दूसरी तरफ चीन अभी भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डटा हुआ है औऱ लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है। चीन ने जून 2020 में गलवान घाटी में हुए टकराव के बाद से भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपनी सैन्य उपस्थिति में कोई कटौती नहीं की है। अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) अब भी LAC पर अपने बड़े सैन्य जमावड़े और बुनियादी ढांचे को बनाए हुए है।

India-China Disengagement: Pentagon Report Flags PLA Troop Build-Up on LAC
NSA Ajit Doval and Wang Yi

बुधवार को बीजिंग में भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों ने सीमा विवाद सुलझाने और सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की है। जहां भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भाग लिया। यह 2003 के बाद 23वीं विशेष प्रतिनिधि स्तर की बैठक थी और दिसंबर 2019 के बाद पहली बैठक थी। इस दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने और सीमा विवाद के लिए उचित और स्वीकार्य समाधान खोजने पर जोर दिया।

China in Doklam: क्या मालदीव की तरह भूटान से भी वापिस आएगा भारतीय सेना का यह विशेष दस्ता? लद्दाख से अरुणाचल तक क्यों तैनात हैं 1,20,000 चीनी सैनिक?

बैठक में यह सहमति बनी कि भारत-चीन संबंध स्थिर और मैत्रीपूर्ण बनाए रखने की आवश्यकता है। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के उपायों पर चर्चा की। कैलाश मानसरोवर यात्रा, सीमा पार नदियों का डाटा साझा करने और सीमा व्यापार जैसे मुद्दों पर भी बातचीत हुई। अजीत डोभाल ने वांग यी को अगली बैठक के लिए भारत आने का निमंत्रण दिया।

 

India-China Disengagement: Pentagon Report Flags PLA Troop Build-Up on LAC
Pentagan Report

India-China Disengagement: LAC पर चीन की रणनीतिक तैयारी

वहीं, पेंटागन की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि “2020 के संघर्ष के बाद से PLA ने अपनी तैनाती या सैनिकों की संख्या में कोई कमी नहीं की है और LAC के साथ कई ब्रिगेड स्तर की तैनाती के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया है।”

रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख के डेपसांग और डेमचोक में सैनिकों के पीछे हटने के बावजूद PLA ने लगभग 1.2 लाख सैनिक, टैंक, हॉवित्जर, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और अन्य भारी हथियार LAC पर तैनात किए हुए हैं।

LAC के तीन प्रमुख सेक्टरों—पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश), और पूर्वी (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश)—में PLA के 20 से अधिक कॉम्बाइंड आर्म्स ब्रिगेड्स (CABs) मौजूद हैं। सूत्रों के अनुसार, “कुछ CABs वापस जा चुके हैं, लेकिन अधिकांश अभी भी वहीं तैनात हैं।”

India-China Disengagement: Pentagon Report Flags PLA Troop Build-Up on LAC

India-China Disengagement: भारत-चीन सीमा पर तनाव जारी

पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के वेस्टर्न थिएटर कमांड का प्राथमिक फोकस भारत के साथ सीमा को सुरक्षित करने पर है। “भारत और चीन के बीच सीमा रेखा को लेकर अलग-अलग धारणा ने कई टकराव, बल निर्माण और सैन्य ढांचे के निर्माण को बढ़ावा दिया है,” रिपोर्ट में उल्लेख किया गया।

चीन की वैश्विक सैन्य शक्ति में वृद्धि

हालांकि रिपोर्ट में भारत-चीन सीमा पर केवल संक्षेप में चर्चा की गई है, लेकिन यह चीन की समग्र सैन्य क्षमताओं पर विस्तार से प्रकाश डालती है।

  • चीन ने वैश्विक सैन्य शक्ति प्रदर्शित करने के लिए अपनी क्षमताओं को तेजी से बढ़ाया है, भले ही उसकी अर्थव्यवस्था में गिरावट और भ्रष्टाचार घोटालों का सामना करना पड़ा हो।
  • PLA ने “सैन्य दबाव और प्रलोभन” के जरिए अपने लक्ष्य हासिल करने की बढ़ती इच्छा दिखाई है और वैश्विक भूमिका पर जोर दिया है।

परमाणु क्षमताओं में तेजी से विस्तार

चीन ने अपने परमाणु बल को भी तेजी से आधुनिक और विस्तृत किया है।

  • वर्तमान में चीन के पास 600 से अधिक ऑपरेशनल परमाणु हथियार हैं, और 2035 तक यह संख्या 1,000 से अधिक हो जाएगी।
  • चीन प्रिसिजन स्ट्राइक मिसाइलों से लेकर अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM) तक के विकल्प विकसित कर रहा है।

स्पेस और साइबर वॉरफेयर में चीन की बढ़त

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ऐसी क्षमताओं का विकास कर रहा है, जिससे वह अन्य देशों की अंतरिक्ष तक पहुंच और वहां संचालन को रोक सके। इसमें एंटी-सैटेलाइट मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और लेजर जैसे डायरेक्टेड एनर्जी सिस्टम शामिल हैं।

  • PLA ने सभी युद्धक्षेत्रों में अपनी क्षमताओं को आधुनिक बनाने और दक्षता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
  • चीन ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइलें, सह-कक्षीय उपग्रह, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, और लेजर जैसी तकनीकों पर काम किया है।
  • PLA ने भूमि, वायु, समुद्र, परमाणु, अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और साइबर संचालन के सभी डोमेन में अपनी क्षमताओं को आधुनिक बनाने पर जोर दिया है।

चीन की नौसेना: सबसे बड़ी ताकत

रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 370 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हैं। इनमें से 140 से अधिक प्रमुख सतह युद्धपोत हैं।

भारत के लिए चुनौती और तैयारी की जरूरत

पेंटागन की रिपोर्ट और क्षेत्रीय विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की सैन्य गतिविधियां भारत के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती हैं। गलवान संघर्ष के बाद से LAC पर चीन का जमावड़ा, भारी हथियारों की तैनाती, और सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक संकेत हैं।

क्षेत्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी सैन्य तैयारी और निगरानी तंत्र को और मजबूत करना होगा। चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और LAC पर जारी तनाव भारत के लिए भविष्य में रणनीतिक और कूटनीतिक चुनौतियां पैदा कर सकते हैं।

IAF Pilots Training: भारतीय वायुसेना के पायलट ट्रेनिंग प्रोग्राम में खामियां; सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा

0

IAF Pilots Training: भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने संसद के सामने रखी गई अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना (IAF) के पायलट प्रशिक्षण में गंभीर खामियों को उजागर किया है। 2016-2021 के दौरान किए गए परफॉरमेंस ऑडिट में यह सामने आया कि पुराने इक्विपमेंट्स और बेसिक ट्रेनर एय़रक्राफ्ट्स की समस्याएं वायुसेना के ट्रेनिंग प्रोग्राम में दिक्कतें पैदा कर रही हैं।

IAF Pilots Training: CAG Flags Deficiencies in Indian Air Force Pilot Training

IAF Pilots Training: बेसिक ट्रेनर एय़रक्राफ्ट्स में तकनीकी खामियां

रिपोर्ट में वायुसेना के ‘स्टेज-1’ प्रशिक्षण में इस्तेमाल हो रहे Pilatus PC-7 Mk-II विमान की खामियों को बी बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक

  • 64 विमानों में से 16 (25%) में 2013 से 2021 के बीच 38 बार इंजन ऑयल लीक की घटनाएं दर्ज की गईं।
  • इस मुद्दे को वायुसेना ने विमान निर्माता कंपनी के साथ उठाया है। अगस्त 2023 तक यह मामला जांच के दायरे में है।

IAF Pilots Training: मॉडर्न ट्रेनिंग में कमी

CAG की रिपोर्ट में ‘स्टेज-2’ और ‘स्टेज-3’ पायलट ट्रेनिंग में पुरानी तकनीक और उपकरणों के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए गए।

  • हेलिकॉप्टर पायलट: हेलिकॉप्टर पायलटों को Mi-17 V5 जैसे पुराने हेलिकॉप्टरों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इनमें लेटेस्ट एवियोनिक्स की कमी है, जिसके कारण ऑपरेशनल यूनिट्स को अतिरिक्त प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है।
  • ट्रांसपोर्ट पायलट: ट्रांसपोर्ट पायलटों को डॉर्नियर-228 जैसे पुराने विमानों पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन विमानों में आधुनिक कॉकपिट की सुविधाएं नहीं हैं।

सिमुलेटर बेस्ड ट्रेनिंग में कमियां

CAG ने वर्चुअल रियलिटी (VR) सिमुलेटर और फ्लाइंग ट्रेनिंग डिवाइस (FTD) की उपयोगिता पर भी सवाल उठाए।

  • ये सिमुलेटर केवल प्रोसिजरल ट्रेनिंग देते हैं और रियल टाइम फ्लाइट एक्सपीरियंस का अहसास नहीं कराते।

पायलटों की भारी कमी

रिपोर्ट में वायुसेना में पायलटों की कमी को भी एक बड़ी समस्या बताया गया।

  • 2015 में वायुसेना ने 486 पायलटों की कमी का अनुमान लगाया था।
  • 2016-2021 के बीच हर साल 222 प्रशिक्षु पायलटों की योजना थी, लेकिन वास्तविक भर्ती इससे कम रही।
  • 2021 तक यह कमी बढ़कर 596 पायलटों तक पहुंच गई।

आधुनिकीकरण योजनाओं में देरी का प्रभाव

रिपोर्ट में वायुसेना की आधुनिकीकरण योजनाओं में देरी को भी एक प्रमुख कारण बताया गया।

  • आधुनिक प्रशिक्षण उपकरणों और विमानों की कमी के कारण पायलटों को प्रशिक्षण में अतिरिक्त समय और प्रयास की जरूरत होती है।

ट्रेनिंग में सुधार की जरूरत

CAG ने अपनी रिपोर्ट में वायुसेना को प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उपकरणों के आधुनिकीकरण की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया कि उन्नत तकनीक और आधुनिक प्रशिक्षण मॉडल अपनाने से पायलटों की दक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट से वायुसेना को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इससे न केवल वर्तमान चुनौतियों का समाधान होगा, बल्कि वायुसेना भविष्य की जरूरतों के लिए भी तैयार होगी।

Indian Army AI Incubation Centre: बेंगलुरु में शुरू हुआ भारतीय सेना का एआई इनक्यूबेशन सेंटर; रक्षा क्षेत्र में तकनीकी क्रांति की नई शुरुआत

0

Indian Army AI Incubation Centre: भारतीय सेना ने बेंगलुरु में भारतीय सेना एआई इनक्यूबेशन सेंटर (IAAIIC) का उद्घाटन किया है। यह कदम सेना के तकनीकी उन्नति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को अपनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ (COAS), जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस सेंटर का वर्चुअल उद्घाटन किया, जो भारतीय सेना की नई तकनीकों को अपनाने और अपने कर्मियों को एआई से लैस करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

indian-army-ai-incubation-centre-bengaluru-tech-revolution-defence-sector

सेना की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक यह इनक्यूबेशन सेंटर सेना की तकनीकी प्रगति के दृष्टिकोण के साथ जुड़ा हुआ है, जिसका उद्देश्य परिचालन क्षमताओं को बढ़ाना, एक AI-तैयार बल तैयार करना, और आधुनिक सुरक्षा चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करना है। यह सेंटर भारतीय सेना के लिए डेटा-आधारित समाधानों को विकसित करेगा, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया, ऑपरेशनल दक्षता, और AI-आधारित युद्ध की तैयारी में सुधार होगा। इस केंद्र की स्थापना भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के सहयोग से की जा रही है, जो इसकी आधारभूत संरचना और आईटी समर्थन प्रदान करेगा।

Indian Army AI Incubation Centre: तकनीकी उन्नति की ओर कदम

IAAIIC का उद्घाटन भारतीय सेना के तकनीकी विकास की दृष्टि के साथ जुड़ा है। इसका उद्देश्य परिचालन क्षमता को बढ़ाना, एआई-तैयार सेना का निर्माण करना और आधुनिक सुरक्षा चुनौतियों के लिए तैयार रहना है। यह सेंटर डेटा-आधारित समाधान विकसित करेगा, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया, परिचालन दक्षता और एआई-आधारित युद्ध के लिए तैयारी में सुधार होगा।

UPDIC: कानपुर बना उत्तर प्रदेश डिफेंस कॉरिडोर का हब, मिले 12,800 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव

भारतीय सेना और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड का सहयोग

यह सेंटर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के सहयोग से स्थापित किया गया है। BEL इस सेंटर को आईटी सपोर्ट और बुनियादी ढांचा प्रदान करेगा। वहीं, इस सेंटर को भारतीय सेना के कर्मियों द्वारा संचालित किया जाएगा।

IAAIIC अकादमिक संस्थानों, स्टार्टअप्स, उद्योग जगत के नेताओं और डोमेन विशेषज्ञों के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा, जहां सेना की आवश्यकताओं के अनुरूप स्वदेशी एआई समाधान विकसित किए जाएंगे।

यह सेंटर कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे प्रेडिक्टिव मेंटेनेंस, उन्नत निगरानी, निर्णय समर्थन प्रणाली और स्वायत्त प्लेटफॉर्म में एआई के अनुप्रयोगों का पता लगाएगा। सेंटर में सीडैक (C-DAC) का 1-पेटाफ्लॉप सुपरकंप्यूटर मौजूद होगा, जो एआई मॉडलिंग और प्रशिक्षण के लिए पूरी तरह से सक्षम है।

साथ ही, यह सेंटर स्थानीय प्रतिभा को निखारने और विदेशी तकनीकों पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम करेगा। IAAIIC भारत के रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को मजबूत करेगा और सेना के लिए एआई विशेषज्ञों की एक नई पीढ़ी तैयार करेगा।

IAAIIC का उद्देश्य भारतीय सेना को बहु-डोमेन युद्ध के लिए तैयार करना है, जिससे इसे रक्षा तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बनाया जा सके।

AI और सेना का भविष्य

भारतीय सेना ने “डिकेड ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन” (परिवर्तन का दशक) के तहत उन्नत तकनीकों को अपनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। IAAIIC इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल सेना की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि इसे अत्याधुनिक तकनीकी क्षमताओं के साथ सशक्त बनाएगा।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के इस युग में, भारतीय सेना का यह कदम यह दर्शाता है कि वह न केवल आधुनिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है। यह केंद्र भारत के आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन की दिशा में एक बड़ी छलांग है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर देश की रक्षा क्षमताओं को भी प्रदर्शित करेगा।

आत्मनिर्भर भारत की ओर एक कदम

यह केंद्र राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बैठाते हुए आत्मनिर्भर भारत के विचार को प्रोत्साहित करता है। IAAIIC के माध्यम से, भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाने और सैन्य एआई अनुप्रयोगों में नवाचार और उत्कृष्टता के नए मानदंड स्थापित करने का लक्ष्य है।

UPDIC: कानपुर बना उत्तर प्रदेश डिफेंस कॉरिडोर का हब, मिले 12,800 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव

1

UPDIC: उत्तर प्रदेश का डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (UPDIC) भारत के रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभर रहा है। 2018 में उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (UPEIDA) द्वारा शुरू किया गया यह कॉरिडोर, भारत की रक्षा उपकरण निर्माण क्षमता को बढ़ाने और एयरोस्पेस क्षेत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।

UPDIC: Kanpur Emerges as Hub of Uttar Pradesh Defence Corridor

कानपुर: सबसे आगे

इस कॉरिडोर के छह प्रमुख स्थानों—कानपुर, झांसी, लखनऊ, अलीगढ़, आगरा, और चित्रकूट—में से कानपुर निवेश के मामले में सबसे अग्रणी बनकर उभरा है। UPEIDA की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, कानपुर नोड को ₹12,803.58 करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। इन प्रस्तावों को पूरा करने के लिए 222.86 हेक्टेयर भूमि में से 210.60 हेक्टेयर भूमि उद्योगों को आवंटित की जा चुकी है।

IIT कानपुर और IIT (BHU) वाराणसी जैसे प्रमुख संस्थानों को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में नामित किया गया है। इसके साथ ही, रक्षा मंत्रालय की ₹400 करोड़ की डिफेंस टेस्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर स्कीम से नवाचार और गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

Defence: भारत की रक्षा तैयारियों को मजबूत करने के लिए DAC ने 21,772 करोड़ रुपये के 5 प्रस्तावों को दी मंजूरी

सीएम योगी आदित्यनाथ का $1 ट्रिलियन का सपना

इन्वेस्ट यूपी के सीईओ श्री अभिषेक प्रकाश ने कहा, “कानपुर नोड न केवल उत्तर प्रदेश की आर्थिक प्रगति को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी मजबूत कर रहा है। यह विकास उत्तर प्रदेश को रक्षा निर्माण का प्रमुख केंद्र बनाने में सहायक होगा, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के $1 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण के अनुरूप है।”

कानपुर नोड के सबसे बड़े निवेशों में शामिल हैं:

  • अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज लिमिटेड: ₹1,500 करोड़ के निवेश के साथ दक्षिण एशिया के सबसे बड़े गोला-बारूद निर्माण परिसर की स्थापना। 500 एकड़ में फैली इस सुविधा में छोटे, मध्यम और बड़े कैलिबर के गोला-बारूद का उत्पादन किया जा रहा है। उत्पादन 18 महीनों के भीतर शुरू हो गया, जिससे भारत की आयात पर निर्भरता में कमी आई है।
  • डेल्टा कॉम्बैट सिस्टम्स लिमिटेड: ₹150 करोड़ के निवेश से छोटे हथियार और गोला-बारूद निर्माण इकाई की स्थापना।

प्रस्तावित निवेश और परियोजनाएं

कई कंपनियों ने कानपुर नोड में रुचि दिखाई है और उनके प्रस्तावों पर विचार चल रहा है। कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव इस प्रकार हैं:

  • जेनसर एयरोस्पेस एंड आईटी प्राइवेट लिमिटेड: ₹3,000 करोड़ के निवेश से 2+7 सीटर लाइट बिजनेस जेट का विकास।
  • अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज लिमिटेड: ₹2,500 करोड़ के अतिरिक्त निवेश से प्रोपेलेंट निर्माण परिसर की स्थापना।
  • अनंत टेक्नोलॉजीज: ₹2,000 करोड़ के निवेश से GEO सैटेलाइट निर्माण और ₹1,500 करोड़ के अतिरिक्त निवेश से LEO सैटेलाइट निर्माण।
  • लोहिया एयरोस्पेस सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड: ₹370 करोड़ के निवेश से एयरोस्पेस कंपोजिट सुविधा की स्थापना।
  • नेत्रा ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड: ₹360 करोड़ के निवेश से तोप के गोले बनाने की परियोजना।
  • CILAS (फ्रांसीसी कंपनी): ₹500 करोड़ के निवेश से लेजर तकनीक का रक्षा ड्रोन निर्माण में उपयोग।
  • लधानी ग्रुप (ब्रिंदावन बॉटलर्स प्राइवेट लिमिटेड): ₹225 करोड़ के निवेश से बॉटलिंग प्लांट।
  • MSK बिजनेस सॉल्यूशंस: ₹120 करोड़ के निवेश से रूसी ओईएम्स के साथ रडार और एवियोनिक्स निर्माण का संयुक्त उपक्रम।
  • राफे एम्फिब्र प्राइवेट लिमिटेड: ₹100 करोड़ के निवेश से ड्रोन हब की स्थापना।

डिफेंस सेक्टर में यूपी का बढ़ता वर्चस्व

कानपुर नोड में अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, विश्व स्तरीय संस्थान और मजबूत उद्योग हित ने इसे भारत के रक्षा निर्माण क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्र बना दिया है। ये निवेश न केवल राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में आत्मनिर्भर बनाने के सपने को भी साकार कर रहे हैं।

Indian Space Strategy: भविष्य की जंग के लिए तैयार हो रहीं भारतीय सेनाएं, अंतरिक्ष से रखी जाएगी दुश्मनों पर नजर

Indian Space Strategy: भारतीय सेनाएं अब भविष्य के युद्धों और चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी अंतरिक्ष आधारित क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। इस उद्देश्य के तहत भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना अंतरिक्ष में अपने संसाधनों और बुनियादी ढांचे का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।

Indian Space Strategy: Preparing for Future Wars, Keeping an Eye on Enemies
CDS Anil Chauhan

इस महीने की शुरुआत में, रक्षा मंत्रालय में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) ने एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया था। इस बैठक में तीनों सेनाओं के प्रमुख, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख अधिकारी भी मौजूद थे।

Indian Space Strategy: अंतरिक्ष आधारित संसाधनों का विस्तार

इस प्रेजेंटेशन में बताया गया कि भारतीय सेना अब अपने अंतरिक्ष-आधारित संसाधनों और ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके तहत उपग्रहों की संख्या बढ़ाने और उनके संचालन के लिए ज़रूरी ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने की योजना बनाई जा रही है। इसके तहत, डीएमए और डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) पर नए ज़िम्मेदारियों को संभालने की योजना बनाई गई है।

हाल ही में, केंद्रीय कैबिनेट ने एक बड़े अंतरिक्ष सर्विलांस परियोजना को मंजूरी दी है, जिसके तहत 52 उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे। ये उपग्रह निगरानी, संचार, और अन्य सामरिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होंगे। इस परियोजना में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी होगी।

डिफेंस स्पेस एजेंसी का होगा विस्तार

डीएमए के नेतृत्व में काम करने वाली रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) को और अधिक मज़बूत बनाने की योजना है। इस एजेंसी की जिम्मेदारी न केवल अंतरिक्ष में नए संसाधन तैनात करने की है, बल्कि उन्हें हर प्रकार के खतरों से सुरक्षित रखना भी है।

इस परियोजना के अंतर्गत भारत की निगरानी क्षमताओं को विशेष रूप से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पाकिस्तान की सीमाओं पर मजबूत किया जाएगा। इसके लिए एजेंसी के कर्मचारियों की संख्या और कामकाज का दायरा बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।

Indian Space Strategy: सैटेलाइट निगरानी से मजबूत होगा सुरक्षा कवच

भारत के पास पहले से ही कई उपग्रह हैं, जो निगरानी और संचार जैसे कार्यों में लगे हुए हैं। अब, नई योजना के तहत सैटेलाइट निगरानी को और बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे भारतीय सुरक्षा बलों को दुश्मनों की हर गतिविधि पर नजर रखने में मदद मिलेगी।

उपग्रहों की नई श्रृंखला के जरिए भारत न केवल अपनी सीमाओं पर निगरानी करेगा, बल्कि समुद्री क्षेत्रों, साइबर हमलों, और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में भी अपनी ताकत बढ़ाएगा।

CDS का अंतरिक्ष की अहमियत पर जोर

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में एक बयान में कहा कि अंतरिक्ष अब “भीड़भाड़ वाला, विवादित, प्रतिस्पर्धात्मक और वाणिज्यिक” क्षेत्र बन चुका है। उन्होंने सेना के नेतृत्व को इस क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए नवाचार और अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित करने पर जोर दिया।

सीडीएस ने यह भी कहा कि अंतरिक्ष युद्ध के लिए तैयार रहना अब समय की मांग है। उन्होंने सभी संबंधित विभागों और संगठनों से सहयोग करने और अत्याधुनिक प्रणालियों को विकसित करने का आह्वान किया।

52 उपग्रह लिखेंगे भारत की अंतरिक्ष में ताकत का नया अध्याय

कैबिनेट द्वारा स्वीकृत नई अंतरिक्ष निगरानी परियोजना के तहत 52 उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे। ये उपग्रह निगरानी, संचार, और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्रों में भारत को और मजबूत बनाएंगे। यह परियोजना रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इन उपग्रहों के जरिए भारत चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की सीमाओं पर बेहतर नजर रख सकेगा। इसके अलावा, ये उपग्रह भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी एक नई पहचान देंगे, जहां अंतरिक्ष आधारित तकनीक और संसाधन भविष्य की कूटनीति और सुरक्षा का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं।

सरकारी और निजी क्षेत्र का सहयोग

इस परियोजना में निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ISRO और DRDO के साथ मिलकर निजी क्षेत्र कटिंग एज टेक्नोलॉजी को डेवलप करने में मदद करेगा। इससे न केवल भारत की अंतरिक्ष क्षमता में वृद्धि होगी, बल्कि घरेलू उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य के युद्ध अंतरिक्ष आधारित तकनीकों पर निर्भर करेंगे। इसमें साइबर हमलों, उपग्रहों की निगरानी, और अंतरिक्ष से हमलों को शामिल किया जा सकता है। भारत, इन संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए, अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है।

भारतीय सेना के इस कदम से यह साफ है कि भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में केवल एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक अग्रणी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। यह पहल न केवल भारत को मजबूत बनाएगी, बल्कि इसे एक वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करेगी।

China in Doklam: क्या मालदीव की तरह भूटान से भी वापिस आएगा भारतीय सेना का यह विशेष दस्ता? लद्दाख से अरुणाचल तक क्यों तैनात हैं 1,20,000 चीनी सैनिक?

1

China in Doklam: चीन और भारत के बीच सीमा विवादों का इतिहास लंबा और जटिल है। हाल ही में, चीन ने भूटान की सीमा में नई बस्तियां बसाकर एक बार फिर से क्षेत्रीय विवाद को तूल दे दिया है। खास बात यह है कि यह विवाद उस समय सामने आया है जब बीजिंग में आज स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव स्तर की वार्ता होनी है। इस वार्ता में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजील डोवाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच मुलाकात होनी है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत-चीन सीमा पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को लेकर चल रही तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाना है। इस वार्ता की सहमति प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कज़ान बैठक के दौरान हुई थी। यह वार्ता 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद पहली बार हो रही है, और पिछले पांच वर्षों में पहली ऐसी बैठक होगी।

China in Doklam: Will Indian Troops IMTRAT Retreat Like Maldives Amid PLA Build-up?
AI Image

China in Doklam: इस साल अक्तूबर में हुआ था खुलासा

हालांकि गांव बसाने को लेकर जो खुलासा हाल ही में हुआ है, वह नया नहीं है। इससे पहले इसी साल अक्टूबर 2024 में तिब्बती विश्लेषकों के नेटवर्क टरकोइस रूफ (Turquoise Roof) की तरफ से एक रिपोर्ट जारी हुई थी, जिसमें बताया गया था कि चीन ने भूटान की सीमा में 22 गांव बसा लिए हैं। चीन के इन 22 गांवों में से 19 पूर्ण रूप से रिहायशी गांव हैं, जबकि तीन कम बसावट वाले क्षेत्र हैं। इन्हें बाद में छोटे शहरों में बदला जाएगा। वहीं इन 22 गांवों में से सात में निर्माण कार्य शुरू होने का खुलासा 2023 की शुरुआत में हो गया था।

Exercise Himshakti: हाड़ कंपाने वाली ठंड में भारतीय सेना ने चीन सीमा पर दिखाई ताकत, -35 डिग्री तापमान में तोपों की गड़गड़ाहट से गूंजी LAC

इन गावों में 752 रिहायशी ब्लॉक बनाए गए हैं, जिनमें 2284 परिवारों को बसाने की योजना है। इसके अलावा, अधिकारियों, निर्माण कर्मियों, सीमा पुलिस और सैन्यकर्मियों समेत 7000 लोगों को इन गांवों में बसाया जा रहा है। इन गांवों को बनाने के लिए चीन ने भूटान का करीब 825 वर्ग किमी इलाका कब्जा किया है। वहीं, ये गांव काफी ढलान वाली इलाके और ऊंची घाटी वाले क्षेत्रों में बनाए गए हैं, जिसकी समुद्र से ऊंचाई 3832 मीटर तक है। चीन का बसाया सबसे ऊंचा गांव मेनचुमा समुद्री से करीब 4670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

China in Doklam: डोकलाम का महत्व

सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, इनमें से आठ गांव डोकलाम पठार के करीब 2020 के बाद से बनाए गए हैं। इन बस्तियों की रणनीतिक स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि ये भारत के “सिलीगुड़ी कॉरिडोर” के पास स्थित हैं। टरकोइस रूफ की रिपोर्ट के अनुसार, चीन भूटान पर दबाव डाल रहा है कि वह पूर्वोत्तर क्षेत्रों को अपने पास रखे और डोकलाम पठार चीन को सौंप दे। 1990 के दशक में चीन ने भूटान को ऐसा प्रस्ताव दिया था, लेकिन भूटान ने इसे खारिज कर दिया था। वहीं, चीन की इन गतिविधियों का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निगरानी और भूटान को चीन के प्रभाव से बचाने के लिए भारत को ठोस रणनीति अपनानी होगी। 2017 में भारत और चीन के बीच हुए डोकलाम गतिरोध के बाद से चीन ने अपनी निर्माण गतिविधियों को और तेज कर दिया है।

NSA China Visit: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल जाएंगे चीन, LAC पर सीमा विवाद सुलझाने के लिए अहम वार्ता

पूर्व भारतीय राजदूत अशोक कंठा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “चीन की यह कार्रवाई 1998 में भूटान और चीन के बीच हुए शांति समझौते का उल्लंघन है। यह समझौता सीमा विवाद सुलझने तक यथास्थिति बनाए रखने की बात करता है।”

डोकलाम वही क्षेत्र है, जहां 2017 में भारत और चीन के बीच 73 दिनों का सैन्य गतिरोध हुआ था। भारत ने उस समय चीन को सड़क निर्माण से रोक दिया था, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है।

रिसर्चर रॉबर्ट बार्नेट ने कहा, “चीन ने डोकलाम और आसपास के क्षेत्रों में रणनीतिक दबाव बनाकर भूटान को भारत से दूर करने की कोशिश की है। भूटान, जो भारत की सुरक्षा चिंताओं को समझता है, अब इस विवाद को त्रिपक्षीय समाधान की दिशा में ले जाने की बात कर रहा है।”

भारत-भूटान संबंधों की परीक्षा

भूटान में भारत की सैन्य उपस्थिति, भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT), 1963 से है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इन संबंधों को एक नई चुनौती दी है। रक्षा विशेषज्ञ प्रवीण साहनी ने कहा, “यदि भारत अपनी जमीन पर चीन के सैनिकों को हटाने में विफल रहा है, तो भूटान भारत से मदद की उम्मीद क्यों करेगा?” उनका कहा है कि चीन ने भूटान के 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT) यानी Indian Military Training Team भूटान की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, लेकिन अगर भारत अपनी ही जमीन से PLA को हटाने में असफल रहा है, तो भूटान भारत से मदद की उम्मीद क्यों करेगा? भूटान जल्द ही चीन के साथ अपना सीमा विवाद सुलझा लेगा, और हम IMTRAT को भूटान से वापस आते देखेंगे। यह 1963 से वहां तैनात है, लेकिन अब यह इतिहास बन सकता है।”

सीमा पर हालात और भारतीय प्रतिक्रिया

भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से लद्दाख में सैन्य गतिरोध चल रहा है। हाल ही में, 21 अक्टूबर को दोनों देशों ने डेमचोक और डेपसांग जैसे विवादित क्षेत्रों से सेना हटाने पर सहमति जताई। इसके दो दिन बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और सीमा विवाद पर चर्चा की।

हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा, “24 अक्टूबर को मोदी-शी के बीच हुई बातचीत के बावजूद भारत-तिब्बत सीमा पर हालात सामान्य नहीं हैं। अभी भी 1,20,000 चीनी सैनिक लद्दाख से अरुणाचल तक तैनात हैं। इस सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के लिए आज विशेष प्रतिनिधियों की बैठक हुई।

पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र पर बनाए गए बफर ज़ोन और नो-पैट्रोलिंग क्षेत्रों ने स्थिति को सामान्य करने की चुनौती को और जटिल बना दिया है। जब तक इन अस्थायी उपायों को समाप्त नहीं किया जाता और चीनी सैनिक कब्जाए गए क्षेत्रों से पीछे नहीं हटते, भारतीय सीमा बल अपने पारंपरिक गश्त क्षेत्रों में वापस नहीं जा पाएंगे।

चीन की बस्तियों का रणनीतिक मकसद

चीन की ओर से बनाई गई बस्तियां केवल स्थानीय लोगों के पुनर्वास के लिए नहीं हैं। ये बस्तियां सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और चीन की “तथ्य बदलने की नीति” का हिस्सा हैं।

अशोक कंठा ने कहा, “यह वही तरीका है, जैसा चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप बनाकर अपनाया था। चीन धीरे-धीरे भौगोलिक तथ्यों को बदलकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।”

भारत के लिए भविष्य की चुनौती

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भूटान अब चीन को थिंपू में दूतावास खोलने की अनुमति दे सकता है। यह कदम भूटान और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देगा।

रॉबर्ट बार्नेट ने कहा, “भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत और चीन में से कौन भूटान को अधिक लाभ पहुंचाकर अपने पक्ष में कर सकता है।”

चीन का बयान

चीन के भारत में राजदूत जू फेइहोंग ने कहा, “चीन भारत के साथ मतभेदों को ईमानदारी और सद्भावना के साथ सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और स्वस्थ दिशा में ले जाने के लिए काम करने को तैयार है।”

इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि चीन अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने और अपने पड़ोसियों पर दबाव डालने की नीति जारी रखे हुए है। भारत के लिए यह समय है कि वह न केवल भूटान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करे, बल्कि अपनी सीमा सुरक्षा और सामरिक योजनाओं को भी और सुदृढ़ बनाए।

SIPRI की रिपोर्ट में खुलासा, 2023 में दुनियाभर में बिके 52 लाख करोड़ रुपये के हथियार, 4.2 फीसदी की हुई बढ़ोतरी

0

SIPRI: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में वैश्विक हथियार बिक्री 52 लाख करोड़ रुपये (632 बिलियन डॉलर) तक पहुंच गई। यह आंकड़ा 2022 की तुलना में 4.2 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। इस बढ़ोतरी का कारण दुनिया भर में बढ़ते युद्ध, क्षेत्रीय संघर्ष और भू-राजनीतिक तनाव हैं।

SIPRI Report: Global Arms Sales Reach Rs 52 Lakh Crore in 2023, Rise by 4.2%

SIPRI: वैश्विक संघर्ष और हथियारों की मांग

रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हथियार उत्पादन में भारी वृद्धि की है। इन क्षेत्रों की कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा रही हैं ताकि रक्षा जरूरतों को पूरा किया जा सके।

SIPRI Arms Export: दुनियाभर में बढ़ा हथियारों का कारोबार, भारत की तीन बड़ी हथियार निर्माता कंपनियों ने गाड़े झंडे, आत्मनिर्भर भारत को मिली बड़ी कामयाबी

इसी तरह, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भी तनाव बढ़ रहा है। शक्ति संतुलन और समुद्री विवादों के कारण एशियाई देशों ने अपने रक्षा आधुनिकीकरण को तेज कर दिया है। वहीं, मध्य पूर्व में अस्थिरता के चलते सैन्य खर्च लगातार बढ़ रहा है।

2022 और 2023 के बीच आंकड़ों में बड़ा बदलाव

SIPRI की रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में 73 कंपनियों ने अपनी आय में वृद्धि दर्ज की, जबकि 26 कंपनियों ने गिरावट की सूचना दी। इसके विपरीत, 2022 में 47 कंपनियों की आय बढ़ी थी और 53 कंपनियों की आय में गिरावट आई थी।

यह बदलाव दिखाता है कि वैश्विक रक्षा उद्योग ने सुरक्षा चिंताओं, बढ़ते रक्षा बजट और हथियारों की आपूर्ति की आपात जरूरत का लाभ उठाया है।

भारतीय रक्षा क्षेत्र: एक उभरती वैश्विक शक्ति

भारतीय रक्षा कंपनियों ने वैश्विक टॉप 100 में अपनी स्थिति मजबूत की है। यह भारत की आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात के प्रति बढ़ती रणनीतिक प्राथमिकता को दर्शाता है।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) जैसी कंपनियां सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत अपनी रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ा रही हैं।

रक्षा निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि

2023-24 में भारत का रक्षा निर्यात ₹21,083 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। यह पिछले वित्तीय वर्ष के ₹15,920 करोड़ से 32.5% अधिक है। सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग, स्वदेशी नवाचार, और भारतीय निर्मित उत्पादों जैसे लड़ाकू विमानों, ड्रोन और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स की वैश्विक मांग ने इस वृद्धि को संभव बनाया है।

स्वदेशी रक्षा उत्पादों का बढ़ता दबदबा

भारतीय निर्मित तेजस फाइटर जेट्स, ड्रोन्स, और अन्य रक्षा प्रणालियां अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना रही हैं। ये उत्पाद न केवल आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि भारत को वैश्विक हथियार बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना रहे हैं।

जहां एक ओर हथियारों का उत्पादन और बिक्री आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है, वहीं यह बढ़ते सैन्यीकरण और संघर्षों की चिंता को भी उजागर करता है। बढ़ते सैन्य खर्च देशों की सुरक्षा को मजबूत कर रहे हैं, लेकिन यह भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ाने का जोखिम भी पैदा कर रहे हैं।

दुनिया के लिए जटिल सुरक्षा स्थिति

वैश्विक हथियार बिक्री में 4.2% की वृद्धि यह दिखाती है कि दुनिया एक जटिल सुरक्षा माहौल का सामना कर रही है। भारत के लिए यह समय रक्षा क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने और वैश्विक बाजार में पहचान बनाने का महत्वपूर्ण अवसर है।

भारतीय रक्षा कंपनियां अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने उत्पादों के लिए मजबूत स्थान बना रही हैं। सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान और बढ़ते रक्षा बजट के साथ, भारत वैश्विक स्तर पर अपनी भूमिका को और प्रभावशाली बना सकता है।