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FCAS dispute: क्या AMCA की वजह से खटाई में पड़ा फ्रांस, जर्मनी और स्पेन का छठी पीढ़ी का फाइटर जेट प्रोजेक्ट, तीनों देशों में क्यों छिड़ी रार?

दसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने हाल ही में पेरिस के पास एक नई राफेल फैक्ट्री के उद्घाटन पर अपने बयान से पूरे विवाद को और भड़का दिया। उन्होंने कहा कि फ्रांस अकेले भी यह फाइटर जेट बना सकता है। उन्होंने जर्मनी को चुनौती देते हुए कहा कि यदि बर्लिन चाहे, तो वह भी अकेले यह काम कर सकता है...

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📍ia observer FCAS | 24 Sep, 2025, 4:54 PM

FCAS dispute: एक तरफ चीन जहां अपने छठवीं पीढ़ी के फाइटर जेट चेंगदू जे-36 और शेनयांग जे-50 के प्रोटोटाइप की टेस्टिंग करने में जुटा है, तो वहीं यूरोपीय देशों में अभी छठवीं पीढ़ी के फाइटर जेट बनाने को लेकर तू-तू मैं-मैं छिड़ी हुई है। यूरोप की सबसे बड़े डिफेंस प्रोजेक्ट्स में शामिल फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS) को लेकर इन दिनों रार छिड़ी हुई है। इस प्रोजेक्ट के तहत 2040 तक यूरोप की एयर फोर्स के लिए छठवीं पीढ़ी का फाइटर जेट तैयार करना है। वहीं इस प्रोजेक्ट में फ्रांस की दसॉ एविएशन, जर्मनी स्पेन की एयरबस शामिल है। लेकिन इन तीनों के बीच कलह ठन गई है और ये प्रोजेक्ट खत्म होने की कगार पर खड़ा है।

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इस प्रोजेक्ट का मकसद था कि यूरोप अपने दम पर छठवीं पीढ़ी का एक ऐसा फाइटर जेट बनाए जो दुनिया की सबसे आधुनिक तकनीकों से लैस हो। इस विमान को मानवयुक्त लड़ाकू विमानों के साथ ही स्वार्मिंग ड्रोंस और डिजिटल कॉम्बैट क्लाउड से जोड़ा जाना था। लेकिन अब इस प्रोजेक्ट की राह इतनी आसान नहीं लग रही, क्योंकि फ्रांस और जर्मनी के बीच इस पर लीडरशिप को लेकर जबरदस्त खींचतान चल रही है।

FCAS dispute: “सिस्टम ऑफ सिस्टम्स” पर होना था काम

इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2017 में हुई थी, जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने इसका एलान किया। इसका लक्ष्य 2040 तक फ्रांस के राफेल, जर्मनी के यूरोफाइटर टाइफून और स्पेन के EF-18 हॉर्नेट जैसे मौजूदा विमानों की जगह लेना था। इस प्रोजेक्ट को फ्रांस में Système de Combat Aérien du Futur-SCAF नाम से भी जाना जाता है। इसकी खासियत यह थी कि इसमें केवल एक फाइटर जेट नहीं, बल्कि पूरे “सिस्टम ऑफ सिस्टम्स” पर काम होना था। इस सिस्टम में तीन मुख्य हिस्से रखे गए। पहला, न्यू जेनरेशन फाइटर यानी मानवयुक्त स्टेल्थ जेट, जिसे फ्रांस की दसॉ एविएशन लीड कर रही थी। दूसरा, रिमोट कैरियर्स यानी ऐसे ड्रोंस जो स्वार्मिंग और मल्टी-रोल मिशंस को अंजाम दे सकें। इन्हें एयरबस की जिम्मेदारी में जर्मनी और स्पेन को तैयार करना था। तीसरा, रीयल-टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग और डिसीजन मेकिंग के कॉम्बैट क्लाउड सिस्टम, जो एक तरह का डिजिटल नेटवर्क था और जिसका उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से सभी प्लेटफॉर्म्स को जोड़ना था।

FCAS dispute: प्रोजेक्ट को कब्जे में लेना चाहता है दसॉ?

जब यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो इसकी लागत लगभग सौ अरब यूरो आंकी गई थी। उम्मीद थी कि यह यूरोप को अमेरिका के एफ-35 और चीन के जे-20 जैसे लड़ाकू विमानों की बराबरी में खड़ा कर देगा। लेकिन जल्द ही मतभेद उभरने लगे। विवाद तब और गहराया जब 2019 में स्पेन भी इसमें शामिल हो गया। स्पेन के शामिल होने से एयरबस का हिस्सा बढ़कर लगभग दो-तिहाई हो गया और दसॉ की हिस्सेदारी एक-तिहाई रह गई। जर्मनी और स्पेन की ओर से प्रतिनिधित्व करने वाली एयरबस का कहना है कि दसॉ प्रोजेक्ट को कब्जे में लेना चाहता है और सभी अहम फैसले अपने हाथ में रखना चाहता है। दूसरी ओर दसॉ का कहना है कि लीडरशिप के बिना प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सकता।

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दसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने हाल ही में पेरिस के पास एक नई राफेल फैक्ट्री के उद्घाटन पर अपने बयान से पूरे विवाद को और भड़का दिया। उन्होंने कहा कि फ्रांस अकेले भी यह फाइटर जेट बना सकता है। उन्होंने जर्मनी को चुनौती देते हुए कहा कि यदि बर्लिन चाहे, तो वह भी अकेले यह काम कर सकता है, क्योंकि दसॉ के पास इस तरह की क्षमता पहले से है। उनका कहना था कि फ्रांस ने पिछले सत्तर सालों में मिराज और राफेल जैसे विमान बनाकर यह साबित किया है कि डिजाइन से लेकर प्रोडक्शन तक हर चरण में वह आत्मनिर्भर है।

FCAS dispute: इन वजहों से खटाई में पड़ी साझेदारी

दसॉ न्यू जेनरेशन फाइटर यानी NGF का प्राइम कॉन्ट्रैक्टर है, लेकिन स्पेन की एंट्री के बाद फैसलों में वह आउटवोटेड हो गया। फ्रांस की मांग है रि उसे NGF पर 80 फीसदी कंट्रोल दिया जाए। जर्मनी का आरोप है कि दसॉ फ्रांस में ज्यादातर काम रखना चाहता है और अगले फेज (डेमॉन्स्ट्रैटर बनाने) को ब्लॉक कर रहा है। दसॉ का कहना है कि स्पष्ट लीडरशिप के बिना प्रोजेक्ट धीमा हो रहा है। स्पेन के शामिल होने से एयरबस का शेयर 66 फीसदी हो गया, जिससे दसॉ को केवल 25-33 फीसदी काम मिल रहा है। दसॉ के मुताबिक, इससे “जॉइंट डिजाइन अथॉरिटी” मॉडल फेल हो रहा है। वहीं, जर्मनी के डिफेंस मिनिस्टर बोरिस पिस्टोरियस ने अगस्त 2025 में कहा कि जर्मनी प्रोजेक्ट में देरी और नहीं बर्दाश्त कर सकता”।

फ्रांस पहले भी हुआ था बाहर

यह भी कहा जा रहा है कि यूरोफाइटर प्रोजेक्ट के फेल होने के पीछे भी फ्रांस ही था। यूरोफाइटर टाइफून को यूरोपियन फाइटर एयरक्राफ्ट (EFA) या फ्यूचर यूरोपियन फाइटर एयरक्राफ्ट (FEFA) के नाम से जाना जाता था, जो चौथी पीढ़ी का मल्टी-रोल फाइटर जेट है। इसे 1983 में यूरोप के चार देशों जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, इटली और स्पेन के सहयोग से शुरू किया गया था। वहीं शुरुआत में फ्रांस भी इसका हिस्सा था, लेकिन वह 1985 में ही बाहर हो गया था। कहा जाता है कि फ्रेंच इंडस्ट्री हमेशा से सहयोग के खिलाफ रही, लेकिन पॉलिटिकल दबाव और यूरोपियन यूनियन के चलते ऐसा करना पड़ा।

जर्मनी तलाश रहा साझेदार

जर्मनी की स्थिति फिलहाल असमंजस में है। जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस पहले ही यह कह चुके हैं कि प्रोजेक्ट में और देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। जर्मनी की संसद में तो यहां तक सुझाव दिया गया कि बर्लिन को इस प्रोजेक्ट से बाहर निकलकर किसी अन्य साझेदारी की ओर देखना चाहिए। इसके बाद खबरें आईं कि जर्मनी ब्रिटेन, इटली और जापान के साथ मिलकर चल रहे GCAP यानी ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम से जुड़ने पर विचार कर रहा है। यही नहीं, स्वीडन के साथ भी बातचीत की चर्चा है।

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क्या कहना है स्पेन का

स्पेन इस विवाद में अपेक्षाकृत शांत है। उसकी भूमिका एयरबस के जरिए है और वह फ्रांस तथा जर्मनी के बीच सीधी खींचतान में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन स्पेन भी प्रोजेक्ट में लगातार हो रही देरी से परेशान है क्योंकि इस पर उसकी वायुसेना के भविष्य की योजनाएं टिकी हैं। स्पेन का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट में पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। स्पेनिश प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने हाल ही में जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “स्पेन की रुचि इस प्रोजेक्ट में तीनों देशों जर्मनी, फ्रांस और स्पेन द्वारा पहले से तय शर्तों पर पूरी तरह से है। सांचेज ने कहा कि FCAS “मूल वर्कशेयर डील” का सम्मान करे। बता दें कि स्पेन 2019 में फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था। वहीं, मैड्रिड ने अमेरिकी एफ-35 को भी ठुकरा कर FCAS या यूरोफाइटर टाइफून पर फोकस कर लिया।

वहीं स्पेन की कंपनी इंद्रा सिस्टेमास (Indra) इस प्रोजेक्ट में सेंसर, रिमोट कैरियर्स (ड्रोंस) और कॉम्बैट क्लाउड पर काम कर रही है। साथ ही, स्पेन कुल फंडिंग का लगभग 33 फीसदी (फ्रांस और जर्मनी के बराबर) दे रहा है।

वहीं, अगर फ्रांस नहीं मानता है, तो जर्मनी GCAP यानी यूके-इटली-जापान या स्वीडन से जुड़ सकता है। इससे स्पेन का नुकसान कम होगा। वहीं अगर FCAS सफल हुआ तो स्पेन को 100+ विमान मिलेंगे, जो EF-18 को 2040 तक रिप्लेस करेंगे।

क्या होंगी FCAS में खूबियां

फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम के तहत न्यू जेनरेशन फाइटर एक ट्विन इंजन डेल्टा विंग डिजाइन पर बेस्ड स्टेल्थ जेट होगा। इसकी रफ्तार मैक 2 से भी अधिक बताई जा रही है और इसमें आफ्टरबर्नर के बिना ही सुपरक्रूज की क्षमता होगी। इसका कॉम्बैट रेडियस लगभग 1500 किलोमीटर से ज्यादा होगा। इसमें इंटरनल वेपन्स बे होंगे, जिससे इसका रडार क्रॉस सेक्शन बेहद कम रहेगा। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित कॉकपिट और सेंसर फ्यूजन की खूबी होगी। साथ ही यह फाइटर जेट विमान हाइपरसोनिक हथियारों और लेजर वेपंस तक ले जाने में सक्षम होगा।

रिमोट कैरियर्स इस प्रोजेक्ट का दूसरा अहम हिस्सा है। ये ऐसे ड्रोन्स होंगे जो अलग-अलग आकार और भूमिका में तैनात किए जा सकेंगे। इनका इस्तेमाल निगरानी, स्ट्राइक और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर जैसे मिशनों में किया जाएगा। इन्हें विमान या अन्य प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सकेगा। ये पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ऑपरेट होंगे लेकिन कंट्रोल नीचे क्रू के हाथों में रहेगा।

कॉम्बैट क्लाउड FCAS का तीसरा और शायद सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक डिजिटल नेटवर्क होगा जो रीयल-टाइम डेटा शेयरिंग, साइबर सिक्योरिटी और बिग डेटा एनालिसिस की सुविधा देगा। इसकी मदद से वायु, थल, नौसेना और स्पेस सभी प्लेटफॉर्म एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे। यह नेटवर्क युद्ध के दौरान फैसले लेने में मदद करेगा।

FCAS के इंजन की बात करें, तो इसे सफरान और एमटीयू मिल कर बना रही हैं। इसमें वेरिएबल साइकिल एडवांस्ड टर्बोफैन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा, जिससे यह सुपरक्रूज कर सकेगा और साथ ही फ्यूल एफिशिएंसी भी बनी रहेगी। यह इंजन हाई थ्रस्ट-टू-वेट रेशियो देने वाला होगा और इसमें ऐसा डिजाइन होगा जिससे इसका इन्फ्रारेड सिग्नेचर कम हो और दुश्मन इसे आसानी से ट्रैक न कर सके।

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भारत को दिया था शामिल होने का ऑफर

जहां एक ओर यूरोप इस प्रोजेक्ट को लेकर बंटा हुआ नजर आ रहा है, वहीं भारत को भी इसमें शामिल होने का ऑफर दिया गया था। जर्मनी और स्पेन ने नवंबर 2024 में इस प्रोजेक्ट में भारत को ऑब्जर्वर स्टेटस देने का प्रस्ताव रखा था। जिसके तहत भारत इस प्रोजेक्ट की तकनीक को करीब से देख सकेगा और उसकी सप्लाई चेन यानी एवियोनिक्स, सेंसर, इंजन कंपोनेंट्स की सप्लाई में हिस्सा ले सकेगा। हालांकि इसमें भारत के पास फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं होता। वहीं, इसके लिए फ्रांस और स्पेन की मंजूरी जरूरी थी। खबरों के मुताबिक पिछले साल फ्रांस, जर्मनी औऱ स्पेन ने भारत में मल्टी लेटरल एक्सरसाइज तरंग शक्ति में हिस्सा लिया था। जो इस ऑफर का आधार का बना। हालांकि फ्रांस ने ऑफर का विरोध नहीं किया, लेकिन मंजूरी भी नहीं दी। वहीं भारत को डुअल ऑफर्स मिले। जहां भारत को FCAS के अलावा यूके-इटली-जापान के ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम- GCAP में भी आमंत्रित किया गया था।

भारत ने इसलिए किया रिजेक्ट

वहीं, भारत ने फरवरी 2025 में ऑफर को अस्वीकार कर दिया। भारत की प्राथमिकता फिलहाल अपना स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट यानी AMCA प्रोजेक्ट पर है। भारत नहीं चाहता कि उसकी एनर्जी और रिसोर्सेज किसी विदेशी प्रोजेक्ट में उलझें। लेकिन अगर भारत को ऑब्जर्वर स्टेटस मिलता है तो उसकी प्राइवेट डिफेंस इंडस्ट्री को यूरोप की सप्लाई चेन में जुड़ने का बड़ा मौका मिल सकता था।

भारत के लिए यह स्थिति दिलचस्प है। एक ओर वह AMCA पर तेजी से काम कर रहा है, दूसरी ओर वह यूरोपीय तकनीक से सीखने का अवसर भी पा सकता है। लेकिन भारत के लिए प्राथमिकता आत्मनिर्भरता ही है और इसी वजह से उसने FCAS में शामिल होने का कोई औपचारिक प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है। वहीं, भारत और सफरान मिल कर AMCA के लिए इंजन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस समझौते के तहत भारत को पहली बार पूर्ण रूप से जेट इंजन की टेक्नोलॉजी मिलेगी। यह भारत का पहला 100 फीसदी स्वदेशी जेट इंजन होगा जिसे यहीं बनाया जाएगा। और सफरान ने 100% टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की पेशकश भी की है।

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    हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवाद, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

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