📍नई दिल्ली | 21 Sep, 2025, 10:44 PM
MiG-21 in 1971 War: ऑपरेशन सिंदूर को आज प्रिसिजन टारगेट स्ट्राइक के तौर पर जाना जाता है; लेकिन ठीक उसी तरह आज से 54 साल पहले 14 दिसंबर 1971 को ढाका पर हुई वायु कार्रवाई को भी इतिहास में एक तगड़ा प्रिसिजन स्ट्राइक माना जाता रहा है। उस दिन भारतीय वायुसेना ने वह कौशल, सटीकता और संयम दिखाया, जिसने न केवल टारगेट को नष्ट किया बल्कि आसपास आम जाम-माल को भी कम से कम नुकसान हुआ, ठीक जैसे ऑपरेशन सिंदूर में हुआ था। यह हमला न सिर्फ एक सैन्य उपलब्धि था, बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीतिक तस्वीर बदलने वाला एक निर्णायक मोड़ भी बन गया।
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🇮🇳 भारतीय सेना = शक्ति + अनुशासन + आधुनिक तकनीकhttps://t.co/oMFdTOP3Zk…— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) September 21, 2025
1962 के चीन युद्ध ने भारत को यह एहसास करा दिया था कि बिना आधुनिक हवाई ताकत के सीमा सुरक्षित नहीं रह सकती। इस झटके के बाद भारत ने सोवियत संघ से MiG-21 खरीदे। 1963 में पहली बार ये विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। उनकी डेल्टा विंग डिजाइन, सुपरसोनिक स्पीड और मिसाइल क्षमता ने भारत को नई शक्ति दी। ये तेज, सुपरसोनिक इंटरसेप्टर थे।
MiG-21 in 1971 War: 1965 जंग में नहीं मिला कोई किल
1965 के भारत–पाक युद्ध में मिग-21 की पहली परीक्षा हुई। उस समय पाकिस्तान के पास अमेरिकी F-86 साबरे और F-104 स्टारफाइटर जैसे विमान थे। 1965 के युद्ध के समय केवल एक स्क्वाड्रन (नंबर 28, फर्स्ट सुपरसोनिक्स) ही ऑपरेशनल था। यह स्क्वाड्रन मुख्य रूप से डिफेंसिव सॉर्टी (कॉम्बैट एयर पैट्रोल या CAP) के लिए तैनात था, खासकर पंजाब क्षेत्र में।
1965 में MiG-21 ने युद्ध में कई इंटरसेप्शन (पीछा करने) की कोशिश की, लेकिन कोई सफल हवाई जीत नहीं दर्ज की थी। 4 सितंबर 1965 को, मिग-21 ने पाकिस्तानी F-86 सैबर जेट्स का पीछा किया और K-13 मिसाइलें दागीं (2-3 मिसाइलें फायर की गईं), लेकिन कोई हिट नहीं हुई। एक सैबर पायलट बाल-बाल बच गया। हालांकि उस वक्त तक मिग-21 का उपयोग मुख्य रूप से हाई-लेवल इंटरसेप्शन के लिए था, लेकिन पायलट ट्रेनिंग और मिसाइल रिलायबिलिटी की कमी के चलते कोई किल नहीं हुआ।
1965 का युद्ध मुख्यतः ग्नैट (Gnat) और हंटर (Hunter) विमानों के नाम रहा, लेकिन इसने साबित कर दिया कि मिग-21 आने वाले दिनों में भारतीय वायुसेना की रीढ़ बनने वाला है।
1971 तक मिग-21 विमानों के पायलटों ने इन्हें मल्टीरोल भूमिका में ढाला। मिग-21 की सरलता, गति और छोटे आकार के कारण इसे ‘वर्कहॉर्स’ कहा जाने लगा, और यह जल्द ही भारतीय वायुसेना की रीढ़ बन गया।
MiG-21 in 1971 War: पाकिस्तान को था “गार्जियन एंजल्स” का इंतजार
दिसंबर 1971 के मध्य में भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान के कई हिस्सों में तेजी से आगे बढ़ी, और ढाका के चारों ओर पाकिस्तानी सेना को घेरा जा चुका था। उस समय इंटरनेशनल पॉलिटिकल दबाव और अमेरिकी समु्द्री फ्लीट की गतिविधियों ने स्थिति को संवेदनशील बना दिया था।
भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ ने रेडियो पर बार-बार पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने की अपील की, लेकिन असर नहीं हुआ। पाकिस्तानी सैनिक “गार्जियन एंजल्स” यानी अमेरिका की मदद का इंतजार कर रहे थे। वास्तव में, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पाकिस्तान को हथियार दिए थे और भारत को युद्ध से रोकने की चेतावनी भी दी थी। उन्होंने अमेरिकी सेवंथ फ्लीट को बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। इसमें न्यूक्लियर पावर्ड एयरक्राफ्ट कैरियर य़ूएसएस एंटरप्राइजेज भी शामिल था। यह सीधे चिटगांव की ओर बढ़ रहा था।
MiG-21 in 1971 War: ढाका गवर्नर हाउस की अहम बैठक
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पता लगाया कि पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर एएम मलिक ने ढाका सर्किट हाउस में एक अहम बैठक बुलाई है। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि जॉन केली को भी बुलाया गया था। अगर इस बैठक से अंतरराष्ट्रीय दखल की अपील हो जाती, तो भारत की जीत अधर में लटक सकती थी। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने यह जानकारी तुरंत दिल्ली और एयरफोर्स तक पहुंचाई। आदेश साफ था – इस बैठक को हर हाल में रोका जाए। लेकिन किसी नागरिक या विदेशी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।

MiG-21 in 1971 War: मिग-21 को मिला ऐतिहासिक आदेश
ऐसे हालात में सारी जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना और खासकर ग्रुप कैप्टन मैलकम वोलन पर आ गई। उनके पास दो MiG-21 स्क्वाड्रन की कमान थी। समस्या यह थी कि भारतीय पायलटों के पास ढाका का कोई सैन्य नक्शा नहीं था। आखिरकार पर्यटक नक्शे का सहारा लिया गया। विंग कमांडर बीके बिश्नोई को इस ऑपरेशन का नेतृत्व सौंपा गया। उनके साथ चार मिग-21 और दो हंटर विमान थे।
14 दिसंबर 1971: 20 मिनट की उड़ान और प्रिसिजन स्ट्राइक
मिग-21 ने गुवाहाटी और हाशीमारा एयरफील्ड से उड़ान भरी। ढाका पहुंचने में सिर्फ 20 मिनट लगे। आसमान से बिश्नोई ने देखा कि गवर्नर हाउस के बाहर कई गाड़ियां खड़ी थीं। उन्होंने अंदाजा लगाया कि बैठक वहीं चल रही है। गुंबद के नीचे ही कॉन्फ्रेंस रूम होगा।

बिश्नोई ने आदेश दिया और मिग-21 ने रॉकेट दागे। ये सीधे गुंबद को चीरते हुए मीटिंग हॉल में गिरे। इसके बाद हंटर विमानों ने मशीन गन से हमला किया। यह हमला इतना सटीक था कि किसी आम नागरिक को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बैठक तहस-नहस हो गई। गवर्नर मलिक ने तुरंत इस्तीफा लिखकर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कार्यालय का रुख किया। सिर्फ 48 घंटे के भीतर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 90,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
16 दिसंबर को ढाका में भारतीय सेना ने जीत का परचम लहराया और बांग्लादेश का जन्म हुआ।
ग्रुप कैप्टन मैलकम वोलन को उनकी भूमिका के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया। विंग कमांडर बी.के. बिश्नोई और उनके साथियों का नाम इतिहास में अमर हो गया। इस प्रिसिजन स्ट्राइक के बाद मिग-21 भारत का “हीरो” बन गया।
MiG-21 in 1971 War: पश्चिमी मोर्चे पर भी किया कमाल
पूर्वी मोर्चे के अलावा मिग-21 ने पश्चिमी मोर्चे पर भी शानदार प्रदर्शन किया। 12 दिसंबर को जामनगर में पाकिस्तानी F-104 ने हमला किया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट बीबी सोनी ने मिग-21 से उसका पीछा किया और गनफायर से गिरा दिया। मिग-21 से पाकिस्तान के दिग्गज पायलट विंग कमांडर मर्विन मिडलकॉट को मार गिराया। यह दुनिया की पहली घटना थी जब मिग-21 ने एफ-104 स्टारफाइटर को मार गिराया। 16 और 17 दिसंबर को राजस्थान के उत्तरलई सेक्टर में स्क्वाड्रन लीडर आईएस बिंद्रा और उनके साथियों ने भी पाकिस्तानी एफ-104 स्टारफाइटर को मिसाइल और गन दोनों से निशाना बनाया।
असली सुपरसोनिक गनफाइटर
1971 युद्ध के बाद भारतीय वायुसेना ने तय किया कि हर MiG-21 में गन होना जरूरी है। रूस और भारत ने मिलकर मिग-21एमएफ (MiG-21MF) तैयार किया, जिसमें गन को विमान के भीतर फिट किया गया। भारतीय इंजीनियरों ने यहां तक जुगाड़ निकाला कि गन के कारतूसों को विमान के एयर इनटेक के चारों ओर लपेटकर रखा जाए। साथ ही आधुनिक ASP-PFD गाइरो गनसाइट भी लगाया गया। इससे मिग-21 एक असली सुपरसोनिक गनफाइटर बन गया।