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Transgender Navy officer Case: ट्रांसजेंडर नौसेना अफसर के मामले पर हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय से मांगा जवाब

यह मामला एक पूर्व नौसेना अफसर से जुड़ा है, जिन्होंने सेवा के दौरान खुद को महिला के रूप में पहचानना शुरू किया और जेंडर रिएसाइनमेंट सर्जरी कराई...

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📍नई दिल्ली | 30 Oct, 2025, 7:53 PM

Transgender Navy officer Case: दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर नौसेना अफसर की सेवा से बर्खास्तगी के मामले में रक्षा मंत्रालय से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। अदालत ने पूछा है कि क्या आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल को केवल अपने अधिनियम, यानी आर्मेड फोर्सेस ट्रिब्यूनल एक्ट, 2007 तक सीमित रहकर सुनवाई करनी चाहिए या वह अन्य कानूनों की संवैधानिक वैधता की भी जांच कर सकता है।

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इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय, न्यायमूर्ति सी हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओपी शुक्ला की तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। अदालत ने कहा कि यह मुद्दा केवल नौसेना तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर थलसेना और वायुसेना के कर्मियों पर भी पड़ सकता है। इसलिए रक्षा मंत्रालय की ओर से सचिव या उनके द्वारा नामित किसी वरिष्ठ अधिकारी को इस पर विस्तृत जवाब देना होगा।

पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामला पूरे सशस्त्र बलों पर असर डाल सकता है, इसलिए मंत्रालय की आधिकारिक स्थिति अदालत के सामने पेश की जानी चाहिए। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 नवंबर तय की है।

नौसेना अफसर ने ट्रांसजेंडर पहचान के बाद दायर की थी याचिका

यह मामला एक पूर्व नौसेना अफसर से जुड़ा है, जिन्होंने सेवा के दौरान खुद को महिला के रूप में पहचानना शुरू किया और जेंडर रिएसाइनमेंट सर्जरी कराई। इसके बाद, अफसर ने आरोप लगाया कि सर्जरी की जानकारी मिलने पर नौसेना ने उन्हें पांच महीने तक मनोचिकित्सा वार्ड में रखा और बार-बार चिकित्सकीय जांच कराई।

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अफसर ने अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा कि नेवी एक्ट की धारा 9 और कुछ नियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को नहीं मानते। इसलिए उन्हें असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने अपनी सेवा में बहाली और बकाया वेतन की मांग भी की है।

केंद्र सरकार ने दाखिल किया जवाब

केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने दलील दी कि याचिका सुनने का अधिकार केवल एएफटी को है, क्योंकि यह मामला सेवा नियमों और बर्खास्तगी से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि अधिकारी को अनुशासनहीनता और नियमों के उल्लंघन के कारण हटाया गया।

सरकार ने दावा किया कि अधिकारी को बार-बार लंबे बाल रखने, नेल पॉलिश लगाने, और आईब्रो ट्रिम कराने जैसी वजहों से कई बार चेतावनी दी गई थी। इसके अलावा, बिना अनुमति जेंडर रिएसाइनमेंट सर्जरी कराने को भी सेवा आचरण के खिलाफ बताया गया।

अदालत में उठे तीन मुख्य सवाल

इस मामले में अदालत को तीन अहम कानूनी सवालों पर फैसला करना है। पहला, क्या AFT को अपने अधिनियम के अलावा अन्य कानूनों जैसे नौसेना अधिनियम की धाराओं की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का अधिकार है? दूसरा, क्या पहले दिए गए नीलम चहर केस के फैसले से एएफटी को ऐसे मामलों में फैसले देने का अधिकार मिला है? तीसरा, क्या इस तरह की व्याख्या उन सभी ट्रिब्यूनलों पर लागू होती है जो संविधान के अनुच्छेद 323ए और 323बी के तहत स्थापित नहीं किए गए हैं?

अदालत ने कहा- मुद्दा पूरी फोर्स से जुड़ा

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे सशस्त्र बलों में समानता और अधिकारों के से जुड़ा है। अदालत ने सीनियर एडवोकेट गौतम नारायण को एमिकस क्यूरिया नियुक्त किया है, जो इस मामले में अदालत की मदद करेंगे।

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अदालत ने कहा कि इस मामले के जो भी परिणाम आएगें, उसका सेना, नौसेना और वायुसेना में सेवा कर रहे सभी कर्मियों पर असर पड़ सकता है। इसलिए इस पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को निर्धारित की गई है, जब रक्षा मंत्रालय की ओर से आधिकारिक जवाब अदालत के सामने पेश किया जाएगा।

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