📍चंडीगढ़ | 5 Nov, 2025, 6:44 PM
Special Family Pension: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश में 1965 के भारत-पाक युद्ध के सैनिक की पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन देने का फैसला बरकरार रखा है। मामला हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के रहने वाले स्वर्गीय चंद्रमणि से जुड़ा है। वे 1964 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे, लेकिन 1965 के युद्ध में लगी शारीरिक और मानसिक चोटों के चलते उन्हें 1968 में “सर्विस नो लॉन्जर रिक्वायर्ड” (सेवा की अब जरूरत नहीं) कहकर समय से पहले ही सेना से हटा दिया गया था। गंभीर चोटों और मानसिक तनाव के चलते 24 मार्च 1987 को उनका निधन हो गया।
उनकी पत्नी मिन्नी देवी (उर्फ मुन्नी) ने अपने दिवंगत पति के लिए विकलांगता पेंशन और उसके बाद परिवारिक पेंशन का दावा किया था। जुलाई 2023 में चंडीगढ़ की आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल ने मिन्नी देवी को सामान्य पारिवारिक पेंशन (आर्डिनरी फैमिली पेंशन) देने का आदेश दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी कि यह दावा “बहुत देर से” किया गया है, क्योंकि जवान की मौत कई साल पहले ही हो चुकी थी।
Special Family Pension: “सरकार का दायित्व है कि वह अधिकार दे, न कि छीने”
मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने गया। जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी ने केंद्र सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चंद्रमणि को 1965 के युद्ध में लगी चोटों के चलते ही नौकरी से हटाया गया था, इसलिए उन्हें विकलांगता पेंशन मिलनी चाहिए थी।
अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट है कि मिन्नी देवी के पति की रिहाई 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान लगी चोटों की वजह से हुई थी। इसलिए उनकी मृत्यु के बाद पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन दी जानी चाहिए थी।” अदालत ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल ने गलती से सामान्य पेंशन दी, जबकि उन्हें विशेष पेंशन का हक था।
नौकरी से हटाने की प्रक्रिया पर भी उठे सवाल
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सैनिक को “सर्विस नो लॉन्जर रिक्वायर्ड” लिखकर हटा देना मनमाना और अनुचित कदम था। यह स्पष्ट था कि वह अपनी ड्यूटी करने में असमर्थ थे क्योंकि उन्होंने देश की रक्षा करते हुए गंभीर चोटें झेली थीं।
बेंच ने कहा कि ऐसे मामले में यह सरकार का नैतिक और कानूनी दायित्व बनता है कि वह सैनिक और उसके परिवार को सभी हकदार लाभ दे।
अदालत ने कहा कि “सामान्य पेंशन केवल उन सैनिकों को मिलती है जो बिना विकलांगता के सेवा से सेवानिवृत्त होते हैं, जबकि चंद्रमणि को 1965 के युद्ध में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की चोटें आई थीं। ऐसे में उनके परिवार को विशेष पारिवारिक पेंशन पूरी तरह उचित है।”
कब दी जाती स्पेशल फैमिली पेंशन
- यदि सैनिक की मौत सेवा के दौरान हुई हो, जैसे दुश्मन की कार्रवाई, आतंकवादी हमला, एंटी-टेरर ऑपरेशन, युद्ध, माइन-क्लियरिंग मिशन या किसी शांति मिशन में।
- यदि सैनिक की मौत सेवा से जुड़ी दुर्घटना, चोट या बीमारी के कारण हुई हो। इसमें प्रशिक्षण के दौरान हुई घटनाएं, वाहन दुर्घटनाएं या प्राकृतिक आपदाएं भी शामिल हैं।
- यदि सैनिक की मौत रिटायरमेंट के बाद होती है, लेकिन वह चोट या विकलांगता सेवा के दौरान लगी थी, तो पत्नी या परिवार को स्पेशल फैमिली पेंशन का अधिकार मिलता है।
हालांकि अगर मौत पूरी तरह सेवा-असंबंधित कारणों से हुई है, जैसे सामान्य बीमारी या प्राकृतिक कारण, तो केवल सामान्य फैमिली पेंशन दी जाती है।
स्पेशल फैमिली पेंशन का लाभ सैनिक के आश्रित परिवार को दिया जाता है। पात्रता का क्रम निम्न प्रकार से होता है —
- सबसे पहले विधवा या विधुर को पेंशन दी जाती है, जो जीवनभर या पुनर्विवाह होने तक जारी रहती है।
- अगर विधवा नहीं है, तो बच्चे (बेटा या बेटी) पात्र होते हैं। बच्चों को 25 वर्ष की आयु तक या शादी/आय शुरू होने तक यह पेंशन मिलती है।
- अगर बच्चे भी नहीं हैं, तो माता-पिता को पेंशन दी जाती है, बशर्ते वे सैनिक पर निर्भर हों और उनकी मासिक आय 2,550 रुपये से कम हो।इसके अलावा, कुछ मामलों में निर्भर भाई-बहन को भी 25 वर्ष की आयु तक पेंशन दी जा सकती है।
पेंशन की राशि कितनी होती है
- स्पेशल फैमिली पेंशन की दर अंतिम प्राप्त वेतन का 60 फीसदी होती है। वर्तमान नियमों के अनुसार, न्यूनतम 9,000 रुपये प्रति माह पेंशन दी जाती है और अधिकतम की कोई सीमा नहीं है।
- इसके अलावा, डियरनेस रिलीफ भी जोड़ा जाता है, जो मुद्रास्फीति के अनुसार समय-समय पर बढ़ता है।
- पेंशनधारकों को वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत समान रैंक और सेवा अवधि के अनुसार समान पेंशन दी जाती है, जिसे हर 5 साल में संशोधित किया जाता है।
- विशेष मामलों में, जैसे युद्ध या अत्यधिक जोखिम वाले इलाकों में हुई मृत्यु, लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन भी दी जाती है, जो 60 से 100 प्रतिशत तक हो सकती है।
