📍नई दिल्ली | 14 Oct, 2025, 10:25 AM
UNTCC Chiefs Conclave: भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि दुनिया भर में युद्ध का तरीका बदल गया है और अब शांति बनाए रखने के लिए सभी देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों का एक अहम हिस्सा रहा है और आज भी 11 में से 9 मिशनों में भारत सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।
जनरल द्विवेदी नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र में सैनिक योगदान देने वाले देशों के प्रमुखों के सम्मेलन (UN Troop Contributing Countries Chiefs’ Conclave 2025) को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में दुनिया के 32 देशों के सेनाध्यक्ष और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी शामिल हुए हैं।
UNTCC Chiefs Conclave: “युद्ध अब बदल चुका है, शांति के लिए एकजुटता ही असली ताकत”
सेना प्रमुख ने कहा कि अब संघर्षों का स्वरूप पारंपरिक युद्ध से आगे बढ़ चुका है। आधुनिक युद्धों में हाइब्रिड वारफेयर , डिसइन्फॉर्मेशन कैंपेन, साइबर अटैक, और गैर-राज्य तत्वों की भूमिका बढ़ गई है। ऐसे समय में देशों के बीच सहयोग और तालमेल की भूमिका पहले से कहीं अधिक अहम हो गई है।
उन्होंने कहा कि “शांति बनाए रखना केवल सैनिकों का काम नहीं है, लेकिन इसे केवल एक सैनिक ही कर सकता है।” उन्होंने कहा कि जब दुनिया के विभिन्न देश एक झंडे के नीचे एकजुट होकर काम करते हैं, तो यह “मानवता की असली ताकत” को दिखाता है।
UNTCC Chiefs Conclave: भारत ने 71 में से 51 मिशनों में भेजे सैनिक
जनरल द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र के 71 शांति अभियानों में से 51 मिशनों में योगदान दे चुका है। इन अभियानों में अब तक लगभग 3 लाख भारतीय सैनिक (300,000 troops) हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने बताया कि भारत का यह योगदान शांति, स्थिरता और मानवता की सेवा की भावना का परिचायक है।
उन्होंने कहा कि भारत ने सबसे पहले 1950 में कोरिया और 1960 में कांगो में शांति सैनिक भेजे थे। आज भी भारत 9 शांति मिशनों में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है, जिनमें अफ्रीका और मध्य एशिया के कई संवेदनशील क्षेत्र शामिल हैं।
UNTCC Chiefs Conclave: ‘ब्लू हैलमेट’ सैनिकों को बताया शांति का प्रतीक
सेना प्रमुख ने संयुक्त राष्ट्र के ‘ब्लू हैलमेट’ पहने शांति सैनिकों को दुनिया में शांति बनाए रखने का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि ये सैनिक केवल सुरक्षा प्रदाता नहीं हैं, बल्कि “डिप्लोमैट, टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ और दूरस्थ क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण के सहभागी” भी हैं।
उन्होंने कहा कि “ब्लू हेलमेट” दरअसल “ब्लू ग्लू” की तरह हैं जो संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों और गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज को एक साथ जोड़ते हैं।
“कम संसाधनों के साथ काम करने की नई चुनौती”
जनरल द्विवेदी ने कहा कि भविष्य में शांति अभियानों के लिए संसाधनों की कमी और घटती अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एक बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा कि अब ऐसे अभियानों की योजना बनानी होगी जो कम संसाधनों के साथ अधिक कुशलता से काम कर सकें और टेक्नोलॉजी तथा इनोवेशन पर आधारित हों।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में शांति मिशनों का फोकस केवल सशस्त्र उपस्थिति पर नहीं रहेगा, बल्कि प्रिवेंटिव डिप्लोमेसी और सस्टेनेबल पीस बिल्डिंग पर भी ध्यान देना होगा।
“वैश्विक शांति प्रयासों के साथ रहेगा भारत”
सेना प्रमुख ने कहा कि भारत हमेशा से “विश्व बंधुत्व” और वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत पर काम करता रहा है। उन्होंने कहा कि भारत न केवल अपने शांति सैनिकों के अनुभव साझा करने को तैयार है, बल्कि दूसरे देशों की बेस्ट प्रैक्टिसेस को भी अपनाने के लिए तत्पर है।
उन्होंने कहा कि “भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में योगदान न केवल हमारे सैनिकों की वीरता का उदाहरण है, बल्कि यह हमारी वैश्विक जिम्मेदारी की भावना को भी दिखाता है।”
“भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा”
जनरल द्विवेदी ने कहा कि शांति अभियानों को अब भविष्य की चुनौतियों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के सैनिकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी, और रैपिड डिप्लॉयमेंट सिस्टम्स जैसी आधुनिक तकनीकों से लैस करना समय की मांग है।
उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शांति प्रशिक्षण केंद्र को राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में अपग्रेड किया है, जहां दुनिया के कई देशों के अधिकारी प्रशिक्षण ले चुके हैं।
“एकजुट होकर शांति कायम रखने का संकल्प”
सेना प्रमुख ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि यह सम्मेलन सभी देशों को एक मंच पर लाता है जहां वे अपने अनुभव साझा कर सकते हैं और एक-दूसरे से सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि संघर्ष पर शांति और विभाजन पर करुणा की जीत हो।”
उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन के शब्दों का हवाला देते हुए कहा, शांति को बलपूर्वक बनाए नहीं रखा जा सकता, यह केवल समझदारी से हासिल की जा सकती है।