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Tethered Surveillance Drones: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना को चाहिए ये खास ड्रोन, जो 9 घंटे तक लगातार रखें दुश्मन पर नजर

सेना ने खास तौर पर यह भी कहा है कि ड्रोन में काउंटर इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर कैपेबिलिटी होनी चाहिए। यानी दुश्मन अगर ड्रोन को हैक करने या उसकी लोकेशन ब्लॉक करने की कोशिश करे, तो ये सिस्टम उसे नाकाम कर सके...

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📍नई दिल्ली | 10 Sep, 2025, 5:51 PM

Tethered Surveillance Drones: पाकिस्तान के खिलाफ हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय सेना की रणनीतिक सोच को नई दिशा दी है। इस ऑपरेशन में दोनों देशों की सेनाओं ने बड़ी संख्या में UAV ड्रोनों का इस्तेमाल किया। अब भारतीय सेना ने फैसला किया है कि वह करीब 5000 टेदर्ड ड्रोन सिस्टम खरीदेगी। इन ड्रोन का इस्तेमाल मैदानों, रेगिस्तानों और ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में निगरानी के लिए किया जाएगा।

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सेना ने हाल ही में इसके लिए रिक्वेस्ट फॉर इनफॉरमेशन (RFI) जारी की है। इसमें साफ कहा गया है कि 5000 ड्रोन सिस्टम्स की सप्लाई 24 महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए। सेना की आवश्यकताओं के मुताबिक, ये ड्रोन सिस्टम दिन-रात के अलावा सभी तरह के मौसम में काम करने में सक्षम होने चाहिए। इन्हें 75 प्रतिशत तक की नमी, 35 किमी/घंटा की हवा की रफ्तार और 500 मीटर तक की दृश्यता वाले माहौल के साथ ही हल्की बारिश और बर्फबारी में भी ऑपरेशनल रहना होगा।

क्या हैं Tethered Surveillance Drones?

टेदर्ड ड्रोन यानी बंधा हुआ ड्रोन सिस्टम एक ऐसा निगरानी उपकरण है, जिसमें ड्रोन को जमीन पर स्थित एक टेदर स्टेशन (Ground-based Tether Station) से जोड़ा जाता है। इससे ड्रोन लंबे समय तक हवा में रहकर टारगेट पर नजर रख सकता है। जरूरत पड़ने पर ये ड्रोन अनटेदर्ड मोड (बिना रस्सी/केबल) में भी उड़ सकता है। इस स्थिति में यह और ऊंचाई तक जाकर इलाके की निगरानी करता है और इंटेलिजेंस इनपुट को कन्फर्म करता है।

भारतीय सेना ने साफ किया है कि ये ड्रोन मेक-इन-इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बनाए जाएंगे। सेना का कहना है कि इनसे महत्वपूर्ण ठिकानों के आसपास निरंतर निगरानी और जानकारी इकट्ठा करने की क्षमता बढ़ेगी। खासकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ये सेना की आंख और कान बनेंगे।

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Tethered Surveillance Drones: क्या हों खूबियां

सेना की तरफ से जारी RFI के अनुसार इन ड्रोन का डिजाइन मॉड्यूलर होना चाहिए। इसका मतलब है कि भविष्य में नई टेक्नोलॉजी आने पर इन ड्रोन को बिना इसके स्ट्रक्चर में बदलाव किए अपग्रेड किया जा सकेगा। यह सेना के लिए बेहद फायदेमंद होगा क्योंकि समय के साथ बदलती जरूरतों और आधुनिक टेक्नोलॉजी के हिसाब से इन्हें लगातार अपग्रेड किया जा सकेगा।

इन ड्रोन की उड़ान क्षमता भी खास है। टेदर्ड मोड में ये कम से कम 100 मीटर की ऊंचाई तक हवा में स्थिर रहकर निगरानी कर सकेंगे। वहीं, अनटेदर्ड मोड में यह 1000 मीटर यानी लगभग 1 किलोमीटर या उससे भी ज्यादा ऊंचाई तक उड़ान भर पाएंगे। इससे सेना को जमीन से दूर तक की तस्वीर साफ मिल सकेगी।

समय की क्षमता की बात करें तो टेदर्ड मोड में ये ड्रोन लगातार 9 घंटे तक आसमान में बने रह सकते हैं। वहीं, अनटेदर्ड मोड में भी ये कम से कम 60 मिनट तक निगरानी करने में सक्षम होंगे। इतनी देर तक हवा में बने रहने से सेना को दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने में मदद मिलेगी।

इन ड्रोन की एक और अहम बात यह है कि इन्हें ऑपरेट करने के लिए किसी बड़े स्टाफ की जरूरत नहीं होगी। सिर्फ एक ऑपरेटर इन्हें कंट्रोल कर सकता है। साथ ही, इनका मिशन रेंज भी जबरदस्त है। अनटेदर्ड मोड में ये ड्रोन 10 किलोमीटर तक एक तरफ जाकर निगरानी कर सकते हैं, जो सेना के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा।

ये ड्रोन -10 डिग्री से लेकर 45–50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में काम करने में सक्षम होंगे। ऊंचाई वाले इलाकों में, जहां मौसम बेहद कठिन होता है, वहां भी इनका इस्तेमाल संभव होगा।

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Tethered Surveillance Drones: इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर से सुरक्षा

सेना ने खास तौर पर यह भी कहा है कि ड्रोन में काउंटर इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर कैपेबिलिटी होनी चाहिए। यानी दुश्मन अगर ड्रोन को हैक करने या उसकी लोकेशन ब्लॉक करने की कोशिश करे, तो ये सिस्टम उसे नाकाम कर सके। इसके साथ ही ये जीपीएस, सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम और डिजिटल मैप्स के साथ कॉम्पैटिबल होने चाहिए।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने यह महसूस किया कि दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखने के लिए ज्यादा एडवांस और लंबे समय तक चलने वाले ड्रोन जरूरी हैं। पाकिस्तान ने भी उस समय अपने यूएवी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। इसके बाद सेना ने तय किया कि भविष्य की लड़ाइयों में लगातार निगरानी को प्राथमिकता दी जाएगी।

Tethered Surveillance Drones: कब तक मिलेंगे ड्रोन?

RFI के अनुसार, जो भी कंपनियां इन ड्रोन को बनाकर सेना को सप्लाई करना चाहती हैं, उन्हें 2 नवंबर 2025 तक अपने प्रस्ताव जमा करने होंगे। सेना चाहती है कि अगले दो सालों के भीतर ये सभी 5000 सिस्टम्स उसकी यूनिट्स तक पहुंच जाएं।

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