📍नई दिल्ली | 22 Oct, 2025, 9:12 PM
Close Quarter Battle Carbine: भारतीय सेना की इन्फैंट्री को अब आधुनिक और स्वदेशी तकनीक से बनी क्लोज क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) कार्बाइन्स मिलने जा रही हैं। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में 4.25 लाख कार्बाइन राइफलें खरीदने के लिए दो भारतीय कंपनियों भारत फोर्ज लिमिटेड और पीएलआर सिस्टम्स के साथ एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है। इस डील की कुल लागत लगभग 2770 करोड़ रुपये बताई गई है।
वहीं, इन कार्बाइन्स की डिलीवरी आने वाले महीनों में शुरू होगी, जिससे सैनिकों की नजदीकी युद्ध क्षमता में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। यह डील भारतीय सेना की ‘बाय (इंडियन)’ कैटेगरी के तहत की गई है, जिसमें कम-से-कम 50 से 60 फीसदी तक इंडीजिनियस कंटेंट होना जरूरी है। जिसका उद्देश्य है, भारतीय रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना और विदेशों पर निर्भरता को घटाना है।
Close Quarter Battle Carbine: दो भारतीय कंपनियां बनाएंगी नई कार्बाइन
कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, भारत फोर्ज की यूनिट ‘कल्यााणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम्स लिमिटेड’ कुल उत्पादन का 60 फीसदी हिस्सा संभालेगी, जबकि बाकी 40 फीसदी हिस्से की सप्लाई पीएलआर सिस्टम्स करेगी, जो अदाणी ग्रुप और इजराइल वेपन इंडस्ट्री मिल कर बनाएंगी। यह तावोर राइफल फैमिली का हिस्सा है और विशेष रूप से क्लोज क्वार्टर बैटल ऑपरेशंस के लिए डिजाइन की गई है।
Close Quarter Battle Carbine: दो साल के भीतर सप्लाई
डायरेक्टर जनरल इन्फैंट्री लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार ने बताया, “भारतीय इन्फैंट्री अब ‘शूट टू किल’ फिलॉसफी की दिशा में आगे बढ़ चुकी है। पुराने हथियारों की जगह अब 7.62 मिमी कैलिबर वाले एडवांस्ड राइफल और सीक्यूबी कार्बाइन लाई जा रही हैं, जो अधिक घातक, सटीक और भरोसेमंद हैं।”
उन्होंने बताया, “कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक कंपनियों को दो साल के भीतर पूरी कार्बाइन खेप की सप्लाई करनी होगी। यह सेना के आधुनिकीकरण कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा है।” जनरल कुमार ने कहा कि नई सीक्यूबी कार्बाइनें नजदीकी युद्ध यानी क्योज कॉम्बैट, काउंटर टेररिज्म ऑपरेशंस, और शहरी मिशनों में इन्फैंट्री की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा देंगी।
Close Quarter Battle Carbine: क्या हैं नई सीक्यूबी की खूबियां
सेना द्वारा खरीदी जा रही सीक्यूबी कार्बाइनें 5.56×45 मिमी कैलिबर की हैं। इनका वजन तीन किलोग्राम से अधिक नहीं होगा। इन हथियारों की इफेक्टिव रेंज 200 मीटर से अधिक होगी, और इन्हें बेयॉनेट के साथ इस्तेमाल किया जा सकेगा, जिसके ब्लेड लंबाई कम से कम 120 मिमी होगी।
इन कार्बाइन राइफलों में शॉर्ट बर्स्ट फायरिंग, फुल ऑटो फायर मोड, नाइट विजन साइट्स, हाइब्रिड टैक्टिकल ग्रिप और साइलेंसर कम्पैटिबिलिटी जैसी सुविधाएं मिलेंगी। ये हथियार पुराने स्टर्लिंग सबमशीन गन को रिप्लेस करेंगे, जो पिछले दो दशकों से सेना में सेवा में थीं।
इंसास और स्टर्लिंग को किया जाएगा चरणबद्ध तरीके से रिप्लेस
इंसास राइफल और 9×19 मिमी स्टर्लिंग कार्बाइन 1990 के दशक से सेवा में थीं, लेकिन अब तकनीकी रूप से पुरानी हो चुकी हैं। स्टर्लिंग गन मूल रूप से 1940 के दशक की डिजाइन पर आधारित है और आज के शहरी व आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिए नाकाफी है। लेकिन समय के साथ बदलती तकनीक और नए युद्धक्षेत्र की चुनौतियों को देखते हुए सेना ने छोटे, तेज और सटीक हथियारों की जरूरत महसूस की। सीक्यूबी कार्बाइन इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की गई है। यह उन हालात में सबसे ज्यादा प्रभावी है जहां लड़ाई शहरी इलाकों, इमारतों या सीमित दूरी पर होती है।
लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार ने बताया कि “इंसास राइफलें अपने समय में काफी प्रभावी थीं, लेकिन अब आधुनिक मेटलर्जी और निर्माण तकनीकों के चलते कम वजनी, अधिक टिकाऊ और घातक हथियारों की आवश्यकता है।”
डिलीवरी का पहला चरण सितंबर 2026 से
रक्षा मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के लिए 2022 में स्वीकृति (एक्सेप्टेंस ओएफ नेसेसिटी – एओएन) दी थी, जिसमें 4,25,213 सीक्यूबी कार्बाइन खरीदने का प्रावधान था। यह सभी हथियार ‘बॉय (इंडियन)’ कैटेगरी में शामिल हैं, जिसका अर्थ है कि इन्हें या तो भारत में डिजाइन और निर्मित किया गया हो या इनमें 60 प्रतिशत से अधिक भारतीय सामग्री हो। सेना के अधिकारियों के अनुसार, डिलीवरी का पहला चरण सितंबर 2026 में शुरू होगा और पूरा बैच दो वर्षों में सेना को सौंप दिया जाएगा।
आधुनिक युद्ध के लिए तैयार सैनिक
सेना के आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत इन्फैंट्री को नई सीक्यबूी कार्बाइन के अलावा एके-203 राइफलें, .338 स्नाइपर राइफलें, और चौथी पीढ़ी के एंटी-टैंक मिसाइल सिस्टम भी मिल रहे हैं। डीजी इन्फैंट्री ने बताया कि “सभी स्तरों पर सैनिकों और अधिकारियों को नई तकनीकों की ट्रेनिंग दी जा रही है।” उन्होंने जोड़ा कि हर साल प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की समीक्षा की जाती है ताकि सैनिक नई हथियार प्रणालियों को संभालने और ऑपरेट करने में सक्षम रहें।
भारतीय उद्योग से जुड़ा आत्मनिर्भरता मिशन
लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार ने कहा कि सीक्यूबी कार्बाइन प्रोजेक्ट (Close Quarter Battle Carbine) पूरी तरह से मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा, “हम घरेलू उद्योगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि भविष्य में सभी वेपन सिस्टम भारत में ही बनाए जा सकें।”
इन्फैंट्री के आधुनिकीकरण में निजी कंपनियों और रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों (डीपीएसयू) की भूमिका बेहद अहम हो गई है। इसके तहत सेना सॉफ्टवेयर-डिफाइंड रेडियो, थर्मल इमेजिंग साइट्स, और ड्रोन सर्विलांस सिस्टम्स जैसे कई सिस्टम भी देश में डेवलप करवा रही है।