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India Su-57 Fighter Jets: ऑपरेशन सिंदूर में वायुसेना को हुई थी ये दिक्कत, इसलिए चाहिए Su-57 फाइटर जेट्स, 2026 तक आएगा S-400

मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना को अहसास हुआ कि पाकिस्तान के खिलाफ लंबी दूरी तक स्ट्राइक करने की क्षमता नहीं है। भारतीय वायुसेना के पास राफेल और सुखोई-30 जैसे ताकतवर विमान तो थे, लेकिन वे लंबी रेंज तक मार नहीं सकते थे...

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📍नई दिल्ली | 23 Sep, 2025, 11:30 AM

India Su-57 Fighter Jets: भारत अब रूस के Su-57 फाइटर जेट्स खरीदने को लेकर फिर से गंभीरता से विचार कर रहा है। रूस ने भारत को Su-57 फाइटर जेट्स की सप्लाई और भारत में इनके लोकल प्रोडक्शन का प्रस्ताव भेजा है। सूत्रों के अनुसार, इस प्रस्ताव में भारत की एयरोस्पेस कंपनियों को शामिल करने की संभावना भी है। साथ ही, रूस ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत को दिए जा रहे पांच एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम्स की डिलीवरी 2026 तक पूरी कर दी जाएगी। यह डील 2018 में दोनों देशों के बीच हुई थी और अब यह अंतिम चरण में है।

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India Su-57 Fighter Jets: दो स्क्वॉड्रन एसयू-57 खरीदने पर विचार

सूत्रों का कहना है कि भारत रूस से कम से कम दो स्क्वॉड्रन एसयू-57 खरीदने पर विचार कर रहा है। इनमें से कुछ विमान सीधे रूस से आएंगे और बाकी का निर्माण भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड करेगी। एचएएल पहले से ही रूस के सुखोई ब्यूरो के साथ काम कर रही है। एचएएल की नासिक स्थित फैक्ट्री में इन विमानों का निर्माण संभव हो सकता है।

रूस की ओर से प्रस्ताव है कि 2 स्क्वॉड्रन उड़ान भरने की तैयार हालत में आएंगे और जबकि 3 से 5 स्क्वॉड्रन भारत में ही बनाए जा सकते हैं।

भारत ने क्यों किया FGFA प्रोग्राम से बाहर निकलने का फैसला

दिलचस्प बात यह है कि 2018 में भारत ने रूस के साथ मिलकर चल रहे फिफ्थ जनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (FGFA) प्रोग्राम से खुद को अलग कर लिया था। उस समय कई वजहें थीं। पहली बड़ी वजह लागत थी। भारत ने शुरुआती डिजाइन स्टेज में ही करीब 1,483 करोड़ रुपये (295 मिलियन अमेरिकी डॉलर) लगाए थे। लेकिन 127 विमानों के लिए आगे का खर्चा लगभग 35 अरब डॉलर तक पहुंच जाता। प्रति विमान लागत 150 से 200 मिलियन डॉलर तक जा सकती थी।

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दूसरी बड़ी समस्या परफॉर्मेंस की थी। एसयू-57 के एएल-41एफ1 इंजन में असली सुपर क्रूज क्षमता नहीं थी। उस समय भारतीय वायुसेना ने सुपर क्रूज (बिना आफ्टरबर्नर लगातार सुपरसोनिक उड़ान भरने की क्षमता) को कमजोर माना था। नए इंजन इजडेलिये-30 का वादा तो किया गया था, लेकिन उपलब्ध नहीं हो पाया।

तीसरी समस्या स्टेल्थ डिजाइन की थी। यह केवल सामने के 60 डिग्री आर्क तक स्टेल्थ रहता था। यानी चौथी पीढ़ी के सुखोई-30 के मुकाबले कोई बड़ा फायदा नहीं था। एक और बड़ी चुनौती थी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर। रूस अहम तकनीक साझा करने को तैयार नहीं था, जबकि भारत जॉइंट-प्रोडक्शन चाहता था।

2018 में भारत के बाहर निकलने के बाद भी रूस ने इस विमान को सीमित स्तर पर ही अपनाया। 2023 तक रूस के पास केवल दो दर्जन एसयू-57 फाइटर जेट थे। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी इसका प्रदर्शन खास प्रभावी नहीं रहा। यही वजह थी कि भारत ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए थे।

India Su-57 Fighter Jets: आईएएफ को चाहिए लॉन्ग रेंज स्ट्राइक पावर

मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना को अहसास हुआ कि पाकिस्तान के खिलाफ लंबी दूरी तक स्ट्राइक करने की क्षमता नहीं है। भारतीय वायुसेना के पास राफेल और सुखोई-30 जैसे ताकतवर विमान तो थे, लेकिन वे लंबी रेंज तक मार नहीं सकते थे। जिसके बाद एसयू-57 पर फोकस किया गया। हालांकि यह पूरी तरह से फिफ्थ जनरेशन विमान नहीं है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी ताकत है हथियार ले जाने की क्षमता और लंबी रेंज।

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एसयू-57 में R-37M एयर टू एयर मिसाइल लग सकती है, जिसकी रेंज 300 किलोमीटर से ज्यादा है। यानी दुश्मन को बेहद दूर से निशाना बनाया जा सकता है। भारतीय वायुसेना सुखोई-30 अपग्रेड में भी इसी मिसाइल को शामिल करने की योजना बना रही है।

इसके अलावा एसयू-57 में किंझल (Kinzhal) हाइपरसोनिक एयर-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल भी लग सकती है। यह हाई-वैल्यू टारगेट को तेजी और सटीकता से मार गिराने की क्षमता देती है।

सूत्रों का कहना है कि एसयू-57 का इस्तेमाल स्टेल्थ के लिए नहीं, बल्कि लॉन्ग-रेंज स्ट्राइक प्लेटफॉर्म के तौर पर होगा। इसका वेपन बे और लॉन्ग रेंज क्षमता इसे डीप-स्ट्राइक मिशन के लिए मुफीद बनाती है, जो आईएएफ की असल जरूरत है।

यह वायुसेना की मौजूदा राफेल और सुखोई-30 स्क्वॉड्रन की मदद करेगा। खासतौर पर तब, जब चीन ने पाकिस्तान को अपना जे-31 स्टेल्थ फाइटर देने की पेशकश की है।

बता दें कि एसयू-57 का प्रस्ताव अलग है और इसे MRFA यानी मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट प्रोग्राम से नहीं जोड़ा गया है। MRFA के तहत भारतीय वायुसेना राफेल को प्राथमिकता दे रही है।

2026 तक एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी

रूस ने इसके अलावा भारत को भरोसा दिलाया है कि 2026 तक एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी पूरी कर दी जाएगी। 2018 में 5.5 अरब डॉलर का यह सौदा हुआ था। अभी तक तीन यूनिट मिल चुकी हैं और बाकी दो 2026 और 2027 तक आएंगी।

सूत्रों के अनुसार भारत और रूस के बीच अतिरिक्त एस-400 सिस्टम्स पर भी बातचीत चल रही है। रूस की तरफ से यह प्रस्ताव भी आया है कि ट्रायम्फ का प्रोडक्शन भारत में शुरू किया जाए।

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माना जा रहा है कि इस साल के आखिरी में होने वाली रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत के यात्रा के दौरान इन समझौतों को अमली जामा पहनाया जा सकता है।

भारत और रूस की रक्षा साझेदारी दशकों पुरानी है। टैंक से लेकर मिसाइल और एयरक्राफ्ट तक, दोनों देशों ने मिलकर कई प्रोजेक्ट पूरे किए हैं। टी-90 टैंक, सुखोई-30 फाइटर जेट, ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम और एके-203 राइफल्स इसका उदाहरण हैं। भारतीय नौसेना का एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य भी रूस से मिला है।

बता दें कि हाल ही में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई थी। दोनों नेताओं ने मुश्किल हालात में भी साथ खड़े होने का संदेश दिया था। वहीं, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी कहा था कि भारत ने पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस से संसाधन खरीदना बंद नहीं किया, जिससे रूस भारत को अपना सच्चा दोस्त मानता है।

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