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IAF squadrons: दो मोर्चों पर एक साथ हुई जंग तो 29 स्क्वॉड्रन के साथ कैसे लड़ेगी वायुसेना? जानें चीन-पाकिस्तान के पास कितने हैं फाइटर जेट?

आज की तारीख में भारतीय वायुसेना के पास स्क्वॉड्रन 1965 से भी कम है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 32 सक्रिय स्क्वॉड्रन थे। उस दौरान भारतीय वायुसेना ने लगभग 572 कॉम्बैट विमानों का इस्तेमाल किया था, जिनमें से करीब 460 एक्टिव स्क्वॉड्रनों में तैनात थे...

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📍नई दिल्ली | 22 Sep, 2025, 12:22 PM

IAF squadrons: भारतीय वायुसेना की ताकत और भविष्य की योजनाओं पर इन दिनों बड़ी बहस छिड़ी हुई है। लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि किसी संभावित दो मोर्चों की जंग यानी चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक साथ लड़ाई के लिए भारतीय वायुसेना को कम से कम 42 फाइटर स्क्वॉड्रन की जरूरत होगी। लेकिन अब वायुसेना के टॉप अफसरों और मिलिट्री स्ट्रक्चर की समीक्षा में यह साफ हो गया है कि 42 स्क्वॉड्रन भी आज की चुनौतियों और बदलती तकनीक के सामने नाकाफी हैं।

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IAF squadrons: क्या है मौजूदा स्थिति

आज की तारीख में भारतीय वायुसेना के पास स्क्वॉड्रन 1965 से भी कम है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 32 सक्रिय स्क्वॉड्रन थे। उस दौरान भारतीय वायुसेना ने लगभग 572 कॉम्बैट विमानों का इस्तेमाल किया था, जिनमें से करीब 460 एक्टिव स्क्वॉड्रनों में तैनात थे।

वहीं, 26 सितंबर 2025 को जब वायुसेना का वर्कहॉर्स MiG-21 रिटायर हो जाएगा, तब वायुसेना के पास केवल 29 स्क्वॉड्रन बचेंगे। इसका मतलब है कि कुल 464 से 522 फाइटर जेट्स ही सक्रिय रह जाएंगे। यह संख्या तय 42 स्क्वॉड्रन की तुलना में लगभग 250 फाइटर कम है।

इन 29 स्क्वॉड्रनों में 12 स्क्वॉड्रन सुखोई-30, तीन मिराज-2000, दो राफेल, दो एलसीए तेजस के स्क्वॉड्रन शामिल हैं। इसके अलावा जगुआर (SEPECAT Jaguar) विमानों के 6 सक्रिय स्क्वॉड्रन हैं। जबकि मिग-29 विमानों के 2 सक्रिय स्क्वॉड्रन हैं। जिनमें अपग्रेडेड मिग-29यूपीजी वेरिएंट हैं।

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IAF squadrons: चीन और पाकिस्तान से बढ़ता खतरा

जहां भारतीय वायुसेना अपने स्क्वॉड्रन की कमी से जूझ रही है, वहीं पड़ोसी देशों की स्थिति कहीं ज्यादा मजबूत दिखती है। चीन की वायुसेना PLAAF के पास 2000 से ज्यादा फाइटर जेट्स हैं। वहीं, पाकिस्तान के पास भी लगभग 500 फाइटर जेट्स मौजूद हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने यह भी एलान किया है कि वह 40 J-35 फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट्स शामिल करने की योजना बना रहा है।

चीन पहले ही फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट्स को ऑपरेशनल कर चुका है और अब सिक्स्थ जनरेशन जेट्स पर काम शुरू कर चुका है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स और नेवी (PLAN) के पास मुख्य रूप से दो प्रकार के फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट्स हैं। इनमें चेंगदू जे-20 (मुख्य रूप से PLAAF के लिए) और शेनयांग जे-35 (मुख्य रूप से PLAN के लिए, लेकिन PLAAF में भी J-35A वेरिएंट) हैं। ये स्टेल्थ फाइटर हैं, जो एडवांस रडार-एवॉइडिंग तकनीक, सुपरक्रूज और नेटवर्क-सेंट्रिक वारफेयर क्षमताओं से लैस हैं। इनमें चेंगदू जे-20 की संख्या 300+ और 20-30 शेनयांग जे-35 हैं। इनमें जे-35 का उत्पादन अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन 2026-2027 तक 100+ तक पहुंच सकता है।

वहीं, ऐसे हालात में भारत अभी भी अपने पहले फिफ्थ जनरेशन जेट को शामिल करने से करीब एक दशक दूर है। भारत को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए तेजस जैसे स्वदेशी विमान, राफेल, और आने वाले सालों में नए स्टेल्थ जेट्स की जरूरत भारत का लक्ष्य 2047 तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनना है, जिसमें डिजाइन, विकास और उत्पादन शामिल हैं।

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IAF squadrons: 50 से ज्यादा स्क्वॉड्रन की जरूरत

1962 के चीन युद्ध के बाद जब भारत ने अपनी हवाई ताकत की समीक्षा की थी, तो जेआरडी टाटा कमेटी ने 50 कॉम्बैट स्क्वॉड्रन की सिफारिश की थी। लेकिन आर्थिक दिक्कतों के चलते इसे घटाकर 35 कर दिया गया।

बाद में 2012 में इस संख्या को बढ़ाकर 42 स्क्वॉड्रन किया गया। उस समय यह सोचा गया था कि पाकिस्तान और चीन से दो मोर्चों पर जंग की संभावना को देखते हुए यह संख्या काफी होगी। लेकिन अब वायुसेना मानती है कि 42 भी काफी नहीं है और इसे 50 से ज्यादा स्क्वॉड्रन तक ले जाने की जरूरत है।

भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर होकर अपने फाइटर जेट्स डिजाइन, डेवलप, और मैन्युफैक्चरिंग कर सके। इसी दिशा में कई प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है। वहीं, आने वाले सालों में भारतीय वायुसेना को 83 तेजस मैक-1ए, 120 तेजस मैक-2, और 126 स्वदेशी 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ विमान एएमसीए (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) मिलने वाले हैं। इसके अलावा, तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 114 मल्टी-रोल फाइटर विमानों (MRFA) की भी खरीद की योजना है।

IAF squadrons: राफेल ही क्यों?

मल्टी-रोल फाइटर विमानों के लिए कई दावेदार हैं, लेकिन फिलहाल राफेल को ही सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं। पहला, वायुसेना पहले से ही राफेल का इस्तेमाल करती है, इसलिए स्पेयर पार्ट्स, ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक्स में ज्यादा बदलाव नहीं करना पड़ेगा। दूसरा, मेंटेनेंस की लागत कम होगी। तीसरा, नौसेना ने भी राफेल का मरीन वर्जन खरीदा है।

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IAF squadrons: स्थायी रक्षा समिति ने जताई थी चिंता

दिसंबर 2024 में संसद की स्थायी रक्षा समिति ने भी तेजी से घटती वायुसेना की ताकत पर चिंता जताई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि कुल स्ट्रैंथ 42 स्क्वॉड्रन हैं, लेकिन वायुसेना के पास केवल 31 स्क्वॉड्रन बचे हैं। यह संख्या आने वाले समय में और कम हो सकती है।

किसी भी फाइटर जेट की जनरेशन उसकी तकनीक, एवियोनिक्स, हथियारों, स्पीड और स्टील्थ क्षमता से तय होती है। नई जनरेशन का मतलब है पुराने डिजाइन से एक कदम आगे। यही वजह है कि दुनिया की एयरफोर्स लगातार अपनी स्क्वॉड्रन संख्या के साथ-साथ जेट्स की जनरेशन पर भी ध्यान देती हैं। वहीं, भारतीय वायुसेना अब धीरे-धीरे 4 और 4.5 जनरेशन से आगे बढ़कर फिफ्थ जनरेशन और भविष्य में सिक्स्थ जनरेशन की ओर देख रही है।

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