📍नई दिल्ली | 2 weeks ago
TRF Terrorist Designation: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ भारत की बात को गंभीरता से सुना जा रहा है। अमेरिका ने ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ यानी TRF को ‘विदेशी आतंकी संगठन’ (Foreign Terrorist Organization- FTO) और ‘वैश्विक आतंकवादी संस्था’ (Specially Designated Global Terrorist Entity) घोषित कर दिया है। भारत पहले ही जनवरी 2023 में गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत आतंकवादी संगठन करार दे चुका है। द रेजिस्टेंस फ्रंट को लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन माना जाता है, जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर काम करता है। इसके द्वारा की गई ज्यादातर आतंकी गतिविधियों का लक्ष्य आम नागरिक, अल्पसंख्यक, पर्यटक और सुरक्षाबल रहे हैं।
पहलगाम हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई थी, और यह भारत में 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना गया था।
TRF Terrorist Designation: क्या कहा अमेरिका ने अपने आधिकारिक बयान में
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि द रेजिस्टेंस फ्रंट को आतंकी संगठन घोषित करने का फैसला अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ का हिस्सा है। उन्होंने साफ कहा कि यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने पहलगाम हमले के दोषियों को न्याय दिलाने का वादा किया था।
बयान में कहा गया है कि “यह कदम अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा, आतंकवाद से लड़ने और पहलगाम हमले के लिए न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।”
इन नामों पर भी निगरानी
इस फैसले में लश्कर-ए-तैयबा के द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF), कश्मीर रेसिस्टेंस फ्रंट और कश्मीर रेसिस्टेंस को भी शामिल किया गया है। रूबियो के मुताबिक यह फैसला प्रशासनिक रिकॉर्ड की जांच और अटॉर्नी जनरल व ट्रेजरी सेक्रेटरी से सलाह के बाद लिया गया। इसकी जानकारी भी फेडरल रजिस्टर में प्रकाशित की जाएगी।
🚨 BREAKING: U.S. officially designates The Resistance Front (TRF) as a Foreign Terrorist Organization (FTO) and Specially Designated Global Terrorist (SDGT).
🔴 TRF is a proxy of Lashkar-e-Tayyiba (LeT)
🔴 Claimed responsibility for the Pahalgam terror attack (April 2025) that…— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) July 18, 2025
TRF Terrorist Designation: क्या है कानूनी आधार?
द रेजिस्टेंस फ्रंट को आतंकी संगठन घोषित करने की प्रक्रिया अमेरिका के इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट की धारा 219 के तहत की गई है। इसके साथ ही, एग्जीक्यूटिव ऑर्डर 13224 के तहत इसे SDGT की सूची में भी डाला गया है। इससे टीआरएफ और उससे जुड़े किसी भी अन्य नाम या इकाई की संपत्ति अमेरिका में जब्त हो सकती है, साथ ही फंडिंग भी रोक दी जाती है, और कोई भी व्यक्ति या संस्था टीआरएफ से संपर्क रखने पर कानूनी कार्रवाई के दायरे में आ सकता है। FTO और SDGT घोषणा के तहत, टीआरएफ और इसके सदस्यों की संपत्ति को जब्त किया जा सकता है, और उनकी यात्रा और वित्तीय लेन-देन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
साथ ही टीआरएफ के नेताओं के खिलाफ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो सकते हैं, और जो भी देश टीआरएफ को समर्थन देते हैं, उन पर आर्थिक दबाव बनाया जा सकता है। इससे पहले भी अमेरिका ने हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया था।
लश्कर-ए-तैयबा: पाकिस्तान का सबसे घातक प्रॉक्सी
लश्कर-ए-तैयबा की स्थापना 1986-90 के बीच अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में हुई थी। यह मरकज-उद-दावा-वल-इरशाद (Markaz-ud-Dawa-wal-Irshad (MDI) का मिलिट्री सैन्य विंग था, जिसे सोवियतों के खिलाफ तैयार किया गया था। बाद में यह संगठन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए भारत के खिलाफ एक “प्रॉक्सी टूल” बन गया।
लश्कर की हमेशा से रणनीति पाकिस्तान के बाहर हमलों पर केंद्रित रही है। इसने कभी भी पाकिस्तान के भीतर हमले नहीं किए, जिसके चलते इसे सरकार का भी खास माना जाता है। वहीं, आईएसआई के लिए यह संगठन बेहद उपयोगी साबित हुआ क्योंकि यह केवल बाहर हमले करता है, जिससे पाकिस्तान को यह कहने का मौका मिल जाता है, कि इसमें उसका हाथ नहीं है।
द रेजिस्टेंस फ्रंट: नाम बदला, मंशा नहीं
द रेजिस्टेंस फ्रंट को अक्टूबर 2019 में जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद बनाया गया था। इस अनुच्छेद के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया था। आतंकी संगठनों की साजिश थी कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में अशांति बनी रहे, जिसके चलते उस दौरान कई शैडो आतंकी संगठन भी सामने आए। TRF को लश्कर-ए-तैयबा का एक मोहरा माना जाता है, जिसे कश्मीर में आतंकवाद को “स्थानीय” रंग देने के लिए बनाया गया था। यह रणनीति पाकिस्तान की पुरानी चाल का हिस्सा है, जिसमें आतंकी संगठनों को नए नाम देकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध से बचाने और स्थानीय समर्थन हासिल करने की कोशिश की जाती है।
किसने बनाया था द रेजिस्टेंस फ्रंट
द रेजिस्टेंस फ्रंट का गठन शेख सज्जाद गुल के नेतृत्व में हुआ, जो इसका सुप्रीम कमांडर है। इसके अलावा, संगठन के अन्य प्रमुख नेता जैसे मुहम्मद अब्बास शेख (संस्थापक, अब मृत) और बासित अहमद दार (चीफ ऑपरेशन कमांडर, अब मृत) ने इसके जरिए आतंकी गतिविधियां चलानी शुरू कीं। मुहम्मद अब्बास शेख को 2021 में मुठभेड़ में मार गिराया गया। वहीं, बासित अहमद डार (अबू कामरान) मई 2024 में मारा गया। जबकि शेख सज्जाद गुल अभी भी पाकिस्तान में मौजूद है, जिस पर भारत और अमेरिका दोनों ने इनाम घोषित किया है। जबकि अहमद खालिद इस संगठन का प्रवक्ता है। भारत ने जनवरी 2023 में TRF को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आतंकी संगठन घोषित किया था, और अब अमेरिका का यह कदम इसे वैश्विक स्तर पर आतंकी संगठन के रूप में मान्यता देता है।
सज्जाद गुल: पत्रकार की हत्या से लेकर साइबर जंग तक का सफर
सज्जाद गुल पहले एक पत्रकार था। 2018 में वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की साजिश में उसका नाम सामने आया। इसके बाद वह पाकिस्तान भाग गया और वहीं से “KashmirFight” नाम का डिजिटल नेटवर्क शुरू किया, जो अब टीआरएफ का प्रचार तंत्र बन गया है। KashmirFight के जरिए भारत सरकार के खिलाफ फर्जी मानवाधिकार का नैरेटिव खड़ा किया गया। यह वेबसाइट दिसंबर 2024 में आइसलैंड से रजिस्टर्ड की गई और NameCheap जैसी कंपनी के जरिए होस्ट की गई, ताकि असली पहचान छुपी रहे। इस मंच पर कश्मीरी पंडितों और सरकारी कर्मचारियों को धमकी देने वाले पोस्ट नियमित रूप से डाले जाते थे।
टीआरएफ और सज्जाद गुल के नेटवर्क ने Mastodon, Telegram, ChirpWire और BiP जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी साइबर गतिविधियां फैलाईं। ‘KashmirFight PUBLIC’ नाम के Telegram चैनल पर TRF हमलों की जिम्मेदारी लेता है और वीडियो व फर्जी दस्तावेज साझा करता है। इसके अलावा Jhelum Media House मीडिया प्लेटफॉर्म भी इस प्रोपेगेंडा में शामिल हैं। जिनका मकसद आतंक को आजादी की लड़ाई के रूप में दिखाना है। NIA और भारतीय साइबर एजेंसियों ने इन गतिविधियों की जांच शुरू की है और सज्जाद गुल को इंटरपोल नोटिस से ट्रैक करने की कोशिश जारी है।
टीआरएफ की आतंकी यूनिट ‘Falcon Squad’
सूत्रों के मुताबिक, टीआरएफ की फॉल्कन स्क्वाड (Falcon Squad) एक विशेष टास्क फोर्स है, जिसमें पाकिस्तान की स्पेशल सर्विसेज ग्रुप (SSG) के पूर्व कमांडो तक शामिल रहे हैं। टीआरएफ और लश्कर-ए-तैयबा की प्रमोशन पॉलिसी में महिलाओं और परिवारों को “शहीदों के गौरव” से जोड़कर पेश किया जाता है। इसका उद्देश्य युवाओं को भावनात्मक रूप से प्रेरित कर कट्टरपंथ की ओर ले जाना है।
मुरीदके से बहावलपुर आया टीआरएफ
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित लश्कर के प्रमुख अड्डे मुरिदके और जैश-ए-मोहम्मद के गढ़ बहावलपुर पर जोरदार हमले किए थे। इसके बाद से पाकिस्तान में मौजूद आतंकी अड्डों में खलबली मची हुई है। अब जो इनपुट सामने आ रहे हैं, उनसे पता चलता है कि पाकिस्तान की सेना दोनों संगठनों को बहावलपुर में एक साथ ला रही रही है।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पाकिस्तान में मौजूद लश्कर-ए-तैयबा और उसका यह नया मुखौटा संगठन टीआरएफ अब अपना मुख्यालय मुरिदके से हटाकर बहावलपुर शिफ्ट कर रहे हैं। दोनों आतंकी संगठनों की इस हलचल पर भारतीय खुफिया एजेंसियां नजर बनाए हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान की सेना खुद इन संगठनों के नए मुख्यालय को एक ही जगह पर ला कर रही है, ताकि निगरानी और मदद दोनों आसानी से दी जा सकें।
टीआरएफ की आतंकी गतिविधियां
टीआरएफ ने 2019 में अपने गठन के बाद से जम्मू-कश्मीर में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया है। ये हमले नागरिकों, अल्पसंख्यकों, सुरक्षा बलों, और पर्यटकों को निशाना बनाते हैं। इसमें 22 अप्रैल 2025 को किया गया पहलगाम हमला सबसे घातक हमला था, जिसमें पहलगाम की बैसरण घाटी में 28 लोग मारे गए और 20 से अधिक घायल हुए। हमलावरों ने M4 कार्बाइन और AK-47 जैसे ऑटोमैटिक राइफल्स का इस्तेमाल किया। हमले में पर्यटकों, जिसमें एक नौसेना अधिकारी शामिल था, को निशाना बनाया गया। हमलावरों ने हिंदू पुरुषों को विशेष रूप से चुना, उनके नाम और धार्मिक पहचान की जांच की, और कुछ को कलमा पढ़ने के लिए मजबूर किया। यह हमला 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत में नागरिकों पर सबसे बड़ा हमला था।
रियासी हमला (9 जून 2024): रियासी जिले में हिंदू तीर्थयात्रियों के एक बस पर हमला किया गया, जिसमें 9 लोग मारे गए और 33 घायल हुए। यह बस शिव खोरी मंदिर से लौट रही थी। शुरुआत में TRF ने इसकी जिम्मेदारी ली, हालांकि बाद में लश्कर-ए-तैयबा से संबंध होने की बात सामने आई।
गांदरबल हमला (20 अक्टूबर 2024): सोनमर्ग के जेड-मोर्ह सुरंग निर्माण स्थल पर 7 लोग, जिसमें एक डॉक्टर और 6 मजदूर शामिल थे, मारे गए। TRF ने इस हमले को मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ जवाबी कार्रवाई बताया। हमलावरों ने एक महीने पहले इस जग की रैकी की थी।
अनंतनाग हमला (13 सितंबर 2023): कोकेरनाग में भारतीय सेना के एक कर्नल, मेजर, और डीएसपी सहित तीन लोग मारे गए। यह हमला लश्कर के एक आतंकी रियाज अहमद के मारे जाने के जवाब में था।
बांदीपोरा हमला (8 जुलाई 2020): बीजेपी नेता और उनके परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी गई। TRF ने उन्हें “राजनीतिक कठपुतली” करार दिया।
टीआरएफ ने हाल के वर्षों में गैर-स्थानीय मजदूरों, पर्यटकों, और हिंदू-सिख समुदायों को निशाना बनाना शुरू किया है। इसकी वजह बताते हैं कि वे कश्मीर में बाहरियों के “अवैध कब्जे” और “जनसांख्यिकीय बदलाव” को रोकना चाहते हैं।
पहलगाम हमले से बदली रणनीति
जानकारों का कहना है कि पहलगाम हमला टीआरएफ की रणनीति में एक बड़ा बदलाव दिखाता है। इस हमले में “फाल्कन स्क्वाड” से जुड़े पांच आतंकियों ने कैमोफ्लैग पहना हुआ था और एडवांस विपंस का इस्तेमाल किया था। हमलावरों ने हेलमेट-माउंटेड कैमरे और संचार उपकरणों का इस्तेमाल किया, और हिंदू पुरुषों को धार्मिक आधार पर निशाना बनाया। सूत्रों का कहना है कि इस हमले की अगुवाई हाशिम मूसा (उर्फ आसिफ फौजी) ने की थी, जो कथित तौर पर पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप का पूर्व कमांडो था। जबकि अन्य हमलावरों में अली भाई (पाकिस्तानी नागरिक) और दो भारतीय कश्मीरी शामिल थे। इस हमले की योजना लश्कर के वरिष्ठ कमांडर सैफुल्लाह कसूरी (उर्फ खालिद) ने बनाई थी, जो हाफिज सईद का करीबी सहयोगी है। हमलावरों के डिजिटल फुटप्रिंट लश्कर के मुजफ्फराबाद और कराची में सेफ हाउसेज तक ट्रेस किए गए।
जनरल असीम मुनीर: आतंक के खेल का मास्टरमाइंड
खुफिया सूत्रों का कहना है, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पहलगाम नरसंहार और इसके बाद के घटनाक्रमों के प्रमुख सूत्रधार हैं। उनका कहना है कि असीम मुनीर ने अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर में ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ को बढ़ावा देने के लिए टीआरएफ जैसे मुखौटा संगठनों का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस हमले की टाइमिंग इस तरह तय की जिससे पाकिस्तान में इमरान की पार्टी पीटीआी पर चल रहे असंवैधानिक दमन से ध्यान भटकाया जा सके और “फील्ड मार्शल” बन कर किसी भी तरह के दमनकारी आरोपों से बचा जा सके। सूत्रों ने बताया कि असीम मुनीर ने खुद को फील्ड मार्शल घोषित करने के लिए आतंकी खतरे का बहाना बनाना चाहते थे, और सेना के भीतर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे।
वहीं, मुनीर के नेतृत्व में, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने कश्मीर में आतंकवाद को “स्थानीय प्रतिरोध” का रंग देने की कोशिश की, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ नैरेटिव खड़ा किया जा सके। जानकार कहते हैं कि मुनीर की यह चाल न केवल क्षेत्रीय शांति को खतरे में डालती है, बल्कि यह भी बताती है कि पाकिस्तानी सेना अब एक “राज्य प्रायोजित आतंकी नेटवर्क” में तब्दील हो चुकी है। टीआरएफ जैसे मुखौटा संगठनों के जरिए वह अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचते हुए आतंकवाद को नया नाम और चेहरा देने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, अपनी व्यक्तिगत सत्ता की भूख के लिए आतंकवाद को एक रणनीतिक औजार बना चुके हैं।
टीआरएफ ने भारत पर मढ़े थे ये आरोप
वहीं, टीआरएफ ने कथित टेलीग्राम चैनल के जरिए पहलगाम हमले की जिम्मेदारी से इनकार किया और इसे भारत की खुफिया एजेंसी और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) का “ब्लैक ऑपरेशन” करार दिया। संगठन ने दावा किया कि हमले की जानकारी हमले से 10 मिनट पहले “आधिकारिक रिकॉर्ड” में दर्ज की गई थी, और पहलगाम पुलिस स्टेशन की कथित ‘ढिलाई’ को “राज्य प्रायोजित झूठे हमले” का सबूत बताया। टीआरएफ ने यह भी दावा किया कि उसने भारतीय खुफिया एजेंसियों को हैक किया और “झूठे हमलों की योजना” को उजागर करने की धमकी दी।
27 अप्रैल 2025 को, टीआरएफ ने दावा किया कि उसने भारतीय खुफिया तंत्र में घुसपैठ की है, और “ऑपरेशन त्रिनेत्र” नामक एक कथित RAW दस्तावेज को लीक करने की धमकी दी, जो कथित तौर पर TRF को बदनाम करने के लिए बनाया गया था। टीआरएफ का दावा था कि रॉ की यह रिपोर्ट 16 अप्रैल 2025 की तारीख की थी और इसका मकसद पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट को एक बड़े नागरिक और सिक्योरिटी इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले के लिए जिम्मेदार ठहराना था। इस रिपोर्ट में टीआरएफ को आईएसआई का मोहरा बताया गया था। दस्तावेज के अनुसार, ऑपरेशन त्रिनेत्र का मकसद एक ऐसे “जनसंहारक घटना” को अंजाम देना था, जिससे भारत अमेरिकी उपराष्ट्रपति सेनेटर वांस के भारत दौरे के दौरान आतंकवाद के खिलाफ अपनी वैश्विक स्थिति और नैरेटिव को मजबूत कर सके। हालांकि इन दावों की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि दरअसल ये टीआरएफ की साइबर प्रचार रणनीति का हिस्सा हैं।