📍नई दिल्ली | 3 months ago
Indian Navy Aircraft Carrier: भारतीय नौसेना की तीन एयरक्राफ्ट कैरियर को ऑपरेट करने की योजना को सरकार ने खारिज कर दिया है। इसके बजाय, नौसेना अब अपने दूसरे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC) को INS विक्रमादित्य के रिप्लेसमेंट के तौर पर डेवलप करने की तैयारी कर रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार इस योजना का समर्थन नहीं कर रही है कि नौसेना के पास एक साथ तीन एयरक्राफ्ट कैरियर हों। भारतीय नौसेना का कहना था कि अगर तीन एयरक्राफ्ट कैरियर उपलब्ध रहते हैं, तो उनमें से दो हमेशा एक्टिव रह सकते हैं, जबकि एक मरम्मत या अपग्रेड के लिए डॉक में रहे।

Indian Navy Aircraft Carrier: बदलती रणनीति और चीन की बढ़ती समुद्री शक्ति
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीन अपने न्यूक्लियर-पावर्ड एयरक्राफ्ट कैरियर प्रोग्राम को आगे बढ़ा रहा है। चीन का चौथा एयरक्राफ्ट कैरियर न्यूक्लियर एनर्जी से ऑपरेट हो सकता है, जिससे उसकी नौसैनिक ताकत और अधिक बढ़ सकती है।
भारतीय नौसेना ने पहले तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की रणनीति बनाई थी, लेकिन अब यह योजना बदली जा रही है। इससे पहले, कई नौसेना प्रमुखों ने तीन एयरक्राफ्ट कैरियर होने की बात कही थी, जिनमें पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल हरी कुमार भी शामिल थे।
हालांकि, सरकार का नजरिया इससे अलग रहा है। 2020 से ही सरकार का झुकाव पनडुब्बियों (Submarines) को प्राथमिकता देने की ओर है। पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने भी तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत पर संदेह जताया था और इन्हें “सिटिंग डक” (आसानी से निशाना बनने वाले) कहकर इनकी उपयोगिता पर सवाल उठाए थे। सरकार को लगता है कि एयरक्राफ्ट कैरियर की तुलना में पनडुब्बियां समुद्री युद्ध में ज्यादा प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं, खासकर ऐसे समय में जब चीन एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM) विकसित कर रहा है, जो बड़े जहाजों को निशाना बनाने में सक्षम हैं।
Indian Navy Aircraft Carrier: INS विक्रमादित्य का भविष्य
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल हरी कुमार ने INS विक्रांत जैसे दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण का प्रस्ताव दिया था। लेकिन उनके पहले के नौसेना प्रमुखों ने सुझाव दिया था कि नया एयरक्राफ्ट कैरियर बड़ा और अधिक क्षमता वाला होना चाहिए, ताकि ज्यादा फाइटर जेट पार्क हो सकें। उनके अनुसार, CATOBAR (Catapult Assisted Take-Off Barrier Arrested Recovery) टेक्नोलॉजी से लैस एयरक्राफ्ट कैरियर कारगर साबित हो सकता है और युद्ध में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
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नौसेना के सूत्रों के मुताबिक, INS विक्रमादित्य, जो रूसी मूल का एक एयरक्राफ्ट कैरियर है, अगले 10-12 वर्षों में रिटायर हो सकता है। ऐसे में नौसेना का मानना है कि नए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर को INS विक्रमादित्य के रिप्लेसमेंट के तौर पर देखा जाना चाहिए, न कि एक अतिरिक्त एयरक्राफ्ट कैरियर के तौर पर। चूंकि एक नए नए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC-2) को बनाने में कम से कम 10-12 साल लगते हैं, इसलिए नौसेना INS विक्रमादित्य के रिप्लेसमेंट की तैयारियां अभी से करना चाहती है।
राजनाथ सिंह ने कही थी ये बात
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मई 2024 में यह एलान किया था कि भारत जल्द ही अपने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर का निर्माण शुरू करेगा, जो INS विक्रमादित्य की जगह लेगा। हालांकि, INS विक्रांत की तरह 45,000 टन का यह विमानवाहक पोत कोचीन शिपयार्ड में निर्मित किया जाएगा और इसमें पारंपरिक इंजन (Conventional Propulsion) होगा।
Indian Navy Aircraft Carrier: भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर
भारत फिलहाल दो एयरक्राफ्ट कैरियर ऑपरेट कर रहा है। इनमें पहला INS विक्रमादित्य है, जो 2014 में भारतीय नौसेना में शामिल हुआ। यह रूस से खरीदा गया था और इसमें स्की-जंप टेकऑफ सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि INS विक्रांत 2022 में भारत में बना पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर है। इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने बनाया है और यह भी स्की-जंप टेक्नोलॉजी पर आधारित है।
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दोनों विमानवाहक पोत करीब 25-30 फिक्स्ड-विंग लड़ाकू विमानों और 10 हेलीकॉप्टरों को ऑपरेट कर सकते हैं। अगर तीसरा विमानवाहक पोत भी इसी साइज का होता है, तो इसकी क्षमता भी समान होगी।
मनोहर पर्रिकर की ये थी प्लानिंग
पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में भारत के दूसरे स्वदेशी विमानवाहक पोत (IAC-2) को 65,000 टन वजन और CATOBAR तकनीक के साथ डिजाइन करने की योजना थी। इस एय़रक्राफ्ट कैरियर को न्यूक्लियर एनर्जी से संचालित करने पर विचार किया गया था। साथ ही, योजना थी कि इस पर 54 फाइटर जेट्स पार्क किए जा सकें। इसके अलावा भविष्य में जरुरत पड़ने पर एय़रक्राफ्ट कैरियर को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) जैसी अत्याधुनिक तकनीक से लैस किया जा सके।
भारत की तीन एयरक्राफ्ट कैरियर की नीति क्यों बदली?
भारत सरकार ने नौसेना को स्पष्ट कर दिया है कि अब एय़रक्राफ्ट कैरियर के बजाय पनडुब्बियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसकी जो प्रमुख वजहें बताई गई हैं, उनके अनुसार एक एय़रक्राफ्ट कैरियर न केवल अपने आप में बहुत महंगा होता है, बल्कि उसके साथ काम करने वाले कैरीयर बैटल ग्रुप (CBG) और लड़ाकू विमानों की लागत भी बहुत अधिक होती है।
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इसके अलावा चीन ने लंबी दूरी की एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलें (ASBM) विकसित की हैं, जो विशेष रूप से अमेरिकी विमानवाहक पोतों को निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। अमेरिका के विमानवाहक पोत ज्यादा बड़े और सुरक्षित हैं, फिर भी वे खतरे में हैं। ऐसे में भारत के छोटे और कम प्रोटेक्टेड एय़रक्राफ्ट कैरियर के लिए यह एक गंभीर चुनौती हो सकती है।
सरकार ने 30 वर्षीय सबमरीन कंस्ट्रक्शन प्लान को संशोधित किया है। पहले इसमें 24 पारंपरिक पनडुब्बियों को शामिल किया जाना था, लेकिन अब इसे घटाकर 18 डीजल-इलेक्ट्रिक और 6 परमाणु ऊर्जा संचालित हमलावर पनडुब्बियों (SSN) तक सीमित कर दिया गया है। साथ ही, भारत परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) प्रोग्राम को भी आगे बढ़ा रहा है।
चीन का न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर प्रोजेक्ट
नवंबर 2024 में खबरें आई थीं कि चीन अपने परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत कार्यक्रम पर तेज़ी से काम कर रहा है। दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) के अनुसार, चीन एक प्रोटोटाइप न्यूक्लियर रिएक्टर विकसित कर रहा है, जिसे भविष्य में अपने एयरक्राफ्ट कैरियर्स में इस्तेमाल किया जा सकता है।
परमाणु-संचालित विमानवाहक पोतों की खासियत यह होती है कि वे लंबे समय तक समुद्र में तैनात रह सकते हैं और उन्हें बार-बार ईंधन भरने की जरूरत नहीं होती। इससे उनकी ऑपरेशनल रेंज भी बढ़ जाती है और वे ज्यादा हथियार और ईंधन ले जा सकते हैं। चीन 2035 तक छह एयरक्राफ्ट कैरियर्स को ऑपरेट करने की योजना बना रहा है।
चीन ने हाल ही में अपना तीसरा विमानवाहक पोत फ़ुजियान (Fujian) लॉन्च किया है, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम (EMALS) से लैस है। यह तकनीक अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर्स में उपयोग होती है, जिससे ज्यादा भारी और बड़े विमान कम रनवे पर उड़ान भर सकते हैं। फ़ुजियान का उत्तराधिकारी टाइप 004 (Type 004) कहा जा रहा है, जो परमाणु-संचालित हो सकता है।
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