📍नई दिल्ली | 15 Nov, 2025, 6:22 PM
Explainer DRDO MP-AUV: भारत की रक्षा अनुसंधान संस्था DRDO ने भारतीय नौसेना के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण तकनीक डेवलप की है। यह तकनीक समुद्र के नीचे छिपी बारूदी सुरंगों यानी माइन को तेजी से ढूंढ सकती है और उनकी पहचान कर सकती है। इसे एमपी-एयूवी, यानी मैन-पोर्टेबल ऑटोनोमस अंडरवॉटर व्हीकल कहा जाता है। आसान शब्दों में समझें तो यह एक छोटा, स्मार्ट और बेहद हल्का पानी के अंदर चलने वाला रोबोट है, जिसे एक या दो लोग आसानी से उठा सकते हैं और किसी भी जगह समुद्र में उतार सकते हैं।
Explainer DRDO MP-AUV: डीआरडीओ की लैब ने किया तैयार
इस सिस्टम को डीआरडीओ की विशाखापट्टनम स्थित लैब नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजिकल लैबोरेटरी ने बनाया है। डीआरडीओ के मुताबिक यह तकनीक भारत की नौसेना को माइन वारफेयर यानी समुद्र में बिछाई गई माइन से निपटने की क्षमता में बड़ी बढ़ोतरी देगी। समुद्री माइन जहाजों, पनडुब्बियों और बंदरगाहों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं, इसलिए उन्हें ढूंढना और पहचानना नौसेना की सबसे जरूरी जरूरतों में शामिल है।
Explainer DRDO MP-AUV: लगा है साइड-स्कैन सोनार
डीआरडीओ का यह नया एमपी-एयूवी आधुनिक तकनीकों से लैस है। इसमें साइड-स्कैन सोनार लगा है, जो पानी के भीतर समुद्र की सतह की डिटेल्ड तस्वीरें बनाता है। सोनार का काम “ध्वनि तरंगों” की मदद से आसपास की चीजों की पहचान करना होता है। इसके साथ ही इसमें अंडरवॉटर कैमरा लगा है, जो पानी के नीचे की साफ तस्वीरें भेज सकता है। इन दोनों सेंसरों की मदद से यह रोबोट उन वस्तुओं को खोज लेता है जो समुद्री माइन जैसी दिखती हैं।
डीप लर्निंग बेस्ड एआई एल्गोरिदम से लैस
लेकिन इसकी सबसे खास बात है इसमें मौजूद डीप लर्निंग आधारित एआई एल्गोरिदम। ये एल्गोरिदम यानी कंप्यूटर दिमाग रोबोट को यह समझने में सक्षम बनाते हैं कि सामने मिली वस्तु वास्तव में माइन है या नहीं। पहले यह काम नौसेना के ऑपरेटरों को खुद करना पड़ता था, जिसमें काफी समय लगता था। लेकिन अब यह सिस्टम खुद-ब-खुद सही पहचान कर लेता है, जिससे मिशन का समय काफी कम हो जाता है और मानवीय गलती की संभावना भी घट जाती है।
एक टीम की तरह काम कर सकते हैं कई एयूवी – Explainer DRDO MP-AUV
डीआरडीओ ने इस सिस्टम में अंडरवॉटर एकॉस्टिक कम्युनिकेशन यानी पानी के अंदर ध्वनि के जरिए एक-दूसरे से बात करने की क्षमता भी शामिल की है। इससे कई एयूवी एक टीम की तरह काम कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर एक रोबोट को कोई माइन जैसी वस्तु मिलती है, तो वह तुरंत बाकी रोबोट्स को सूचना भेज सकता है। इससे पूरा मिशन सुरक्षित हो जाता है।
पूरी तरह मैन-पोर्टेबल
हाल ही में इस एमपी-एयूवी के साथ किए गए ट्रायल्स डीआरडीओ के विशाखापट्टनम हार्बर में पूरे हुए, जहां सिस्टम को असली समुद्री परिस्थितियों में टेस्ट किया गया। डीआरडीओ ने बताया कि सभी महत्वपूर्ण पैरामीटर सफलतापूर्वक पूरे हुए और सिस्टम ने उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन किया।
इस रोबोट की खासियतों में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे पूरी तरह मैन-पोर्टेबल बनाया गया है। यानि यह भारी नहीं है और इसे आसानी से ले जाया जा सकता है। जबकि विदेशी सिस्टम महंगे भी हैं और आकार में बड़े भी। डीआरडीओ का यह सिस्टम इस मामले में भारत के लिए बेहद फायदेमंद होगा क्योंकि यह स्वदेशी है, हल्का है और कम लॉजिस्टिक सपोर्ट की जरूरत पड़ती
है।
डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने इस सिस्टम की तारीफ करते हुए कहा कि यह के लिए “एक बड़ा माइलस्टोन” है। उनके मुताबिक, यह सिस्टम नौसेना को कम समय में ज्यादा क्षेत्र में खोजबीन करने की क्षमता देगा और समुद्री सुरक्षा को मजबूत करेगा।
भारत की समुद्री चुनौतियां पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी हैं। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियां, भारतीय जलसीमा के पास विदेशी ड्रोन और सबमरीन की मूवमेंट, तथा बढ़ती समुद्री तस्करी, इन सब परिस्थितियों में समुद्र के नीचे छिपे खतरों को पहचानने वाला यह सिस्टम भारतीय नौसेना के लिए बहुत उपयोगी होगा।
डीआरडीओ ने बताया कि एमपी-एयूवी आने वाले महीनों में उत्पादन के लिए तैयार हो जाएगा। कई इंडस्ट्री पार्टनर्स पहले से ही इसमें शामिल हैं। इसका मतलब है कि यह तकनीक केवल लैब में नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पूरी तरह तैयार है।

