📍नई दिल्ली | 1 week ago
Nyoma Airstrip in Eastern Ladakh: भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर चीन की बराबरी करने के लिए सेना की सभी अग्रिम चौकियों तक कनेक्टिविटी देने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। इसके साथ ही पूर्वी लद्दाख में स्थित रणनीतिक एयरबेस न्योमा (Nyoma) इस साल अक्टूबर तक पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाएगा। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने न्योमा में इस कच्चे रनवे को पक्का करने का काम लगभग पूरा कर लिया है। यह रनवे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर है। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि अक्टूबर 2025 तक न्योमा एयरबेस का निर्माण पूरा हो जाए।”
Nyoma Airstrip in Eastern Ladakh: न्योमा में बन रहा फाइटर एयरबेस
पूर्वी लद्दाख के न्योमा (Nyoma) इलाके में स्थित मुद एयरबेस को अक्टूबर 2025 तक पूरी तरह से तैयार कर लिया जाएगा। यह एयरबेस वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर है और समुद्र तल से लगभग 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। न्योमा एयरबेस का निर्माण पहले से मौजूद “एडवांस लैंडिंग ग्राउंड” (Advanced Landing Ground – ALH) को अपग्रेड कर किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 218 करोड़ रुपये है। इस एयरबेस के चालू हो जाने के बाद भारतीय वायुसेना मिग-29 (MiG-29) और सुखोई-30 एमकेआई (Su-30 MKI) जैसे लड़ाकू विमान यहां से उड़ान भर सकेंगे।
उतर सकेंगे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी
इसके अलावा, सी-130जे और एएन-32 जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी यहां से नियमित रूप से सैनिकों और सामान को ले जा सकेंगे। न्योमा में हवाई अड्डे को डेवलप करने का विचार 2010 में तब सामने आया था, जब भारतीय वायुसेना ने यहां एक एएन-32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को सफलतापूर्वक लैंड किया था। लेकिन 2020 में भारत-चीन सीमा विवाद के बाद इस परियोजना पर तेजी से कााम शुरू हुआ।
लद्दाख में चौथा एयरबेस
न्योमा एयरबेस के बन जाने के बाद यह लद्दाख के डाउनहिल फ्लैट प्लेन्स (नीचे के समतल क्षेत्र) में स्थित दक्षिणी क्षेत्र का पहला वायुसेना अड्डा होगा। वहीं, न्योमा की ऊंचाई अपेक्षाकृत कम है, जिससे यह फिक्स्ड-विंग एयरक्राफ्ट के लिए ज्यादाा बेहतर है।
न्योमा एयरबेस को इस तरह से डेवलप किया जा रहा है ताकि युद्ध की स्थिति में एयरलिफ्ट (वायु मार्ग से सैनिकों और उपकरणों की आवाजाही) और हमलों में तेजी लाई सके और दुश्मन को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। इसके पूरा होते ही यह लद्दाख का चौथा वायुसेना अड्डा बन जाएगा। इससे पहले लेह एक सक्रिय एयरबेस है, जबकि कारगिल और थॉईस (Thoise), जो सियाचिन के पास है, पहले से ही फुल-फ्लेज्ड हवाई पट्टियों से लैस हैं। इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी (DBO) में एक मिट्टी का रनवे है जिसका इस्तेमाल विशेष अभियानों के लिए किया जाता है। हालांकि फुकचे (Fukche) और चुशूल (Chushul) में भी दो अन्य रनवे मौजूद हैं, जो एलएसी से मात्र 2–3 किलोमीटर की दूरी पर हैं, लेकिन युद्ध जैसे हालात में इनका इस्तेमाल संभव नहीं है।
चीन ने अपनी तरफ से 3,488 किलोमीटर लंबी विवादित सीमा पर अपने हवाई अड्डों को एडवांस बनाया है। उसने रनवे को लंबा किया। इसे देखते हुए भारत सरकार ने हाल के वर्षों में एलएसी के पास स्थित सभी एयरबेस और सैन्य ठिकानों को अपग्रेड करने पर फोकस किया है। इसमें रनवे की लंबाई बढ़ाना, पक्के हैंगर बनाना और आधुनिक सुविधाएं जोड़ना शामिल है। इसका उद्देश्य चीन के मुकाबले सैन्य तैयारियों को मजबूत करना है।
BRO का लक्ष्य, हर पोस्ट तक कनेक्टिविटी
बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने कहा, “आने वाले पांच वर्षों में भारत की सीमा पर कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं होगा, जहां हम सेना की तैनाती न कर सकें। हमारा लक्ष्य है कि हर अग्रिम चौकी (Forward Post) तक पक्की सड़कें बनाई जाएं, जहां अभी तक पैदल रास्तों से ही पहुंचा जा सकता था।” उन्होंने बताया कि खासकर ऊंचाई वाले इलाकों में में सड़कें अब भी नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में बीआरओ प्रमुख राजमार्गों का निर्माण कर रहा है, जिससे दूर-दराज की घाटियों को एक-दूसरे से जोड़ा जा सके। अब अरुणाचल प्रदेश में फ्रंटियर हाईवे (Arunachal Frontier Highway) का निर्माण भी शुरू हो चुका है।
उन्होंने कहा, “हम चीन से पीछे नहीं रहना चाहते। अगर हमें बराबरी करनी है तो लगातार काम करते रहना होगा। पहले हम सीमा से 40 किलोमीटर पीछे थे और हमें यह तक पता नहीं होता था कि चीन क्या कर रहा है। लेकिन अब हर साल हम एक कदम आगे बढ़ रहे हैं।”
डबल लेन सड़कें और नए हाईवे
लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने कहा, “बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का अगला लक्ष्य है कि जहां-जहां सड़कें बन चुकी हैं, उन्हें डबल लेन (Double Lane) किया जाए ताकि सैन्य तैनाती और रसद की सप्लाई और भी तेज और सुरक्षित हो सके। अभी तक जो सड़कें सिंगल लेन हैं, उन्हें डबल लेन में बदला जाएगा ताकि सेना की बड़ी गाड़ियां भी एक साथ आवाजाही कर सकें।”
इसके अलावा अन्य बड़ी परियोजनाओं में शिंकुन ला (Shinkun La) सुरंग भी शामिल है, जो दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित सुरंग बनाई जा रही है। यह सुरंग लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बीच पूरे साल भर संपर्क बनाए रखेगी और लद्दाख को जोड़ने वाला तीसरा वैकल्पिक मार्ग बन जाएगी।
डीबीओ तक वैकल्पिक सड़क
6,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और डेपसांग तक वैकल्पिक सड़क अगले साल के अंत तक तैयार हो जाएगी। यह 18,000 फीट ऊंचे कराकोरम दर्रे के करीब है, जो चीन के शिनजियांग प्रांत को लद्दाख से अलग करता है। डीबीओ के पश्चिम में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) बन रहा है, और कराकोरम राजमार्ग, जो गिलगित को शिनजियांग से जोड़ता है, भी इसके नजदीक है। इस वजह से डीबीओ की सामरिक अहमियत और बढ़ जाती है।
वर्तमान में डीबीओ तक पहुंचने के लिए दारबुक-श्योक-डीबीओ (डीएसडीबीओ) सड़क का इस्तेमाल होता है, जो एलएसी के समानांतर चलती है। लेकिन कई जगहों पर इस सड़क पर चीन की सीधी नजरें रहती हैं, जिससे यह रणनीतिक रूप से कम सुरक्षित है। इस समस्या को हल करने के लिए एक वैकल्पिक सड़क बनाई जा रही है, जिसका नाम है सासोमा-सासेर ला-सासेर ब्रांग्सा-गपशन-डीबीओ। यह सड़क 2026 तक तैयार हो जाएगी और जिसके बाद सियाचिन बेस कैंप से जवानों को डीबीओ तक पहुंचने में कुछ ही घंटे लगेंगे।
अभी तक डीबीओ पहुंचने के लिए सैनिकों को लगभग दो दिन का समय लगता है, क्योंकि उन्हें पहले लेह आना पड़ता है और फिर डीएसडीबीओ मार्ग से जाना पड़ता है। नई सड़क बनने से यह समय बहुत कम हो जाएगा। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा बनाई जा रही इस सड़क में नौ पुल हैं, जो अभी 40 टन तक के वाहनों को ले जा सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, इन पुलों को क्लास-70 पुलों में बदला जाएगा, ताकि टैंक जैसे भारी सैन्य वाहनों की भी आवाजाही हो सके।
सासेर ला के नीचे सुरंग की योजना
नई सड़क मार्च से नवंबर तक चालू रहेगी, लेकिन सर्दियों में भारी बर्फबारी के चलते इसे बंद करना पड़ सकता है। इस समस्या को हल करने के लिए 17,800 फीट ऊंचे सासेर ला के नीचे एक सुरंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। अगर सरकार इस प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो इस सड़क को पूरा करने में चार से पांच साल लग सकते हैं। इस सुरंग के बनने से डीबीओ तक साल भर पहुंच संभव हो जाएगी, और भारत को दो रास्तों से इस महत्वपूर्ण ठिकाने तक पहुंचने का विकल्प मिलेगा।