📍नई दिल्ली | 30 Aug, 2025, 1:44 PM
India defence indigenisation: भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार ने साफ कहा है कि HALE और MALE ड्रोन फ्यूचर बैटलफील्ड में निर्णायक साबित होंगे। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी यह साफ हो गया कि ड्रोन युद्ध की तस्वीर बदल रहे हैं और इन्हें तेजी से आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम में शामिल करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि आत्मनिर्भर भारत की नीति अब सिर्फ एक सरकारी पहल नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरत बन चुकी है। उन्होंने बताया कि मौजूदा वैश्विक हालात और लगातार बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच भारत को अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए रक्षा उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर होना ही होगा।
India defence indigenisation: भारत में मैन्युफैक्चरिंग करें विदेशी कंपनियां
एनडीटीवी के डिफेंस समिट में रक्षा सचिव राजेश कुमार ने कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले साल डिफेंस सेक्टर में लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिनमें से 81 प्रतिशत रकम देश के भीतर ही खर्च हुई। उनका कहना था कि आने वाले समय में रक्षा पूंजीगत खर्च का कम से कम 75 फीसदी हिस्सा घरेलू उद्योगों से लिया जाएगा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर भारत को विदेशी कंपनियों से किसी तकनीक या उत्पादन की आवश्यकता होगी, तो उन्हें भारत में निवेश और निर्माण करना ही होगा। यानी कोई भी विदेशी कंपनी बिना मेक इन इंडिया में भागीदारी किए बड़े ऑर्डर नहीं पा सकेगी।
Indian Navy NUH RFI: भारत ने अपनी सशस्त्र सेनाओं के लिए 276 नए हेलिकॉप्टरों की खरीद प्रक्रिया तेज की। आर्मी, एयरफोर्स, नेवी और कोस्ट गार्ड के लिए जारी हुए दो बड़े RFI। https://t.co/ke6XD4Mzez#IndianArmy #IndianAirForce #IndianNavy #CoastGuard #HelicopterProcurement #MakeInIndia…
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) August 30, 2025
रक्षा सचिव ने कहा कि यह कदम सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने हाल ही में किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें पाया गया कि रक्षा क्षेत्र में घरेलू खर्च से जीडीपी पर 2.4 गुना प्रभाव पड़ता है। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और इंडस्ट्री का विस्तार होता है।
India defence indigenisation: 2023-24 में दो लाख करोड़ रुपये के डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट साइन
उन्होंने याद दिलाया कि 25-30 साल पहले भारत के रक्षा क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों की भूमिका लगभग नगण्य थी। उस समय डीआरडीओ और सार्वजनिक उपक्रम जैसे ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्रियां ही प्रमुख थीं। लेकिन अब धीरे-धीरे प्राइवेट सेक्टर ने अपनी जगह बना ली है और कई मामलों में उनकी तकनीक अत्याधुनिक स्तर तक पहुंच चुकी है।
राजेश कुमार ने कहा कि वे सरकारी और निजी कंपनियों में कोई फर्क नहीं देखते। उनके अनुसार दोनों भारतीय कंपनियां हैं और रक्षा मंत्रालय की नजर में समान हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रालय का काम है इन्हें बराबरी का मौका देना और लगातार ऑर्डर देते रहना।। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग दो लाख करोड़ रुपये के डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट साइन किए गए, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।
India defence indigenisation: ऑपरेशन सिंदूर के बाद ड्रोन पर फोकस
उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए बताया कि इस संघर्ष ने भारत के लिए ड्रोन तकनीक की अहमियत साबित कर दी। उन्होंने माना कि इस क्षेत्र में अभी सुधार की गुंजाइश है, लेकिन भारतीय निजी कंपनियों ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया। हाल ही में हुए कई ट्रायल्स में कुछ घरेलू ड्रोन निर्माताओं को सफलता मिली है और उन्हें जल्द ही ऑर्डर मिलने की संभावना है।
रक्षा सचिव ने बताया कि भारत तीन स्तरों पर ड्रोन निर्माण को आगे बढ़ा रहा है। पहला स्तर है अमेरिका की जनरल एटॉमिक्स के साथ एमक्यू-9बी सी गार्डियन ड्रोन (HALE) का करार। दूसरा स्तर है मध्यम ऊंचाई वाले ड्रोन (MALE) जिन्हें भारत में ही डिजाइन और डेवलप किया जाएगा। तीसरा स्तर है छोटे और स्वार्म ड्रोन जिन्हें कॉम्बैट एम्युनिशन की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।
तेजस पर बोली ये बड़ी बात
उन्होंने तेजस लड़ाकू विमान परियोजना पर भी विस्तार से जानकारी दी। उनका कहना था कि यह विमान भारतीय वायुसेना के पुराने मिग-21 को बदलने के लिए तैयार किया जा रहा है। अब तक 40 से अधिक तेजस वायुसेना में शामिल हो चुके हैं, जबकि 80 और निर्माणाधीन हैं। सितंबर तक दो नए तेजस पूरी तरह हथियारों के साथ तैयार कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अब से तेजस के नए ऑर्डर तभी दिए जाएंगे, जब पुराने कॉन्ट्रैक्ट की पूरी डिलीवरी हो जाएगी।
उन्होंने डीआरडीओ और घरेलू इंडस्ट्री को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक जेट इंजन बनाने में भारत अब तक पीछे रहा है, लेकिन सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने का फैसला कर लिया है। फिलहाल फ्रांस के साथ साझेदारी में एक नई इंजन परियोजना को मंजूरी दिलाने की प्रक्रिया चल रही है, जो आने वाले वर्षों में भारतीय लड़ाकू विमानों के लिए अहम साबित होगी।
उन्होंने यह भी माना कि युद्ध जैसे हालात लंबे समय तक चल सकते हैं, इसलिए भारत को अपने युद्ध भंडार यानी वॉर वेस्टेज रिजर्व को दोगुना करने की जरूरत है। इसके लिए गोलाबारूद और मिसाइलों के उत्पादन में सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ निजी कंपनियों को भी शामिल किया जाएगा।
नौसेना को मिलेंगे 59 वॉरशिप!
जहाज निर्माण और नौसेना के विस्तार पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस समय 59 वॉरशिप भारत के विभिन्न शिपयार्ड्स में निर्माणाधीन हैं। आने वाले वर्षों में सभी नौसैनिक प्रोजेक्ट घरेलू शिपयार्ड्स में ही पूरे किए जाएंगे। निजी और सरकारी कंपनियों के बीच प्रतियोगिता को बढ़ावा देने से उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होगा।
रक्षा सचिव ने छोटे और मध्यम उद्योगों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उनके अनुसार रक्षा क्षेत्र से जुड़ी लगभग 15,000 एमएसएमई कंपनियां सक्रिय हैं और इन्हें ऑर्डर मिलने से लाखों नौकरियां पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रालय का काम इन कंपनियों को विजिबिलिटी और स्थिर ऑर्डर देना है ताकि वे लगातार विकास कर सकें।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने अनुभव पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि शुरुआती एक-दो दिन थोड़ी चिंता रही, लेकिन जल्द ही विश्वास हो गया कि भारत की सेनाएं हर स्थिति से निपटने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से लगातार संवाद होता रहा और हर सुबह स्थिति की समीक्षा की जाती थी। उनका कहना था कि भारत ने उस संघर्ष में साबित कर दिया कि अगर दुश्मन संघर्ष को आगे बढ़ाता है तो हम और आगे बढ़कर जवाब देने की क्षमता रखते हैं।