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Ladakh Protest: सज्जाद कारगिली बोले, लद्दाख के लोगों को ‘देश विरोधी’ बताकर दबाना गलत, लेह एपेक्स बॉडी का केंद्र से बातचीत से इंकार

सज्जाद कारगिली ने याद दिलाया कि लद्दाख का आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण रहा है। चाहे दिल्ली बॉर्डर पर गिरफ्तारी हो या माइनस डिग्री में लेह की सड़कों पर प्रदर्शन, जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांग रखी है। लेकिन हर बार सरकार ने तब ही बातचीत की है जब आंदोलन ने जोर पकड़ा...

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📍नई दिल्ली | 29 Sep, 2025, 10:04 PM

Ladakh Protest: लद्दाख की राजनीति और आंदोलन इस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में है। कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस और लेह एपेक्स बॉडी ने संयुक्त रूप से आंदोलन का नेतृत्व करते हुए केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि लद्दाख की जनता की संवैधानिक मांगों को नजरअंदाज कर सरकार उन्हें “अलग-थलग” करने की कोशिश कर रही है। वहीं, उत्तराखंड की जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने कहा कि 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया है। यह बंद पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके साथियों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग को लेकर किया जा रहा है।

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24 सितंबर को लेह में हुए प्रदर्शन पर गोलीबारी, चार नागरिकों की मौत और 80 से अधिक लोगों के घायल होने के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। इसी के साथ प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया।

दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के वरिष्ठ नेता सज्जाद कारगिली ने कहा कि सोनम वांगचुक और अन्य युवाओं की तुरंत और बिना शर्त रिहाई होनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार और लद्दाख की यूनियन टेरिटरी एडमिनिस्ट्रेशन ने हालात को संभालने में पूरी तरह असफल साबित हुए हैं।

कारगिली ने कहा, “जो गोलीबारी हुई, जिन लोगों की जान गई और जो घायल हुए, उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। यह घटना इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि लद्दाख में लोकतंत्र क्यों जरूरी है।” उन्होंने सवाल उठाया कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में कहते हैं कि लोकतंत्र भारतीय डीएनए में है, तो लद्दाखियों को यह लोकतांत्रिक अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा।

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कारगिली ने स्वीकार किया कि सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने लद्दाख के मुद्दों को पूरे देश में सामने ला दिया है। उन्होंने कहा, “बहुत कम लोग लद्दाख के संघर्ष को जानते थे। लेकिन अब वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद यह आंदोलन हर घर में चर्चा का विषय बन गया है।” उन्होंने यह भी कहा कि अब यह विरोध सिर्फ लद्दाख तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग आवाज उठाएंगे।

लेह एपेक्स बॉडी का केंद्र से बातचीत से इंकार

लेह एपेक्स बॉडी ने साफ कहा है कि जब तक शांति बहाल नहीं होती और न्यायिक जांच की घोषणा नहीं होती, वे केंद्र सरकार से बातचीत में हिस्सा नहीं लेंगे। लेह एपेक्स बॉडी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग ने कहा, “लद्दाखियों को ‘देश विरोधी’ बताना और पाकिस्तान से जोड़ना बेहद शर्मनाक है। हम तब तक बातचीत नहीं करेंगे जब तक केंद्र माफी नहीं मांगता और गोलीबारी की न्यायिक जांच का आदेश नहीं देता।”

सज्जाद कारगिली ने कहा कि लद्दाख बेहद संवेदनशील इलाका है। एक ओर चीन के साथ एलएसी है और दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ एलओसी। ऐसे में लद्दाख की जनता को लोकतंत्र से वंचित करना खतरनाक है। उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत के अन्य राज्यों में संघीय ढांचा लागू है, उसी तरह लद्दाख में भी लोकतंत्र की बुनियाद रखी जानी चाहिए।

सज्जाद कारगिली ने याद दिलाया कि लद्दाख का आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण रहा है। चाहे दिल्ली बॉर्डर पर गिरफ्तारी हो या माइनस डिग्री में लेह की सड़कों पर प्रदर्शन, जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांग रखी है। लेकिन हर बार सरकार ने तब ही बातचीत की है जब आंदोलन ने जोर पकड़ा।

उन्होंने कहा, “हमारी चुप्पी में कभी कोई अधिकारी हाल पूछने नहीं आता। जब हम आवाज उठाते हैं और लोग सड़कों पर उतरते हैं, तभी बैठकें तय होती हैं। यह दर्शाता है कि सरकार जनता के दबाव में ही बात करती है।”

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24 सितंबर को हुई हिंसा पर सवाल उठाते हुए कारगिली ने कहा कि प्रशासन के पास पहले से जानकारी थी कि हालात बिगड़ सकते हैं, लेकिन कोई तैयारी नहीं की गई। न तो बैरिकेडिंग की गई, न ही वाटर कैनन लगाए गए। सीधे गोलीबारी क्यों की गई?

कारगिली ने इसे 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने से जोड़ा। उन्होंने कहा, “जब कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब सरकार ने पूरा इलाका सील कर दिया था। अगर लद्दाख में भी जानकारी थी, तो पहले से एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए गए?”

उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद लद्दाख के लोग पहले से ज्यादा आहत महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें हमेशा देश की रक्षा के लिए सीमा पर खड़ा किया गया, कारगिल युद्ध हो या गलवान घाटी का संघर्ष, लद्दाखियों ने अपनी शहादत दी। लेकिन अब उन्हें “देश विरोधी” बताना गलत है।

सज्जाद कारगिली ने देश के सामने चार मुख्य मांगें रखी हैं। इनमें पहली मांग है – लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए। उनका कहना है कि केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख की जनता को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। यहां नौकरशाह केंद्र सरकार से नियुक्त होते हैं और लोगों की आवाज को दरकिनार किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि लद्दाख की दूसरी बड़ी मांग है छठी अनुसूची में शामिल किया जाना। यह मांग 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के लेह हिल काउंसिल चुनाव में भाजपा ने भी वादा किया था। सज्जाद कारगिली ने कहा कि 90 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है और जलवायु परिवर्तन के खतरों से यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। छठी अनुसूची से ही यहां की सांस्कृतिक पहचान, जमीन और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।

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तीसरी मांग को लेकर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लद्दाख के युवाओं के लिए सबसे अहम मुद्दा रोजगार है। पिछले छह साल में लद्दाख को न तो पब्लिक सर्विस कमीशन मिला, न ही किसी भी तरह की भर्ती हुई। प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में एक भी स्थानीय युवक की भर्ती न होना बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी से युवाओं में आक्रोश और निराशा बढ़ रही है।

चौथी मांग रखते हुए सज्जाद कारगिली ने कहा कि लद्दाख देश का सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है। सज्जाद कारगिली ने बताया कि यह इलाका जम्मू-कश्मीर से भी तीन गुना बड़ा है। इसलिए लेह और कारगिल को अलग-अलग प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। उनका कहना है कि एक सांसद पूरे क्षेत्र की सही तरह से देखभाल नहीं कर सकता।

सज्जाद कारगिली ने कहा कि पिछले तीन साल से लद्दाख की जनता सर्दियों की बर्फीली रातों से लेकर दिल्ली की गर्म सड़कों तक शांतिपूर्ण विरोध कर रही है। लद्दाख का आंदोलन पूरी तरह अहिंसक और लोकतांत्रिक रहा है। लेह, जम्मू, दिल्ली और अन्य जगहों पर प्रदर्शन हुए। यहां तक कि माइनस डिग्री तापमान में भी लोग अपने अधिकारों की मांग के लिए जुटे रहे।

सज्जाद कारगिली ने लद्दाख के इकोसिस्टम पर भी बात की। उन्होंने कहा कि लद्दाख का मुद्दा केवल लोकतंत्र का नहीं, बल्कि जलवायु संकट से भी जुड़ा हुआ है। 2025 की मानसून आपदाओं में उत्तरकाशी, मंडी, जोशीमठ, लद्दाख और सिक्किम जैसे इलाकों में भूस्खलन और बाढ़ की तबाही हुई। यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि लापरवाह विकास मॉडल और जंगलों की कटाई का नतीजा है। उन्होंने कहा कि चारधाम रोड प्रोजेक्ट जैसी योजनाओं ने पहाड़ों की नाजुक संरचना को और कमजोर किया है। पर्यावरणीय सुरक्षा जैसे कानूनों को कमजोर करने से हिमालयी क्षेत्र पर आपदा का खतरा बढ़ गया है।

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