📍नई दिल्ली | 25 Sep, 2025, 3:23 PM
97 LCA Mk1A Deal: रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ 97 एलसीए एमके1ए (LCA Mk1A) विमान की खरीद के लिए 62,370 करोड़ रुपये के कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत किए हैं। इन विमानों में 68 लड़ाकू और 29 ट्विन-सीटर शामिल हैं।
इस डील के मुताबिक इन विमानों की डिलीवरी 2027-28 से शुरू होगी और अगले छह सालों में पूरी की जाएगी। इस बीच एचएएल अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर भी काम करेगा, ताकि वायुसेना की ज़रूरतें समय पर पूरी हो सकें।
नए कॉन्ट्रैक्ट के तहत एचएएल को यह सुनिश्चित करना होगा कि विमानों में 64 फीसदी से ज्यादा स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया जाए। इसके लिए 67 अतिरिक्त स्वदेशी आइटम जोड़े गए हैं, जो पहले जनवरी 2021 में हुए कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा नहीं थे।
तेजस एमके1ए अपने पुराने वैरिएंट के मुकाबले में काफी एडवांस है। इसमें उत्तम एईएसए (Active Electronically Scanned Array) रडार भी लगाया जाएगा। इसके साथ स्वयम् रक्षा कवच (Swayam Raksha Kavach) और कंट्रोल सरफेस एक्ट्यूएटर्स जैसी स्वदेशी सिस्टम भी इसमें लगाए जाएंगे।
उत्तम एईएसए रडार दुश्मन के विमानों और मिसाइलों को दूर से ही ट्रैक करने में सक्षम है और मल्टी-टारगेट एंगेजमेंट की सुविधा देता है। गैलियम आर्सेनाइड बेस्ड यह रडार 150 किलोमीटर से दूर से ही ट्रैक कर सकता है और 50 से अधिक टारगेट्स को 100 किलोमीटर से अधिक दूरी पर ट्रैक कर सकता है। वहीं एलसीए एमके2 में एडवांस गैलियम नाइट्राइड रडार लगाया जाएगा, जो 180-200 किलोमीटर की रेंज तक ट्रैक कर सकताा है।
वहीं, स्वयम् रक्षा कवच मिसाइल अप्रोच वार्निंग सिस्टम और काउंटरमेजर्स से लैस है, जो विमान को दुश्मन की मिसाइल से बचाने में मदद करता है।
🚨 Big Boost to IAF!
The Ministry of Defence has inked a mega deal worth ₹62,370 Cr with HAL for 97 LCA Mk1A jets – 68 fighters + 29 twin-seaters. ✈️🇮🇳
Deliveries begin 2027-28 & will be completed in 6 years.
✅ 64% indigenous content
✅ Equipped with UTTAM AESA Radar, Swayam… pic.twitter.com/hcfK7tBzBG— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) September 25, 2025
इस प्रोजेक्ट में करीब 105 भारतीय कंपनियां शामिल होंगी, जो विभिन्न कंपोनेंट्स और इक्विपमेंट्स बनाएंगी। इस वजह से अगले छह साल तक हर साल लगभग 11,750 सीधी और अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी। यह भारतीय एयरोस्पेस सेक्टर को नई ऊर्जा देगा और निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी रक्षा निर्माण में बड़ा योगदान करने का अवसर मिलेगा।
वहीं यह कॉन्ट्रैक्ट रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 की ‘बॉय (India-IDDM)’ कैटेगरी के अंतर्गत किया गया है। इस श्रेणी का उद्देश्य है कि रक्षा जरूरतों के लिए अधिक से अधिक स्वदेशी उत्पाद तैयार किए जाएं। आईडीडीएम (Indigenously Designed, Developed and Manufactured) कैटेगरी में आने वाले उत्पाद पूरी तरह भारत में डिजाइन और विकसित होते हैं।
यह डील इसलिए भी अहम है क्योंकि 26 सितंबर के बाद जब मिग-21 रिटायर हो जाएंगे तो भारतीय वायुसेना के पास केवल 29 स्क्वाड्रन ही रह जाएंगे। वहीं पाकिस्तान के पास वर्तमान में लगभग 25 लड़ाकू स्क्वॉड्रन हैं और वह चीन से 40 जे-35ए पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान हासिल करने की तैयारी कर रहा है। चीन पहले से ही भारत से कई गुना अधिक फाइटर जेट, बॉम्बर और फोर्स-मल्टीप्लायर ऑपरेट कर रहा है। ऐसे में भारतीय वायुसेना के लिए नए लड़ाकू विमानों की जरूरत और भी अहम हो जाती है।
मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने यह साफ कर दिया कि भारतीय वायुसेना को नई तकनीकों और बड़ी संख्या में लड़ाकू विमानों की जरूरत है। उस दौरान पाकिस्तान ने चीन के बने जे-10 विमानों का इस्तेमाल किया था, जो पीएल-15 जैसे 200 किलोमीटर रेंज वाले बियॉन्ड विजुअल रेंज (BVR) एयर-टू-एयर मिसाइल से लैस थे। वायुसेना की इंटरनल रिव्यू रिपोर्ट में कहा गया है कि दो फ्रंच मोर्चों को देखते हुए भारत को 50 से ज्यादा अधिक स्क्वॉड्रन और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस विमानों की तुरंत जरूरत है।
वहीं, वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए एलसीए तेजस का डेवलपमेंट और प्रोडक्शन बेहद धीमी रफ्तार से चल रहा है। 2021 में 83 तेजस एमके1ए विमानों के लिए 46,898 करोड़ रुपये की डील हुई थी। लेकिन अभी तक भारतीय वायुसेना को पहला विमान भी नहीं मिला। हालांकि, एचएएल का दावा है कि अक्टूबर 2025 में शुरुआती दो विमान वायुसेना की डिलीवरी कर देगा।
इसमें अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक की बड़ी भूमिका है, जिसने अगस्त 2021 में 5,375 करोड़ रुपये की सौदे के तहत 99 जीई-एफ404 टर्बोफैन इंजन देने का करार किया था। अब तक तीन इंजन भारत पहुंच चुके हैं और साल के अंत तक सात और आने की उम्मीद है। आने वाले सालों में हर साल 20 इंजन दिए जाएंगे। नए 97 विमानों के लिए एएचएल को 113 और इंजन खरीदने होंगे, जिसकी लागत करीब 1 अरब डॉलर होगी।
एचएएल ने भरोसा दिलाया है कि वह धीरे-धीरे उत्पादन दर को बढ़ाकर हर साल 20 विमान बनाएगा और फिर इसे 24 से 30 विमानों तक ले जाएगा। इसके लिए नासिक में तीसरी प्रोडक्शन लाइन शुरू की जा चुकी है, जो बेंगलुरु की दो मौजूदा लाइनों के साथ मिलकर काम करेगी। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कंपनियों की सप्लाई चेन भी एचएएल को मदद करेगी।
वहीं, भारतीय वायुसेना इन विमानों को डिलीवरी तभी करेगी जब एस्ट्रा वीवीआर मिसाइल, शॉर्ट-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल और लेजर-गाइडेड बम जैसे हथियारों के फायरिंग ट्रायल सफलतापूर्वक पूरे हो जाएंगे। इसके अलावा इजरायली एल्टा ELM-2052 रडार और फायर कंट्रोल सिस्टम का इंटीग्रेशन भी पूरी तरह से सर्टिफाइड होना जरूरी है।