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Drone Security: सेनाओं को सप्लाई हो रहे ड्रोनों में चीनी पुर्जों का पता लगाना मुश्किल! तस्करी से भारत लाए जा रहे पार्ट्स, सुरक्षा को बड़ा खतरा!

इन कंपोनेंट्स में से कई के बारे में संदेह जताया जा रहा है कि वे चीन से आए हैं। इनमें से कई कंपोनेंट्स स्मगलिंग के जरिए भारत लाए जाते हैं, ऐसा सप्लाई चेन को छिपाने के लिए किया जाता है...

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📍नई दिल्ली | 1 Sep, 2025, 8:13 PM

Drone Security: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेनाओं का फोकस ड्रोन टेक्नोलॉजी पर है। ड्रोन को लेकर सेनाओं में नई फॉर्मेशन की जा रही हैं। वहीं ड्रोन में इस्तेमाल होने वाले कंपोनेंट्स को लेकर भी सेना में लगातार सवाल उठते रहे हैं। सरकार ने कुछ समय पहले एक एडवाइजरी भी जारी करके ड्रोन बनाने वाली कंपनियों से कहा था कि वे अपने ड्रोनों में चीनी पार्ट्स का इस्तेमाल न करें। इसके लिए सरकार एक पॉलिसी भी लाने की तैयारी कर रही है, जिसे जल्द मंजूरी मिलने की संभावना है। वहीं, सेना, नौसेना और वायुसेना के अफसरों ने सरकार से कहा है कि भारतीय ड्रोनों में इस्तेमाल होने वाले कई कंपोनेंट्स कहां से आ रहे हैं, यह पता लगाना मुश्किल है।

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Drone Security: कंपोनेंट्स की स्मगलिंग

सूत्रों ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि ड्रोन में इस्तेमाल होने वाले जरूरी कंपोनेंट्स कहां बन रहे हैं और कहां से आ रहे हैं, यह पता लगाना मुश्किल है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक स्पीड कंट्रोलर, फ्लाइट कंट्रोलर, ट्रांसमीटर, रिसीवर, एन्क्रिप्शन और ऑथेंटिकेशन सिस्टम शामिल हैं। इन कंपोनेंट्स में से कई के बारे में संदेह जताया जा रहा है कि वे चीन से आए हैं। इनमें से कई कंपोनेंट्स स्मगलिंग के जरिए भारत लाए जाते हैं, ऐसा सप्लाई चेन को छिपाने के लिए किया जाता है। ये कई देशों से भारत लाए जाते हैं, जिससे यह पता नहीं चलता कि इन्हें कहां और किस देश में बनाया गया है। वहीं ये कंपोनेंट्स भारत में बन रहे कई ड्रोनों में भी इस्तेमाल हो रहे हैं। अब ये चीन में बने हैं या किसी और देश के, ये पता लगाना मुश्किल है।

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Drone Security: भारतीय सेना में DJI ड्रोन

आज भी सेना में चीनी कंपनी डीजेआई के ड्रोन जमकर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ये ड्रोन न केवल राजधानी बल्कि चीनी सरहद एलएसी से सटे रणनीतिक इलाकों में भी खूब इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सेना के वरिष्ठ अफसरों से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह ड्रोन पहले खरीदे गए थे, फिलहाल कोई भी ड्रोन चीन से नहीं खरीदा गया है। वहीं पुराने ड्रोनों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा। लेकिन तब तक ये ड्रोन भारतीय सेना के लिए बड़ा खतरा बने रहेंगे।

Drone Security: चीन का साइबर सुरक्षा कानून बड़ा खतरा

सूत्रों का कहना है कि चीन का 2015 का साइबर सुरक्षा कानून एक बड़ा खतरा है। इस कानून के तहत हर चीनी कंपनी को अपने प्रोडक्ट्स से जुड़ा डेटा सरकार के साथ साझा करना जरूरी है, चाहे वह डेटा चीन के अंदर से आया हो या दुनिया के किसी और हिस्से से। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, इसका मतलब है कि अगर भारतीय सेनाओं के ड्रोन सिस्टम में चीनी सब-सिस्टम लगा है, तो उसकी मदद से लाइव या रिकॉर्डेड डेटा चीन तक पहुंच सकता है। यह डेटा दुश्मन देशों के सर्वर तक जा सकता है और भारत की सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।

Drone Security: विदेशी सैटेलाइट का इस्तेमाल

भारतीय सेनाओं के लिए दूसरी बड़ी समस्या है ड्रोन ऑपरेशन में विदेशी सैटेलाइट नेटवर्क का इस्तेमाल। अभी भारतीय सेना के कई ड्रोन स्टारलिंक या चीन के कियानफान जैसे विदेशी सैटेलाइट पर निर्भर हैं। भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NavIC अभी पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है। इसके चलते भारत को विदेशी जीपीएस पर भरोसा करना पड़ रहा है। बता दें कि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को जीपीएस डेटा देने से मना कर दिया था।

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Drone Security: नौसेना भी विदेशी कंपनियों पर निर्भर

सूत्रों के मुतााबिक भारतीय नौसेना के बेड़े में मौजूद कई रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट (RPA) भी विदेशी कंपनियों पर निर्भर हैं। वहीं नौसेना को समुद्री नक्शे (mapping) के लिए उन्हें विदेशी ऑरिजनल इक्विपमेंट्स मैन्युफैक्चर्रर्स के पर भरोसा रहना पड़ता है, जो ऑपरेशनल इंडीपेंडेंस के लिहाज से सही नहीं है। इसके अलावा, नौसेना के ड्रोन ऐसे सॉफ्टवेयर्स पर चलते हैं जिन्हें समय-समय पर अपडेट की जरूरत होती है। ये अपडेट विदेशी कंपनियों से भेजे जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि अपडेट्स में लंबा वक्त लगता है और उस दौरान सिस्टम के हैक होने का डेटा चोरी होने का बड़ा खतरा होता है। इसके अलावा नौसेना भी विदेशी सैटेलाइट सर्विस प्रोवाइडर्स पर भी निर्भर है, जिससे ऑपरेशनल डेटा के लीक होने का खतरा हमेशा बना रहता है।

एक साल से अटकी है पॉलिसी!

सूत्रों के मुताबिक, भारत सरकार जल्द ही सेना में इस्तेमाल होने वाले ड्रोनों के लिए सिक्योरिटी फ्रेमवर्क पॉलिसी लाने की तैयारी कर रही है। आर्मी डिजाइन ब्यूरो की तरफ से इसका प्रपोजल सरकार को पहले ही सौंपा जा चुका है। सितंबर या अक्टूबर तक इस पॉलिसी को मंजूरी मिल जाएगी। लेकिन तब तक भारतीय सेनाओं को ऐसे सिस्टम्स पर काम करना पड़ रहा है, जिनमें न केवल संदिग्ध विदेशी तकनीक शामिल है, बल्कि डेटा लीक और हैकिंग का खतरा भी लगातार बना हुआ है।

भारतीय बाजार में उपलब्ध ज्यादातर ड्रोन और क्वाडकॉप्टर या तो पूरी तरह चीनी हैं या फिर उनमें चीनी कंपोनेंट्स का इस्तेमाल किया गया है। जिसके चलते सेना ने ड्रोन खरीद से जुड़ी नई नीति लागू की है। पहले केवल इतना सर्टिफिकेट देना काफी होता था कि ड्रोन में कोई चीनी कंपोनेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। लेकिन अब इसके साथ एक और जरूरी शर्त जोड़ दी गई है।

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कंपनियों को यह भी सर्टिफिकेट देना होगा कि ड्रोन में कोई “मिलिशियस कोड” यानी ऐसा सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम मौजूद नहीं है, जो सिस्टम को हैक कर सके या नेटवर्क को नुकसान पहुंचा सके। जांच के दौरान जिन ड्रोनों में चीनी पार्ट्स पाए जाते हैं, उन्हें तुरंत रेस से बाहर कर दिया जाता है और संबंधित कंपनियों के कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिए जाते हैं। इसी के चलते पिछले साल एक कंपनी का बड़ा कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया था। सेना ने इस कंपनी से तीन अलग-अलग तरह के लॉजिस्टिक ड्रोनों की खरीद का ऑर्डर दिया था। लेकिन जांच में गड़बड़ी सामने आने के बाद सौदा रोक दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन ड्रोनों की डिलीवरी कैंसिल की गई, उनकी संख्या लगभग 400 के आसपास थी।

साथ ही, रक्षा मंत्रालय में इस सुझाव पर भी चर्चा हो रही है कि यूएवी और काउंटर-यूएवी के अहम पुर्जों को “पॉजिटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट” में जोड़ा जाए। इसका मतलब यह होगा कि तय समय सीमा के बाद इन पुर्जों का आयात पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा और इन्हें सिर्फ भारत में ही बनाया जाएगा। साथ ही मार्च 2019 में जारी की गई “डिफेंस प्लेटफॉर्म्स में इस्तेमाल होने वाले कंपोनेंट्स और स्पेयर्स की इंडिजेनाइजेशन पॉलिसी” की दोबारा समीक्षा करने की बात भी कही गई है। इसके तहत भारतीय कंपनियों द्वारा बनाए गए पुर्जों का मुफ्त और बिना किसी शर्त के टेस्टिंग की जा सकेगी।

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