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Supreme Court Discipline Case: सुप्रीम कोर्ट बोला- सेना में अनुशासन पहले, खारिज की मंदिर में न जाने वाले अफसर की याचिका, जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने साफ कहा कि सेना जैसी संस्था की नींव अनुशासन पर आधारित है और यहां कमांडिंग ऑफिसर्स को अपनी यूनिट के सामने उदाहरण प्पेश करना होता है...

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📍नई दिल्ली | 25 Nov, 2025, 4:24 PM

Supreme Court Discipline Case: भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय सेना से बर्खास्त किए गए एक क्रिश्चियन अधिकारी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि सेना में अनुशासन, एकजुटता और सामूहिक मनोबल सर्वोपरि होते हैं, और इन्हें किसी व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता के नाम पर नहीं बदला जा सकता। यह फैसला लेफ्टिनेंट कर्नल सैमुअल कामलेसन की उस याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने अपने टर्मिनेशन को चुनौती दी थी।

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टर्मिनेट किए गए अफसर ने याचिका में कहा था कि उन्हें अपने रेजिमेंट के मंदिर के गर्भगृह में जाकर पूजा करने में आपत्ति थी, क्योंकि यह उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ है। वे पंजाब स्थित ममून कैंट में अपनी यूनिट में तैनात थे।

सुप्रीम के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने साफ कहा कि सेना जैसी संस्था की नींव अनुशासन पर आधारित है और यहां कमांडिंग ऑफिसर्स को अपनी यूनिट के सामने उदाहरण प्पेश करना होता है।

Supreme Court Discipline Case: व्यवहार “गंभीर अनुशासनहीनता”

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने बहुत स्पष्ट टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि एक सेना अधिकारी द्वारा इस तरह का व्यवहार “गंभीर अनुशासनहीनता” है और ऐसा अधिकारी को शुरू में ही बाहर कर देना चाहिए था। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर केवल मंदिर में प्रवेश करने की बात है तो इसमें किसी धार्मिक पूजा का सवाल नहीं उठता।

उन्होंने सवाल पूछा कि जब गुरुद्वारा में कोई विशेष पूजन अनुष्ठान नहीं होता, तब अधिकारी ने वहां जाने से भी इनकार क्यों किया। कोर्ट ने यह भी बताया कि अधिकारी को चर्च के पादरी ने स्पष्ट रूप से सलाह दी थी कि “सर्वधर्म स्थल” में प्रवेश उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ नहीं है, लेकिन फिर भी उन्होंने आदेश नहीं माना।

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जस्टिस बागची ने भी कहा कि एक अधिकारी “अपनी निजी धार्मिक व्याख्या” सेना के अनुशासन से ऊपर नहीं रख सकता। उन्होंने कहा कि वर्दी में रहते हुए ऐसे निजी मत स्वीकार नहीं किए जा सकते।

Supreme Court Discipline Case: “मेरा धर्म मेरी ड्यूटी में आड़े नहीं आता”

अधिकारी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उनके मुवक्किल ने कभी किसी त्यौहार की सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने से इंकार नहीं किया। वे दीपावली, लोहड़ी, होली जैसी उत्सव गतिविधियों में हमेशा शामिल रहे। उनकी समस्या केवल पूजा-पाठ जैसी धार्मिक प्रक्रियाओं से थी।

उन्होंने कहा कि अधिकारी का छह साल का सेवा रिकॉर्ड बेदाग था और उन्हें बिना उचित प्रक्रिया के कड़ी सजा दे दी गई। वकील ने कहा कि “संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है, और किसी को पूजा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।”

चीफ जस्टिस ने इस पर कहा कि इस फैसले एक मजबूत संदेश जाएगा, कि सेना में अनुशासन से समझौता नहीं किया जा सकता।

Supreme Court Discipline Case: बहुसंख्यक की आस्था का सम्मान भी जरूरी: कोर्ट

कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारी को अपने अधीन जवानों की सामूहिक भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए था। जस्टिस बागची ने कहा कि अनुच्छेद 25 में “आवश्यक धार्मिक अभ्यास” की बात है, न कि प्रत्येक व्यक्तिगत धार्मिक भावना की। एक कमांडिंग अधिकारी के रूप में उनसे यह भी अपेक्षा थी कि वे अपनी यूनिट की एकता और मनोबल बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

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अंत में बेंच ने कहा कि यह मामला सेना के अनुशासन से जुड़ा है, और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सेना के नियमों के अधीन होता है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी का व्यवहार उनकी कमान में मौजूद सैनिकों के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव डालता। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और सेना के फैसले को बरकरार रखा।

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