📍द्रास, कारगिल | 21 hours ago
Sando Top in Drass: हाई एल्टीट्यूड इलाके द्रास में जहां सांस लेना भी चुनौती है, वहां सैंडो टॉप जैसी सैन्य चौकी पर जवान 24 घंटे तैनात रहते हैं। यह ऐसी जगह है जहां दुश्मन की नजर सीधे इस टॉप पर हमेशा बनी रहती है। 14200 फीट की ऊंचाई पर स्थित सैंडो टॉप, टाइगर हिल के बिल्कुल नजदीक है। टाइगर हिल लद्दाख की लाइफलाइन यानी श्रीनगर-लेह राजमार्ग (नेशनल हाइवे-1) की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाती है। यह वही जगह है, जहां 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस से तिरंगा फहराया था। कारगिल विजय दिवल 2025 के दौरान रक्षा समाचार को सैंडो टॉप तक जाने का मौका मिला।
Sando Top in Drass: सैंडो टॉप की ऊंचाई 14 हजार फीट
द्रास से सैंडो टॉप पहुंचना आसान नहीं है। द्रास लगभग 10,800 फीट की ऊंचाई पर है, जबकि सैंडो टॉप की ऊंचाई 14 हजार फीट से ज्यादा है। सैंडो टॉप तक पहुंचने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं उपलब्ध है। सैंडो टॉप द्रास सेक्टर का हिस्सा है, और यह इलाका सेना की कड़ी निगरानी में आता है। सैंडो टॉप तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बनाने का काम जारी है। लेकिन कई जगह रास्ता उबड़-खाबड़ है। लेकिन पूरा रास्ता चढ़ाई वाला है। हमें बताया गया कि सर्दियों में यह रास्ता पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है और द्रास से बिल्कुल कट जाता है। लगभग एक घंटे का सफर तय करके हम सैंडो टॉप पहुंचे।
माइनस 40 डिग्री तक पहुंच जाता है तापमान
सैंडो टॉप पर पहुंचते ही ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी। यहां पहुंचते ही सबसे पहले सामना तेज चलती हवा से हुआ। यहां मौसम पल भर में बदल जाता है। थोड़ा चलते ही सांस फूलने लगती है। अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे इन मुश्किल हालात में हमारी सेना के जवान यहां तैनात रहते हैं। यहां से पूरा द्रास नजर आता है। यहां से श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-1) पूरी तरह से नजर आता है, जो लद्दाख की लाइफलाइन भी है। इसी लाइफलाइन को काटने के लिए पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की चोटियों को पर कब्जा किया था। सर्दियों में यहा तापमान माइनस 40 डिग्री तक पहुंच जाता है और 15 फीट तक बर्फ जम जाती है। आगे की चौकियां (फॉरवर्ड पोस्ट) 7-8 महीनों के लिए पूरी तरह कटऑफ हो जाती हैं। इन चौकियों के लिए जरूरी सामान राशन, ईंधन और दवाइयों जैसी जरूरी चीजों को पहले ही जमा कर लिया जाता है, ताकि सैनिकों को कोई कमी न हो।
“ये दिल मांगे मोर”
सैंडो टॉप से 17000 फीट ऊंची टाइगर हिल बिल्कुल सामने दिखाई देती है। हालांकि द्रास से भी टाइगर हिल दिखती है, लेकिन कई पहाड़ियों के बीच उसे पहचान पाना मुश्किल होता है। हालाकिं लामोचेन व्यू प्वाइंट से भी टाइगर हिल दूर से दिखाई देती है। लेकिन वहां से उसकी कठिन चढ़ाई का अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। सैंडो टॉप पहुंचने के बाद अहसास हुआ कि भारतीय सेना से कैसे इस दुश्कर कार्य का अंजाम दिया होगा। टाइगर हिल सिर्फ एक पहाड़ी नहीं है। बल्कि ये वो युद्धक्षेत्र है, जहां हमारे जवानों ने असंभव को संभव कर दिखाया। ठंड में ठिठुरते हुए, दुश्मन की गोलियों का सामना करते हुए हमारे देश के जवानों नामुमकिन हालातों से लड़कर भारत का तिरंगा बुलंद रखा। यही वह जगह है जहां कैप्टन विक्रम बत्रा ने बोला था “ये दिल मांगे मोर।”

एक कंपनी करती थी 126 किलोमीटर LoC की निगरानी
कारगिल युद्ध से पहले सर्दियां आते ही यहां बनीं भारतीय पोस्टें खाली कर दी जाती थीं। जिसे सेना की भाषा में विंटर वैकेटेड पोस्ट कहा जाता है। इस दौरान लगभग छह महीने के लिए हमारे जवान नीचे मैदान में आकर मोर्चा संभालते थे। उस समय लगभग 120 जवानों की एक कंपनी 126 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ कंट्रोल की निगरानी करती थी। वहीं इसी तरह पाकिस्तानी सेना नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (एनएलआई) भी सर्दियों में अपनी ऊंचाई वाली पोस्ट खाली करके नीचे आ जाती थी। कहा जा सकता है कि यह एक अघोषित समझौता था, जो सालों से चला आ रहा था। वहीं जनरल मुशर्रफ ने साजिश रची और इसका फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी सेना ने चुपचाप यहां की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया।
घातक प्लाटून ने टाइगर हिल पर किया था कब्जा
उस समय यहां 16 ग्रेनेडियर और 8 सिख तैनात थी 121 इन्फैंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थी। लेकिन घुसपैठियों के भेष में आए पाकिस्तानी सैनिकों को भगाने में नाकामयाब रही और काफी जानोमाल का नुकसान उठाऩा पड़ा। जिसके बाद उस समय कर्नल रहे खुशाल सिंह ठाकुर (अब रिटायर्ड ब्रिगेडियर के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर यहां पहुंची। उन्होंने सैंडो टॉप जाकर दुश्मन की टोह ली और टाइगर हिल पर हमले की योजना बनाई। टाइगर हिल पर कब्जे में 18 ग्रेनेडियर की घातक प्लाटून का अहम योगदान रहा। हाड़ जमा देने वाली ठंडी हवाएं, सीधी खड़ी चट्टानें और दुश्मन की गोलीबारी के बीच लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (अब कर्नल) के नेतृत्व में घाटक प्लाटून ने टाइगर हिल की मुश्किल चढ़ाई शुरू की। इसमें ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव जैसे वीर भी शामिल थे। रात के अंधेरे में, दुश्मन की भारी गोलीबारी के बीच, इन जवानों ने खड़ी चट्टानों को पार कर हमला शुरू किया। यह वही हमला था जिसने दुश्मन की ताकत तोड़ दी। ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव को 15 गोलियां लगीं। उन्हें दो ग्रेनेड हमलों में भी चोटें लगीं। अपनी जान की परवाह न करते हुए टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में अहम भूमिका निभाई और इसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

पाकिस्तान चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता
खैर बात सैंडो टॉप की करते हैं, तो सैंडो टॉप चारों दिशाओं से रिज से घिरा हुआ है। सामने की तरफ तीन रिज हैं, जिनमें टाइगर हिल रिज, त्रिशूल रिज और मार्पोला रिज। इन रिजों से ही लाइन ऑफ कंट्रोल भी गुजरती है। मार्पोला रिज में भारत और पाकिस्तान दोनों की सैन्य चौकियां हैं, और इसमें सबसे ऊंचा बिंदु है पॉइंट 5353, जो अभी भी पाकिस्तान के कब्जे में है। इस बिंदु से कुछ ही दूरी पर भारतीय पोस्ट भी मौजूद हैं। यहां दोनों सेनाएं आमने-सामने हैं। पॉइंट 5353 के नीचे थोड़ी दूरी पर भारतीय सेना की ज्ञान चौकी मौजूद है। पॉइंट 5353 के बगल में आफताब गैप है, जिस पर पाकिस्तान का कब्जा है। उसके बगल में पॉइंट 5240, पॉइंट 5130, पॉइंट 5100 हैं, जहां पर भारत बैठा है। भारतीय सेना ने पॉइंट 5353 की इस तरह से घेराबंदी कर रखी है कि यहां पाकिस्तान चाह कर अब कुछ नहीं कर सकता।
साफ दिखाई देती है हमारी गतिविधि
त्रिशूल रिज की ओर एलओसी की दूरी करीब 8 किलोमीटर है, जबकि मार्पोला रिज की तरफ से पॉइंट 5353 से केवल 1 किलोमीटर से भी कम है। इसका मतलब है कि यहां हम जो भी गतिविधि कर रहे हैं, वह दुश्मन साफ-साफ देख सकता है। इसीलिए सेना की हर गतिविधि बेहद अनुशासित और रणनीतिक तरीके से होती है। हमें बताया गया कि सैंडो टॉप पर हमारी हर गतिविधि को दुश्मन साफ देख सकता है। यही वजह है कि यहां फोटोग्राफी पर सख्त पाबंदी है।
सैंडो टॉप की ऊंचाई और उसकी रणनीतिक स्थिति इसे बेहद संवेदनशील बनाती है। यहां हर कदम पर सतर्कता बरतनी पड़ती है। हमें बताया गया कि कुछ जगहें, जैसे पॉइंट 5353, नक्शे पर नहीं दिखाई देतीं और इन्हें सिर्फ लैंडमार्क के जरिए ही पहचाना जा सकता है। हमने बाइनोकुलर के जरिए रिज और चौकियों की स्थिति समझी। यहां से टाइगर रिज और ईस्टर्न रिज जैसे इलाके साफ दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ हिस्से इतने संवेदनशील हैं कि उनकी जानकारी गोपनीय रखी जाती है।
26 साल बाद भी सेना की मजबूत मौजूदगी
1999 के मुताबले सैंडो टॉप पर अब बिजली की सुविधा है और हाई-स्पीड इंटरनेट भी उपलब्ध है। यह देखकर हैरानी होती है कि इतनी ऊंचाई पर, जहां सांस लेना मुश्किल है, वहां इंटरनेट की स्पीड शहरों जैसी है। लेकिन इन सुविधाओं के बावजूद, मौसम यहां का सबसे बड़ा दुश्मन है। जब हम सैंडो टॉप पहुंचे, धूप खिली थी। लेकिन 30 मिनट के भीतर ही मौसम ने ऐसी करवट ली कि काले बादल छा गए और तेज हवाएं चलने लगीं। ऐसा लगा कि अगर ज्यादा देर बाहर खड़े रहे तो हवा हमें उड़ा ले जाएगी।
सैंडो टॉप पर अब भारतीय सेना साल भर इन चौकियों पर डटी रहती है। सैंडो टॉप और आसपास की रिज पर सेना की मजबूत तैनाती है। टाइगर रिज, ईस्टर्न रिज और अन्य फर्म बेस कॉम्प्लेक्स 1999 के बाद से और मजबूत किए गए हैं। सेना की एक कंपनी अब छोटे-छोटे हिस्सों में बंटकर इलाके की सुरक्षा करती है। अब एक कंपनी को सिर्फ 13 किलोमीटर की एलओसी की जिम्मेदारी दी जाती है, जिससे किसी भी खतरे का तुरंत जवाब दिया जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सैंडो टॉप पर पाकिस्तान की तरफ से रेकी के लिए ड्रोन आए थे, लेकिन हमारे एयर डिफेंस सिस्टम ने उन्हें नाकाम कर दिया।